लेखक परिचय – रामवृक्ष बेनीपुरी
(1902-1968)
यशस्वी ललित निबंधकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी आधुनिक हिंदी साहित्य की अमर विभूतियों में अन्यतम हैं। आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आपने गद्य लेखक, शैलीकार, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी, समाज सेवी और हिंदी प्रेमी के रूप में अपनी प्रतिभा की अमिट छाप छोड़ी है। राष्ट्र-निर्माण, समाज-संगठन और मानवता के जयगान को लक्ष्य मानकर बेनीपुरी जी ने ललित निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, नाटक, उपन्यास, कहानी, बाल साहित्य आदि विविध गद्य विधाओं में जो महान रचनाएँ प्रस्तुत की हैं, वे आज की युवा पीढ़ी के लिए भी अमोघ प्रेरणा की स्रोत हैं।
रामवृक्ष बेनीपुरी जी का जन्म 1902 ई. में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के अंतर्गत बेनीपुर नामक गाँव में हुआ था। बचपन में ही माता-पिता के देहावसान हो जाने के कारण आपका पालन-पोषण ननिहाल में हुआ। मैट्रिक की परीक्षा पास करने से पहले 1920 ई. में वे महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सेनानी के रूप में आपको 1930 ई. से 1942 ई. तक का समय जेल- यात्रा में ही व्यतीत करना पड़ा। इसी बीच आप पत्रकारिता एवं साहित्य सर्जना में भी जुड़े रहे। ‘बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन’ को खड़ा करने में आपने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वाधीनता-प्राप्ति के पश्चात् आपने साहित्य साधना के साथ-साथ देश और समाज के नवनिर्माण कार्य में अपने को जोड़े रखा। 1968 ई. में आपका स्वर्गवास हुआ।
बेनीपुरी जी पत्रकारिता जगत से साहित्य-साधना के संसार में आए। छोटी उम्र से ही आप पत्र-पत्रिकाओं में लिखने लगे थे। आगे चलकर आपने ‘तरुण भारत’, ‘किसान मित्र’, ‘बालक’, ‘युवक’, ‘कैदी’, ‘कर्मवीर’, ‘जनता’, ‘तूफान’, ‘हिमालय’ और ‘नई धारा’ नामक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। आपकी साहित्यिक रचनाओं की संख्या लगभग सौ है, जिनमें से अधिक रचनाएँ ‘बेनीपुरी ग्रंथावली’ नाम से प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कृतियों में से ‘गेहूँ और गुलाब’ (निबंध और रेखाचित्र), ‘वंदे वाणी विनायकौ’ (ललित गद्य), ‘पतितों के देश में’ (उपन्यास), ‘चिता के फूल’ (कहानी संग्रह), ‘माटी की मूरतें’ (रेखाचित्र), ‘अंबपाली’ (नाटक) विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
रामवृक्ष बेनीपुरी जी एक सशक्त गद्यकार हैं। उनकी भाषा-शैली जीवंत, अलंकारयुक्त, प्रवाहमयी और ओज गुण से परिपूर्ण है। रेखाचित्र, संस्मरण और ललित निबंधों की रचना में आपको विशेष सफलता मिली है। मानव सभ्यता का लेखा-जोखा लेने, भारतीय समाज के अतीत, वर्तमान और भविष्य में झाँकने और प्रतीकार्थ भरने की विशेषताओं के कारण बेनीपुरी जी के ललित निबंध बहुचर्चित रहे हैं।
‘नींव की ईंट’ बेनीपुरी जी के रोचक एवं प्रेरक ललित निबंधों में अन्यतम है।
‘नींव की ईंट’ पाठ का सार
‘नींव की ईंट’ का प्रतीकार्थ है- समाज का अनाम शहीद, जो बिना किसी यश-लोभ के समाज के नव-निर्माण हेतु आत्म-बलिदान के लिए प्रस्तुत है। ‘सुंदर इमारत’ का आशय है— नया सुंदर समाज। ‘कंगूरे की ईंट’ का प्रतीकार्थ है- समाज का यश-लोभी सेवक, जो प्रसिद्धि, प्रशंसा अथवा अन्य किसी स्वार्थवश समाज का काम करना चाहता है। निबंधकार के अनुसार भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के सैनिकगण नींव की ईंट की तरह थे, जबकि स्वतंत्र भारत के शासकगण कंगूरे की ईंट निकले। भारतवर्ष के सात लाख गाँवों, हजारों शहरों और सैकड़ों कारखानों के नव-निर्माण हेतु नींव की ईंट बनने के लिए तैयार लोगों की जरूरत है। परंतु विडंबना यह है कि आज कंगूरे की ईंट बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है। इस रूप में भारतीय समाज का नव-निर्माण संभव नहीं। इसलिए निबंधकार ने देश के नौजवानों से आह्वान किया है कि वे नींव की ईंट बनने की कामना लेकर आगे आएँ और भारतीय समाज के नव-निर्माण में चुपचाप अपने को खपा दें।
नींव की ईंट
वह जो चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत हैं, वह किस पर टिकी है? इसके कंगूरों को आप देखा करते हैं, क्या कभी आपने इसकी नींव की ओर भी ध्यान दिया है?
दुनिया चकमक देखती है, ऊपर का आवरण देखती है, आवरण के नीचे जो ठोस सत्य है उस पर कितने लोगों का ध्यान जाता है?
ठोस ‘सत्य’ सदा ‘शिवम्’ होता ही है, किंतु वह हमेशा ही ‘सुंदरम्’ भी हो यह आवश्यक नहीं।
सत्य कठोर होता है, कठोरता और भद्दापन साथ-साथ जन्मा करते हैं, जिया करते हैं। हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं इसीलिए सत्य सेभी भागते हैं। नहीं तो, हम इमारत के गीत नींव के गीत से प्रारंभ करते।
वह ईंट धन्य है, जो कट छँटकर कंगूरे पर चढ़ती है और बरबस लोक-लोचनों को अपनी ओर आकृष्ट करती है किंतु, धन्य है वह ईंट, जो जमीन के सात हाथ नीचे जाकर गड़ गई और इमारत की पहली ईंट बनी !
क्योंकि इसी पहली ईंट पर उसकी मजबूती और पुख्तेपन पर सारी इमारत की अस्ति नास्ति निर्भर करती है।
उस ईंट को हिला दीजिए, कंगूरा बेतहाशा जमीन पर आ रहेगा।
कंगूरे के गीत गानेवाले हम, आइए, अब नींव के गीत गाएँ।
वह ईंट जो जमीन में इसलिए गड़ गई कि दुनिया को इमारत मिले, कंगूरा मिले !
वह ईंट, जो सब ईंटों से ज्यादा पक्की थी, जो ऊपर लगी होती तो कंपूरे की शोभा सौ गुनी कर देती !
किंतु, जिसने देखा, इमारत की पायदारी उसकी नींव पर मुनहसिर होती है, इसलिए उसने अपने को नींव में अर्पित किया।
वह ईंट, जिसने अपने को सात हाथ जमीन के अंदर इसलिए गाड़ दिया कि इमारत जमीन के सौ हाथ ऊपर तक जा सके।
वह ईंट जिसने अपने लिए अंधकूप इसलिए कबूल किया कि ऊपर के उसके साथियों को स्वच्छ हवा मिलती रहे, सुनहली रोशनी मिलती रहे।
वह ईंट, जिसने अपना अस्तित्व इसलिए विलीन कर दिया कि संसार एक सुंदर सृष्टि देखे।
सुंदर सृष्टि ! सुंदर सृष्टि हमेशा ही बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का।
सुंदर इमारत बने, इसलिए कुछ पक्की पक्की लाल ईंटों को चुपचाप नींव में जाना है।
सुंदर समाज बने, इसलिए कुछ तपे तपाए लोगों को मौन-मूक शहादत का लाल सेहरा पहनना है।
शहादत और मौन-मूक! जिस शहादत को शोहरत मिली, जिस बलिदान को प्रसिद्धि प्राप्त हुई, वह इमारत का कंगूरा है-मंदिर का कलश है।
हाँ, शहादत और मौन मूक! समाज की आधारशिला यही होती है।
ईसा की शहादत ने ईसाई धर्म को अमर बना दिया, आप कह लीजिए। किंतु मेरी समझ से ईसाई धर्म को अमर बनाया उन लोगों ने, जिन्होंने उस धर्म के प्रचार में अपने को अनाम उत्सर्ग कर दिया। उनमें से कितने जिंदा जलाए गए, कितने सूली पर जढ़ाए गए, कितने वन-वन की खाक छानते जंगली जानवरों के शिकार हुए, कितने उससे भी भयानक भूख-प्यास के शिकार हुए।
उनके नाम शायद ही कहीं लिखे गए हों-उनकी चर्चा शायद ही कहीं होती हो किंतु ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य प्रताप से फल-फूल रहा है।
वे नींव की ईंट थे, गिरजाघर के कलश उन्हीं की शहादत से चमकते हैं।
आज हमारा देश आजाद हुआ सिर्फ उनके बलिदानों के कारण नहीं, जिन्होंने इतिहास में स्थान पा लिया है।
देश का शायद कोई ऐसा कोना हो, जहाँ कुछ ऐसे दधीचि नहीं हुए हों, जिनकी हड्डियों के दान ने ही विदेशी वृत्रासुर का नाश किया।
हम जिसे देख नहीं सकें, वह सत्य नहीं है, यह है मूढ़ धारणा!
ढूँढ़ने से ही सत्य मिलता है। हमारा काम है, धर्म है, ऐसी नींव की ईंटों की ओर ध्यान देना।
सदियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हमने पहला कदम बढ़ाया है।
इस नए समाज के निर्माण के लिए भी हमें नींव की ईंट चाहिए। अफसोस, कंगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईट बनने की कामना लुप्त हो रही है!
सात लाख गाँवों का नव-निर्माण! हजारों शहरों और कारखानों का नव-निर्माण ! कोई शासक इसे संभव नहीं कर सकता। जरूरत है ऐसे नौजवानों की, जो इस काम में अपने को चुपचाप खपा दें।
जो एक नई प्रेरणा से अनुप्राणित हों, एक नई चेतना से अभिभूत, जो शाबाशियों से दूर हों दलबंदियों से अलग।
जिनमें कंगूरा बनने की कामना न हो, कलश कहलाने की जिनमें वासना न हो। सभी कामनाओं से दूर सभी वासनाओं से दूर।
उदय के लिए आतुर हमारा समाज चिल्ला रहा है। हमारी नींव की ईंटें किधर हैं? देश के नौजवानों को यह चुनौती है !
शब्द |
शब्दार्थ |
अंग्रेज़ी अर्थ |
चमकीली (Chamakili) |
जो चमकदार हो, झिलमिलाता हुआ |
Shiny, bright |
सुंदर (Sundar) |
जो आकर्षक हो, जो देख में अच्छा लगे |
Beautiful, attractive |
सुघड़ (Sughad) |
जो ठीक, व्यवस्थित और सजा हुआ हो |
Neat, well-arranged |
इमारत (Imarat) |
भवन, घर, ढाँचा |
Building, structure |
कंगूरा (Kangura) |
छत या दीवार का ऊपर वाला भाग |
Parapet, pinnacle |
आवरण (Aavaran) |
जो चीज़ को ढकने या घेरने का काम करती हो |
Cover, layer |
सत्य (Satya) |
जो वास्तविकता के अनुरूप हो |
Truth |
शिवम् (Shivam) |
जो शुभ, कल्याणकारी या अच्छा हो |
Auspicious, benevolent |
कठोरता (Kathorta) |
जो कठिन, कड़ा और असंवेदनशील हो |
Rigidity, hardness |
भद्दापन (Bhadapan) |
जो असंस्कृत, अप्रिय या रूखा हो |
Crudeness, roughness |
धन्य (Dhanya) |
जो आदरणीय या पुण्यपूर्ण हो |
Blessed, venerable |
बेतहाशा (Betahasha) |
जो अत्यधिक, बेहिसाब हो |
Reckless, wild |
शहादत (Shahadat) |
बलिदान, किसी महान उद्देश्य के लिए मृत्यु का सामना |
Martyrdom, sacrifice |
कलश (Kalash) |
पवित्र जल रखने का बर्तन |
Sacred pitcher, pot |
व्यक्ति (Pyaakti) |
व्यक्ति, इंसान |
Person, individual |
विलीन (Bilin) |
जो खो गया हो, समाहित हो गया हो |
Vanished, absorbed |
उत्सर्ग (Utsarg) |
किसी चीज़ या वस्तु को अर्पित करना, बलिदान करना |
Sacrifice, offering |
प्रसिद्धि (Prasiddhi) |
ख्याति, प्रसिद्ध होना |
Fame, renown |
वासनाएँ (Vasanaen) |
इच्छाएँ, इच्छाशक्ति |
Desires, passions |
शाबाशी (Shabashi) |
प्रशंसा, उत्साहवर्धन |
Applause, commendation |
पुनर्निर्माण (Punarnirman) |
फिर से बनाना, निर्माण करना |
Reconstruction, re-building |
नव-निर्माण (Nav-Nirman) |
नया निर्माण, नवीनता की ओर कदम बढ़ाना |
New construction, renewal |
चिल्लाना (Chillana) |
जोर से बोलना या आवाज़ करना |
To shout, to yell |
चरण (Charan) |
पांव, पैरों का स्थान |
Foot, feet |
अस्तित्व (Astitva) |
किसी का अस्तित्व, मौजूदगी |
Existence, being |
प्रेरणा (Prerna) |
उत्तेजना या प्रेरणा देने वाली शक्ति |
Inspiration, motivation |
अतिरिक्त शब्दार्थ
सुघड़ – सुडौल, सुंदर आकार वाला
इमारत – बड़ा पक्का मकान
चकमक – चमकीलापन
बरबस – बलपूर्वक
नींव – महल, भवन आदि का सबसे नीचे का भाग, बुनियाद
लोक-लोचन – लोगों की आँखें
अस्ति नास्ति – अस्तित्व होना न होना,
पुख्तापन – मजबूती, दृढ़ता
बेतहाशा – शीघ्रता से, जल्दी ही
मुनहसिर – आश्रित निर्भर
पायदारी – टिकाऊपन
विलीन – मिटा देना
अंधकूप – अंधकार भरा नीचा स्थान
शोहरत – प्रसिद्धि, यश
ईसा – ईसा मसीह, जिन्होंने ईसाई धर्म का प्रवर्तन-प्रचार किया था।
शहादत – बलिदान
दधीचि – एक प्रसिद्ध ऋषि, जिन्होंने अपनी हड्डियों का दान देवराज इंद्र का वज्र बनाने के लिए कर दिया था।
आजाद – स्वाधीन, स्वतंत्र
कलश – मंदिर आदि का सबसे ऊपरी भाग
उत्सर्ग – न्योछावर, बलिदान
वृत्रासुर – एक अत्याचारी राक्षस
मूढ़ – मूर्ख, बेवकूफी पूर्ण
अफसोस – दुख
होड़ा-होड़ी – प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगिता
अनुप्राणित – प्रेरित, प्रोत्साहित
वासना – तीव्र इच्छा, कामना
कंगूरा – महल या भवन का सबसे ऊपरी भाग, शिखर का अंश
चुनौती – ललकार
अभिभूत – आनंद-मग्न
अभ्यासमाला
बोध एवं विचार
- पूर्ण वाक्य में उत्तर दो
(क) रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर – रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में हुआ था।
(ख) बेनीपुरी जी को जेल की यात्राएँ क्यों करनी पड़ी थी?
उत्तर – बेनीपुरी जी को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण कई बार जेल यात्राएँ करनी पड़ी थीं।
(ग) बेनीपुरी जी का स्वर्गवास कब हुआ था?
उत्तर – रामवृक्ष बेनीपुरी का स्वर्गवास 1968 में हुआ था।
(घ) चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत वस्तुतः किस पर टिकी होती है?
उत्तर – चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत वस्तुतः नींव की ईंटों पर टिकी होती है।
(ङ) दुनिया का ध्यान सामान्यतः किस पर जाता है?
उत्तर – दुनिया का ध्यान सामान्यतः इमारत के कंगूरे और बाहरी चमक-दमक पर जाता है, न कि उसकी नींव पर।
(च) नींव की ईंट को हिला देने का परिणाम क्या होगा?
उत्तर – नींव की ईंट को हिला देने से पूरी इमारत गिर जाएगी।
(छ) सुंदर सृष्टि हमेशा ही क्या खोजती है?
उत्तर – सुंदर सृष्टि हमेशा ही बलिदान खोजती है, चाहे वह ईंट का हो या व्यक्ति का।
(ज) लेखक के अनुसार गिरजाघरों के कलश वस्तुतः किनकी शहादत से चमकते हैं?
उत्तर – लेखक के अनुसार गिरजाघरों के कलश उन अनाम शहीदों की शहादत से चमकते हैं, जिन्होंने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
(झ) आज किसके लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है?
उत्तर – आज कंगूरे की ईंट बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, जबकि नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है।
(ञ) पठित निबंध में ‘सुंदर इमारत‘ का आशय क्या है?
उत्तर – पठित निबंध में ‘सुंदर इमारत’ से आशय एक समृद्ध, सुदृढ़ और उन्नत समाज से है, जिसकी नींव उन बलिदानी व्यक्तियों पर टिकी होती है, जो स्वयं को समर्पित कर देते हैं।
- अति संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में) :
(क) मनुष्य सत्य से क्यों भागता है?
उत्तर – मनुष्य कठोरता और भद्देपन से भागता है क्योंकि सत्य अक्सर कठोर होता है। इसलिए, सत्य को स्वीकार करने से बचने के लिए वह इससे दूर भागता है।
(ख) लेखक के अनुसार कौन-सी ईंट अधिक धन्य है?
उत्तर – लेखक के अनुसार वह ईंट अधिक धन्य है जो नींव में गड़ जाती है और पूरी इमारत का भार वहन करती है।
(ग) नींव की ईंट की क्या भूमिका होती है?
उत्तर – नींव की ईंट पूरी इमारत की मजबूती और स्थायित्व को सुनिश्चित करती है। यदि इसे हिला दिया जाए, तो इमारत ढह जाएगी।
(घ) कंगूरे की ईंट की भूमिका स्पष्ट करो।
उत्तर – कंगूरे की ईंट इमारत की शोभा बढ़ाने के लिए होती है। यह ऊपर से सुंदर दिखती है, परंतु इमारत का भार वहन नहीं करती।
(ङ) शहादत का लाल सेहरा कौन-से लोग पहनते हैं और क्यों?
उत्तर – वे लोग जो बिना किसी प्रसिद्धि की चाह के समाज और देश के निर्माण में योगदान देते हैं, वे मौन-मूक शहादत का सेहरा पहनते हैं।
(च) लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को किन लोगों ने अमर बनाया और कैसे?
उत्तर – लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को उन अनाम प्रचारकों ने अमर बनाया, जिन्होंने अत्याचार सहकर भी धर्म का प्रचार किया।
(छ) आज देश के नौजवानों के समक्ष चुनौती क्या है?
उत्तर – आज देश के नौजवानों के समक्ष चुनौती है कि वे समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए खुद को समर्पित करें, न कि केवल प्रसिद्धि की चाह रखें।
- संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में) :
(क) मनुष्य सुंदर इमारत के कंगूरे को तो देखा करते हैं, पर उसकी नींव की ओर उनका ध्यान क्यों नहीं जाता?
उत्तर – मनुष्य सदा बाहरी चमक-दमक पर आकर्षित होता है। वह सुंदरता और वैभव को देखता है, परंतु उसकी नींव की मजबूती और उसकी पीड़ा को नहीं समझता। इसका कारण यह है कि उसे सत्य को पूरा जानना आया ही नहीं है और न ही उसे पूर्ण सत्य के बारे में कभी बताया गया है।
(ख) लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने के लिए क्यों आह्वान किया है?
उत्तर – लेखक का मानना है कि समाज के निर्माण में नींव की ईंटों का सबसे बड़ा योगदान होता है, इसलिए हमें उनके योगदान की सराहना करनी चाहिए। यह सत्य है कि भले ही हमें नींव की ईंट न दिखे पर वास्तव में इमारत की आधारशिला वही है। इसलिए हमें भी अपने अस्तित्व को इतिहास में गुम करके ही सही पर एक विकसित समाज का निर्माण अवश्य करना चाहिए।
(ग) सामान्यतः लोग कंगूरे की ईंट बनना तो पसंद करते हैं, परंतु नींव की ईंट बनना क्यों नहीं चाहते?
उत्तर – लोग प्रशंसा और प्रसिद्धि की चाह रखते हैं, जो कंगूरे की ईंट को मिलती है। नींव की ईंट त्याग और समर्पण का प्रतीक होती है, जिसे कोई नहीं देखता। इसलिए, लोग कंगूरे की शोभा बनना पसंद करते हैं, लेकिन नींव की अनदेखी सहन नहीं कर सकते।
(घ) लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय किन्हें देना चाहता है और क्यों?
उत्तर – लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय उन अनाम प्रचारकों को देना चाहते हैं, जिन्होंने अपने प्राण न्योछावर कर दिए। वे नींव की ईंट की तरह गुमनाम रहे, कितनों को सूली पर चढ़ाया गया, जलाया गया, या भूख-प्यास से तड़पाया गया, लेकिन उन्होंने धर्म की जड़ें मजबूत कीं।
(ङ) हमारा देश किनके बलिदानों के कारण आजाद हुआ?
उत्तर – हमारा देश केवल उन्हीं बलिदानों से आजाद नहीं हुआ, जिनका इतिहास में उल्लेख है, बल्कि उन अनगिनत गुमनाम देशभक्तों की शहादत से भी, जिन्होंने निस्वार्थ भाव से संघर्ष किया। ऐसे कई अज्ञात वीरों ने अपने प्राण न्योछावर किए, जिनकी चर्चा इतिहास के पन्नों में नहीं होती।
(च) दधीचि मुनि ने किसलिए और किस प्रकार अपना बलिदान किया था?
उत्तर – दधीचि मुनि ने समाज और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उन्होंने देवताओं की रक्षा हेतु अपनी अस्थियाँ तक दान कर दीं, जिनसे वज्र बनाया गया और जिससे असुर वृत्रासुर का नाश हुआ। यह निःस्वार्थ बलिदान ‘नींव की ईंट’ के समान है।
(छ) भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने क्या कहा है?
उत्तर – लेखक का मानना है कि भारत के नव-निर्माण के लिए नींव की ईंटों की आवश्यकता है—ऐसे नौजवान, जो प्रसिद्धि और स्वार्थ से दूर रहकर देश की सेवा करें। केवल शासक ही इस कार्य को पूरा नहीं कर सकते, बल्कि समर्पित युवा वर्ग के बिना यह असंभव है।
(ज) ‘नींव की ईंट‘ शीर्षक निबंध का संदेश क्या है?
उत्तर – यह निबंध त्याग, बलिदान और निःस्वार्थ सेवा का संदेश देता है। यह हमें बताता है कि सशक्त समाज की नींव उन गुमनाम नायकों के बलिदान पर टिकी होती है, जो बिना किसी स्वार्थ के सेवा करते हैं। असली योगदान उन्हीं का होता है, जो बिना प्रशंसा की चाह के कार्य करते हैं।
- सम्यक् उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में)
(क) ‘नींव की ईंट‘ का प्रतीकार्थ स्पष्ट करो।
उत्तर – ‘नींव की ईंट’ का प्रतीकार्थ उन व्यक्तियों से है, जो समाज और राष्ट्र की उन्नति के लिए मौन रहकर बलिदान देते हैं। ये लोग प्रसिद्धि से दूर रहकर, समर्पण और निष्ठा के साथ कार्य करते हैं। जैसे एक इमारत की मजबूती उसकी नींव पर निर्भर करती है, वैसे ही समाज की स्थिरता उन व्यक्तियों के त्याग पर निर्भर करती है, जो निस्वार्थ भाव से कार्य करते हैं।
(ख) ‘कंगूरे की ईंट‘ के प्रतीकार्थ पर सम्यक् प्रकाश डालो।
उत्तर – कंगूरे की ईंट’ उन लोगों का प्रतीक है, जो समाज में दिखावे और प्रसिद्धि के लिए कार्य करते हैं। ये लोग ऊपरी तौर पर चमकते हैं और सभी का ध्यान आकर्षित करते हैं, लेकिन समाज की मजबूती में इनका योगदान सतही होता है। इन्हें सम्मान, प्रशंसा और मान्यता मिलती है, जबकि असली भार नींव की ईंटें वहन करती हैं। लेखक हमें यह समझाना चाहते हैं कि समाज की असली शक्ति वे लोग हैं, जो बिना किसी प्रसिद्धि के, मौन रहकर, सशक्त नींव बनाने में योगदान देते हैं।
(ग) हाँ, शहादत और मौन मूक! समाज की आधारशिला यही होती है‘ — का आशय बताओ।
उत्तर – इस कथन का अर्थ है कि समाज का निर्माण उन गुमनाम नायकों के बलिदान से होता है, जो किसी प्रशंसा या मान्यता की परवाह किए बिना निःस्वार्थ सेवा करते हैं। इतिहास में दर्ज नामी बलिदानियों के अलावा, अनगिनत ऐसे लोग होते हैं, जिन्होंने बिना किसी प्रसिद्धि की लालसा के समाज की नींव रखी। ये मौन-मूक शहीद होते हैं, जिनकी चर्चा बहुत कम होती है, लेकिन उनका योगदान सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। लेखक का संदेश है कि समाज की उन्नति के लिए हमें ऐसे निःस्वार्थ और समर्पित लोगों का आदर और सम्मान करना चाहिए।
- सप्रसंग व्याख्या करो :
(क) “हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं, इसीलिए सच से भी भागते हैं।”
उत्तर – प्रसंग – प्रस्तुत पंक्ति हिंदी साहित्य के प्रख्यात लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा लिखित निबंध ‘नींव की ईंट’ से ली गई है। इसमें लेखक सत्य और समाज की वास्तविकता पर प्रकाश डाल रहे हैं।
व्याख्या – लेखक का मानना है कि सत्य हमेशा कठोर होता है और इसकी स्वीकृति सहज नहीं होती। मनुष्य स्वभावतः सुंदरता और आकर्षण की ओर आकर्षित होता है, लेकिन कठोर और असुविधाजनक सत्य से बचने का प्रयास करता है। सत्य को स्वीकार करने के लिए साहस चाहिए, परंतु लोग इसकी कठोरता और भद्देपन के कारण इससे बचना चाहते हैं। इसी कारण वे बाहरी चमक-दमक की ओर अधिक ध्यान देते हैं और सच्चाई से मुँह मोड़ लेते हैं। लेखक यहाँ सत्य को अपनाने और आडंबर से दूर रहने का संदेश दे रहे हैं।
(ख) “सुंदर सृष्टि! सुंदर सृष्टि, हमेशा बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का।”
उत्तर – प्रसंग – यह पंक्ति ‘नींव की ईंट’ निबंध से ली गई है, जिसमें लेखक बलिदान के महत्त्व को रेखांकित कर रहे हैं।
व्याख्या – लेखक यहाँ यह कहना चाहते हैं कि संसार में कोई भी महान निर्माण बिना त्याग और बलिदान के संभव नहीं है। एक सुंदर और सुदृढ़ इमारत की नींव रखने के लिए कुछ मजबूत ईंटों को स्वयं को गहराई में गाड़ना पड़ता है, जिससे पूरी इमारत टिकी रह सके। इसी तरह, एक सशक्त समाज या राष्ट्र के निर्माण के लिए कुछ व्यक्तियों को निःस्वार्थ भाव से अपने सुख-साधनों का त्याग करना पड़ता है। चाहे वह ईंट हो या व्यक्ति, हर बड़ी सृष्टि के पीछे बलिदान का योगदान होता है। यह उद्धरण हमें निःस्वार्थ सेवा और त्याग की प्रेरणा देता है।
(ग) अफसोस, कंगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है!”
उत्तर – प्रसंग – यह पंक्ति रामवृक्ष बेनीपुरी के निबंध ‘नींव की ईंट’ से ली गई है, जिसमें वे समाज में व्याप्त दिखावे और आत्म-प्रचार की प्रवृत्ति पर व्यंग्य कर रहे हैं।
व्याख्या – लेखक यहाँ यह कह रहे हैं कि आज के समाज में हर व्यक्ति प्रसिद्धि और सम्मान पाने की लालसा रखता है। सभी लोग ऊँचाई पर पहुँचकर चमकना चाहते हैं, ठीक वैसे ही जैसे इमारत का कंगूरा सबसे ऊँचा और आकर्षक होता है। लेकिन कोई भी व्यक्ति स्वयं को नींव की ईंट की तरह गहराई में जाकर समाज या राष्ट्र की मजबूती के लिए समर्पित नहीं करना चाहता। लेखक को इस बात का अफसोस है कि त्याग और सेवा की भावना समाप्त हो रही है, जबकि आत्म-प्रचार और दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ रही है। उनका संदेश यही है कि सच्चा योगदान वही है, जो बिना किसी प्रसिद्धि की चाह के किया जाए।
भाषा एवं व्याकरण- ज्ञान
- निम्नलिखित शब्दों में से अरबी और फारसी के शब्दों का चयन करो :-
इमारत, नींव, दुनिया, शिवम्, जमीन, कंगूरा, मुनहसिर, अस्तित्व, शहादत, कलश, आवरण, रोशनी, बलिदान, शासक, आजाद, अफसोस, शोहरत
उत्तर – इमारत (फारसी)
नींव (फारसी)
जमीन (फारसी)
कंगूरा (फारसी)
दुनिया (अरबी)
रोशनी (फारसी)
शासक (फारसी)
आजाद (फारसी)
अफसोस (फारसी)
मुनहसिर (अरबी)
शहादत (अरबी)
शोहरत (अरबी)
संस्कृत मूल के शब्द –
अस्तित्व
शिवम्
कलश
आवरण
बलिदान
- निम्नांकित शब्दों का प्रयोग करके वाक्य बनाओ :-
चमकीली, कठोरता, बेतहाशा, भयानक, गिरजाघर, इतिहास
उत्तर – चमकीली – रात में आसमान में चमकीली तारों की जगमगाहट बहुत सुंदर लग रही थी।
कठोरता – शिक्षक की कठोरता हमेशा छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के लिए होती है।
बेतहाशा – बारिश होते ही बच्चे बेतहाशा दौड़ते हुए घर की ओर भागे।
भयानक – जंगल में रात के समय भयानक आवाजें सुनाई दे रही थीं।
गिरजाघर – रविवार को लोग प्रार्थना करने के लिए गिरजाघर में एकत्रित हुए।
इतिहास – स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास हमें वीरों के बलिदान की याद दिलाता है।
- निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करो :-
(क) नहीं तो, हम इमारत की गीत नींव की गीत से प्रारंभ करते।
उत्तर – नहीं तो, हम इमारत के गीत नींव के गीत से प्रारंभ करते हैं।
(ख) ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य प्रताप से फल-फूल रहे हैं।
उत्तर – ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य प्रताप से फल-फूल रहा है।
(ग) सदियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हम पहला कदम बढ़ाए हैं।
उत्तर – सदियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हमने पहला कदम बढ़ाया है।
(घ) हमारे शरीर पर कई अंग होते हैं।
उत्तर – हमारे शरीर में कई अंग होते हैं।
(ङ) हम निम्नलिखित रूपनगर के निवासी प्रार्थना करते हैं।
उत्तर – हम, निम्नलिखित रूप में, नगर के निवासी प्रार्थना करते हैं।
(च) सब ताजमहल की सौंदर्यता पर मोहित होते हैं।
उत्तर – सब ताजमहल की सुंदरता पर मोहित होते हैं।
(छ) गत रविवार को वह मुंबई जाएगा।
उत्तर – गत रविवार को वह मुंबई गया था।
(ज) आप कृपया हमारे घर आने की कृपा करें।
उत्तर – आप हमारे घर आने की कृपा करें।
(झ) हमें अभी बहुत बातें सीखना है।
उत्तर – हमें अभी बहुत सी बातें सीखनी हैं।
(ञ) मुझे यह निबंध पढ़कर आनंद का आभास हुआ।
उत्तर – मुझे यह निबंध पढ़कर आनंद की अनुभूति हुई।
- निम्नलिखित लोकोक्तियों का भाव-पल्लवन करो :-
(क) अधजल गगरी छलकत जाए।
उत्तर – यह लोकोक्ति उस व्यक्ति पर लागू होती है, जो कम समझ रखने के बावजूद अपने आपको ज्यादा ज्ञानी या महत्त्वपूर्ण समझता है। जैसे अधजल गगरी में पानी होता है, वह छलकता है, उसी तरह कोई व्यक्ति जितना कम जानता है, उतना ही अधिक वह अपनी बातों को फैलाता है।
(ख) होनहार बिरवान के होत चिकने पात।
उत्तर – इसका अर्थ है कि सक्षम और प्रतिभाशाली व्यक्ति की सफलता उसी प्रकार सुनिश्चित होती है जैसे चिकने पत्तों पर पानी तेजी से बहता है। यदि किसी व्यक्ति में गुण और क्षमता है, तो वह अपने प्रयासों में सफलता प्राप्त करेगा।
(ग) अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत।
उत्तर – यह लोकोक्ति उस स्थिति में इस्तेमाल होती है जब किसी ने समय रहते सही निर्णय नहीं लिया और अब पछताना बेकार है। जैसे खेत में चिड़ियाँ आकर अनाज खा चुकी होती हैं, वैसे ही गलती के बाद पछताने से कोई फायदा नहीं होता।
(घ) जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय।
उत्तर – इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति भगवान के संरक्षण में होता है, उसे कोई भी बुरी शक्ति नुकसान नहीं पहुँचा सकती। यदि किसी व्यक्ति को ऊपरवाला बचाना चाहे, तो उसे कोई भी नहीं हरा सकता।
- निम्नलिखित शब्दों के दो-दो अर्थ बताओ :
अंबर, उत्तर, काल, नव, पत्र, मित्र, वर्ण, हार, कल, कनक
अंबर –
(क) आकाश, आकाशमंडल
(ख) कपड़ा
उत्तर –
(क) दिशा – जो उत्तर दिशा के रूप में होती है
(ख) जवाब, प्रतिक्रिया
काल –
(क) समय – भूतकाल, वर्तमान काल
(ख) मृत्यु, भगवान का रूप
नव –
(क) नया, नया प्रारंभ
(ख) संख्या नौ
पत्र –
(क) पत्रिका, कागज का टुकड़ा, जो लिखा जाता है
(ख) पौधों का पत्ता
मित्र –
(क) दोस्त, साथी
(ख) किसी कार्य में सहायक या सहयोगी
वर्ण –
(क) रंग
(ख) जाति, वर्ग
हार –
(क) पराजय, जीतने में असफल होना
(ख) आभूषण, गहना
कल –
(क) कल यानी आगामी दिन
(ख) मशीन
कनक –
(क) सोना, स्वर्ण
(ख) धतूरा
- निम्नांकित शब्द जोड़ों के अर्थ का अंतर बताओ :
अगम-दुर्गम, अपराध-पाप, अस्त्र-शस्त्र, आधि-व्याधि, दुख-खेद, स्त्री- पत्नी, आज्ञा अनुमति, अहंकार- गर्व
उत्तर – अगम – दुर्गम
अगम – जिसे समझना या जानना कठिन हो, या जिसकी पहुँच न हो (अप्राप्त)।
दुर्गम – वह स्थान जो पहुँचने में कठिन हो, जैसे पहाड़, जंगल, आदि।
अपराध – पाप
अपराध – किसी समाज या कानून द्वारा दोषी ठहराए गए कार्य, जो अपराध की श्रेणी में आता है।
पाप – धार्मिक या नैतिक दृष्टि से बुरा कार्य, जो ईश्वर या धर्म के नियमों के विरुद्ध होता है।
अस्त्र – शस्त्र
अस्त्र – ऐसा हथियार जो फेंका जा सकता है, जैसे बाण, त्रिशूल।
शस्त्र – ऐसा हथियार जिसे हाथ में पकड़ा जा सकता है, जैसे तलवार, ढाल।
आधि – व्याधि
आधि – मानसिक या शारीरिक कष्ट, जैसे ताप, सिरदर्द आदि।
व्याधि – शारीरिक बीमारी, रोग या अन्य किसी तरह की शारीरिक परेशानी।
दुख – खेद
दुख – किसी भी प्रकार का शारीरिक या मानसिक कष्ट, दुख या पीड़ा।
खेद – पछतावा या अपसी दुःख, जो किसी घटना या कार्य से उत्पन्न होता है।
स्त्री – पत्नी
स्त्री – महिला या किसी समाज में महिला का सामान्य रूप।
पत्नी – विवाह के बाद महिला का विशिष्ट रूप, जो पति की संगिनी होती है।
आज्ञा – अनुमति
आज्ञा – किसी कार्य को करने की अनुमति या आदेश, जो उच्चाधिकार से दी जाती है।
अनुमति – किसी कार्य को करने की स्वीकृति या इजाज़त, जो किसी व्यक्ति या प्राधिकरण द्वारा दी जाती है।
अहंकार – गर्व
अहंकार – आत्ममुग्धता, अपने को दूसरों से श्रेष्ठ समझना।
गर्व – अपने किसी कार्य, गुण, या उपलब्धि पर गर्व करना, लेकिन यह अहंकार से अलग होता है, क्योंकि गर्व में विनम्रता हो सकती है।
योग्यता- विस्तार
- रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित ‘मशाल‘ तथा ‘गेहूँ और गुलाब‘ शीर्षक निबंधों का संग्रह करके पढ़ो और उनमें निहित संदेश सहपाठियों को बताओ।
उत्तर – मवृक्ष बेनीपुरी के निबंध ‘मशाल’ और ‘गेहूँ और गुलाब’ में निहित संदेश समाज और जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं। दोनों निबंधों में जीवन की सच्चाई, संघर्ष, और मानवीय मूल्यों की गहरी समझ है।
- मशाल –
निबंध “मशाल” में लेखक ने संघर्ष और बलिदान का महत्त्व बताया है। यह निबंध उन व्यक्तियों की मिसाल देता है जो अपनी भूमिका समाज के कल्याण के लिए निभाते हैं, भले ही उन्हें कोई पहचान या प्रशंसा न मिले। ‘मशाल’ का प्रतीक उन लोगों का है जो समाज में बदलाव लाने के लिए अंधेरे में अपनी राह पर चलते हैं, जैसे मशाल को प्रकाश देने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। इस निबंध का संदेश है कि हमें अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए अपने कार्यों को निरंतरता से करते रहना चाहिए, चाहे परिणाम क्या हों।
- गेहूँ और गुलाब –
निबंध ‘गेहूँ और गुलाब’ में रामवृक्ष बेनीपुरी ने जीवन की कठिनाइयों और सुख-संवेदनाओं की तुलना की है। यहाँ लेखक ने गेहूँ और गुलाब के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया है। जहाँ गेहूँ कठोर परिश्रम, संघर्ष और अस्तित्व की प्रतीक है, वहीं गुलाब सौंदर्य, प्रेम और शांति का प्रतीक है। इस निबंध में यह सिखाया गया है कि जीवन में हमें संघर्ष और सुख दोनों के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए। हमें अपनी मेहनत से न केवल सफलता प्राप्त करनी चाहिए, बल्कि साथ ही जीवन के छोटे-छोटे सुखों को भी अपनाना चाहिए।
संदेश –
इन दोनों निबंधों में समाज की सेवा, संघर्ष, बलिदान, और जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने का प्रयास किया गया है। रामवृक्ष बेनीपुरी ने यह संदेश दिया है कि जीवन में हमें अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए न केवल कठिनाइयों से लड़ना चाहिए, बल्कि छोटी खुशियों को भी अपना बनाना चाहिए। साथ ही, हमें समाज में बदलाव लाने के लिए अपना योगदान देना चाहिए, भले ही हमें उस बदलाव के लिए कोई पुरस्कार न मिले।
- ललित निबंध की विशेषताओं के बारे में जानकारी प्राप्त करो।
उत्तर – ललित निबंध एक प्रकार का निबंध होता है जो संज्ञा, सूचनाओं और विचारों को सहज, आकर्षक, और संवेदनशील रूप में प्रस्तुत करता है। यह निबंध अधिकतर रचनात्मक और भावनात्मक होता है, जिसमें लेखक अपने व्यक्तिगत अनुभवों, आस्थाओं और दृष्टिकोण को कविता जैसी लय और शैली में प्रस्तुत करता है। ललित निबंध की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- रचनात्मकता (Creativity) –
ललित निबंध में रचनात्मकता की प्रधानता होती है। लेखक अपनी कल्पना और सोच का स्वतंत्र रूप से प्रयोग करता है, ताकि वह पाठकों को एक नए दृष्टिकोण से विचार करने के लिए प्रेरित कर सके। इसमें साहित्यिक छवियाँ, रूपक, अलंकार आदि का उपयोग किया जाता है।
- शैली और भाषा –
ललित निबंध की शैली सरल, सहज और आकर्षक होती है। भाषा में संवेदनशीलता होती है, जो पाठक के दिल को छूने का प्रयास करती है। इसमें सुंदरता, लय, और शब्दों का सही प्रयोग किया जाता है। साहित्यिक सौंदर्य की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है।
- भावनात्मक प्रभाव (Emotional Appeal) –
इस प्रकार के निबंध में लेखक अपने विचारों को पाठकों तक पहुँचाने के लिए भावनाओं का प्रयोग करता है। यह भावनाओं के मिश्रण से पाठक के मन पर गहरी छाप छोड़ने का प्रयास करता है। लेखक किसी विषय पर गहरी संवेदनशीलता और प्रेम से विचार करता है।
- कल्पनाशीलता और विचारशीलता –
ललित निबंध में लेखक का उद्देश्य किसी एक विचार या भावना को प्रभावी रूप से व्यक्त करना होता है। इसमें कल्पनाशीलता का भी प्रकट रूप होता है, जिसमें लेखक अपने विचारों को नए तरीके से प्रस्तुत करता है। इसमें विचारशीलता और विश्लेषण की गहराई होती है।
- सौंदर्यबोध (Aesthetic Sense) –
ललित निबंध में सौंदर्यबोध का तत्व प्रमुख होता है। लेखक अपने विचारों और अनुभवों को इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि पाठक को उसमें गहरी सटीकता और सुंदरता का अहसास हो। यह न केवल विचारधारा का, बल्कि कला का भी सम्मिलन होता है।
- प्रभावशाली समाप्ति (Effective Conclusion) –
ललित निबंध के अंत में लेखक अपनी बात को संक्षेप और प्रभावी रूप से प्रस्तुत करता है। इसका उद्देश्य पाठक के मन में एक गहरी छाप छोड़ना होता है। अंत में लेखक पाठक को एक सकारात्मक विचार या दृष्टिकोण देने का प्रयास करता है।
- विषय का चयन –
ललित निबंध किसी भी सामान्य या व्यक्तिगत अनुभव, समाज, प्रकृति, कला, साहित्य आदि पर आधारित हो सकता है। इनका चयन आमतौर पर वह होता है, जो जीवन के सुसंस्कृत और सांस्कृतिक पहलुओं से संबंधित हो। यह संवेदनशील और कलात्मक दृष्टिकोण से विषयों को प्रस्तुत करता है।
- व्यक्तित्व और शैली की प्रकटता –
ललित निबंध लेखक के व्यक्तित्व और उसके दृष्टिकोण का अभिव्यक्ति होता है। इसमें लेखक की निजी सोच, दृष्टिकोण और अनुभव पर जोर दिया जाता है। यह एक प्रकार से लेखक की रचनात्मकता और विचारधारा को दर्शाता है।
निष्कर्ष –
ललित निबंध एक विचारपूर्ण और संवेदनशील रचनात्मक प्रयास होता है, जो समाज, जीवन और व्यक्तिगत अनुभवों की गहरी समझ को सुंदर और आकर्षक भाषा में प्रस्तुत करता है। इसमें सौंदर्यबोध, रचनात्मकता, और भावनाओं का अद्वितीय मिश्रण होता है, जो पाठक को प्रभावित करता है।