Sahityik Nibandh

कामायनी के बारे में जानें ……

kamayani ke baare me jaane laghu nibandh

‘कामायनी’ हिंदी-साहित्य के वर्तमान युग की एक सुंदरतम देन है। कवि ‘प्रसाद’ ने हिंदी-साहित्य को कामायनी देकर क्या कुछ नहीं दिया? ‘कामायनी’ की कथा कवि ने वैदिक उपाख्यान से ली है। इस काव्य का नायक आदि पुरुष मनु है और ग्रंथ में यह चित्रित किया गया है कि नवीन सभ्यता की प्रतिष्ठा किस भाँति हुई और मानवता के सर्वथा नूतन युग का प्रारंभ किस प्रकार हुआ।

नायक मनु महाप्रलय से बचकर चिंतित बैठे हैं कि इसी समय काम-गोत्र की पुत्री श्रद्धा (कामायनी) से उनका परिचय होता है। श्रद्धा और मनु साथ रहने लगते हैं। श्रद्धा मनु में मानवीय संस्कार पैदा करना चाहती है परंतु मनु में दैवी संस्कार जागृत हो जाते हैं, और वह यज्ञ, बलि इत्यादि के लिए शिकार करने लगता है। श्रद्धा माता होती है और उसका प्रेम बँट जाता है; इससे मनु के मन में ईर्ष्या होती है और उसका मन उचाट हो जाता है। वह श्रद्धा को छोड़-कर चल देता है। सारस्वत देश की रानी इड़ा से उसकी भेंट होती है। इड़ा देवों की बहन थी और मनु के अन्न से पली थी, परंतु मनु इस भेद से अनभिज्ञ थे। इड़ा को ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो सारस्वत प्रदेश के राज-कार्य को सँभाल सके और मनु ने उसे सँभाल लिया। राज्य ने उन्नति की। मनु राज्य-सत्ता पाकर संतुष्ट नहीं हुए और उनका मन इड़ा की तरफ दौड़ने लगा। मनु प्रमाद में बलात्कार पर उतारू हो गए। इधर देव भी क्रुद्ध हुए और प्रजा ने विद्रोह कर दिया। मनु युद्ध में घायल होकर बेहोश हो गए। दूसरी ओर श्रद्धा स्वप्न में मनु की इस दशा को देखकर अपने बच्चे को ले उनकी खोज के लिए चल देती है। श्रद्धा बेहोश मनु को अनेक उपचारों द्वारा वहाँ आकर होश में लाती है। मनु फिर श्रद्धा की ओर आकर्षित होते हैं परंतु उनका मन उन्हें धिक्कारता है और वह फिर भाग निकलते हैं। इड़ा भी दुखी है और वह श्रद्धा से उनका पुत्र माँगती है। श्रद्धा इड़ा को लोक-कल्याण का उपदेश देकर अपना पुत्र उसे दे देती है और स्वयं मनु की खोज में चल देती है। एक घाटी में मनु से उसकी भेंट होती है। मनु अपनी भूल समझ चुका है। वह श्रद्धा का अनुसरण करता है और उसके पीछे-पीछे संसार के विविध रूप देखता हुआ एक ऊँचे स्थान पर पहुँच जाता है। यही ऊँचा स्थान कैलाश है। एकात्मय की अनुभूति यहाँ पहुँचकर मनु को होती है और विराट नृत्य के दर्शन होते हैं। वहाँ जीवन के सब रहस्य आनंद में लय हो जाते हैं।

प्रागैतिहासिक महाकाव्य होते हुए भी ‘प्रसाद’ जी ने ‘कामायनी’ में मनोवैज्ञानिक तत्त्वों को पूर्ण रूप से संवादों में रखकर काव्य की रचना की है। व्यष्टि और समष्टि रूप से जीवन की श्रमिक भावनाओं में से होकर जीवन का विकास कवि ने किया है। ‘कामायनी’ में किसी भी तत्त्व की सीधी व्यंजना न करके प्रतीकात्मक रूप से की गई है। आध्यात्मिक अथवा रूपक के रूप में मनोवैज्ञानिक व्याख्या में कवि ने ऐतिहासिकता का आधार लिया है। ‘कामायनी’ के सब शीर्षकों के अंतर्गत उन शीर्षकों के भाव तथा उनसे संबंधित भावनाओं का विश्लेषण कवि ने बहुत रोचकता के साथ किया है। मानव जीवन की सब भावनाओं का क्रमिक विकास ‘कामायनी’ में मिलता है। प्रथम सर्ग ‘चिंता’ है सो मानव जीवन के प्रारंभ में चिंता है भी अनिवार्य। चिंता समाप्त होने पर मानव के जीवन में आशा का उदय होता है। आशा के स्वर्णिम प्रभात का कवि ने बहुत सजीव चित्रण किया है। आशा के पश्चात् ‘श्रद्धा’ जीवन में आती है और श्रद्धा के मिल जाने पर ‘काम’ का प्रभाव होता है। कितने सुंदर क्रमिक विकास के साथ कवि चल रहा है? ‘काम’ के पश्चात् ‘वासना’ और फिर ‘लज्जा’ जीवन का प्रधान गुण बनकर आ जाती है। इसी समय जीवन में ‘कर्म’ की प्रधानता होती है और साथ-ही-साथ नासमझी के कारण ‘ईर्ष्या’ भी होने लगती है। ‘ईर्ष्या’ से मानव पथ भ्रष्ट हो जाता है और वह अंधा होकर उचित-अनुचित को भूल जाता है। वह उसे अपना सर्वस्व अर्पण कर देती है परंतु मनु मदांध है। मदांध होकर उसे टक्कर खानी पड़ती है। ‘श्रद्धा’ उसे फिर आकर सँभाल लेती है और शांति का मार्ग दिखलाती है। यह जीवन का क्रमिक विकास है जिसमें चिंता, मिलन, वासना, संघर्ष, क्लेश, शांति सभी कुछ कवि ने निहित किया है। मानव के विकास की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ‘कामायनी’ में मिलती है। हिंदी साहित्य में अपने ढंग का यह अकेला ही ग्रंथ है और अन्य साहित्यों में भी इस प्रकार का कोई देखने ग्रंथ में नहीं आता। मानव सृष्टि का उदय, विकास और उसकी चर्म सिद्धि इस ग्रंथ में मिलती है। कवि ने ‘कामायनी’ की रचना बुद्धि तथा अध्यात्म दोनों ही की पृष्ठभूमि पर की है। ‘कामायनी’ में शैवतत्त्व ज्ञान की प्रधानता है। सृष्टि का प्रारंभ, उसकी स्थिरता और उसका निर्वाण सब कुछ आनंदमय है। शिव विश्व के चिरमंगल का कर्ता है। एकांत-प्रेम और मंगल में भी शिव की कल्पना करनी होती है। ‘कामायनी’ में मनु का प्रकृति के साथ महान् सामंजस्य स्थापित किया है।

‘कामायनी’ एक महाकाव्य है क्योंकि इसमें मानव जीवन की संपूर्ण व्याख्या मिलती है। जीवन की नाना परिस्थितियों का उत्थान और पतन ‘कामायनी’ में मिलता है। इसमें एक ऐसे नायक का चरित्र चित्रण किया गया है जो मानव जाति का नायक है, जिससे मानवता का उदय होता है। ‘कामायनी’ विश्व के सम्मुख एक आदर्श भी प्रस्तुत करती है और इतिहास भी। ‘साहित्य दर्पण’ के मतानुसार महाकाव्य की कथा कल्पित न होकर ऐतिहासिक अथवा पौराणिक होनी चाहिए और उसका नायक एक देवता है। यह गुण भी ‘कामायनी’ से मिलता है। महाकाव्य शृंगार, वीर या शांत रस प्रधान होना चाहिए और उसमें आठ से अधिक सर्ग होने चाहिए। इसी दृष्टि से तो ‘कामायनी’ एक उच्च कोटि का महाकाव्य ठहरता है। ‘कामायनी’ में संध्या, सूर्योदय, रात्रि, प्रातः; अंधकार, वर्षा इत्यादि के सुंदर चित्रण हैं। संयोग और वियोग शृंगार की पूर्ण अभिव्यक्ति है।

‘कामायनी’ में चरित्रों का विकास बहुत सुंदर हुआ है। ‘श्रद्धा’ काव्य की नायिका है और वह मनु को भी ‘शक्तिशाली और विजयी’ बनाने का आदेश करती है। ‘कामायनी’ इड़ा और मानव को भी इसी प्रकार संदेश देकर कहती है।

तुम दोनों देखो राष्ट्र नीति,

शासक बन फैलाओं न भीति।

समस्त ग्रंथ में श्रद्धा का चरित्र प्रधान है। एक प्रकार से मानव चरित्र का भी उदय और विकास श्रद्धा के ही संपर्क में आकर होता है। श्रद्धा इस प्रकार इस महाकाव्य की आधार है-

‘कामायनी’ शृंगार तथा शांत रस प्रधान है। ‘वासना’-सर्ग में शृंगार का सुंदर चित्रण दिया गया है। संयोग और वियोग का आधुनिक गीतात्मक शैली में चित्रण है। नायिका और नायक एकांत में मिलते हैं और प्रेमालाप होता है। ‘कर्म’ के अंतिम छंदों में शृंगार का बहुत सुंदरतम् स्वरूप कवि ने प्रस्फुटित किया है।

‘कामायनी’ में प्रकृति के विविध रूपों का चित्रण किया है। जल-प्लावन में प्रकृति के पाँचों तत्त्वों का संघर्ष कवि ने दिखलाया है। देखिए प्रातःकाल और रात्रि के अंतिम प्रहर का कितना सुंदर चित्रण कवि ने किया है-

“उषा सुनहले तीर बरसती जय लक्ष्मी-सी उदित हुई;

उधर पराजित काल रात्रि भी जल में अंतर्निहित हुई।

नव कोमल आलोक बिखरता हिम-संसृति पर भर अनुराग;

सित सरोज पर क्रीड़ा करता जैसे मधुमय पिंग पराग।”

इसी प्रकार प्रकृति का चित्रण बहुत सजीवता के साथ कवि ने किया है। प्रकृति को मानव जीवन के साथ-साथ तथा स्वतंत्रता से, दोनों प्रकार कवि लेकर चला है। मानव प्रकृति का बहुत सुंदर चित्रण ‘कामायनी’ में मिलता है।

‘कामायनी’ के 15 सर्गों में कवि ने शृंखलाबद्ध कथा के अंतर्गत प्रकृति, मानव-प्रकृति और काव्य-गुणों का सुंदर समावेश किया है। ‘कामायनी’ में उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकारों का प्रधानतया प्रयोग किया गया है।

इस प्रकार हमने ‘कामायनी’ की संक्षिप्त विवेचना करके देखा कि उसमें कवि ने दर्शन, शास्त्रीय विवेचना, महाकाव्य विषयक सिद्धांतों, चरित्र-चित्रण, बुद्धिवादिता, प्राकृतिक चित्रण इत्यादि सभी गुणों का बहुत कलात्मक ढंग से चित्रण किया है। ‘कामायनी’ की वर्तमान युग की काव्य-धारा का वह प्रतीक है जिसमें वर्तमान गीतात्मकता जिसे छायावाद कहा जाता है, उस वाद की संपूर्ण सृष्टि मिलती है। ‘कामायनी’ वर्तमान युग के काव्य का वह दर्पण है जिसमें पाठक हर प्रकार की छाया का प्रतिबिंब देख सकता है।

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