डॉ. रावूरि भरद्वाज – लेखक परिचय
वर्ष 2012 के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित स्वर्गीय श्री रावूरि भरद्वाज तेलुगु के प्रसिद्ध हस्ताक्षर हैं। प्रस्तुत कहानी तेलुगु भाषा में रचित उनकी प्रसिद्ध रचना ‘बंगारु कुंदेलु’ की अनूदित रचना ‘सोने का खरगोश’ से ली गई है।)
अनोखा उपाय
कई साल पहले की बात है। एक राजा था। उसका नाम राजा कुमारवर्मा था। वह हरितनगर का राजा था। वहाँ की प्रजा उसे बहुत चाहती थी। उसके शासन काल में राज्य हरा-भरा रहता था। लेकिन एक समय ऐसा आया, राज्य में सारी फ़सलें सूख गई। तालाब और गड्ढे सूख गए। केवल दो ही जीव नदियाँ बची थीं। जो छोटी-छोटी नहरें बनकर रह गई।
राज्य में पशुओं का चारा मिलना भी मुश्किल हो गया था। कई किसान अपने – अपने पालतू जानवर सस्ते दामों पर बेचने लगे। ऐसी परिस्थितियों में राजभंडार का अनाज प्रजा में बाँटा जाने लगा। अड़ोस-पड़ोस के राज्यों से अनाज उधार लिया जाने लगा। फिर भी राजा को भविष्य की चिंता सता रही थी। राजा उत्पन्न परिस्थितियों के बारे में गंभीर रूप से सोचने लगा लेकिन इसका कोई पता नहीं चला। राजा के मन में ये सवाल उठ रहे थे कि अड़ोस-पड़ोस के सभी राज्य हरे-भरे हैं। वहाँ की प्रजा भी सुखी है। लेकिन न जाने इस राज्य में ऐसा क्यों हो रहा होगा…? क्या कारण हो सकते हैं…? इस समस्या का हल कैसे किया जा सकता है?
राजा ने इस समस्या के हल की चर्चा के लिए कई बुद्धिमानों, हाज़िरज़वाबदारों और विद्वानों को बुलवाया। सब एक के बाद एक अपने-अपने सुझाव देने लगे। चर्चा में कुछ बुद्धिमानों ने बताया- “हे महाराज ! भूलें कई तरह की होती हैं। कुछ भूलें सरलता से पहचानी जाती हैं तो कुछ पहचानी नहीं जातीं।” कुछ हाज़िरज़वाबदारों ने बताया- “हे राजन! कुछ भूलों का आभास होता है और कुछ का आभास तक नहीं होता।” कुछ विद्वानों ने बताया- “हे प्रभु! कुछ भूलें सुधार के रूप में हो जाती हैं, तो कभी-कभी कोई सुधार कार्य भी भूल के रूप में बदल जाती हैं। ऐसी ही कोई जानी – अनजानी बात छिपी होगी जिससे आज राज्य में यह समस्या उत्पन्न हुई है।”
राजा ने पूछा – “अब आप ही बताएँ कि मुझे क्या करना चाहिए?”
सभी ने विचार-विमर्श कर राजा को यह सलाह दी- “सभी तरह से खुशहाल किसी राज्य का संदर्शन करें। वहाँ की शासन व्यवस्था को जानें। उसके अनुसार यहाँ सुधार करें। यहाँ के शासन नियमों में सुधार करें। इससे उत्पन्न समस्या का कुछ हल निकल सकता है। राज्य की समस्या का हल अवश्य हो सकता है।”
राजा कुमारवर्मा को यह बात अच्छी लगी। उसने तुरंत अपने पड़ोसी राज्य के महाराज सत्यसिंह से भेंट करने का निर्णय लिया और सेवकों से संदेश भेजा- “राजाधिराज, महाराज सत्यसिंह जी को सादर प्रणाम। हमारे राज्य में अकाल से जनता पीड़ित है। इस समस्या के हल के लिए आपकी सलाह प्राप्त करने हेतु आपके यहाँ पधारना चाहते हैं। आशा है कि आप हमारा निवेदन स्वीकारें।”
महाराज सत्यसिंह ने अपने संदेश में लिखा- “आप और हम पड़ोसी राजा हैं। किसी भी समस्या में एक-दूसरे का हाथ बँटाना हमारा कर्त्तव्य है। हमारे राज्य में आपका हार्दिक स्वागत है। आप हमारे आदरणीय अतिथि हैं। अतिथि के रूप में आपका सत्कार करने का सौभाग्य हमें मिल रहा है, इसके लिए हम कृतज्ञ हैं।
इस प्रत्युत्तर के पढ़ते ही राजा कुमारवर्मा को अपने राज्य की समस्या का हल करने का कुछ हद तक उपाय मिल ही गया था। फिर भी राजा स्वयं पड़ोसी राज्य के राजा से भेंट करना चाहते थे।
देखते-देखते वह दिन आ ही गया। राजा कुमारवर्मा का पड़ोसी राज्य में भव्य स्वागत हुआ। वहाँ चारों तरफ जलाशय भरे हुए थे। नदियाँ लबालब थीं। नहरें बह रही थीं। ठंडी हवाएँ सन – सन बह रही थी। खेत भरी हरियाली से लह लहा रहे थे। फूलों के चमन खुशबू से महक रहे थे। बाग-बगीचे फल-फूलों से लदे थे। ये सारी चीजें देखकर राजा कुमारवर्मा को बहुत खुशी हुई।
महाराज कुमारवर्मा की भेंट महाराज सत्यसिंह से हुई। कुमारवर्मा ने कहा, ” मित्र ! आपका राज्य किसी स्वर्ग से कम नहीं है। मुझे लगता है कि जिन शासन नियमों को मैं नहीं जानता, उनका आप पूरा-पूरा पालन कर रहे हैं। इसीलिए आपकी प्रजा सुखी है। मैं भी अपनी प्रजा को सुखी देखना चाहता हूँ। कृपया आप मुझे सुशासन की सलाह दें।”
महाराज सत्यसिंह ने पहले तो हितोपदेश के लिए मना कर दिया। किंतु राजा कुमार वर्मा के अनुरोध पर उन्होंने कहा- “नहीं महाराज! मुझे मजबूर मत कीजिए। मैं दोषी हूँ। जो दोषी होता है, उसे हितोपदेश करने का कोई अधिकार नहीं होता। मैं आपको एक घटना सुनाता हूँ। मैं एक बार अपने अंगरक्षक के साथ इसी तरह उपवन में चर्चा कर रहा था। तभी मुझे राजमाता के पास ज़रूरी बात करने के लिए जाना पड़ा। मैंने अंगरक्षकों को अपने लौटने तक वहीं खड़े रहने का आदेश दिया था। राजमाता से बात करते-करते रात हो गई। वहीं पर मैंने भोजन किया। सो गया। अगले दिन सुबह उठकर देखा तो ख़ूब बारिश हो रही थी। सेवकों ने बताया कि देर रात से बारिश हो रही थी। जब मैंने उपवन लौटकर देखा तो अंगरक्षक उसी स्थान पर भीगते हुए खड़े थे। मैं बातचीत में इतना निमग्न हो गया था कि अंगरक्षकों को जाने के लिए भी नहीं कह सका। यह मेरी भूल थी। अत: ऐसी भूल करने वाले राजा को हितोपदेश देने का कोई अधिकार नहीं। मुझे क्षमा कीजिए।”
राजा कुमारवर्मा ने महाराज सत्यसिंह की इस घटना को पूरे ध्यान से सुना। उन्हें लगा कि राजमाता ही उन्हें हितोपदेश दे सकती है। उन्होंने राजमाता से भेंट की।
“पुत्र ! सच कहूँ तो मैं भी दोषी हूँ। एक बार मेरे पुत्र ने अपनी पत्नी के लिए आभूषण बनवाए। मेरे मन में आभूषण के प्रति लालच हुआ। यदि मैं अपने पुत्र या बहू से ज़ेवर माँगती, तो वे कभी मना नहीं करते। एक राजमाता का ज़ेवरों के प्रति आकर्षण होना दोष है। किसी दूसरे की वस्तु के प्रति लालच रखना भी ग़लत है। ऐसी भूल करने वाली मैं, हितोपदेश करने के योग्य नहीं समझती।
राजा कुमारवर्मा आश्चर्य में पड़ गया। बाद में राजगुरु से भेंट की और उनसे उपदेश के लिए निवेदन किया।
तब राजगुरु ने कहा, “महाराज! मुझे क्षमा कीजिए। मैं इसके योग्य नहीं। एक बार सुदूर देश से एक पंडित आया था। राजदर्शन करना चाहा। उसके पांडित्य की जाँच करने का समय न होने के कारण मैंने राजा को यह कह दिया कि वह बड़ा पंडित है। राजा मुझ पर असीम विश्वास रखते हैं। उन्होंने पंडित को ढेर सारा इनाम दिया। आगे चलकर मुझे पता चला कि वह पंडित केवल औसत था। मेरे आलस के कारण मैं राजा को उचित सलाह न दे सका। ऐसी भूल करने वाला मैं, हितोपदेश के योग्य नहीं समझता।”
राजा कुमारवर्मा बड़ी सोच में पड़ गया।
इन तीन घटनाओं से उसे यह सीख मिली कि हमें छोटी से छोटी भूल भी नहीं करनी चाहिए। यदि हमसे कोई भूल हो तो उसे तुरंत सुधार लेनी चाहिए।
राजा ने इस सीख का पालन किया। कुछ ही दिनों में उसका राज्य खुशहाल बन गया।
हिंदी शब्द | हिंदी अर्थ | तेलुगु अर्थ | अंग्रेज़ी अर्थ |
राजा | नरेश, सम्राट, अधिपति | రాజు, మహారాజు | King, Monarch |
प्रजा | जनता, निवासियों | ప్రజలు, పౌరులు | Citizens, People |
शासन | राज्य प्रबंधन, प्रशासन | పాలన, ప్రభుత్వం | Governance, Administration |
हरा-भरा | समृद्ध, संपन्न | సస్యశ్యామల, సమృద్ధి | Greenery, Prosperous |
अकाल | सूखा, दुर्भिक्ष | కరువు, దుర్భిక్షం | Famine, Drought |
तालाब | पोखर, सरोवर | చెరువు, సరస్సు | Pond, Reservoir |
जलाशय | पानी का स्रोत | జలాశయం, నీటి నిల్వ | Water Reservoir |
पशु | जानवर, जीव | జంతువులు, మృగాలు | Animals, Beasts |
चारा | पशु भोजन | మేత, గడ్డి | Fodder, Animal Feed |
संकट | परेशानी, विपत्ति | సంక్షోభం, కష్టనష్టం | Crisis, Problem |
विद्वान | ज्ञानी, बुद्धिमान | పండితుడు, జ్ఞాని | Scholar, Wise Man |
सुधार | परिवर्तन, बेहतरी | మెరుగుదల, సరిదిద్దడం | Improvement, Reform |
भेंट | मुलाकात, सभा | భేటీ, కలయిక | Meeting, Encounter |
स्वागत | अभिनंदन, सम्मान | స్వాగతం, ఆహ్వానం | Welcome, Reception |
नदियाँ | जलधारा, सरिता | నదులు, జలధారలు | Rivers, Streams |
सुशासन | अच्छा प्रशासन | మంచి పాలన | Good Governance |
अनुरोध | निवेदन, आग्रह | అభ్యర్థన, కోరిక | Request, Appeal |
हितोपदेश | उपदेश, सीख | హితబోధ, నైతిక బోధ | Moral Teaching, Advice |
दोष | गलती, त्रुटि | తప్పు, దోషం | Mistake, Fault |
आलस | सुस्ती, निष्क्रियता | మందకూడి, ఉదాసీనత | Laziness, Inactivity |
समृद्धि | संपन्नता, उन्नति | సమృద్ధి, శ్రేయస్సు | Prosperity, Wealth |
सुखी | आनंदित, प्रसन्न | ఆనందంగా, సంతోషంగా | Happy, Content |
समाधान | हल, निवारण | పరిష్కారం, తీర్మానం | Solution, Resolution |
अनुभव | तजुर्बा, अनुभूति | అనుభవం, అనుభూతి | Experience, Realization |
अतिथि | मेहमान, आगंतुक | అతిథి, సందర్శకుడు | Guest, Visitor |
आदेश | निर्देश, फरमान | ఆదేశం, హుకూం | Order, Command |
विचार-विमर्श | चर्चा, मंथन | చర్చ, తర్కం | Discussion, Debate |
निष्कर्ष | परिणाम, नतीजा | తుది ఫలితం, ఉపసంహారం | Conclusion, Outcome |
सिख | सीख, पाठ | బోధన, పాఠం | Lesson, Teaching |
पाठ का सार
हरितनगर के राजा कुमारवर्मा का राज्य पहले हरा-भरा था, लेकिन अचानक अकाल पड़ गया। फसलें सूख गईं, जल स्रोत खत्म हो गए, और प्रजा संकट में आ गई। राजा ने समस्या का हल खोजने के लिए विद्वानों से परामर्श किया। सलाह के अनुसार, उन्होंने पड़ोसी राजा सत्यसिंह से भेंट की। वहाँ की खुशहाली देखकर वे प्रभावित हुए और सुशासन का ज्ञान लेना चाहा। लेकिन सत्यसिंह, राजमाता और राजगुरु ने अपनी-अपनी भूलें बताकर उपदेश देने से इनकार कर दिया। इससे राजा ने सीखा कि छोटी-छोटी भूलें भी गंभीर संकट ला सकती हैं और उन्हें तुरंत सुधारना चाहिए। इस सीख के बाद, उन्होंने अपने राज्य में सुधार किए, जिससे हरितनगर फिर से समृद्ध हो गया।
प्रश्न
- राजा कुमारवर्मा के राज्य में अकाल की स्थिति क्यों उत्पन्न हुई होगी?
उत्तर – राजा के राज्य में वर्षा न होने, जलाशयों के सूख जाने और उचित जल प्रबंधन न होने के कारण अकाल की स्थिति उत्पन्न हुई होगी।
- अकाल की समस्या के परिष्कार के लिए राजा ने क्या-क्या उपाय सोचे होंगे?
उत्तर – अकाल की समस्या के परिष्कार के लिए राजा ने ये उपाय सोचे होंगे जैसे – राजा ने राजभंडार से अनाज बाँटना, अन्य राज्यों से अनाज उधार लेना और बुद्धिजीवियों व विद्वानों से समस्या का हल खोजने के लिए विचार-विमर्श करना आदि।
- राजा कुमारवर्मा की जगह पर यदि तुम होते तो अकाल की समस्या से कैसे जूझते?
उत्तर – यदि मैं राजा कुमारवर्मा की जगह होता, तो जल संचयन के लिए जलाशयों की खुदाई, वर्षा जल संग्रहण और वृक्षारोपण जैसे उपाय अपनाता। साथ ही, किसानों को नई कृषि तकनीकों की जानकारी देकर अकाल से निपटने के प्रयास करता।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए-
प्रश्न – राजा कुमारवर्मा कौन थे?
उत्तर – वह हरितनगर के राजा थे।
प्रश्न – राज्य में कौन सी समस्या उत्पन्न हुई?
उत्तर – राज्य में अकाल पड़ गया था।
प्रश्न – राजा ने समस्या के हल के लिए क्या किया?
उत्तर – उन्होंने विद्वानों से सलाह ली।
प्रश्न – राजा को किसने सुझाव दिया?
उत्तर – विद्वानों, बुद्धिमानों और हाज़िरज़वाबदारों ने।
प्रश्न – राजा ने किस पड़ोसी राजा से भेंट की?
उत्तर – राजा ने किस पड़ोसी राजा महाराज सत्यसिंह से भेंट की।
प्रश्न – पड़ोसी राज्य कैसा था?
उत्तर – पड़ोसी राज्य हरा-भरा और समृद्ध था।
प्रश्न – महाराज सत्यसिंह ने पहले उपदेश क्यों नहीं दिया?
उत्तर – महाराज सत्यसिंह ने पहले उपदेश नहीं दिया क्योंकि वे खुद को दोषी मानते थे।
प्रश्न – राजमाता ने उपदेश देने से क्यों मना किया?
उत्तर – राजमाता ने उपदेश देने से मना किया क्योंकि उन्हें आभूषणों का लालच हुआ था।
प्रश्न – राजगुरु ने क्या गलती की थी?
उत्तर – राजगुरु ने बिना जाँच के पंडित की सिफारिश कर दी।
प्रश्न – राजा कुमारवर्मा को क्या सीख मिली?
उत्तर – राजा कुमारवर्मा को ये सीख मिली कि छोटी भूलें भी नहीं करनी चाहिए और उन्हें सुधार लेना चाहिए।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दीजिए –
प्रश्न – राज्य में अकाल क्यों पड़ा और उसकी क्या स्थिति थी?
उत्तर – राज्य में सूखा पड़ने से सारी फसलें और जलस्रोत सूख गए थे, जिससे लोग और पशु संकट में आ गए थे।
प्रश्न – राजा ने समस्या के समाधान के लिए क्या योजना बनाई?
उत्तर – राजा ने बुद्धिमानों और विद्वानों से चर्चा की और पड़ोसी राज्य की शासन व्यवस्था को देखने का निश्चय किया।
प्रश्न – राजा कुमारवर्मा को पड़ोसी राज्य में जाकर क्या अनुभव हुआ?
उत्तर – राजा कुमारवर्मा को पड़ोसी राज्य में जाकर बहुत गंभीर अनुभव हुआ उन्होंने देखा कि वहाँ की शासन व्यवस्था सुचारु थी, जिससे राज्य खुशहाल और संपन्न था।
प्रश्न – महाराज सत्यसिंह ने अपनी कौन सी भूल बताई?
उत्तर – महाराज सत्यसिंह ने अपनी भूल बाते हुए कहा कि एक बार उन्होंने अपने अंगरक्षकों को आदेश देकर भूल से पूरी रात बारिश में खड़ा रखा, जिसे वे अपनी गलती मानते थे।
प्रश्न – राजा ने अपनी राज्य की स्थिति को सुधारने के लिए क्या किया?
उत्तर – राजा ने सीखा कि छोटी-छोटी भूलें राज्य की दशा बिगाड़ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी नीतियों में सुधार किया।
प्रश्न – विद्वानों ने राजा को क्या सलाह दी थी?
उत्तर – विद्वानों ने राजा को सलाह दी कि राजा को किसी सफल राज्य का निरीक्षण करके अपने राज्य में सुधार करना चाहिए।
प्रश्न – राजगुरु ने स्वयं को उपदेश देने के योग्य क्यों नहीं समझा?
उत्तर – राजगुरु ने स्वयं को उपदेश देने के योग्य नहीं समझा उन्होंने बिना जाँच के एक साधारण पंडित को महान बताकर राजा से गलती करवा दी थी।
प्रश्न – राजा ने अंततः क्या निष्कर्ष निकाला?
उत्तर – राजा ने अंततः यह निष्कर्ष निकाला कि हर छोटी गलती को गंभीरता से लेना चाहिए और समय पर सुधार करना चाहिए।
प्रश्न – राजा कुमारवर्मा ने अपनी प्रजा के लिए क्या किया?
उत्तर – राजा कुमारवर्मा ने सीखी गई बातों को लागू किया, शासन सुधार किया और राज्य को समृद्ध बनाया।
प्रश्न – इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर – हमें छोटी से छोटी भूल को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए और उसे तुरंत सुधार लेना चाहिए।