मैथिलीशरण गुप्त
हिंदी की राष्ट्रीय-सांस्कृतिक काव्यधारा के कवियों में मैथिलीशरण गुप्तजी का स्थान सर्वोपरि है। देश और संस्कृति के प्रति प्रेम के अलावा गुप्तजी के काव्य में उपेक्षित-दलितों के प्रति सहानुभूति, गांधीवाद की ओर झुकाव और मानवतावादी दृष्टि मिलती है। आपके काव्य में सरलता एवं सरसता का सुखद समन्वय हुआ है। इसलिए हिंदी के आधुनिक कालीन कवियों में गुप्तजी कदाचित् सबसे लोकप्रिय कवि रहे हैं।
राष्ट्रकवि के रूप में प्रसिद्ध गुप्तजी का जन्म 1886 ई. में चिरगाँव, जिला झाँसी में हुआ था। आपके पिता सेठ रामचरणजी रामभक्त एवं सुकवि थे। आगे पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी से प्रोत्साहन पाकर आपकी काव्य-सरस्वती प्रवाहित होती गयी। 1964 ई. में आपका स्वर्गवास हुआ।
1912 ई. में प्रकाशित काव्य-ग्रंथ ‘भारत-भारती’ ने गुप्तजी को राष्ट्रकवि के रूप में स्थापित किया। कालांतर में आपने ‘पंचवटी’, ‘किसान’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’, ‘द्वापर’, ‘जयभारत’, ‘विष्णुप्रिया’ आदि काव्य-ग्रंथों की रचना की। आपके द्वारा विरचित ‘साकेत’ एक महाकाव्य है। आपका ‘किसान’ खंडकाव्य भारतीय कृषक – जीवन की करुण गाथा है। आपकी काव्य-भाषा खड़ीबोली हैं – जिस पर आपको असाधारण अधिकार प्राप्त था।
नर हो, न निराश करो मन को – कविता का परिचय
नर हो, न निराश करो मन को कविता में कवि मैथिलीशरण गुप्त ने मनुष्य को कर्मठता का संदेश दिया है। कवि कहता है कि मनुष्य को अनुकूल अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। मनुष्य को चाहिए कि वह अपने महत्त्व एवं व्यक्तित्व को पहचाने, तभी उसे आत्म- गौरव और अमरत्व प्राप्त हो सकता है। निराश होकर बैठना मनुष्य के लिए लज्जाजनक है।
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो,
जग में रहके निज नाम करो।
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो!
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को,
नर हो, न निराशा करो मन को॥
सँभलो कि सु-योग न जाए चला,
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला?
समझो जग को न निरा सपना,
पथ आप प्रशस्त करो अपना।
अखिलेश्वर है अवलंबन को,
नर हो, न निराश करो मन को॥
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ,
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ?
तुम स्वत्त्व – सुधा रस पान करो,
उठके अमरत्व-विधान करो
दव-रूप रहो भव-कानन को,
नर हो, न निराश करो मन को॥
निज गौरव का नित ज्ञान रहे,
‘हम भी कुछ हैं’ – यह ध्यान रहे।
सब जाय अभी, पर मान रहे,
मरणोत्तर गुंजित गान रहे।
कुछ हो, न तजो निज साधन को,
नर हो, न निराश करो मन को॥
नर हो, न निराश करो मन को – व्याख्या सहित
01
कुछ काम करो, कुछ काम करो,
जग में रहके निज नाम करो।
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो!
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को,
नर हो, न निराशा करो मन को॥
शब्दार्थ –
शब्द | अर्थ (हिंदी में) | अर्थ (अंग्रेज़ी में) |
कुछ | थोड़ा/थोड़ा-बहुत | Some |
काम | कार्य, प्रयत्न | Work, deed |
जग | संसार | World |
निज | अपना | Own |
नाम करो | प्रसिद्धि प्राप्त करो | Make a name / Earn fame |
अर्थ | उद्देश्य, मतलब | Meaning, purpose |
अहो | अरे! (आश्चर्य सूचक शब्द) | Oh! (exclamation) |
व्यर्थ | निरर्थक, बेकार | Useless, in vain |
उपयुक्त | योग्य, उचित | Proper, appropriate |
तन | शरीर | Body |
नर | मनुष्य | Human |
निराशा | हताशा, मायूसी | Despair, hopelessness |
मन | मनोबल, मानसिकता | Mind, mindset |
व्याख्या –
कवि मैथिलीशरण गुप्त इन पंक्तियों में मनुष्य को प्रेरित कर रहे हैं कि वह जीवन में कोई न कोई सार्थक कार्य अवश्य करे। कवि कहते हैं कि इस संसार में रहते हुए कोई ऐसा कार्य करो जिससे तुम्हारा नाम हो, यानि समाज में पहचान और सम्मान मिले। कवि प्रश्न करते हैं कि यदि तुम कुछ भी उपयोगी कार्य नहीं करते, तो फिर इस जन्म का क्या उद्देश्य है? जीवन को इस तरह समझो और जियो कि वह व्यर्थ (निष्फल) न जाए। अपने शारीरिक और मानसिक सामर्थ्य का कुछ उपयुक्त और अच्छा उपयोग करो। तुम मनुष्य हो, इसलिए अपने मन को कभी निराश मत होने दो, हिम्मत बनाए रखो।
02
सँभलो कि सु-योग न जाए चला,
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला?
समझो जग को न निरा सपना,
पथ आप प्रशस्त करो अपना।
अखिलेश्वर है अवलंबन को,
नर हो, न निराश करो मन को॥
शब्दार्थ –
शब्द | अर्थ (हिंदी में) | अर्थ (अंग्रेज़ी में) |
सँभलो | सावधान हो जाओ, चेतो | Be alert, wake up |
सु-योग | अच्छा अवसर, शुभ अवसर | Good opportunity |
न जाए चला | हाथ से न निकल जाए | Should not slip away |
कब | कभी | When |
व्यर्थ | बेकार, निष्फल | Useless |
सदुपाय | अच्छा उपाय, श्रेष्ठ प्रयत्न | Good effort / proper method |
भला | क्या (प्रश्नवाचक), अच्छा | Really? / Good |
निरा सपना | केवल सपना, असत्य | Mere dream |
पथ | रास्ता, मार्ग | Path |
प्रशस्त करो | सुगम बनाओ, सरल बनाओ | Clear / smooth the path |
अखिलेश्वर | सम्पूर्ण सृष्टि का स्वामी (ईश्वर) | Lord of the universe (God) |
अवलंबन | सहारा, आधार | Support |
नर | मनुष्य | Human |
निराश करो मन को | अपने मन को हताश मत करो | Do not discourage your mind |
व्याख्या –
इन पंक्तियों में कवि मनुष्य को चेतावनी और प्रेरणा दोनों दे रहे हैं— वे कहते हैं कि समय रहते चेत जाओ, कहीं यह अच्छा अवसर हाथ से निकल न जाए। जब भी किसी ने अच्छा प्रयास किया है, वह कभी व्यर्थ नहीं गया। अच्छे प्रयास का फल अवश्य मिलता है। इस संसार को केवल एक सपना या भ्रम मत समझो, यह यथार्थ है, और इसमें कर्म करना आवश्यक है। अपने जीवन का मार्ग स्वयं बनाओ, उसे आसान और सही बनाओ। ईश्वर सबका सहारा है, उस पर विश्वास रखो। तुम मनुष्य हो, इसलिए अपने मन को कभी हताश मत करो। साहस और आत्मविश्वास बनाए रखो।
03
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ,
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ?
तुम स्वत्त्व – सुधा रस पान करो,
उठके अमरत्व-विधान करो
दव-रूप रहो भव-कानन को,
नर हो, न निराश करो मन को॥
शब्दार्थ –
शब्द | अर्थ (हिंदी में) | अर्थ (अंग्रेज़ी में) |
प्राप्त | मिलना, उपलब्ध | Obtained, received |
तत्त्व | मूल तत्व, ज्ञान | Element, essence, principle |
सत्त्व | आत्मा, चेतना, जीवन तत्व | Soul, essence, conscious spirit |
स्वत्त्व | स्वभाव, अपनी प्रकृति | True self, inner nature |
सुधा रस | अमृत, अमरता का रस | Nectar, elixir of immortality |
पान करो | पीयो, ग्रहण करो | Drink, absorb |
उठके | उठकर, सक्रिय होकर | Rise up, get up |
अमरत्व-विधान | अमरता की व्यवस्था या योजना | The system or path to immortality |
दव-रूप | अग्नि के समान | Like wild fire. |
भव-कानन | संसार रूपी जंगल | The forest of worldly existence |
नर | मनुष्य | Human |
न निराश करो मन को | मन को हताश मत होने दो | Do not let your mind lose hope |
व्याख्या –
कवि मैथिलीशरण गुप्त जी कहते हैं कि जब तुम्हारे भीतर जीवन के सभी मूल तत्त्व अर्थात् ज्ञान, शक्ति, विवेक आदि मौजूद हैं, तो फिर आत्मा अर्थात् सत्त्व कहाँ जा सकता है? अर्थात्, तुम खो नहीं सकते — तुम्हारे अंदर ही वह आत्मबल है। तुम अपने आत्मिक स्वरूप (स्वत्त्व) का अमृतरूप रस पियो — यानी आत्मबोध प्राप्त करो, अपने भीतर झाँको। अब उठो और अपने कर्मों द्वारा अमरत्व की योजना बनाओ — ऐसा जीवन जीओ कि तुम्हारा नाम अमर हो जाए। इस संसार रूपी दुखमय जंगल में अग्नि के समान बनो — अर्थात् दूसरों के दुख को दूर करो, लोगों के लिए सहारा बनो। तुम मनुष्य हो, इसलिए अपने मन को कभी निराश मत करो — सदा उत्साह और आत्मबल बनाए रखो।
04
निज गौरव का नित ज्ञान रहे,
‘हम भी कुछ हैं’ – यह ध्यान रहे।
सब जाय अभी, पर मान रहे,
मरणोत्तर गुंजित गान रहे।
कुछ हो, न तजो निज साधन को,
नर हो, न निराश करो मन को॥
शब्दार्थ –
शब्द | अर्थ (हिंदी में) | अर्थ (English) |
निज | अपना | Own |
गौरव | सम्मान, महत्त्व | Pride, dignity |
नित | हमेशा, प्रतिदिन | Always, daily |
ज्ञान रहे | स्मरण रहे, जानकारी रहे | Be aware, have knowledge |
ध्यान रहे | स्मरण रहे, ध्यान में बना रहे | Keep in mind |
सब जाय | सब कुछ चला जाए | Even if all is lost |
पर मान रहे | लेकिन आत्म-सम्मान बना रहे | But self-respect should remain |
मरणोत्तर | मृत्यु के बाद | After death |
गुंजित गान रहे | गूंजता हुआ गीत बना रहे | Resonating song remains |
तजो | छोड़ो मत | Do not abandon |
निज साधन | अपनी शक्ति, प्रयास, संसाधन | Own means, efforts, resources |
नर | मनुष्य | Human being |
न निराश करो मन को | अपने मन को निराश मत होने दो | Do not let your mind despair |
व्याख्या –
कविता की अंतिम पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मनुष्य को प्रतिदिन अपने आत्मगौरव, अपनी गरिमा का बोध होना चाहिए। मनुष्य में यह आत्मविश्वास हमेशा बना रहना चाहिए कि हम भी कुछ कर सकते हैं, हम भी मूल्यवान हैं। जीवन में सब कुछ चला जाए, लेकिन आत्मसम्मान कभी नहीं जाना चाहिए। जीवन ऐसा हो कि मृत्यु के बाद भी उसका यश, उसका गीत गूँजता रहे — यानी नाम अमर हो जाए। चाहे कुछ भी हो जाए, अपनी मेहनत, आत्मबल और साधनों को मत छोड़ो। तुम मनुष्य हो, इसलिए अपने मन को कभी निराश मत होने दो। सदा हिम्मत बनाए रखो।
शब्दार्थ और टिप्पणी
जग = संसार
उपयुक्त = ठीक
तन = शरीर
सदुपाय = अच्छा उपाय
निरा = केवल
पथ = रास्ता
प्रशस्त करना = विस्तार करना
अवलंबन = सहारा
सत्त्व = सार
स्वत्त्व = पहचान, अपने होने का भाव
दव = जंगल में स्वतः लगने वाली आग
सुधा = अमृत
भव-कानन = संसार रूपी जंगल
मान = यश, प्रसिद्धि
मरणोत्तर = मृत्यु के बाद
बोध एवं विचार
(अ) सही विकल्प का चयन करो :-
1 . कवि ने हमें प्रेरणा दी है।
(क) कर्म की
(ख) आशा की
(ग) गौरव की
(घ) साधन की
उत्तर – (क) कर्म की
- कवि के अनुसार मनुष्य को अमरत्व प्राप्त हो सकता है –
(क) अपने नाम से
(ख) धन से
(ग) भाग्य से
(घ) अपने व्यक्तित्व से
उत्तर – (घ) अपने व्यक्तित्व से
- कवि के अनुसार ‘न निराश करो मन को’ का आशय है
(क) सफलता प्राप्त करने के लिए आशावान होना।
(ख) मन में निराशा तो हमेशा बनी रहती है।
(ग) मनुष्य अपने प्रयत्न से असफलता को भी सफलता में बदल सकता है।
(घ) आदमी को अपने गौरव का ध्यान हमेशा रहता है।
उत्तर – (ग) मनुष्य अपने प्रयत्न से असफलता को भी सफलता में बदल सकता है।
(आ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखो (लगभग 50 शब्दों में) :-
- तन को उपयुक्त बनाए रखने के क्या उपाय है?
उत्तर – तन को उपयुक्त बनाए रखने के लिए मनुष्य को आलस्य छोड़कर सतत् परिश्रम करना चाहिए। उसे अपने शरीर और मस्तिष्क का सदुपयोग करते हुए अच्छे कार्यों में लगना चाहिए। जीवन को सार्थक बनाने के लिए तन की शक्ति का उपयोग समाज और स्वयं की उन्नति के लिए करना चाहिए। इससे जीवन व्यर्थ नहीं जाता।
- कवि के अनुसार जग को निरा सपना क्यों नहीं समझना चाहिए?
उत्तर – कवि कहते हैं कि संसार एक यथार्थ है, केवल सपना नहीं। इसमें कर्म करने, आगे बढ़ने और जीवन को सफल बनाने के अवसर हैं। यदि हम इसे केवल सपना समझें तो प्रयास करना बंद कर देंगे, जिससे जीवन व्यर्थ हो जाएगा। इसलिए इसे वास्तविक मानकर अपने मार्ग को स्वयं प्रशस्त करना चाहिए।
- अमरत्व – विधान से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – अमरत्व-विधान का अर्थ है ऐसा जीवन जीना जिससे मृत्यु के बाद भी व्यक्ति का नाम, कार्य और प्रेरणा अमर बनी रहे। कवि चाहता है कि मनुष्य ऐसा कुछ करे जो समाज के लिए उपयोगी हो, जिससे वह सदा के लिए स्मरणीय बन जाए। यह कर्म की अमरता की प्रेरणा है।
- अपने गौरव का किस प्रकार ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर – कवि के अनुसार हर मनुष्य को यह स्मरण रहना चाहिए कि वह भी कुछ है। आत्मगौरव और आत्मसम्मान का बोध व्यक्ति को महान बनाता है। भले ही सब कुछ चला जाए, पर मान बना रहना चाहिए। आत्मबल और आत्मविश्वास के साथ कार्य करते हुए अपने गौरव को बनाए रखना चाहिए।
- कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर – इस कविता का प्रतिपाद्य यह है कि मनुष्य को कभी भी निराश नहीं होना चाहिए। उसे अपने आत्मबल, साधनों और ईश्वर में विश्वास रखते हुए कर्मशील रहना चाहिए। जीवन को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए, बल्कि इसे सार्थक और प्रेरणादायक बनाकर समाज में अपनी पहचान स्थापित करनी चाहिए।
(इ) सप्रसंग व्याख्या करो (लगभग 100 शब्दों में) :-
- सँभलो कि सु-योग न जाए चला,
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला?
उत्तर – प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘नर हो, न निराश करो मन को’ कविता से ली गई हैं, जिसमें कवि आत्मबल और कर्मशीलता का संदेश देता है।
व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि मनुष्य को चेताता है कि जीवन में आने वाले शुभ अवसर को पहचानो और उसका लाभ उठाओ। समय बीत जाने पर पछतावा ही शेष रह जाता है। कवि कहता है कि जो व्यक्ति उचित प्रयास करता है, उसका प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाता। इसलिए हर मनुष्य को समय का मूल्य समझते हुए उसे सार्थक कार्यों में लगाना चाहिए। यह संदेश प्रेरणा और आत्मविश्वास से भर देता है।
- जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ,
फिर जा सकता वह सत्व कहाँ?
उत्तर – सप्रसंग – यह पंक्तियाँ भी ‘नर हो, न निराश करो मन को’ कविता से ली गई हैं, जो आत्मबोध और आत्मगौरव की भावना से ओतप्रोत है।
व्याख्या – कवि कहता है कि जब तुम्हारे पास जीवन के सभी मूल तत्व—ज्ञान, विवेक, शक्ति और आत्मबल—उपलब्ध हैं, तो फिर आत्मा (सत्त्व) कैसे खो सकती है? यह तुम्हारे भीतर ही है। इस आत्मिक शक्ति को पहचानो और अपने जीवन को सार्थक बनाओ। यह पंक्तियाँ आत्म-विश्वास जगाती हैं और हमें अपने अंदर की क्षमताओं को पहचानकर कर्मपथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं।
भाषा एवं व्याकरण ज्ञान
- कविता के आधार पर इन शब्दों के तुकांत शब्द लिखो :-
अर्थ, तन, चला, सपना, तत्त्व, यहाँ, ज्ञान, मान
उत्तर – अर्थ – व्यर्थ
तन – मन
चला – भला
सपना – अपना
तत्त्व – सत्त्व
यहाँ – कहाँ
ज्ञान – ध्यान
मान – गान
- इन शब्दों में से उपसर्ग अलग करो :-
व्यर्थ, उपयुक्त, सु-योग, सदुपाय, प्रशस्त, अवलम्बन, निराश
उत्तर – व्यर्थ – वि + अर्थ
उपयुक्त – उप + युक्त
सु-योग – सु + योग
सदुपाय – सद् + उपाय
प्रशस्त – प्र + शस्त
अवलम्बन – अव + लम्बन
निराश – नि: + आश
- इन शब्दों के विलोम शब्द लिखो :-
निज, उपयुक्त, निराश, अपना, सुधा, ज्ञान, मान, जन्म
उत्तर – निज – पराया, पर
उपयुक्त – अनुपयुक्त, अयोग्य
निराश – आशावान, आशापूर्ण
अपना – पराया
सुधा – विष
ज्ञान – अज्ञान
मान – अपमान
जन्म – मृत्यु
- इन शब्दों के तीन-तीन पर्यायवाची शब्द लिखो :-
नर, जग, अर्थ, पथ, अखिलेश्वर
उत्तर – नर – मनुष्य, मानव, पुरुष
जग – संसार, विश्व, पृथ्वी
अर्थ – मतलब, अभिप्राय, मर्म
पथ – मार्ग, रास्ता, पथिक मार्ग
अखिलेश्वर – ईश्वर, परमात्मा, सर्वशक्तिमान
- ‘अमरत्व’ शब्द में ‘त्व’ प्रत्यय लगा है। भाववाचक ‘त्व’ प्रत्यय खासकर भाववाचक संज्ञा का द्योतक है।
‘त्व’ प्रत्ययवाले किन्हीं दस शब्द लिखो।
उत्तर – वीरत्व – वीर होने की अवस्था
नरत्व – मनुष्य होने की अवस्था
देवत्व – देवता का स्वभाव या गुण
मातृत्व – माता का भाव
पितृत्व – पिता का भाव
राजत्व – राजा होने की अवस्था
बंधुत्व – भाईचारा, मित्रता का भाव
शत्रुत्व – शत्रुता का भाव
गुरुत्व – गुरु का गुण, गंभीरता
महत्त्व – महत् होने का भाव
योग्यता- विस्तार
- व्यक्ति अपने किन कर्मों से अमर हो जाता है?
उत्तर – व्यक्ति अपने श्रेष्ठ और परोपकारी कर्मों के माध्यम से अमर होता है। जो व्यक्ति आत्मगौरव, ईमानदारी, सेवा और सच्चाई के पथ पर चलता है तथा अपने कर्मों से समाज और मानवता का भला करता है, उसका नाम युगों तक याद किया जाता है। कविता के अनुसार, हमें निराश न होकर सदा कर्मशील रहना चाहिए और अपने जीवन को इतना सार्थक बनाना चाहिए कि मृत्यु के बाद भी लोग हमारे कार्यों को गाते रहें। निस्वार्थ सेवा, सच्चा ज्ञान और आत्मबल ही मनुष्य को सच्चे अर्थों में अमरत्व प्रदान करते हैं।
- मैथिलीशरण गुप्त की समान भाववाली कोई अन्य रचना याद करो और कक्षा में सुनाओ।
उत्तर – मैथिलीशरण गुप्त की ‘नर हो, न निराश करो मन को’ जैसी प्रेरणादायक भावना उनकी कई रचनाओं में देखने को मिलती है। ऐसी ही एक समान भाववाली प्रसिद्ध रचना है — “जय भारत! जय वीर वृंद!” (खंड-काव्य भारत-भारती से)। यह रचना भी देशभक्ति, आत्मबल, और कर्तव्यबोध से ओतप्रोत है।
पंक्तियाँ –
जो भरा नहीं है भावों से,
बहती जिसमें रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
भावार्थ –
जिस हृदय में अपने देश के लिए प्रेम और भावना नहीं है, वह हृदय नहीं बल्कि एक पत्थर के समान है। यह पंक्तियाँ भी आत्मबोध, कर्तव्य और देशप्रेम से जुड़ी हैं, जो “नर हो, न निराश करो मन को” की भावना से मेल खाती हैं।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दीजिए-
- कवि ने मनुष्य को निराश न होने की प्रेरणा क्यों दी है?
उत्तर – कवि मैथिलीशरण गुप्त का मानना है कि मनुष्य में असीम शक्तियाँ हैं। वह यदि चाहे तो अपने पुरुषार्थ से कुछ भी कर सकता है। निराशा हमें निष्क्रिय बनाती है और जीवन को व्यर्थ बना देती है। इसलिए कवि प्रेरणा देते हैं कि मनुष्य को आशावादी रहकर अपने कर्म और आत्मबल से जीवन को सफल बनाना चाहिए। यही उसका कर्तव्य और उद्देश्य है।
- कविता में ‘अमरत्व’ प्राप्त करने का क्या मार्ग बताया गया है?
उत्तर – कवि के अनुसार अमरत्व प्राप्त करने का मार्ग आत्मबोध, सेवा, परिश्रम और कर्तव्य-पालन है। जो व्यक्ति अपने ज्ञान, शक्ति और साधनों का उपयोग जनकल्याण में करता है, वह मृत्यु के बाद भी लोगों की स्मृति में जीवित रहता है। यह अमरत्व केवल देह से नहीं, अपितु कर्मों से प्राप्त होता है।
- ‘हम भी कुछ हैं’ — इस भाव का व्यक्ति के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर – ‘हम भी कुछ हैं’ यह आत्मगौरव की भावना है। यह भावना व्यक्ति को आत्मविश्वास, आत्मसम्मान और प्रेरणा देती है। जब मनुष्य को यह बोध होता है कि वह भी समाज के लिए उपयोगी है, तब वह आलस्य और निराशा छोड़कर कर्मपथ पर अग्रसर होता है। यह विचार ही उसे सफल और सम्मानित बनाता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए-
- कवि ने जीवन को किस दृष्टि से देखने की प्रेरणा दी है?
उत्तर – कवि ने जीवन को कर्मभूमि मानने की प्रेरणा दी है। उन्होंने कहा है कि इसे स्वप्न न समझकर उपयोगी कार्यों में लगाना चाहिए।
- ‘स्वत्त्व-सुधा रस’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – ‘स्वत्त्व-सुधा रस’ का अर्थ है आत्मबोध और आत्मिक आनंद। कवि चाहते हैं कि हम अपने भीतर की शक्तियों को पहचानें और जीवन को सार्थक बनाएं।
- ‘अखिलेश्वर है अवलंबन को’ — इस पंक्ति का आशय क्या है?
उत्तर – इसका आशय है कि परमात्मा हर प्राणी का सहारा है। हमें ईश्वर पर विश्वास रखकर आगे बढ़ना चाहिए।
- कवि ने किस प्रकार के कर्म करने पर बल दिया है?
उत्तर – कवि ने उपयोगी, रचनात्मक और समाजहितकारी कर्म करने की प्रेरणा दी है, ताकि जीवन व्यर्थ न हो।
- ‘सब जाय अभी, पर मान रहे’ — इस पंक्ति में क्या संदेश है?
उत्तर – यह पंक्ति आत्मगौरव और आत्मसम्मान बनाए रखने का संदेश देती है, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।
बहुविकल्पीय प्रश्न
- कवि के अनुसार, मनुष्य को कभी भी क्या नहीं करना चाहिए?
क) कार्य करना
ख) आलस्य करना
ग) दूसरों की मदद करना
घ) ईश्वर का ध्यान करना
उत्तर – ख) आलस्य करना
- ‘निज गौरव का नित ज्ञान रहे’ से कवि का तात्पर्य क्या है?
क) आत्मसम्मान बनाए रखना
ख) दूसरों का आदर करना
ग) शारीरिक विकास
घ) सामाजिक संबंध बनाए रखना
उत्तर – क) आत्मसम्मान बनाए रखना
- ‘तुम स्वत्त्व-सुधा रस पान करो’ का क्या अर्थ है?
क) अपने कर्मों से प्रसन्न रहो
ख) आत्मबोध और आत्मज्ञान प्राप्त करो
ग) परोपकार करो
घ) समाज सेवा करो
उत्तर – ख) आत्मबोध और आत्मज्ञान प्राप्त करो
- ‘अखिलेश्वर है अवलंबन को’ से कवि क्या समझाना चाहता है?
क) समाज पर विश्वास रखो
ख) परमात्मा पर विश्वास रखो
ग) अपने कार्यों पर विश्वास रखो
घ) दूसरों पर विश्वास रखो
उत्तर – ख) परमात्मा पर विश्वास रखो
- कवि ने किस पर बल दिया है कि जीवन को सार्थक बनाने के लिए क्या करना चाहिए?
क) केवल भक्ति में लीन रहना
ख) केवल ज्ञान अर्जित करना
ग) कर्मशील रहना
घ) केवल शिक्षा प्राप्त करना
उत्तर – ग) कर्मशील रहना
रिक्त स्थान भरें –
- कवि के अनुसार, जीवन में __________ न हो, हमें सदा आशावादी रहना चाहिए।
उत्तर – निराशा
- ‘नर हो, न निराश करो मन को’ कविता में कवि ने __________ पर बल दिया है।
उत्तर – कर्मशीलता
- कविता में __________ का जिक्र किया गया है, जो मनुष्य को अपने कर्तव्यों को निभाने की प्रेरणा देता है।
उत्तर – अमरत्व
- ‘तुम स्वत्त्व-सुधा रस पान करो’ में कवि ने आत्मज्ञान और __________ की बात की है।
उत्तर – आत्मबल
- ‘निज गौरव का नित ज्ञान रहे’ में कवि ने आत्मसम्मान और __________ बनाए रखने का संदेश दिया है।
उत्तर – आत्मगौरव
सही मिलान करें –
- नर हो, न निराश करो मन को क) कर्मशीलता और आशावादिता का संदेश
- अखिलेश्वर है अवलंबन को ख) परमात्मा पर विश्वास रखना
- तुम स्वत्त्व-सुधा रस पान करो ग) आत्मज्ञान और आत्मबल प्राप्त करना
- निज गौरव का नित ज्ञान रहे घ) आत्मसम्मान बनाए रखना
- अमरत्व-विधान करो ङ) कर्मों से अमर होना
उत्तर –
1 – क
2 – ख
3 – ग
4 – घ
5 – ङ