नरेंद्र शर्मा (1913-1989)
कवि नरेंद्र शर्मा आधुनिक हिंदी काव्यधारा के अंतर्गत छायावाद एवं छायावादोत्तर युगों में होने वाले व्यक्तिवादी गीति कविता के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध हैं। व्यक्तिगत प्रणयानुभूति, विरह-मिलन के चित्र, सुख-दुःख के भाव, प्रकृति-सौंदर्य, आध्यात्मिकता, रहस्यानुभूति, राष्ट्रीय भावना और सामाजिक विषमता के चित्रण के साथ उनके गीतों एवं कविताओं में विषयगत विविधता सहज ही देखी जा सकती है। मूलतः भावुक और कल्पनाशील कवि होने पर भी नरेंद्र शर्मा की कुछेक कविताओं में सामाजिक यथार्थ के चित्रण के कारण प्रगतिशीलता के भी दर्शन होते हैं।
गीतिकवि नरेंद्र शर्मा जी का जन्म सन् 1913 में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिलांतर्गत जहाँगीर नामक स्थान में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा वहीं हुई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने एम.ए. किया। तत्पश्चात् वे वाराणसी के काशी विद्यापीठ में शिक्षक नियुक्त हो गए। इसी दौरान देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण आपको नजरबंद भी होना पड़ा। फिल्म जगत से आकर्षित होकर आप मुंबई चले गए और वहाँ फिल्मों के लिए गीत लिखते रहे। बाद में आकाशवाणी के निमंत्रण को स्वीकार करते हुए उन्होंने रेडियो की सेवा शुरू की। आप आकाशवाणी में विविध भारती कार्यक्रम के संचालक नियुक्त हुए। इस पद पर रहते हुए आपने हिन्दी को खूब बढ़ावा दिया और सुरीले हिन्दी गीतों के प्रसारण के जरिए ‘विविध भारती’ कार्यक्रम को अत्यंत लोकप्रिय बनाया। सन् 1989 में इस यशस्वी गीति कवि का देहावसान हो गया।
पंडित नरेंद्र शर्मा की गीति-प्रतिभा के दर्शन छोटी अवस्था में ही होने लगे। उनके दो गीत संग्रह विद्यार्थी जीवन में ही प्रकाशित हुए। जीवन ने अंतिम दिनों तक आपकी लेखनी चलती रही। आपकी काव्य-कृतियों में ‘प्रभात फेरी’, ‘प्रवासी के गीत’, ‘पलाशवन’, मिट्टी के फूल’, ‘हंसमाला’, ‘रक्त चंदन’, ‘कदली वन’, ‘द्रौपदी’ (खंडकाव्य), ‘उत्तर जय’ (खंडकाव्य) और ‘सुवर्ण’ खंडकाव्य विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। ‘कड़वी-मीठी बातें’ उनका कहानी-संग्रह है।
यशस्वी गीतिकवि नरेंद्र शर्मा की काव्य-भाषा सरल, प्रांजल एवं सांगीतिक लय- युक्त खड़ी बोली है। आपने सहज प्रवाहमयी भाषा के जरिए कोमल और कठोर दोनों ही प्रकार के भावों को बखूबी अभिव्यक्ति दी है। माधुर्य एवं प्रसाद गुणों की बहुलता के साथ आपकी रचनाओं में कहीं-कहीं ओज गुण का भी संचार हुआ है। आत्मीयता, चित्रात्मकता और सहज आलंकारिकता आपकी काव्य-भाषा के तीन निराले गुण हैं।
कायर मत बन – पाठ का परिचय
कवि नरेंद्र शर्मा की दृष्टि मूलतः मानवतावादी रही है। मानवता का जयगान उनकी साहित्य-साधना का लक्ष्य रहा है, इसलिए उनकी रचनाओं से पुरुषार्थ, साहस एवं अडिग-अविचल भाव का संदेश मिलता है। संकलित ‘कायर मत बन’ शीर्षक कविता शर्मा की उत्कृष्ट रचनाओं में से अन्यतम है। इस प्रसिद्ध कविता में कवि ने मनुष्य मात्र से यह आग्रह किया है कि वह और कुछ भी बने, पर कायर कभी मत बने।
मनुष्य को चाहिए कि उसके मार्ग पर आनेवाली बाधाओं से वह साहस और दृढ़ता के साथ लड़े, कभी भी उनसे समझौता न करे, निराश होकर माथा न पटके, रोए गिड़गिड़ाए नहीं, कभी दुःख के आँसू न पीए। ‘युद्धं देहि’ (लड़ाई करो) कहकर अगर कोई दुष्ट और नीच व्यक्ति सामने आ जाए, तो मनुष्य को चाहिए कि या तो प्यार के बल पर उसे जीत ले, नहीं तो उसकी हिंसा का जवाब प्रतिहिंसा से दे। किसी भी स्थिति में अहिंसा की दुहाई देते हुए पीठ फेर कर वह न भागे। कवि ने माना है कि हिंसा के बदले में की जाने वाली हिंसा मनुष्य की कमजोरी को दर्शाती है, परन्तु कायरता उससे अधिक अपवित्र है। कवि ने कहा है कि मानवता अमूल्य है, उसकी रक्षा के सामने व्यक्ति की सुरक्षा का कोई मूल नहीं है। सत्य तो यह है कि व्यक्ति के आत्म-बलिदान से मानवता अमर बनती है। युगों से संचित मानवता व्यक्ति को खून-पसीने से सींचती है। अतः मनुष्य के लिए उचित यही है कि वह कभी कायर न बने और अपना सब कुछ मानवता पर न्योछावर कर दे।
कायर मत बन
कुछ भी बन, बस कायर मत बन!
ठोकर मार पटक मत माथा,
तेरी राह रोकते पाहन !
कुछ भी बन, बस कायर मत बन!
ले-दे कर जीना, क्या जीना?
कब तक गम के आँसू पीना?
मानवता ने सींचा तुझको
बहा युगों तक खून-पसीना!
कुछ न करेगा? किया करेगा-
रे मनुष्य – बस कातर क्रंदन?
कुछ भी बन, बस कायर मत बन !
‘युद्धं देहि’ कहे जब पामर,
दे न दुहाई पीठ फेर कर !
या तो जीत प्रीति के बल पर,
या तेरा पथ चूमे तस्कर !
प्रतिहिंसा भी दुर्बलता है,
पर कायरता अधिक अपावन !
कुछ भी बन, बस कायर मत बन !
तेरी रक्षा का न मोल है,
पर तेरा मानव अमोल है!
यह मिटता है, वह बनता है,
यही सत्य का सही तोल है!
अर्पण कर सर्वस्व मनुज को,
कर न दुष्ट का आत्म समर्पण!
कुछ भी बन, बस कायर मत बन!
कायर मत बन – व्याख्या सहित
01
कुछ भी बन, बस कायर मत बन!
ठोकर मार पटक मत माथा,
तेरी राह रोकते पाहन !
कुछ भी बन, बस कायर मत बन!
ले-दे कर जीना, क्या जीना?
कब तक गम के आँसू पीना?
मानवता ने सींचा तुझको
बहा युगों तक खून-पसीना!
कुछ न करेगा? किया करेगा-
रे मनुष्य – बस कातर क्रंदन?
कुछ भी बन, बस कायर मत बन !
शब्दार्थ –
शब्द | हिंदी अर्थ (समानार्थी) | English Meaning |
कायर | डरपोक, भयभीत | Coward, timid |
ठोकर | चोट, लात | Kick, blow |
पटक | ज़ोर से गिराना, फेंकना | Throw down, slam |
माथा | सिर, ललाट | Forehead |
राह | रास्ता, मार्ग | Path, way |
पाहन | पत्थर | Stone |
ले-दे कर | किसी तरह, जैसे-तैसे | Somehow, barely |
ग़म | दुःख, पीड़ा | Sorrow, grief |
मानवता | इंसानियत, मानव धर्म | Humanity |
सींचा | पोषित किया, पाला | Nurtured, nourished |
युगों | कई समय काल, सदियाँ | Ages, eras |
खून-पसीना | कठिन परिश्रम, मेहनत | Blood and sweat, hard labor |
कातर | बेचारा, दयनीय | Helpless, pathetic |
क्रंदन | रोना, विलाप | Crying, lamentation |
मनुष्य | आदमी, मानव | Human being |
व्याख्या –
नरेंद्र शर्मा जी की यह कविता मनुष्य को साहसी, संघर्षशील और कर्मठ बनने की प्रेरणा देती है। कवि कहते हैं कि जीवन में चाहे जो भी बनो – कलाकार, योद्धा, श्रमिक या साधु – लेकिन कभी भी कायर मत बनो। कठिनाइयाँ आएँगी, राह में रुकावटें होंगी, पर सिर झुकाकर हार मानने की जगह उन्हें ठोकर मारकर आगे बढ़ो। केवल दुख सहकर रोते रहना या क्रंदन करना व्यर्थ है। मानवता ने तुझे बनाने में युगों तक खून-पसीना बहाया है, इसलिए अपने जीवन को अर्थ दो। संघर्ष करो, कुछ कर दिखाओ, लेकिन कायरता का परिचय मत दो – यही इस कविता का मूल संदेश है।
02
‘युद्धं देहि‘ कहे जब पामर,
दे न दुहाई पीठ फेर कर !
या तो जीत प्रीति के बल पर,
या तेरा पथ चूमे तस्कर !
प्रतिहिंसा भी दुर्बलता है,
पर कायरता अधिक अपावन !
कुछ भी बन, बस कायर मत बन !
शब्दार्थ –
शब्द | हिंदी अर्थ (समानार्थी) | English Meaning |
युद्धं देहि | युद्ध माँगना, युद्ध की चुनौती देना | “Give me war”, challenge to fight |
पामर | नीच व्यक्ति, तुच्छ इंसान | Wicked person, lowly man |
दुहाई देना | दया की गुहार लगाना, प्रार्थना करना | To plead, to beg for mercy |
पीठ फेरना | डर कर पीछे हटना, पलायन करना | To turn back, to retreat |
प्रीति | प्रेम, स्नेह | Love, affection |
बल | ताकत, शक्ति | Strength, power |
पथ | रास्ता, मार्ग | Path, road |
चूमना | स्पर्श करना, छूना | To kiss, to touch |
तस्कर | डाकू, चोर, लुटेरा | Thief, bandit, robber |
प्रतिहिंसा | बदला, प्रतिशोध | Revenge, retaliation |
दुर्बलता | कमजोरी, निर्बलता | Weakness, feebleness |
कायरता | डरपोकपन, भयभीत व्यवहार | Cowardice |
अपावन | अपवित्र, अशुद्ध | Impure, unholy |
व्याख्या –
कविता के इस अंश में कवि नरेंद्र शर्मा जी ने मनुष्य को आत्मसम्मान, साहस और विवेक से जीवन जीने की प्रेरणा दी है। कवि कहते हैं कि यदि कोई नीच व्यक्ति युद्ध की चुनौती दे, तो डरकर पीठ मत फेरो, बल्कि उसका सामना करो। प्रेम और सद्भाव से विजय पाने का प्रयास करो, पर यदि ज़रूरत पड़े तो अन्याय का मुकाबला करने से पीछे मत हटो, अपने पूर्ण शौर्य का प्रदर्शन कारों ताकि डाकू लूटेरे भी आपसे भय खाए। कवि यह भी कहते हैं कि प्रतिहिंसा या बदला लेना भले ही कमजोरी हो, लेकिन कायरता उससे भी अधिक अपवित्र और शर्मनाक है। जीवन में कुछ भी बनो, पर साहस छोड़कर कभी भी कायर मत बनो – यही इस कविता का मुख्य संदेश है।
03
तेरी रक्षा का न मोल है,
पर तेरा मानव अमोल है!
यह मिटता है, वह बनता है,
यही सत्य का सही तोल है!
अर्पण कर सर्वस्व मनुज को,
कर न दुष्ट का आत्म समर्पण!
कुछ भी बन, बस कायर मत बन!
शब्दार्थ –
शब्द | हिंदी अर्थ (समानार्थी) | English Meaning |
रक्षा | सुरक्षा, बचाव | Protection, defense |
मोल | मूल्य, कीमत | Price, value |
अमोल | अनमोल, जिसकी कोई कीमत नहीं | Priceless, invaluable |
मिटना | नष्ट होना, समाप्त होना | To perish, to be destroyed |
बनना | निर्माण होना, पैदा होना | To be created, to become |
सत्य | सच, यथार्थ | Truth, reality |
तोल | मूल्यांकन, माप | Measure, evaluation |
अर्पण | समर्पण, भेंट | Offering, dedication |
सर्वस्व | सब कुछ, सम्पूर्ण धन या बल | Everything, entire possession |
मनुज | मनुष्य, मानव | Human, mankind |
दुष्ट | बुरा व्यक्ति, शत्रु | Wicked, evil person |
आत्म समर्पण | स्वयं को सौंपना, हार मानना | Surrender, submission |
कायर | डरपोक, साहसहीन | Coward |
व्याख्या –
इस काव्यांश में कवि नरेंद्र शर्मा मनुष्य को यह समझाते हैं कि शरीर की रक्षा की कोई निश्चित कीमत नहीं है, लेकिन मानव का आत्मिक और नैतिक मूल्य अनमोल होता है। शरीर नश्वर है, पर मानवता और उसके गुण अमर हैं। यह सत्य का वास्तविक मूल्यांकन है। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह अपने संपूर्ण सामर्थ्य और समर्पण से मानवता की सेवा करे, लेकिन किसी दुष्ट या अन्यायी के आगे आत्मसमर्पण न करे। कवि अंत में फिर दोहराते है कि जीवन में कुछ भी बनो, पर कायर मत बनो। यही संदेश इस कविता का सार है।
अतिरिक्त शब्दार्थ
कायर = डरपोक, भीरु
राह = रास्ता, मार्ग
ले-दे कर जीना = समझौता करके जीना
खून-पसीना बहाना = बहुत कष्ट उठाना
युद्धं देहि = युद्ध दो, युद्ध करो, पामर लड़ाई करो
दुहाई = शपथ, किसी बात को उचित ठहराने के लिए अन्य कोई बात जोर देकर कहा जाना
प्रीति = प्यार, मोहब्बत
अपावन = अपवित्र
मोल = मूल्य, कीमत
गम के आँसू पीना = मन के दुःख को मन में ही दबा कर रह जाना
कातर क्रंदन = आर्त विलाप, कष्ट से आकुल होकर रोना
पीठ फेरना = चुनौती से भागना, लड़ाई के मैदान से भाग खड़ा होना
तस्कर = बुरा कार्य करने वाला
प्रतिहिंसा = हिंसा के बदले में की जाने वाली हिंसा
मानव = मनुष्य, मानवता
तोल = माप
पामर = दुष्ट, नीच, अहेतुक
मोल = मूल्य, कीमत
अमोल = अमूल्य, जिसे मूल्य देकर खरीदा न जा सके
सर्वस्व = सब कुछ
मनुज = मनु से जो जन्मा हो, मनुष्य
टस से मस न होना = अडिग- अविचलित रहना
कमर कसना = किसी काम के लिए पूरी तरह तैयार होना
कालिख लगना = कलंक लगना, बदनामी होना
पाहन = पत्थर
राह रोकते पाहन = मार्ग में आनेवाली बाधाएँ
आँचल में बाँधना = किसी बात को अच्छी तरह से याद रखना
बोध एवं विचार
- ‘सही‘ या ‘गलत‘ रूप में उत्तर दो :
(क) कवि नरेंद्र शर्मा व्यक्तिवादी गीतिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं।
उत्तर – सही
(ख) नरेंद्र शर्मा की कविताओं में भक्ति एवं वैराग्य के स्वर प्रमुख हैं।
उत्तर – नहीं
(ग) पंडित नरेंद्र शर्मा की गीति प्रतिभा के दर्शन छोटी अवस्था में ही होने लगे थे।
उत्तर – सही
(घ) ‘कायर मत बन‘ शीर्षक कविता में कवि ने प्रतिहिंसा से दूर रहने का उपदेश दिया है।
उत्तर – नहीं
(ङ) कवि ने माना है कि प्रतिहिंसा व्यक्ति की कमजोरी को दर्शाती है।
उत्तर – सही
- पूर्ण वाक्य में उत्तर दो :
(क) कवि नरेंद्र शर्मा का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर – कवि नरेंद्र शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जनपद के जहाँगीर नामक स्थान में हुआ था।
(ख) कवि नरेंद्र शर्मा आकाशवाणी के किस कार्यक्रम के संचालक नियुक्त हुए थे?
उत्तर – कवि नरेंद्र शर्मा आकाशवाणी के ‘विविध भारती’ कार्यक्रम के संचालक नियुक्त हुए थे।
(ग) ‘द्रौपदी‘ खंड काव्य के रचयिता कौन हैं?
उत्तर – द्रौपदी’ खंडकाव्य के रचयिता पंडित नरेंद्र शर्मा हैं।
(घ) कवि ने किसे ठोकर मारने की बात कही है?
उत्तर – कवि ने उन पत्थरों (पाहनों) को ठोकर मारने की बात कही है जो मनुष्य के मार्ग को रोकते हैं।
(ङ) मानवता ने मनुष्य को किस प्रकार सींचा है?
उत्तर – मानवता ने मनुष्य को युगों तक अपने खून और पसीने से सींचा है।
(च) व्यक्ति को किसके समक्ष आत्मसमर्पण नहीं करना चाहिए?
उत्तर – व्यक्ति को दुष्ट के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं करना चाहिए।
- अति संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में) :
(क) कवि नरेंद्र शर्मा के गीतों एवं कविताओं की विषयगत विविधता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – उनके गीतों में प्रणय, विरह, प्रकृति-सौंदर्य, सामाजिक विषमता, राष्ट्रीय भावना, रहस्यानुभूति और आध्यात्मिकता जैसे विविध विषयों का समावेश मिलता है, जो उन्हें बहुआयामी रचनाकार बनाते हैं।
(ख) नरेंद्र शर्मा जी की काव्य-भाषा पर टिप्पणी प्रस्तुत करो।
उत्तर – उनकी भाषा सरल, प्रवाहमयी, खड़ी बोली में है जिसमें माधुर्य, प्रसाद गुण, चित्रात्मकता, आत्मीयता और सहज आलंकारिकता मौजूद है, जिससे भावों की अभिव्यक्ति प्रभावी बनती है।
(ग) कवि ने कैसे जीवन को जीवन नहीं माना है?
उत्तर – कवि ने केवल ले-दे कर, डरकर और आँसू पीकर जीने को वास्तविक जीवन नहीं माना है, बल्कि संघर्ष और साहसपूर्ण जीवन को ही सच्चा जीवन कहा है।
(घ) कवि ने कायरता को प्रतिहिंसा से अधिक अपवित्र क्यों कहा है?
उत्तर – कवि ने कायरता को प्रतिहिंसा से अधिक अपवित्र कहा है क्योंकि प्रतिहिंसा दुर्बलता है, परंतु कायरता आत्मसमर्पण और निर्बलता की पराकाष्ठा है, जो मानवता के गौरव के विपरीत है, अतः वह अधिक अपवित्र है।
(ङ) कवि की दृष्टि में जीवन के सत्य का सही माप क्या है?
उत्तर – कवि के अनुसार, व्यक्ति का मिट जाना और व्यक्तित्व मानवता का बनना ही जीवन का सच्चा माप है, क्योंकि मानवता अमूल्य है और उसका संरक्षण सर्वोपरि है।
- संक्षेप में उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में) :
(क) ‘कायर मत बन‘ शीर्षक कविता का संदेश क्या है?
उत्तर – इस कविता में कवि नरेंद्र शर्मा ने मनुष्य को साहसी, दृढ़ और आत्मबलिदानी बनने की प्रेरणा दी है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि जीवन में कठिनाइयाँ आएँगी, पर उनसे डरकर भागना नहीं चाहिए। मनुष्य को चाहिए कि वह अन्याय, अत्याचार और कायरता से दूर रहे और मानवता की रक्षा हेतु सर्वस्व अर्पण करे।
(ख) ‘कुछ न करेगा? किया करेगा –रे मनुष्य-बस कातर क्रंदन‘- का आशय स्पष्ट करो।
उत्तर – इस पंक्ति में कवि मनुष्य को झकझोरते हुए पूछते हैं कि क्या वह केवल रोने और दुख प्रकट करने के लिए ही है? अगर वह कुछ नहीं करेगा, तो उसका जीवन व्यर्थ है। कवि का आशय है कि मनुष्य को केवल दुखी होकर रोना नहीं, बल्कि संघर्ष करके कुछ सार्थक कार्य करना चाहिए।
(ग) या तो जीत प्रीति के बल पर या तेरा पथ चूमे तस्कर‘ – का तात्पर्य बताओ।
उत्तर – इस पंक्ति में कवि ने दो विकल्प रखे हैं – या तो मनुष्य प्रेम के बल पर शत्रु को जीत ले, या फिर अगर कोई लूटने वाला सामने आए, तो उसका मार्ग स्वयं साहसपूर्वक रोक दे और उसे पराजित करे। संदेश यह है कि किसी भी हालत में भागना नहीं चाहिए, बल्कि साहसपूर्वक स्थिति का सामना करना चाहिए।
(घ) कवि ने प्रतिहिंसा को व्यक्ति की दुर्बलता क्यों कहा है?
उत्तर – कवि के अनुसार, जब कोई प्रेम या धैर्य से नहीं जीतता और प्रतिहिंसा करता है, तो यह उसकी मानसिक कमजोरी का संकेत होता है। वह दूसरों के आचरण से प्रभावित होकर स्वयं भी हिंसा करता है। यह नैतिक बल की कमी को दर्शाता है। फिर भी, कवि ने कायरता को इससे भी अधिक अपवित्र माना है।
- सम्यक् उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में) :
(क) सज्जन और दुर्जन के प्रति मनुष्य के व्यवहार कैसे होने चाहिए? पठित ‘कायर मत बन‘ कविता के आधार पर उत्तर दो।
उत्तर – ‘कायर मत बन’ कविता के अनुसार मनुष्य को सज्जनों से प्रेम और आत्मीयता से व्यवहार करना चाहिए तथा दुर्जनों के सामने कभी भी कायरता नहीं दिखानी चाहिए। यदि कोई पामर (नीच) व्यक्ति ‘युद्धं देहि’ कहकर लड़ाई की चुनौती दे, तो मनुष्य को प्रेम से उसे जीतने का प्रयास करना चाहिए। परंतु यदि वह न माने, तो उसका डटकर सामना करना चाहिए। कवि का संदेश है कि न तो दुर्जनों के आगे झुका जाए और न ही पीठ दिखाकर भागा जाए, क्योंकि यह कायरता है, जो मानवता को लज्जित करती है।
(ख) ‘कायर मत बन‘ कविता का सारांश लिखो।
उत्तर – ‘कायर मत बन’ कविता में कवि नरेंद्र शर्मा ने मनुष्य को साहसी, दृढ़ और कर्मशील बनने का संदेश दिया है। वे कहते हैं कि जीवन में कठिनाइयाँ आएँगी, पर उनसे भागना नहीं चाहिए। मनुष्य को चाहिए कि वह न तो पीठ फेर कर भागे, न ही आँसू बहाकर केवल रोता रहे। प्रेम से विजय प्राप्त करना श्रेष्ठ है, पर अगर आवश्यकता हो, तो अत्याचार के विरुद्ध प्रतिरोध भी करना चाहिए। मानवता की रक्षा हेतु व्यक्ति को अपना सर्वस्व अर्पित करना चाहिए। कवि ने कायरता को सबसे अपवित्र व्यवहार बताया है और उसका त्याग करने की प्रेरणा दी है।
(ग) कवि नरेंद्र शर्मा का साहित्यिक परिचय दो।
उत्तर – कवि नरेंद्र शर्मा का जन्म 1913 में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के जहाँगीर गाँव में हुआ था। वे छायावादोत्तर युग के व्यक्तिवादी गीतिकवि थे। उनके गीतों में प्रणय, विरह, प्रकृति-सौंदर्य, राष्ट्रीय भावना, सामाजिक विषमता आदि की झलक मिलती है। वे भावुक, कल्पनाशील और मानवतावादी दृष्टिकोण के कवि थे। उन्होंने ‘प्रभात फेरी’, ‘पलाशवन’, ‘रक्त चंदन’, ‘द्रौपदी’, ‘उत्तर जय’ आदि काव्य कृतियाँ लिखीं। वे आकाशवाणी के विविध भारती कार्यक्रम के संचालक भी रहे। उनकी भाषा सरल, प्रवाहमयी और सांगीतिक थी। 1989 में उनका देहांत हुआ। वे हिंदी कविता जगत के यशस्वी गीतिकवि थे।
- प्रसंग सहित व्याख्या करो :
(क) “ले दे कर जीना….. युगों तक खून-पसीना।”
उत्तर – प्रसंग – यह पंक्तियाँ नरेंद्र शर्मा की कविता ‘कायर मत बन’ से ली गई हैं। कवि यहाँ मनुष्य को साहस और कर्मशीलता का संदेश देते हैं।
व्याख्या – कवि कहता है कि यदि मनुष्य केवल समझौता करके या दुख सहकर जीता है, तो ऐसा जीवन व्यर्थ है। वह केवल दुख के आँसू पीकर अपने जीवन का अर्थ नहीं ढूँढ सकता। मानवता ने उसे खून-पसीने से सींचा है, पीढ़ियों के संघर्ष ने उसे वह स्थान दिया है। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह अपने जीवन को अर्थवान बनाए और साहसपूर्वक कर्म करता रहे, न कि कायरता दिखाकर केवल रोता रहे।
(ख) “युद्धं देहि‘ कहे जब…. तेरा पथ चूमे तस्कर।”
उत्तर – प्रसंग – यह पंक्तियाँ भी ‘कायर मत बन’ कविता से ली गई हैं। कवि ने यहाँ जीवन में आने वाली चुनौतियों और दुष्टों का सामना करने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या – कवि कहता है कि जब कोई दुष्ट व्यक्ति (पामर) युद्ध की चुनौती दे, तो मनुष्य को चाहिए कि वह पीछे हटने की बजाय डटकर सामना करे। अहिंसा की दुहाई देकर कायरता से पीठ फेरना उचित नहीं। यदि संभव हो, तो प्रेम और सद्भाव से उसे जीत लो, लेकिन यदि वह न माने, तो उसके अत्याचार को सहन मत करो—बल्कि उसके पथ को भी झुका दो। यह पंक्तियाँ संघर्षशील, निर्भीक और सच्चे मानव बनने का आह्वान करती हैं।
भाषा एवं व्याकरण- ज्ञान
- खाली जगहों में ‘न‘, ‘नहीं‘ अथवा ‘मत‘ का प्रयोग करके वाक्यों को फिर से लिखो :-
(क) तू कभी भी कायर ….. बन।
उत्तर – तू कभी भी कायर न बन।
(ख) तुम कभी भी कायर….. बनो।
उत्तर – तुम कभी भी कायर मत बनो।
(ग) आप कभी भी कायर …. बनें।
उत्तर – आप कभी भी कायर न बनें।
(घ) हमें कभी भी कायर बनना ….. चाहिए।
उत्तर – हमें कभी भी कायर बनना नहीं चाहिए।
- अर्थ लिखकर निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य में प्रयोग करो :
ले-दे कर जीना, गम के आँसू पीना, खून-पसीना बहाना, पीठ फेरना, टस से मस न होना, कालिख लगना, कमर कसना, आँचल में बाँधना
उत्तर – 1. ले-दे कर जीना
अर्थ – समझौता करके कठिन परिस्थितियों में जीवन बिताना।
वाक्य – वह सारी उम्र ले-दे कर जीता रहा, लेकिन कभी आत्मसम्मान से समझौता नहीं किया।
- ग़म के आँसू पीना
अर्थ – दुःख सहते हुए भी मन की पीड़ा को प्रकट न करना।
वाक्य – अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद उसने ग़म के आँसू पीकर अपने छोटे भाई-बहनों को संभाला।
- खून-पसीना बहाना
अर्थ – बहुत मेहनत करना।
वाक्य – उसने खून-पसीना बहाकर अपने बच्चों को पढ़ाया और बड़ा आदमी बनाया।
- पीठ फेरना
अर्थ – साथ छोड़ देना, मुँह मोड़ लेना।
वाक्य – संकट की घड़ी में अपने ही लोग पीठ फेर गए, जो बहुत दुखद था।
- टस से मस न होना
अर्थ – अपने स्थान या विचार से बिल्कुल न हिलना।
वाक्य – चाहे कितनी भी कोशिश की जाए, वह अपने निर्णय से टस से मस नहीं होता।
- कालिख लगना
अर्थ – बदनामी होना।
वाक्य – बेटे के गलत कामों की वजह से पिता के नाम पर कालिख लग गई।
- कमर कसना
अर्थ – किसी काम को पूरी तैयारी से करना।
वाक्य – परीक्षा की तैयारी के लिए उसने अब पूरी तरह कमर कस ली है।
- आँचल में बाँधना
अर्थ – किसी को अपनी संतान की तरह प्यार देना या सहेजना।
वाक्य – अनाथ बच्चे को उसने अपने आँचल में बाँध लिया और पाल-पोस कर बड़ा किया।
- निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध रूप में लिखो :-
(क) सभा में अनेकों लोग एकत्र हुए हैं।
उत्तर – सभा में अनेक लोग एकत्र हुए हैं।
(ख) मुझे दो सौ रुपए चाहिए।
उत्तर – मुझे केवल दो सौ रुपए चाहिए।
(ग) बच्चे छत में खेल रहे हैं।
उत्तर – बच्चे छत पर खेल रहे हैं।
(घ) मैंने यह घड़ी सात सौ रुपए से ली है।
उत्तर – मैंने यह घड़ी सात सौ रुपए में ली है।
(ङ) मेरे को घर जाना है।
उत्तर – मुझे घर जाना है।
(च) बच्चे को काटकर गाजर खिलाओ।
उत्तर – गाजर काटकर बच्चे को खिलाओ।
(छ) उसने पुस्तक पढ़ चुका।
उत्तर – उसने पुस्तक पढ़ लिया।
(ज) जब भी आप आओ, मुझसे मिलो।
उत्तर – जब भी आप आएँ, मुझसे मिलिए।
(झ) हम रात को देर से भोजन खाते हैं।
उत्तर – हम रात में देर से भोजन खाते हैं।
(ञ) बाघ और बकरी एक ही घाट पानी पीती है।
उत्तर – बाघ और बकरी एक ही घाट का पानी पीते हैं।
- निम्नलिखित शब्दों से प्रत्ययों को अलग करो :-
आधुनिक, विषमता, भलाई, लड़कपन, बुढ़ापा, मालिन, गरीबी
उत्तर – (1) आधुनिक = अधुना (मूल शब्द) + -इक (प्रत्यय)
उत्तर – अधुना + इक
(2) विषमता = विषम (मूल शब्द) + -ता (प्रत्यय)
उत्तर – विषम + ता
(3) भलाई = भला (मूल शब्द) + आई (प्रत्यय)
उत्तर – भला + आई
(4) लड़कपन = लड़क (मूल शब्द) + -पन (प्रत्यय)
उत्तर – लड़क + पन
(5) बुढ़ापा = बूढ़ा (मूल शब्द) + आपा (प्रत्यय)
उत्तर – बूढ़ा + आपा
(6) मालिन = माल (मूल शब्द) + -इन (प्रत्यय)
उत्तर – माली + इन
(7) गरीबी = गरीब (मूल शब्द) + ई (प्रत्यय)
उत्तर – गरीब + ई
- कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों को परिवर्तित करो :-
(क) मैंने एक दुबला-पतला आदमी देखा था। (मिश्र वाक्य बनाओ)
उत्तर – मैंने एक ऐसे आदमी को देखा जो दुबला-पतला था।
(ख) जो विद्यार्थी मेहनत करता है वह अवश्य सफल होता है। (सरल वाक्य बनाओ)
उत्तर – मेहनती विद्यार्थी अवश्य सफल होते हैं।
(ग) किसान को अपने परिश्रम का लाभ नहीं मिलता। (संयुक्त वाक्य बनाओ)
उत्तर – किसान परिश्रम करता है परंतु उसे उसकी परिश्रम का लाभ नहीं मिलता।
(घ) लड़का बाजार जाएगा। (निषेधवाचक वाक्य बनाओ)
उत्तर – लड़का बाजार नहीं जाएगा।
(ङ) लड़की गाना गाएगी। (प्रश्नवाचक वाक्य बनाओ)
उत्तर – क्या लड़की गाना गाएगी?
योग्यता- विस्तार
- कवि नरेंद्र शर्मा द्वारा रचित किसी अन्य प्रेरणाप्रद कविता का संग्रह करके कक्षा में सुनाओ।
उत्तर – चल रे मानव!
चल रे मानव! थम मत, रुक मत,
सपनों की यह डगर न छूटे,
पथ की रेत भले फिसले, पर
तेरे पाँव कभी न टूटे।
मंज़िल पास तभी आती है,
जब मन भीतर से जागे,
छाँव-धूप दोनों को सहकर
तेरा साहस और भी भागे।
चल रे मानव! थक कर भी
तू फिर मुस्काकर बढ़ता जा,
जीवन तुझसे राह माँगे
तू दीयों जैसा जलता जा।
- ‘कायर इंसान मृत्यु से पहले सौ बार मरता है‘ विषय पर मित्र मंडली में परिचर्चा का आयोजन करो।
उत्तर – “कायर इंसान मृत्यु से पहले सौ बार मरता है”
परिचर्चा का उद्देश्य –
साहस और कायरता में अंतर को समझना
मानसिक दृढ़ता की भूमिका पर चर्चा
प्रेरक व्यक्तित्वों के उदाहरणों से सीखना
भूमिकाएँ –
संचालक (Moderator) –
सभी प्रतिभागियों का स्वागत करें
विषय का संक्षिप्त परिचय दें
चर्चा को संयमित रूप से आगे बढ़ाएं
मुख्य वक्ता 1 (पक्ष में) –
“कायर व्यक्ति हर कठिनाई से डरता है और आत्मबल खो देता है।”
“डर और असफलता के डर से वह कई बार मानसिक रूप से टूटता है।”
उदाहरण – भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे वीर कभी नहीं डरे
मुख्य वक्ता 2 (विपक्ष में) –
“हर डरपोक व्यक्ति को बार-बार मरता कहना गलत है।”
“हर व्यक्ति की परिस्थितियाँ अलग होती हैं, उसका डर भी वैध हो सकता है।”
“कभी-कभी भय भी बचाव का माध्यम होता है।”
अन्य मित्र –
अपने अनुभव और दृष्टिकोण साझा करें
प्रसिद्ध व्यक्तित्वों या घटनाओं के उदाहरण दें
प्रमुख बिंदु –
कायरता क्या है?
क्या डर को कायरता कहना उचित है?
क्या साहस का मतलब हिंसा या आक्रामकता है?
क्या समाज कायरता को सही समझ पाता है?
साहस कैसे जीवन को सार्थक बनाता है?
निष्कर्ष (संचालक द्वारा) –
चर्चा को समेटें और मुख्य बातों को दोहराएं
यह स्पष्ट करें कि कायरता केवल शारीरिक नहीं, मानसिक भी होती है
सच्चा जीवन वही है जो चुनौतियों से भागे नहीं
- ‘प्रतिहिंसा दुर्बलता है‘ विषय पर एक अनुच्छेद लिखो।
उत्तर – जब कोई व्यक्ति हमारे साथ अन्याय करता है या हमें आघात पहुँचाता है, तो स्वाभाविक रूप से हमारे मन में प्रतिशोध की भावना जन्म लेती है। किंतु उसी समय हमारा विवेक और आत्मबल हमारी परीक्षा लेता है। प्रतिहिंसा करना अर्थात बदले की भावना से कार्य करना, यह दर्शाता है कि हम अपने क्रोध और भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख सके। यह मानसिक दुर्बलता का प्रतीक है। महात्मा गांधी ने भी कहा था—”आँख के बदले आँख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी।” यदि हर कोई प्रतिहिंसा का मार्ग अपनाए, तो समाज में अराजकता फैल जाएगी। सच्चा बल क्षमा और संयम में है, प्रतिहिंसा में नहीं। इसलिए हमें परिस्थितियों का सामना धैर्य और विवेक से करना चाहिए, न कि क्रोध और दुर्बलता से।