मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी में बहुत सी कहानियाँ लिखी हैं और इन कहानियों में समाज, राष्ट्र और व्यक्ति के अनेकों अंगों को स्पष्ट किया है, जीवन की अनेक समस्याओं पर प्रकाश डाला है। प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में पूर्व और पश्चिम दोनों की समस्याओं का सामंजस्य, कलात्मक शैली और विचारों के आधार पर किया है। इनकी कहानियों को किसी एक विशेष शैली के अंतगर्त रखकर हम विचार नहीं कर सकते, क्योंकि इनकी अनेक कहानियों का क्षेत्र बहुत व्यापक है।
प्रेमचंद भारतीय संस्कृति में पले थे। वह संस्कृति के मूल स्रोत और विभिन्न धाराओं से भली भाँति परिचित थे। भारतीय संस्कृति के अंतर्गत प्रधानता काव्य के बहिरंग की न होकर अंतरंग की रहती है। काव्य की आत्मा को बल देकर उसमें अध्यात्मवाद की पुट आ जाना अनिवार्य हो जाता है। प्रेमचंद अपनी कहानियों में दैवी गुण लाकर हमें आध्यात्मिकता की ओर ले जाते हैं। प्रेमचंद की इस दैविक भावना को प्रस्तुत करने में भारतीय अध्या-त्मवाद की झलक मिलती है। प्रेमचंद ने पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान की कलों में भारतीयता को पिसने से बचा लिया। प्रेमचंद ने पश्चिम की अच्छाइयों को अपनाया, आँख मीचकर अन्धों की तरह उनके पीछे नहीं दौड़े।
प्रेमचंद की कहानियों को हम कई भागों में विभाजित कर सकते हैं। उसकी ऐतिहासिक कहानियाँ सांस्कृतिक दृष्टकोण के अंतर्गत आती हैं इस प्रकार की कहानियाँ लिखने में वह उतने सफल नहीं हो पाए जितने जयशंकर ‘प्रसाद’, क्योंकि इतिहास विषयक उनका ज्ञान ‘प्रसाद’ जी की भाँति पूर्ण नहीं था ‘प्रसाद’ जी की ऐतिहासिक कहानियों में उस काल के बिखरे हुए तत्त्वों का सुंदर संकलन मिलता है, परंतु प्रेमचंद जी में इस बात का अभाव है। जयशंकर ‘प्रसाद’ के ऐतिहासिक चित्रणों में सांस्कृतिक अथवा भौतिक संदेश नहीं मिलता। वहाँ तो मिलता है सीधा सच्चा चित्रण, परंतु प्रेमचंद उन कहानियों द्वारा समाज के सामने अपना संदेश रखना चाहते हैं। प्रेमचंद की अधिकांश कहानियाँ राजपूतों, मराठों अथवा ठाकुरों की कहानियाँ हैं। देश-प्रेम, वीरांगनाओं के बलिदान, शरणागत की रक्षा, सतीत्व की रक्षा, रण से भागे हुए पति के लिए द्वार न खोलना, अमर प्रेम इत्यादि विषयों पर उन्होंने सुंदर प्रकाश डाला है। इस प्रकार की कहानियों में प्रेमचंद जी ने भारतीय संस्कृति पर विशेष ध्यान दिया है। उत्तर मुगल काल और पूर्ण अंग्रेजी-काल पर भी प्रेमचंदजी ने कहानियाँ लिखी हैं। भारत के पतन के चित्र इन कहानियों में मिलते हैं और राजपूतों की वीरता के भी।
ऐतिहासिक कहानियों के साथ-साथ आपने जो सामाजिक कहानियाँ लिखी हैं। उनमें अपने काल के दो वर्गों का अधिक विस्तृत चित्रण मिलता है। एक समाज के मध्य वर्ग का और दूसरा ग्रामीण जनता का मजदूरों के चित्र भी प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में प्रस्तुत किए हैं परंतु उनका अधिक विस्तृत चित्रण हमें उनके उपन्यासों में मिलता है। समाज के चित्रों का वास्तविक चित्रण हमें सबसे पहले प्रेमचंद की कहानियों में मिलता है। प्रेमचंद ने यह स्पष्ट करके दिखला दिया है कि सत्य गल्प से अधिक चमत्कारपूर्ण है (Truth is stronger than fiction)। प्रेमचंद से पूर्व हिंदी में जो कहानियाँ लिखी गईं उन्हें वर्तमान कहानियों के साथ रखा भी नहीं जा सकता। वह कहानियाँ मानव जीवन में गुदगुदी पैदा कर सकती थीं, उन्हें संभाल या झकझोर नहीं सकती थी। जीवन की वास्तविकता से उनका संबंध न होने के कारण वह मानव की आत्मा को छूने में असफल थीं। प्रेमचंद की कहानियों को पढ़कर पाठक ने अनुभव किया कि मानो वह अपनी ही कहानी पढ़ रहा है। प्रेमचंद ने प्रथम बार समाज के जीवन में बैठकर समाज की आत्मा का अपने साहित्य में चित्रण करने का प्रयास किया। प्रेमचंद पहले समाज सुधारक थे और बाद में मनोवैज्ञानिक। उन पर आर्यसमाज के धर्म प्रचार का प्रभाव था। समाज-सुधार की कहानियों में प्रेमचंद ने उत्तम और मध्यमवर्ग की मानसिक, आध्यात्मिक और आर्थिक समस्याओं के सजीव चित्रण किए हैं। वकील, बैरि-स्टर प्रोफेसर, राईस मिल मालिक बड़े दुकानदार सभी के चित्रण आपने रेखांकित किए हैं।
प्रेमचंद की अंतिम निखरी हुई प्रतिभा का प्रदर्शन हमें शहरी चित्रों के अंकित करने में नहीं मिलता, बल्कि ग्रामीण जनता के चित्रों को अंकित करने में मिलता है। देहाती जीवन पर सर्वप्रथम प्रेमचंद ने ही हिंदी साहित्य में लेखनी उठाई। प्रेमचंद से पूर्ण कभी किसी हिंदी लेखक का इस ओर ध्यान ही नहीं गया था कि यह अनपढ़ देहाती भी किसी साहित्य के विषय बन सकते हैं। प्रेमचंद ने उनका इतना सजीव चित्रण अपनी कहानियों में किया है कि पाठक के सम्मुख देहात के चित्र आकर खड़े हो जाते हैं। किसान भारत का प्रतिनिधि है और प्रेमचंद ने किसान का प्रतिनिधित्व किया है। इसलिए आज के साहित्यिक दृष्टिकोण से प्रेमचंद भारत का प्रतिनिधि हुआ। गाँव से संबंधित जमींदार, काश्तकार, पटवारी, महाजन इत्यादि सभी चरित्र चित्रण प्रेमचंद ने किए हैं। ग्रामों की परंपराएँ किस प्रकार की हैं, समस्याएँ किस प्रकार की हैं, कठिनाइयाँ किस प्रकार की हैं, यह सब प्रेमचंद की कहानियों में मिलता है। ग्रामीण जीवन को अपनी कहानियों का विषय बनाते हुए भी प्रेमचंद ने उन कहानियों में मानव जीवन के उन मनोवैज्ञानिक तत्त्वों को रखा है, जो विश्वव्यापी हैं। कहानियों में मनोवैज्ञानिक तत्त्व की प्रधानता होने से उन कहानियों में संकीर्णता नहीं आने पाई। मानव प्रकृति के उन तत्त्वों का चित्रण किया है जो सब स्थान और सब वर्गों के मनुष्यों में समान रूप से पाए जाते हैं। समय और स्थान से ऊपर विश्वजनीन मनोभावों का समावेश प्रेमचंद ने अपने ग्रामीण पत्रों में किया है। प्रेमचंद के समालोचकों को चाहिए कि प्रेमचंद के साहित्य को संकीर्ण क्षेत्र में रखकर विचार करने की अपेक्षा व्यापक क्षेत्र में रखकर विचार करें। उसमें विश्वजनीनता और विशाल मानव आदर्शों के दर्शन करें।
प्रेमचंद एक मनोवैज्ञानिक लेखक है, जिसने कुशलतापूर्वक सुख:दुख, हर्ष-शोक, ईर्ष्या-द्वेष, प्रेम-घृणा आदि प्राकृतिक मनोभावों को अपनी कहानियों में रखा है। मनोवैज्ञानिक विश्लेषण होने से ही प्रेमचंद अपनी रचनाओं में यथार्थवाद को उचित स्थान दे पाए हैं। प्रेमचंद की कहानियाँ जीवन से ऊपर होकर कल्पना की रंगीनियों में नहीं चलतीं बल्कि हम उन्हें अपने प्रतिदिन के जीवन में घटती हुई देखकर उनके साथ अपनापन अनुभव कर सकते हैं। तमाम कहानी यथार्थवादी होते हुए भी कहानियों के अंत में प्रेमचंद जी अपना नैतिक दृष्टिकोण प्रकट किए बिना नहीं रहते। वह प्रत्येक कार्य के फल को अच्छा ही देखना चाहते हैं। यह प्राचीन भारतीयता की झलक है जिसके अंदर की प्राचीन भारतीय नाटककारों ने दुखान्त नाटकों का लिखना ही उचित नहीं समझा था। पाप पर पुण्य की विजय दुखान्त होते-होते पात्र को सुधार कर कहानी को सुखान्त बना देना लेखक की प्रवृत्ति है। यह प्रेमचंद का आदर्श-वादी दृष्टिकोण ही है जिसने उन्हें ऐसा करने पर विवश किया। प्रेमचंद की कथावस्तु और चरित्र चित्रण यथार्थवादी हैं परंतु आदर्शवादी दृष्टिकोण होने के कारण अंत में आदर्शवाद की झलक अवश्य आ जाती है। प्रेमचंद की सुधारक वृत्ति कहीं स्पष्ट और कहीं अस्पष्ट रूप से झलक अवश्य जाती है। प्रेमचंद ने विविध विषयों का समावेश अपनी कहानियों में किया है। यदि विषयों के आधार पर उनका विभाजन किया जाए तो उन्हें अनेकों विभागों में बाँटा जा सकता है। परंतु क्रमिक विकास के आधार पर डा० रामरतन भट-नागर ने उनके तीन भाग किए हैं-
(1) आरंभ की कहानियाँ-इसमें घटना चक्र और सामयिकता की प्रधानता है। इनमें कोई मूल विचार लेकर लेखक आगे नहीं बढ़ता। प्लाट ही प्रधान है, बीज विचार और चरित्र चित्रण गौण हैं। इन कहानियों में यथार्थवाद की कमी है और मनोवैज्ञानिक तत्त्वों का भी समावेश लेखक उनमें नहीं कर पाया है।
(2) (अ) चरित्र चित्रण और आदर्श प्रधान कहानियाँ-इस प्रकार की कहानियाँ प्रेमचंद ने बहुत कम लिखी हैं। कला में उपयोगिता का होना प्रेमचंद आवश्यक समझते थे। उपयोगिता के बिना अनेक विचारों में कला एक व्यर्थ की वस्तु है। ‘माता का हृदय’, ‘स्वर्ग की देवी’ इत्यादि कहानियाँ इस विभाग के ही अंतर्गत आती हैं। कहानियों के शीर्षकों से ही उनके विषय, विस्तार तथा चित्रण का भान हो जाता है।
(आ) चरित्र-प्रधान वह कहानियाँ जिनमें आदर्श के साथ भावना को प्रधानता दी है। इन कहानियों में भी सुधारात्मक प्रवृत्ति पाई जाती है। लेखक समाज की कुरीतियों को मानवता के काँटे पर तोलकर उन्हें दूर करने का प्रयत्न करता है। ‘स्त्री और पुरुष’, ‘दिवाला’, ‘नैराश्यशीला’, ‘उद्धार’, इत्यादि इसी प्रकार की कहानियाँ हैं। प्रेमचंद की कहानियों में भारतीयता की छाप पग-पग पर मिलती है।
(इ) घटना प्रधान कहानियाँ-इन कहानियों में अन्य प्रवृत्तियाँ होते हुए भी प्रधानता घटना चक्र को ही दी जाती है। ‘शूद्र’, ‘आधार’, ‘निर्वासन, इत्यादि कहानियाँ इसी वर्ग के अंतर्गत आती हैं।
(ई) अंतर्द्वन्द-प्रधान चरित्र चित्रण वाली कहानियाँ-इन कहानियों में प्रेमचंद जी आदर्श की ओर से यथार्थवाद की ओर चले हैं। ‘दुर्गा का मंदिर, ‘डिग्री के रुपये,’ ‘ईदगाह’, ‘मां’, ‘घर जमाई’, ‘नरक का मार्ग’ इत्यादि कहानियाँ इसी वर्ग में आती हैं। यथार्थवाद की ओर चलने पर भी कहानियाँ सुखान्त ही हैं, दुखान्त-चित्रण लेखक नहीं कर पाया है।
(उ) वह कहानियाँ जिनमें प्रभावात्मकता पर बल दिया गया है और वह चरित्र-चित्रण प्रधान कहानियाँ-इस प्रकार की कहानियों में कलात्मकता विशेष रूप से पाई जाती है। प्लाट गौण और चरित्र चित्रण प्रधान। कुछ कहानियों में प्लाट हैं ही नहीं। यह सब होने पर भी प्रेमचंदजी अपनी सुधा-रात्मक प्रवृत्ति को नहीं छोड़ पाए। ‘घास वाली’, ‘धिक्कार’, ‘कायर’, पूस की रात’ इसी श्रेणी की कहानियाँ हैं।
(ऊ) लेखक की कहानियों की अंतिम श्रेणी वह है जहाँ लेखक आदर्शवाद को छोड़कर यथार्थवादी लेखक बन जाता है। ‘कफन और अन्य कहानियाँ शीर्षक से छपी हुई कहानियाँ इसी वर्ग में रखी जा सकती हैं।