- गाँधीजी क्या-क्या करते थे?
उत्तर – गाँधीजी सूत कातते थे, कपड़ा बुनते थे, अनाज से कंकर चुनते थे और चक्की में अनाज पीसते थे।
- गाँधीजी के अनुसार पूजनीय क्या है?
उत्तर – गाँधीजी के अनुसार श्रम व मेहनत पूजनीय है।
- हमारे जीवन में श्रम का क्या महत्त्व है?
उत्तर – हमारे जीवन में श्रम का अत्यधिक महत्त्व है क्योंकि श्रम से ही हम अपने भाग्य को बदल सकते हैं। हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं और अपनी स्वतंत्र पहचान बना सकते हैं।
उद्देश्य
यह पाठ छात्रों को सामाजिक काव्य सृजन की प्रेरणा देते हुए समाज कल्याण व उदारता की भावना का विकास करता है। इसमें श्रम का महत्त्व बताया गया है। मेहनत ही सफलता की कुंजी है। मेहनत करने वाला व्यक्ति कभी नहीं हारता। वह हमेशा सफल होता है क्योंकि काल्पनिक जगत को साकार रूप देने वाला वही है। इसलिए श्रम करनेवाला ही कण-कण का अधिकारी है।
विधा विशेष
इस पाठ की विधा कविता है। कम शब्दों में अधिक से अधिक भाव प्रकट करने की क्षमता इसमें निहित होती है।
डॉ. रामधारी सिंह – ‘दिनकर’कवि परिचय
डॉ. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिंदी के प्रसिद्ध कवियों में से एक हैं। उनका जन्म सन् 1908 में बिहार के मुंगेर में हुआ तथा निधन सन् 1974 में हुआ। इन्हें हिंदी का राष्ट्रकवि भी कहा जाता है। ‘उर्वशी’ कृति के लिए इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। रेणुका, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा, रसवंती आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
विषय प्रवेश –
प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘कुरुक्षेत्र’ नामक काव्य से ली गई हैं। महाभारत युद्ध से हुआ विनाश देखकर युधिष्ठिर बहुत दुखी हुए। उन्होंने राज-काज त्यागकर वन जाने का निर्णय लिया। तब शरशय्या पर लेटे पितामह भीष्म ने उन्हें राजधर्म का उपदेश दिया। पाठ की पंक्तियाँ उसी उपदेश पर आधारित हैं।
कण-कण का अधिकारी
एक मनुज संचित करता है,
अर्थ पाप के बल से,
और भोगता उसे दूसरा,
भाग्यवाद के छल से।
नर-समाज का भाग्य एक है,
वह श्रम, वह भुजबल है,
जिसके सम्मुख झुकी हुई-
पृथ्वी, विनीत नभ-तल है।
जिसने श्रम-जल दिया उसे
पीछे मत रह जाने दो,
विजीत प्रकृति से पहले
उसको सुख पाने दो।
जो कुछ न्यस्त प्रकृति में है,
वह मनुज मात्र का धन है,
धर्मराज ! उसके कण-कण का
अधिकारी जन-जन है॥
– डॉ. रामधारी सिंह ‘दिनकर’
शब्द | अर्थ (हिंदी में) | తెలుగు అర్ధం | Meaning (English) |
कण-कण | प्रत्येक कण, छोटा भाग | ప్రతి రేణువు, చిన్న భాగం | Every particle, tiny part |
अधिकारी | हकदार, स्वामी | హక్కుదారు, అధికారి | Entitled, owner |
संचित | एकत्र किया हुआ, संग्रहित | కూడబెట్టిన, సంగ్రహించిన | Accumulated, collected |
अर्थ | धन, संपत्ति, पैसा | ధనం, ఆస్తి, నాణెం | Wealth, money, currency |
पाप | अधर्म, बुरा कर्म | పాపం, చెడు పని | Sin, wrongful act |
बल | शक्ति, ताकत | శక్తి, బలం | Strength, power |
भोगना | उपभोग करना, अनुभव करना | అనుభవించుట, భోగించుట | To experience, to consume |
भाग्यवाद | नियति में विश्वास | విధిని నమ్మటం | Fatalism, belief in destiny |
छल | धोखा, कपट | మోసం, వంచన | Deception, fraud |
श्रम | मेहनत, परिश्रम | కష్టం, శ్రమ | Hard work, labor |
भुजबल | बाहुबल, ताकत | భుజబలం, శక్తి | Physical strength, might |
विनीत | विनम्र, झुका हुआ | వినీతం, నమ్రత | Humble, submissive |
नभ-तल | आकाश की सतह | ఆకాశపు ఉపరితలం | Surface of the sky |
श्रम-जल | परिश्रम का फल | కష్టపు నీరు | Fruits of hard work |
विजीत | जीता हुआ, अधीन किया गया | గెలిచిన, వశపరచిన | Conquered, subdued |
न्यस्त | रखा हुआ, समर्पित किया हुआ | ఉంచబడిన, అర్పించిన | Deposited, dedicated |
मात्र | केवल, ही | మాత్రమే | Only, merely |
धर्मराज | न्यायप्रिय राजा, धर्म का राजा | ధర్మరాజు | The king of righteousness |
जन-जन | प्रत्येक व्यक्ति | ప్రతి వ్యక్తి | Every person, everyone |
पाठ का सार –
इस कविता में कवि ने समाज में श्रम और उसके अधिकार पर प्रकाश डाला है। कवि कहते हैं कि कुछ लोग पाप के बल पर धन-संपत्ति संचित कर लेते हैं, लेकिन उसका उपभोग कोई और करता है। वास्तव में, इस संसार में परिश्रम ही सच्चा भाग्य है, और उसी के बल पर पृथ्वी व आकाश भी झुक जाते हैं।
कवि यह संदेश देते हैं कि जिसने मेहनत करके प्रकृति से संसाधन प्राप्त किए हैं, उसे सबसे पहले उनका आनंद लेने का अधिकार मिलना चाहिए। प्रकृति की हर चीज़ संपूर्ण मानव समाज की संपत्ति है, और प्रत्येक व्यक्ति इसका समान रूप से अधिकारी है। अतः किसी भी व्यक्ति को उसका श्रमफल पाने से वंचित नहीं करना चाहिए।
प्रश्न
- भाग्यवाद का छल क्या है?
उत्तर – भाग्यवाद का छल यह है कि कुछ लोग बिना श्रम किए केवल भाग्य के भरोसे सुख भोगने की चाह रखते हैं। ऐसा सोचने वाले जीवन में कुछ ठोस नहीं कर पाते हैं। वे तो जीवन के असली उद्देश्य को जान ही नहीं पाते हैं।
- नर समाज का भाग्य क्या है?
उत्तर – नर-समाज का भाग्य उसका श्रम और भुजबल है, जिसके बल पर वह प्रकृति को वश में कर सकता है और सुख प्राप्त कर सकता है।
- श्रमिक के सम्मुख क्या-क्या झुके हैं?
उत्तर – श्रमिक के सम्मुख पृथ्वी और आकाश (नभ-तल) विनम्र होकर झुके हुए हैं क्योंकि वे इस दुनिया में रहने के लिए प्रकृति के नियमों का पालन करते हैं और श्रम करते हैं।
- श्रम जल किसने दिया?
उत्तर – श्रम जल मेहनतकश श्रमिकों ने दिया। इसक सामान्य अर्थ यह है कि श्रमिकों ने अपने पसीने बहाकर इस दुनिया को रहने लायक और समृद्ध बनाया है।
- मनुष्य का धन क्या है?
उत्तर – मनुष्य का धन प्रकृति में निहित संपदा है।
- कण-कण का अधिकारी कौन है?
उत्तर – कण-कण का अधिकारी संपूर्ण मानव समाज है जो मेहनत करता है और अपनी मेहनत से इस दुनिया को समृद्ध बनाता है।
अर्थग्राह्यता-प्रतिक्रिया
(अ) प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
- भाग्य और कर्म में आप किसे श्रेष्ठ मानते हैं? क्यों?
उत्तर – भाग्य और कर्म में मैं कर्म को श्रेष्ठ मानता हूँ क्योंकि कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है। केवल भाग्य के भरोसे रहने से सफलता नहीं मिलती, बल्कि परिश्रम और संघर्ष से ही जीवन में वास्तविक उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसलिए कर्म करना सबसे उत्तम उपाय और उत्तम विकल्प है।
- श्रम के बल पर हम क्या क्या हासिल कर सकते हैं?
उत्तर – श्रम के बल पर हम जीवन में हर सफलता प्राप्त कर सकते हैं। परिश्रम से ही ज्ञान, धन, सम्मान और सुख हासिल किया जा सकता है। श्रम के बिना कोई भी उन्नति संभव नहीं होती। किसान मेहनत करता है तो अन्न उपजता है, श्रमिक परिश्रम करता है तो बड़े-बड़े भवन और सड़कें बनती हैं। वैज्ञानिक प्रयोग करते हैं तो नए आविष्कार होते हैं। इसलिए, श्रम ही सच्ची पूँजी है, जिससे हम अपनी इच्छाओं और सपनों को साकार कर सकते हैं।
(आ) पाठ पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
- इस कविता के कवि कौन हैं?
उत्तर – इस कविता के कवि रामधारी सिंह दिनकर जी हैं।
- कविता का यह अंश किस काव्य से लिया गया है?
उत्तर – कविता का यह अंश ‘कुरुक्षेत्र’ काव्य से लिया गया है।
- सबसे पहले सुख पाने का अधिकार किसे है?
उत्तर – सबसे पहले सुख पाने का अधिकार मेहनतकश मजदूरों को है।
- कण-कण का अधिकारी किन्हें कहा गया है और क्यों?
उत्तर – कविता ‘कण-कण का अधिकारी’ में समस्त मानव जाति को प्रकृति के प्रत्येक कण का अधिकारी बताया गया है। कवि के अनुसार, प्रकृति की सभी संपदाएँ केवल कुछ लोगों के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए हैं। श्रमिकों के श्रम और परिश्रम से ही सृष्टि चलती है, इसलिए वे भी हर संसाधन और सुख के समान रूप से अधिकारी हैं।
(इ) निम्नलिखित भाव से संबंधित कविता की पंक्तियाँ चुनकर लिखिए।
- धरती और आकाश इसके सामने नतमस्तक होते हैं।
उत्तर – “जिसके सम्मुख झुकी हुई-
पृथ्वी, विनीत नभ-तल है।”
- प्रकृति से पहले परिश्रम करने वाले को सुख मिलना चाहिए।
उत्तर – “जिसने श्रम-जल दिया उसे
पीछे मत रह जाने दो,
विजीत प्रकृति से पहले
उसको सुख पाने दो।”
(ई)नीचे दिया गया पद्यांश पढ़िए। प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
कदम-कदम बढ़ाए जा, सफलता तू पाए जा,
ये भाग्य है तुम्हारा, तू कर्म से बनाए जा,
निगाहें रखो लक्ष्य पर, कठिन नहीं ये सफ़र,
ये जन्म है तुम्हारा, तू सार्थक बनाए जा।
- कवि के अनुसार सफलता किस प्रकार प्राप्त हो सकती है?
उत्तर – कवि के अनुसार सफलता प्राप्त करने के लिए हमें सदैव प्रयास करते रहना चाहिए। भाग्य के भरोसे न रहकर कर्मों पर भरोसा रखना चाहिए और अपने लक्ष्य से कभी भटकना नहीं चाहिए।
- हमारा सफ़र कब सरल बन सकता है?
उत्तर – हमारा सफ़र उस समय सरल बन सकता है जब हम लक्ष्य के प्रति प्रयत्नशील रहे और लक्ष्य न मिल जाने तक पूरे उल्लास और उमंग से अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ते रहे।
- इस कविता के लिए उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर – इस कविता के लिए मेरे हिसाब से उचित शीर्षक ‘कर्म की श्रेष्ठता’ होनी चाहिए।
अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता
(अ) कवि मेहनत करने वालों को सदा आगे रखने की बात क्यों कर रहे हैं?
उत्तर – कवि मेहनत करने वालों को सदा आगे रखने की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि समाज की प्रगति और समृद्धि का आधार श्रम ही है। श्रमिक अपने परिश्रम से पृथ्वी को उपजाऊ बनाते हैं, उद्योगों को चलाते हैं और विकास की नींव रखते हैं। उनके बिना समाज का कोई भी कार्य संभव नहीं है। इसलिए उन्हें उनका उचित स्थान और सम्मान मिलना चाहिए ताकि वे पहले सुख भोग सकें।
(आ) कवि ने मज़दूरों के अधिकारों का वर्णन कैसे किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – कवि ने मज़दूरों के अधिकारों का वर्णन करते हुए कहा है कि समाज में जो भी संसाधन और संपत्ति उपलब्ध हैं, वे केवल कुछ लोगों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उन पर सभी का समान अधिकार होना चाहिए। मेहनतकश श्रमिक, जो अपने श्रम और परिश्रम से पृथ्वी को उपजाऊ बनाते हैं और समाज का विकास करते हैं, उन्हें भी पहले सुख प्राप्त करने का अवसर मिलना चाहिए। वे ही हर संसाधन के वास्तविक अधिकारी हैं।
(इ) ‘श्रम का महत्त्व’ विषय पर निबंध लिखिए।
उत्तर – परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। संसार में जो भी महान व्यक्ति हुए हैं, उन्होंने अपने जीवन में परिश्रम का महत्व समझा और उसे अपनाया। श्रम के बिना किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती। एक किसान अपनी मेहनत से भूमि को उपजाऊ बनाता है, एक मजदूर अपने परिश्रम से ऊँची-ऊँची इमारतें खड़ी करता है, वैज्ञानिक अपनी कठिन साधना से नई-नई खोजें करते हैं, और विद्यार्थी अपने अध्ययन में परिश्रम करके उज्ज्वल भविष्य की नींव रखते हैं।
श्रम का महत्त्व केवल भौतिक सुख-सुविधाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के आत्म-सम्मान और संतोष का भी आधार है। जो व्यक्ति मेहनत से अपना कार्य करता है, उसे न केवल सफलता मिलती है, बल्कि समाज में भी उसका मान-सम्मान बढ़ता है। इतिहास गवाह है कि परिश्रमी लोग ही आगे बढ़ते हैं और आलसी लोग पीछे रह जाते हैं। श्रम का सबसे बड़ा उदाहरण प्रकृति में देखने को मिलता है। सूर्य, चंद्रमा, नदियाँ और पेड़-पौधे निरंतर परिश्रम करते हैं और बिना किसी स्वार्थ के दूसरों को लाभ पहुँचाते हैं। इसीलिए कहा गया है कि श्रम ही जीवन का आधार है। हमें भी अपने जीवन में परिश्रम को अपनाना चाहिए और आलस्य से दूर रहना चाहिए। परिश्रम से ही व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है और अपने तथा समाज के विकास में योगदान दे सकता है।
(ई) ‘नर समाज का भाग्य एक है, वह श्रम, वह भुजबल है।’ जीवन की सफलता का मार्ग श्रम है। अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर – श्रम ही जीवन की सफलता का मूल मंत्र है। मनुष्य अपनी मेहनत और परिश्रम के बल पर असंभव कार्य को भी संभव बना सकता है। इतिहास गवाह है कि जो व्यक्ति परिश्रम करता है, वही सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचता है। श्रम से आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास और सम्मान प्राप्त होता है। मेहनती व्यक्ति किसी भी कठिन परिस्थिति में हार नहीं मानता, बल्कि निरंतर प्रयास से अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। आलसी व्यक्ति हमेशा दूसरों पर निर्भर रहता है और असफलता का सामना करता है। इसलिए जीवन में सफलता पाने के लिए हमें श्रम को अपना सबसे बड़ा साथी बनाना चाहिए।
भाषा की बात
(अ) कोष्ठक में दी गई सूचना पढ़िए और उसके अनुसार कीजिए।
- जन, पृथ्वी, धन (पर्याय शब्द लिखिए।)
जन – मनुष्य, नर, इंसान
पृथ्वी- भू, भूमि, धरा
धन – दौलत, राशि, संपत्ति
- पाप, सुख, भाग्य (विलोम शब्द लिखिए।)
पाप – पुण्य
सुख – दुख
भाग्य – दुर्भाग्य
- जन-जन, कण-कण (पुनरुक्त शब्दों से वाक्य प्रयोग कीजिए।)
जन-जन – भारत का जन-जन गाँधीजी को राष्ट्रपिता मानता है।
कण-कण – ईश्वर कण-कण में विद्यमान हैं।
- मज़दूर मेहनत करता है। (वचन बदलिए।)
मज़दूर मेहनत करते हैं।
- मनुष्य, मज़दूर (भाववाचक संज्ञा में बदलकर लिखिए।)
मनुष्यता
मज़दूरी
(आ) सूचना पढ़िए। उसके अनुसार कीजिए।
- यद्यपि, पर्यावरण (संधि विच्छेद कीजिए।)
यदि + अपि = यद्यपि
परि + आवरण = पर्यावरण
- श्रम – जल, नभ-तल, भुजबल (समास पहचानिए।)
श्रम – जल – श्रम का जल = संबंध तत्पुरुष समास
नभ-तल – नभ के नीचे = संबंध तत्पुरुष समास
भुजबल – भुजा का बल = संबंध तत्पुरुष समास
(इ) इन्हें समझिए। सूचना के अनुसार कीजिए।
- अभाग्य, दुर्भाग्य, सौभाग्य (उपसर्ग पहचानिए।)
अभाग्य = अ + भाग्य
दुर्भाग्य = दुर् + भाग्य
सौभाग्य = सौ + भाग्य
- प्राकृतिक, अधिकारी, भाग्यवान (प्रत्यय पहचानिए।)
प्राकृतिक – प्रकृति + इक
अधिकारी = अधिकार + ई
भाग्यवान = भाग्य + वान
- पुरुष श्रमिक के रूप में मेहनत करते हैं। (लिंग बदलकर वाक्य लिखिए।)
स्त्रियाँ श्रमिक के रूप में मेहनत करती हैं।
(ई) रेखांकित शब्दों का पद परिचय दीजिए।
- एक मनुज संचित करता है, अर्थ पाप के बल से,
और भोगता उसे दूसरा, भाग्यवाद के छल से।
एक – निश्चित संख्यावाचक विशेषण, पुल्लिंग, एकचन, ‘मनुज’ विशेष्य के लिए प्रयुक्त
और – समुच्चबोधक अव्यय, वाक्य संयोजक के रूप में प्रयुक्त, कारण-परिणाम संबंध
परियोजना कार्य
विश्व श्रम दिवस (मई दिवस) के बारे में जानकारी इकट्ठी कीजिए। कक्षा में उसका प्रदर्शन कीजिए।
परिश्रम ही सौभाग्य है।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर एक वाक्य में दीजिए –
प्रश्न – कवि के अनुसार कुछ लोग धन कैसे संचित करते हैं?
उत्तर – कुछ लोग धन को पाप के बल पर संचित करते हैं।
प्रश्न – अन्य लोग उस संचित धन का उपभोग कैसे करते हैं?
उत्तर – अन्य लोग भाग्यवाद के छल से उसका उपभोग करते हैं।
प्रश्न – नर-समाज का वास्तविक भाग्य क्या है?
उत्तर – नर-समाज का वास्तविक भाग्य श्रम और भुजबल है।
प्रश्न – पृथ्वी और आकाश किसके सामने झुके हुए हैं?
उत्तर – पृथ्वी और आकाश श्रम और भुजबल के सामने झुके हुए हैं।
प्रश्न – श्रम करने वाले को पहले क्या मिलना चाहिए?
उत्तर – श्रम करने वाले को पहले सुख पाने का अधिकार मिलना चाहिए।
प्रश्न – प्रकृति में जो भी संसाधन हैं, वे किसके लिए हैं?
उत्तर – प्रकृति में जो भी संसाधन हैं, वे संपूर्ण मानव समाज के लिए हैं।
प्रश्न – कवि किसे प्रत्येक कण का अधिकारी मानते हैं?
उत्तर – कवि प्रत्येक मनुष्य को प्रकृति के कण-कण का अधिकारी मानते हैं।
निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दीजिए –
प्रश्न – कवि ने भाग्यवाद को छल क्यों कहा है?
उत्तर – कवि ने भाग्यवाद को छल इसलिए कहा है क्योंकि इसमें बिना श्रम किए व्यक्ति सुख भोगने की अपेक्षा करता है, जो न्यायसंगत नहीं है। श्रम ही सच्चा भाग्य है।
प्रश्न – श्रम का महत्व कवि ने कैसे बताया है?
उत्तर – कवि ने बताया कि श्रम ही वास्तविक संपत्ति है, जिसके कारण पृथ्वी और आकाश भी झुक जाते हैं। जो व्यक्ति श्रम करता है, उसे पहले सुख भोगने का अधिकार मिलना चाहिए।
प्रश्न – कवि का समाज के प्रति क्या संदेश है?
उत्तर – कवि का संदेश है कि प्रकृति में जो कुछ भी उपलब्ध है, वह संपूर्ण मानव जाति की संपत्ति है और सभी को इसका समान रूप से अधिकारी होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति मेहनत करने के बाद उसके फल से वंचित न रहे।