Sahityik Nibandh

मलिक मुहम्मद जायसी

Malik Muhammad Jayasi koun tha

का जन्म सम्वत् 1546 में हुआ था। वह एक सज्जन प्रकृति के ईश्वर भक्त व्यक्ति थे। पहले वह एक गृहस्थ कृषक थे, किंतु बाद में किसी दुर्घटना में अपने पुत्रों की मृत्यु हो जाने पर उन्होंने वैराग्य धारण कर लिया। उन्होंने ‘पद्मावत’ के प्रारंभ में अपने व्यक्तित्व का भी उल्लेख किया है। इस काव्य की रचना सम्वत् 1577 से लेकर 1567 तक बीस वर्षो में की गई थी। इसके अतिरिक्त उनके ‘अखरावट’ और ‘आखिरी कलाम’ नामक दो अन्य काव्य भी प्राप्त होते हैं। इनमें ‘पद्मावत’ का सर्वश्रेष्ठ स्थान है। इसकी रचना अवधी भाषा में दोहा और चौपाई नामक छंदों में हुई है।

जायसी भावुक प्रकृति के व्यक्ति थे। यद्यपि वह मुसलमान थे, तथापि सत्संग के द्वारा उन्होंने हिंदू धर्म का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था। इसी प्रकार हठयोग, वेदांत और रसायन का भी उन्हें पर्याप्त ज्ञान था। उन्होंने ईश्वर को प्राप्त करने के लिए प्रेम-भाव का आश्रय लेने पर बल दिया है। मुसलमान धर्म के प्रति उनकी पूर्ण आस्था थी। उन्होंने अपने काव्य की रचना सूफी सिद्धांतों के अनुसार की थी। उनके गुरु का नाम सैयद अशरफ जहांगीर था, किंतु शेख मोहिदी से भी उन्होंने पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया था।

भक्ति काल के कवियों में जायसी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने निर्गुण भक्ति की प्रेमाश्रयी शाखा के अंतर्गत काव्य रचना की है। इस शाखा के कवियों में उनका सर्वश्रेष्ठ स्थान है। उन्होंने अपने अन्य सहयोगी कवियों की भाँति हिंदू और मुसलमानों के प्रेम-भाव को बढ़ाने के लिए ‘पद्मावत’ में एक हिंदू कथा का वर्णन किया है। इस काव्य में चित्तौड़ के राजा रत्नसेन और सिंहलद्वीप की राजकुमारी पद्मावती के प्रेम तथा विवाह का वर्णन किया गया है और कथा के बीच में सूफी सिद्धांतों को भी उपस्थित किया गया है। यह एक रूपक काव्य है और इसमें सांसारिक प्रेम की भाँति ही ईश्वर के प्रति प्रेम- भाव रखने का संदेश दिया गया है। इसीलिए इसमें राजा रत्नसेन को आत्मा और पद्मावती को परमात्मा के रूप में उपस्थित किया गया है। जायसी की काव्य- कला इसी ग्रंथ पर आधारित है। आगे हम उनके काव्य की प्रमुख विशेषताओं पर संक्षेप में प्रकाश डालेंगे।

(1) रस-योजना –

प्रबंध-काव्य में रस योजना के लिए पूर्ण अवकाश रहता है। ‘पद्मावत’ में कवि ने शृंगार रस को मुख्य स्थान देते हुए अन्य रसों का भी यथास्थान प्रयोग किया है। उन्होंने प्रेम के संयोग और वियोग दोनों पक्षों की सफल योजना की है। संयोग पक्ष के अंतर्गत उन्होंने राजा रत्नसेन और पद्मावती के प्रेम तथा विवाह का चित्रण किया है। वियोग-पक्ष को लेकर उन्होंने एक ओर तो विवाह से पूर्व इन दोनों के विरह का उल्लेख किया है और दूसरी ओर राजा रत्नसेन के वियोग में उनकी पहली पत्नी नागमती की व्यथा का मार्मिक वर्णन किया है। उनके द्वारा किया गया नागमती का विरह-वर्णन हिंदी – साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इस विरह को उन्होंने स्वाभाविक रूप में चित्रित करने के अतिरिक्त कहीं-कहीं कल्पना के आधार पर बढ़ा-चढ़ाकर भी उपस्थित किया है। नागमती की विरह-दशा का निम्नलिखित उक्ति से सरलता से अनुमान किया जा सकता है –

“यह तन जारों छार कै कहीं कि पवन उड़ाव।

मकु तेहि मारग उड़ि पर कंत धरे जहँ पाव॥”

(2) रहस्यवाद का चित्रण –

जायसी ने अपने काव्य में लौकिक प्रेम की रीति से अलौकिक प्रेम को प्राप्त करने की विधि का वर्णन किया है। इस कारण उनके ‘पद्मावत’ में रूपक- तत्त्व का भी सुंदर समावेश प्राप्त होता है। उन्होंने भावात्मक रहस्यवाद को अपनाते हुए अपने काव्य में भावनाओं की मधुरता की ओर पर्याप्त ध्यान दिया है। उनके रहस्यवादी काव्य में प्रेम-तत्त्व, सूफी- साधना और सर्ववाद का उपयुक्त समावेश प्राप्त होता है। प्रेम तत्त्व के अंतर्गत उन्होंने उसके संयोग और वियोग नामक दोनों ही पक्षों को अपनाया है। इसी प्रकार सर्ववाद के अनुसार उन्होंने ईश्वर को संपूर्ण प्रकृति में व्याप्त माना है। इन दोनों का चित्रण करते समय उन्होंने सूफी संतों की रहस्यवादी विचारधारा से अनिवार्य सहायता ली है। भावात्मक रहस्यवाद के अतिरिक्त उन्होंने ‘पद्मावत’ में साधनात्मक रहस्यवाद को भी यत्र-तत्र स्थान प्रदान किया है। इस प्रकार के प्रसंगों में हठयोग के पारिभाषिक शब्दों का भी प्रचुर प्रयोग हुआ है। इस दृष्टि से ‘पद्मावत’ का ‘राजा गढ़-छेका खंड’ उल्लेखनीय है। उन्होंने ईश्वर को साधक के हृदय में ही स्थित माना है। उदाहरणार्थं उनकी निम्नलिखित पंक्तियाँ देखिए-

“पिउ हिरदय महँ भेंट न होई।

को रे मिलाब कहौं केहि रोई॥”

(3) चरित्र-चित्रण –

‎’पद्मावत’ एक घटना प्रधान प्रबंध-काव्य है, तथापि इसमें पात्रों की उपेक्षा नहीं की गई है। जायसी ने अपने विभिन्न पात्रों की स्थिति का मनोवैज्ञानिक प्रतिपादन करने की ओर पूर्ण ध्यान दिया है। उन्होंने पात्रों के हृदय की भावनाओं को सफल अभिव्यक्ति प्रदान की है। उन्होंने पात्रों की शारीरिक और मानसिक स्थितियों का उपयुक्त चित्रण किया है। इसी कारण वह रत्नसेन, पद्मावती, नागमती, अलाउद्दीन, गोरा, बादल और राघव चेतन आदि सभी पात्रों का सफल संयोजन कर सके है।

‘पद्मावत’ की कथा को कवि ने रूपक के आधार पर उपस्थित किया है। इस कारण इसमें चरित्र चित्रण का कार्य सरल नहीं रहा है। यद्यपि जायसी को चरित्र चित्रण में प्रायः सफलता ही मिली है, तथापि रूपक के आग्रह के कारण कहीं कहीं वह पात्रों को स्वाभाविक रूप में उपस्थित न कर सकने के कारण असफल भी रहे हैं। उदाहरणार्थ उन्होंने नागमती को सांसारिक धन्धों के प्रतीक पात्र के रूप में उपस्थित किया है, किंतु, वास्तव में उसका चरित्र इस प्रकार का नहीं है। उसके हृदय में सर्वत्र दया, स्नेह और ममता आदि उच्च गुणों का समावेश हुआ है।

(4) प्रकृति चित्रण –

सूफी दृष्टिकोण के अनुसार प्रकृति में परमात्मा की छाया निश्चित रूप से वर्तमान रहती है। अत: ‘पद्मावत’ में प्रकृति के अनेक चित्र प्राप्त होते हैं। जायसी ने प्रकृति का परंपरागत रीति से चित्रण करने के अतिरिक्त उसे मौलिक रूप में भी उपस्थित किया है। उनके काव्य में प्रकृति-चित्रण के दो पक्ष रहे हैं। एक ओर तो उन्होंने प्रकृति को उसके यथार्थ रूप में उपस्थित किया है अर्थात् जिस रूप में वह हमें दिखाई देती है उसी रूप में उसे उपस्थित कर दिया है और दूसरी ओर उसे सूक्ष्म सौंदर्य प्रदान करने का प्रयास किया है। प्रकृति को इस दूसरे रूप में उपस्थित करने में जायसी को अधिक सफलता प्राप्त हुई है। उन्होंने प्रकृति में मानव हृदय में आने वाली भावनाओं का समावेश करते हुए प्रकृति को मनुष्य की विविध स्थितियों से प्रभावित होते हुए दिखाया है। इसी कारण उन्होंने नागमती के विरह के दुख से प्रकृति को भी दुखी दिखाया है। जब रत्नसेन चित्तौड़ लौटते हैं तब नागमती की वेदना का तो अंत होता ही है उसके साथ-साथ उसके दुख से व्याकुल प्रकृति की वेदना का भी अंत हो जाता है। उदाहरणार्थं उनकी निम्नलिखित पंक्तियाँ देखिए-

“पलुटी नागमती के बारी,

सोने फूल फूलि फूलवारी।

जावत पंखि रहे सब देह,

सबै पंखि बोले गहगहे॥”

(5) ऐतिहासिकता का निर्वाह-

‘पद्मावत’ में चित्तौड़गढ़ की प्रसिद्ध ऐतिहासिक कथा को उपस्थित किया गया है। इसके पहले खंड में इतिहास की अपेक्षा कल्पना का अधिक समावेश हुआ है और दूसरे खंड में इतिहास को मुख्य स्थान प्राप्त हुआ है। जायसी ने प्रेमगाथा काव्य की रचना करने वाले अपने अन्य सहयोगी कवियों की अपेक्षा इतिहास की ओर अधिक ध्यान दिया है। उन्होंने ‘पद्मावत’ में घटनाओं और पात्रों को प्रायः ऐतिहासिक रूप में उपस्थित करने का प्रयास किया है, तथापि कथा-सौंदर्य, रस और रूपक के निर्वाह के लिए इसमें कल्पना का भी समावेश किया गया है।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जायसी ने ‘पद्मावत’ में प्रेमगाथा काव्यधारा की विभिन्न विशेषताओं को अत्यंत श्रेष्ठ रूप में उपस्थित किया है। यद्यपि यह सत्य है कि रूपक का निर्वाह होने के कारण इसकी कथावस्तु में कहीं-कहीं अस्वाभाविकता का समावेश हो गया है, तथापि प्रायः कवि को इसकी रचना में सफलता ही प्राप्त हुई है। भक्ति काल में लिखे गए प्रेमगाथा काव्यों में इस कृति का सर्वश्रेष्ठ स्थान है और जायसी को भी इस काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि होने का श्रेय प्राप्त है।

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