‘रहस्यवाद’ से हमारा तात्पर्य उस सिद्धांत से है जो ईश्वर के रहस्य को प्राप्त करने की विधि बताता है। साधारणतः यह स्वीकार किया गया है कि रहस्यवाद की तीन स्थितियाँ होती है। प्रथम स्थिति के अनुसार जब व्यक्ति संसार की विचित्रताओं को देखता है तब उसके मन में संसार की रचना करने वाली शक्ति के विषय में ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा जन्म लेती है। इसके पश्चात् वह गुरु की सहायता से ईश्वर के रहस्य को प्राप्त करने के लिए साधना करने लगता है। जब उसकी साधना पूरी हो जाती है तब उसे ईश्वर के हृदय में दर्शन प्राप्त हो जाते हैं। रहस्यवादी काव्य में इन तीनों ही स्थितियों का मार्मिक चित्रण किया जाता है।
हिंदी साहित्य में रहस्यवादी कविताओं का प्रारंभ नवीं शताब्दी में हुआ था। उस समय के सिद्ध तथा जैन मुनियों के साहित्य में रहस्यवादी तत्त्वों का व्यापक समावेश हुआ है। इस दृष्टि से गोरक्षण तथा तिलोपा आदि सिद्धों एवम् स्वयंभू तथा रामसिंह आदि जैन मुनियों के काव्य में रहस्यवाद के सिद्धांत प्रचुर मात्रा में प्राप्त होते है। सिद्ध कवियों ने रहस्यवाद के साथ-माथ हठयोग को भी मिलाकर उपस्थित किया है। इस प्रकार के साहित्य की रचना तेरहवीं शताब्दी के अंत तक होती रही। इसमें रहस्यवाद को गुढ़ रूप में उपस्थित किया गया है और उसे समझना प्रत्येक व्यक्ति के वश की बात नहीं है। भक्ति काल के रहस्यवादी काव्य पर इस साहित्य का पर्याप्त प्रभाव पड़ा है।
हिंदी में रहस्यवादी काव्य को सरल और स्पष्ट रूप में भक्ति काल में उपस्थित किया गया। रहस्यवाद साधना का विषय है। अतः इसका संबंध स्पष्ट ही भक्ति के सगुण पक्ष से न होकर उसके निर्गुण रूप से है। भक्ति काल में निर्गुण भक्ति ‘ज्ञानाश्रयी शाखा’ और ‘प्रेमाश्रयी शाखा’ नामक दो भेदों में विभाजित रही है। इन दोनों में ही रहस्यवाद का स्थान प्राप्त हुआ है. किंतु उसके स्वरूप में अंतर आ गया है। ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों ने साधनात्मक रहस्यवाद का चित्रण किया है और प्रेमाश्रयी शाखा के कवियों ने भावनात्मक रहस्यवाद को उपस्थित किया है। वैसे तो इन शाखाओं के सभी कवियों ने अपनी रचनाओं में रहस्यवाद को स्थान प्रदान किया है, किंतु सामान्य परिचय के लिए इनके प्रतिनिधि कवियों के काव्य का अध्ययन ही पर्याप्त होगा अतः आगे हम ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रतिनिधि कवि कबीर और प्रेमाश्रयी शाखा के प्रतिनिधि कवि जाएसी के रहस्यवादी काव्य का क्रमशः अध्ययन करेंगे।
(1) महात्मा कबीर –
महात्मा कवीर ने अपने काव्य में साधनात्मक रहस्यवाद को मुख्य स्थान दिया है, किंतु उनके छंदों में भावनात्मक रहस्यवाद को भी सुंदर स्थान प्राप्त हुप्रा है। हृदय के नेत्रों से ईश्वर के दर्शन प्राप्त हो जाने के बाद वह साधक के अनुभव की अभिव्यक्ति को अत्यंत कठिन मानते हैं। उस समय उन्होंने साधक की स्थिति को गूंगे की स्थिति के समान मानते हुए कहा है-
“अकथ कहानी प्रेम की, किछु कही न जाइ।
गूंगा केरी सरकरा, बैठे हो मुसकाइ॥”
महात्मा कबीर ने अपने रहस्यवादी काव्य में अद्वैतवाद और सूफीमत को मिलाकर उपस्थित किया है। अद्वैतवाद के अनुसार आत्मा और परमात्मा के मिलन में माया बाधा उपस्थित करती है। अतः माया नष्ट करना अत्यन्त आवश्यक है। सूफीमत के अनुसार ईश्वर के रहस्य को प्राप्त करने के लिए साधक को गुरु से सहायता लेनी चाहिए और ईश्वर के प्रति असीम प्रेम रखना चाहिए। महात्मा कबीर ने इन दोनों ही विचारधारात्रों का आश्रय लिया है। अद्वैतवाद के द्वारा उन्होंने साधनात्मक रहस्यवाद को उपस्थित किया है और सूफीमत की भावनाओं को लेकर भावनात्मक रहस्यवाद को स्पष्ट किया है।
(२) कविवर जायसी –
जायसी ने अपने काव्य में भावनात्मक रहस्यवाद को प्रमुख स्थान दिया है, तथापि उनके ‘पद्मावत’ नामक काव्य में कहीं-कहीं रहस्य साधना का भी उल्लेख मिलता है। उन्होंने प्रेमाश्रयी शाखा के सिद्धान्तों के अनुकूल लौकिक प्रेम के द्वारा अलौकिक प्रेम को प्राप्त करने की विधि का वर्णन किया है। इसी लिए उन्होंने ‘पद्मावत’ में राजा रत्नसेन और राजकुमारी पद्मावती के प्रेम तथा विवाह का वर्णन करते हुए रत्नसेन को साधक और पद्मावती को ईश्वर के रूप में उपस्थित किया है। उन्होंने परमात्मा के वियोग में आत्मा की वेदना का अत्यन्त मार्मिक शब्दों में वर्णन कियाI
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि हिंदी काव्य के भक्तिकाल में रहस्यवाद को एक निश्चित स्वरूप प्राप्त हो चुका था। इसके पश्चात् हिंदी साहित्य में रीति काल आता है, किन्तु इस युग में किसी भी कवि ने रहस्यवादी काव्य की रचना नहीं की। आधुनिक युग में भी छायावाद युग से पूर्व हिंदी में रहस्यवादी काव्य का प्रभाव रहा। छायावाद के कवियों ने प्रकृति में ईश्वर के दर्शन कर रहस्य- बाद के एक अंश को अपनी कविताओं में ग्रहण किया। कुछ छायावादी कवियों ने रहस्यवादी कविताओं की स्वतन्त्र रीति से भी रचना की है। इनमें श्री जयशंकर प्रसाद, श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, सुश्री महादेवी वर्मा और डॉक्टर रामकुमार वर्मा का स्थान सर्वप्रमुख है। इनके रहस्यवादी काव्य का पृथक्- पृथक् परिचय इस प्रकार है-
(1) श्री जयशंकर प्रसाद
प्रसादजी ने अपनी रहस्यवादी कविताओं में साधनात्मक अथवा भावनात्मकता में से किसी की ओर भी आग्रह नहीं दिखाया है। उन्होंने संसार में ईश्वर की शक्ति व्यापकता और मनुष्य की उसके रहस्य को प्राप्त करने की इच्छा का स्वतन्त्र चित्रण किया है। उनके रहस्यवादी सिद्धान्तों का समावेश उनकी कुछ मुक्तक कविताओं में हुआ है।
(2) श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘ –
‘निराला’ जी के दार्शनिक विचारों में रहस्यवाद का सुन्दर समावेश हुआ है। उनकी रहस्यवादी कविताओं में मधुरता और चिन्तन को मुख्य स्थान प्राप्त हुआ है अर्थात् उन्होंने ईश्वर के विषय में चिन्तन करते हुए मिलन की मधुरता की ओर भी संकेत किए हैं। उनके काव्य में रहस्यवाद की तीनों स्थितियों का आकर्षक चित्रण प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए उनका साधक के विरह का निम्नलिखित चित्रण देखिए-
प्राणधन को स्मरण करते।
नयन करते नयन झरते ॥
कितनी बार पुकारा,
खोल दो द्वार, बेचारा॥
(3) सुश्री महादेवी वर्मा-
महादेवीजी ने अपने काव्य में रहस्यवाद की प्रवृत्तियों के अनुसार ईश्वर- प्रेम के विविध अनुभवों को अनेक रूपों में उपस्थित किया है। आधुनिक युग में रहस्यवादी काव्य की रचना करने वाले कवियों में उनका सर्वश्रेष्ठ स्थान है। उन्होंने अपने रहस्यवाद में जायसी के ‘सर्ववाद’ नामक सिद्धान्त का सुन्दर समावेश किया है। महात्मा कबीर की भाँति आत्मा को पत्नी तथा परमात्मा को पति मानकर उन्होंने अपने गीतों में रहस्यवाद की भावात्मकता को आकर्षक रूप प्रदान किया है। उन्होंने अपने काव्य में रहस्यवाद की जिज्ञासा, साधना और मिलन की तीनों स्थितियों को मौलिक रूप में व्यक्त किया है उनके रहस्यवादी गीतों में कहीं-कही अनुभव की कमी के कारण अस्पष्टता भी आ गई है, किन्तु अधिकतर उन्होंने उनमें अपने हृदय की वेदना को सजीव रूप में ही उपस्थित किया है-
छिपा है जननी का अस्तित्व,
रुदन में शिशु के अर्थ-विहीन।
मिलेगा चित्रकार का ज्ञान,
चित्र की ही जड़ता में लीन॥
दृगों में छिपा अश्रु का हार,
सुभग है तेरा ही उपहार !
(4) डा० रामकुमार वर्मा –
रामकुमारजी के रहस्यवादी काव्य में भावना और साधना का मिला हुआ रूप प्राप्त होता है। उन्होंने अपने काव्य में रहस्यवाद को प्रमुख स्थान दिया और उसके स्वरूप को भी सुन्दर रीति से स्पष्ट किया है। इस दृष्टि से उनके ‘आधुनिक कवि’ शीर्षक कविता संग्रह की भूमिका और उसकी अधिकांश कविताएँ पढ़ने योग्य है।
उपर्युक्त कवियों के अतिरिक्त पंडित माखनलाल चतुर्वेदी, पंडित बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ आदि कुछ अन्य कवियों की कविताओं में भी रहस्यवाद को स्थान प्राप्त हुआ है। इस समय कविता के विषय अनेक रूपों में बँट गए हैं। अतः रहस्यवादी काव्य की रचना की ओर कवियों का अधिक ध्यान नहीं रहा है। फिर भी कभी-कभी हमें श्रेष्ठ रहस्यवादी कविताओं के दर्शन हो जाते हैं।