कवि परिचय : सूरदास के पद
सूरदास का जन्म सन् 1478 ई. संवत् – विक्रम 1535 में आगरा से मथुरा जाने वाले मार्ग पर स्थित रुनकता नामक ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान दिल्ली के निकट स्थित ‘सीही’ नामक ग्राम को इनका जन्म स्थान मानते हैं। इनके पिता का नाम पंडित रामदास सारस्वत था। इनकी माता का नाम जमुनादास था। उनका परिवार निर्धनता के साथ अपना गुजारा कर रहा था। वह अपने माता-पिता की चौथी संतान थे बहुत से लोग यह मानते हैं कि वह जन्म से ही अंधे थे। सूरदास जी श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। वह हर पल भगवान की भक्ति में ही डूबे रहते थे। भगवान को पाने की इच्छा की लालसा के चलते ही एक दिन उन्होंने वृन्दावन धाम जाने की सोची। आखिरकार वह वहाँ के लिए रवाना हो ही गए। सूरदास जी को वहाँ पर बल्लभाचार्य सूरदास जी मिले। एक दिन, महाप्रभु बल्लभाचार्य भी गऊघाट आए। उन्होंने सूरदास को गाते हुए सुना। बल्लभाचार्य को सूरदास के पदों में इतना आनंद आया कि उन्होंने उन्हें अपना शिष्य बना लिया। बल्लभाचार्य के संरक्षण में सूरदास की भक्ति और कला का विकास हुआ।
सूरदास ने अपनी रचनाओं में कृष्ण की बाल लीलाओं का अत्यंत सुंदर और महत्त्वपूर्ण चित्रण किया है। उनके पदों में कृष्ण की बालसुलभ छवि, उनकी मधुर क्रीड़ाएँ, और उनके प्रेममय व्यवहार का चित्रण किया गया है। सूरदास जी ने महाप्रभु बल्लभाचार्य से गुरु दीक्षा ली। दीक्षा के बाद, बल्लभाचार्य जी ने सूरदास जी को गोवर्धन के श्रीनाथजी के मंदिर में कीर्तन का भार सौंप दिया। सूरदास जी बहुत खुश हुए। उन्होंने गुरु जी के आशीर्वाद से श्रीनाथजी की भक्ति में लीन हो गए। उनके कीर्तन से सभी भक्तों के मन आनंदित हो जाते थे। सूरदास जी ने श्रीनाथजी की भक्ति में कई सुंदर पद और भजन लिखे। सूरदास जी द्वारा लिखित पाँच ग्रन्थ बताए जाते हैं- सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी – जिसमें उनके कूट पद संकलित हैं, नल-दमयन्ती, व्याहलो।
सूरदास जी की मुख्य भाषा ब्रज है इसके साथ कहीं-कहीं इन्होंने अरबी फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया है। लोकोक्तियों, मुहावरों, रस, छंद एवं अलंकारों का सहज प्रयोग किया है। इनके संपूर्ण पदों में गेयता है। समग्रता सूरदास जी के काव्य का भाव पक्ष एवं कला पक्ष बेजोड़ है। महान भक्त सूरदास जी का निधन 1583 ईस्वी में हो गया था। निधन के समय वह गोवर्धन के निकट पारसौली गाँव में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। उन्होंने श्रीकृष्ण के चरणों में ही अपने आप को समर्पित कर दिया था।
सूरदास के पद
01
जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै, दुलराइ, मल्हावै, जोइ सोइ कछु गावै।
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहे न आनि सुवावै।
तू काहँ नहिं बेगिहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै।
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन है, कै रही, करि करि सैन बतावै।
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै।
जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ, सो नित जसुमति पावै॥
शब्दार्थ
शब्द (Word) | हिन्दी अर्थ (Hindi Meaning) | বাংলা অর্থ (Bangla Meaning) | English Meaning |
जसोदा | माता यशोदा | মা যশোদা | Mother Yashoda |
हरि | भगवान कृष्ण/बाल कृष्ण | ভগবান কৃষ্ণ/শিশু কৃষ্ণ | Lord Krishna/Baby Krishna |
पालने | पालने में | পালঙ্কে | In the cradle |
झुलावै | झुलाती हैं | দোলাচ্ছেন | Rocks/swings |
हलरावै | हिलाती हैं | নাড়াচ্ছেন | Gently sways/moves |
दुलराइ | लाड़ करती हैं | আদর করছেন | Caresses/fondles |
मल्हावै | पुचकारती हैं | সান্ত্বনা দিচ্ছেন | Soothes/comforts |
जोइ सोइ कछु गावै | जो मन में आता है, वह कुछ गाती हैं | যা মনে আসে, তা কিছু গান | Sings whatever comes to mind |
मेरे लाल कौं | मेरे प्यारे पुत्र को | আমার প্রিয় পুত্রকে | To my dear son |
आउ | आओ | এসো | Come |
निंदरिया | नींद (प्यार से) | ঘুম (স্নেহ করে) | Sleep (affectionately) |
काहे न | क्यों नहीं | কেন না | Why not |
आनि | आकर | এসে | Coming/having come |
सुवावै | सुलाए | ঘুম পাড়িয়ে দেবে | Makes one sleep/puts to sleep |
तू काहँ नहिं बेगिहिं आवै | तुम जल्दी क्यों नहीं आती हो | তুমি কেন তাড়াতাড়ি আসছ না | Why don’t you come quickly |
तोकौं | तुमको | তোমাকে | To you |
कान्ह | कृष्ण (बाल रूप) | কান्हा (শিশু রূপ) | Kanha (baby form of Krishna) |
बुलावै | बुलाते हैं | ডাকছেন | Calls |
कबहुँ | कभी | কখনও | Sometimes |
पलक | पलकें | চোখের পাতা | Eyelids |
मूँदि लेत हैं | मूँद लेते हैं/बंद कर लेते हैं | বন্ধ করে নিচ্ছেন | Closes/shuts |
अधर | होंठ | ঠোঁট | Lips |
फरकावै | फड़फड़ाते हैं/हिलते हैं | কাঁপছে/নড়ছে | Trembles/flickers/moves slightly |
सोवत जानि | सोया हुआ जानकर | ঘুমন্ত জেনে | Knowing him to be asleep |
मौन है, कै रही | चुप हो जाती हैं | চুপ হয়ে গেলেন | Becomes silent/remains quiet |
करि करि सैन बतावै | इशारे कर-करके बताती हैं | ইশারা করে-করে বোঝাচ্ছেন | Gestures/signals repeatedly |
इहिं अंतर | इसी बीच | এর মধ্যে | In the meantime/at this moment |
अकुलाइ उठे | व्याकुल होकर उठ गए | অস্থির হয়ে উঠে পড়লেন | Woke up restlessly/became agitated and woke up |
जसुमति | यशोदा | যশোদা | Yashoda |
मधुरै गावै | मधुर गाती हैं | মধুর গান গাইছেন | Sings sweetly |
जो सुख | जो सुख | যে সুখ | The happiness/joy that |
सूर | सूरदास (कवि) | সুরদাস (কবি) | Surdas (the poet) |
अमर | देवता/अमर | দেবতা/অমর | Immortals/deities |
मुनि | ऋषि | ঋষি | Sages/hermits |
दुरलभ | दुर्लभ/कठिनता से प्राप्त | দুর্লভ/কষ্টে লভ্য | Rare/difficult to obtain |
सो नित | वह रोज़ | সেই প্রতিদিন | That daily/always |
पावै | पाती हैं | পান | Attains/receives |
व्याख्या
यह पद सूरदास द्वारा रचित है, जिसमें माता यशोदा के कृष्ण प्रेम और वात्सल्य का अत्यंत मनोहारी चित्रण किया गया है।
पद का आरंभ इस दृश्य से होता है कि यशोदा मैया अपने प्यारे पुत्र कृष्ण को पालने में झुला रही हैं। वे कभी उन्हें धीरे से हिलाती हैं, कभी प्यार करती हैं, कभी पुचकारती हैं, और जो कुछ भी उनके मन में आता है, वह गाती जाती हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य अपने कान्हा को सुलाना है।
वह निंदिया को पुकारती हुई कहती हैं, “हे निंदरिया, मेरे प्यारे लाल को क्यों नहीं आकर सुला देती? तुम जल्दी क्यों नहीं आती? कान्हा तुम्हें बुला रहे हैं।” इस पंक्ति में माँ की व्याकुलता और निंदिया को संबोधित करने का अनोखा तरीका उनके असीम प्रेम को दर्शाता है।
अगले ही क्षण, कृष्ण की लीला का वर्णन है। कभी-कभी हरि अपनी पलकें मूँद लेते हैं और कभी-कभी उनके होंठ फड़कने लगते हैं। इन क्रियाओं से यशोदा को लगता है कि कृष्ण सो गए हैं। उन्हें सोया हुआ जानकर, वह तुरंत चुप हो जाती हैं और दूसरों को भी इशारे कर-करके चुप रहने को कहती हैं, ताकि कृष्ण की नींद में कोई बाधा न पड़े।
लेकिन, इसी बीच, हरि अचानक व्याकुल होकर उठ जाते हैं। तब यशोदा फिर से मधुर स्वर में गाना शुरू कर देती हैं, ताकि उनका कान्हा शांत हो जाए और सो जाए।
पद का समापन सूरदास जी की इस महिमामयी भावना के साथ होता है कि जो सुख स्वर्ग के देवताओं और बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के लिए भी दुर्लभ है, वह अलौकिक आनंद और वात्सल्य सुख माता यशोदा को प्रतिदिन सहज ही प्राप्त हो रहा है। यह पद माँ-पुत्र के निश्छल प्रेम और वात्सल्य रस की पराकाष्ठा को दर्शाता है।
प्रश्न और उत्तर
- प्रश्न: यशोदा मैया पालने में किसे झुला रही हैं?
उत्तर: यशोदा मैया पालने में अपने पुत्र भगवान कृष्ण (हरि) को झुला रही हैं। वे उन्हें प्यार से झुलाती हैं, पुचकारती हैं और लोरी गाती हैं।
- प्रश्न: यशोदा नींद को क्यों बुला रही हैं?
उत्तर: यशोदा नींद को इसलिए बुला रही हैं ताकि वह आकर उनके प्यारे लाल कृष्ण को सुला दे। वे व्याकुलता से कहती हैं कि कृष्ण उसे बुला रहे हैं।
- प्रश्न: कृष्ण के सोने का अभिनय करते हुए वे क्या करते हैं?
उत्तर: कृष्ण कभी अपनी पलकें मूँद लेते हैं और कभी अपने होंठ फड़फड़ाते हैं, जिससे यशोदा को लगता है कि वे सो गए हैं। यह उनकी बाल लीला का हिस्सा है।
- प्रश्न: कृष्ण को सोया हुआ जानकर यशोदा क्या करती हैं?
उत्तर: कृष्ण को सोया हुआ जानकर यशोदा तुरंत चुप हो जाती हैं और दूसरों को भी इशारों से चुप रहने को कहती हैं, ताकि उनकी नींद में खलल न पड़े।
- प्रश्न: अचानक कृष्ण के जागने पर यशोदा की क्या प्रतिक्रिया होती है?
उत्तर: अचानक कृष्ण के व्याकुल होकर जागने पर, यशोदा मैया फिर से मधुर स्वर में गाना शुरू कर देती हैं ताकि उन्हें शांत कर सकें और दोबारा सुला सकें।
- प्रश्न: सूरदास के अनुसार यशोदा को कौन सा सुख प्राप्त होता है?
उत्तर: सूरदास के अनुसार, यशोदा को वह अलौकिक वात्सल्य सुख प्राप्त होता है, जो स्वर्ग के देवताओं और बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के लिए भी अत्यंत दुर्लभ है।
- प्रश्न: इस पद में किस रस की प्रधानता है?
उत्तर: इस पद में वात्सल्य रस की प्रधानता है, जहाँ माता यशोदा का अपने पुत्र कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम, ममता और दुलार का अत्यंत मार्मिक और हृदयस्पर्शी चित्रण किया गया है।
02
सिखवत चलन जसोदा मैया।
अरबराइ कै पानि गहावति डगमगाइ धरनी धरै पैया।
कबहुँक सुंदर बदन बिलोकति उर आनंद, भरि लेति बलैया।
कबहुँक कुल देवता मनावति चिर जीवहु मेरौ कुँवर कन्हैया।
कबहुँक बल कौं टेरि बुलावति इहिं आँगन खेलौ दोउ भैया।
सूरदास स्वामी की लीला अति प्रताप बिलसत नँदरैया॥
चोरी करत कान्ह धरि पाए।
शब्दार्थ
Word (Original) | Hindi Meaning (हिंदी अर्थ) | Bengali Meaning (বাংলা অর্থ) | English Meaning |
सिखवत | सिखाती हैं | শেখাচ্ছেন | Teaches |
चलन | चलना | হাঁটা | To walk |
जसोदा मैया | माता यशोदा | মা যশোদা | Mother Yashoda |
अरबराइ कै | धीरे-धीरे, संभालकर | সাবধানে, আস্তে আস্তে | Gently, carefully |
पानि | हाथ | হাত | Hand |
गहावति | पकड़वाती हैं | ধরিয়ে দিচ্ছেন | Makes (him) hold |
डगमगाइ | लड़खड़ाते हुए | টলমলেভাবে | Stumbling |
धरनी | धरती, ज़मीन | পৃথিবী, মাটি | Ground, earth |
धरै पैया | पैर रखते हैं | পা ফেলছে | Puts (his) feet |
कबहुँक | कभी-कभी | কখনও কখনও | Sometimes |
सुंदर | सुंदर, खूबसूरत | সুন্দর | Beautiful |
बदन | मुख, चेहरा | মুখ | Face |
बिलोकति | देखती हैं | দেখছেন | Looks at |
उर | हृदय, मन | হৃদয়, মন | Heart, mind |
आनंद | खुशी, प्रसन्नता | আনন্দ | Joy, happiness |
भरि लेति बलैया | बलिहारी लेती हैं, प्रेम से निछावर करती हैं | আশীর্বাদ দেন, আদর করে বিপদ দূর করেন | Takes offerings, blesses with love |
कुल देवता | कुल देवी-देवता | কুল দেবতা | Family deity |
मनावति | मनाती हैं, प्रार्थना करती हैं | প্রার্থনা করেন | Prays, propitiates |
चिर जीवहु | लंबी आयु हो | দীর্ঘজীবী হোক | Live long |
मेरौ | मेरा | আমার | My |
कुँवर कन्हैया | राजकुमार कन्हैया (कृष्ण) | রাজকুমার কানহাইয়া (কৃষ্ণ) | Prince Kanhaiya (Krishna) |
बल कौं | बलराम को | বলরামকে | To Balarama |
टेरि बुलावति | पुकार कर बुलाती हैं | ডেকে আনছেন | Calls out and invites |
इहिं | इस | এই | This |
आँगन | आँगन, प्रांगण | উঠোন | Courtyard |
खेलौ | खेलो | খেলো | Play |
दोउ भैया | दोनों भाई | দুই ভাই | Both brothers |
सूरदास स्वामी | सूरदास जी (कवि) | সুরদাস জি (কবি) | Surdas ji (poet) |
लीला | बाल लीला, दिव्य कार्य | লীলা, ঐশ্বরিক কর্ম | Divine play, divine acts |
अति प्रताप | अत्यंत महिमामय | অত্যন্ত মহিমান্বিত | Extremely glorious |
बिलसत | सुशोभित होते हैं, आनंद लेते हैं | শোভা পায়, আনন্দ উপভোগ করে | Resides, enjoys |
नँदरैया | नंद बाबा के पुत्र (कृष्ण) | নন্দবাবার পুত্র (কৃষ্ণ) | Son of Nanda Baba (Krishna) |
चोरी करत | चोरी करते हुए | চুরি করতে গিয়ে | While stealing |
कान्ह | कृष्ण | কান্হ (কৃষ্ণ) | Kanha (Krishna) |
धरि पाए | पकड़ लिया | ধরা পড়েছে | Caught, found |
व्याख्या
सूरदास द्वारा रचित इस पद में माता यशोदा द्वारा बाल कृष्ण को चलना सिखाने का मनोहारी वर्णन किया गया है।
माता यशोदा अपने नन्हे बाल कृष्ण को चलना सिखा रही हैं। वे बड़ी कोमलता से कृष्ण का हाथ पकड़कर उन्हें डगमगाते हुए धरती पर पैर रखना सिखाती हैं। कृष्ण जब लड़खड़ाते हुए चलते हैं, तो यशोदा मैया उनके सुंदर मुख को प्रेम से निहारती हैं। उनके हृदय में आनंद भर आता है और वे वात्सल्य भाव से कृष्ण पर बलिहारी जाती हैं और अपना सब कुछ न्योछावर करती हैं।
कभी-कभी वे अपने कुल देवी-देवताओं को याद करती हैं और उनसे प्रार्थना करती हैं कि उनका कुँवर कन्हैया चिरंजीवी हो, यानी लंबी आयु प्राप्त करे। फिर कभी वे बलराम को पुकारकर बुलाती हैं और कहती हैं कि “तुम दोनों भाई इसी आँगन में साथ मिलकर खेलो।”
सूरदास जी कहते हैं कि नंद बाबा के पुत्र कृष्ण की यह बाल लीला अत्यंत प्रभामयी और आनंददायक है। अंतिम पंक्ति “चोरी करत कान्ह धरि पाए।” अर्थात् चोरी करते हुए कान्हा पकड़े जाने का प्रसंग वर्णित है जो अगले पद या प्रसंग की ओर संकेत करती है, जिसमें कृष्ण की माखन चोरी की लीला का वर्णन होगा। यह पंक्ति बताती है कि यशोदा मैया के इस दुलारे कृष्ण को बाद में माखन चोरी करते हुए भी पकड़ा गया।
संक्षेप में, यह पद माँ यशोदा के वात्सल्य, कृष्ण की बाल सुलभ चेष्टाओं और सूरदास की भक्तिमय काव्य-शैली का अद्भुत संगम है।
प्रश्न और उत्तर
- प्रश्न – इस पद में कौन किसको चलना सिखा रहा है?
उत्तर – इस पद में माता यशोदा अपने पुत्र बाल कृष्ण को चलना सिखा रही हैं।
- प्रश्न – यशोदा मैया कृष्ण का हाथ कैसे पकड़वाती हैं?
उत्तर – यशोदा मैया अरबराइ कै अर्थात् धीरे-धीरे, संभालकर कृष्ण का हाथ पकड़वाती हैं ताकि वे अच्छे-से धरती पर पैर रख सकें।
- प्रश्न – कृष्ण को चलते देख यशोदा मैया के मन में कैसा भाव आता है?
उत्तर – कृष्ण को चलते देख यशोदा मैया का हृदय आनंद से भर जाता है और वे प्रेम से कृष्ण पर बलिहारी जाती हैं।
- प्रश्न – यशोदा मैया अपने कुल देवताओं से क्या प्रार्थना करती हैं?
उत्तर – यशोदा मैया अपने कुल देवताओं से प्रार्थना करती हैं कि उनका कुँवर कन्हैया चिरंजीवी हो, यानी लंबी आयु प्राप्त करे।
- प्रश्न – यशोदा मैया बलराम को क्यों बुलाती हैं?
उत्तर – यशोदा मैया बलराम को बुलाती हैं ताकि दोनों भाई कृष्ण और बलराम आँगन में साथ मिलकर खेलें।
- प्रश्न – ‘सूरदास स्वामी की लीला अति प्रताप बिलसत नँदरैया’ पंक्ति का क्या अर्थ है?
उत्तर – इस पंक्ति का अर्थ है कि नंद बाबा के पुत्र कृष्ण की यह बाल लीला अत्यंत महिमामय और आनंददायक है, जिसे सूरदास जी ने गाया है।
- प्रश्न – अंतिम पंक्ति ‘चोरी करत कान्ह धरि पाए’ किस ओर संकेत करती है?
उत्तर – यह अंतिम पंक्ति श्री कृष्ण की माखन चोरी की लीला की ओर संकेत करती है, जिसमें वे माखन चोरी करते हुए पकड़े गए थे।
03
निसि बासर मोहि बहुत सतायो अब हरि हाथहि आए।
माखन-दधि मेरौ सब खायौ बहुत अचगरी कीन्हीं।
अब तौ घात परे हौ ललना तुम्हें भलें मैं चीन्हीं।
दोउ भुज पकरि कह्यौ कहँ जैहो माखन लैउँ मँगाइ।
तेरी सौं मैं कुन खायौ सखा गए सब खाइ।
मुख तन चितै बिहँसि हरि दीन्हों रिस तब गई बुझाइ।
लयौ स्याम उर लाइ ग्वालिनी सूरदास बलि जाइ॥
शब्दार्थ
Word (Original) | Hindi Meaning (हिंदी अर्थ) | Bengali Meaning (বাংলা অর্থ) | English Meaning |
निसि बासर | रात-दिन | রাত-দিন | Day and night |
मोहि | मुझे | আমাকে | Me |
बहुत सतायो | बहुत सताया, परेशान किया | খুব বিরক্ত করেছে, কষ্ট দিয়েছে | Tormented a lot, bothered me a lot |
अब | अब | এখন | Now |
हरि | कृष्ण (यहाँ) | হরি (কৃষ্ণ) | Hari (Krishna) |
हाथहि आए | हाथ में आ गए, पकड़े गए | হাতে এসেছে, ধরা পড়েছে | Came into hand, caught |
माखन-दधि | मक्खन और दही | মাখন-দই | Butter and curd |
मेरौ | मेरा | আমার | My |
सब खायौ | सब खा लिया | সব খেয়েছে | Ate everything |
बहुत अचगरी | बहुत शैतानी, शरारत | খুব দুষ্টুমি | Much mischief |
कीन्हीं | की है, की थीं | করেছে | Did, committed |
अब तौ | अब तो | এখন তো | Now then |
घात परे हौ | दाँव पर आ गए हो, पकड़ में आ गए हो | ফাঁদে পড়েছো, ধরা পড়েছো | Caught in a trap, caught red-handed |
ललना | पुत्र, प्यारे बच्चे | পুত্র, প্রিয় শিশু | Son, dear child |
तुम्हें भलें | तुम्हें अच्छी तरह से | তোমাকে ভালোভাবে | You properly |
मैं चीन्हीं | मैंने पहचान लिया है | আমি চিনেছি | I have recognized |
दोउ भुज | दोनों भुजाएँ, दोनों हाथ | দুই বাহু, দুই হাত | Both arms, both hands |
पकरि | पकड़कर | ধরে | Holding |
कह्यौ | कहा | বলল | Said |
कहँ जैहो | कहाँ जाओगे | কোথায় যাবে | Where will you go |
माखन लैउँ मँगाइ | मक्खन मँगवा लूँगी | মাখন নিয়ে আসবো | I’ll get the butter back |
तेरी सौं | तुम्हारी कसम | তোমার কসম | Your oath, I swear by you |
मैं कुन खायौ | मैंने नहीं खाया (कुन = कौन/नहीं) | আমি খাইনি | I didn’t eat it |
सखा गए सब खाइ | दोस्तों ने सब खा लिया | বন্ধুরা সব খেয়েছে | Friends ate it all |
मुख तन चितै | मुख की ओर देखकर | মুখের দিকে তাকিয়ে | Looking at the face |
बिहँसि | हँसकर | হেসে | Smiling |
हरि दीन्हों | हरि ने दिया | হরি দিল | Hari gave (a smile/look) |
रिस तब गई बुझाइ | तब क्रोध शांत हो गया | তখন রাগ নিভে গেল | Then the anger subsided |
लयौ स्याम | श्याम ने लिया (अपने गले से) | শ্যাম নিল | Shyam took (around his neck) |
उर लाइ | हृदय से लगाकर | বুকে জড়িয়ে | Embraced to heart |
ग्वालिनी | ग्वालिन (यशोदा यहाँ) | গোয়ালিনী (যশোদা এখানে) | Gwalini (Yashoda here) |
सूरदास बलि जाइ | सूरदास बलिहारी जाते हैं | সুরদাস বলিহারি যান | Surdas sacrifices himself |
व्याख्या
यह पद सूरदास द्वारा रचित है और इसमें माखन चोरी करते हुए पकड़े गए बाल कृष्ण और ग्वालिनी के बीच के संवाद तथा वात्सल्य प्रेम का अत्यंत सुंदर चित्रण है।
एक ग्वालिन कृष्ण को माखन चोरी करते हुए पकड़ लेती है। वह कृष्ण से कहती है कि “तुमने रात-दिन मुझे बहुत सताया है, मेरा सारा माखन और दही खा गए, और बहुत शरारतें की हैं। अब तो तुम मेरे हाथ आ गए हो, मेरे प्यारे लाल! मैंने तुम्हें अच्छी तरह पहचान लिया है।”
यह कहकर वह ग्वालिन दोनों हाथों से कृष्ण को पकड़ लेती है और कहती है, “अब कहाँ जाओगे? मैं तो अपना सारा माखन वापस मँगवा लूँगी।”
तब कृष्ण अपनी सहज बाल-लीला दिखाते हुए, बड़ी मासूमियत से कहते हैं, “तुम्हारी कसम, मैंने कुछ नहीं खाया है। मेरे सारे दोस्त ही सब खा गए।”
कृष्ण की इस भोली बात और उनके मुख की ओर तथा मुसकान देखकर, ग्वालिन का सारा क्रोध शांत हो जाता है। उस मुस्कान में इतना जादू होता है कि ग्वालिन का गुस्सा पूरी तरह बुझ जाता है।
अंतिम पंक्तियों में, सूरदास जी कहते हैं कि ग्वालिन श्याम सुंदर को अपने हृदय से लगा लेती है। सूरदास जी स्वयं इस अद्भुत वात्सल्य लीला पर बलिहारी जाते हैं।
संक्षेप में, यह पद कृष्ण की माखन चोरी, उनकी चतुराई भरी मासूमियत, और ग्वालिन के क्रोध के वात्सल्य में बदल जाने का हृदयस्पर्शी वर्णन करता है।
प्रश्न और उत्तर –
- प्रश्न – ग्वालिन कृष्ण से क्या शिकायत करती है?
उत्तर – ग्वालिन शिकायत करती है कि कृष्ण ने उसे रात-दिन बहुत सताया है, और उसका सारा माखन-दही खा लिया है, साथ ही बहुत शरारतें भी की हैं।
- प्रश्न – ग्वालिन कृष्ण को पकड़कर क्या कहती है?
उत्तर – ग्वालिन कृष्ण को दोनों हाथों से पकड़कर कहती है कि “अब कहाँ जाओगे? मैंने तुम्हें पहचान लिया है, और सारा माखन वापस मँगवा लूँगी।”
- प्रश्न – कृष्ण अपनी सफाई में ग्वालिन से क्या कहते हैं?
उत्तर – कृष्ण अपनी सफाई में कहते हैं कि “तुम्हारी कसम, मैंने कुछ नहीं खाया। मेरे सारे दोस्त ही सब खा गए।”
- प्रश्न – कृष्ण के मुस्कुराने का ग्वालिन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर – कृष्ण के मुख की ओर देखकर उनके मुस्कुराने से ग्वालिन का सारा क्रोध तुरंत शांत हो जाता है।
- प्रश्न – ‘अब तौ घात परे हौ ललना तुम्हें भलें मैं चीन्हीं’ का क्या अर्थ है?
उत्तर – इसका अर्थ है कि “अब तो तुम मेरे हाथ आ गए हो, मेरे प्यारे बच्चे! मैंने तुम्हें अच्छी तरह पहचान लिया है।”
- प्रश्न – ग्वालिन अंत में कृष्ण के साथ क्या करती है?
उत्तर – ग्वालिन अंत में श्याम सुंदर (कृष्ण) को अपने हृदय से लगा लेती है, उनका गुस्सा वात्सल्य में बदल जाता है।
- प्रश्न – सूरदास जी इस लीला पर क्या भाव व्यक्त करते हैं?
उत्तर – सूरदास जी इस अद्भुत वात्सल्य लीला पर स्वयं को बलिहारी बताते हैं, जो कृष्ण और ग्वालिन के प्रेम को दर्शाता है।
04
निसि दिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहत पावस-रितु हमपै जब तैं स्याम सिधारे।
दृग अंजन न रहत निसि बासर कर कपोल भए कारे।
कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहुँ उर बिच बहत पनारे।
ऐसे सिथिल सबै भइ काया पल न जात रिस टारे।
सूरदास प्रभु यही परेखौ गोकुल काहे बिसारे॥
शब्दार्थ
Word (Original) | Hindi Meaning (हिंदी अर्थ) | Bengali Meaning (বাংলা অর্থ) | English Meaning |
निसि दिन | रात-दिन | রাত-দিন | Day and night |
बरसत | बरसते रहते हैं | ঝরছে, বর্ষণ হচ্ছে | Raining, pouring |
नैन हमारे | हमारी आँखें | আমাদের চোখ | Our eyes |
सदा रहत | हमेशा रहती है | সর্বদা থাকে | Always remains |
पावस- रितु | वर्षा ऋतु | বর্ষাকাল | Rainy season |
हमपै | हम पर | আমাদের উপর | On us |
जब तैं | जब से | যখন থেকে | Since |
स्याम सिधारे | श्याम (कृष्ण) चले गए | শ্যাম (কৃষ্ণ) চলে গেছে | Shyam (Krishna) left |
दृग अंजन | आँखों का काजल | চোখের কাজল | Eyeliner, kohl |
न रहत | नहीं रहता | থাকে না | Does not remain |
निसि बासर | रात-दिन | রাত-দিন | Day and night |
कर | हाथ | হাত | Hand |
कपोल | गाल | গাল | Cheek |
भए कारे | काले हो गए | কালো হয়ে গেছে | Became black |
कंचुकि-पट | चोली का वस्त्र, ब्लाउज | কাঁচুলি বস্ত্র, ব্লাউজ | Bodice cloth, blouse |
सूखत नहिं | सूखता नहीं | শুকায় না | Does not dry |
कबहुँ | कभी भी | কখনও | Ever |
उर बिच | हृदय के बीच में | বুকের মাঝে | In the midst of the heart |
बहत पनारे | नाले बहते हैं (आँसुओं के लिए) | নালার মতো বয়ে যায় (চোখের জলের জন্য) | Drains flow (for tears) |
ऐसे सिथिल | ऐसी शिथिल, कमजोर | এমন দুর্বল, নিস্তেজ | So weak, so frail |
सबै भइ काया | सारा शरीर हो गया | সমস্ত শরীর হয়ে গেছে | Entire body became |
पल न जात | एक पल भी नहीं जाता | এক মুহূর্তও যায় না | Not a single moment passes |
रिस टारे | क्रोध टाले | রাগ দূর করা | To remove anger |
सूरदास प्रभु | सूरदास के प्रभु (कृष्ण) | সুরদাসের প্রভু (কৃষ্ণ) | Lord of Surdas (Krishna) |
यही परेखौ | यही परखा, यही कष्ट है | এটাই পরীক্ষা, এটাই কষ্ট | This is the test, this is the pain |
गोकुल | गोकुल (स्थान) | গোকুল (স্থান) | Gokul (place) |
कार्है बिसारे | क्यों बिसार दिया, क्यों भूल गए | কেন ভুলে গেল | Why forgot, why abandoned |
व्याख्या
यह पद सूरदास द्वारा रचित है और इसमें गोपियों की विरह-वेदना का मार्मिक चित्रण किया गया है, जब श्रीकृष्ण गोकुल छोड़कर मथुरा चले जाते हैं। वास्तव में यह पद गोपियों के हृदय की पीड़ा और उनके कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम को व्यक्त करता है।
गोपियाँ कहती हैं कि “हमारे नेत्र रात-दिन बरसते रहते हैं।” अर्थात्, कृष्ण के वियोग में उनकी आँखों से लगातार आँसू बहते रहते हैं। उन्हें ऐसा लगता है जैसे “हम पर हमेशा वर्षा ऋतु छाई रहती है, जब से श्याम यहाँ से चले गए हैं।” कृष्ण के जाने के बाद उनके लिए हर पल वर्षा ऋतु के समान हो गया है, जहाँ आँसुओं की धारा कभी रुकती नहीं।
आँसुओं के निरंतर बहने के कारण उनकी दशा ऐसी हो गई है कि “आँखों का काजल रात-दिन नहीं रुकता, और आँसुओं के कारण हाथ और गाल काले हो गए हैं।” उनके आँखों से काजल बहकर गालों तक आ जाता है, जिससे उनके गाल काले पड़ गए हैं।
वे आगे कहती हैं कि “उनकी चोली अर्थात् कंचुकि-पट भी कभी सूखती ही नहीं है, क्योंकि हृदय के बीच से आँसुओं के नाले बहते रहते हैं।” यानी, इतनी अधिक अश्रुधारा बहती है कि उनके वस्त्र भीग जाते हैं और सूख नहीं पाते।
इस निरंतर दुख और आँसुओं के कारण “उनका सारा शरीर इतना शिथिल और कमजोर हो गया है कि एक पल के लिए भी कृष्ण-वियोग से उत्पन्न क्रोध को टाला नहीं जाता।” उनका शरीर दुर्बल हो गया है और वियोग के कारण वे हर पल उदास और असहाय महसूस करती हैं।
अंत में, सूरदास जी गोपियों के माध्यम से कहते हैं कि “हमारे प्रभु हमारे धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं।” गोपियाँ इस बात से सबसे अधिक दुखी और आश्चर्यचकित हैं कि कृष्ण, जिन्होंने गोकुल में इतना समय बिताया, उसे और यहाँ के लोगों को कैसे भूल गए।
यह पद कृष्ण के वियोग में गोपियों की असहनीय पीड़ा, उनके अश्रुपूर्ण जीवन, और कृष्ण द्वारा उन्हें भुला दिए जाने के दर्द को अत्यंत भावुकता से प्रस्तुत करता है।
प्रश्न और उत्तर –
- प्रश्न – गोपियों के नैन रात-दिन क्यों बरसते रहते हैं?
उत्तर – गोपियों के नैन श्रीकृष्ण के गोकुल छोड़कर जाने के कारण रात-दिन बरसते रहते हैं, क्योंकि वे उनके वियोग में अत्यंत दुखी हैं।
- प्रश्न – गोपियों पर कौन सी ऋतु सदा छाई रहती है और क्यों?
उत्तर – गोपियों पर सदा वर्षा ऋतु (पावस-रितु) छाई रहती है, क्योंकि कृष्ण के जाने के बाद उनके अश्रु निरंतर बहते रहते हैं, जैसे वर्षा होती हो।
- प्रश्न – गोपियों के हाथ और गाल काले क्यों हो गए हैं?
उत्तर – गोपियों के हाथ और गाल लगातार आँसू बहने के कारण काजल घुलने से काले हो गए हैं, क्योंकि उनके दृग अंजन नहीं ठहरते।
- प्रश्न – गोपियों की चोली (कंचुकि-पट) कभी क्यों नहीं सूखती?
उत्तर – गोपियों की चोली कभी नहीं सूखती, क्योंकि उनके हृदय से आँसुओं के नाले निरंतर बहते रहते हैं, जिससे वस्त्र भीगते रहते हैं।
- प्रश्न – वियोग के कारण गोपियों के शरीर की क्या दशा हो गई है?
उत्तर – वियोग के कारण गोपियों का सारा शरीर बहुत शिथिल और कमजोर हो गया है, और वे पल भर के लिए भी अपने दुख और क्रोध को भुला नहीं पातीं।
- प्रश्न – गोपियाँ कृष्ण से क्या शिकायत करती हैं?
उत्तर – गोपियाँ कृष्ण से शिकायत करती हैं कि उन्होंने गोकुल को क्यों भुला दिया है, और यह उनके लिए सबसे बड़ी परीक्षा और कष्ट है।
- प्रश्न – ‘सूरदास प्रभु यही परेखौ’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर – इससे तात्पर्य है कि सूरदास जी कहते हैं कि उनके प्रभु (कृष्ण) यही परीक्षा ले रहे हैं या उन्हें यही कष्ट दे रहे हैं, यह उनके प्रेम की कसौटी है।
05
मधुकर स्याम हमारे चोर।
मन हरि लियौ तनक चितवनि मैं चपल नयन की कोर।
पकरे हुते आनि उर अंतर प्रेम प्रीति कै जोर।
गए छड़ाइ तोरि सब बंधन दै गए हँसनि अकोर।
चौकि परी जागत निसि बीती तारनि गिनते भोर।
शब्दार्थ
Word (Original) | Hindi Meaning (हिंदी अर्थ) | Bengali Meaning (বাংলা অর্থ) | English Meaning |
मधुकर | भौंरा (यहाँ उद्धव के लिए प्रयुक्त) | ভ্রমর (এখানে উদ্ধবের জন্য ব্যবহৃত) | Bee (used here for Uddhav) |
स्याम | श्याम (श्री कृष्ण) | শ্যাম (শ্রী কৃষ্ণ) | Shyam (Lord Krishna) |
हमारे चोर | हमारे चोर हैं | আমাদের চোর | Our thief |
मन | मन, हृदय | মন, হৃদয় | Mind, heart |
हरि लियौ | हर लिया, चुरा लिया | হরণ করেছে, চুরি করেছে | Stolen, captivated |
तनक | थोड़ी सी, ज़रा सी | সামান্য, একটু | A little, slightly |
चितवनि | चितवन, दृष्टि, नज़र | দৃষ্টি, চাহনি | Gaze, glance |
मैं | में | মধ্যে | In |
चपल नयन | चंचल आँखें | চঞ্চল চোখ | Restless eyes |
की कोर | की कोर, कोने से | কোণ থেকে | From the corner of |
पकरे हुते | पकड़े हुए थे | ধরা হয়েছিল | Were caught |
आनि | आकर | এসে | Having come |
उर अंतर | हृदय के भीतर | হৃদয়ের ভিতরে | Within the heart |
प्रेम प्रीति | प्रेम और स्नेह | প্রেম ও প্রীতি | Love and affection |
कै जोर | के बल से, के कारण | এর জোরে, এর কারণে | By the force of, due to |
गए छड़ाइ | छुड़ाकर चले गए | ছাড়িয়ে চলে গেল | Escaped, got away |
तोरि सब बंधन | सारे बंधन तोड़कर | সমস্ত বন্ধন ছিঁড়ে | Breaking all bonds |
दै गए | दे गए | দিয়ে গেল | Gave, left behind |
हँसनि | हँसी | হাসি | Laughter |
अकोर | रिश्वत, उपहार (यहाँ छल से भरा) | ঘুষ, উপহার (এখানে ছলনাপূর্ণ) | Bribe, gift (here full of deceit) |
चौकि परी | चौंक पड़ी, जाग गई | চমকে উঠল, জেগে উঠল | Startled, woke up |
जागत | जागते हुए | জেগে থাকতে | While awake |
निसि बीती | रात बीत गई | রাত কেটে গেল | Night passed |
तारनि | तारे | তারা | Stars |
गिनते | गिनते हुए | গুনতে গুনতে | Counting |
भोर | भोर, सुबह | ভোর, সকাল | Dawn, morning |
व्याख्या
यह पद सूरदास द्वारा रचित है और इसमें गोपियों की विरह-वेदना का मार्मिक चित्रण किया गया है। वे उद्धव, जिन्हें यहाँ ‘मधुकर’ यानी भौंरा कहकर संबोधित किया गया है, से कृष्ण की शिकायत करते हुए अपनी प्रेम-पीड़ा व्यक्त करती हैं।
गोपियाँ उद्धव से कहती हैं, “हे उद्धव! श्याम तो हमारे चोर हैं।” वे शिकायत करती हैं कि कृष्ण ने उनके साथ छल किया है। उन्होंने कृष्ण को चोर इसलिए कहा है क्योंकि कृष्ण ने उनके सबसे मूल्यवान चीज़ — उनके मन को चुरा लिया है।
वे आगे बताती हैं कि कृष्ण ने यह चोरी कैसे की – “उन्होंने अपनी चंचल आँखों के कोने से ज़रा-सी दृष्टि डालकर ही हमारा मन हर लिया।” कृष्ण की मोहिनी दृष्टि इतनी प्रभावशाली थी कि बस एक नज़र में ही गोपियाँ अपना हृदय कृष्ण को दे बैठीं।
गोपियाँ कहती हैं कि उन्होंने कृष्ण को अपने हृदय के भीतर प्रेम और स्नेह के बल पर कसकर पकड़ रखा था। उनके बीच का प्रेम-बंधन इतना गहरा था कि उन्हें लगा कृष्ण कभी उनसे दूर नहीं जा सकते।
लेकिन, कृष्ण ने उनके सारे प्रेम-बंधन तोड़ दिए और उन्हें छुड़ाकर चले गए। जाते-जाते वे उन्हें अपनी हँसी की एक रिश्वत दे गए। यह हँसी एक छल की तरह थी, जिसने गोपियों को धोखे में रखा और उन्हें विरह की आग में छोड़ दिया।
गोपियाँ अपनी विरह-दशा का वर्णन करते हुए कहती हैं कि जब उन्हें इस छल का एहसास हुआ, तो वे चौंक पड़ीं और रात भर जागती रहीं। उन्होंने कृष्ण की प्रतीक्षा में तारे गिनते-गिनते ही अपनी पूरी रात बिता दी, और कब सुबह हो गई, उन्हें पता ही नहीं चला। उनका एक-एक पल कृष्ण के विरह में कट रहा है।
यह पद कृष्ण के प्रति गोपियों के अनन्य प्रेम, उनके द्वारा ठगा हुआ महसूस करने की पीड़ा, और कृष्ण के वियोग में उनकी रातों की नींद उड़ जाने का मार्मिक वर्णन करता है। इसमें कृष्ण की मोहिनी शक्ति और गोपियों की भावुकता का सुंदर चित्रण है।
प्रश्न और उत्तर –
प्रश्न – गोपियाँ कृष्ण को ‘चोर’ क्यों कहती हैं?
उत्तर – गोपियाँ कृष्ण को ‘चोर’ कहती हैं क्योंकि उन्होंने अपनी चंचल आँखों की एक झलक से गोपियों का मन चुरा लिया है, जिससे वे उनके प्रेम में बँध गईं।
प्रश्न – कृष्ण ने गोपियों का मन कैसे चुराया?
उत्तर – कृष्ण ने अपनी चपल नयन की कोर अर्थात् चंचल आँखों के कोने से थोड़ी-सी दृष्टि डालकर गोपियों का मन हर लिया।
प्रश्न – गोपियों ने कृष्ण को कहाँ और कैसे पकड़ा हुआ था?
उत्तर – गोपियों ने कृष्ण को अपने हृदय के भीतर प्रेम और प्रीति के बल से कसकर पकड़ा हुआ था।
प्रश्न – कृष्ण गोपियों के सारे बंधन तोड़कर कैसे चले गए?
उत्तर – कृष्ण गोपियों के सारे प्रेम बंधन तोड़कर छुड़ाकर चले गए, और जाते-जाते उन्हें अपनी हँसी की एक रिश्वत दे गए।
प्रश्न – ‘दै गए हँसनि अकोर’ पंक्ति का क्या अर्थ है?
उत्तर – इस पंक्ति का अर्थ है कि कृष्ण जाते हुए अपनी मोहक हँसी की एक छल भरी रिश्वत दे गए, जिससे गोपियाँ भ्रमित रह गईं और वियोग सहने लगीं।
प्रश्न – कृष्ण के जाने के बाद गोपियों की रात कैसे बीती?
उत्तर – कृष्ण के जाने के बाद गोपियाँ चौंककर जागती रहीं और उनकी प्रतीक्षा में तारे गिनते-गिनते ही उनकी सारी रात बीत गई, और सुबह हो गई।
प्रश्न – ‘मधुकर’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और क्यों?
उत्तर – ‘मधुकर’ शब्द उद्धव के लिए प्रयुक्त हुआ है। गोपियाँ उन्हें भौंरे के समान मानती हैं जो एक फूल से दूसरे फूल पर मंडराता है, जैसे उद्धव कृष्ण का संदेश लेकर आए हैं।