Sahityik Nibandh

निबंध का स्वरूप

निबंध वह संक्षिप्त गद्य रचना है जिसमें किसी विशेष अनुभव अथवा विचारधारा का स्पष्ट रीति से प्रतिपादन किया जाए। उसमें लेखक को अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का पूर्ण अवसर प्राप्त रहता है और वह आवश्यकता के अनुसार उसमें अपने व्यक्तित्व का समावेश करने के लिए भी स्वतंत्र रहता है। हिंदी में निबंध-साहित्य का प्रारंभ आधुनिक युग में बाबू भारतेंदु हरिश्चंद्र के युग में हुआ था। अतः उसके संबंध में आधुनिक युग से पूर्व के. किसी भी विद्वान् की परिभाषा उपलब्ध नहीं होती। आधुनिक युग में निबंध, के स्वरूप पर अनेक व्यक्तियों द्वारा प्रकाश डाला गया है, तथापि परिभाषा – विस्तार का त्याग कर यहाँ हम वर्तमान युग के अग्रगण्य आलोचक और निबंधकार प्राचार्य रामचंद्र शुक्ल की संक्षिप्त तथा सारगर्भित परिभाषा उपस्थित करते है-

“यदि गद्य कवियों की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी है।”

भारतीय साहित्य में प्राप्त होने वाली निबंध संबंधी प्राचीन व्याख्या के अनुसार उसमें अर्थ की निरंतर स्थिति होनी चाहिए अर्थात् निबंध में पहले विषय का सूत्र प्रणाली से कथन होना चाहिए और इसके पश्चात् उसका विस्तार किया जाना चाहिए। प्राचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी अपने निबंधों में प्रायः इसी सूत्र -शैली का आश्रय लिया है। और इस प्रकार उन्होंने अन्य लेखकों के लिए भी इस रचना – विधि का समर्थन किया है, किंतु इस विषय पर विस्तृत विचार करने पर हम देखते है कि वर्तमान युग में निबंध इस प्राचीन सूत्र परंपरा के प्रभाव से मुक्त होकर अंग्रेजी के Essay शब्द का रूपान्तर हो गया है। इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम प्रसिद्ध फ्रांसीसी निबंध – लेखक मौण्टेन ने किया था। उन्होंने निबंध के विचारों को सहज रूप से प्रकाशित करने वाला  आधुनिक हिंदी निबंध माना था। अन्य पाश्चात्य साहित्यशास्त्रियों में अंग्रेजी के प्रसिद्ध निबंधकार जॉनसन ने निबंध की निम्नलिखित परिभाषा स्थिर की है—

“It is a loose sally of mind and a regular indigested piece, not a regular and orderly performance.”

अर्थात् “यह (निबंध) मस्तिष्क (के विचारों की) केवल एक शिथिल तरंग है तथा एक नियमबद्ध एवं व्यवस्थापूर्ण रचना न होकर यह एक व्यवस्थित अपच रचना होता है।”

इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि निबंध सीमाबद्ध न होकर निर्बंध अर्थात् स्वतंत्र होता है। इस स्थान पर यह ध्यान रखना चाहिए कि जहाँ प्राचीन भारतीय साहित्यशास्त्र में निबंध की सफलता के लिए उसमें विचारों के समावेश को आवश्यक माना गया है वहाँ आधुनिक साहित्यशास्त्र उसके निर्बंध रूप का समर्थन करता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इन दोनों विरोधी विचारधारात्रों में समन्वय स्थापित करने के उद्देश्य से निम्नलिखित तर्क उपस्थित किया है-

“निबंध निबंध इसलिए है कि उसमें किसी भी दार्शनिक विषय का तात्विक, व्यवस्थित और गंभीर विश्लेषण अपेक्षित नहीं होता। वह निबंध ( विचार – बंधन से युक्त) इसलिए है कि उसमें एक प्रकार की एकसूत्रता विद्यमान रहती है। यह एकसूत्रता विचार, दृष्टिकोण, भावना अथवा कल्पना में से किसी से भी सम्बद्ध हो सकती है। इस एकसूत्रता का वर्तमान होना नितांत आवश्यक है।”

निबंध के स्वरूप के उपर्युक्त अध्ययन के उपरांत कतिपय हिंदी लेखकों के निबंध विषयक विचारों का अध्ययन भी आवश्यक हो जाता है। इस दृष्टि से शुक्ल जी के विचारों की हम ऊपर चर्चा कर चुके हैं। आगे हम डॉ. श्यामसुंदरदास और बाबू गुलाबराय द्वारा उपस्थित की गई निबंध की परिभाषात्रों को उपस्थित करते है-

“निबंध उस लेख को कहना चाहिए जिसमें किसी गहन विषय पर विस्तारपूर्वक और पाण्डित्यपूर्ण विचार किया गया हो।”

    -डॉ. श्यामसुंदरदास

“निबंध उस गद्य रचना को कहते हैं जिसमें किसी एक सीमित आकार के भातर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छता सौष्ठव और सजीवता तथा आवश्यक संगीत और सम्बद्धता के साथ किया गया हो।”

– बाबू गुलाबराय

उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने पर हम कह सकते है कि ‘निबंध’ से हमारा तात्पर्य उस कलापूर्ण गद्य-कृति से है जिसमें किसी सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक तथा इसी प्रकार की किसी अन्य विचारधारा को व्यक्तिगत दृष्टिकोण से स्पष्ट रूप में प्रतिपादित किया गया हो और इस प्रकार जो अपने संक्षिप्त आकार में स्वयं संपूर्ण हो। वास्तव में पाठक निबंध का अध्ययन इस उद्देश्य से करता है कि उसे कुछ मौलिक विचारों की प्राप्ति हो। अतः विषय की मौलिक चर्चा से शून्य निबंध का निश्चय ही कोई महत्त्व नहीं है। निबंध लेखक की सफलता इस बात में है कि वह अपने निबंध में गंभीर विचारों का स्पर्श करके भी अपनी शैली को गंभीर न होने दे।

निबंध रचना के विषय

जिस प्रकार साहित्य के अन्य अंगों को किसी विशेष विषय तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता उसी प्रकार निबंध भी पूर्णतः निबंध है। निबंध रचना के लिए हम समाज, राजनीति साहित्य, धर्म, दर्शनशास्त्र और इसी प्रकार अन्य अनेक क्षेत्रों में से किसी भी क्षेत्र से विषय चुन सकते हैं। विषय चुनते समय उसकी गंभीरता अथवा उसमें निहित व्यंग्य आदि का निर्वाह करना लेखक की अपनी इच्छा पर निर्भर रहता है। तथापि किसी भी श्रेष्ठ निबंध की रचना के लिए यह आवश्यक है कि उसमें भावों अथवा विचारों की संगति, संगठन और एकसूत्रता पर पूरा ध्यान दिया जाए। इसी प्रकार जिन निवन्धों में अत्यधिक जटिल समस्याओं की चर्चा न की गई हो उनमें पाठक रोचकता और विशेष कुशलता के समावेश को भी देखना चाहता है।

निबंध-शैली

निबंध लेखन और निबंध का अध्ययन दोनों ही शुष्क कार्य हैं। अतः निबंध लेखक का कर्तव्य है कि वह अपनी शैला को स्वाभाविक और सरस बनाए रखे। उसकी भाषा को निबंधों के विषयों के बदलने वाली होना चाहिए अर्थात् उसे अपनी भाषा में परिवर्तन के साथ-साथ विशेष सजीवता लाने के लिए यथास्थान मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग करना चाहिए। वैसे निबंध की रचना करते समय उसमें निम्नलिखित चार शैलियों में से किसी भी शैली को ग्रहण किया जा सकता है-

(1) व्यास शैली-

इस शैली के अनुसार निबंध में विषय का सरल रीति से विस्तारपूर्वंक विवेचन किया जाता है। अतः इसमें दीर्घ वाक्यों और समासों के प्रयोग के स्थान पर लघु वाक्यों में मार्मिक भावों अथवा विचारों के आयोजन का प्रयत्न रहता है।

(2) समास शैली –

इस शैली में लिखे गए निबंधों में विषय का सरल, संक्षिप्त और सूत्र- बद्ध विवेचन उपस्थित किया जाता है। इसमें लेखक का समास-प्रयोग पर भी उचित ध्यान रहता है।

(3) विक्षेप शैली-

इस शैली से युक्त निबंधों में मानव-भावनाओं के परस्पर सम्बद्ध और परस्पर सम्बद्ध रूपों को इकट्ठा करने का प्रयास रहता है अर्थात् इस शैली के प्रयोग द्वारा लेखक भावों में एकता की स्थापना करता है।

(4) धारा शैली-

इस शैली के निबंधों में विषय को वेगपूर्ण आकर्षक अभिव्यक्ति प्रदान की जाती है और निबंध प्रवाह के खंडित होने का अवसर नहीं माने दिया जाता।

निबंध के प्रकार

विषय-भेद से निबंध को अनेक भेदों में बाँटा जा सकता है, किंतु मुख्य रूप से निबंध निम्नलिखित चार प्रकार के हो सकते है-

(1) वर्णनात्मक निबंध –

इस प्रकार के निबंधों में किमी विशेष परिस्थिति अथवा दृश्य का सरल और आकर्षक रीति से वर्णन किया जाता है। इनमें विषय-वर्णन के लिए व्यास- शैली का आधार लिया जाता है। इनकी साहित्यिक छवि की स्थिति इनकी सरलता में ही होती है।

(2) विवरणात्मक निबंध –

इस वर्ग के निबंधों में किसी यात्रा अथवा साहसपूर्ण कृत्य का विवरण उपस्थित किया जाता है। इनमें मनोरंजन का समावेश होना चाहिए। इनमें निबंध के विषय के प्रत्येक अंग का विवरण उपस्थित करने का प्रयास किया जाता है। इनकी रचना करते समय भी व्यास-शैली का उपयोग किया जाता है।

(3) विचारात्मक निबंध –

इस श्रेणी के निबंध गंभीर मनन और बौद्धिक विवेचन से युक्त होते हैं। विषय प्रतिपादन की दृष्टि से इनमें मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक, आलोचनात्मक आदि किसी भी प्रकार के विषय को ग्रहण किया जा सकता है। इनकी रचना विषय के अनुकूल व्यास अथवा समास – शैलियों में से किसी भी शैली में की जा सकती है। इन निबंधों के अध्ययन से पाठक को विशेष अध्ययन के लिए पर्याप्त सामग्री मिल सकती है और वह स्वयं भी पर्याप्त सीमा तक उसी प्रकार अथवा उससे कुछ भिन्न रीति से विचार करने लगता है।

(4) भावात्मक निबंध-

जो निबंध बौद्धिक जगत् की अपेक्षा हृदय – जगत् से विशेष रूप में सम्बद्ध होते है उन्हें ‘भावपूर्ण निबंध’ कहते हैं। इनमें लेखक अपने कथन को काव्यमय रूप प्रदान करने के लिए कवित्वपूर्ण वर्णन प्रणाली का आश्रय ग्रहण करता है। शैली प्रयोग की दृष्टि से इनमें विशेष और धारा नामक शैलियों में से किसी भी शैली को प्रयुक्त किया जा सकता है। इस प्रकार के निबंधों को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता

(क) रागात्मक निबंध – इस प्रकार के निबंधों में हृदय-पक्ष से सम्बद्ध किसी विषय का भावात्मक प्रणाली से मार्मिक कथन किया जाता है। इनमें गंभीरता और लेखक के व्यक्तित्व का प्रचुर मात्रा में समावेश रहता है। इनके अध्ययन से मन को विशेष उल्लास की प्राप्ति होती है।

आधुनिक हिंदी निबंध

(ख) हास्य-व्यंगात्मक निबंध – इस प्रकार के निबंधों में रागात्मक निबंधों की गंभीरता नहीं होती। इनमें सजीव हास्य और मौलिक व्यंग्य की प्रभावशाली सृष्टि रहती है। इनके अध्ययन से एक ओर तो प्रतिपादित विषय पर साधारणतः अच्छे विचारों की प्राप्ति होती है और दूसरी ओर पाठक के हृदय की शुष्कता तथा बोझिलता का अंत हो जाता है।

निबंध का माध्यम

साहित्य-रचना के लिए ‘गद्य’ तथा ‘पद्य’ नामक दो प्रणालियाँ प्रचलित हैं। साहित्य के विभिन्न अंग इनमें से ही किसी एक प्रणाली के द्वारा उपस्थित किए जाते हैं, किंतु कहीं-कहीं आवश्यकता होने पर इन दोनों को मिलाया भी जा सकता है। इस दृष्टि से निबंध रचना के माध्यम पर विचार करने पर हम देखते हैं कि निबंध उपस्थित करने के लिए साधारणतः गद्य का ही ग्राश्रय लिया जाता है, किंतु कुछ निबंधकारों ने समय-समय पर पद्यात्मक निबंधों की भी रचना की है। इस दृष्टि से अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि पोप का (Essay on Man) शीर्षक निबंध तथा हिंदी के प्रसिद्ध लेखक प्राचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का ‘हे कविते’ शीर्षक पद्यात्मक निवन्ध उल्लेखनीय है। इस प्रकार के निबंधों में सम्बद्ध विषय का पद्य में विचारपूर्ण चित्ररण मिलता है। इसी प्रकार निबंध की गद्य में रचना करने पर भी उसमें ग्रावश्यकता के अनुसार पद्य का समावेश किया जा सकता है।

निबंध की अन्य आवश्यकताएँ

निबंध रचना के लिए लेखक को उपर्युक्त सावधानियों के प्रतिरिक्त कुछ अन्य बातों का भी ध्यान रखना होता है। इस दृष्टि से निबंध में सर्वप्रथम लेखक को अपने दृष्टिकोण को अवश्य स्पष्ट करना चाहिए। इसी प्रकार उसमें विषय की गंभीरता के साथ-साथ लेखक की मानसिक प्रतिक्रिया के वर्णन का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। अन्यथा निबंध में आत्मीयता के गुरण का संचार नहीं हो पाता। यह आत्मीयता निबंध के लिए अत्यधिक आवश्यक है और लेखक को गंभीर से गंभीर विषय में भी इसके समावेश के लिए प्रयत्न करना चाहिए। यहाँ यह आधुनिक निवन्ध का मूल तत्त्व है, किंतु इसके समावेश के लिए निबंध की गंभीरता को किमी प्रकार की हानि

कविता का स्वरूप नहीं पहुँचाई जानी चाहिए। यह भी स्मरण रखना चाहिए कि जहाँ निबंध का उद्देश्य गंभीर विचार सामग्री प्रदान करना होता है वहाँ उसका एक उद्देश्य मनोरंजन की सृष्टि करना भी है। किसी भी श्रेष्ठ निबंध में इन सब बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है।

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