मुस्लिम-युग पर विचार करने के लिए हम इस युग को दो भागों में विभाजित कर लेते हैं। एक मुगल काल और दूसरा इससे पूर्व का काल। मुगल साम्राज्य काल से पूर्व काल में हम अरब आक्रमण काल को न लेकर केवल दिल्ली के सुल्तानों के समय पर ही विचार करेंगे। दिल्ली के पठान सुल्तानों का प्रारंभिक काल तो अपने को व्यवस्थित करने में ही व्यतीत हुआ, परंतु जब उनका शासन व्यवस्थित हो गया तो उनका ध्यान राज्य व्यवस्था की अन्य आवश्यकताओं की ओर भी गया।
इस काल का न्याय काजियों द्वारा होता था और सुल्तान पूर्णरूप से निरंकुश थे। हिंदुओं की दशा अच्छी नहीं थी, उनके धर्म का स्थान-स्थान पर अपमान होता था और उनका धन भी सुरक्षित नहीं था। हिंदुओं को जजिया इत्यादि कर देने होते थे जो आज की सभ्यता में मानवता से गिरे हुए कहे जाएँगे। परंतु इस काल में बहुत से हिंदू राजा भी थे और उनके छोटे-छोटे राज्यों में सभ्यता और उसके पुजारी सुरक्षित और सुखी थे।
पठान काल में वास्तु कला की भारत में पर्याप्त उन्नति हुई। कुतुबमीनार, अल्तमश का मकबरा और जौनपुर की मस्जिद इत्यादि उस काल की प्रसिद्ध इमारतें हैं। यह सभी इस काल की वास्तु कला के प्रतीक हैं। इन इमारतों के निर्माण में भारतीय वास्तु कला और पठान वास्तु कला का सम्मिश्रण मिलता है। इसका प्रधान कारण यही है कि भारत में इतने बड़े भवन निर्माण करने के लिए भारतीय वास्तु कला के विशेषज्ञों की सहायता लेना आवश्यक था और वह सहायता पठान सुल्तानों ने पर्याप्त मात्रा में ली जिसके फलस्वरूप उनमें भारतीय कला की आत्मा मिलती है।
इस काल में अमीर खुसरो जैसे कवि ने जन्म लिया जिसका स्थान आज भी हिंदी साहित्य के समृद्धि में महत्त्वपूर्ण इतिहास है। उसमें उर्दू भाषा का उदय हुआ जो आज पनपते पनपते एक महत्त्वपूर्ण भाषा बनकर पाकिस्तान की राष्ट्र-भाषा बन गई है। स्वामी रामानुजाचार्य के शिष्य रामानंद जी का प्रादुर्भाव भी इसी काल में हुआ और इसी काल ने कबीर जैसे संत कवि और विचारक को जन्म दिया। धार्मिक क्षेत्र में गुरु नानक के प्रादुर्भाव का भी यही काल है और बंगाल में चैतन्य महाप्रभु ने भी इसी काल में जन्म लिया। इस प्रकार हमने देखा इस काल में उस भक्ति-संप्रदाय का जन्म हुआ जिसने आगे चलकर भारत की जनता के डूबते हुए हृदयों को भक्ति का आश्रय देकर जीवन प्रदान किया, प्राण-दान दिया।
इस काल के शासन का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा समाज को मुसलमानी प्रभाव से बचाने के लिए समाज के नियामकों ने जातियों के बंधनों को बहुत कड़ाई के साथ जकड़ दिया। इसके फलस्वरूप दिन-प्रतिदिन जातियों की संख्या बढ़ने लगी और मानव जीवन की प्रगति रुक गई। स्त्रियों में पर्दे की प्रथा का उदय हुआ और उन्हें समाज में खुले रूप से आने के अधिकारों से वंचित कर दिया गया। भारत में मुसलमान धर्म का भी प्रभाव बढ़ा और बहुत से भारतीयों ने इस्लाम धर्म को अपना लिया। इस्लाम धर्म को सहर्ष किसी ने नहीं अपनाया बल्कि उसका प्रसार जहाँ तक भी हुआ तलवार की धार पर ही हुआ है।
पठान काल के पश्चात् भारत में मुगल शासन आता है। यह शासन काल अनेकों दृष्टिकोण से बहुत महत्त्वपूर्ण है। मुगल शासकों में धार्मिक सहन-शीलता, मानवता, कलाप्रियता इत्यादि की कमी न थी। यह लोग पठान शासकों की अपेक्षा अधिक शिक्षित और सभ्य थे। मुगल शासकों में अकबर जैसे शासक भी हुए, जिन्होंने हिंदू और मुसलमानों को मिलाकर ‘दीन-ए-इलाही’ जैसे नवीन धर्म चलाने का भी प्रयत्न किया। जहांगीर, जैसे शासक भी हुए, जिन्होंने वीर हकीकतराय के माता-पिता से उनकी दुख भरी कहानी सुनकर काजी को उसके परिवार सहित सरिता में डुबवा दिया। परंतु साथ ही औरंगजेब जैसे शासक भी हुए जिन्होंने मंदिर तुड़वाकर उनके स्थान पर मस्जिदें बनवाईं और ब्राह्मणों के यज्ञोपवीत से हमाम (bathroom) गर्म करवाकर स्नान किया। इस प्रकार यह काल दोनों प्रकार की भावनाओं से पूर्ण रहा है, परंतु जहाँ अकबर की धार्मिक सहिष्हता ने मुसलमानी शासन की नींव को पुष्ट किया, वहीं औरंगजेब की कट्टर मुसलमानी नीति ने उसे खोखला कर डाला। अकबर ने जजिया जैसे करों से हिंदुओं को मुक्त करके उनके हृदयों पर विजय प्राप्त की और औरंगजेब ने मन्दिरों को गिराकर शिवाजी जैसे अपने शत्रु बना लिए।
मुगल शासन काल में भारत की राज्य व्यवस्था बहुत सुदृढ़ थी और अकबर का साम्राज्य चारों ओर फैला हुआ था। प्रजा भी काफ़ी सुखी थी और देश ने कला-कौशल में पर्याप्त उन्नति की। वास्तु कला के विचार से यह काल भारतीय मुसलमान काल का स्वर्ण काल है। ताजमहल संसार का प्रसिद्ध भवन इसी काल में निर्मित हुआ। इसके अतिरिक्त देहली और आगरे के किले, दिल्ली का जामा मस्जिद और फतहपुर सीकरी के विशाल भवन, लाहौर में जहाँगीर का मकबरा इत्यादि इस काल की प्रसिद्ध इमारतें हैं। इन इमारतों पर भारत को गर्व है और वास्तव में इनकी बहुत-सी विशेषताएँ आज के वैज्ञानिक युग में भी जादू-सी प्रतीत होती हैं।
तानसेन जैसे गायक, भक्त तुलसीदास और सूर-जैसे भक्त कवि, अबुल फजल और फैजी-जैसे इतिहासज्ञ, राजा टोडरमल जैसे अर्थशास्त्र के पंडित, राजा मानसिंह जैसे योद्धा, राजा बीरबल जैसे चतुर मतदाता इसी काल की देन हैं। भारत के राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक धार्मिक और साहत्यिक इतिहासों में इन व्यक्तियों ने अपना-अपना सुदृढ़ स्थान स्थापित किया हुआ है। इस काल में ऊँची से ऊँची कोटि के विद्वानों ने जन्म लिया है और ऊँचे से ऊँचे सुधारकों ने। विधर्मी व्यवस्था होने पर भी धर्म-सुधारकों के मार्ग में अधिक रुकावटें नहीं आईं। शासक पहले की भाँति निरंकुश थे। इसलिए कभी-कभी जब वह अपनी सीमा का उल्लंघन कर जाते थे तो समाज का अहित भी होने लगता था परंतु उस काल में यह निरंकुशता संसार भर में व्यापक थी। केवल भारत में ही नहीं बल्कि धर्म के नाम पर यूरोप में भी निरंकुशता शासकों द्वारा रक्तपात करने में कमी नहीं छोड़ी जाती थी। विधर्मियों के झुण्ड के झुण्ड अग्नि कुण्डों में स्वाहा कर दिए जाते थे। भारत में औरंगजेब के समय में कुछ-कुछ इस प्रकार की व्यवस्था मिलती है परंतु समस्त मुसलमान-शासन काल में नहीं।
मुसलमान शासक भारत में आए और भारत के हो गए। जब हम मुसलमान शासकों पर दृष्टि डालकर अंग्रेज शासकों पर दृष्टि डालते हैं तो हमें केवल यही अंतर मिलता है। मुसलमानों से पूर्व जो-जो भी जातियाँ भारत में आई वे यहाँ की सभ्यता में घुल मिलकर अपना सभी कुछ खो बैठीं परंतु मुसलमानों ने ऐसा नहीं किया। इन्होंने भारत की सभ्यता को तलवार की धार पर रखकर काटना चाहा परंतु कटना इन्हें स्वयं ही पड़ा। जो धर्मावलंबी बन भी गए उनमें भी जाट-मुसलमान, राजपूत-मुसलमान, जुलाहे मुसलमान इत्यादि वर्ग बन गए और मुसलमानी सिद्धांत जड़ मूल से ही नष्ट होकर भारतीय वर्ग-वाद के पीछे चल पड़ा। मुसलमानी रिवाजों पर प्रभाव अवश्य पड़ा परंतु उसकी बाहरी रूपरेखा पर अंतरात्मा पर नहीं। उसकी अंतरात्मा ज्यों-की-त्यों बनी रही।
मुसलमानी शासक चाहे अपने को हिंदुओं से कुछ ऊँचा समझते थे परंतु फिर भी वह अपने को भारत का शासक समझते हुए जो कुछ वे करते वह भारत के ही लिए करते थे। भारत की धन-संपत्ति इससे बाहर नहीं जाने पाती थी और भारत निर्धन होने से बचा रहा। परंतु अंग्रेजी शासन काल में भारत की संपत्ति भारत से बाहर जाने लगी जिसका प्रभाव भारत की आर्थिक स्थिति पर बहुत बुरा पड़ा।
इस प्रकार हमने तुलनात्मक रूप से देखा कि आर्थिक विचार से मुसलमानी शासन काल अंग्रेजी शासन काल से कहीं अच्छा था, क्योंकि उस काल में भारत की धन संपत्ति सुरक्षित थी और उस काल में भारत ने जो कुछ भी उन्नति की और जो कुछ भी उपार्जन किया वह भारत में ही रहा। मुसलमानों ने भारत में जो कुछ भी किया अपना समझकर ही किया।