Telangana, Class X, Sugandha -02, Hindi Text Book, Ch. 07, Bhakti Pad, Raidas Aur Meerabai, The Best Solutions,  भक्ति पद (कविता) रैदास, मीराबाई

  1. भगवत भक्ति का ज्ञान कौन देता है?

उत्तर – गुरु भगवत भक्ति का ज्ञान देते हैं।

  1. गुरु को किससे श्रेष्ठ बताया गया है? क्यों?

उत्तर – गुरु को गोविंद अर्थात् ईश्वर से श्रेष्ठ बताया गया है, क्योंकि गुरु ही छात्रों को ईश्वर की सत्ता के बारे में और भगवत भक्ति का ज्ञान देते हैं।

  1. निराडंबर भक्ति भावनाका क्या महत्त्व है?

उत्तर – ‘निराडंबर भक्ति भावना’ का यह महत्त्व है कि इसमें आप केवल अपने हृदय से ईश्वर की भक्ति और उनका स्मरण करते हैं। इसमें किसी भी प्रकार का दिखावा जैसे, राम-नामी वस्त्र धारण करना, तिलक लगाना, माला जपना आदि कर्मकांडों की आवश्यकता होती ही नहीं है।

उद्देश्य

छात्रों को प्राचीन साहित्य से परिचित कराते हुए उनमें काव्य रचना की विविध शैलियों का ज्ञान कराना है। भारतीय साहित्य व संस्कृति के प्रति रुचि उत्पन्न कर निराडंबर भक्ति मार्ग का महत्त्व बताना है।

विधा विशेष

यह प्राचीन कविता है। इसमें ब्रज भाषा का प्रयोग है।

रैदास कवि परिचय  

रैदास नाम से विख्यात संत रविदास का जन्म सन् 1388 और देहावसान सन् 1518 में बनारस में ही हुआ, ऐसा माना जाता है। इनकी ख्याति से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था। मध्ययुगीन साधकों में रैदास का विशिष्ट स्थान है। कबीर की तरह रैदास भी संत कोटि के कवियों में गिने जाते हैं। मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में रैदास का ज़रा भी विश्वास न था। वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे। रैदास ने अपनी काव्य—रचनाओं में सरल, व्यावहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है, जिसमें  अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू—फ़ारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रैदास को उपमा और रूपक अलंकार विशेष प्रिय रहे हैं। सीधे—सादे पदों में संत कवि ने हृदय के भाव बड़ी सफ़ाई से प्रकट किए हैं। इनका आत्मनिवेदन, दैन्य भाव और सहज भक्ति पाठक के हृदय को उद्वेलित करते हैं। रैदास के चालीस पद सिक्खों के पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहब’ में भी सम्मिलित हैं। यहाँ रैदास के दो पद लिए गए हैं। पहले पद ‘प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी’ में कवि अपने आराध्य को याद करते हुए उनसे अपनी तुलना करता है। उसका प्रभु बाहर कहीं किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं विराजता वरन् उसके अपने अंतस में सदा विघमान रहता है। यही नहीं, वह हर हाल में, हर काल में उससे श्रेष्ठ और सर्वगुण संपन्न है। इसीलिए तो कवि को उन जैसा बनने की प्रेरणा मिलती है।।

विषय प्रवेश :

प्राचीन काल से ही भगवत-स्मरण, भगवत-भक्ति को महत्त्व दिया गया है। भगवान के नाम रूपी नाव से ही संसार रूपी सागर से तर सकते हैं। इसकी सही राह का मार्गदर्शन गुरु द्वारा होता है। ऐसी ही भक्ति संबंधी रैदास और मीराबाई के पद हम इस पाठ के अंतर्गत पढ़ेंगे।

रैदास के पद

प्रभुजी, तुम चंदन हम पानी।

जाकी अँग- अँग बास समानी॥

प्रभुजी, तुम घन-बन हम मोरा।

जैसे चितवहि चंद्र चकोरा॥

प्रभुजी, तुम दीपक हम बाती।

जाकी जोति बरै दिन राती ॥

प्रभुजी, तुम मोती हम धागा।

जैसे सोनहि मिलत सुहागा॥

प्रभुजी, तुम स्वामी हम दासा।

ऐसी भक्ति करै रैदासा॥

व्याख्या

कवि रैदास अपने इष्टदेव का स्मरण करते हुए अपनी भक्ति का प्रदर्शन करते हैं। वे कहते हैं कि मैं अपनी भक्ति के माध्यम से अपने प्रभु को प्राप्त करूँगा। कवि कहते हैं कि हे प्रभु! मुझे अब आपके नाम की रट लग गई है, वह छूट नहीं सकती। अब तो मैं आपका  परम भक्त हो गया हूँ। आपमें और मुझमें वही संबंध स्थापित हो गया है जो चन्दन और पानी में होता है। चन्दन के संपर्क में रहने से पानी में भी सुगंध फैल जाती है, उसी प्रकार मेरे अंग-अंग में आपकी भक्ति की सुगंध समा गई है। हे प्रभु! आप बादल हो और मेरा मन मोर है। जो आपके भक्ति की गड़गड़ाहट सुनते ही नृत्य करने लगता है। प्रभु! जैसे चकोर चाँद को एकटक निहारता रहता है वैसे ही मैं आपकी भक्ति में निरंतर लगा हुआ हूँ। हे प्रभु! आप दीपक की तरह हो और मैं बत्ती की तरह हूँ जो दिन-रात भक्ति की आस में प्रज्वलित होती रहती है। हे प्रभु ! आप मोती के समान हो और मैं धागे के समान।  अर्थात् आप मोती के समान उज्ज्वल, पवित्र और सुंदर हो मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ। आपका और मेरा संबंध सोने और सुहागे के समान है। जिस प्रकार सुहागे के संपर्क में आकर सोना और अधिक खरा हो जाता है, उसका मूल्य बढ़ जाता है। उसी प्रकार आपके  संपर्क में आने से मैं पवित्र हो गया हूँ। मेरी भक्ति और और भी निखर उठी है। आप मेरे स्वामी हो और में आपका दास हूँ मैं रैदास इसी प्रकार आपके चरणों में रहकर अपनी भक्ति अर्पित करना चाहता हूँ।

शब्द

हिंदी अर्थ

तेलुगु अर्थ

अंग्रेजी अर्थ

प्रभुजी

भगवान, स्वामी

ప్రభువు, దేవుడు

Lord, Master

चंदन

सैंडलवुड, सुगंधित लकड़ी

చందనం

Sandalwood

पानी

जल, नीर

నీరు

Water

अँग- अँग

शरीर का प्रत्येक अंग

ప్రతి అవయవం

Every limb

बास

सुगंध, महक

పరిమళం, వాసన

Fragrance, Scent

समानी

समाहित, समरस

కలిసిపోయిన, ఒరిగిపోయిన

Absorbed, Merged

घन

बादल, मेघ

మేఘం

Cloud

बन

जंगल, वन

అటవి

Forest

मोरा

मोर पक्षी

నెమలి

Peacock

चितवहि

देखते हैं

చూస్తారు

Look at, Observe

चंद्र

चाँद

చంద్రుడు

Moon

चकोरा

एक पक्षी जो चाँद की ओर देखता है

చకోరపక్షి

Chakora bird

दीपक

दिया, दीप

దీపం

Lamp

बाती

दीपक की रुई की लौ

వత్తి

Wick

जोति

प्रकाश, रोशनी

జ్యోతి

Light, Radiance

बरै

जलना, प्रकाशित होना

వెలుగుతుంది

Burns, Shines

दिन राती

दिन और रात

పగలు రాత్రి

Day and Night

मोती

सीपी में बनने वाला रत्न

ముత్యం

Pearl

धागा

सूत, धागा

దారం

Thread

सोन

सोना, स्वर्ण

బంగారం

Gold

सुहागा

चमक, शुभता

మెరుపు

Radiance, Auspiciousness

स्वामी

मालिक, प्रभु

స్వామి

Lord, Master

दासा

सेवक, भक्त

దాసుడు

Servant, Devotee

भक्ति

ईश्वर की आराधना

భక్తి

Devotion

रैदासा

संत रैदास (भक्त कवि)

సంత్ రవిదాస్

Saint Ravidas

 

प्रश्न

  1. प्रभु के प्रति रैदास की भक्ति कैसी है?

उत्तर – प्रभु के प्रति रैदास की भक्ति दास्य भाव की है। वे अपने आराध्य को सदा श्रेष्ठ मानते हैं और स्वयं को तुच्छ। वे हमेशा यही चाहते हैं कि किसी न किसी तरह वे प्रभु का सान्निध्य प्राप्त करते रहे। 

  1. कवि ने स्वयं को मोर क्यों माना होगा?

उत्तर – कवि ने स्वयं को मोर माना है क्योंकि जिस प्रकार मोर काले बादलों को देखकर प्रसन्न होता है और नाचने लगता है उसी प्रकार ईश्वर की भक्ति के कारण रैदास जी का मन भी सदा प्रफुल्लित रहता है और उनका भी मन मयूर नाचता ही रहता है। 

मीराबाई –  कवयित्री परिचय

मीराबाई का जन्म जोधपुर के चोकड़ी (कुड़की) गाँव में 1503 में हुआ माना जाता है। 13 वर्ष की उम्र में मेवाड़ के महाराणा सांगा के कुँवर भोजराज से उनका विवाह हुआ। उनका जीवन दुखों की छाया में ही बीता। बाल्यावस्था में ही माँ का देहांत हो गया था। विवाह के कुछ ही साल बाद पहले पति, फिर पिता और एक युद्ध के दौरान श्वसुर का भी देहांत हो गया। भौतिक जीवन से निराश मीरा ने घर—परिवार त्याग दिया और वृंदावन  में डेरा डाल पूरी तरह गिरधर गोपाल कृष्ण के प्रति समर्पित हो गईं।

मध्यकालीन भक्ति आंदोलन की आध्यात्मिक प्रेरणा ने जिन कवियों को जन्म दिया उनमें मीराबाई का विशिष्ट स्थान है। इनके पद पूरे उत्तर भारत सहित गुजरात, बिहार और बंगाल तक प्रचलित हैं। मीरा हिंदी और गुजराती दोनों की कवयित्री मानी जाती हैं।

संत रैदास की शिष्या मीरा की कुल सात—आठ कृतियाँ ही उपलब्ध हैं। मीरा की भक्ति दैन्य और माधुर्यभाव की है। इन पर योगियों, संतों और वैष्णव भक्तों का सम्मिलित प्रभाव पड़ा है। मीरा के पदों की भाषा में राजस्थानी, ब्रज और गुजराती का मिश्रण पाया जाता है। वहीं पंजाबी, खड़ी बोली और पूर्वी के प्रयोग भी मिल जाते हैं।

मीरा के पद

पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो।

वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।

जनम जनम की पूँजी पायी, जग में सभी खोवायो।

खरच न खुटै, चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो।

सत की नाँव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, हरख – हरख जस गायो॥

व्याख्या –

यह पद भक्त मीराबाई द्वारा रचित है, जिसमें वे प्रभु के नाम और भक्ति को अमूल्य निधि मानती हैं। इस भजन में ईश्वर प्राप्ति की अनुभूति और सतगुरु (सच्चे गुरु) के महत्त्व को दर्शाया गया है। यहाँ ‘राम रतन धन’ का तात्पर्य ईश्वर भक्ति, प्रभु प्रेम और उनकी कृपा से है, जिसे मीराबाई ने अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में पाया है। सच्चे गुरु की कृपा से उन्हें यह अमूल्य खजाना अर्थात् भगवान का नाम और उनकी भक्ति के समान धन  मिला है। पद में ‘वस्तु अमोलक’ से तात्पर्य आध्यात्मिक ज्ञान और ईश्वर का प्रेम है, जो किसी भी सांसारिक संपत्ति से अधिक मूल्यवान है और ‘पूँजी’ सांसारिक धन नहीं बल्कि आध्यात्मिक धन है, जिसे साधना और प्रभु भक्ति से पाया जाता है। दुनिया के लोग सांसारिक चीज़ों में उलझकर इसे खो देते हैं, लेकिन भक्त इसे अर्जित कर लेता है। सांसारिक धन खर्च करने से समाप्त हो जाता है, लेकिन ईश्वर भक्ति ऐसी पूँजी है जो कभी समाप्त नहीं होती और निरंतर बढ़ती रहती है। मीरा कहती हैं कि सतगुरु सच्चे मार्गदर्शक होते हैं, जो सही ज्ञान देकर इस जीवन-मरण के चक्र से पार लगाने में सहायता करते हैं। इस पद की अंतिम पंक्ति में वे कह रही हैं कि उन्होंने प्रभु की भक्ति से जो आनंद प्राप्त किया है, उसे वे प्रेमपूर्वक गा रही हैं।

शब्द

हिंदी अर्थ

तेलुगु अर्थ

अंग्रेजी अर्थ

पायो

पाया, प्राप्त किया

పొందాను

Obtained, Received

राम

भगवान का नाम

రాముడు

Lord Rama

रतन

बहुमूल्य रत्न, मूल्यवान चीज़

రత్నం

Jewel, Gem

धन

संपत्ति, समृद्धि

సంపద

Wealth, Treasure

वस्तु

चीज़, वस्त्र

వస్తువు

Object, Thing

अमोलक

अनमोल, जिसका मूल्य न हो

అమూల్యమైన

Priceless, Invaluable

सतगुरु

सच्चे गुरु, मार्गदर्शक

సద్గురు

True Guru, Enlightened Master

किरपा

कृपा, दया

కృప

Grace, Mercy

अपनायो

स्वीकार किया

అంగీకరించాడు

Accepted, Adopted

जनम जनम

जन्मों-जन्मों से

జన్మ జన్మల

Lifetimes after lifetimes

पूँजी

संचित धन, सम्पत्ति

మూలధనం

Capital, Wealth

जग

संसार, दुनिया

లోకం

World, Universe

खोवायो

खो दिया

కోల్పోయిన

Lost

खरच

खर्च, व्यय

ఖర్చు

Expense, Spending

न खुटै

कभी समाप्त न हो

తగ్గదు

Never diminishes

चोर

चोरी करने वाला

దొంగ

Thief

लूटै

लूट लेना, छीन लेना

దోచుకోవడం

Steal, Rob

दिन-दिन

प्रतिदिन, रोज

రోజు రోజు

Day by day

बढ़त

वृद्धि, बढ़ना

పెరుగుదల

Growth, Increase

सवायो

अधिक से अधिक

ఎక్కువగా

More and more

सत

सत्य, सच्चाई

సత్యం

Truth

नाँव

नाव, जहाज

నౌక

Boat

खेवटिया

नाविक, खेवनहार

తెచ్చేవాడు

Boatman, Guide

भवसागर

संसाररूपी सागर

భవసాగరం

Ocean of existence

तर आयो

पार हो गया

దాటాడు

Crossed over

मीरा

भक्त मीरा बाई

మీరా

Saint Meera

प्रभु

भगवान, ईश्वर

ప్రభువు

Lord, God

गिरिधर नागर

भगवान श्रीकृष्ण का नाम

గిరిధర్ నగర్

Lord Krishna

हरख-हरख

अत्यधिक आनंदित होकर

ఆనందంగా

Joyfully, Happily

जस

यश, गुणगान

కీర్తి

Glory, Praise

गायो

गाया, गुणगान किया

పాడాడు

Sang, Praised

  1. संत किसे कहते हैं?

उत्तर – संत वह व्यक्ति होता है जो ईश्वर भक्ति, सत्य, करुणा और सदाचार के मार्ग चलता है तथा समाज को अध्यात्म और नैतिकता की शिक्षा देता है। वे आत्मज्ञान प्राप्त कर चुके होते हैं और लोकहित के लिए जीवन समर्पित करते हैं।

  1. श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति कैसी है?

उत्तर – श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति प्रेममयी, माधुर्य भाव से भरी हुई है। वह अपने प्रभु को प्रियतम मानकर भक्ति करती हैं। वे सगुण भक्ति की उपासिका थीं और भगवान श्रीकृष्ण को अपने आराध्य मानती थीं। वे पूर्ण समर्पण और प्रेम की राह पर चलती थीं, सांसारिक बंधनों को छोड़कर ईश्वर को अपना सर्वस्व मानती थीं।

अर्थग्राह्यताप्रतिक्रिया

() प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

  1. रैदास व मीरा की भक्ति भावना में क्या अंतर है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – संत रैदास की भक्ति में सेवा, विनम्रता और सामाजिक समरसता का भाव था, जबकि मीराबाई की भक्ति प्रेम, समर्पण और आत्मनिवेदन से भरी हुई थी। रैदास भगवान को स्वामी मानकर दास बनकर भक्ति करते थे, जबकि मीरा बाई भगवान को प्रियतम मानकर प्रेम में डूबी रहती थीं। दोनों का लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति था, लेकिन उनके मार्ग अलग-अलग थे।

  1. हमारे जीवन में भक्ति भावना का क्या महत्त्व है? चर्चा कीजिए।

उत्तर – भक्ति भावना हमारे जीवन में आध्यात्मिक शांति, नैतिकता और आत्मिक संतोष प्रदान करती है। यह हमें सकारात्मकता, सहनशीलता और सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। भक्ति से मन की शुद्धि, अहंकार का नाश और प्रेम व करुणा की वृद्धि होती है। यह हमें सांसारिक दुखों से ऊपर उठाकर उस आलोकिक सत्ता से जोड़ती है, जिससे जीवन में संतुलन, धैर्य और आंतरिक आनंद बना रहता है। इसलिए हमारे जीवन में भक्ति भावना का अत्यधिक महत्त्व है।

() पंक्तियाँ उचित क्रम में लिखिए।

  1. प्रभुजी, तुम पानी हम चंदन।

उत्तर – प्रभुजी, तुम चंदन हम पानी।

  1. मीरा के प्रभु नागर गिरिधर, हरखहरख गायो जस॥

उत्तर – मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, हरख – हरख जस गायो॥

() नीचे दी गई पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।

  1. सत की नाँव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।

उत्तर – इन पंक्तियों में कवयित्री मीरा यह कहती हैं कि सत्य की नाव को खेने वाले सतगुरु सच्चे मार्गदर्शक होते हैं, जो सही ज्ञान देकर इस जीवन-मरण के चक्र से पार लगाने में सहायता करते हैं। यहाँ ‘भवसागर’ से तात्पर्य जन्म-मरण के चक्र से है। जिससे केवल सच्चे गुरु के ज्ञान से ही पार किया जा सकता है।

  1. प्रभुजी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँगअँग बास समानी।

उत्तर – रैदास अपनी इन पंक्तियों में यह कहना चाहते हैं कि प्रभु आप सदा सदा से श्रेष्ठ हैं। आप चन्दन की तरह हैं और मैं पानी की तरह हूँ जब मैं आपके संपर्क में आता हूँ तो आपके सुगंध से मैं भी सुगंधित हो जाता है।

() पद्यांश पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो,

भोर भयो गैयन के पाछे मधुबन मोहि पठायो।

चार पहर बंसीबट भटक्यो साँझ परे घर आयो,

मैं बालक बहिंयन को छोटो छींको केहि विधि पायो।

ग्वाल बाल सब बैर परे हैं बरबस मुख लपटायो,

यह ले अपनी लकुटी कमरिया बहुतहि नाच नचायो।

सूरदास तब बिहंसि जसोदा, लै उर कंठ लगायो।

  1. कृष्ण किनसे बातें कर रहे हैं?

उत्तर – कृष्ण अपनी माता यशोदा से बातें कर रहे हैं।

  1. कृष्ण गायों को चराने कहाँ जाते हैं?

उत्तर – कृष्ण गायों को चराने मधुबन जाते हैं।

  1. कृष्ण घर कब लौटते हैं?

उत्तर – कृष्ण संध्या के समय घर लौटते हैं।

  1. कृष्ण की बाहें कैसी हैं?

उत्तर – कृष्ण की बाहें छोटी हैं।

अभिव्यक्तिसृजनात्मकता

() इन प्रश्नों के उत्तर तीनचार पंक्तियों में लिखिए।

  1. रैदास जी ने ईश्वर की तुलना चंदन, बादल और मोती से की है। आप ईश्वर की तुलना किससे करना चाहेंगे? और क्यों?

उत्तर – मैं ईश्वर की तुलना अच्छी सोच और सत्कर्मों के साथ करूँगा क्योंकि मेरा मानना है की अच्छी सोच ही भगवान है और अच्छी सोच से प्रेरित होकर किया गया सत्कर्म ईश्वर की भक्ति करने का श्रेष्ठ मार्ग है।

  1. मीरा की भक्ति भावना कैसी है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – मीरा की भक्ति भावना पूर्ण समर्पण, प्रेम और आत्मनिवेदन से भरी हुई है। वे श्रीकृष्ण को अपना आराध्य, प्रियतम और जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य मानती थीं। उनकी भक्ति माधुर्य भाव से युक्त थी, जिसमें वे स्वयं को कृष्ण की अनन्य प्रेमिका मानकर उनकी आराधना करती थीं। शायद इसीलिए मीरा ने सांसारिक बंधनों, राजमहल और सामाजिक मान्यताओं को त्यागकर केवल कृष्ण को अपनाया। वे कीर्तन, भजन और नृत्य के माध्यम से अपनी भक्ति व्यक्त करती थीं और हर परिस्थिति में कृष्ण की भक्ति में लीन रहती थीं। उनकी भक्ति अटूट, निःस्वार्थ और दिव्य प्रेम से परिपूर्ण थी।

() मीरा के पदका भाव अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – इस पद में कवयित्री मीराबाई ने प्रभु भक्ति को सबसे बड़ा धन बताया है। वे कहती हैं कि उन्हें राम नाम रूपी अमूल्य रत्न मिल गया है, जो सतगुरु की कृपा से प्राप्त हुआ। यह आध्यात्मिक संपत्ति जन्म-जन्मांतर की पूँजी है, जिसे संसार के लोग नहीं समझ पाते और खो देते हैं। यह भक्ति रूपी धन न खत्म होता है, न कोई इसे चुरा सकता है, बल्कि यह प्रतिदिन बढ़ता जाता है। सतगुरु सत्य की नाव के खेवनहार हैं, जिनकी सहायता से मीरा ने संसार रूपी भवसागर पार कर लिया। अंत में, वे अपने आराध्य गिरिधर नागर के गुण गाकर आनंदित होती हैं।

() भक्ति भावना से संबंधित छोटीसी कविता का सृजन कीजिए।

उत्तर – भक्ति का दीप

ईश्वर नाम का दीप जलाएँ,

हर मन में प्रेम की जोत जगाएँ।

सच्ची भक्ति का जो पथ दिखाए,

संसार सागर वो पार कराए।

न धन चाहिए, न वैभव प्यारा,

बस नाम तुम्हारा सबसे न्यारा।

सतगुरु की कृपा से पाया,

राम रतन अनमोल निधि आया।

प्रेम, श्रद्धा और विश्वास,

भक्ति में बस यही प्रकाश।

() भक्ति और मानवीय मूल्यों के विकास में भक्ति साहित्य किस प्रकार सहायक हो सकता है?

उत्तर – भक्ति साहित्य न केवल ईश्वर प्रेम को प्रकट करता है, बल्कि मानवीय मूल्यों के विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह साहित्य हमें सत्य, करुणा, प्रेम, त्याग, सहनशीलता और समर्पण जैसे गुणों की शिक्षा देता है, जैसे –

आध्यात्मिक चेतना जागृत करता है – यह हमें ईश्वर से जोड़कर जीवन को एक उच्च उद्देश्य प्रदान करता है।

समाज में प्रेम और सद्भाव फैलाता है – जाति-पाति, भेदभाव और अहंकार को समाप्त कर समानता की भावना को बढ़ावा देता है।

सदाचार और नैतिकता सिखाता है – सत्य, अहिंसा, दया और संयम जैसे गुण विकसित करता है।

सहिष्णुता और धैर्य विकसित करता है – जीवन में आने वाले संघर्षों को सहन करने और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा देता है।

समर्पण और विनम्रता की भावना – अहंकार को त्यागकर प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण की सीख देता है।

लोकप्रिय भाषा में जीवन संदेश – सरल और काव्यात्मक रूप में गहरी शिक्षाएँ देकर आम जनता तक पहुँचना आसान बनाता है।

भाषा की बात

() सूचना पढ़िए। वाक्य प्रयोग कीजिए।

  1. प्रभु, पानी, चंद्र (पर्याय शब्द लिखिए।)

प्रभु – ईश्वर, भगवान, परमेश्वर

पानी – जल, अंबु, नीर, वारि

चंद्र – शशि, राका, चंद्रमा

  1. स्वामी, गुरु, दिन (विलोम शब्द लिखिए।)

स्वामी – दास

गुरु – शिष्य

दिन – रात

  1. खरच, अमोलक, जनम (शुद्ध व प्रचलित शब्द लिखिए।)

खरच – खर्च

अमोलक – अमूल्य

जनम – जन्म

() सूचना पढ़िए। उसके अनुसार कीजिए।

  1. बन, रतन, किरपा (तत्सम रूप लिखिए।)

बन – वन

रतन – रत्न

किरपा – कृपा

  1. जग, नाँव, अमोलक (अर्थ लिखिए।)

जग – दुनिया

नाँव – नाव

अमोलक – अमूल्य

() वचन बदलकर वाक्य फिर से लिखिए।

  1. मोती सागर में मिलता है।

उत्तर – मोतियाँ सागर में मिलती हैं।

  1. मोर सुंदर पक्षी है।

उत्तर – मोर सुंदर पक्षी होते हैं।

() नीचे दिया गया उदाहरण समझिए। पाठ के अनुसार उचित शब्द लिखिए।

हे प्रभुजी! तुम चंदन, दीपक, सोना, बादल, मोती, चन्द्र।

हे प्रभुजी ! हम पानी, बाती, सुहागा, मोर, धागा, चातक।

परियोजना कार्य

भक्ति भावना दर्शाने वाली किसी कविता का संग्रह कर कक्षा में प्रदर्शन कीजिए।

उत्तर – 1. “प्रभु मेरे अवगुण चित न धरो” – संत तुलसीदास

प्रभु मेरे अवगुण चित न धरो,

समदरसी है नाम तुम्हारो।

निज जन जानि करहु अनुग्रह,

निज कर गहूँ दास उबरो॥

भावार्थ – भगवान सभी के प्रति समान भाव रखते हैं और अपने भक्तों के अवगुणों को ध्यान में नहीं रखते। वे अपने भक्तों को बचाने के लिए कृपा करते हैं।

  1. “मैं तो सांवरे के रंग राची” – मीरा बाई

मैं तो सांवरे के रंग राची,

मोहे और न भावे कोई।

मीराँ के प्रभु गिरिधर नागर,

उनके चरणों में दिल अटकी॥

भावार्थ – मीरा बाई कहती हैं कि वे पूरी तरह श्रीकृष्ण की भक्ति में रंगी हुई हैं और उन्हें संसार का कोई अन्य सुख प्रिय नहीं।

  1. “तेरा तुझको अर्पण” – कबीर दास

तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा,

तन, मन, धन, सब कुछ तेरा।

जो कुछ किया, सो तू ही किया,

अब क्या करूँ मैं मेरा?

भावार्थ – संत कबीर ने इस कविता में भक्ति की भावना को प्रकट किया है, जिसमें वे मानते हैं कि जो कुछ भी उन्होंने पाया है, वह ईश्वर का ही दिया हुआ है, इसलिए वे सब कुछ भगवान को अर्पित करते हैं।

  1. “हरि तुम हरो जन की पीर” – सूरदास

हरि तुम हरो जन की पीर,

द्रौपदी की लाज राखी, तुम बढ़ायो चीर।

भक्त संकट मोचन हरि, तुम सदा सहाय।

अब तो मेरी लाज रखो, संकट में आओ हरी॥

भावार्थ – इस कविता में सूरदास जी ने भगवान से प्रार्थना की है कि जैसे उन्होंने अपने भक्तों की रक्षा की, वैसे ही वे हर भक्त के संकट में उनकी सहायता करें।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1 – रैदास अपनी भक्ति में प्रभु की तुलना किससे करते हैं?

उत्तर – रैदास अपनी भक्ति में प्रभु को चंदन, बादल, दीपक, मोती और स्वामी के रूप में देखते हैं।

प्रश्न 2 – भक्त और प्रभु का संबंध किस प्रकार बताया गया है?

उत्तर – भक्त और प्रभु का संबंध पूर्ण समर्पण और अटूट प्रेम पर आधारित है, जिसमें भक्त स्वयं को प्रभु का सेवक मानता है।

प्रश्न 3 – “प्रभुजी, तुम दीपक हम बाती” का क्या अर्थ है?

उत्तर – इसका अर्थ है कि जैसे दीपक की बाती बिना दीपक के जल नहीं सकती, वैसे ही भक्त बिना प्रभु के अधूरा है।

निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर दो से तीन पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1 – रैदास द्वारा दिए गए उपमाओं का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?

उत्तर – रैदास ने प्रभु और भक्त के संबंध को चंदन-पानी, बादल-मोरा, दीपक-बाती, मोती-धागा जैसी उपमाओं से व्यक्त किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भक्त बिना प्रभु के अस्तित्वहीन है और प्रभु ही उसे पवित्र और अर्थपूर्ण बनाते हैं।

प्रश्न 2 – “प्रभुजी, तुम स्वामी हम दासा” से संत रैदास की भक्ति भावना कैसे प्रकट होती है?

उत्तर – इस पंक्ति से रैदास की दास्य भक्ति प्रकट होती है, जिसमें वे स्वयं को प्रभु का विनम्र सेवक मानते हैं और पूरी निष्ठा, समर्पण व श्रद्धा से उनकी भक्ति करते हैं।

प्रश्न 3 – संत रैदास ने भक्ति में आत्मसमर्पण को कैसे दर्शाया है?

उत्तर – संत रैदास ने भक्ति में पूर्ण आत्मसमर्पण को महत्व दिया है, जहाँ भक्त अपनी पहचान छोड़कर स्वयं को पूरी तरह प्रभु को अर्पित कर देता है, जैसे बाती दीपक में, मोती धागे में और पानी चंदन की सुगंध में विलीन हो जाता है।

 

निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1 – मीरा ने राम रतन धन को कैसे प्राप्त किया?

उत्तर – मीरा ने सतगुरु की कृपा से राम रतन धन (भगवान का नाम) प्राप्त किया।

प्रश्न 2 – मीरा के अनुसार यह धन (राम रतन) कैसा है?

उत्तर – यह धन अमूल्य, अविनाशी और निरंतर बढ़ने वाला है, जिसे कोई चुरा नहीं सकता।

प्रश्न 3 – सतगुरु को किससे तुलना की गई है?

उत्तर – सतगुरु को सत्य रूपी नाव के खेवनहार के रूप में दर्शाया गया है।

निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर दो से तीन पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1 – “जनम जनम की पूँजी पायी, जग में सभी खोवायो।” इस पंक्ति का क्या अर्थ है?

उत्तर – इसका अर्थ है कि मीरा ने अनेक जन्मों की संचित आध्यात्मिक पूँजी (ईश्वर भक्ति) प्राप्त कर ली, जबकि संसार के लोग इस अनमोल धन को पहचान नहीं पाते और इसे व्यर्थ गवा देते हैं।

प्रश्न 2 – “खरच न खुटै, चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो।” का संदेश क्या है?

उत्तर – इस पंक्ति में बताया गया है कि भगवान का नाम और भक्ति ऐसी संपत्ति है जो खर्च करने से भी खत्म नहीं होती, कोई इसे चुरा नहीं सकता और यह प्रतिदिन बढ़ती रहती है।

प्रश्न 3 – “सत की नाँव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।” का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?

उत्तर – इसका आध्यात्मिक अर्थ है कि सतगुरु सत्य की नाव के खेवनहार (मल्लाह) हैं, जिनकी सहायता से भक्त संसार रूपी भवसागर को पार कर मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

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