Sahityik Nibandh

मैथिलीशरण ‘गुप्त’ और उनका साहित्य- एल लघु निबंध

maithilisharan gupta aur unaka sahitya par ek laghu nibandh

मैथिलीशरण गुप्त वर्तमान हिंदी के उन कवियों में से हैं जिन्होंने संवत् 1923 से कविता क्षेत्र में पदार्पण किया और आज तक बराबर अपने स्थान को सुदृढ़ ही बनाते चले आ रहे हैं। प्रबंध और मुक्तक दोनों ही प्रकार की रचनाएँ ‘गुप्त’ जी ने हिंदी साहित्य को प्रदान की हैं परंतु आपका विशेष महत्त्व प्रबंध-काव्यों के ही कारण है। संवत् 1923 में प्रथम बार हिंदी पाठकों ने आपकी रचनाएँ ‘सरस्वती’ में देखों और फिर आपका प्रसिद्ध ग्रंथ ‘भारत-भारती’ पाठकों के सम्मुख आया। ‘भारत-भारती’ में ‘मुसद्दस अली’ के ढंग पर हिंदूओं की भूत और वर्तमान दिशाओं की विषमता दिखलाई गई है, भविष्य-निरूपण का प्रयत्न नहीं है। ‘भारत-भारती’ से पूर्व भी ‘रंग में भंग’ नामक पुस्तक आपकी प्रकाशित हुई थी, परंतु जो मान ‘भारत-भारती’ को मिला वह उसे प्रथम रचना होने पर भी प्राप्त नहीं हो सका।

‘गुप्त’ जी की प्रबंध-काव्य लिखने की धारा बराबर चलती रही और धीरे-धीरे आपने ‘रंग में भंग’, ‘जयद्रथ वध” “ विकट भट्ठ’, ‘प्लासी का युद्ध’ ‘गुरु-कुल’ ‘किसान’, ‘पंचवटी’, ‘सिद्धराज’, ‘साकेत’ और ‘यशोधरा’ लिखकर हिंदी-साहित्य-भंडार को भर दिया। इन काव्यों में ‘साकेत’ और ‘यशोधरा’ बड़े हैं और महत्त्वपूर्ण भी। ‘विकट भट्ट’ में राजपूती टेक की कथा है, ‘गुरुकुल’ में गुरु-शिष्य का महत्त्व बतलाया है और ‘जयद्रथ वध’ और ‘पंचवटी’ में प्रचलित कथाओं का कवि-कल्पना के साथ कलात्मक समावेश है। इन काव्यों की भाषा बहुत सुंदर है और उनमें प्रसंग-योजना भी प्रभावशाली है।

‘गुप्त’ जी ने अपने साहित्य में जीवन और जगत दोनों पर प्रकाश डाला है। ‘साकेत में ‘गुप्त’ जी ने अपने राम को लोक के बीच अधिष्ठित किया है। साहित्य की प्रगतियों का ‘गुप्त’ जी पर प्रभाव न पड़ा हो ऐसी बात नहीं है। जिस समय साहित्य में छायावाद की लहर दौड़ी तो ‘गुप्त’ जी भी उससे अपने को पृथक नहीं रख सके। रहस्यवादियों के से कुछ गीत आपने गाये अवश्य हैं, परंतु असीम के प्रति उत्कण्ठा और वेदना इनके जीवन में निहित न होने के कारण वह केवल काव्य के प्रति एक रुझान मात्र ही रह गए हैं, जीवन की प्रेरणा नहीं बन सके। ‘गुप्त’ जी की इस धारा की कविताओं का संग्रह ‘झंकार’ है।

‘साकेत’ और ‘यशोधरा’ गुप्त जी के दो अमर काव्य हैं। इन्हीं में उनके काव्य का सुंदर विकास दिखलाई देता है। इन ग्रंथों में प्रबंधात्मकता की वह पुष्टि नहीं दिखलाई देती जो ‘रामचरितमानस’ और ‘पद्मावती’ में मिलती है। इसका प्रधान कारण यही है कि उनकी रचना कवि ने उस समय जब साहित्य की गीतात्मक प्रवृत्ति का उन पर प्रभाव पड़ चुका था। साकेत के दो सर्गों विरहिणी उर्मिला का चित्रण ‘गुप्त’ जी के साकेत की विशेषता है। उर्मिला के चरित्र का जो प्रसार ‘साकेत’ में मिलता है वह हिंदी के किसी ग्रंथ में नहीं मिलता।

‘यशोधरा’ की रचना कवि ने नाटकीय ढंग पर की है। “भगवान बुद्ध के चरित्र से संबंध रखने वाले पात्रों के उच्च और सुंदर भावों की व्यंजना और परस्पर कथोपकथन इस ग्रंथ में हैं। भाव व्यंजना गीतों में हुई है।” रामचंद्र शुक्ल। इनके अतिरिक्त ‘द्वापर’, ‘अनघ’, ‘तिलोत्तमा’ और ‘चंद्रहास’ इनके छोटे ग्रंथ भी हैं।

‘गुप्त’ जी ने समय और साहित्य की सभी प्रगतियों को काव्य का रूप दिया है। यह हिंदी भाषा-भाषी जनता के प्रतिनिधि कवि हैं। भारतेंदु-काल की देश-प्रेम की भावना गुप्त जी की ‘भारत-भारती’ में मिलती है। भक्ति-कालीन प्रवृत्ति अपने वर्तमान रूप में आकर ‘साकेत’ में मिलती है। भारत जितने भी आंदोलन हुए उन सबकी झलक हमें ‘गुप्त’ जी के काव्य में यत-तत्र दिखलाई देती है। सत्याग्रह, अहिंसा, मनुष्यत्ववाद, विश्व-प्रेम, किसानों और मजदूरों के प्रति प्रेम और सम्मान की झलक इनके साहित्य में मिलती है। खड़ीबोली में इनकी सुंदर और निखरी हुई कविता लिखने का श्रेय ‘गुप्त’, जी को ही प्राप्त हुआ है। भाषा में लोच, सौंदर्य, कर्ण-मधुरता और अन्त्यानुप्रासों का लाना — इन सभी प्रवृत्तियों का प्रादुर्भाव हिंदी कविता में ‘गुप्त’ जी का ही सफल प्रयास है।

इस प्रकार हम ‘गुप्त’ जी की रचनाओं का विश्लेषण करके देखते हैं कि उनमें भाषा के विचार से भी क्रमिक विकास पाया जाता है। ‘गुप्त’ जी की रचनाओं में स्वच्छ और सुथरी भाषा का प्रयोग मिलता है। खड़ीबोली की गद्यात्मकता और रूखेपन को निकालकर कवि ने उसमें सरस और केवल पदा-वली का प्रयोग किया है। इतिवृत्तात्मक भाषा में परिमार्जन करके उसे गीतात्मक बनाया है। आपने बंगाली कविताओं का अनुशीलन किया है। हिंदी के साहित्य में छायावादी युग आने से पूर्व की जितनी भी ‘गुप्त’ जी की रचनाएँ हैं उनमें अनेकों स्थानों पर ऊबड़-खाबड़ और अव्यवहृत संस्कृत शब्दों का प्रयोग मिलता है।

“गुप्त जी सामंजस्यवादी कवि हैं, प्रतिक्रिया प्रदर्शन करने वाले अथवा मद में झूमने वाले कवि नहीं। सब प्रकार की उच्चता से प्रभावित होने वाला हृदय उन्हें प्राप्त है। प्राचीन के प्रति पूज्य भाव और नवीन के प्रति ‘उत्साह’ हृदय दोनों इनमें हैं।”

                                                     -आचार्य रामचंद्र

शुक्ल प्रकृति-चित्रण, मनोवैज्ञानिक चरित्र-चित्रण, समाज पर दृष्टि, विशुद्ध भाषा का प्रयोग, सुंदर अलंकारों का समावेश, नव रसों पर पूर्ण अधिकार रखना- सभी मैथिलीशरण जी और उनके साहित्य की विशेषताएँ हैं। प्राचीनता और नवीनता का इतना सुंदर सामंजस्य आज के किसी अन्य कवि में नहीं मिलता जैसा ‘गुप्त’ के साहित्य में उपलब्ध है। कवि आज के साहित्य और समाज का प्रतिनिधि है और उसने अपने साहित्य में मानव चित्रण के उन तत्त्वों को प्रधानता दी है जिनके कारण उनका साहित्य केवल उनके ही काल का न रहकर, सब आने वाले समयों का साहित्य बनेगा। ‘यशोधरा और ‘साकेत’ हिंदी साहित्य की अमर निधियाँ हैं जिनका महत्त्व सर्वदा एक सा ही बना रहेगा।

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