प्रेमचंद – लेखक परिचय
हिंदी के महान कथाकार प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को बनारस के लमही गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम धनपत राय था। प्रेमचंद का बचपन अभावों में बीता और शिक्षा बी. ए. तक ही हो पाई। उन्होंने शिक्षा विभाग में नौकरी की ; परंतु असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और वे लेखन कार्य के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गए। 8 अक्टूबर, 1936 को इस महान साहित्यकार का देहांत हो गया।
प्रेमचंद की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं। सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान उनके प्रमुख उपन्यास हैं। उन्होंने हंस, जागरण, माधुरी आदि पत्रिकाओं का संपादन भी किया। कथा साहित्य के अतिरिक्त प्रेमचंद ने निबंध एवं अन्य प्रकार का गद्य लेखन भी प्रचुर मात्रा में किया। आप साहित्य को सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम मानते थे। उन्होंने जिस गाँव और शहर के परिवेश को देखा और जिया उसकी अभिव्यक्ति उन्होंने कथा – साहित्य में की। किसानों और मज़दूरों की दयनीय स्थिति, दलितों का शोषण, समाज में स्त्री की दुर्दशा और स्वाधीनता आंदोलन आदि उनकी रचनाओं के मूल विषय हैं।
प्रेमचंद का साहित्य मूलतः समाज-सुधार और राष्ट्रीय भावना से प्रेरित है। वह अपने समय की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों का पूरा प्रतिनिधित्व करता है।
प्रेमचंद की भाषा सरल, सहज, मुहावरेदार और पात्रानुकूल है।
परीक्षा – पाठ का परिचय
‘परीक्षा’ कहानी प्रेमचंद की श्रेष्ठ कहानियों में से एक है। इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने अफसर या अधिकारी के चयन में विद्वता के अतिरिक्त दया, परोपकार की भावना, कर्त्तव्य परायणता जैसे सद्गुणों पर अधिक बल दिया है। सच्चे अर्थों में मनुष्य केवल विद्या और ऊँची उपाधियों से महान नहीं होता; बल्कि उसके हृदय में संचित प्रेम-भावना ही उसे महान बनाती है। प्रेमचंद की यह बहुचर्चित कहानी इसी विचार धारा से संपुष्ट है। कहानी में दिखाया गया है कि सुजानसिंह ने रियासत के दीवान पद के लिए उम्मीदवारों की परीक्षा किस प्रकार ली।
परीक्षा
जब रियासत देवगढ़ के दीवान सरदार सुजानसिंह बूढ़े हुए, तो उन्हें परमात्मा की याद आई। जाकर महाराज से उन्होंने विनय की, “दीनबंधु! दास ने श्रीमान की सेवा चालीस साल तक की। अब कुछ दिन परमात्मा की भी सेवा करने की आज्ञा चाहता हैं। दूसरे, अब अवस्था भी ढल गई। राजकाज सँभालने की शक्ति नहीं रह गई। कहीं भूल-चूक हो जाए, तो बुढ़ापे में दाग लगे, सारी जिंदगी की नेकनामी मिट्टी में मिल जाए।”
राजा – साहब अपने अनुभवशील और नीति- कुशल दीवान का बड़ा आदर करते थे। उन्होंने बहुत समझाया, लेकिन जब दीवान साहब ने न माना तो हारकर उन्होंने प्रार्थना स्वीकर कर ली। पर, शर्त यह लगा दी कि रियासत के लिए नया दीवान उन्हीं को खोजना पड़ेगा।
दूसरे दिन देश के प्रसिद्ध पत्रों में यह विज्ञापन निकला – “देवगढ़ के लिए एक सुयोग्य दीवान की आवश्यकता है। जो सज्जन अपने को इस काम के योग्य समझें, वे वर्तमान दीवान सरदार सुजानसिंह की सेवा में उपस्थित हों। यह जरूरी नहीं कि वे ग्रेजुएट हों; मगर उन्हें पुष्ट होना आवश्यक है। एक महीने तक उम्मीदवारों के रहन-सहन, आचार-विचार की देखभाल की जाएगी। जो महाशय इस परीक्षा में पूरे उतरेंगे वे इस उच्च पद पर सुशोभित होंगे।”
इस विज्ञापन ने सारे मुल्क में हलचल मचा दी। ऊँचा पद और किसी प्रकार की कैद नहीं। केवल नसीब का खेल है। सैकड़ों आदमी अपना-अपना भाग्य परखने के लिए चल खड़े हुए। देवगढ़ में नए- नए और रंग-बिरंगे मनुष्य दिखाई देने लगे। कोई पंजाब से चला आता, तो कोई मद्रास से। कोई नए फैशन का प्रेमी था, कोई पुरानी सादगी पर मिटता हुआ था। पंडितों और मौलवियों को भी अपने- अपने भाग्य की परीक्षा करने का अवसर मिला।
सरदार सुजानसिंह ने इन महानुभावों के आदर-सत्कार का बड़ा अच्छा प्रबंध कर दिया था। प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को अपनी बुद्धि के अनुसार अच्छे रूप में दिखाने की कोशिश करता था। मिस्टर ‘अ’ नौ बजे दिन तक सोया करते थे; आजकल वे बगीचे में टहलते उषा के दर्शन करते थे। मिस्टर ‘ब’ को हुक्का पीने की लत थी, परंतु आजकल बहुत रात गए, किवाड़ बंद करके अंधेरे में सिगरेट पीते थे। मिस्टर ‘स, ‘द’ और ‘ज’ से उनके घरों पर नौकरों की नाक में दम था; लेकिन, ये सज्जन आजकल ‘आप’ और ‘जनाब’ के बगैर नौकर से बातचीत नहीं करते थे। महाशय ‘क’ नास्तिक थे; मगर, आजकल उनकी धर्म-निष्ठा देखकर मंदिर के पुजारी को पदच्युत हो जाने की शंका लगी रहती! मिस्टर ‘ल’ को किताबों से घृणा थी; परंतु आजकल वे बड़े-बड़े धर्म-ग्रंथ खोले, पढ़ने में डूबे रहते थे। जिससे बातचीत कीजिए, वह नम्रता और सदाचार का देवता मालूम होता था। लोग समझते थे कि एक महीने की झंझट है; किसी तरह काट लें। कहीं कार्य सिद्ध हो गया, तो कौन पूछता है?
लेकिन, मनुष्य का वह बूढ़ा जौहरी आड़ में बैठा हुआ देख रहा था कि इन बगुलों में हंस कहाँ छिपा है। एक दिन नए फैशनवालों को सूझी कि आपस में हॉकी का खेल हो जाए। यह प्रस्ताव हॉकी के मँजे खिलाड़ियों ने पेश किया। यह भी तो आखिर विद्या है। इसे क्यों छिपाकर रखे? संभव है, कुछ हाथों की सफाई ही काम कर जाएँ।
चलिए, तय हो गया। कोर्ट बन गए! खेल शुरू हो गया और गेंद किसी दफ्तर के ‘अप्रेंटिस’ की तरह ठोकरें खाने लगी। रियासत देवगढ़ में यह खेल बिलकुल निराला था। खेल बड़े उत्साह से जारी था। धावे के लोग जब गेंद लेकर तेज़ी से उठते तो ऐसा जान पड़ता था कि कोई लहर बढ़ती चली जाती है। लेकिन, दूसरी ओर खिलाड़ी इस बढ़ती हुई लहर को इस तरह रोक लेते थे मानो लोहे की दीवार हो।
संध्या तक यही धूमधाम रही। लोग पसीने से तर हो गए। खून की गरमी आँख और चेहरे से झलक रही थी। हाँफते – हाँफते बेदम हो गए। लेकिन, हार-जीत का निर्णय न हो सका। अँधेरा हो गया था। इस मैदान से ज़रा दूर हटकर एक नाला था। उसपर कोई पुल न था। पथिकों को नाले में से चलकर आना पड़ता था। खेल अभी बंद हुआ था और खिलाड़ी लोग बैठे दम ले रहे थे कि एक किसान अनाज से भरी हुई गाड़ी लिए उस नाले में आया; लेकिन, कुछ तो नाले में कीचड़ था और कुछ चढ़ाई इतनी ऊँची थी कि गाड़ी ऊपर न चढ़ सकती थी। वह कभी बैलों को ललकारता, कभी पहियों को हाथों से ढकेलता। लेकिन, बोझ अधिक था गाड़ी फिर खिसककर नीचे पहुँच जाती। बेचारा इधर-उधर निराश होकर ताकता; मगर, वहाँ कोई सहायक नज़र न आता था। गाड़ी को अकेले छोड़कर वह कहीं जा भी नहीं सकता था। विपत्ति में फँसा हुआ था।
इसी बीच में खिलाड़ी हाथों में डंडे लिए झूमते-झामते उधर से निकले। किसान ने उनकी तरफ सहमी हुई आँखों से देखा; परंतु किसी से मदद माँगने का साहस न हुआ। खिलाड़ियों ने भी उसको देखा; मगर बंद आँखों से। उनमें सहानुभूति का नाम न था। लेकिन, उसी समूह में एक ऐसा मनुष्य भी था, जिसके हृदय में दया थी और साहस था। आज हॉकी खेलते हुए, उसके पैरों में चोट लग गई थी। लँगड़ाता हुआ वह धीरे-धीरे चला आता था। अकस्मात उसकी निगाह गाड़ी पर पड़ी। वह ठिठक गया। किसान को देखते ही सब बात ज्ञात हो गई। हॉकी स्टिक किनारे पर रख दी, कोट उतार डाला और किसान के पास आकर बोला, “मैं तुम्हारी गाड़ी निकाल दूँ?”
किसान ने देखा कि एक गठे हुए बदन का लंबा आदमी सामने खड़ा है। डरकर बोला- “हुजूर; मैं आपसे कैसे कहूँ!
युवक ने कहा- “मालूम होता है, तुम यहाँ बड़ी देर से फँसे हुए हो। अच्छा! तुम गाड़ी पर जाकर बैलों को साधों; मैं पहियों को ढकेलता हूँ। अभी गाड़ी ऊपर जाती है।”
किसान गाड़ी पर आकर बैठा। युवक ने पहियों को ज़ोर लगाकर खिसकाया। कीचड़ बहुत ज्यादा था। वह घुटनों तक ज़मीन में गड़ गया, लेकिन उसने हिम्मत न हारी।
उसने फिर ज़ोर लगाया। उधर किसान ने बैलों को ललकारा। बैलों को सहारा मिला। उनकी हिम्मत बँध गई। उन्होंने कंधे झुकाकर एक बार ज़ोर लगाया। बस! गाड़ी नाले की ऊपर थी।
किसान युवक के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और बोला- “महाराज! आपने आज मुझे उबार लिया, नहीं तो सारी रात यहीं बैठना पड़ता।”
युवक ने हँसकर कहा – “आप मुझे कुछ इनाम देंगे?”
किसान ने गंभीर भाव से कहा- “नारायण चाहेंगे तो दीवानी आपको ही मिलेगी।”युवक ने किसान की तरफ गौर से देखा। उसके मन में एक संदेह हुआ। क्या ये सुजानसिंह तो नहीं? आवाज मिलती-जुलती है। चेहरा-मोहरा भी वही है। किसान ने भी उसकी ओर तीव्र दृष्टि से देखा। शायद वह उसके दिल के संदेह को भाँप गया। मुस्कराकर बोला – “गहरे पानी में पैठने से मोती मिलता है।”
निदान महीना पूरा हुआ। चुनाव का दिन आ पहुँचा। उम्मीदवार लोग प्रातः काल से ही अपनी किस्मत का फैसला सुनने के लिए उत्सुक थे। दिन काटना पहाड़ हो गया। प्रत्येक के चेहरे पर आशा और निराशा के रंग आते थे। नहीं मालूम आज किसके नसीब जागेंगे; न जाने किस पर लक्ष्मी की कृपा-दृष्टि होगी। संध्या – समय राजा साहब का दरबार सजाया गया। शहर के रईस और धनाढ्य लोग, राजा के कर्मचारी और दरबारी और दीवानी के उम्मदीवारों के समूह, सब रंग- बिरंगी सज-धज बनाए आ विराजे! उम्मीदवारों के कलेजे धड़क रहे थे।
तब सरदार सुजानसिंह ने खड़े होकर कहा – “मेरे दीवानी के उम्मीदवार महाशयो! मैंने आप लोगों को जो कष्ट दिया है. उसके लिए क्षमा कीजिए। मुझे इस पद के लिए ऐसे पुरुष की आवश्यकता थी, जिसके हृदय में दया हो और साथ ही साथ आत्मबल भी। हृदय वही है, जो उदार हो; आत्मबल वही है जो आपत्ति का वीरता के साथ सामना करे; और इस रियासत के सौभाग्य से हमको ऐसा पुरुष मिल गया। ऐसे गुणवाले संसार में कम होते हैं और जो हैं, वे कीर्ति और मान के शिखर पर बैठे हुए हैं। उन तक हमारी पहुँच ही नहीं। मैं रियासत को पंडित जानकीनाथ- सा दीवान पाने पर बधाई देता हूँ।”
रियासत के कर्मचारी और रईसों ने पं. जानकीनाथ की तरफ देखा और उम्मीदवारों के दल की आँखें उधर उठीं; मगर,उन आँखों में सत्कार था और इन आँखों में ईर्ष्या।
सरदार साहब ने फिर फरमाया “आप लोगों को यह स्वीकार करने में कोई आपत्ति न होगी कि जो पुरुष स्वयं जख्मी होने पर एक गरीब किसान की भरी हुई गाड़ी को दलदल से निकालकर नाले के ऊपर चढ़ाए, उसके हृदय में साहस, आत्मबल और उदारता का निवास है। ऐसा आदमी गरीबों को कभी न सताएगा। उसका संकल्प दृढ़ है जो उसके चित्त को स्थिर रखेगा। वह चाहे धोखा खा जाए; परंतु दया और धर्म के मार्ग से कभी न हटेगा।”
क्रम | शब्द | हिंदी अर्थ | English Meaning |
1 | दीवान | राजा का मुख्य मंत्री | Prime Minister / Chief Minister |
2 | विनय | नम्र प्रार्थना | Humble request |
3 | नेकनामी | अच्छा नाम, प्रतिष्ठा | Good reputation |
4 | नीति-कुशल | नीतियों में दक्ष, समझदार | Wise in policy, diplomatic |
5 | अनुभवशील | अनुभव वाला, अनुभवी | Experienced |
6 | सुयोग्य | योग्य, उपयुक्त | Suitable, capable |
7 | रहन-सहन | जीवन-शैली, रहन का ढंग | Lifestyle |
8 | आचार-विचार | आचरण और सोच | Conduct and thoughts |
9 | झंझट | परेशानी, उलझन | Hassle, trouble |
10 | हंस | श्रेष्ठ व्यक्ति (यहाँ प्रतीक रूप में) | Swan (symbol of wise/good person) |
11 | बगुला | ढोंगी, पाखंडी | Heron (symbol of hypocrite) |
12 | धावा | आक्रमण, हमला | Attack, strike |
13 | मँजा हुआ | प्रशिक्षित, निपुण | Skilled, trained |
14 | उत्साह | जोश, उमंग | Enthusiasm |
15 | हाँफना | थककर तेज़ साँस लेना | To pant, to gasp |
16 | विपत्ति | संकट, परेशानी | Trouble, adversity |
17 | सहानुभूति | दुख में साथ देना | Sympathy |
18 | गठा हुआ | मज़बूत, बलिष्ठ शरीर | Sturdy, strong built |
19 | ललकारना | जोश से पुकारना | To urge, to shout encouragingly |
20 | घुटनों तक गड़ना | कीचड़ में फँस जाना | To sink up to knees |
21 | हिम्मत | साहस, वीरता | Courage |
22 | इनाम | पुरस्कार, पुरस्कार की वस्तु | Reward, prize |
23 | गहरे पानी में पैठना | कठिनाई से मूल्यवान चीज़ पाना | Dive deep for pearls (metaphor) |
24 | उम्मदीवार | पद के लिए आवेदन करनेवाला व्यक्ति | Candidate |
25 | संकल्प | निश्चय, दृढ़ इच्छा | Resolution, firm will |
26 | कीर्ति | यश, प्रसिद्धि | Fame, glory |
27 | बधाई | शुभकामना, अभिनंदन | Congratulations |
28 | सत्कार | आदरपूर्वक स्वागत | Respectful welcome |
29 | ईर्ष्या | जलन, द्वेष | Jealousy, envy |
30 | पदच्युत | पद से हटाया गया व्यक्ति | Dismissed from position |
31 | दलदल | कीचड़, गहरे संकट | Swamp, mire |
32 | ठिठक जाना | रुक जाना, झिझक जाना | To stop abruptly, hesitate |
33 | निवास | वास, रहन | Residence, dwelling |
34 | दृष्टि | नजर, देखना | Vision, sight |
35 | अपार | बहुत अधिक, अनंत | Immense, infinite |
36 | दुर्लभ | मुश्किल से मिलनेवाला | Rare, hard to find |
शब्दार्थ एवं टिप्पणी
रियासत – राज्य, प्रांत
प्रबंध – व्यवस्था, इंतजाम
नास्तिक – ईश्वर पर विश्वास न रखने वाला
पदच्युत – बर्खास्त
घृणा – नफरत
अवस्था – दशा, उम्र
निर्णय – फैसला
पहिया – गाड़ी का चक्का
हिम्मत न हारना – साहस न छोड़ना
उम्मीदवार – प्रार्थी
नसीब – भाग्य, किस्मत
कलेजा धड़कना – बेचैन होना, व्याकुल होना
निदान – समाधान
धनाढ्य – अमीर
संकल्प – निश्चय, इरादा
परीक्षा – पाठ का सार
जब देवगढ़ रियासत के वृद्ध दीवान सरदार सुजानसिंह सेवा से निवृत्त होना चाहते हैं, तो राजा उनसे नया दीवान चुनने का अनुरोध करते हैं। इसके लिए देशभर में विज्ञापन निकाला जाता है कि योग्य व्यक्ति दीवान पद के लिए आवेदन करें, परंतु शर्त यह होती है कि उनकी परीक्षा उनके आचरण, रहन-सहन और व्यवहार से ली जाएगी।
बहुत से लोग देवगढ़ पहुँचते हैं और दिखावे के लिए अच्छा व्यवहार करने लगते हैं। सब अपनी योग्यता दिखाने का प्रयास करते हैं, लेकिन यह केवल एक बाहरी दिखावा होता है। इसी दौरान एक दिन कुछ उम्मीदवार हॉकी खेल रहे होते हैं। खेल के बाद एक किसान की गाड़ी कीचड़ में फँसी होती है और वह मदद के लिए असहाय होता है। सभी उम्मीदवार उसे नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन एक युवक जिसकी टाँग में चोट लगी होती है, किसान की सहायता करता है और गाड़ी को बाहर निकालता है।
महीने भर की परीक्षा के बाद जब चयन का दिन आता है, तो सरदार सुजानसिंह सबके सामने घोषणा करते हैं कि नया दीवान वही युवक होगा—पंडित जानकीनाथ, जिसने दया और साहस दोनों का परिचय दिया। वे बताते हैं कि एक अच्छा दीवान वही होता है जिसमें उदारता, आत्मबल और संवेदनशीलता हो। इस प्रकार सच्ची योग्यता आचरण और सेवा-भाव में होती है, न कि केवल शब्दों या दिखावे में।
बोध एवं विचार
- पूर्ण वाक्य में दो :-
(क) ‘परीक्षा’ कहानी में किस पद के लिए परीक्षा ली गई है?
उत्तर – ‘परीक्षा’ कहानी में दीवान के पद के लिए परीक्षा ली गई है।
(ख) दीवान साहब के समक्ष क्या शर्त रखी गई?
उत्तर – दीवान साहब के समक्ष यह शर्त रखी गई कि नए दीवान का चयन उन्हें स्वयं करना होगा।
(ग) ‘परीक्षा’ कहानी में उम्मीदवार कौन-सा सामूहिक खेल खेलते हैं?
उत्तर – ‘परीक्षा’ कहानी में उम्मीदवार हॉकी का सामूहिक खेल खेलते हैं।
(घ) दीवान के पद के लिए किसका चयन किया गया?
उत्तर – दीवान के पद के लिए पंडित जानकीनाथ का चयन किया गया।
- संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में) :-
(क) दीवान सुजानसिंह ने महाराज से क्या प्रार्थना की? क्यों?
उत्तर – दीवान सुजानसिंह ने महाराज से सेवा से निवृत्त होने की प्रार्थना की क्योंकि वे वृद्ध हो चुके थे और शेष जीवन ईश्वर-भजन में बिताना चाहते थे।
(ख) उम्मीदवार विभिन्न प्रकार के अभिनय कैसे और क्यों कर रहे थे?
उत्तर – उम्मीदवार सज्जनता, विद्वता, सादगी और धर्मनिष्ठा का अभिनय इसलिए कर रहे थे ताकि वे दीवान पद के योग्य प्रतीत हों और चयनित किए जा सकें।
(ग) एक उम्मीदवार ने गाड़ीवाले की मदद कैसे की?
उत्तर – घायल अवस्था में भी वह युवक कीचड़ में उतर गया, पहियों को धक्का दिया और किसान के बैलों की मदद से गाड़ी को दलदल से निकालकर ऊपर चढ़ा दिया।
(घ) किसान ने अपने मददगार युवक से क्या कहा? उसका क्या अर्थ था?
उत्तर – किसान ने कहा, “नारायण चाहेंगे तो दीवानी आपको ही मिलेगी।” इसका अर्थ था कि युवक की सेवा-भावना और साहस ही उसे दीवान बना सकता है।
(ङ) सुजानसिंह ने उम्मीदवारों की परीक्षा कैसे ली?
उत्तर – सुजानसिंह ने उम्मीदवारों के एक महीने तक रहन-सहन, व्यवहार और स्वभाव को परखा, फिर एक व्यावहारिक स्थिति में उनकी करुणा और साहस की परीक्षा ली।
(च) पं० जानकीनाथ में कौन-कौन से गुण थे?
उत्तर – पं. जानकीनाथ में सेवा-भाव, दया, आत्मबल, साहस, सहानुभूति और सच्चरित्रता जैसे उत्तम गुण थे, जिन्होंने उन्हें दीवान पद के योग्य बनाया।
(छ) सुजानसिंह के मतानुसार दीवान में कौन-कौन से गुण होने चाहिए?
उत्तर – सुजानसिंह के अनुसार दीवान में दया, आत्मबल, साहस, धर्मपरायणता, स्थिर चित्त और निर्णय लेने की क्षमता जैसे उच्च नैतिक गुण होने चाहिए।
- सप्रसंग व्याख्या करो (लगभग 100 शब्दों में) :-
(क) लेकिन, मनुष्य का वह बूढ़ा जौहरी आड़ में बैठा हुआ देख रहा था कि इन बगुलों में हंस कहाँ छिपा है।
उत्तर – प्रसंग – मुंशी प्रेमचंद जी की रचना ‘परीक्षा’ की यह पंक्ति उस समय की है जहाँ दीवान सुजानसिंह उम्मीदवारों की परीक्षा ले रहे हैं।
व्याख्या – ‘बूढ़ा जौहरी’ सुजानसिंह स्वयं हैं जो प्रतिभाशाली और सच्चरित्र व्यक्ति की पहचान करने वाले अनुभवी व्यक्ति हैं। वे दिखावटी लोगों को पहचानकर उनके भीतर छिपी वास्तविकता को परखना चाहते हैं। ‘बगुले’ मतलब ढोंगी और ‘हंस’ मतलब गुणवान व्यक्ति। यह पंक्ति बताती है कि केवल बाहरी आचरण नहीं, बल्कि भीतर की सच्चाई को समझना आवश्यक है। सुजानसिंह की सूझ-बूझ और सूक्ष्म दृष्टि का यह प्रतीक है।
(ख) गहरे पानी में बैठने से मोती मिलता है।
उत्तर – प्रसंग – मुंशी प्रेमचंद जी की रचना ‘परीक्षा’ का यह संवाद उस समय का है जब किसान के वेश में छिपे दीवान सुजानसिंह युवक से प्रभावित होकर उसकी परीक्षा की सफलता का संकेत देते हैं।
व्याख्या – यह कहावत रूपक रूप में प्रयुक्त हुई है। इसका अर्थ है कि मूल्यवान चीजें पाने के लिए कठिनाइयों में उतरना पड़ता है। युवक ने बिना किसी स्वार्थ के सेवा की, कीचड़ में उतरा, कष्ट सहा, और अंत में मूल्यवान पद यानी दीवान की उपाधि पाई। यह कथन बताता है कि आत्मबल, साहस और करुणा जैसे गुण ही जीवन की सच्ची सफलता के मूल हैं।
(ग) उन आँखों में सत्कार था और इन आँखों में ईर्ष्या।
उत्तर – प्रसंग – मुंशी प्रेमचंद जी की रचना ‘परीक्षा’ की यह पंक्ति तब कही गई है जब पं. जानकीनाथ को दीवान पद के लिए चुना जाता है।
व्याख्या – दरबार में बैठे राजा, दरबारी और रईसों की आँखों में सम्मान और गर्व था, क्योंकि उन्हें योग्य व्यक्ति मिला। जबकि दूसरे उम्मीदवारों की आँखों में जलन और असंतोष था, क्योंकि वे स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे थे। यह वाक्य मानवीय भावनाओं की विविधता को दर्शाता है कि एक ही घटना को लोग अलग-अलग दृष्टिकोण से कैसे देखते हैं — कोई गौरव से, तो कोई ईर्ष्या से।
- किसने किससे कहा, लिखो :-
(क) कहीं भूल चूक हो जाए तो बुढ़ापे में दाग लगे, सारी जिंदगी की नेकनामी मिट्टी में में मिल जाए।
उत्तर – दीवान सरदार सुजानसिंह ने यह बात महाराज से कही।
(ख) मालूम होता है, तुम यहाँ बड़ी देर से फँसे हुए हो।
उत्तर – पं. जानकीनाथ (युवक) ने यह बात किसान से कही।
(ग) नारायण चाहेंगे तो दिवानी आपको ही मिलेगी।
उत्तर – किसान (वेष में छिपे दीवान सुजानसिंह) ने यह बात पं. जानकीनाथ से कही।
भाषा एवं व्याकरण ज्ञान
- नीचे लिखी संज्ञाओं में जातिवाचक, व्यक्तिवाचक और भाववाचक संज्ञाएँ पहचानो :-
देवगढ़, शक्ति, दीवान, जानकीनाथ, सादगी, अंगरखे, हंस, पुल, दया शिखर, नारायण, खिलाड़ी
उत्तर – व्यक्तिवाचक संज्ञा (किसी विशेष व्यक्ति, स्थान या वस्तु का नाम)
देवगढ़ – स्थान का विशेष नाम
जानकीनाथ – व्यक्ति का विशेष नाम
नारायण – ईश्वर का विशेष नाम
जातिवाचक संज्ञा (एक जाति, वर्ग या समूह को दर्शाने वाली संज्ञा)
दीवान – पद या कार्य विशेष
अंगरखे – वस्त्रों की श्रेणी
हंस – पक्षियों की एक जाति
पुल – एक सामान्य वस्तु
खिलाड़ी – खेल खेलने वालों का वर्ग
भाववाचक संज्ञा (किसी भावना, गुण या अवस्था को दर्शाने वाली संज्ञा)
शक्ति – ताकत या बल
सादगी – सरलता का भाव
दया – करुणा का भाव
शिखर – ऊँचाई या सर्वोच्चता का बोध
- ‘अनुभवशील’ शब्द में ‘अनुभव’ तथा ‘शील’ शब्दों का योग है। इसका अर्थ है अनुभवी। ‘शील’ प्रत्यय लगाकर पाँच शब्द बनाओ।
उत्तर – दया – दयाशील – जिसमें दया की भावना हो
विनय – विनयशील – विनम्र स्वभाव वाला
धर्म – धर्मशील – धर्म का पालन करने वाला
शांति – शांतिशील – शांतिप्रिय
नीति – नीतिशील – नीति का पालन करने वाला
- निम्नलिखित वाक्यों को कोष्ठक में दी गई सूचना के अनुसार परिवर्तित करो
(क) खिलाड़ी लोग बैठे दम ले रहे थे। (सामान्य वर्तमान)
उत्तर – खिलाड़ी लोग बैठकर दम लेते हैं।
(ख) लंबा आदमी सामने खड़ा है। (पूर्ण भूतकाल)
उत्तर – लंबा आदमी सामने खड़ा हो चुका था।
(ग) ऐसे गुणवाले संसार में कम होते हैं। (सामान्य भविष्य)
उत्तर – ऐसे गुणवाले संसार में कम होंगे।
- दो शब्दों में यदि पहले शब्द के अंत में ‘अ’,’आ’ हो और बाद के शब्द के आरंभ में ‘इ’, ‘ई’ या ‘उ’,’ऊ’ हो तो उन दोनों में संधि होने पर क्रमश: ‘ए’, अथवा ‘औ’ हो जाता है; जैसे- देव+इंद्र देवेंद्र, महा + ईश = महेश, मंत्र+उच्चारण=मंत्रोच्चारण, पर+उपकार=परोपकार।
नीचे लिखे शब्दों में संधि करो –
प्रश्न + उत्तर, गण+ ईश, वीर+इंद्र, सूर्य उदय, यथा+इच्छा
उत्तर – प्रश्नोत्तर – प्रश्न + उत्तर – गुण संधि
गणेश – गण + ईश – गुण संधि
वीरेंद्र – वीर + इंद्र – गुण संधि
सूर्योदय – सूर्य + उदय – गुण संधि
यथेच्छा – यथा + इच्छा – गुण संधि
- विलोम शब्द लिखो :-
सज्जन, उपस्थित, उपयुक्त, अपकार
उत्तर – सज्जन – दुर्जन
उपस्थित – अनुपस्थित
उपयुक्त – अनुपयुक्त
अपकार – उपकार
योग्यता- विस्तार
- तुमने कभी किसी संकट में फँसे व्यक्ति की मदद की है? अगर ‘हाँ’ तो अपना अनुभव लिखो।
उत्तर – जी, एक बार रेलवे स्टेशन पर किसी व्यक्ति को टिकट खरीदनी थी और उसके पास पूरे पैसे नहीं थे। ऐसी विकत घड़ी मैं मैंने उसे पैसे देकर उसकी मदद की थी।
- अवसर मिलने पर प्रेमचंद की कहानियों का रसास्वादन लो।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – दीवान सुजानसिंह ने महाराज से क्या विनती की और क्यों?
उत्तर – दीवान सुजानसिंह ने महाराज से निवृत्त होने की विनती की क्योंकि वे बुज़ुर्ग हो चुके थे और चाहते थे कि शेष जीवन ईश्वर-सेवा में बिताएँ।
प्रश्न 2 – उम्मीदवारों का रहन-सहन कैसा हो गया था?
उत्तर – उम्मीदवार दिखावे के लिए अच्छे आचरण, धर्म-निष्ठा और नम्रता प्रदर्शित कर रहे थे ताकि पद प्राप्त कर सकें।
प्रश्न 3 – पंडित जानकीनाथ को दीवान क्यों चुना गया?
उत्तर – क्योंकि उन्होंने कठिन परिस्थिति में किसान की निःस्वार्थ मदद की, जिससे उनकी दया, आत्मबल और सेवा-भाव सिद्ध हुआ।
बहुविकल्पीय प्रश्न
- सरदार सुजानसिंह ने महाराज से दीवान पद छोड़ने की प्रार्थना क्यों की?
(क). वे विदेश जाना चाहते थे।
(ख). वे किसी अन्य पद पर जाना चाहते थे।
(ग). वे बुज़ुर्ग हो गए थे और ईश्वर की सेवा करना चाहते थे।
(घ). उनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा था।
उत्तर: (ग)
- महाराज ने दीवान पद छोड़ने की अनुमति किस शर्त पर दी?
(क). कि दीवान साहब फिर से पद संभालेंगे।
(ख). कि वे किसी से पैसे लेंगे।
(ग). कि वे नया दीवान स्वयं चुनेंगे।
(घ). कि वे महाराज के गुरु बनेंगे।
उत्तर: (ग)
- दीवान पद के लिए क्या योग्यता अनिवार्य नहीं थी?
(क). स्नातक की डिग्री
(ख). आत्मबल
(ग). शारीरिक सामर्थ्य
(घ). अच्छा आचरण
उत्तर: (क)
- उम्मीदवारों के आचरण में बदलाव क्यों आया?
(क). उन्हें डर था।
(ख). वे सच्चे सज्जन थे।
(ग). वे दिखावा कर रहे थे ताकि पद मिल जाए।
(घ). उन्हें नया धर्म मिल गया था।
उत्तर: (ग)
- किसान की गाड़ी कीचड़ में फँसने पर किसने मदद की?
(क). सभी खिलाड़ी
(ख). गाँववाले
(ग). दीवान साहब
(घ). एक खिलाड़ी (पं. जानकीनाथ)
उत्तर: (घ)
- किसान ने अपने मददगार युवक के लिए क्या कहा?
(क). आप सच्चे योद्धा हैं।
(ख). नारायण चाहेंगे तो दीवानी आपको ही मिलेगी।
(ग). मैं आपका सेवक बनूँगा।
(घ). आप मेरे भगवान हैं।
उत्तर: (ख)
- सरदार सुजानसिंह के अनुसार अच्छे दीवान में क्या गुण होने चाहिए?
(क). धन और बल
(ख). क्रोध और शक्ति
(ग). दया, आत्मबल और स्थिर चित्त
(घ). फैशन और राजनीति ज्ञान
उत्तर: (ग)
- अंत में दीवान पद के लिए किसका चयन हुआ?
(क). मिस्टर ‘अ’
(ख). किसान
(ग). पं. जानकीनाथ
(घ). सरदार सुजानसिंह
उत्तर: (ग)