SEBA, Assam Class IX Hindi Book, Alok Bhaag-1, Ch. 06 – Chikitsa Ka Chakkar, Bedhab Banarasi, The Best Solutions, चिकित्सा का चक्कर – बेढब बनारसी

बेढब बनारसी – लेखक परिचय

हिंदी साहित्य में ‘हँसोड़ परम्परा के जीवंत प्रतीक’ बेढब बनारसीजी जाने-माने हास्य-व्यंग्य साहित्यकार हैं। इनका असली नाम कृष्णदेव प्रसाद गौड़ है। इनका जन्म 11 नवम्बर 1895 को वाराणसी में हुआ था तथा मृत्यु 6 मई 1968 को हुई थी। बनारसी जी का अधिकांश समय अध्यापन कार्यों में बीता था। इन्होंने सरकारी व्यवस्था से लेकर सामाजिक परम्पराओं तथा व्यवसायों तक पर तीखे व्यंग्यवाण चलाए हैं। उनकी रचनाओं की भाषाशैली सरल, सहज तथा मुहावरेदार है जो पाठक के मन पर विशेष प्रभाव डालती है।

बनारसी जी ने अनेक कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास तथा निबंध आदि की रचनाएँ की हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने नागरी प्रचारिणी पत्रिका, आँधी, प्रसाद, खुदा की राह पर, तरंग आदि पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। बेढब की बहक, काव्य कमल, बिजली, बेढब की वाणी, नया जमाना आदि बनारसी जी की काव्य रचनाएँ हैं। उनकी कहानियों में बनारसी एक्का, मसूरीवाला, गाँधी का भूत, टनाटन, धन्यवाद आदि प्रमुख हैं। लेफ्टिनेंट पिगसन की डायरी उनका चर्चित उपन्यास है। हुक्कापानी, उपहार, गालिब की कविता, रूहे सुखून आदि निबंध है।

बनारसीजी की भाषा अत्यंत सरल एवं सहज है। अरबी एवं अंग्रेजी के शब्दों तथा मुहावरों के प्रयोग से पाठ की रोचकता अधिक बढ़ गयी है।

 

चिकित्सा का चक्कर – पाठ का परिचय

चिकित्सा का चक्कर पाठ में बनारसी जी ने अपने देश में प्रचलित लगभग सभी प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों से चिकित्सा करने वाले चिकित्सकों, वैद्य-हकीमों तथा ओझाओं पर अच्छा-खासा व्यंग्य किया है। इसके अतिरिक्त लेखक के मित्रों एवं सगे-संबंधियों के सलाह- नुस्खों के साथ-साथ चिकित्सकों एवं वैद्य-हकीमों के हाव-भाव तथा पोशाकों पर भी कटाक्ष किया है।

लेखक के बीमार पड़ने पर उनके मित्र, पड़ोसी एवं सगे-संबंधी उन्हें देखने आते हैं। जो आता है कोई न कोई नुस्खा अपने साथ ले आता है, पर लेखक को आराम महसूस नहीं होता है। डॉक्टर, वैद्य, हकीम, ओझा सभी बुलाये जाते हैं। बीमारी से छुटकारा पाने के लिए तरह-तरह के इलाज शुरू होते हैं। कोई साधारण तो कोई गंभीर बीमारी बताकर लेखक की परेशानी को और बढ़ा देता है। कोई चुड़ैल अथवा ऊपरी हवा का प्रकोप बताकर ऊटपटांग टोटके करने की सलाह देता है तो कोई पाइरिया बताकर लेखक के सारे दाँत तुड़वा (उखड़वा) देने की सलाह देता है। इलाज के चक्कर में लेखक अत्यंत दुर्बल हो जाते हैं। सैकड़ों रुपये खर्च करने पर भी उनकी बीमारी दूर नहीं होती है। अंत में अपनी पत्नी की सलाह पर लेखक निश्चिंत होकर ढंग से खाना खाने लगते हैं और पंद्रह दिनों में पूरी तरह तंदुरुस्त हो जाते हैं।

चिकित्सा का चक्कर

मैं बिल्कुल हट्टा-कट्टा आदमी हूँ। देखने में मुझे कोई भला आदमी रोगी नहीं कह सकता। मेरी आयु लगभग पैंतीस वर्ष की है। आज तक कभी बीमार नहीं पड़ा। लोगों को बीमार देखता था, तो मुझे बड़ी इच्छा होती थी कि किसी दिन मैं भी बीमार पड़ता तो अच्छा होता। यह तो न था कि मेरे बीमार होने पर भी दिन में दो बार बुलेटिन निकलते, पर इतना अवश्य था कि मेरे बीमार पड़ने पर हंटले बिस्कुट जिन्हें साधारण अवस्था में घरवाले खाने नहीं देते, दवा की बात और है – खाने को मिलते। यू.डी. क्लोन की शीशियाँ सिर पर कोमल करों से बीबी उड़ेलकर मलती और सबसे बड़ी इच्छा तो यह थी कि दोस्त लोग आकर मेरे सामने बैठते और गंभीर मुद्रा धारण करके पूछते, कहिए, बेढबजी, कैसी तबीयत है? किसकी दवा हो रही है? कुछ फायदा है? जब कोई इस प्रकार से रोनी सूरत बनाकर ऐसे प्रश्न करता, तब मुझे बड़ा मजा आता और उस समय मैं आनंद की सीमा के उस पार पहुँच जाता।

हाँ, तो एक दिन मैं हॉकी खेलकर आया। कपड़े उतारे, स्नान किया। शाम को ही भोजन कर लेने की मेरी आदत है, पर आज मैच में रिफ्रेशमेण्ट जरा ज्यादा खा गया था, इसलिए भूख न थी। श्रीमती जी ने खाने को पूछा। मैंने कह दिया कि आज स्कूल में मिठाई खाकर आया हूँ, कुछ विशेष भूख नहीं है। उन्होंने कहा, “विशेष न सही साधारण सही। मुझे आज सिनेमा जाना है। तुम अभी खा लेते तो अच्छा था। संभव है, मेरे आने में देर हो।”मैंने फिर इनकार नहीं किया, उस दिन थोड़ा ही खाया। बारह पूरियाँ थीं और वही रोज वाली आध पाव मलाई। खा चुकने के बाद पता चला कि ‘प्रसाद’ जी के यहाँ से बाग बाजार का रसगुल्ला आया है। रस तो होगा ही। कल तक संभव है, कुछ खट्टा हो जाए। छह रसगुल्ले निगल कर मैंने चारपाई पर धरना दिया। रसगुल्ले छायावादी कविताओं की भाँति सूक्ष्म नहीं थे, स्थूल थे।

एकाएक तीन बजे रात को नींद खुली। नाभि के नीचे दाहिनी ओर पेट में मालूम पड़ता था, कोई बड़ी-बड़ी सूइयाँ लेकर कोंच रहा है। परन्तु मुझे भय नहीं मालूम हुआ, क्योंकि ऐसे ही समय के लिए औषधियों का राजा, रोगों का रामबाण, अमृतधारा की एक शीशी सदा मेरे पास रहती है। मैंने तुरन्त उसकी कुछ बूँदें पान कीं। दोबारा दवा पी। तिबारा।” पीत्वा – पीत्वा पुनः पीत्वा” की सार्थकता उसी समय मुझे मालूम हुई। प्रातः काल होते-होते शीशी समाप्त हो गई। दर्द में किसी प्रकार कमी न हुई। प्रात: काल एक डॉक्टर के यहाँ आदमी भेजना पड़ा।

डॉक्टर साहब सरकारी अस्पताल के थे। वे एक इक्के पर तशरीफ लाए। सूट तो वे ऐसा पहने हुए थे कि मालूम पड़ता था, प्रिंस ऑफ वेल्स के बैलेटों में हैं। ऐसे सूटवाले का इक्के पर आना वैसा ही मालूम हुआ, जैसा लीडरों का मोटर छोड़कर पैदल चलना। मैं अपना पूरा हाल भी न कहने पाया था कि आप बोले, ‘जुबान दिखलाइए’। प्रेमियों को जो मजा प्रेमिकाओं की आँख देखने में आता है, शायद वैसा ही डाक्टरों को मरीजों की जीभ देखने में आता है। डॉक्टर महोदय मुस्कुराए। बोले, ‘घबराने की कोई बात नहीं है। दवा पीजिए, दो खुराक पीते-पीते आपका दर्द वैसे ही गायब हो जाएगा, जैसे हिन्दुस्तान से सोना गायब हो रहा है।’ मैं तो दर्द से बेचैन था। डॉक्टर साहब साहित्य का मजा लूट रहे थे। चलते चलते बोले, ‘अभी अस्पताल खुला न होगा, नहीं तो आपको दवा मँगानी न पड़ती। खैर, चंद्रकला फार्मेसी से दवा मँगवा लीजिएगा। वहाँ दवाइयाँ ताजी मिलती हैं। बोतल में पानी गरम करके सेंकिएगा।’ दवा पी गई। गरम बोतलों से सेंक भी आरंभ हुई। सेंकते – सेंकते छाले पड़ गए, पर दर्द में कमी न हुई।

दोपहर हुआ, शाम हुई, पर दर्द ने मुझसे ऐसा प्रेम दिखलाया कि हटने का नाम दूर। लोग देखने के लिए आने लगे। मेरे घर पर मेला लगने लगा। ऐसे-ऐसे लोग आए कि कहाँ तक लिखूँ। हाँ, एक विशेषता थी, जो आता एक-न- एक नुस्खा अपने साथ लेता आता था। किसी ने कहा, अजी कुछ नहीं, हींग पिला दो। किसी ने कहा, चूना खिला दो। खाने के लिए सिवा जूते के और कोई चीज बाकी नहीं रह गई, जिसे लोगों ने न बताई हो।

तीन दिन बीत गए, दर्द में कमी न हुई। लोग आते मुझे देखने के लिए, पर चर्चा छिड़ती थी, “प्रसाद जी का अमुक नाटक रंगमंच की दृष्टि से कैसा है? राय कृष्णदास हफ्ते में नौ बार दाढ़ी क्यों बनाते हैं?”मुझे भी कुछ बोलना ही पड़ता था। ऊपर से पान और सिगरेट की चपत अलग। भला दर्द में क्या कमी हो।

आखिर में लोगों ने कहा कि तुम कब तक इस तरह पड़े रहोगे, किसी दूसरे की दवा करो। लोगों की सलाह से डॉक्टर चूहानाथ कातरजी को बुलाने की सलाह हुई। आप लोग डॉक्टर साहब का नाम सुनकर हँसेंगे, पर यह मेरा दोष नहीं है, उनके मा-बाप का दोष है। यदि उनका नाम रखना होता तो अवश्य ही कोई साहित्यिक नाम रखता। वे थे यथा नाम तथा गुण। आपकी फीस आठ रुपए थी और मोटर का एक रुपया अलग। आप लंदन के एफ. आर. सी. एस. थे।

कुछ लोगों का सौंदर्य रात में बढ़ जाता है, वैसे ही डाक्टरों की फीस रात में बढ़ जाती है। खैर, डॉक्टर साहब बुलाए गए। आते ही हमारे हाल पर रहम किया और बोले, “मिनटों में दर्द गायब हुआ जाता है, थोड़ा पानी गरम कराइए, तब तक यह दवा मँगवाइए।” एक पुर्जे पर आपने दवा लिखी, पानी गरम हुआ। दो रुपये की दवा आई। डॉक्टर बाबू ने तुरंत एक छोटी-सी पिचकारी निकाली, उसमें एक लंबी सूई लगाई, पिचकारी में दवा भरी और मेरे पेट में वह सूई कोंचकर दबा डाली।

डॉक्टर साहब कुछ कहकर और मुझे सांत्वना देकर चले गए। उसके बाद मुझे नींद आ गई और मैं सो गया। मेरी नींद कब खुली, कह नहीं सकता, पर दर्द में कमी हो चली थी और दूसरे दिन प्रात: काल पीड़ा रफूचक्कर हो गई थी।

कोई दो सप्ताह मुझे पूरा स्वस्थ होने में लगे। बराबर डॉक्टर चूहानाथ कातरजी की दवा पीता रहा। अठारह आने की शीशी प्रतिदिन आती रही। दवा के स्वाद का क्या कहना। शायद मुर्दे के मुख में डाल दी जाए तो तिलमिला उठे। पंद्रह दिन के बाद मैं डॉक्टर साहब के घर गया उन्हें धन्यवाद देने के लिए। मैंने पूछा कि अब तो दवा पीने की कोई आवश्यकता न होगी। वे बोले, “यह तो आपकी इच्छा पर है। पर यदि आप काफी एहतियात न करेंगे तो आपको ‘अपेंडिसाइटीज’ हो जाएगा। आपकी श्रीमतीजी बड़ी भाग्यवती हैं। अगर छह घंटे की देर और हो जाती तो उन्हें जिंदगी-भर रोना पड़ता। वह तो कहिए कि आपने मुझे बुला लिया। अभी कुछ दिनों दवा पीजिए।”

इसी बीच में डॉक्टर महोदय ने ऐसे-ऐसे मर्जों के नाम सुनाए कि मेरी तबीयत फड़क उठी। भला मुझे ऐसे मर्ज हुए, जिनका नाम साधारण क्या बड़े पढ़े-लिखे लोग भी नहीं जानते। मालूम नहीं, ये मर्ज सब डाक्टरों को मालूम हैं कि केवल हमारे कातरजी को ही मालूम हैं। खैर, मैंने दवा जारी रखी।

अभी एक सप्ताह भी पूरा न हुआ था कि दो बजे दिन को एकाएक सिर दर्द रूपी फौज ने मेरे शरीर रूपी किले पर हमला कर दिया। डॉक्टर साहब ने जिन-जिन भयंकर मर्जों का नाम लिया था, उनका स्वरूप मेरी रोती हुई आँखों के सामने नृत्य करने लगा। मैं सोचने लगा कि हुआ हमला उन्हीं में से किसी एक मर्ज का। तुरंत डॉक्टर साहब के यहाँ आदमी दौड़ाया गया कि इंजेक्शन का सामान लेकर चलिए। वहाँ से आदमी बिना माँगी पत्रिका की भाँति लौटकर आया कि डॉक्टर साहब कहीं गए हैं। इधर मेरी हालत क्या थी, उसका वर्णन यदि सरस्वती शार्टहैण्ड से भी लिखें तो संभवतः समाप्त न हो। हवाई जहाज के पंखे की तेजी के समान तो करवटें बदल रहा था, इधर मित्रों और घरवालों की कांफ्रेंस हो रही थी कि अब कौन बुलाया जाए, पर निःशस्त्रीकरण सम्मेलन की भाँति कोई न किसी की बात मानता था, न कोई निश्चय ही हो पाता था।

मालूम नहीं, लोगों में क्या-क्या बहसें हुईं, कौन – कौन प्रस्ताव फेल हुए, कौन-कौन पास। अंत में हमारे मकान के बगल में रहने वाले पंडितजी की विजय हुई और आयुर्वेदाचार्य, रसज्ञरंजन, चिकित्सा- मार्तंड, कविराज पंडित सुखदेव शास्त्री को बुलाने की बात तय हुई। एक सज्जन उन्हें बुलाने के लिए भेजे गए। कोई पैंतालीस मिनट बीत गए, परंतु न वैद्यजी आए, न भेजे गए सज्जन का ही पता चला। एक ओर दर्द आयकर की तरह बढ़ता जा रहा था, दूसरी ओर इन लोगों का भी पता नहीं। और भी बेचैनी बढ़ी, अन्त में जो साहब गए थे, लौटे वे बोले, “वैद्यजी ने बड़े गौर से पत्रा देखा और कहा कि अभी बुध के संक्रांति वृत्त में शनि की स्थिरता है, इकतीस पल नौ विपल में शनि बाहर हो जाएगा और डेढ़ घटी एकादशी का योग है। उसके समाप्त होने पर मैं चलूँगा। सुनकर मेरा कलेजा कबाब हो गया। मगर वे कह आए थे, अतएव बुलाना भी आवश्यक था। मैंने फिर उन्हें भेजा।

कोई आधे घंटे बाद वैद्यजी एक पालकी पर तशरीफ लाए। आकर आप मेरे सामने कुर्सी पर बैठ गए। आप धोती पहने हुए थे और कंधे पर एक सफेद दुपट्टी डाले हुए थे। इसके अतिरिक्त शरीर पर सूत के नाम पर जनेऊ था, जिसका रंग देखकर यह शंका होती थी कि कविराज जी कुश्ती लड़कर आ रहे हैं। वैद्यजी ने कुछ न पूछा। पहले नाड़ी हाथ में ली। पाँच मिनट तक एक हाथ की नाड़ी देखी, फिर दूसरे हाथ की। बोले, “वायु का प्रकोप है, यकृत से वायु घूमकर पित्ताशय में प्रवेश कर आँत में जा पहुँची है। इससे मंदाग्नि का प्रादुर्भाव होता है और किसी कारण जब भोज्य पदार्थ प्रतिहत होता है, तब शूल का कारण होता है।”

कविराज जी मालूम नहीं क्या बक रहे थे और मेरी तबीयत दर्द और क्रोध के एक दूसरे ही संसार में छटपटा रही थी। आखिर मुझसे न रहा गया। मैंने एक सज्जन से कहा, जरा आलमारी में से ‘आप्टे’ का कोश तो लेते आइए। यह सुनकर लोग चकराए। कुछ लोगों को संदेह हुआ कि अब मैं होश में नहीं हूँ। मैंने कहा दवा तो पीछे होगी, मैं पहले समझ तो लूँ कि मुझे रोग क्या है। तत्पश्चात् वैद्यजी, ‘चरक’, ‘सुश्रुत’ के श्लोक सुनाने लगे। और अंत में कहा, देखिए, मैं दवा देता हूँ और अभी आपको लाभ होगा। पंडितजी ने दवा दी। कहा कि अदरख के रस में इस औषधि का सेवन करना होगा। खैर साहब, फीस दी गई। किसी प्रकार वैद्यजी से पिण्ड छूटा। दो दिन दवा की गई। कभी-कभी तो कम अवश्य हो जाता था, पर पूरा दर्द न गया। सी. आई.डी. के समान पीछा छोड़ता ही न था।

चारपाई पर पड़ा रहने लगा। दिन को मित्रों की मंडली आती थी। वह आराम देती थी कम, दिमाग चाटती थी अधिक। एक सज्जन मुझे देखने के लिए तशरीफ लाए थे। बोले, “साहब, आप लोगों को देश का हर समय ध्यान रखना चाहिए। आप किसी भारतीय हकीम अथवा वैद्य को दिखलाइए।” मैंने मन में सोचा कि वैद्य महाराज को तो मैंने दिखा ही लिया, हकीम भी सही।

हकीम साहब आए। यद्यपि मैं अपनी बीमारी का जिक्र और अपनी बेबसी का हाल लिखना चाहता हूँ, पर हकीम साहब की पोशाक और उनके रहन-सहन तथा फैशन का जिक्र न करना मुझसे न हो सकेगा। सर्दी बहुत तेज नहीं थी। बनारस में बहुत तेज सर्दी नहीं पड़ती। फिर भी ऊनी कपड़ा पहनने का समय आ गया था। परन्तु हकीम साहब चिकन का बंददार कुरता पहने हुए थे। सिर पर बनारसी लोटे की तरह टोपी रखी हुई थी। पाँव में पाजामा ऐसा मालूम होता था कि चूड़ीदार पाजामा बनने वाला था, परन्तु दर्जी ईमानदार था, उसने कपड़ा चुराया नहीं, सबका सब लगा दिया अथवा यह भी हो सकता है कि ढीली मोहरी के लिए कपड़ा दिया गया हो, दर्जी ने कुछ कतर- व्योंत की हो और चुस्ती दिखाई हो। जूता कामदार दिल्ली वाला था। हकीम साहब पतले-दुबले इतने थे कि मालूम पड़ता था, अपनी तंदुरुस्ती अपने मरीजों को बाँट दी है। हकीम साहब में नजाकत भी बला की थी। रहते थे बनारस में, मगर कान काटते थे लखनऊ के।

आते ही मैंने सलाम किया, जिसका उत्तर उन्होंने मुस्कुराते हुए बड़े अंदाज से दिया और बोले, “मिजाज कैसा है?”

मैंने कहा, “मर रहा हूँ। बस, आपका ही इंतजार था। अब यह जिन्दगी आपके ही हाथों में है।”

हकीम साहब ने कहा, “यार! आप तो ऐसी बात करते हैं, गोया जिंदगी से बेजार हो गए हैं। भला ऐसी गुफ्तगू भी कोई करता है। मरे आपके दुश्मन, नब्ज तो दिखाइए। खुदाबंदकरीम ने चाहा तो आनन- फानन में दर्द रफूचक्कर होगा।”

मैंने कहा, “अब आपकी दुआ है। आपका नाम बनारस ही नहीं, हिंदुस्तान में लुकमान की तरह मशहूर है, इसीलिए आपको तकलीफ दी गई है।”

दस मिनट तक हकीम ने नब्ज देखी। फिर बोले, “मैं नुस्खा लिखे देता हूँ। इसे इस वक्त आप पीजिए, इंशा अल्लाह जरूर शिफा होगी।”

हकीम साहब चलने को तैयार हुए। उठे। उठते-उठते बोले, जरा एक बात का ख्याल रखिएगा कि आजकल दवाइयाँ लोग बहुत पुरानी रखते हैं। मेरे यहाँ ताजी दवाइयाँ मिलती हैं।”

दर्द फिर कम हो चला। परन्तु दुर्बलता बढ़ चली थी। कभी-कभी दर्द का दौरा भी अधिक वेग से हो जाता था। घरवालों को और मुझे भी दर्द के संबंध में विशेष चिंता होने लगी। कोई कहता था कि लखनऊ जाओ, कोई एक्स-रे का नाम लेता था। किसी-किसी ने राय दी कि जल – चिकित्सा कीजिए। एक सज्जन ने कहा, यह सब कुछ नहीं, आप होमियोपैथी इलाज शुरू कीजिए। देखिए, कितनी शीघ्रता से लाभ होता है। बोले, “साहब, इन नन्हीं-नन्हीं गोलियों में मालूम नहीं कहाँ का जादू है। साहब, जादू का काम करती हैं, जादू का।”

एक प्रकृति – चिकित्सा वाले ने कहा था कि आप गीली मिट्टी पेट पर लेपकर धूप में बैठिए। एक हफ्ते में दर्द हवा हो जाएगा। हमारे ससुर साहब एक डॉक्टर को लेकर आए। उन्होंने कहा, “देखिए साहब, आप पढ़े-लिखे आदमी हैं। समझदार हैं। ”मैं बीच में बोल उठा, “समझदार न होता तो आपको कैसे यहाँ बुलाता।”

इसी बीच मेरी नानी की मौसी मुझे देखने आई। उन्होंने बड़े प्रेम से देखा। देखकर बोली, “मैं तो पहले ही सोच रही थी कि यह कुछ ऊपरी खेल है। ”मैंने पूछा, “यह ऊपरी खेल क्या है नानी जी?”बोलीं, “बेटा, सब कुछ किताब में ही थोड़े लिखा रहता है। बात यह है कि किसी चुड़ैल का फसाद है। ”मेरी स्त्री और माता की ओर देख कहने लगीं, “देखो न इसकी बरौनी कैसी खड़ी है। कोई चुड़ैल लगी है। किसी को दिखा देना चाहिए। ”मैंने कहा, “डॉक्टर तो मेरी जान के पीछे लग गए हैं। क्या चुड़ैल उनसे भी बढ़कर है?” जब सब लोग चले गए तब मेरी पत्नी ने कहा, “तुम लोगों की बात क्यों नहीं मान लिया करते? कुछ हो या न हो, इसमें तुम्हारा हर्ज ही क्या है?” मेरे दर्द में किसी विशेष प्रकार की कमी न हुई। ओझा से तो किसी प्रकार की आशा क्या करता? पर बीच-बीच दवा भी होती जाती थी।  

कुछ लाभ अवश्य हुआ, पर पूरा फायदा न हुआ। मैंने अब पक्का इरादा कर लिया कि लखनऊ जाऊँ। जो बात काशी में नहीं हो सकती, लखनऊ में हो सकती है। वहाँ सभी साधन हैं।

सब तैयारी हो चुकी थी कि इतने में एक और डॉक्टर को एक मेहरबान लिवा लाए। उन्होंने देखा, “जरा मुँह तो देखूँ।” मैंने कहा, “मुँह जीभ जो चाहे देखिए।” देखकर बड़े जोर से हँसे। मैं घबराया, ऐसी हँसी केवल कवि-सम्मेलन में बेढंगी कविता के समय सुनाई देती है। मैं चकित भी हुआ। डॉक्टर, बोले, “किसी डॉक्टर को यह सूझी नहीं, तुम्हें ‘पाइरिया’ है। उसी का जहर पेट में जा रहा है और सब फसाद पैदा कर रहा है। ”मैंने कहा, “तब क्या करूँ?” डॉक्टर साहब ने कहा, “इसमें करना क्या है? किसी दंत चिकित्सक के यहाँ जाकर दाँत निकलवा दीजिए।” मैंने अपने मन में कहा, आपको यह तो कहने में कुछ कठिनाई ही नहीं हुई। गोया दाँत निकलवाने में कोई तकलीफ ही नहीं होती। खैर, रात भर मैंने सोचा? मैंने भी यही निश्चय किया कि यही डॉक्टर ठीक कहते हैं। दंत चिकित्सक के यहाँ से पुछवाया। उसने कहलाया कि तीन रुपये फी दाँत तुड़वाने के लिए लगेंगे। कुल दाँतों के लिए छियानबे रुपये लगेंगे। मगर मैं आपके लिए छह रुपये छोड़ दूँगा। इसके अतिरिक्त दाँत बनवाई डेढ़ सौ अलग। यह सुनकर पेट का दर्द के साथ सिर में भी चक्कर आने लगा। मगर मैं न सोचा कि जान सलामत है तो सब कुछ। इतना और खर्च करो। श्रीमती से मैंने रुपये माँगे। उन्होंने पूछा, “क्या होगा?”मैंने सारा हाल कह दिया। वे बोलीं, “तुम्हारी बुद्धि कहीं घास चरने गई है? आज कोई कहता है दाँत उखड़वा डालो, कल कोई कहेगा, सारे बाल उखड़वा डालो, परसों कोई डॉक्टर कहेगा, नाक नुचवा डालो, आँखें निकलवा दो। यह सब फिजूल है। खाना ठिकाने से खाओ। पंद्रह दिन में ठीक हो जाओगे।”मैंने कहा, “तुम्हें अपनी दवा करनी थी तो इतने रुपये क्यों बरबाद कराए?”

क्रम

शब्द

हिंदी अर्थ

अंग्रेज़ी अर्थ

1

चिकित्सा

रोग की पहचान और उपचार

Medical treatment

2

चक्कर

भ्रमण, चक्र; यहाँ – परेशान करनेवाली स्थिति

Trouble / Circle / Confusion

3

कुशल

ठीक, स्वस्थ

Well / Fine

4

झुँझलाना

चिड़चिड़ाना

To be irritated

5

उपचार

इलाज, चिकित्सा

Treatment / Remedy

6

लक्षण

रोग के संकेत

Symptom

7

दवा

औषधि

Medicine / Drug

8

मर्ज

रोग, बीमारी

Disease / Ailment

9

हास्य

हँसी उत्पन्न करनेवाली बात

Humor

10

कटाक्ष

ताना, व्यंग्य

Satire / Sarcasm

11

रोगी

बीमार व्यक्ति

Patient

12

विश्लेषण

गहराई से जांच

Analysis

13

चिकित्सक

डॉक्टर, वैद्य

Doctor / Physician

14

औषधालय

दवाएँ बनाने व बेचने का स्थान

Pharmacy / Dispensary

15

अनुपचार

इलाज की कमी

Lack of treatment

16

परामर्श

सलाह

Advice / Consultation

17

लापरवाही

ध्यान न देना, असावधानी

Carelessness / Negligence

18

खांसी

एक रोग जिसमें गले से खाँसी आती है

Cough

19

तीमारदारी

सेवा करना (बीमार की)

Nursing / Patient care

20

हास्यपूर्ण

मज़ेदार, हँसी पैदा करने वाला

Humorous

21

रोग

बीमारी, शारीरिक या मानसिक अस्वस्थता

Disease / Illness

22

खोपड़ी

सिर की हड्डी; यहाँ सिर के लिए प्रयुक्त

Skull / Head

23

इलाज

रोग का निवारण करने की प्रक्रिया

Treatment

24

मरीज़

रोगी, बीमार व्यक्ति

Patient

25

सलाह

सुझाव, परामर्श

Advice / Suggestion

26

हाल-चाल

स्थिति, स्थिति की जानकारी

Condition / Well-being

27

बहाना

झूठा कारण, टालने का उपाय

Excuse / Pretext

28

चालाकी

चतुराई, धोखा देने की प्रवृत्ति

Cleverness / Trickery

29

चौंकना

अचानक हैरान हो जाना

To be startled / Surprised

30

गंभीर

चिंताजनक, गम्भीर अवस्था

Serious

31

संदेह

शक, भरोसा न होना

Doubt / Suspicion

32

जानबूझकर

इरादतन, सोच-समझकर

Intentionally / Deliberately

33

राहत

आराम, असुविधा से मुक्ति

Relief

34

परीक्षण

जाँच, निरीक्षण

Test / Examination

35

निरीक्षण

देखना, परखना

Inspection / Observation

36

उपचारहीन

जिसका इलाज न हो

Untreatable

37

प्रबंध

व्यवस्था, आयोजन

Arrangement / Management

38

विशेषज्ञ

किसी क्षेत्र का जानकार व्यक्ति

Expert / Specialist

39

गलती

भूल, त्रुटि

Mistake / Error

40

भरोसा

विश्वास, यकीन

Trust / Faith

 

शब्दार्थ एवं टिप्पणी

बुलेटिन = विज्ञप्ति, समाचार प्रसारित होना

रिफ्रेशमेंट = जलपान, अल्पाहार

सूक्ष्म = महीन

स्थूल = मोटा, बड़ा

रामबाण = तुरंत असर करने वाला

इक्का = घोड़ा गाड़ी, तांगा

एहतियात = सावधानी, संयम

अपेंडिसाइटीज = एक प्रकार की बीमारी

मर्ज = रोग

निःशस्त्रीकरण = हथियारबंदी, हथियारों पर प्रतिबंध लगाना

मंदाग्नि = पाचन शक्ति कमजोर हो जाना

शूल = दर्द

कामदार = कसीदाकारी किया हुआ

नजाकत = नाजुक होने का भाव, कोमलता

नब्ज = नाड़ी

नुस्खा चिकित्सक द्वारा दी गयी दवा और सलाह की पर्ची

शिफा = फायदा, आराम, तन्दुरुस्ती

लुकमान = एक प्रसिद्ध हकीम

पाइरिया = दाँत की एक बीमारी

ओझा = तांत्रिक, नजर उतारने वाला

चिकित्सा का चक्कर पाठ का सार

यह निबंध एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो मामूली-सी तबीयत खराब होने पर डॉक्टर के पास जाता है। लेकिन जैसे-जैसे उसका ‘इलाज’ आगे बढ़ता है, वह एक जटिल और भ्रमित करने वाले चिकित्सा चक्र में फँसता चला जाता है। डॉक्टरों की सलाह, विभिन्न जाँचें, अस्पष्ट रिपोर्टें और बार-बार अस्पताल के चक्कर – यह सब मिलाकर उसका जीवन परेशानियों से भर जाता है।

लेखक ने इस प्रक्रिया में डॉक्टरों की अनावश्यक गंभीरता, जटिल भाषा, मरीजों की असहायता और चिकित्सा व्यवस्था की मशीनी और असंवेदनशील प्रवृत्ति को व्यंग्यात्मक अंदाज में प्रस्तुत किया है। निबंध का उद्देश्य यह दिखाना है कि किस प्रकार छोटी-सी बीमारी का इलाज भी कभी-कभी एक बड़ा सिरदर्द बन जाता है, और मरीज बीमारी से कम तथा इलाज से अधिक त्रस्त होता है।

मुख्य विशेषताएँ –

हास्य और व्यंग्य का सुंदर प्रयोग

चिकित्सा व्यवस्था पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी

आम आदमी की विवशता का चित्रण

सरल और प्रभावी भाषा

बोध एवं विचार

  1. सही विकल्प का चयन करो

(क) लेखक बीमार पड़ने पर कौन-सा बिस्कुट खाना चाहता है?

(1) ब्रिटेनिया

(2) पारलेजी

(3) गुडडे

(4) हंटले

उत्तर – (4) हंटले

(ख) कहानी में औषधियों का राजा और रोगों का रामबाण किसे बताया गया है?

(1) गीली मिट्टी

(2) गर्म पानी

(3) अमृत धारा

(4) मलाई

उत्तर – (3) अमृत धारा

(ग) वैद्यजी लेखक को देखने किस सवारी से आए थे?

(1) मोटर से

(2) रिक्शा से

(3) पालकी में

(4) घोड़े पर

उत्तर –  (3) पालकी में

(घ) गीली मिट्टी पेट पर लेप कर धूप में बैठने की सलाह लेखक को किसने दी?

(1) वैद्य जी ने

(2) डॉ. चूहानाथ कातरजी ने

(3) हकीम साहब ने

(4) प्रकृति चिकित्सक ने

उत्तर –  (4) प्रकृति चिकित्सक ने

  1. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो :-

(क) लेखक की आयु कितनी है?

उत्तर – लेखक की आयु पैंतीस (35) वर्ष है।

 (ख) बाग बाजार का रसगुल्ला किसके यहाँ से आया था?

उत्तर –  बाग बाजार का रसगुल्ला ‘प्रसाद’ जी के यहाँ से आया था।

(ग) सरकारी डॉक्टर ने लेखक को किस फार्मेसी से दवा मगाने की सलाह दी?

उत्तर – सरकारी डॉक्टर ने लेखक को चंद्रकला फार्मेसी से दवा मँगाने की सलाह दी।

(घ) डॉक्टर चूहानाथ कातरजी की फीस कितनी थी?

उत्तर – डॉक्टर चूहानाथ कातरजी की फीस फीस आठ रुपए थी और मोटर का एक रुपया अलग।

(ङ) लेखक को ओझा से दिखाने की सलाह किसने दी?

उत्तर – लेखक को उनकी नानी की मौसी ने ओझा से दिखाने की सलाह दी।

  1. संक्षेप में उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में)

(क) लेखक बीमार कैसे पड़ा?

उत्तर – लेखक को ‘पाइरिया’ हो गया था। उसी का जहर पेट में जा रहा है और इस कारण से वे बीमार पड़ गए।

(ख) पेट में दर्द होने पर लेखक ने कैसी दवा ली?

उत्तर – पेट में दर्द होने पर लेखक ने खुद के पास रखी, औषधियों का राजा, रोगों का रामबाण, ‘अमृतधारा’ की कुछ बूँदें पानी में डालकर दिन में दो-तीन बार पी।

(ग) अपने देश में चिकित्सा की कौन-कौन-सी पद्धतियाँ प्रचलित हैं?

उत्तर – हमारे देश में एलोपोथी, होमिओपोथी, यूनानी पद्धति, प्राकृतिक चिकित्सा, हकीम के नुस्खे, आयुर्वेद चिकत्सा तथा झाड़-फूँक द्वारा चिकित्सा पद्धति भी प्रचलित हैं।  

(घ) डॉ. चूहानाथ कातर जी ने लेखक का इलाज कैसे किया?

उत्तर –  डॉ. चूहानाथ कातर जी ने लेखक का इलाज करने के लिए पहले तो गरम पानी करवाया और एक पुर्जे पर दवा लिखी और उसे लाने को कहा। इसके बाद डॉक्टर जी ने लेखक को एक सुई लगाई और पुर्जे में लिखी दवा का सेवन करते रहने को कहा।

(ङ) वैद्य जी ने लेखक को दर्द का क्या कारण बताया?

उत्तर – वैद्यजी ने लेखक के एक हाथ की नाड़ी का पाँच मिनट तक और फिर दूसरे हाथ की नाड़ी का अध्ययन करके बोले, “वायु का प्रकोप है, यकृत से वायु घूमकर पित्ताशय में प्रवेश कर आँत में जा पहुँची है। इससे मंदाग्नि का प्रादुर्भाव होता है और किसी कारण जब भोज्य पदार्थ प्रतिहत होता है, तब शूल का कारण होता है।”

  1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में) :-

(क) लेखक ने वैद्यजी और हकीम साहब की पोशाकों के बारे में कैसा व्यंग्य किया?

उत्तर – वैद्यजी धोती पहने हुए थे और कंधे पर एक सफेद दुपट्टी डाले हुए थे। इसके अतिरिक्त शरीर पर सूत के नाम पर जनेऊ था, जिसका रंग देखकर यह शंका होती थी कि वैद्यजी जी कुश्ती लड़कर आ रहे हैं। हकीम साहब की पोशाक के बारे में लेखक कहते हैं कि सर्दी बहुत तेज नहीं थी फिर भी हकीम साहब चिकन का बंददार कुरता पहने हुए थे। सिर पर बनारसी लोटे की तरह टोपी रखी हुई थी।

(ख) चिकित्सकों के अलावा लेखक ने और किन लोगों पर कटाक्ष किया है?

उत्तर – लेखक ने चिकित्सकों के साथ-साथ परामर्श देने वाले मित्रों, पड़ोसियों, रिशतेदारों और ‘देसी इलाज’ बताने वालों पर भी कटाक्ष किया है। ये सब लोग बिना माँगे सलाह देते हैं, और बीमार को भ्रम में डालते हैं। हर कोई डॉक्टर बनता फिरता है और रोगी की हालत और बिगाड़ देते हैं।

(ग) ‘दो खुराक पीते-पीते दर्द वैसे ही गायब हो जाएगा, जैसे हिंदुस्तान से सोना गायब हो रहा है।’ भाव स्पष्ट करो।

उत्तर – इस कथन में व्यंग्य है कि दवा का असर वैसा ही अदृश्य है, जैसा देश से चुपचाप सोना गायब हो जाना। यहाँ दवा की अप्रभाविता पर और देश की आर्थिक स्थिति पर हास्यपूर्ण टिप्पणी की गई है। लेखक कहना चाहता है कि दवा से कोई फायदा नहीं होता, बस दिल बहलाया जाता है। इस व्यंग्य के माध्यम से चिकित्सा क्षेत्र और राजनीतिक क्षेत्र में पाई जाने वाली कमियों की ओर इशारा किया गया है।

(घ) ‘चिकित्सा का चक्कर’ पाठ का कौन-सा प्रसंग तुम्हें सबसे अच्छा लगा और क्यों?

उत्तर –  मुझे सबसे अच्छा प्रसंग तब लगा जब लेखक ने सलाह देने वालों की भीड़ का वर्णन किया। हर कोई अलग-अलग घरेलू नुस्खे सुझा रहा था। यह दृश्य अत्यंत हास्यपूर्ण था और यह दिखाता है कि बीमार व्यक्ति के इर्द-गिर्द कैसे एक अनचाहा ‘चिकित्सा मेला’ लग जाता है। इसी क्रम में जब लेखक की नानी की मौसी ने यह बताया कि ज़रूर लेखक पर कोई बुरी शक्ति का प्रभाव है तो यह मेरे लिए हास्यास्पद घटना बन गई।

(ङ) ‘रसगुल्ले छायावादी कविताओं की भाँति सूक्ष्म नहीं थे, स्थूल थे।’

यह हास्य-व्यंग्य के प्रसंग प्रसाद जी के यहाँ से आये बाग बाजार के रसगुल्ले के संबंध में है, जिनमें से छह बड़े-बड़े रसगुल्ले लेखक ने खाना खा चुकने के बाद खाये थे। इसी तरह पाठ से पाँच हास्य-व्यंग्य के प्रसंग छाँटकर लिखो।

उत्तर – वैद्य-हकीम की पोशाकों का वर्णन

डॉक्टर द्वारा दो रुपये की फीस लेने की तुलना जुर्माने से

मित्रों की सलाहों की भरमार

रोग के बारे में तरह-तरह की राय

लेखक का छह रसगुल्ले खाना और उन्हें “स्थूल” बताना

  1. किसने, किससे और कब कहा?

(क) अभी अस्पताल खुला न होगा, नहीं हो आपको दवा मँगानी न पड़ती।

उत्तर – यह बात पहले डॉक्टर ने लेखक से तब कही, जब लेखक को पेट दर्द के कारण अस्पताल जाना पड़ा और डॉक्टर को चिंता हुई कि उन्हें इतनी सुबह दवा बाहर से मँगानी पड़ेगी।

(ख) यार! आप तो ऐसी बात करते हैं, गोया जिंदगी से बेजार हो गए हैं।

उत्तर – यह बात लेखक से हकीम साहब ने काही, जब लेखक लगातार दर्द और चिकित्सा के झंझटों से परेशान होकर दुखी भाव से बातें कर रहे थे।

(ग) मैं तो पहले ही सोच रही थी कि यह कुछ ऊपरी खेल है।

उत्तर – यह बात लेखक की नानी की मौसी ने लेखक से कही, जब तमाम दवाओं के बाद भी लेखक की हालत नहीं सुधरी, तब उन्होंने यह मान लिया कि शायद कोई ऊपरी बाधा (जैसे भूत-प्रेत, चुड़ैल आदि) है।

(घ) तुम्हारी बुद्धि कहीं घास चरने गयी है?

उत्तर – यह बात लेखक की पत्नी ने लेखक से कही, जब लेखक ने अपने दाँत उखड़वाने के लिए अपनी पत्नी से पैसे माँगे।

 

भाषा एवं व्याकरण ज्ञान

  1. निम्नांकित संज्ञाओं के स्त्रीलिंग रूप लिखो :-

डॉक्टर, कवि, विद्वान, आचार्य, पंडित, श्रीमान्, ससुर, नाना, मौसा, भाग्यवान

उत्तर – डॉक्टर – डॉक्टर (डॉक्टरनी)

कवि – कवयित्री

विद्वान – विदूषी

आचार्य – आचार्या / आचार्याणी

पंडित – पंडिता

श्रीमान् – श्रीमती

ससुर – सास

नाना – नानी

मौसा – मौसी

भाग्यवान – भाग्यवती

  1. निम्नांकित मुहावरों के अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग करो

दिमाग चाटना, कतर-व्योंत करना, पिण्ड छुड़ाना, रफूचक्कर होना, कान काटना, हवा हो जाना, करवटें बदलना

उत्तर – दिमाग चाटना

अर्थ – बार-बार तंग करना, परेशान करना

वाक्य – वह बच्चा सुबह से मेरा दिमाग चाट रहा है कि उसे नया खिलौना चाहिए।

कतर-व्योंत करना

अर्थ – काट-छाँट या फेरबदल करना

वाक्य – उसने मेरी कहानी में इतनी कतर-व्योंत कर दी कि असली मतलब ही बदल गया।

पिण्ड छुड़ाना

अर्थ – पीछा छुड़ाना

वाक्य – वह हर बार मदद माँगता है, अब मैंने उससे पिण्ड छुड़ा लिया है।

रफूचक्कर होना

अर्थ – चुपचाप या अचानक भाग जाना

वाक्य – चोरी करने के बाद चोर रफूचक्कर हो गया।

कान काटना

अर्थ – चालाकी से धोखा देना

वाक्य – वह इतना चालाक है कि सबका कान काट ले और किसी को खबर भी न हो।

हवा हो जाना

अर्थ – अचानक गायब हो जाना

वाक्य – जैसे ही मास्टर जी आए, बच्चे तो हवा हो गए।

करवटें बदलना

अर्थ – नींद न आना

वाक्य – परीक्षा की चिंता में वह सारी रात करवटें बदलता रहा।

  1. वैद्य जी ने कुछ न पूछा। पहले नाड़ी हाथ में ली। पाँच मिनट तक एक हाथ की नाड़ी देखी, फिर दूसरे हाथ की। बोले ‘वायु का प्रकोप है, यकृत से वायु घूमकर पित्ताशय में प्रवेश कर आँत में जा पहुँचा है।

इन पँक्तियों में रेखांकित शब्द किसी न किसी कारक की विभक्तियों को सूचित करते हैं। इस तरह कारक के आठ भेदों के अलग-अलग विभक्तियाँ होती हैं। कारक के सभी विभक्तियों का प्रयोग करते हुए आठ वाक्य लिखो।

उत्तर – कर्ता कारक (ने)

– सीता ने रामायण पढ़ी।

कर्म कारक (को)

– मैंने किताब को पढ़ा।

करण कारक (से)

– उसने छुरी से फल काटा।

संप्रदान कारक (के लिए / को)

– माँ ने बेटे के लिए मिठाई बनाई।

अपादान कारक (से)

– वह गाँव से शहर चला गया।

संबंध कारक (का / की / के)

– रवि की किताब बहुत रोचक है।

अधिकरण कारक (में / पर / में से)

– किताब अलमारी में रखी है।

संबोधन कारक (हे / अरे आदि)

– हे मित्र! तुम्हारा स्वागत है।

 

  1. ईमानदार’, ‘कामदार’ जैसे शब्दों के अंत में ‘दार’ प्रत्यय लगे हैं। ‘दार’ प्रत्यय लगाकर अन्य पाँच शब्द लिखो।

उत्तर – किराएदार – किराए पर वाला

हक़दार – अधिकार रखने वाला

ज़िम्मेदार – जिम्मेदारी लेने वाला

वफादार – निष्ठावान, विश्वास योग्य

थानेदार – थाने का अधिकारी

  1. पाठ में आये अरबी-फारसी भाषा के किन्हीं दस शब्दों को छाँटकर उनका हिंदी में अर्थ लिखो।

उत्तर – हकीम – वैद्य / यूनानी पद्धति का चिकित्सक

दवा – औषधि

बाज़ार – मंडी / बाजार

असर – प्रभाव

हुक्म – आदेश

अस्पताल – चिकित्सालय

बीमार – रोगी

खुराक – मात्रा / डोज़

इलाज – उपचार

तकलीफ़ – परेशानी / कष्ट

 

योग्यता – विस्तार

1.इस पाठ में लेखक ने डॉक्टर, वैद्य और हकीम की वेशभूषा का वर्णन किया है। यह मानकर कि ओझा नजर उतारने के लिए आया है, उसके रूप- स्वरूप और वेशभूषा का वर्णन करो।

उत्तर – ओझा का रूप-स्वरूप और वेशभूषा –

ओझा मानो किसी रहस्यमय जंगल से निकलकर सीधे लेखक के घर आ धमका हो। सिर पर पीले रंग का मैला-सा अंगोछा कसकर बाँधा था, जिससे बाल तो ढके नहीं, उल्टे और भी बिखरे हुए लग रहे थे। गले में नींबू-मिर्च की माला लटक रही थी और एक हाथ में जटा-जूट से सजी हुई झाड़ू जैसी जड़ी-बूटी पकड़ी थी। आँखों में अजीब-सी चमक, जैसे भूतों की यूनियन से ताज़ा सदस्यता लेकर आया हो। गले से भोंपू जैसी आवाज़ में मंत्र बड़बड़ा रहा था, मानो बीमारी को नहीं, आसपास की हवा को ही डरा देगा। पांव में चप्पलें बेमेल थीं और गले में लटक रही थी बकरी की छोटी घंटी। कुल मिलाकर वह ऐसा लग रहा था, जैसे हॉरर फिल्म की शूटिंग अधूरी छोड़कर सीधे मरीज उतारने चला आया हो।

  1. पद्मसिंह शर्मा का ‘मुझे मेरे मित्रों से बचाओ’ तथा हरिशंकर परसाई का ‘कचहरी जाने वाला जानवर’ नामक हास्य रचना पढ़ो।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।  

  1. चिकित्सा का चक्कर’ नामक हास्य लेख को नाटक रूप में लिखिए और अपने सहपाठियों की मदद से कक्षा में उसका अभिनय करो।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।  

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए-

प्रश्न – लेखक किस कारण बीमार होना चाहता था?

उत्तर – लेखक चाहता था कि लोग उसकी बीमारी में हालचाल पूछें और घर पर सेवा हो।

प्रश्न – लेखक ने अमृतधारा की कितनी बार खुराक ली?

उत्तर – लेखक ने अमृतधारा की तीन बार खुराक ली।

प्रश्न – पहले डॉक्टर ने लेखक को किस मेडिकल शॉप से दवा मगवाने को कहा?

उत्तर – पहले डॉक्टर ने लेखक को चंद्रकला फार्मेसी से दवा मँगवाने को कहा।

प्रश्न – चूहानाथ कातरजी की फीस कितनी थी?

उत्तर – चूहानाथ कातरजी की फीस आठ रुपये फीस और एक रुपया मोटर का।

प्रश्न – वैद्यजी ने रोग का कारण क्या बताया?

उत्तर – वैद्यजी ने बताया कि वायु यकृत से आंत में पहुँचकर शूल का कारण बनी है।

प्रश्न – लेखक ने ‘आप्टे’ का कोश क्यों मँगवाया?

उत्तर – लेखक वैद्य के कठिन शब्दों का अर्थ समझना चाहता था।

प्रश्न – हकीम साहब ने अपने नुस्खे के बारे में क्या दावा किया?

उत्तर – हकीम साहब ने कहा कि दवा पीते ही इंशा अल्लाह शिफा होगी।

प्रश्न – लेखक की नानी की मौसी ने बीमारी का कारण क्या बताया?

उत्तर – लेखक की नानी की मौसी ने इसे ऊपरी बाधा और चुड़ैल का असर बताया।

 

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन पंक्तियों में लिखिए-

प्रश्न – लेखक को बीमार लोगों को देखकर कैसा अनुभव होता था और क्यों?

उत्तर – लेखक को बीमार लोगों को देखकर इच्छा होती थी कि वह भी बीमार हो जाए, ताकि लोग उसकी सेवा करें, खास खाने को मिले और लोग हालचाल पूछें।

प्रश्न – चूहानाथ कातरजी ने लेखक को क्या सलाह दी और क्यों?

उत्तर – डॉ. कातरजी ने कहा कि यदि छह घंटे की देरी होती तो स्थिति गंभीर हो सकती थी, इसलिए उन्होंने दवा जारी रखने की सलाह दी और अपेंडिसाइटिस जैसी बीमारियों का डर दिखाया।

प्रश्न – वैद्यजी की चिकित्सा पद्धति को लेखक ने कैसे देखा और प्रतिक्रिया दी?

उत्तर – वैद्यजी के कठिन शब्द और शास्त्रों के उद्धरण लेखक को समझ नहीं आए, जिससे लेखक झुंझला गया और उन्होंने ‘आप्टे’ का कोश मँगवाया यह जानने के लिए कि उन्हें हुआ क्या है।

प्रश्न – लेखक की बीमारी पर हकीम साहब की प्रतिक्रिया और पोशाक कैसी थी?

उत्तर – हकीम साहब बहुत अंदाज़ और नजाकत से पेश आए; उनकी पोशाक चिकन कुरता, बनारसी टोपी और खास जूते वाली थी, और उन्होंने लेखक को ताजगी वाली दवा देने का दावा किया।

प्रश्न – लेखक के घरवालों और मित्रों ने उपचार के लिए क्या-क्या सुझाव दिए?

उत्तर – किसी ने एलोपैथी, किसी ने आयुर्वेद, होम्योपैथी, जलचिकित्सा और यहाँ तक कि ओझा से झाड़-फूँक तक की सलाह दी, जिससे लेखक और अधिक परेशान हो गया।

 

 

 

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