Sahityik Nibandh

भक्ति काल को राम-भक्ति-धारा

rambhaskti dhara par hindi nibandh

सगुण भक्ति से हमारा तात्पर्य ईश्वर के साकार रूप की उपासना से है। इस दृष्टि से भक्ति काल में श्री राम और श्रीकृष्ण की भक्ति की गई है। भक्ति के इन दोनों पक्षों को हिंदी साहित्य में ‘राम-भक्ति शाखा’ तथा ‘कृष्ण- भक्ति – शाखा’ के रूप में विभाजित किया गया है। भारतवर्ष में भगवान् राम की उपासना प्राचीन काल से प्रचलित है। वैष्णव भक्ति के अंतर्गत राम-भक्ति को कृष्ण भक्ति से अधिक प्राचीन कहा गया है। उत्तरी भारत में श्रीराम की भक्ति का प्रचार मुख्य रूप से स्वामी रामानंद ने किया था। वह रामानुजाचार्य के भक्ति-सिद्धातों से प्रभावित थे। उन्होंने वैष्णव धर्म के तत्कालीन स्वरूप में सुधार करते हुए एक ओर तो लोक-मर्यादा के अनुकूल सदाचार से युक्त राम- भक्ति पर बल दिया, दूसरी ओर भक्ति के क्षेत्र से जाति-भेद को दूर किया और तीसरी ओर भक्ति के क्षेत्र में संस्कृत की अपेक्षा जनता की भाषा को अपनाया।

स्वामी रामानंद सगुण भक्ति की भाँति निर्गुण भक्ति का भी प्रचार किया करते थे। ज्ञानाश्रयी शाखा के महात्मा कबीर उन्हें अपना गुरु मानते थे। उन्होंने स्वामीजी के उपदेशों से प्रेरणा लेकर सगुण राम की भक्ति को निर्गुण राम की उपासना में बदल दिया, किंतु कुछ समय पश्चात् यह प्रणाली समाप्त हो गई। आगे चल कर रामानंदजी की शिष्य- परंपरा में गोस्वामी तुलसीदास का आविर्भाव हुआ। उन्होंने अपने ‘रामचरितमानस’ नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना द्वारा राम भक्ति का जनता में सबसे अधिक प्रचार किया। स्वामी रामानंद के समकालीन भक्तों में नामदेव और त्रिलोचन ने महाराष्ट्र में तथा सदन और वैनी ने उत्तर भारत में श्री राम की भक्ति का व्यापक प्रचार किया।

हिंदी में राम-भक्ति काव्य की रचना करने वाले व्यक्तियों में सर्वप्रथम भूपति का नाम आता है। उन्होंने बारहवीं शताब्दी के अंतिम भाग में दोहों और चौपाइयों में राम कथा का वर्णन किया था। उनके पश्चात् पंद्रहवीं शताब्दी में कवि मुनिलाल ने काव्य के विभिन्न अंगों के अनुसार राम कथा से संबंधित एक काव्य की रचना की थी। भक्ति काल की राम-भक्ति शाखा का विकास इन दोनों कवियों के पश्चात् हुआ था। अतः आगे हम इस शाखा के मुख्य कवियों का परिचय देंगे।

(1) गोस्वामी तुलसीदास –

तुलसीदासजी ने अपने काव्य की रचना सोलहवीं शताब्दी में की थी। उन्होंने अपने काव्य की रचना ब्रजभाषा और अवधी में की थी। उनकी रचनाओं में ‘रामचरितमानस’, ‘विनय पत्रिका’, ‘गीतावली’ और ‘कवितावली’ मुख्य हैं। उन्होंने अपनी कृतियों द्वारा श्री राम की भक्ति का व्यापक प्रचार किया है। लोक-संग्रह की भावना से युक्त होने के कारण उनके काव्य में भक्ति के अतिरिक्त नीति की भी अनेक सुंदर उक्तियाँ प्राप्त होती हैं। उनकी रचनाओं में ‘रामचरितमानस’ की रचना प्रबंध-काव्य के रूप में हुई है और शेष कृतियाँ मुक्तक काव्य के रूप में प्राप्त होती हैं।

मुसलमानों का शासन होने के कारण गोस्वामी तुलसीदास के युग में हिंदू धर्म की व्यवस्था बिगड़ गई थी। उन्होंने अपनी रचनाओं में राम-भक्ति का प्रचार कर धार्मिक व्यवस्था की फिर से सफल स्थापना की। उन्होंने समाज की भलाई के लिए अनेक आदर्शो को सरल रूप में उपस्थित किया और जनता द्वारा इन आदर्शो का अब तक पहले की भाँति सम्मान किया जाता है। उनका ‘रामचरितमानस’ भावना और कला, दोनों ही दृष्टियों से एक उत्तम काव्य बन पड़ा है। उनके काव्य से इस शाखा के सभी कवियों ने प्रेरणा ग्रहण की है। सत्य तो यह है कि राम भक्ति का गान करने वाले अब तक के सभी कवियों में उनका प्रतिनिधि स्थान है और कोई भी अन्य कवि उनके काव्य की समता नहीं कर सकता है।

(2) स्वामी अग्रदास

स्वामी अग्रदास का ‘रामध्यान मंजरी’ नामक काव्य प्राप्त होता है। वह श्री कृष्णदास पयहारी के शिष्य थे। उनके काव्य में भक्ति भावना का तो उचित समावेश हुआ है, किंतु काव्य कला की दृष्टि से उन्हें अधिक सफलता नहीं मिली है !

(3) नाभादास

नाभादासजी स्वामी अग्रदास के शिष्य थे। उन्होंने अपने राम काव्य की रचना स्वतंत्र पदों के रूप में की है। वह ब्रजभाषा के अधिकारी विद्वान् थे, किंतु उनका राम काव्य अवधी भाषा में प्राप्त होता है। उनकी रचनाओं में ‘भक्तमाल’ विशेष प्रसिद्ध है। इसमें उस समय के मुख्य भक्तों के जीवन चरित्र दिए गए हैं।

(4) प्राणचंद चौहान –

चौहानजी की ‘रामायरण महानाटक’ नामक कृति प्राप्त होती है। इस रचना में काव्य-सौंदर्य का स्पष्ट अभाव रहा है, किंतु राम काव्य में नाटकों की शैली का समावेश करने के कारण इसका अपना पृथक् महत्त्व है।

(5) हृदयराम –

कविवर हृदयराम की ‘हनुमन्नाटक’ शीर्षक कृति प्राप्त होती है। इसमें भी नाटकीय शैली का आश्रय लिया गया है। इसकी रचना संस्कृत के हनुमन्नाटक शीर्षक ग्रंथ के आधार पर सवैया छंद में हुई है। प्राणचंद चौहान की रचना की तुलना में इस कृति को अधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई है। इसका कारण इसमें प्राप्त होने वाली काव्य-सौंदर्य की अधिकता ही है।

इन प्रमुख कवियों के अतिरिक्त बाबा रामचरनदास, रघुनाथदास एवं रीवा नरेश महाराज रघुराजसिंह ने राम-भक्ति शाखा के विकास में योग दिया है। इस स्थान पर यह उल्लेखनीय है कि कुछ कवियों ने हनुमान  भक्ति को राम-भक्ति का एक अंग मानते हुए भी काव्य-रचना की है। इस दृष्टि से गोस्वामी तुलसीदास की ‘हनुमान बाहुक’ तथा कवि रायमल पाण्डे की ‘हनुमच्चरित’ उल्लेखनीय रचनाएँ हैं।

विश्लेषण

भक्ति काल के राम भक्ति काव्य का अध्ययन करने पर हम देखते हैं कि उसमें काव्य-रचना की विविध शैलियाँ प्राप्त होती है। जहाँ उस युग के कृष्ण काव्य की रचना केवल मुक्तक पदों के ही रूप में हुई है वहाँ रामकाव्य को प्रबंध-काव्य शैली के अनुसार भी उपस्थित किया गया है। इसी प्रकार उसमें गीति काव्य और नाटकीयता की शैलियों का भी निर्वाह हुआ है। भाव-वर्णन की दृष्टि से इस धारा के काव्य में राम भक्ति का पूर्ण विकास हुआ है। भक्ति की पूर्णता के लिए उसमें श्रद्धा और प्रेम, दोनों की स्थिति होनी चाहिए। राम भक्ति काव्य में हमें ये दोनों ही विशेषताएँ प्राप्त होती हैं। जीवन में सदाचार और मर्यादा के महत्त्व को इस काव्य में पूर्ण रूप से स्पष्ट किया गया है। इतना होने पर भी हिंदी में रामकाव्य का उतना विकास न हो सका, जितना कृष्ण काव्य का हुआ। इसके निम्नलिखित कारण है –

(1) भगवान् राम का चरित्र मर्यादा, गंभीरता आदि दिव्य गुणों से युक्त है। उसमें कृष्ण चरित्र में प्राप्त होने वाली मधुरता एवं कोमलता के लिए उतना स्थान नहीं है। इस प्रकार उनके हृदय में लोक-संग्रह एवं लोक- रक्षा के भाव तो अवश्य है, किंतु लोक रंजक तत्त्वों का वहाँ पर्याप्त अभाव है।

(2) गोस्वामी तुलसीदास ने राम-काव्य की अत्यंत प्रौढ़ रूप में रचना की है। उनके काव्य का अध्ययन करने पर उस युग के अन्य कवियों को इस विषय पर लिखने का अधिक साहस ही न हुआ। इसके अतिरिक्त जनता को भी तुलसी के काव्य के समक्ष किसी अन्य कवि का काव्य आकर्षित न कर सका।

(3) कृष्ण – काव्य का लोकप्रिय होना भी राम- काव्य के विकास में बाधक सिद्ध हुआ, क्योंकि अधिकांश कवि उसी की रचना की ओर उन्मुख हो गए।

(4) ‘रामचरितमानस’ की रचना अवधी भाषा में हुई है। अतः राम- काव्य की सफल रचना के लिए अवधी भाषा को सर्वश्रेष्ठ माना गया। इसी कारण ब्रजभाषा में अवधी की तुलना में श्रेष्ठ राम-काव्य की रचना न की जा सकी। अतः जब अवधी साहित्य की भाषा न रही तब राम काव्य की रचना पर भी प्रतिबंध लग गया।

Leave a Comment

You cannot copy content of this page