Sneh Nirjhar Bah Gaya, Sooryakant Tripathi Nirala, West Bengal, Class XI, Hindi Course B, The Best Solution.

कवि परिचय : सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म वसंत पंचमी रविवार 21 फरवरी 1896 के दिन हुआ था, अपना जन्मदिन वसंत पंचमी को ही मानते थे। उनकी एक कहानी संग्रह ‘लिली’ 21 फरवरी 1899 जन्म तिथि पर ही प्रकाशित हुई थी। रविवार को इनका जन्म हुआ था इसलिए वह सूर्ज कुमार के नाम से जाने जाते थे। उनके पिताजी का नाम पंडित राम सहाय था, वह सिपाही की नौकरी करते थे। उनकी माता का नाम रूक्मणी था। जब निराला जी 3 साल के थे तब उनकी माता की मृत्यु हो गई थी, उसके बाद उनके पिता ने उनकी देखभाल की। निराला का व्यक्तित्व घनघोर सिद्धांतवादी और साहसी था। वह सतत संघर्ष-पथ के पथिक थे। यह रास्ता उन्हें विक्षिप्तता तक भी ले गया। उन्होंने जीवन और रचना को अनेक स्तरों पर जिया, इसका ही निष्कर्ष है कि उनका रचना-संसार इतनी विविधता और समृद्धता लिए हुए है। निराला की रचनाओं में अनेक प्रकार के भाव पाए जाते हैं। यद्यपि वे खड़ी बोली के कवि थे, पर ब्रजभाषा व अवधी भाषा में भी कविताएँ गढ़ लेते थे। उनकी रचनाओं में कहीं प्रेम की सघनता है, कहीं आध्यात्मिकता तो कहीं विपन्नों के प्रति सहानुभूति व सम्वेदना, कहीं देश-प्रेम का ज़ज़्बा तो कहीं सामाजिक रूढ़ियों का विरोध व कहीं प्रकृति के प्रति झलकता अनुराग। 1920 ई के आसपास उन्होंने अपना लेखन कार्य शुरू किया था। उनकी सबसे पहली रचना ‘एक गीत’ जन्म भूमि पर लिखी गई थी। 1916 ई में उनके द्वारा लिखी गई ‘जूही की कली’ बहुत ही लंबे समय तक के लिए प्रसिद्ध रही थी और वह 1922 ई में प्रकाशित हुई थी।

सूर्यकांत त्रिपाठी के काव्य संग्रह – अनामिका (1923), परिमल (1930), गीतिका (1936), अनामिका (द्वितीय) (1939), तुलसी दास (1939), कुकुरमुत्ता (1942) अणिमा (1943), बेला (1946), नये पत्ते (1946), अर्चना (1950) आराधान (1953), गीतकुंज (1954), सांध्य का कली, अपरा। उपन्यास – (1931) अप्सरा (1933), अलका (1936), प्रभावती (1936), निरूपमा (1936), कुल्लीभाट (1938-39) आदि। कहानी संग्रह- लिलि (1934) सखी (1935) सुकुल की बीबी (1938-39)

15 अक्टूबर, 1961 को अपनी यादें छोड़कर निराला इस लोक को अलविदा कह गए। पर मिथक और यथार्थ के बीच अन्तर्विरोधों के बावजूद अपनी रचनात्मकता को यथार्थ की भावभूमि पर टिकाये रखने वाले निराला आज भी हमारे बीच जीवन्त हैं। इनकी मृत्यु प्रयाग में हुई थी।

स्नेह – निर्झर बह गया है

स्नेह – निर्झर बह गया है।

रेत ज्यों तन रह गया है।

आम की वह डाल जो सूखी दिखी,

कह रही है-“अब यहाँ पिक या शिखी

नहीं आते, पंक्ति मैं वह हूँ लिखी

नहीं जिसका अर्थ-

जीवन दह गया है।”

“दिये हैं मैंने जगत को फूल-फल,

किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल,

पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल-

ठाट जीवन का वही

जो ढह गया है।”

अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,

श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा।

बह रही है हृदय पर केवल अमा,

मैं अलक्षित हूँ यही

कवि कह गया है।

शब्दार्थ

Word (Hindi)

Hindi Meaning

Bangla Meaning

English Meaning

स्नेह-निर्झर

प्रेम का झरना

ভালোবাসার ঝর্ণা

Stream/Spring of affection/love

बह गया है

बह गया है, समाप्त हो गया है

বয়ে গেছে, শেষ হয়ে গেছে

Has flowed away, has dried up

रेत ज्यों

रेत के समान, बालू की तरह

বালির মতো

Like sand

तन

शरीर

শরীর

Body

पिक

कोयल

কোকিল

Cuckoo

शिखी

मोर

ময়ূর

Peacock

पंक्ति

कतार, रेखा

সারি, লাইন

Line, row

दह गया है

जल गया है, समाप्त हो गया है

পুড়ে গেছে, শেষ হয়ে গেছে

Has burned away, has been consumed

जगत

संसार, दुनिया

জগৎ, বিশ্ব

World

प्रतिभा

विलक्षण बुद्धि, योग्यता

প্রতিভা

Talent, genius

चकित-चल

चकित करने वाला, अद्भुत

বিস্মিত করা, অসাধারণ

Astonishing, wonderful

अनश्वर

जो नष्ट न हो, अविनाशी

অবিনশ্বর

Immortal, imperishable

सकल

संपूर्ण, समस्त

সকল, সম্পূর্ণ

All, whole, entire

पल्लवित पल

हरे-भरे पल, खुशियों के क्षण

পল্লবিত মুহূর্ত, সুখের মুহূর্ত

Flourishing moments, joyful moments

ठाट

वैभव, ठाठ-बाठ, सज-धज

জাঁকজমক, আড়ম্বর

Grandeur, pomp, splendor

ढह गया है

गिर गया है, नष्ट हो गया है

ভেঙে গেছে, ধ্বংস হয়ে গেছে

Has collapsed, has fallen apart

पुलिन

नदी का किनारा, तट

নদীর তীর, তট

Riverbank, shore

प्रियतमा

प्रेमिका, पत्नी

প্রেমিকা, স্ত্রী

Beloved, dear one

श्याम तृण

हरी घास, काली घास

সবুজ ঘাস

Green grass

निरुपमा

जिसकी कोई उपमा न हो, अनुपम

যার কোনো তুলনা নেই, অনুপম

Incomparable, peerless

अमा

अमावस्या, अँधेरा

অমাবস্যা, অন্ধকার

New moon, darkness

अलक्षित

अदृश्य, जो दिखाई न दे

অদৃশ্য, যা দেখা যায় না

Unseen, hidden



कविता का परिचय

‘स्नेह-निर्झर बह गया है’ कविता का प्रकाशन वर्ष 1942 है। यह कविता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के कविता संग्रह ‘अणिमा’ में संकलित है। “स्नेह-निर्झर बह गया है” एक ऐसी कविता है जो जीवन की नश्वरता, प्रेम की कमी और अकेलेपन की गहरी अनुभूति को व्यक्त करती है। यह कविता पाठक को यह सोचने पर मजबूर करती है कि जीवन के सुंदर क्षण कितने क्षणभंगुर हैं और समय के साथ सब कुछ शून्यता में विलीन हो जाता है। कवि का दुख और उसकी भावनात्मक रिक्तता कविता में गहरे प्रतीकों और रूपकों के माध्यम से व्यक्त हुई है, जो इसे एक मार्मिक और विचारोत्तेजक रचना बनाती है।

01

स्नेह – निर्झर बह गया है।

रेत ज्यों तन रह गया है।

व्याख्या –

कविता की पहली पंक्तियों में कवि निराला जी कहते हैं कि उनके जीवन से स्नेह रूपी निर्झर अर्थात् झरना बह गया है। यहाँ ‘स्नेह’ प्रेम, स्निग्धता और भावनाओं का प्रतीक है, और ‘निर्झर’ अर्थात् झरना उसका प्रवाह दर्शाता है। “स्नेह-निर्झर बह गया है” का अर्थ है कि जीवन से प्रेम, स्नेह और जीवंतता का वह प्रवाह खत्म हो गया है, जो पहले कभी मौजूद हुआ करता था। अब उनके जीवन में केवल सूखापन ही शेष रह गया है। रेत सूखापन और शून्यता का प्रतीक है। कवि कहते हैं कि जिस तरह रेत में कोई जीवन या नमी नहीं होती, उसी तरह उनका शरीर भी अब केवल एक खाली खोल की तरह रह गया है, जिसमें प्रेम और जीवंतता नहीं बची। यह पंक्ति जीवन की नश्वरता और भावनात्मक रिक्तता को दर्शाती है।

02

आम की वह डाल जो सूखी दिखी,

कह रही है-“अब यहाँ पिक या शिखी

नहीं आते, पंक्ति मैं वह हूँ लिखी

नहीं जिसका अर्थ-

जीवन दह गया है।”

 

व्याख्या

निराला जी कहते हैं कि – “आम की वह डाल जो सूखी दिखी” अर्थात् यहाँ आम की सूखी डाल एक प्रतीक है, जो कवि के जीवन और हृदय की स्थिति को दर्शाती है। जिस तरह डाल सूखकर बंजर हो गई है, उसी तरह कवि का जीवन भी उत्साह और सौंदर्य से रहित हो गया है। पहले जब यह पेड़ हरा-भरा था तब कोयल और मोर जो प्रकृति के सुंदर और जीवंत प्रतीक हैं, जो मधुरता और सौंदर्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका यहाँ आना-जाना लगा रहता था। पर अब इनका न आना यह दर्शाता है कि अब कवि के एकांत जीवन में आनंद, प्रेम और सौंदर्य की कोई संभावना नहीं बची। कवि कहते हैं कि उनका जीवन अब एक ऐसी कविता की पंक्ति बन गया है, जिसका कोई अर्थ नहीं बचा। यह उनके जीवन की निरर्थकता और खालीपन को दर्शाता है। अंतिम पंक्ति – जीवन दह गया है: अर्थात् जीवन जल गया या नष्ट हो गया। यह जीवन के उत्साह, प्रेम और अर्थ के पूरी तरह खत्म होने का प्रतीक है।

भाव यह है कि यह छंद जीवन की नश्वरता, प्रेम की कमी और भावनात्मक शून्यता को व्यक्त करता है। कवि अपने जीवन को एक सूखी डाल और रेत जैसे बंजर तन के रूप में देखते हैं, जिसमें अब कोई जीवंतता या अर्थ नहीं बचा।

03

“दिये हैं मैंने जगत को फूल-फल,

किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल,

पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल-

ठाट जीवन का वही

जो ढह गया है।”

व्याख्या –

कवि कहते हैं कि एक वृक्ष जिस प्रकार अपने फूल और फल, जो उसके सौंदर्य और समृद्धि के प्रतीक होते हैं उसका दान निरंतर करता रहता है, उसी प्रकार मैंने भी अपने जीवन में दुनिया को बहुत कुछ दिया है—यह कवि की रचनात्मकता, योगदान और अच्छे कर्मों को दर्शाता है। कवि आगे कहते हैं कि उन्होंने अपनी प्रतिभा के माध्यम से दुनिया को आश्चर्यचकित किया है और उसे गतिशील बनाया है। यह उनकी रचनात्मकता और सृजनशीलता की ओर इशारा करता है। उस समय कवि के जीवन में “पल्लवित पल” के भाव उमड़ा करते थे। यह कवि कि उन सुंदर और जीवंत क्षणों को दर्शाता है, जो कवि के जीवन में हुआ करते थे। लेकिन ये सुखद क्षण स्थायी नहीं थे। उनके जीवन का वह वैभव, जो कभी उनकी रचनात्मकता और स्नेह से भरा था, अब ढह गया है, यानी नष्ट हो गया है।

भाव यह है कि ये पंक्तियाँ कवि के अतीत की स्मृति और उसकी उपलब्धियों को दर्शाता है, लेकिन साथ ही यह भी बताता है कि वे सभी क्षणभंगुर थे। यह जीवन की नश्वरता और समय के साथ सब कुछ खो देने की पीड़ा को व्यक्त करता है।

04

अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,

श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा।

बह रही है हृदय पर केवल अमा,

मैं अलक्षित हूँ यही

कवि कह गया है।

व्याख्या

कवि कहते हैं कि अब उनकी प्रियतमा नदी के तट पर या घास पर बैठने नहीं आती। यह कवि के जीवन से उनकी प्रियतमा की शारीरिक या भावनात्मक अनुपस्थिति को दर्शाता है, जो कवि के अकेलेपन और उदासी का कारण है। हरी-भरी घास, जो प्रकृति की सुंदरता और प्रेम के पलों का प्रतीक है। लेकिन अब वहाँ प्रियतमा की अनुपस्थिति ने सब कुछ सूना कर दिया है। प्रियतमा की अनुपस्थिति ने कवि के हृदय को अँधेरे से भर दिया है। अब कोई उन्हें देखता या समझता नहीं है और वे अकेलेपन में डूब चुके हैं। कवि को लगने लगा है कि वे स्वयं भटकाव के शिकार हो चुके हैं। अंतत:, कवि अपनी व्यथा को व्यक्त करते हैं और कहते हैं कि उनका अकेलापन और उपेक्षा ही उनकी कहानी है।

भाव यह है कि ये पंक्तियाँ कवि की प्रियतमा की अनुपस्थिति और उससे जुड़े अकेलेपन को व्यक्त करता है। कवि का हृदय अब अँधेरे से भरा है, और वह स्वयं को उपेक्षित और अदृश्य महसूस करते हैं।

प्रतीक और रूपक

  1. स्नेह-निर्झर – प्रेम और भावनाओं का प्रवाह, जो अब सूख गया है।
  2. रेत – शून्यता और बंजरपन का प्रतीक।
  3. आम की सूखी डाल – जीवन की नीरसता और प्रेम की अनुपस्थिति।
  4. पिक और शिखी – सौंदर्य, आनंद और जीवंतता, जो अब गायब हैं।
  5. पुलिन और श्याम तृण – प्रेम और अंतरंगता के सुंदर पल, जो अब अतीत बन चुके हैं।
  6. अमा – हृदय का अंधकार और उदासी।

साहित्यिक विशेषताएँ

भाषा – कविता की भाषा सरल लेकिन प्रतीकात्मक और भावपूर्ण है। इसमें हिंदी के शुद्ध और साहित्यिक शब्दों का प्रयोग है, जैसे ‘निर्झर’, ‘पुलिन’, ‘निरुपमा’, ‘अमा’ आदि।

अलंकार – कविता में उपमा (रेत ज्यों तन), रूपक (स्नेह-निर्झर), और अनुप्रास (पुलिन पर प्रियतमा) जैसे अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है।

छंद – कविता मुक्त छंद में लिखी गई है, जो भावनाओं को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने में सहायक है।

प्रतीकात्मकता – प्रकृति के तत्त्वों (डाल, रेत, निर्झर) का उपयोग मानव जीवन और भावनाओं को दर्शाने के लिए किया गया है।

कविता ‘स्नेह-निर्झर बह गया है’ से जुड़े प्रश्न-उत्तर

  1. ‘स्नेह-निर्झर बह गया है’ का क्या अर्थ है?

कवि कहते हैं कि उनके हृदय में प्रेम और उत्साह का स्रोत अब सूख गया है। जैसे झरना सूखने पर पानी नहीं रहता, वैसे ही जीवन से प्रेम और आनंद लुप्त हो गया है, जिससे मन में खालीपन छा गया है।

  1. कवि ने अपने शरीर की तुलना किससे की है और क्यों?

कवि ने अपने शरीर की तुलना रेत से की है। जिस प्रकार रेत में कोई नमी या जीवन नहीं होता, उसी प्रकार कवि का शरीर भी प्रेम और उत्साह के अभाव में शुष्क और नीरस हो गया है, मानो उसमें कोई जीवंतता न बची हो।

  1. आम की सूखी डाल क्या कहती है?

आम की सूखी डाल कहती है कि अब उस पर पिक (कोयल) या शिखी (मोर) नहीं आते। यह पंक्ति बताती है कि उसके गौरवशाली दिन बीत गए हैं, और वह अब एक ऐसी पंक्ति है जिसका कोई अर्थ नहीं रहा, यानी जीवन निरर्थक हो गया है।

  1. कवि ने जगत को क्या दिया और उसका क्या हुआ?

कवि ने जगत को अपनी प्रतिभा से फूल-फल दिए और लोगों को चकित किया। लेकिन, कविता के अनुसार, जीवन का वह सारा अनश्वर दिखने वाला वैभव और खुशियों के पल अब ढह गए हैं, यानी सब कुछ नष्ट हो गया है।

  1. ‘अनश्वर था सकल पल्लवित पल’ से क्या अभिप्राय है?

इसका अर्थ है कि जीवन के हरे-भरे और खुशियों से भरे पल कभी ऐसे लगते थे जैसे वे कभी नष्ट नहीं होंगे। कवि को लगा था कि उनका सुख और वैभव स्थायी है, पर वास्तविकता में वे क्षण भी अब समाप्त हो गए हैं।

  1. ‘हृदय पर केवल अमा’ का क्या तात्पर्य है?

इसका तात्पर्य है कि कवि के हृदय पर केवल अंधकार और निराशा छाई हुई है। ‘अमा’ अमावस्या का प्रतीक है, जो गहन अंधकार को दर्शाती है, यानी कवि के मन में अब कोई खुशी या प्रकाश नहीं बचा है।

  1. कवि स्वयं को कैसा महसूस करते हैं अंत में?

अंत में कवि स्वयं को अलक्षित महसूस करते हैं, यानी अदृश्य या अनदेखा। उन्हें लगता है कि उनका अस्तित्व अब किसी के लिए मायने नहीं रखता, और वे दुनिया की नजरों से ओझल हो गए हैं, जैसे उनका कोई वजूद ही न हो।

  1. इस कविता का मुख्य भाव क्या है?

इस कविता का मुख्य भाव जीवन की क्षणभंगुरता, प्रेम का विछोह, और अतीत के गौरव का पतन है। कवि निराशा और अकेलेपन की गहरी भावना व्यक्त करते हैं, जहाँ सब कुछ नष्ट हो गया है और केवल खालीपन बचा है।

 

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