चिट्ठियों की अनूठी दुनिया – पाठ का परिचय
विचारों और भावों के आदान-प्रदान मानव के लिए एक अपरिहार्य सामाजिक कार्य है। पहले यह कार्य मौखिक रूप से संपन्न होता था। कालान्तर में लिपि के विकास होने के पश्चात लिखित रूप में यह कार्य होने लगा। ‘पत्र लेखन’ इसी की एक कड़ी है। प्राचीन काल से ही संदेश के आदान-प्रदान के लिए पत्रों का व्यवहार राजकीय और पारिवारिक क्षेत्रों में होता रहा है। संदेश वाहक के रूप में पत्र का पत्र – वाहक के रूप में कबूतर, हरकारा, डाकिया आदि का महत्त्व बढ़ने लगा। धीरे-धीरे पत्रों का ऐतिहासिक और साहित्यिक महत्त्व भी बढ़ा। परन्तु युग परिवर्तन के साथ-साथ तथा सूचना प्रौद्योगिकी के कारण पत्रों के आदान-प्रदान में कुछ कमी आयी। टेलीफोन, मोबाइल, फैक्स, ई-मेल, इंटरनेट आदि नए-नए माध्यमों के कारण पत्रों का व्यवहार कम होने लगा। परन्तु यह विचारणीय है कि जो अनुभूति और भाव पत्रों से जुड़े होते हैं, वे आधुनिक संचार माध्यमों में भी उसी प्रकार प्राप्त होते हैं या नहीं। गौर से देखने पर यह अनुभूत होता है कि पत्र में कुछ ऐसे गुण होते हैं जो नए संचार माध्यमों में परिलक्षित नहीं होते। इस लिए पत्रों का महत्त्व अभी बरकरार है। प्रस्तुत लेख में लेखक श्री अरविंद कुमार सिंह ने इसी तथ्य को उजागर करने का प्रयास किया है।
चिट्ठियों की अनूठी दुनिया
पत्रों की दुनिया भी अजीबो-गरीब है और उसकी उपयोगिता हमेशा से बनी रही है। पत्र जो काम कर सकते हैं, वह संचार का आधुनिकतम साधन नहीं कर सकता है। पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश कहाँ दे सकता है। पत्र एक नया सिलसिला शुरू करते हैं और राजनीति, साहित्य तथा कला के क्षेत्रों में तमाम विवाद और नई घटनाओं की जड़ भी पत्र ही होते हैं। दुनिया का तमाम साहित्य पत्रों पर केंद्रित है और मानव सभ्यता के विकास में इन पत्रों ने अनूठी भूमिका निभाई है। पत्रों का भाव सब जगह एक-सा है, भले ही उसका नाम अलग-अलग हो। पत्र को उर्दू में खत, संस्कृत में पत्र, कन्नड़ में कागद, तेलुगु में उत्तरम्, जाबू और लेख तथा तमिल में कडिद कहा जाता है। पत्र यादों को सहेज कर रखते हैं, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है। हर एक की अपनी पत्र लेखन कला है और हर एक के पत्रों का अपना दायरा। दुनिया भर में रोज करोड़ों पत्र एक दूसरे को तलाशते तमाम ठिकानों तक पहुँचते हैं। भारत में ही रोज साढ़े चार करोड़ चिट्ठियाँ डाक में डाली जाती हैं जो साबित करती हैं कि पत्र कितनी अहमियत रखते हैं।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सन् 1953 में सही ही कहा था कि- “हजारों सालों तक संचार का साधन केवल हरकारे (रनर्स) या फिर तेज घोड़े रहे हैं। उसके बाद पहिए आए। पर रेलवे और तार से भारी बदलाव आया। तार ने रेलों से भी तेज गति से संवाद पहुँचाने का सिलसिला शुरू किया। अब टेलीफोन, वायरलेस और आगे रेडार- दुनिया बदल रहा है।”
पिछली शताब्दी में पत्र लेखन ने एक कला का रूप ले लिया। डाक व्यवस्था के सुधार के साथ पत्रों को सही दिशा देने के लिए विशेष प्रयास किए गए। पत्र संस्कृति विकसित करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र लेखन का विषय भी शामिल किया गया। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में ये प्रयास चले और विश्व डाक संघ ने अपनी ओर से भी काफी प्रयास किए। विश्व डाक संघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयुवर्ग के बच्चों के लिए पत्र लेखन प्रतियोगिताएँ आयोजित करने का सिलसिला सन् 1972 से शुरू किया गया। यह सही है कि खास तौर पर बड़े शहरों और महानगरों में संचार साधनों के तेज विकास तथा अन्य कारणों से पत्रों की आवाजाही प्रभावित हुई है, पर देहाती दुनिया आज भी चिट्ठियों से ही चल रही है। फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ने चिट्टियों की तेजी को रोका है पर व्यापारिक डाक की संख्या लगातार बढ़ रही है।
जहाँ तक पत्रों का सवाल है, अगर आप बारीकी से उसकी तह में जाएँ तो आपको ऐसा कोई नहीं मिलेगा जिसने कभी किसी को पत्र न लिखा या न लिखाया हो या पत्रों का बेसब्री से जिसने इंतजार न किया हो। हमारे सैनिक तो पत्रों का जिस उत्सुकता से इंतजार करते हैं, उसकी कोई मिसाल ही नहीं। एक दौर था जब लोग पत्रों का महीनों इंतजार करते थे पर अब वह बात नहीं। परिवहन साधनों के विकास ने दूरी बहुत घटा दी है। पहले लोगों के लिए संचार का इकलौता साधन चिट्ठी ही थी पर आज और भी साधन विकसित हो चुके हैं।
आज देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने पुरखों की चिट्ठियों को सहेज और संजोकर विरासत के रूप में रखे हुए हों या फिर बड़े-बड़े लेखक, पत्रकारों, उद्यमी, कवि, प्रशासक, संन्यासी या किसान, इनकी पत्र रचनाएँ अपने आप में अनुसंधान का विषय हैं। अगर आज जैसे संचार साधन होते तो पंडित नेहरू अपनी पुत्री इंदिरा गांधी को फोन करते, पर तब पिता के पत्र पुत्री के नाम नहीं लिखे जाते जो देश के करोड़ों लोगों को प्रेरणा देते हैं। पत्रों को तो आप सहेजकर रख लेते हैं पर एसएमएस संदेशों को आप जल्दी ही भूल जाते हैं। कितने संदेशों को आप सहेज कर रख सकते हैं? तमाम महान हस्तियों की तो सबसे बड़ी यादगार या धरोहर उनके द्वारा लिखे गए पत्र ही हैं। भारत में इस श्रेणी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को सबसे आगे रखा जा सकता है। दुनिया के तमाम संग्रहालय जानी-मानी हस्तियों के पत्रों का अनूठा संकलन भी है। तमाम पत्र देश, काल और समाज को जानने-समझने का असली पैमाना है। भारत में आजादी के पहले महासंग्राम के दिनों में जो कुछ अंग्रेज अफसरों ने अपने परिवारजनों को पत्र में लिखे, वे आगे चलकर बहुत महत्त्व की पुस्तक तक बन गए। इन पत्रों ने साबित किया कि यह संग्राम कितनी जमीनी मजबूती लिए हुए था।
महात्मा गांधी के पास दुनिया भर से तमाम पत्र केवल महात्मा गांधी- इंडिया लिखे आते थे और वे जहाँ भी रहते थे वहाँ तक पहुँच जाते थे। आजादी के आंदोलन की कई अन्य दिग्गज हस्तियों के साथ भी ऐसा ही था। गांधी जी के पास देश-दुनिया से बड़ी संख्या में पत्र पहुँचते थे पर पत्रों का जवाब देने के मामले में उनका कोई जोड़ नहीं था। कहा जाता है कि जैसे ही उन्हें पत्र मिलता था, उसी समय वे उसका जवाब भी लिख देते थे। अपने हाथों से ही ज्यादातर पत्रों का जवाब देते थे। जब लिखते-लिखते उनका दाहिना हाथ दर्द करने लगता था तो वे बाएँ हाथ से लिखने में जुट जाते थे। महात्मा गांधी ही नहीं आंदोलन के तमाम नायकों के पत्र गाँव-गाँव में मिल जाते हैं। पत्र भेजने वाले लोग उन पत्रों को किसी प्रशस्तिपत्र से कम नहीं मानते हैं और कई लोगों ने तो उन पत्रों को फ्रेम कराकर रख लिया है। यह है पत्रों का जादू। यही नहीं, पत्रों के आधार पर ही कई भाषाओं में जाने कितनी किताबें लिखी जा चुकी हैं।
वास्तव में पत्र किसी दस्तावेज से कम नहीं हैं। पंत के दो सौ पत्र बच्चन के नाम और निराला के पत्र हमको लिख्यौ है कहा तथा पत्रों के आईने में दयानंद सरस्वती समेत कई पुस्तकें आपको मिल जाएँगी। कहा जाता है कि प्रेमचंद खास तौर पर नए लेखकों को बहुत प्रेरक जवाब देते थे तथा पत्रों के जवाब में वे बहुत मुस्तैद रहते थे। इसी प्रकार नेहरू और गांधी के लिखे गए रवींद्रनाथ टैगोर के पत्र भी बहुत प्रेरक हैं। ‘महात्मा और कवि’ के नाम से महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर के बीच सन् 1915 से 1941 के बीच पत्राचार का संग्रह प्रकाशित हुआ है जिसमें बहुत से नए तथ्यों और उनकी मनोदशा का लेखा-जोखा मिलता है।
पत्र व्यवहार की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। पर इसका असली विकास आजादी के बाद ही हुआ है। तमाम सरकारी विभागों की तुलना में सबसे ज्यादा गुडविल डाक विभाग की ही है। इसकी एक खास वजह यह भी है कि यह लोगों को जोड़ने का काम करता है। घर-घर तक इसकी पहुँच है। संचार के तमाम उन्नत साधनों के बाद भी चिट्ठी-पत्री की हैसियत बरकरार है। शहरी इलाकों में आलीशान हवेलियाँ हों या फिर झोपड़पट्टियों में रह रहे लोग, दुर्गम जंगलों से घिरे गाँव हों या फिर बर्फवारी के बीच जी रहे पहाड़ों के लोग, समुद्र तट पर रह रहे मछुआरे हों या फिर रेगिस्तान की ढाणियों में रह रहे लोग, आज भी खतों का ही सबसे अधिक बेसब्री से इंतजार होता है। एक दो नहीं, करोड़ों लोग खतों और अन्य सेवाओं के लिए रोज भारतीय डाकघरों के दरवाजों तक पहुँचते हैं और इसकी बहु आयामी भूमिका नजर आ रही है। दूर देहात में लाखों गरीब घरों में चूल्हे मनीआर्डर अर्थव्यवस्था से ही जलते हैं। गाँवों या गरीब बस्तियों में चिट्ठी या मनीआर्डर लेकर पहुँचने वाला डाकिया देवदूत के रूप में देखा जाता है।
श्री अरविंद कुमार सिंह
शब्द | हिंदी अर्थ | अंग्रेज़ी अर्थ |
पत्र | चिट्ठी, लेख | Letter, Epistle |
खत | पत्र, संदेश | Letter, Message |
दस्तावेज़ | अभिलेख, प्रमाण पत्र | Document, Record |
संचार | संवाद, सूचना आदान-प्रदान | Communication |
साधन | उपकरण, माध्यम | Means, Resource |
विरासत | धरोहर, संपत्ति | Heritage, Legacy |
धरोहर | संपत्ति, अमानत | Heritage, Legacy |
गुडविल | सद्भावना, प्रतिष्ठा | Goodwill, Reputation |
प्रशस्तिपत्र | सम्मान पत्र, प्रमाणपत्र | Certificate, Commendation |
संग्रहालय | अजायबघर, प्रदर्शनी स्थल | Museum |
बेसब्री | अधीरता, उतावला पन | Impatience, Eagerness |
तत्पर | तैयार, उत्सुक | Ready, Prompt |
आदान-प्रदान | लेन-देन, हस्तांतरण | Exchange, Transaction |
फ्रेम | चौखटा, ढाँचा | Frame, Structure |
अनुशीलन | अध्ययन, शोध | Study, Research |
परिवहन | यातायात, आवागमन | Transport, Transit |
महासंग्राम | महायुद्ध, क्रांति | Great Battle, Revolution |
पुश्तैनी | पूर्वजों से मिला हुआ | Ancestral, Hereditary |
अर्थव्यवस्था | वित्तीय व्यवस्था | Economy, Financial System |
अभिलेख | दस्तावेज़, रिकॉर्ड | Record, Archives |
संजोना | संरक्षित करना, संभालना | Preserve, Safeguard |
इतिहास | अतीत, बीती घटनाएँ | History, Past Events |
प्रतिस्थापित | स्थापित करना, बदलना | Replace, Establish |
प्रेरणा | उत्साह, दिशा निर्देश | Inspiration, Motivation |
संग्रह | जमावड़ा, संकलन | Collection, Compilation |
हस्ताक्षर | दस्तख़त, प्रमाणिक चिन्ह | Signature |
जागरूकता | सचेतता, सतर्कता | Awareness |
प्रतिक्रिया | उत्तर, प्रत्युत्तर | Response, Reaction |
संकलन | संग्रह, एकत्रीकरण | Compilation, Collection |
शब्दार्थ एवं टिप्पणी
अजीबो गरीब = अनोखा
एसएमएस = लघु संदेश सेवा
मुस्तैद = तत्पर
दस्तावेज = प्रमाण संबंधी कागजात, प्रमाणपत्र
सिलसिला = रास्ता खुलना, आरंभ होना,
गुडविल = सुनाम, अच्छी छवि
अहमियत = महत्त्व
हरकारा = दूत, डाकिया, संदेश पहुँचाने वाला
हैसियत = दरजा
आलीशान = शानदार
ढाँणी = अस्थायी निवास, कच्चे मकानों की बस्ती जो गाँव से कुछ दूर बनी हो
आवाजाही = आना-जाना
तह = गहराई
प्रशस्ति पत्र = प्रशंसा पत्र
बोध एवं विचार
- सही विकल्प का चयन करो :
(क) पत्र को उर्दू में क्या कहा जाता है?
(अ) खत
(आ) चिट्ठी
(इ) कागद
(ई) लेख
उत्तर – (अ) खत
(ख) पत्र लेखन है-
(अ) एक तरीका
(आ) एक व्यवस्था
(इ) एक कला
(ई) एक रचना
उत्तर – (इ) एक कला
(ग) विश्व डाक संघ ने पत्र लेखन की प्रतियोगिता शुरू की-
(अ) सन् 1970 से
(आ) सन् 1971 से
(इ) सन् 1972 से
(ई) सन् 1973 से
उत्तर – (इ) सन् 1972 से
(घ) महात्मा गाँधी के पास दुनियाभर से तमाम पत्र किस पते पर आते थे-
(अ) मोहन दास करमचन्द गाँधी- भारत
(आ) महात्मा गाँधी- भारत
(इ) बापू जी – इंडिया
(ई) महात्मा गाँधी- इंडिया
उत्तर – (ई) महात्मा गाँधी- इंडिया
(ङ) तमाम सरकारी विभागों की तुलना में सबसे ज्यादा गुडविल किसकी है-
(अ) रेल विभाग
(आ) डाक विभाग
(इ) शिक्षा विभाग
(ई) गृह विभाग
उत्तर – (आ) डाक विभाग
- संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में) :-
(क) पत्र ऐसा क्या काम कर सकता है, जो संचार का आधुनिकतम साधन भी नहीं कर सकता?
उत्तर – पत्र भावनाओं को स्थायी रूप से संजोकर रखने की क्षमता रखता है, जो फोन या एसएमएस नहीं कर सकते। यह आत्मीयता और गहरी संवेदनाओं को व्यक्त करने का माध्यम है।
(ख) चिट्टियों की तेजी अन्य किन साधनों के कारण बाधा प्राप्त हुई है?
उत्तर – पत्रों की तेजी फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल जैसे संचार साधनों के बढ़ते प्रयोग के कारण बाधित हुई है, जिससे पत्रों की पारंपरिक भूमिका सीमित हो गई है।
(ग) पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश क्यों नहीं दे सकता?
उत्तर – पत्र एक व्यक्तिगत और स्थायी दस्तावेज होता है, जिसे बार-बार पढ़ा जा सकता है, जबकि फोन या एसएमएस क्षणिक होते हैं और जल्दी भुला दिए जाते हैं।
(घ) गाँधीजी के पास देश-दुनिया से आये पत्रों का जवाब वे किस प्रकार देते थे?
उत्तर – गांधीजी पत्रों का उत्तर तुरंत देते थे। जब उनका दायाँ हाथ दर्द करता, तो वे बाएँ हाथ से लिखते थे, जिससे उनकी उत्तर देने की तत्परता स्पष्ट होती थी।
(ङ) कैसे लोग अब भी बहुत ही उत्सुकता से पत्रों का इंतजार करते हैं?
उत्तर – सैनिक, ग्रामीण लोग, व्यापारिक डाक प्राप्त करने वाले, बुजुर्ग, शोधकर्ता और ऐतिहासिक दस्तावेजों में रुचि रखने वाले व्यक्ति अब भी पत्रों का बहुत उत्सुकता से इंतजार करते हैं।
- उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में) :
(क) पत्र को खत, कागद, उत्तरम, लेख इत्यादि कहा जाता है। इन शब्दों से संबंधित भाषाओं के नाम बताओ।
उत्तर – पत्र को उर्दू में खत, संस्कृत में पत्र, कन्नड़ में कागद, तेलुगु में उत्तरम्, जाबू, लेख और तमिल में कडिद कहा जाता है। ये नाम पत्रों की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं।
(ख) पाठ के अनुसार भारत में रोज कितनी चिट्ठियाँ डाक में डाली जाती है और इससे क्या साबित होता है?
उत्तर – भारत में रोज़ लगभग साढ़े चार करोड़ चिट्ठियाँ डाक में डाली जाती हैं। यह साबित करता है कि संचार के आधुनिक साधनों के बावजूद पत्रों का महत्त्व बना हुआ है और वे विश्वसनीय माध्यम हैं। हाँ ये बात अवश्य है कि इसमें से कुछ व्यावसायिक और आधिकारिक पत्र भी होते हैं।
(ग) क्या चिट्ठियों की जगह कभी फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ले सकते हैं?
उत्तर – यह सत्य है कि फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन और मोबाइल ने पत्रों की उपयोगिता को कम किया है, लेकिन वे पत्रों की भावनात्मक गहराई और स्थायित्व को कभी पूरी तरह नहीं बदल सकते। पत्रों मेन जो बातें होती हैं वो संचार के आधुनिक साधनों मेन है ही नहीं। पत्र के लिए प्रेषक प्रेषिती के प्रति शब्दों के माध्यम से अपने भाव व्यक्त करता है जो अद्वितीय है।
(घ) किनके पत्रों से यह पता चलता है कि आजादी की लड़ाई बहुत ही मजबूती से लड़ी गयी थी?
उत्तर – अंग्रेज़ अफसरों के पत्रों से यह पता चलता है कि 1857 की क्रांति और आज़ादी की लड़ाई संगठित और मजबूत थी, जिससे यह संघर्ष ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित हुआ। इसके अतिरिक्त जवाहल लाल नेहरू के अपनी पुत्री इन्दिरा को पत्र भी इसी बात का प्रमाण है। इसके अलावा भगत सिंह का अपनी माता को पत्र भी एक ऐसा दस्तावेज़ है जो यह सिद्ध करता है कि आजादी की लड़ाई बहुत ही मजबूती से लड़ी गयी थी।
(ङ) संचार के कुछ आधुनिक साधनों के नाम उल्लेख करो।
उत्तर – संचार के आधुनिक साधन – मोबाइल फोन, ई-मेल, फैक्स, टेलीफोन, सोशल मीडिया (व्हाट्सएप, फेसबुक), वीडियो कॉलिंग (ज़ूम, गूगल मीट), टेलीविज़न प्रसारण इत्यादि।
- सम्यक् उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में) :-
(क) पत्र लेखन की कला के विकास के लिए क्या-क्या प्रयास हुए?
उत्तर – पत्र लेखन की कला के विकास के लिए कई प्रयास हुए। डाक व्यवस्था में सुधार कर पत्रों की सही दिशा सुनिश्चित की गई। स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र लेखन को शामिल किया गया ताकि बच्चों को इस कला में पारंगत किया जा सके। विश्व डाक संघ ने 1972 से 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए पत्र लेखन प्रतियोगिताएँ आयोजित करनी शुरू कीं। इन प्रयासों से पत्र संस्कृति को बढ़ावा मिला और संचार का यह माध्यम अधिक व्यवस्थित और प्रभावी बना।
(ख) वास्तव में पत्र किसी दस्तावेज से कम नहीं है-कैसे?
उत्तर – पत्र केवल संचार का माध्यम ही नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक दस्तावेज भी है। यह भावनाओं, घटनाओं और सामाजिक परिवर्तनों का प्रमाण होता है। कई महान हस्तियों के पत्रों को संग्रहालयों में संरक्षित किया गया है। महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, रवींद्रनाथ टैगोर जैसे नेताओं और लेखकों के पत्र ऐतिहासिक धरोहर हैं। स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े पत्रों ने इस संघर्ष की मजबूती को प्रमाणित किया। शोध और साहित्य में पत्रों का उपयोग प्रामाणिक दस्तावेजों के रूप में किया जाता है, जिससे वे ऐतिहासिक साक्ष्य बन जाते हैं।
(ग) भारतीय डाकघरों की बहुआयामी भूमिका पर आलोकपात करो।
उत्तर – भारतीय डाकघर केवल पत्रों की आवाजाही तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनकी भूमिका बहुआयामी है। वे मनीऑर्डर, बैंकिंग, बीमा, स्पीड पोस्ट, कोरियर सेवाएँ और सरकारी योजनाओं के वितरण में भी योगदान देते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में डाकिए को देवदूत माना जाता है, क्योंकि वह मनीऑर्डर और सरकारी सुविधाएँ लोगों तक पहुँचाता है। भारतीय डाक सेवा ने डाक जीवन बीमा, आधार नामांकन, डिजिटल सेवाओं के माध्यम से भी अपनी उपयोगिता बढ़ाई है। यह न केवल लोगों को आपस में जोड़ता है, बल्कि आर्थिक और प्रशासनिक सेवाओं के विस्तार में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भाषा एवं व्याकरण- ज्ञान
- केवल ‘पत्र‘ कहने से सामान्यतः चिट्ठियों के बारे में ही समझा जाता है। परंतु अन्य शब्दों के साथ संयोग से पत्र का अर्थ बदल जाता है, जैसे समाचार पत्र अब पत्र शब्द के योग से बनने वाले पाँच शब्द लिखो।
उत्तर – अंकपत्र
त्यागपत्र
आरोपपत्र
ताम्रपत्र
निमंत्रणपत्र
- ‘व्यापारिक‘ शब्द व्यापार के साथ ‘इक‘ प्रत्यय के योग से बना है। ‘इक‘ प्रत्यय के योग से बनने वाले पाँच शब्द पुस्तक से खोजकर लिखो।
उत्तर – व्यापारिक
सैनिक
ऐतिहासिक
धार्मिक
बौद्धिक
- दो स्वरों के मेल से होनेवाले परिवर्तन को स्वर संधि कहते हैं, जैसे-
रवीन्द्र = रवि + इन्द्र। इस संधि में इ + इ = ई हुई है। इसे दीर्घ संधि कहते हैं। संधियाँ चार प्रकार की मानी गई हैं- दीर्घ, गुण, वृद्धि और यण। ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के साथ ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, आ आए तो ये आपस में मिलकर क्रमशः दीर्घ आ, ई, ऊ हो जाते हैं, इसी कारण इस संधि को दीर्घ संधि कहते हैं, जैसे संग्रह + आलय = संग्रहालय,
महा + आत्मा = महात्मा।
इस प्रकार के दस उदाहरण खोजकर लिखो और अपने शिक्षक को दिखाओ।
उत्तर –
रवि + इन्द्र = रवीन्द्र
माता + अर्पण = मातार्पण
सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
विद्युत् + आलय = विद्युतालय
शिव + आलय = शिवालय
नदी + ईश = नदीश
सुख + अशय = सुखाशय
विद्या + आलय = विद्यालय
भू + ऊर्जा = भूर्जा
पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
योग्यता विस्तार :-
- पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए उपाय सुझाते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखो।
उत्तर –
दिनांक – 01/07/20XX
घर संख्या – W-565
मणि कॉलोनी
गुंटूर
प्रिय मित्र सुधीर,
(स्नेह भरा नमस्कार!)
आशा है कि तुम कुशल-मंगल होंगे। मैं यहाँ सकुशल हूँ और तुम्हारी कुशलता की कामना करता हूँ। आज मैं तुम्हें एक महत्त्वपूर्ण विषय पर लिख रहा हूँ – पर्यावरण संरक्षण।
हम देख रहे हैं कि दिन-ब-दिन प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। वायु, जल, ध्वनि और भूमि प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य और प्रकृति के लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, वाहनों से निकलता धुआँ, प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग और उद्योगों से निकलने वाले रसायन पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुँचा रहे हैं।
हमें कुछ आवश्यक कदम उठाने चाहिए –
पेड़ लगाएँ – अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें और जंगलों की कटाई रोकें।
प्लास्टिक का कम उपयोग करें – कपड़े या जूट के बैग अपनाएँ और प्लास्टिक के कचरे को कम करें।
स्वच्छता बनाए रखें – घर, स्कूल और सार्वजनिक स्थलों पर सफाई रखें।
कम ईंधन जलाएँ – साइकिल का उपयोग करें और वाहनों का सीमित प्रयोग करें।
पुनर्चक्रण (Recycling) को अपनाएँ – कागज, प्लास्टिक और अन्य सामग्रियों को पुनः उपयोग में लाएँ।
यदि हम इन उपायों को अपनाएँगे, तो हम अपने पर्यावरण को स्वच्छ और सुरक्षित बना सकते हैं। आशा है कि तुम भी अपने परिवार और मित्रों को जागरूक करोगे। मुझे लिखकर बताना कि तुम अपने आसपास क्या प्रयास कर रहे हो।
शेष अगले पत्र में, तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी।
तुम्हारा मित्र,
अवि
- पुस्तकालय में खोजकर जवाहरलाल नेहरू द्वारा इंदिरा गांधी को लिखे गये पत्रों का संग्रह ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम‘ पढ़ो और उन पत्रों में वर्णित विविध विषयों का ज्ञान प्राप्त करके मित्रों के साथ चर्चा करो।
उत्तर – ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ के विषयों पर चर्चा
जवाहरलाल नेहरू द्वारा इंदिरा गांधी को लिखे गए पत्रों का संकलन ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ भारतीय साहित्य का एक अनमोल रत्न है। ये पत्र केवल पिता-पुत्री के संवाद भर नहीं, बल्कि ज्ञान, इतिहास, विज्ञान और नैतिकता का खजाना हैं।
मुख्य विषय –
इतिहास और सभ्यता –
मनुष्य की उत्पत्ति और प्राचीन सभ्यताओं जैसे मिस्र, चीन, मेसोपोटामिया का वर्णन।
भारतीय संस्कृति, वैदिक सभ्यता, मौर्य और गुप्त काल की जानकारी।
भूगोल और प्रकृति –
नदियाँ, पर्वत, महासागर, पृथ्वी का निर्माण और प्रकृति के रहस्य।
जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण पर चर्चा।
राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता संग्राम –
ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष, महात्मा गांधी का नेतृत्व और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन।
देशप्रेम, सत्य, अहिंसा और संघर्ष की भावना का महत्व।
विज्ञान और तर्कशीलता –
विज्ञान के चमत्कार, खोजों और वैज्ञानिक सोच का विकास।
तारों, ग्रहों, पृथ्वी की गति और सौरमंडल की जानकारी।
नैतिकता और जीवन मूल्य –
सत्य, ईमानदारी, धैर्य और आत्मनिर्भरता के महत्व पर बल।
नैतिक मूल्यों की शिक्षा और आदर्श जीवन की प्रेरणा।
मित्रों के साथ चर्चा के लिए प्रश्न –
क्या इन पत्रों में दी गई ऐतिहासिक जानकारी आज भी प्रासंगिक है?
विज्ञान और प्रकृति के प्रति नेहरू जी का दृष्टिकोण कैसा था?
क्या इन पत्रों से हमें आज के समय के लिए कोई सीख मिलती है?
यह पुस्तक केवल इतिहास का दस्तावेज नहीं, बल्कि हमें तर्कशील और जागरूक नागरिक बनने की प्रेरणा भी देती है।