मणि – कांचन संयोग – कहानी का परिचय
वैष्णव- गुरु श्रीमंत शंकरदेव और शाक्त माधवदेव का महामिलन असम के सांस्कृतिक इतिहास की कदाचित् सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना है। इस अतुल्य घटना से एक ओर दोनों महान विभूतियों के जीवन और कर्म प्रभावित हुए तो दूसरी ओर इसके परिणामस्वरूप असम-भूमि का सांस्कृतिक जीवन व्यापक रूप से संजीवित हो उठा। प्रस्तुत लेख में इस महामिलन की पृष्ठभूमि में घटित घटनाओं का सजीव एवं रोचक वर्णन किया गया है। श्री माधवदेव की मातृ-भक्ति, बलि-विधान की असारता, पूर्ण समर्पण पर पर आधारित भक्ति की महत्ता, गुरु-शिष्या का पवित्र संबंध जैसी बातें इस लेख में मूर्त हो उठी हैं।
मणि – कांचन संयोग
महाबाहु ब्रह्मपुत्र की गोद में बसा विश्व का सबसे बड़ा नदी- द्वीप है माजुलि। इसी में स्थित है धुवाहाता – बेलगुरि नामक वह पवित्र स्थान, जहाँ एकशरण भागवती वैष्णव धर्म के प्रवर्तक श्रीमंत शंकरदेव (ई. 1449-1568) और परम शाक्त माधवदेव (ई. 1489-1596) का महामिलन हुआ था। यह महामिलन मध्ययुगीन असम की ही नहीं, अपितु असम-भूमि के संपूर्ण सांस्कृतिक इतिहास की संभवतः सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना है। उन दिनों संत शंकरदेव शक्ति की उपासना, तंत्र-मंत्र, बलि-विधान एवं अनेकानेक कठोर धार्मिक बाह्याचारों से जकड़े हुए असमीया समाज को मुक्ति का नया पथ दिखाने तथा उसे आध्यात्मिक उन्नति के सरलतम मार्ग पर ले चलने के महान प्रयास में जुटे हुए थे। ऐसी स्थिति में योग्य गुरु शंकर को योग्य शिष्य माधव मिल गए।
शंकर- माधव का मिलन पावन असम-भूमि के लिए सोने में सुगंध – जैसा साबित हुआ। इस मिलन से भारतवर्ष के इस पूर्वोत्तरी भू-खंड में भागवती वैष्णव-धर्म अथवा एकशरण नाम-धर्म के प्रचार- प्रचार कार्य में एक अद्भुत गति आ गई थी। शंकर – माधव के सम्मिलित प्रयास से इस पावन कार्य में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोत्तरी होने लगी थी। सांसारिक जीवन में शंकर-माधव मामा-भांजे थे, पर इस महामिलन के उपरांत दोनों गुरु-शिष्य के पवित्र बंधन में बँध गए थे। इसका साक्षी बना था ब्रह्मा का वरद पुत्र ब्रह्मपुत्र नद। महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र अपनी गोद में मामा-भांजे को गुरु-शिष्य बनते देखकर अत्यंत हर्षित हो उठा था। उसने इस महामिलन के उमंग-रस को बंगाल की खाड़ी से होकर हिंद महासागर तक पहुँचाने के लिए अपनी लोहित जल – धारा को आदेश दिया था।
असमीया साहित्य के समर्थ हस्ताक्षर रसराज लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा ने शंकर-माधव के महामिलन को ‘मणि- कांचन संयोग’ की आख्या से अभिहित किया है। इस महामिलन की भूमिका के रूप में घटित घटनाएँ बड़ी ही रोचक हैं।
श्रीमंत शंकरदेव की चचेरी बहन मनोरमा और बहनोई गोविन्द गिरि अथवा दीघल – पुरीया गिरि के सुयोग्य पुत्र थे माधवदेव। अपनी सारी पैत्रिक संपत्ति कोचबिहार की पश्चिमी सीमा पर स्थित बांडुका में बसे बड़े भाई दामोदर को सौंपकर माधवदेव जब भांडारीडुबि या टेंबुवानि की ओर वापस आ रहे थे तो उनको खबर मिली कि उनकी माँ सख्त बीमार हैं। भांडारीडुबि में बहन उर्वशी और बहनोई रामदास के पास रहनेवाली अपनी विधवा माँ के स्वास्थ्य को लेकर माधवदेव अत्यंत चिंतित हो उठे। उन्होंने तुरंत मनौती मानी ‘हे देवी गोसानी! तुम्हें सफेद बकरों का एक जोड़ा भेंट करूँगा। माँ को शीघ्र स्वस्थ कर दो।’
माधवदेव जब बहनोई रामदास के घर पहुँचे तो उन्होंने पाया कि देवी गोसानी की कृपा से उनकी माँ स्वस्थ होने लगी थीं। यह देखकर माधवदेव की जान में जान आई। उन्होंने मन ही मन देवी माता को प्रणाम करके उनके प्रति अकृत्रिम कृतज्ञता प्रकट की। थोड़ी ही दिनों में माँ पूरी तरह स्वस्थ हो उठीं तो माधवदेव ने मनौती के अनुसार सफेद बकरों का एक जोड़ा खरीद कर रखने के लिए बहनोई रामदास से अनुरोध किया। इसके लिए आवश्यक धन देकर माधवदेव व्यापार के लिए निकल पड़े।
व्यापार से वापस आकर माधवदेव ने बहनोई रामदास से बकरों की बात पूछी तो रामदास ने उत्तर दिया- ‘मोल-भाव करके बकरों को मालिक के पास ही रख छोड़ा है।’ देवी पूजा के दिन एकदम निकट आ गए तो माधवदेव ने बकरों को ले आने का प्रस्ताव रखा। तब बहनोई रामदास ने उत्तर दिया- ‘बकरे लाकर क्या करोगे? इस लोक में बकरा काटनेवाले को उस लोक में बकरे के हाथों कटना पड़ता है।’ क्रोधित होकर माधवदेव ने बकरे न खरीदने का कारण पूछा तो रामदास ने पुन: कहा- ‘बलि चढ़ाना विनाशकारी कार्य है। उससे किसकी प्राप्ति होगी? दूसरी जीव की हत्या बेकार ही तुम क्यों करोगे?’
गुरु शंकरदेव से मिली ज्ञान – ज्योति के बल पर रामदास ने माधवदेव को बहुत समझाया, पर उन बातों से माधवदेव जरा भी प्रभावित नहीं हुए, बल्कि उनका ज्ञान-दंभ जाग उठा। बड़ी दृढ़ता से वे बहनोई साहब से बोले- ‘अब तक मैंने कितने ही धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया है। तुम्हारी कही हुई बातें तो कहीं नहीं मिली हैं। सबमें बलि-विधान का ही निर्देश है। तुम्हें किस शास्त्र में ऐसी बातें मिली हैं’- जरा मुझे भी तो बताओ।’
माधवदेव के ज्ञान-दंभ से रामदास थोड़ा आहत हुए, पर अप्रसन्नता व्यक्त किए बिना ही बोले – ‘तुम और हम क्यों ऐसे ही शास्त्रार्थ करें? भोजन के बाद चलो उनके पास ही चलें, जिनसे हमने ये बातें सुनी हैं। उनके सामने तुम बोल भी न पाओगे। वे एक ही बात से तुम्हें निरुत्तर कर देंगे।’ माधवदेव का ज्ञान – दंभ इतना बढ़ रहा था कि फौरन चलने को तैयार हुए और बोले – ‘चलो, उनके पास ही चलें, शास्त्रार्थ में मुझे कैसे निरुत्तर करते हैं, वह तो देखें।’ उस समय सूरज डूबने को हो रहा था, अतः अगले दिन सबेरे ही चलने की बात तय हुई |
अगले दिन भोर में ही रामदास और माधवदेव धुवाहाता – बेलगुरि सत्र में श्रीमंत शंकरदेव के पास पहुँचे। आँगन में विराजमान शंकरदेव को प्रणाम करने के पश्चात् दोनों एक ओर बैठ गए। रामदास ने बकरों की बलि वाले प्रसंग को शंकर गुरु से यह भी कहा- ‘माधवदेव आप से शास्त्रार्थ करने के लिए आया है।’ यह सुनकर शंकर गुरु मुस्कराए और रामदास से माधवदेव का विस्तृत परिचय पूछा। रामदास ने कहा- ‘यह दीघल – पुरीया गिरि का पुत्र माधव है।’
माधवदेव का परिचय पाकर शंकरदेव बड़े ही प्रसन्न हुए। अपना भांजा इतना बड़ा और गुणी – ज्ञानी बन गया है, यह जानकर उनका हृदय पुलकित हो उठा। उन्होंने अपने योग्य भांजे की शास्त्रार्थ – प्यास बुझानी चाही। दोनों में शास्त्रार्थ होने लगा। शंकरदेव निवृत्ति-मार्ग के पक्ष में और माधवदेव प्रवृत्ति-मार्ग के पक्ष में विविध शास्त्रों से प्रमाण प्रस्तुत करते रहे। शास्त्रार्थ चलता रहा, सूर्य ढलने लगा, पर शास्त्रार्थ समाप्त नहीं हुआ। कोई भी कम नहीं थे। अंत में श्रीमंत शंकरदेव ने ‘भागवत’ के निम्नोक्त श्लोक को उद्धृत किया तो माधवदेव निरुत्तर हो गए –
‘यथा तरोर्मूलनिषेचनेन तृप्यन्ति तत्स्कंधभुजोपशाखा:। प्राणोपहाराच्च यथेन्द्रियाणां तथैव सर्वार्च्चनमच्युतेभ्यः॥’ (4/39/24)
यानी, जिस प्रकार वृक्ष के मूल को सींचने से टहनियाँ, पत्ते, फूल, फल सब संजीवित होते हैं अथवा अन्न ग्रहण के जरिए प्राण का पोषण करने से मानव-शरीर की सारी इंद्रियाँ तृप्त होती हैं, उसी प्रकार परब्रह्म कृष्ण की उपासना करने से सारे देवी-देवता अपने-आप संतुष्ट हो जाते हैं।
ज्ञानी माधवदेव ने ध्यानपूर्वक इस पुण्य – श्लोक को सुना, इस पर चिंतन-मनन किया, फिर निष्कर्ष पर पहुँचे कि शंकरदेव का मत ही पूर्णत: तर्क-सम्मत एवं सत्य है। उनका ज्ञान-दंभ पूर्णत: दूर हुआ। वे भलीभाँति समझ गए कि परब्रह्म कृष्ण ही एक मात्र आराध्य देव हैं. ‘कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्’ उनकी शरण में ही जीवों का कल्याण निहित है। कृष्ण-संबंधी ज्ञान – भक्ति के दाता श्रीमंत शंकरदेव को गुरु मानकर माधवदेव ने तुरंत गद्गद् चित्त से प्रणाम किया। अब शंकरदेव अत्यधिक आनंद के साथ भागवत के पूर्वोक्त श्लोक का अर्थ विस्तारपूर्वक बताने लगे। उनकी अमृतोपम वाणी सुनकर माधवदेव आह्लादित हो उठे।
दूसरे ही दिन प्रभात बेला में माधवदेव ने विधिपूर्वक शंकरदेव को गुरु मानकर कृष्ण के चरणों में शरण ले ली। शंकरदेव ने माधवदेव को शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिया और आनंदमग्न होकर वे बोल उठे- ‘तुम्हें पाकर आज मैं पूरा हुआ।’ सचमुच आगे चलकर शंकरदेव और माधवदेव एक-दूसरे के पूरक बने।
शंकर- माधव के मिलनोपरांत एकशरण नाम-धर्म का प्रचार- प्रसार तेजी से बढ़ता गया और कृष्ण-भक्ति की धाराएँ जन-मन को भिगोती हुई चारों दिशाओं में बहने लगीं। माधवदेव ने कृष्ण-भक्ति, गुरु-भक्ति और एकशरण नाम-धर्म के प्रचार-प्रसार कार्य में अपने को पूरी तरह समर्पित कर दिया। अतः माधवदेव शंकर गुरु के प्रिय शिष्य ही नहीं रहे, अपितु ‘माधव-बांधव’ बन गए। इसीलिए श्रीमंत शंकरदेव ने अपने पुत्र रामानंद और हरिचरण के बदले पूर्ण योग्यता के आधार पर माधवदेव को धर्म-गुरु मनोनीत किया। 1568 ई. के भाद्र महीने में शंकर गुरु के तिरोभाव के पश्चात् माधवदेव ने धर्म-गुरु का गुरु-भार संभाला। आपने 1596 ई. के भाद्र महीने में अपने तिरोभाव के समय तक इस दायित्व को कुशलतापूर्वक निबाहा।
अतः हम कह सकते हैं कि पवित्र स्थान धुवाहाता – बेलगुरि में हुए दोनों महापुरुषों के महामिलन ने असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक सुनहरे अध्याय का श्रीगणेश कर दिया था। भक्ति-धर्म के प्रचार-कार्य में श्री माधवदेव का सहयोग पाने के पश्चात् श्रीमंत शंकरदेव अधिक उन्मुक्त भाव से साहित्य-सृष्टि, संगीत – रचना आदि के जरिए असमीया भाषा-साहित्य-संस्कृति को परिपुष्ट बनाने में सक्षम हुए। उन्होंने ‘कीर्तन – घोषा’, ‘गुणमाला’, ‘भक्ति- प्रदीप’, ‘हरिश्चंद्र उपाख्यान’, ‘रुक्मिणी-हरण काव्य’, ‘बलिछलन’, ‘कुरुक्षेत्र’ आदि काव्य-रचनाएँ की हैं। आपने ‘पत्नीप्रसाद’, ‘कालियदमन’, ‘केलिगोपाल’, ‘रुक्मिणी- हरण’, ‘पारिजात – हरण’ और ‘रामविजय’ नामक छह अंकीया नाट भी रचे हैं। कहा जाता है कि उन्होंने बारह कोड़ी ‘बरगीत’ भी रचे थे, जिनमें से लगभग पैंतीस बरगीत ही आज उपलब्ध हैं।
इसी प्रकार योग्य गुरु से असीम प्रेरणा पाने के कारण श्री श्री माधवदेव भी अपनी अनमोल देन से असमीया समाज को हमेशा के लिए गौरव के अधिकारी बनाने के काम में सफल प्रमाणित हुए।
आपकी काव्य-रचनाओं में ‘नामघोषा’, ‘जन्मरहस्य’, ‘राजसूय’, ‘भक्ति रत्नावली’ आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। आपने ‘चोर – धरा’, ‘पिंपरा – गुचोवा’, ‘भोजन – बिहार’, ‘भूमि-लेटोवा’, ‘दधि-मंथन’ आदि नाटक भी रचे हैं। गुरु की आज्ञा से आपने नौ कोड़ी ग्यारह बरगीत भी रचे, जिनमें से लगभग एक सौ इक्यासी बरगीत आज उपलब्ध हैं।
असमीया जाति शंकरगुरु और माधवगुरु दोनों की आभा से उद्भाषित है। जिस प्रकार धरती के लिए सूर्य और चाँद की किरणों का अपना-अपना महत्त्व है, उसी प्रकार महान असमीया समाज के लिए शंकर – भास्कर और माधव – मृगांक की प्रतिभाएँ अपने-अपने ढंग से कल्पतरु के समान कल्याणकारी हैं। उत्तर भारतीय समाज में ‘रामचरितमानस’ का आदर जितना है, असमीया समाज में ‘कीर्तनघोषा- नामघोषा’ का भी आदर उतना ही है।
क्रम | शब्द / पद | हिंदी अर्थ | English Meaning |
1 | मणि-कांचन संयोग | अनमोल और श्रेष्ठ व्यक्तियों का मिलन | Auspicious union of gem-like personalities |
2 | महाबाहु | बलशाली, महान बाहों वाला | Mighty-armed |
3 | प्रवर्तक | किसी नई परंपरा या विचारधारा को शुरू करने वाला | Founder / Initiator |
4 | महामिलन | महान मिलन | Great union |
5 | बाह्याचार | बाहरी धार्मिक कर्मकांड | External rituals |
6 | सोने में सुगंध | पहले से श्रेष्ठ चीज़ में और विशेषता | Like adding fragrance to gold |
7 | लोहित जलधारा | लालिमा लिए जल की धारा | Red-tinted water stream |
8 | आख्या | नाम या संबोधन | Title / Designation |
9 | सुयोग्य | योग्यतम, अत्यंत योग्य | Most worthy |
10 | मनौती | मन से की गई मन्नत | Vow / Wish |
11 | कृतज्ञता | आभार, धन्यवाद का भाव | Gratitude |
12 | ज्ञान-दंभ | ज्ञान का घमंड | Arrogance of knowledge |
13 | तिरोभाव | देह त्यागना, मृत्यु | Demise / Passing away |
14 | परब्रह्म | परमात्मा, सर्वश्रेष्ठ ब्रह्म | Supreme God |
15 | आराध्य | पूज्य, उपासना योग्य | Worship-worthy |
16 | निरुत्तर | जिसका उत्तर न दिया जा सके | Unanswerable / Silenced |
17 | निवृत्ति मार्ग | सांसारिक मोह से दूर रहने का मार्ग | Path of renunciation |
18 | प्रवृत्ति मार्ग | कर्म और संसार में लगे रहने का मार्ग | Path of action / worldliness |
19 | अमृतोपम | अमृत के समान | Nectar-like |
20 | आह्लादित | अत्यंत प्रसन्न | Overjoyed |
21 | पूरक | एक-दूसरे को पूर्ण करने वाला | Complementary |
22 | कल्पतरु | इच्छापूर्ति करने वाला वृक्ष | Wish-fulfilling tree |
23 | उद्भाषित | प्रकाशित, चमकता हुआ | Illuminated |
24 | अंकीया नाट | एक विशेष प्रकार का धार्मिक नाटक | A traditional one-act play |
25 | बरगीत | भक्ति पर आधारित विशेष असमीया गीत | Devotional Assamese song |
26 | गौरव के अधिकारी | गर्व का पात्र | Worthy of pride |
27 | असमीया | असम से संबंधित | Assamese |
28 | भक्ति-धर्म | भगवान की भक्ति पर आधारित धर्म | Devotional religion |
29 | भागवत | श्रीमद्भागवत पुराण | Bhagavata Purana |
30 | श्रद्धा-समर्पण | आस्था और आत्मसमर्पण | Faith and surrender |
31 | असम-भूमि | असम की धरती | Land of Assam |
32 | उपासना | पूजा, साधना | Worship |
33 | बलि-विधान | बलिदान की परंपरा | Sacrificial custom |
34 | गति आ जाना | तेज़ी से विकास होना | To gain momentum |
35 | सम्मिलित प्रयास | मिलकर किया गया कार्य | Joint effort |
36 | साक्षी बनना | गवाह होना | To become witness |
37 | हर्षित | आनंदित | Joyful |
38 | उमंग-रस | उत्साह का रस | Ecstasy / Joyful flow |
39 | अभिहित करना | नाम देना, संज्ञा देना | To designate / to describe |
40 | भूमिका | प्रारंभिक स्थिति | Prelude / Background |
41 | चिंतित | परेशान | Worried |
42 | अकृत्रिम | सच्चा, प्राकृतिक | Genuine / Unfeigned |
43 | प्रणाम | नमन, अभिवादन | Salutation |
44 | अनुरोध | प्रार्थना, निवेदन | Request |
45 | सौंपना | देना, हस्तांतरित करना | To hand over |
46 | मोल-भाव | कीमत तय करने की प्रक्रिया | Bargaining |
47 | विनाशकारी | हानिकारक, नष्ट करने वाला | Destructive |
48 | दंभ | घमंड | Arrogance |
49 | शास्त्रार्थ | धार्मिक-दार्शनिक वाद-विवाद | Scriptural debate |
50 | फौरन | तुरंत | Immediately |
51 | तर्क-सम्मत | तर्क के अनुसार उचित | Logically valid |
52 | निष्कर्ष | अंतिम निर्णय | Conclusion |
53 | शरण लेना | संरक्षण में जाना | To take refuge |
54 | गद्गद् चित्त | भावुक हृदय | Emotionally moved |
55 | आभा | तेज़, चमक | Radiance |
56 | उद्भव | उत्पत्ति | Origin |
57 | भास्कर | सूर्य | Sun |
58 | मृगांक | चंद्रमा | Moon |
59 | देन | योगदान | Contribution |
60 | गौरवशाली | सम्मानजनक, प्रशंसनीय | Glorious |
शब्दार्थ एवं टिप्पणी
कदाचित् = संभवतः, शायद
पावन = पवित्र
सोने में सुगंध = एक उत्तम वस्तु में और एक उत्तम गुण का आ जाना
प्रयास = चेष्टा
बढ़ोत्तरी = वृद्धि
वरद = शुभ, वर देने वाला
उमंग = उत्साह, जोश
मनौती = मन्नत
जान में जान आना = राहत मिलना
फौरन = तुरंत, शीघ्र ही
प्रवृत्ति = सांसारिक बातों के प्रति झुकाव, आसक्ति
निवृत्ति = सांसारिक बातों के प्रति विराग-भाव, अनासक्ति
तिरोभाव= महापुरुष का देहावसान
कोड़ी = बीस का समूह, बीसी
मृगांक = चाँद, चंद्र
मणि – कांचन संयोग – कहानी का सार
यह पाठ असम की सांस्कृतिक और धार्मिक जागरण की ऐतिहासिक घटना – श्रीमंत शंकरदेव और माधवदेव के पावन मिलन का वर्णन करता है। यह मिलन माजुलि द्वीप के धुवाहाता-बेलगुरि नामक स्थान पर हुआ, जिसे असम के इतिहास में ‘मणि-कांचन संयोग’ कहा गया है। शंकरदेव उस समय असम को तंत्र, बलि और अंधविश्वासों से मुक्त कर एकशरण नामधर्म के प्रचार-प्रसार में लगे थे। उसी समय उनके योग्य शिष्य के रूप में माधवदेव का आगमन हुआ। प्रारंभ में माधवदेव शक्ति-पूजा और बलि-विधान में विश्वास करते थे और शंकरदेव की शिक्षाओं से सहमत नहीं थे। एक दिन बकरों की बलि को लेकर हुए विवाद के बाद उनके बहनोई रामदास उन्हें शंकरदेव के पास ले गए।
दोनों में गहन शास्त्रार्थ हुआ, जिसमें शंकरदेव ने भागवत का एक श्लोक उद्धृत किया — जिससे माधवदेव को आत्मबोध हुआ और उन्होंने शंकरदेव को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। इसके बाद माधवदेव ने पूरी निष्ठा से कृष्ण-भक्ति, गुरु-भक्ति और एकशरण धर्म के प्रचार-प्रसार में जीवन समर्पित कर दिया। इस महामिलन के बाद शंकरदेव ने अधिक स्वतंत्र होकर साहित्य-संगीत और धर्म प्रचार का कार्य किया, जबकि माधवदेव उनके सच्चे उत्तराधिकारी के रूप में उभरे। दोनों की रचनाएँ, जैसे शंकरदेव की कीर्तनघोषा और माधवदेव की नामघोषा, असमीया समाज में अत्यंत पूज्यनीय हैं।
अंत में, लेखक दोनों महापुरुषों की तुलना सूर्य और चंद्रमा से करता है और कहता है कि उनकी आभा से असमीया संस्कृति सदैव प्रकाशित रहेगी।
बोध एवं विचार
(अ) सही विकल्प का चयन करो :-
- धुवाहाता – बेलगुरि नामक पवित्र स्थान कहाँ स्थित है?
(क) बरपेटा में
(ख) माजुलि में
(ग) पाटबाउसी में
(घ) कोचबिहार में
उत्तर – (ख) माजुलि में
- शंकरदेव के साथ शास्त्रार्थ से पहले माधवदेव थे –
(क) शाक्त
(ख) शैव
(ग) वैष्णव
(घ) सूर्योपासक
उत्तर – (क) शाक्त
- सांसारिक जीवन में शंकरदेव और माधवदेव का कैसा संबंध था?
(क) चाचा-भीतजे
(ख) भाई-भाई का
(ग) मामा-भांजे का
(घ) मित्र – मित्र का
उत्तर – (ग) मामा-भांजे का
- शंकरदेव के मुँह से किस ग्रंथ का श्लोक सुनकर माधवदेव निरुत्तर हो गए थे?
(क) ‘गीता’ का
(ख) ‘रामायण’ का
(ग) ‘महाभारत’ का
(घ) ‘भागवत’ का
उत्तर – (घ) ‘भागवत’ का
- किसने किससे कहा, बताओ :-
(क) ‘माँ को शीघ्र स्वस्थ कर दो।’
उत्तर – माधवदेव ने देवी गोसानी से कहा।
(ख) ‘बलि चढ़ाना विनाशकारी कार्य है।’
उत्तर – रामदास ने माधवदेव से कहा।
(ग) ‘अब तक मैंने कितने ही धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया है।’
उत्तर – माधवदेव ने रामदास से कहा।
(घ) ‘वे एक ही बात से तुम्हें निरुत्तर कर देंगे। ‘
उत्तर – रामदास ने माधवदेव से कहा।
(ङ) ‘यह दीघल – पुरीया गिरि का पुत्र माधव है। ‘
उत्तर – रामदास ने श्रीमंत शंकरदेव से कहा।
- पूर्ण वाक्य में उत्तर दो :-
(क) विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुलि कहाँ बसा हुआ है?
उत्तर – विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुलि महाबाहु ब्रह्मपुत्र नदी की गोद में बसा हुआ है।
(ख) श्रीमंत शंकरदेव का जीवन-काल किस ई. से किस ई. तक व्याप्त है?
उत्तर – श्रीमंत शंकरदेव का जीवन-काल ई. 1449 से ई. 1568 तक व्याप्त है।
(ग) शंकर – माधव का मिलना असम-भूमि के लिए कैसा साबित हुआ?
उत्तर – शंकर – माधव का मिलन असम-भूमि के लिए सोने में सुगंध जैसा साबित हुआ।
(घ) महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र क्या देखकर अत्यंत हर्षित हो उठा था?
उत्तर – महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र यह देखकर अत्यंत हर्षित हो उठा था कि मामा-भांजे शंकरदेव और माधवदेव गुरु-शिष्य के पवित्र बंधन में बँध गए थे।
(ङ) माधवदेव को शिष्य के रूप में स्वीकार कर लेने के बाद शंकरदेव क्या बोले?
उत्तर – माधवदेव को शिष्य के रूप में स्वीकार कर लेने के बाद शंकरदेव बोले – “तुम्हें पाकर आज मैं पूरा हुआ।”
(च) किस घटना से असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक सुनहरे अध्याय का श्रीगणेश हुआ था?
उत्तर – धुवाहाता-बेलगुरि में हुए श्रीमंत शंकरदेव और माधवदेव के महामिलन से असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक सुनहरे अध्याय का श्रीगणेश हुआ था।
- अति संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में) :-
(क) ब्रह्मपुत्र नद किस प्रकार शंकरदेव – माधवदेव के महामिलन का साक्षी बना था?
उत्तर – ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर स्थित धुवाहाता-बेलगुरि में शंकरदेव और माधवदेव का ऐतिहासिक मिलन हुआ, जिसका साक्षी स्वयं ब्रह्मा का वरद ब्रह्मपुत्र नद बना।
(ख) धुवाहाता – बेलगुरि सत्र में रहते समय श्रीमंत शंकरदेव किस महान प्रयास में जुटे हुए थे?
उत्तर – धुवाहाता – बेलगुरि सत्र में रहते समय श्रीमंत शंकरदेव भगवन्नाम प्रचार, नाट्य-संकीर्तन और धर्म सुधार जैसे महान कार्यों में जुटे हुए थे।
(ग) माधवदेव ने कब और क्या मनौती मानी थी?
उत्तर – माधवदेव ने माँ मनोरमा के बीमार होने के समय रोगमुक्त होने पर दो सफ़ेद बकरों की बलि देने की मनौती मानी थी।
(घ) ‘इसके लिए आवश्यक धन देकर माधवदेव व्यापार के लिए निकल पड़े।’- प्रस्तुत पंक्ति का संदर्भ स्पष्ट करो।
उत्तर – इस पंक्ति का यह अर्थ है कि माँ की मनौती पूर्ण करने हेतु बलि चढ़ाने के लिए बकरों की कीमत अपने बहनोई रामदास को देकर ने माधवदेव व्यापार के लिए निकल पड़े।
(ङ) ‘माधवदेव आपसे शास्त्रार्थ करने के लिए आया है।’ – किसने किससे और किस परिस्थिति में ऐसा कहा था?
उत्तर – ‘माधवदेव आपसे शास्त्रार्थ करने के लिए आया है।’ रामदास ने शंकरदेव से कहा जब माधवदेव शास्त्रार्थ के उद्देश्य से उनके पास आए थे।
- संक्षेप में उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में) :-
(क) शंकर – माधव के महामिलन के संदर्भ में ‘मणि- कांचन संयोग’ आख्या की सार्थकता स्पष्ट करो।
उत्तर – शंकरदेव और माधवदेव का मिलन असम के धार्मिक-सांस्कृतिक इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटना थी। एक गुरु थे, दूसरा योग्य शिष्य। जैसे मणि और कांचन का संगम दुर्लभ होता है, वैसे ही यह मिलन असम के वैष्णव आंदोलन को नई दिशा देने वाला बना। इसलिए इस मिलन को ‘मणि-कांचन संयोग’ कहा गया है।
(ख) बहनोई रामदास के घर पहुँचने पर माधवदेव ने क्या पाया और उन्होंने क्या किया?
उत्तर – माधवदेव जब बहनोई रामदास के घर पहुँचे, तो देखा कि वे शंकरदेव के शिष्य बन चुके हैं और बलिप्रथा का विरोध कर रहे हैं। यह देखकर माधवदेव ने शंकरदेव से शास्त्रार्थ करने की ठानी। इस मिलन ने माधवदेव के जीवन की दिशा बदली और उन्हें शंकरदेव के निकट ले गया।
(ग) रामदास ने बलि-विधान के विरोध में माधवदेव से क्या-क्या कहा?
उत्तर – रामदास ने माधवदेव से कहा कि बलि देना अधर्म है और यह विनाशकारी परंपरा है। ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए हिंसा नहीं, बल्कि भक्ति, प्रेम और करुणा चाहिए। उन्होंने शंकरदेव के विचारों का समर्थन करते हुए माधवदेव को सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
(घ) शास्त्रार्थ के दौरान शंकरदेव द्वारा उद्धृत ‘भागवत’ के श्लोक का अर्थ सरल हिंदी में प्रस्तुत करो।
उत्तर – शंकरदेव ने भागवत का जो श्लोक उद्धृत किया, उसका अर्थ है कि जिस प्रकार वृक्ष के मूल को सींचने से टहनियाँ, पत्ते, फूल, फल सब संजीवित होते हैं अथवा अन्न ग्रहण के जरिए प्राण का पोषण करने से मानव-शरीर की सारी इंद्रियाँ तृप्त होती हैं, उसी प्रकार परब्रह्म कृष्ण की उपासना करने से सारे देवी-देवता अपने-आप संतुष्ट हो जाते हैं।
(ङ) शंकरदेव की साहित्यिक देन के बारे में बताओ।
उत्तर – शंकरदेव ने असमिया भाषा, भक्ति साहित्य और संस्कृति को समृद्ध किया। उन्होंने ‘कीर्तन-घोषा’ की रचना की। इसके अतिरिक्त ‘गुणमाला’, ‘भक्ति- प्रदीप’, ‘हरिश्चंद्र उपाख्यान’, ‘रुक्मिणी-हरण काव्य’, ‘बलिछलन’, ‘कुरुक्षेत्र’ आदि काव्य-रचनाएँ की हैं। आपने ‘पत्नीप्रसाद’, ‘कालियदमन’, ‘केलिगोपाल’, ‘रुक्मिणी- हरण’, ‘पारिजात – हरण’ और ‘रामविजय’ नामक छह अंकीया नाट भी रचे हैं। कहा जाता है कि उन्होंने बारह कोड़ी ‘बरगीत’ भी रचे थे, जिनमें से लगभग पैंतीस बरगीत ही आज उपलब्ध हैं।
(च) माधवदेव की साहित्यिक देन को स्पष्ट करो।
उत्तर – माधवदेव शंकरदेव के प्रमुख शिष्य और असम के महान भक्ति कवि थे। उन्होंने ‘नामघोषा’ की रचना की, जो भक्ति, त्याग और शांति का संदेश देती है। उनकी ‘जन्मरहस्य’, ‘राजसूय’, ‘भक्ति रत्नावली’ आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। आपने ‘चोर-धरा’, ‘पिंपरा – गुचोवा’, ‘भोजन – बिहार’, ‘भूमि-लेटोवा’, ‘दधि-मंथन’ आदि नाटक भी रचे हैं। गुरु की आज्ञा से आपने नौ कोड़ी ग्यारह बरगीत भी रचे, जिनमें से लगभग एक सौ इक्यासी बरगीत आज उपलब्ध हैं।
- सम्यक् उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में) :-
(क) माधवदेव की माँ की बीमारी के प्रसंग को सरल हिंदी में वर्णित करो।
उत्तर – जब माधवदेव की माता बीमार पड़ीं, तो उन्होंने देवी से मन्नत माँगी कि यदि उनकी माता स्वस्थ हो जाएँगी तो वे बलि चढ़ाएँगे। संयोगवश माता स्वस्थ हो गईं। मन्नत पूरी करने के उद्देश्य से माधवदेव ने दो बकरे खरीदने के लिए अपने बहनोई रामदास को रुपए दिए और किसी व्यापारिक कार्य से चले गए। व्यापारिक कार्य पूरा करके लौटने के बाद उन्होंने देखा कि रामदास शंकरदेव के अनुयायी बन चुके थे और बलिप्रथा के विरुद्ध हो गए थे। यह घटना माधवदेव के जीवन का मोड़ बनी, क्योंकि आगे चलकर यही परिस्थिति उन्हें शंकरदेव से मिलने और उनके विचारों को अपनाने की ओर ले गई।
(ख) बलि हेतु बकरे खरीदने को लेकर रामदास और माधवदेव के बीच हुई बातचीत को अपने शब्दों में प्रस्तुत करो।
उत्तर – माधवदेव जब बलि हेतु बकरे के बारे में जानने के लिए अपने बहनोई रामदास के घर पहुँचे, तो रामदास ने बलिप्रथा का विरोध किया। उन्होंने कहा कि हिंसा करके ईश्वर को प्रसन्न नहीं किया जा सकता। रामदास ने समझाया कि सच्ची भक्ति में करुणा और प्रेम होना चाहिए, न कि प्राणियों की हत्या। उन्होंने बताया कि अब वे शंकरदेव के शिष्य हैं और वैष्णव मार्ग अपनाकर भक्तिभाव से जीवन जीते हैं। यह बात सुनकर माधवदेव को आश्चर्य हुआ। उन्होंने रामदास से शंकरदेव के बारे में और जानने की इच्छा व्यक्त की तथा उनके विचारों की परीक्षा करने हेतु शास्त्रार्थ का निश्चय किया।
(ग) रामदास और माधवदेव गुरु शंकरदेव के पास कब और क्यों गए थे?
उत्तर – रामदास और माधवदेव गुरु शंकरदेव के पास उस समय गए, जब माधवदेव बलि के पक्ष में थे और रामदास इसका समर्थन नहीं कर रहे थे। रामदास ने बलि को अधार्मिक बताते हुए शंकरदेव के विचारों का समर्थन किया। यह सुनकर माधवदेव ने शंकरदेव के साथ शास्त्रार्थ करने की इच्छा जताई, ताकि वे स्वयं सत्य का निर्णय कर सकें। शंकरदेव उस समय धुवाहाता-बेलगुरी सत्र में रहते थे। रामदास, माधवदेव को लेकर वहाँ पहुँचे ताकि वे सीधे शंकरदेव से भेंट करें। यही यात्रा शंकरदेव और माधवदेव के महामिलन की पृष्ठभूमि बनी और असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ।
(घ) शंकरदेव और माधवदेव के बीच किस बात पर शास्त्रार्थ हुआ था? उसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर – शंकरदेव और माधवदेव के बीच शास्त्रार्थ का विषय बलिप्रथा था। माधवदेव बलि को धार्मिक मानते थे, जबकि शंकरदेव इसका विरोध करते थे। शंकरदेव ने ‘भागवत’ का श्लोक उद्धृत कर बताया कि हिंसा करके भगवान की पूजा करना अनुचित है। उन्होंने समझाया कि ईश्वर को केवल भक्ति, प्रेम और समर्पण प्रिय है। शास्त्रार्थ के दौरान शंकरदेव की ज्ञानपूर्ण बातों और संतुलित तर्कों ने माधवदेव को प्रभावित किया। अंततः उन्होंने शास्त्रार्थ में पराजय स्वीकार कर ली और शंकरदेव को अपना गुरु मान लिया। यही घटना उनके आध्यात्मिक जीवन की दिशा बदलने वाली बनी और असम के वैष्णव आंदोलन को गति मिली।
(ङ) शंकर – माधव के महामिलन के शुभ परिणाम किन रूपों में निकले?
उत्तर – शंकरदेव और माधवदेव के महामिलन से असम के धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आए। शंकरदेव के सिद्धांतों को माधवदेव ने प्रचारित किया और ‘एकेश्वरवाद’ तथा ‘अहिंसा’ पर आधारित वैष्णव धर्म को जनमानस तक पहुँचाया। दोनों ने मिलकर असमिया साहित्य, नाटक, भजन और कीर्तन की समृद्ध परंपरा स्थापित की। उन्होंने जाति-पाँति के भेदभाव को मिटाने और समाज में भक्ति, प्रेम तथा नैतिक मूल्यों को स्थापित करने में योगदान दिया। इस मिलन को ‘मणि-कांचन संयोग’ कहा गया, क्योंकि इससे धर्म और संस्कृति दोनों को एक नई दिशा मिली और असम का भक्ति आंदोलन सशक्त हुआ।
- प्रसंग सहित व्याख्या करो (लगभ 100 शब्दों में) :-
(क) ‘ऐसी स्थिति में योग्य गुरु शंकर को योग्य शिष्य माधव मिल गए।’
उत्तर – प्रसंग –
यह पंक्ति उस समय की है जब शास्त्रार्थ के बाद माधवदेव ने शंकरदेव के ज्ञान को स्वीकार कर उन्हें गुरु माना।
व्याख्या –
शंकरदेव एक महान संत, समाज सुधारक और वैष्णव धर्म के प्रचारक थे, जिनका लक्ष्य था—सच्ची भक्ति का प्रसार। दूसरी ओर, माधवदेव एक विद्वान, तार्किक और धार्मिक व्यक्ति थे, जिन्हें सही दिशा की खोज थी। जब इन दोनों का मिलन हुआ, तो गुरु-शिष्य की यह जोड़ी अत्यंत प्रभावशाली बनी। शंकरदेव को एक समर्पित, योग्य और कर्मठ शिष्य मिला, जबकि माधवदेव को एक मार्गदर्शक और जीवन की सच्ची राह दिखाने वाला गुरु मिला। यही मिलन ‘मणि-कांचन संयोग’ कहा गया और इससे असम के सांस्कृतिक इतिहास में स्वर्णिम युग का आरंभ हुआ।
(ख) ‘उसने इस महामिलन के उमंग-रस को बंगाल की खाड़ी से होकर हिंद महासागर तक पहुँचाने के लिए अपनी लोहित जल- धारा को आदेश दिया था।’
उत्तर – प्रसंग –
यह पंक्ति ब्रह्मपुत्र नदी के संदर्भ में है, जब वह शंकरदेव और माधवदेव के मिलन का साक्षी बनती है।
व्याख्या –
लेखक ने यहाँ ब्रह्मपुत्र नदी को मानवीय रूप देकर उसे इस ऐतिहासिक घटना की सहभागी बताया है। शंकरदेव और माधवदेव का मिलन एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक क्रांति थी, जिसे देखकर ब्रह्मपुत्र भी पुलकित हो उठा। यह पंक्ति आलंकारिक रूप में कहती है कि ब्रह्मपुत्र ने इस पवित्र मिलन के उल्लास और उमंग को केवल असम तक सीमित न रखते हुए बंगाल की खाड़ी के माध्यम से पूरे हिंद महासागर तक पहुँचाने का निश्चय किया। यह दर्शाता है कि यह घटना केवल स्थानीय नहीं, बल्कि व्यापक आध्यात्मिक प्रभाव वाली थी।
(ग) उत्तर भारतीय समाज में ‘रामचरितमानस’ का आदर जितना है, असमीया समाज में ‘कीर्त्तनघोषा – नामघोषा’ का भी आदर उतना ही है।’
उत्तर – प्रसंग –
यह पंक्ति शंकरदेव और माधवदेव की साहित्यिक देन और उनके धार्मिक ग्रंथों के महत्त्व को दर्शाती है।
व्याख्या –
‘रामचरितमानस’ जैसे ग्रंथ उत्तर भारत में भक्ति, मर्यादा और धार्मिक मूल्यों का प्रतीक है और अत्यंत श्रद्धा से पढ़ा जाता है। उसी प्रकार, असम में शंकरदेव द्वारा रचित ‘कीर्तनघोषा’ और माधवदेव द्वारा रचित ‘नामघोषा’ अत्यंत पूज्य ग्रंथ माने जाते हैं। इन ग्रंथों ने असमिया समाज को भक्ति-मार्ग, नैतिकता, सामाजिक एकता और अहिंसा का पाठ पढ़ाया। इनकी भाषा सरल, भावपूर्ण और जनमानस के अनुकूल है, जिससे ये धार्मिक आंदोलनों के माध्यम बने। इसलिए लेखक ने इन ग्रंथों की तुलना ‘रामचरितमानस’ से कर उनके सांस्कृतिक मूल्य को रेखांकित किया है।
भाषा एवं व्याकरण ज्ञान
(क) निम्नलिखित अभिव्यक्तियों के लिए एक-एक शब्द दो :-
विष्णु का उपासक, शक्ति का उपासक, शिव का उपासक, जिसकी कोई तुलना न हो, संस्कृति से संबंधित, बहन के पति, जिस स्त्री का पति मर गया हो, ऐसा व्यक्ति, जो शास्त्र जानता हो
उत्तर – विष्णु का उपासक – वैष्णव
शक्ति का उपासक – शाक्त
शिव का उपासक – शैव
जिसकी कोई तुलना न हो – अतुलनीय
संस्कृति से संबंधित – सांस्कृतिक
बहन के पति – जीजा
जिस स्त्री का पति मर गया हो – विधवा
ऐसा व्यक्ति, जो शास्त्र जानता हो – शास्त्रज्ञ
(ख) निम्नांकित शब्दों से प्रत्ययों को अलग करो :-
मनौती, वार्षिक, कदाचित्, बुढ़ापा, चचेरा, पूर्वोत्तरी, आध्यात्मिक, आधारित
उत्तर – मनौती = मन (धातु/मूल शब्द) + औती (प्रत्यय)
वार्षिक = वर्ष (मूल शब्द) + इक (प्रत्यय)
कदाचित् = कदा (मूल शब्द) + -चित् (प्रत्यय)
बुढ़ापा = बूढ़ा (मूल शब्द) + आपा (प्रत्यय)
चचेरा = चाचा (मूल शब्द) + एरा (प्रत्यय)
पूर्वोत्तरी = पूर्व (मूल शब्द) + उत्तर (मूल शब्द) + ई (प्रत्यय)
आध्यात्मिक = अध्यात्म (मूल शब्द) + इक (प्रत्यय)
आधारित = आधार (मूल शब्द) + इत (प्रत्यय)
(ग) निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग वाक्य में इस प्रकार करो, ताकि उनका लिंग स्पष्ट हो :
महामिलन, उपासना, बढ़ोत्तरी, मोल-भाव, विनती, वाणी, तिरोभाव, संस्कृति
उत्तर – महामिलन – शंकरदेव और माधवदेव का महामिलन असम की संस्कृति के लिए ऐतिहासिक घटना थी। (पुल्लिंग)
उपासना – वह प्रतिदिन देवी की उपासना करती है। (स्त्रीलिंग)
बढ़ोत्तरी – इस वर्ष स्कूल में छात्रों की संख्या में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई है। (स्त्रीलिंग)
मोल-भाव – बाजार में सब्ज़ियाँ खरीदते समय माँ ने खूब मोल-भाव किया। (पुल्लिंग)
विनती – छात्र ने परीक्षा की तारीख बढ़ाने की विनती की। (स्त्रीलिंग)
वाणी – महापुरुषों की वाणी सदा मार्गदर्शक होती है। (स्त्रीलिंग)
तिरोभाव – संत का तिरोभाव समस्त भक्तों के लिए दुखद था। (पुल्लिंग)
संस्कृति – भारत की संस्कृति विविधताओं में एकता का संदेश देती है। (स्त्रीलिंग)
योग्यता – विस्तार
(क) श्रीमंत शंकरदेव और श्री श्री माधवदेव के जीवन-वृत्तों का अध्ययन करो।
उत्तर – श्रीमंत शंकरदेव (1449 ई. – 1568 ई.)
जन्म – 1449 ई. को असम के नगारिकाता गाँव में हुआ।
परिवार – पिता – कुँवर बरभावन; माता – सती देवी।
विशेषताएँ –
शंकरदेव असमिया वैष्णव भक्ति आंदोलन के जनक थे।
उन्होंने एकेश्वरवाद (केवल एक ईश्वर की उपासना) का प्रचार किया।
नाम-धर्म और सत्संग-प्रथा की स्थापना की।
उन्होंने भक्ति, साहित्य, संगीत, और नाटक के माध्यम से समाज को जाग्रत किया।
साहित्यिक योगदान –
कीर्तनघोषा, भागवत का अनुवाद, अंखिया नाटक, बरगीत (भक्ति गीत) की रचना।
दर्शन – उन्होंने भक्ति को ज्ञान और कर्म से श्रेष्ठ माना।
मृत्यु – 1568 ई. में शंकरदेव ने शरीर त्याग किया।
श्री श्री माधवदेव (1489 ई. – 1596 ई.)
जन्म – 1489 ई. को असम के लखीमपुर जिले में हुआ।
परिवार – पिता – गोविंदगिरी
माता – मनोरमा
प्रारंभिक जीवन – वे पहले शाक्त मत के अनुयायी थे और बलिप्रथा में विश्वास करते थे।
परिवर्तन की घटना –
जब वह बलि हेतु बकरा खरीदने गए, तो बहनोई रामदास के आग्रह पर शंकरदेव से शास्त्रार्थ करने पहुंचे। वहाँ शंकरदेव से प्रभावित होकर उन्होंने अपना मत त्यागकर उन्हें गुरु रूप में स्वीकार किया।
साहित्यिक योगदान –
नामघोषा, भक्ति रचनाएँ, बरगीत, और भाषानाट्य की रचना।
उन्होंने शंकरदेव के विचारों को आगे बढ़ाया और सत्र संस्था को मजबूत किया।
मृत्यु – 1596 ई. में माधवदेव का देहावसान हुआ।
(ख) शंकरदेव और माधवदेव की साहित्यिक देन के संदर्भ में अधिक जानकारी एकत्र करो।
उत्तर – छात्र इसे परियोजना कार्य के रूप में पूरा करें।
(ग) अपने गुरुजी की सहायता से एकशरण भागवती वैष्णव धर्म की मूलभूत बातों को जानने का प्रयास करो।
उत्तर – एकशरण भागवती वैष्णव धर्म की मूलभूत बातें –
- एकेश्वरवाद (एकशरण) –
इस धर्म में केवल एक ही परमात्मा – भगवान विष्णु (या कृष्ण) की शरण को सर्वोपरि माना गया है।
किसी भी अन्य देवी-देवता, यज्ञ या बलि की आवश्यकता नहीं मानी जाती।
- भक्ति का मार्ग –
भक्ति ही मोक्ष का मार्ग है।
ईश्वर की प्राप्ति कर्मकांड, बलि या तप से नहीं, बल्कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा से होती है।
- निंदा-त्याग –
धर्म में किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए।
समता, प्रेम और करुणा को सर्वोच्च मान्यता दी गई है।
- बलि-विधान का विरोध –
यह धर्म बलि और हिंसा का विरोध करता है।
यह मानता है कि ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए किसी जीव की बलि देना अमानवीय है।
- नाम-संकीर्तन –
भगवान के नाम का जप और कीर्तन ही सर्वोत्तम पूजा मानी गई है।
कीर्तनघोषा, नामघोषा जैसे ग्रंथों में इसका विशेष उल्लेख है।
- सामूहिक भक्ति –
नामघर और सत्र इस धर्म के सामाजिक और धार्मिक केंद्र हैं, जहाँ लोग सामूहिक भक्ति और शिक्षण-प्रशिक्षण करते हैं।
- नारी और शूद्रों को भी समान अधिकार –
यह धर्म सभी जातियों और स्त्रियों को एक समान ईश्वर भक्ति का अधिकार देता है।
श्रीमंत शंकरदेव और माधवदेव की भूमिका –
शंकरदेव ने इस धर्म की स्थापना की।
माधवदेव ने उनके उपदेशों को फैलाया और कीर्तनघोषा जैसी रचनाएँ कीं।
दोनों ने साहित्य, संगीत और कला के माध्यम से इसे जन-जन तक पहुँचाया।
(घ) बलि-विधान की निरर्थकता पर कक्षा में एक परिचर्चा का आयोजन करो।
उत्तर – परिचर्चा का उद्देश्य –
विद्यार्थियों को बलि-विधान की परंपरा, उसके ऐतिहासिक, धार्मिक और नैतिक पक्षों पर सोचने, प्रश्न करने और अपनी राय व्यक्त करने का अवसर देना।
परिचर्चा की प्रस्तावना (शिक्षक द्वारा) –
प्रिय विद्यार्थियों, आज हम “बलि-विधान की निरर्थकता” विषय पर परिचर्चा करने जा रहे हैं। यह एक ऐसा विषय है, जो धार्मिक परंपराओं, आस्था, करुणा और वैज्ञानिक सोच से जुड़ा हुआ है। आइए, इस पर विचार करें कि क्या किसी जीव की बलि देकर ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त की जा सकती है?
संभावित पक्ष –
बलि-विधान के पक्ष में विचार (कुछ छात्र) –
यह एक प्राचीन परंपरा है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है।
बलि को आस्था और श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है।
कुछ धार्मिक ग्रंथों में बलि का उल्लेख है।
बलि-विधान के विरोध में विचार (अन्य छात्र) –
ईश्वर करुणा और प्रेम के प्रतीक हैं, वे हिंसा से प्रसन्न नहीं होते।
जानवरों की हत्या अमानवीय और अनैतिक है।
यह विज्ञान और आधुनिक सोच के विरुद्ध है।
‘अहिंसा परम धर्म’ की भावना के विरुद्ध है।
मुख्य बिंदु जो चर्चा में आ सकते हैं –
बलि-विधान की धार्मिक मान्यताएँ और उनका पुनर्परिशीलन
माधवदेव और शंकरदेव जैसे संतों का बलि-विधान के प्रति विरोध
आधुनिक समाज में इस प्रथा की प्रासंगिकता
विकल्प – प्रतीकात्मक पूजा, फल-फूल अर्पण आदि
निष्कर्ष (शिक्षक द्वारा) –
बलि-विधान के विरोध में यह स्पष्ट रूप से उभरता है कि यह प्रथा करुणा, प्रेम और वैज्ञानिक सोच के अनुरूप नहीं है। जैसे माधवदेव ने अपने जीवन में इसका विरोध किया और शास्त्रार्थ में अहिंसा और भक्ति को प्रमुखता दी, वैसे ही हमें भी मानवीय मूल्यों को अपनाना चाहिए।
(ङ) शंकर – माधव के महामिलन की तरह ही रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद का मिलन भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। पुस्तकालय की मदद से इस मिलन के बारे में सम्यक् जानकारी प्राप्त करो।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्य में दीजिए –
प्रश्न- ‘मणि-कांचन संयोग’ से लेखक का क्या तात्पर्य है?
उत्तर- ‘मणि-कांचन संयोग’ से लेखक का तात्पर्य श्रीमंत शंकरदेव और माधवदेव के दिव्य मिलन से है, जिसे असम के सांस्कृतिक इतिहास की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना माना गया है।
प्रश्न- श्रीमंत शंकरदेव का उद्देश्य असमीया समाज में क्या परिवर्तन लाना था?
उत्तर- श्रीमंत शंकरदेव का उद्देश्य असमीया समाज को बलि, तंत्र-मंत्र और बाह्याचारों से मुक्त कर आध्यात्मिक उन्नति के सरल पथ पर ले जाना था।
प्रश्न- माधवदेव ने शंकरदेव को गुरु क्यों स्वीकार किया?
उत्तर- जब शास्त्रार्थ में शंकरदेव ने भागवत का श्लोक उद्धृत कर माधवदेव को संतुष्ट किया, तब माधवदेव को शंकरदेव की ज्ञान-गंभीरता का बोध हुआ और उन्होंने उन्हें गुरु रूप में स्वीकार कर लिया।
प्रश्न- शंकरदेव और माधवदेव का मिलन असम के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण था?
उत्तर- इस मिलन के परिणामस्वरूप एकशरण नाम-धर्म का व्यापक प्रचार हुआ, असमीया समाज में आध्यात्मिक चेतना फैली, और साहित्य-संगीत-संस्कृति की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई।
प्रश्न- शास्त्रार्थ के दौरान शंकरदेव ने कौन-सा श्लोक उद्धृत किया था और उसका क्या अर्थ था?
उत्तर- उन्होंने भागवत का श्लोक उद्धृत किया-
“यथा तरोर्मूलनिषेचनेन…”, जिसका अर्थ है कि जैसे वृक्ष की जड़ को सींचने से सारी शाखाएँ तृप्त होती हैं, वैसे ही परब्रह्म की उपासना से सभी देवी-देवता तृप्त हो जाते हैं।
प्रश्न- शंकरदेव ने अपने पुत्रों के स्थान पर माधवदेव को धर्म-गुरु क्यों नियुक्त किया?
उत्तर- शंकरदेव ने माधवदेव की श्रद्धा, योग्यता, भक्ति और सेवा-भावना को देखकर उन्हें अपने पुत्रों की अपेक्षा अधिक योग्य पाया और धर्म-गुरु पद की जिम्मेदारी सौंपी।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दीजिए –
प्रश्न- धुवाहाता-बेलगुरि क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर- यह वह स्थान है जहाँ शंकरदेव और माधवदेव का पावन मिलन हुआ था, जो असम के सांस्कृतिक इतिहास की एक ऐतिहासिक घटना है।
प्रश्न- माधवदेव ने बलि क्यों देने का निश्चय किया था?
उत्तर- माधवदेव ने बलि देने का निश्चय किया था क्योंकि उन्होंने अपनी माँ के स्वस्थ होने की मनौती में उन्होंने देवी गोसानी को सफेद बकरों की बलि देने का संकल्प लिया था।
प्रश्न- रामदास ने बकरों की बलि क्यों नहीं दी?
उत्तर- रामदास ने गुरु शंकरदेव से ज्ञान प्राप्त कर लिया था और वे बलि-विधान को विनाशकारी मानते थे। इसलिए रामदास ने बकरों की बलि नहीं दी।
प्रश्न- शंकरदेव की प्रमुख काव्य रचनाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर- शंकरदेव की प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं – ‘कीर्तन-घोषा’, ‘गुणमाला’, ‘रुक्मिणी-हरण’, ‘भक्ति-प्रदीप’, ‘हरिश्चंद्र उपाख्यान’ आदि।
प्रश्न- माधवदेव की प्रमुख रचनाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर- माधवदेव की प्रमुख रचनाएँ हैं – ‘नामघोषा’, ‘भक्ति रत्नावली’, ‘राजसूय’, ‘चोर-धरा’, ‘दधि-मंथन’ आदि।
प्रश्न- शंकरदेव और माधवदेव के योगदान का असमीया समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- शंकरदेव और माधवदेव के योगदान से असमीया समाज आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हुआ तथा एकशरण धर्म की गहरी जड़ें पड़ीं।
बहुविकल्पीय प्रश्न
- श्रीमंत शंकरदेव और माधवदेव का महामिलन किस स्थान पर हुआ था?
(क) कोचबिहार
(ख) भांडारीडुबि
(ग) धुवाहाता-बेलगुरि
(घ) बांडुका
उत्तर – (ग) धुवाहाता-बेलगुरि ✅
- माधवदेव किस देवी को बकरे चढ़ाने की मनौती मानते हैं?
(क) देवी दुर्गा
(ख) देवी गोसानी
(ग) माँ कामाख्या
(घ) माँ काली
उत्तर – (ख) देवी गोसानी ✅
- शंकरदेव ने किस शास्त्रीय श्लोक के माध्यम से माधवदेव को निरुत्तर किया?
(क) गीता का श्लोक
(ख) भागवत पुराण का श्लोक
(ग) रामायण का श्लोक
(घ) वेद का श्लोक
उत्तर – (ख) भागवत पुराण का श्लोक ✅
- शंकरदेव और माधवदेव का संबंध सांसारिक दृष्टि से क्या था?
(क) पिता-पुत्र
(ख) मामा-भांजा
(ग) मित्र
(घ) भाई
उत्तर – (ख) मामा-भांजा ✅
- ‘मणि-कांचन संयोग’ की संज्ञा किसने दी?
(क) श्रीमंत शंकरदेव
(ख) माधवदेव
(ग) लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा
(घ) हरिचरण
उत्तर – (ग) लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा ✅
- शंकरदेव के तिरोभाव के बाद धर्म-गुरु का दायित्व किसने संभाला?
(क) हरिचरण
(ख) रामानंद
(ग) माधवदेव
(घ) रामदास
उत्तर – (ग) माधवदेव ✅
रिक्त स्थान भरिए –
- श्रीमंत शंकरदेव और माधवदेव का महामिलन ________ में हुआ था।
उत्तर – धुवाहाता-बेलगुरि
- माधवदेव ने अपनी मां के स्वास्थ्य के लिए ________ देवी से मनौती मानी थी।
उत्तर – देवी गोसानी
- शंकरदेव की प्रमुख रचनाओं में ________ और ________ शामिल हैं।
उत्तर – कीर्तन-घोषा, गुणमाला
- माधवदेव ने गुरु की आज्ञा से ________ बरगीत रचे।
उत्तर – नौ कोड़ी ग्यारह
- शंकरदेव ने ‘रुक्मिणी-हरण’ नामक ________ और ________ दोनों रूपों में रचना की।
उत्तर – काव्य, नाटक
मिलान कीजिए –
स्तंभ क स्तंभ ख
- शंकरदेव (क) ‘नामघोषा’ के रचयिता
- माधवदेव (ख) ‘कीर्तन-घोषा’ के रचयिता
- लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा (ग) ‘मणि-कांचन संयोग’ शब्द के उद्गाता
- ब्रह्मपुत्र नदी (घ) मिलन का साक्षी
- रामदास (ङ) माधवदेव के बहनोई
✅ उत्तर मिलान:
1 – (ख)
2 – (क)
3 – (ग)
4 – (घ)
5 – (ङ)