- यहाँ पर किसके बारे में बताया गया है?
उत्तर – यहाँ पर भारत की नदियों बारे में बताया गया है।
- दक्षिण भारत की कुछ नदियों के नाम बताइए।
उत्तर – गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, तुंगभद्रा, पेन्नार आदि दक्षिण भारत की कुछ प्रमुख नदियों के नाम हैं।
- गोदावरी नदी के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर – गोदावरी नदी भारत की दूसरी सबसे लंबी नदी है, जिसे ‘दक्षिण गंगा’ भी कहा जाता है। यह महाराष्ट्र के त्र्यंबकेश्वर से निकलकर तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओड़िशा से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ प्राणहिता, इंद्रावती, मंजरा और सबरी हैं। गोदावरी नदी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बहुत अधिक है, और इसके तट पर कई पवित्र तीर्थस्थल स्थित हैं।
उद्देश्य
छात्रों को यात्रा-वृत्तांत साहित्यिक विधा का ज्ञान कराते हुए उनमें लेखन करने की प्रवृत्ति का विकास करना, यात्रा-वृत्तांत की भाषा शैली से परिचित कराना और इसके साथ- साथ लेखक काका कालेलकर का परिचय कराते हुए उनकी भाषा व रचना शैली का ज्ञान कराना इस पाठ का उद्देश्य है।
विधा विशेष
यात्रा – वृत्तांत गद्य की एक प्रमुख विधा है। यात्रा – वृत्तांत में लेखक किसी दर्शनीय स्थल से संबंधित अपनी यात्रा की अनुभूतियों को रोचक और ज्ञानवर्धक ढंग से प्रस्तुत करता है। प्रस्तुत पाठ ‘दक्षिणी गंगा गोदावरी’ भी श्री काका कालेलकर द्वारा रचित यात्रा-वृत्तांत है जो उनकी रचना ‘सप्त सरिता’ से लिया गया है। इसमें लेखक ने गोदावरी नदी के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है।
लेखक परिचय
काका कालेलकर का पूरा नाम दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर है। उनका जन्म सन् 1885 में और मृत्यु सन् 1991 में हुई। इन्होंने आजीवन गांधीवादी विचारधारा का पालन किया। इन्होंने हिंदुस्तानी प्रचार सभा, वर्धा के माध्यम से हिंदी की खूब सेवा की। वे राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं।
विषय प्रवेश :
गोदावरी नदी धीर-गंभीर माता और पूर्वजों की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है। इसके जल में अमोघ शक्ति है। इसके तट पर अनेक शूरवीरों, तत्व-ज्ञानियों, साधु-संतों, राजनीतिज्ञों और ईश्वर भक्तों ने जन्म लिया है। ऐसी पावन और पवित्र गोदावरी नदी के प्राकृतिक सौंदर्य का जो वर्णन काका कालेलकर के द्वारा हुआ है, चलिए इसके बारे में हम जानेंगे।
दक्षिणी गंगा गोदावरी
चेन्नई से राजमहेंद्री जाते हुए बेजवाड़े से आगे सूर्योदय हुआ। बरसात के दिन थे, इसलिए पूछना ही क्या? जहाँ-तहाँ विविध छटा वाली हरियाली फैल रही थी।
पूर्व की तरफ़ एक नहर रेल की पटरी के किनारे-किनारे बह रही थी। पर किनारा ऊँचा होने के कारण पानी हमें कभी-कभी ही दिख पड़ता। सिर्फ तितली की तरह अपने-अपने पाल कतार में खड़ी हुई नौकाओं पर ही हमें नहर का अनुमान करना पड़ता था। बीच-बीच में छोटे-छोटे तालाब भी मिलते। इनमें रंग-बिरंगे बादलों वाला आसमान नहाने के लिए उतरता हुआ दिखाई पड़ता और इससे पानी की गहराई और भी अथाह हो जाती। कहीं-कहीं चंचल कमलों के बीच खामोश खड़े हुए बगुलों को देखकर सवेरे की ठंडी-ठंडी हवा का अभिनंदन करने को मन मचल पड़ता। इस तरह कविता-प्रवाह में बहकर जाते हुए कोव्वूर स्टेशन आ गया। मन में यह उमंग भरी थी कि अब यहाँ से गोदावरी मैया के भी दर्शन होने लगेंगे।
पुल पर से गुज़रते समय दाएँ देखें या बाएँ, हम उसी उधेड़-बुन में थे। पुल आ गया और भागमती गोदावरी का अत्यंत विशाल पाट दिखाई पड़ा। मैंने गंगा, सिंधु, शोणभद्र, ऐरावती- जैसी महानदियों के विशाल प्रवाह भरकर देखे हैं। बेजवाडे में कृष्णा माता के दर्शन पर मैं गर्व करता रहूँगा। लेकिन, राजमहेंद्री के आगे गोदावरी की शान-शौकत कुछ निराली ही है।
इस जगह पर मैंने जितने भव्य काव्य का या प्रकृति के ठाट-बाट का अनुभव किया, उतना शायद ही कहीं दूसरी जगह किया हो। पश्चिम की तरफ़ नज़र फैलाई तो दूर-दूर तक पहाड़ियों की श्रेणियाँ नज़र आई। आसमान में बादल घिरे रहने से सूरज की धूप का कहीं नामोनिशान तक न था। बादलों का रंग साँवला होने के कारण गोदावरी के धूलि – धूसरित मटमैले जल की झाँई और भी गहरी हो रही थी। ऊपर की और नीचे की झाँई के कारण इस सारे दृश्य पर वैदिक प्रभाव की शीतल और स्निग्ध सुंदरता छाई हुई थी। और पहाड़ी पर कुछ उतरे हुए धौले-धौले बादल तो बिल्कुल ऋषि-मुनियों जैसे लगते थे। इस सारे दृश्य का वर्णन कैसे किया जा सकता है? यह इतना सारा पानी कहाँ से आता होगा?
विपत्तियों में से विजय-सहित पार हुआ राष्ट्र जिस तरह वैभव की नयी- नयी छटाएँ दिखलाता है और चारों तरफ़ अपनी समृद्धि फैलाता जाता है, उसी तरह गोदावरी का अखंड प्रवाह पहाड़ों में से निकल कर अपने गौरव को साथ में लिए आता हुआ दिखाई पड़ता है। छोटे-बड़े जहाज़ तो नदी के बच्चे हैं, जो माता के स्वभाव से परिचित होने के कारण उसकी गोद में मनमाना नाचें, खेलें, उछलें और कूदें, तो उन्हें इससे रोकने वाला कौन है? लेकिन बच्चों की उपमा तो इन नावों की अपेक्षा प्रवाह में जहाँ-तहाँ पड़ते हुए भँवरों को देनी चाहिए। कुछ देर दिख पड़े, थोड़ी ही देर में भयानक तूफ़ान का स्वाँग रचा और एक ही पल में खिल-खिलाकर हँस पड़े। ये भँवर न जाने कहाँ से आते और कहाँ चले जाते हैं।
नदी का किनारा यानी मनुष्य की कृतज्ञता का अखंड उत्सव ! किनारे पर के सफेद महल और मंदिर और उनके ऊँचे-ऊँचे शिखर ही एक अखंड उपासना है। परंतु इतने ही से काव्य संपूर्ण नहीं हो जाता। इसलिए भक्त लोग नदी की लहरों पर से मंदिरों के घंटा-नाद की लहरों को इस पार से उस पार तक पहुँचाते रहते हैं। संस्कृति के उपासक भारतवासी इस जगह गंगाजल के आधे कलश गोदावरी में उँड़ेलते और फिर गोदावरी के जल से कलश भर कर ले जाते हैं।
माता गोदावरी ! राम-लक्ष्मण और सीता से लेकर बूढ़े जटायु तक सबको तूने ही स्तन्य-पान कराया है। तेरे तट पर शूरवीर भी पैदा हुए हैं और बड़े-बड़े तत्त्व-ज्ञानी भी, साधु-संत भी जन्मे धुरंधर राजनीतिज्ञ भी और ईश्वर भक्त भी। मेरे पूर्वजों की तू अधिष्ठात्री देवी है। नई-नई आशाओं को लेकर मैं तेरे दर्शन के लिए आया हूँ। तेरे जल में अमोघ शक्ति है, तेरे पानी की एक बूँद का सेवन भी व्यर्थ नहीं जाता।
काका कालेलकर के यात्रा-वृत्तांत पर आधारित
शब्द (हिंदी) | अर्थ (हिंदी) | अर्थ (तेलुगु) | अर्थ (अंग्रेज़ी) |
सूर्योदय | सूरज का उगना | సూర్యోదయం | Sunrise |
बरसात | वर्षा का मौसम | వర్షాకాలం | Rainy season |
हरियाली | हरे-भरे पेड़-पौधे | పచ్చదనం | Greenery |
नहर | कृत्रिम जलधारा | కాలువ | Canal |
नौका | पानी में चलने वाला छोटा जहाज | పడవ | Boat |
तालाब | पानी का छोटा स्रोत | చెరువు | Pond |
कमल | जल में खिलने वाला फूल | తామర | Lotus |
बगुला | एक प्रकार का सफेद पक्षी | నత్తగుల్ల | Heron |
पुल | नदी या सड़क पर बना मार्ग | వంతెన | Bridge |
महानदी | बहुत बड़ी नदी | మహానది | Great river |
पहाड़ी | छोटी ऊँची भूमि | కొండ | Hill |
बादल | आकाश में जलवाष्प का समूह | మేఘం | Cloud |
प्रवाह | बहाव | ప్రవాహం | Flow |
धूप | सूर्य का प्रकाश | ఎండ | Sunlight |
वैभव | संपन्नता | వైభవం | Grandeur |
भँवर | जल का घूमता हुआ प्रवाह | చక్రవాతం | Whirlpool |
मंदिर | पूजा का स्थल | దేవాలయం | Temple |
घंटा-नाद | मंदिर की घंटी की ध्वनि | గం టానాదం | Bell chime |
संस्कृति | परंपराओं का समुच्चय | సంస్కృతి | Culture |
उपासना | पूजा | పూజ | Worship |
तत्व-ज्ञानी | ज्ञानी व्यक्ति | తత్వజ్ఞాని | Philosopher |
शूरवीर | बहादुर योद्धा | వీరుడు | Brave warrior |
राजनीतिज्ञ | राजनीति करने वाला व्यक्ति | రాజనీతిజ్ఞుడు | Politician |
भक्त | ईश्वर में श्रद्धा रखने वाला | భక్తుడు | Devotee |
अधिष्ठात्री | प्रमुख देवी | అధిష్ఠాత్రి | Presiding deity |
शक्ति | बल | శక్తి | Power |
सेवन | ग्रहण करना | సేవనము | Consumption |
पाठ का सार
इस यात्रा-वृत्तांत में लेखक चेन्नई से राजमहेंद्री की यात्रा का सुंदर वर्णन करते हैं। वे बरसात के दिनों में हरियाली से भरे दृश्य का आनंद लेते हुए नहरों, तालाबों, कमलों और बगुलों का मनोहारी चित्रण करते हैं। कोव्वूर स्टेशन पहुँचते ही वे गोदावरी नदी के दर्शन की उत्सुकता से भर जाते हैं। गोदावरी के विशाल प्रवाह को देखकर वे उसकी भव्यता और वैभव की तुलना राष्ट्र की समृद्धि से करते हैं। पहाड़ियों से निकलकर बहती गोदावरी की धारा को देखकर वे विस्मित हो जाते हैं और उसके पवित्र जल की शक्ति का गुणगान करते हैं। नदी के किनारे बने मंदिर, घंटा-नाद और भक्तों की श्रद्धा को वे संस्कृति और उपासना का प्रतीक मानते हैं।
लेखक गोदावरी को माता के रूप में पूजते हुए बताते हैं कि इस पवित्र नदी ने न केवल राम-लक्ष्मण और सीता को आश्रय दिया, बल्कि शूरवीरों, तत्त्व-ज्ञानियों, संतों और राजनीतिज्ञों को भी जन्म दिया। अंत में, वे गोदावरी के जल को अमोघ शक्ति का स्रोत मानते हुए उसकी महिमा का गुणगान करते हैं।
प्रश्न –
- सूर्योदय के समय प्रकृति का वातावरण कैसा दिखाई देता है?
उत्तर – सूर्योदय के समय प्रकृति का वातावरण अत्यंत सुंदर और मनोरम दिखाई देता है। चारों ओर हरियाली फैली होती है, नहर के किनारे नौकाएँ तितली की तरह सजी होती हैं, और तालाबों में रंग-बिरंगे बादलों की छाया पानी को और गहरा बना देती है। चंचल कमलों के बीच खड़े बगुले तथा ठंडी हवा का स्पर्श मन को आनंदित करता है।
- लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा कि राजमहेंद्री के आगे गोदावरी की शान शौकत निराली है?
उत्तर – लेखक ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि राजमहेंद्री के आगे गोदावरी का प्रवाह अत्यंत विशाल, भव्य और प्रभावशाली हो जाता है। यहाँ नदी का विस्तार, उसके किनारों की सुंदरता, पहाड़ियों की श्रेणियाँ, बादलों की छाया और जल का धूसरित रंग, सब मिलकर एक दिव्य और अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करते हैं, जो अन्य स्थानों की तुलना में अधिक प्रभावशाली प्रतीत होता है।
अर्थग्राह्यता-प्रतिक्रिया
(अ) प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
- लेखक को गोदावरी का जल कैसा लगा होगा?
उत्तर – लेखक को गोदावरी का जल धूलि-धूसरित, मटमैला, गहरा और विशाल लगा। बादलों की छाया के कारण इसकी झाँई और भी गहरी प्रतीत हुई होगी, जिससे पूरा दृश्य वैदिक प्रभाव की शीतल और स्निग्ध सुंदरता से भर गया।
- लेखक की जगह तुम होते तो गोदावरी नदी का वर्णन कैसे करते? बताइए।
उत्तर – यदि मैं लेखक की जगह होता, तो गोदावरी नदी का वर्णन कुछ इस प्रकार करता – गोदावरी का विशाल प्रवाह मानो धरती की धड़कन के समान था। इसके तटों पर उग आए हरे-भरे वृक्ष इसकी शोभा को और बढ़ा रहे थे। पहाड़ियों की छाँव में इसका मटमैला जल सूरज की रोशनी में सोने सा दमक रहा था। ठंडी हवा में मंदिरों की घंटियों की गूँज और लहरों की मधुर ध्वनि एक अनोखी आध्यात्मिक अनुभूति प्रदान कर रही थी। बहते हुए जल में जहाँ-तहाँ छोटे-बड़े जहाज और नावें ऐसे प्रतीत हो रही थीं जैसे कोई शिशु अपनी माता की गोद में खेल रहा हो। नदी की अथाह गहराई और सतत प्रवाह इसकी शक्ति और गौरव का प्रतीक थे, मानो यह अनादि काल से चली आ रही भारतीय संस्कृति की साक्षी हो।
(आ) पाठ के आधार पर निम्न प्रश्नों के उत्तर हाँ या नहीं में दीजिए।
- लेखक को कोव्वूर स्टेशन पार करने के बाद गोदावरी मैया के दर्शन हुए। (हाँ)
- गोदावरी की शान-शौकत कुछ निराली है। (हाँ)
(इ) गद्यांश पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
आचार्य विनोबा भावे का जन्म महाराष्ट्र में हुआ। वे प्रातःकाल बहुत जल्दी उठते थे। प्रतिदिन नियमित रूप से चरखा चलाते थे। बातें कम और काम अधिक करते थे। भूदान आंदोलन विनोबाजी का प्रमुख कार्य था।
- विनोबा जी का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर – आचार्य विनोबा भावे का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था।
- विनोबा जी के जीवन का प्रमुख कार्य क्या था?
उत्तर – भूदान आंदोलन विनोबाजी के जीवन का प्रमुख कार्य था।
(ई) इस अवतरण के मुख्य शब्द पहचानकर लिखिए।
पुल पर से गुज़रते समय दाएँ देखें या बाएँ, हम उसी उधेड़-बुन में थे। पुल आ गया और भागमती गोदावरी का अत्यंत विशाल पाट दिखायी पड़ा।
उत्तर – पुल, गुज़रते, दाएँ, बाएँ, उधेड़-बुन, भागमती, गोदावरी, अत्यंत, विशाल, पाट
अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता
(अ) नदियों को माता क्यों कहा जाता है?
उत्तर – नदियों को माता इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे जीवनदायिनी होती हैं, जिस तरह माँ अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है उसी तरह नदियाँ भी अपने मीठे जल से खेतों को सींच कर फसल उगाने मेन सहायता प्रदान करती है। कहानी के अनुसार अगर देखें तो गोदावरी ने राम-लक्ष्मण, सीता और जटायु तक को पोषित किया। इसके तटों पर शूरवीर, तत्त्वज्ञानी, साधु-संत, राजनीतिज्ञ और भक्त उत्पन्न हुए, इसलिए इसे अधिष्ठात्री देवी के रूप में सम्मान दिया जाता है।
(आ) चेन्नई से राजमहेंद्री जाते समय लेखक की भावनाएँ कैसी थीं?
उत्तर – चेन्नई से राजमहेंद्री जाते समय लेखक की भावनाएँ उत्साह, आनंद और श्रद्धा से भरी हुई थीं। प्रकृति की सुंदरता और हरियाली ने उन्हें कविता-प्रवाह में बहा दिया, और गोदावरी मैया के दर्शन की उमंग उनके मन में बनी रही। नदी की भव्यता और सांस्कृतिक महत्त्व को देखकर वे मंत्रमुग्ध हो गए और श्रद्धा से भर उठे।
(इ) अपने द्वारा की गई किसी यात्रा का वर्णन करते हुए मित्र के नाम पत्र लिखिए।
उत्तर – मित्र को यात्रा का वर्णन करते हुए पत्र
दिनांक – 22-02-20XX
घर संख्या – W-414
बंजारा हिल्स
हैदराबाद
प्रिय मित्र उमेश,
(सप्रेम नमस्ते)
आशा है कि तुम स्वस्थ और प्रसन्न होगे। आज मैं तुम्हें अपनी हाल ही में की गई यात्रा के बारे में बताने जा रहा हूँ, जो मेरे जीवन की सबसे सुंदर और अविस्मरणीय यात्राओं में से एक रही।
पिछले सप्ताह मैंने उत्तराखंड की यात्रा की, जहाँ मैं हरिद्वार, ऋषिकेश और मसूरी गया। हरिद्वार में गंगा आरती का अद्भुत नज़ारा देखकर मन भाव-विभोर हो गया। गंगा के पवित्र जल में स्नान करने से आत्मा तक शुद्ध हो गई। ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला पार करते समय गंगा की लहरों का शोर और ठंडी हवा का स्पर्श एक अनोखा अनुभव था।
इसके बाद मैं मसूरी गया, जिसे ‘पहाड़ों की रानी’ कहा जाता है। वहाँ की हरी-भरी वादियाँ, ठंडी हवा और चारों ओर फैली प्राकृतिक सुंदरता ने मन मोह लिया। केम्प्टी फॉल्स का झरना और माल रोड की चहल-पहल देखने लायक थी। सच कहूँ तो यह यात्रा मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव रही, जिससे मुझे प्रकृति की सुंदरता और शांति का एहसास हुआ।
काश! तुम भी मेरे साथ होते तो यह यात्रा और भी मजेदार हो जाती। अगली बार हमें साथ में ऐसी यात्रा की योजना बनानी चाहिए। अब पत्र यहीं समाप्त करता हूँ। अपने परिवार को मेरा स्नेह देना और जल्द ही पत्र लिखना।
तुम्हारा मित्र,
अवि
(ई) इस यात्रा – वृत्तांत में लेखक का कौन-सा अनुभव आपको अच्छा लगा? क्यों?
उत्तर – इस यात्रा-वृत्तांत में मुझे लेखक का गोदावरी नदी के भव्य और आध्यात्मिक रूप का वर्णन सबसे अधिक अच्छा लगा। लेखक ने गोदावरी की विशालता, उसकी प्रवाहमान शक्ति और सांस्कृतिक महत्त्व को जिस भावनात्मक और काव्यात्मक अंदाज में व्यक्त किया है, वह अत्यंत प्रभावशाली है। विशेष रूप से, जब लेखक गोदावरी को एक माता के रूप में देखते हैं, जो राम, लक्ष्मण, सीता और जटायु तक को पोषित कर चुकी है, तो यह नदी के प्रति भारतीय जनमानस की श्रद्धा और भक्ति को दर्शाता है। साथ ही, नदी के जल की अमोघ शक्ति और उसके तटों पर बने मंदिरों व महलों का वर्णन एक आध्यात्मिक अनुभव कराता है।
भाषा की बात
(अ) सूचना पढ़िए। वाक्य प्रयोग कीजिए।
- बरसात, सरिता, पहाड़ (पर्याय शब्द लिखिए।)
बरसात – बारिश, वृष्टि, बरखा
सरिता – नदी, तटिनी, तरंगिणी
पहाड़ – नाग, भूधर, पर्वत
- विजय, प्रसिद्ध, दुर्लभ (विलोम शब्द लिखिए।)
विजय – पराजय
प्रसिद्ध – सामान्य
दुर्लभ – सुलभ
- तितली, कविता, लहर (वचन बदलिए।)
तितली – तितलियाँ
कविता – कविताएँ
लहर – लहरें
(आ) सूचना पढ़िए। उसके अनुसार कीजिए।
- सूर्योदय, पवित्र, अत्यंत (संधि विच्छेद कीजिए।)
सूर्योदय = सूर्य + उदय
पवित्र = पो + इत्र
अत्यंत = अति + अंत
(इ) इन्हें समझिए।
- नदी के पानी में उन्माद था, उसमें लहरें न थीं।
के – संबंध कारक
में – अधिकरण कारक
उसमें – अधिकरण कारक
(ई) नीचे दिये गये क्रिया शब्द समझिए और अकर्मक व सकर्मक क्रियाएँ पहचानिए।
सोना, पढ़ना, पीना, हँसना, कहना, उठना, दौड़ना, खाना, चलना, लिखना
सकर्मक – पढ़ना, पीना, कहना, खाना, लिखना
अकर्मक – सोना, हँसना, उठना, दौड़ना, चलना
परियोजना कार्य
यात्रा- वृत्तांत विधा की जानकारी प्राप्त कीजिए। उसकी सूची बनाकर कक्षा में प्रदर्शन कीजिए।
उत्तर – यात्रा-वृत्तांत (Travelogue) वह साहित्यिक विधा है जिसमें लेखक अपनी यात्रा के दौरान देखे गए स्थलों, प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक अनुभवों, ऐतिहासिक स्थलों, भौगोलिक विशेषताओं और भावनात्मक अनुभूतियों का वर्णन करता है। यह विधा पाठकों को उस स्थान का सजीव अनुभव कराती है।
यात्रा-वृत्तांत की विशेषताएँ –
यात्रा का विवरण – स्थानों, मार्गों और समय का उल्लेख।
प्राकृतिक और सांस्कृतिक दृश्यचित्र – प्रकृति, लोगों और सभ्यता का चित्रण।
व्यक्तिगत अनुभव – लेखक की भावनाएँ, विचार और अनुभव।
रोचक शैली – वर्णनात्मक भाषा, संवाद और घटनाएँ।
ऐतिहासिक और भौगोलिक जानकारी – स्थानों के ऐतिहासिक और भौगोलिक तथ्यों का समावेश।
यात्रा से मिलने वाली सीख – यात्रा के दौरान प्राप्त ज्ञान, प्रेरणा या संदेश।
प्रसिद्ध यात्रा-वृत्तांतों की सूची –
‘पथ के साथी’ – राहुल सांकृत्यायन
‘अल्मोड़ा’ – महादेवी वर्मा
‘यायावर की डायरी’ – विद्यानिवास मिश्र
‘किनारे-किनारे’ – नरेश मेहता
‘गंगा से सिंधु’ – सत्यजीत राय
‘मेरी लद्दाख यात्रा’ – राहुल सांकृत्यायन
‘यात्रा के पन्ने’ – प्रभाकर माचवे
‘रूस में पचास दिन’ – राहुल सांकृत्यायन
यात्रा-वृत्तांत केवल स्थानों का वर्णन ही नहीं होते, बल्कि यह पाठकों को नए अनुभवों, संस्कृतियों और जीवन-दृष्टि से परिचित कराते हैं।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए –
प्रश्न – चेन्नई से राजमहेंद्री जाते हुए सूर्योदय कहाँ हुआ?
उत्तर -बेजवाड़े से आगे सूर्योदय हुआ।
प्रश्न – बरसात के दिनों में वातावरण कैसा था?
उत्तर -हर जगह हरियाली की विविध छटा फैली हुई थी।
प्रश्न – नहर का पानी देखने में क्यों कठिनाई होती थी?
उत्तर -क्योंकि किनारा ऊँचा था, जिससे पानी कभी-कभी ही दिखता था।
प्रश्न – तालाबों में आसमान कैसा प्रतीत होता था?
उत्तर -ऐसा लगता था जैसे रंग-बिरंगे बादलों वाला आसमान नहाने उतर आया हो।
प्रश्न – कोव्वूर स्टेशन पर पहुँचकर लेखक को कौन-सी उमंग थी?
उत्तर -गोदावरी मैया के दर्शन होने की उमंग थी।
गोदावरी के विशाल पाट को देखकर लेखक को कौन-कौन सी नदियाँ याद आईं?
उत्तर -गंगा, सिंधु, शोणभद्र और ऐरावती।
प्रश्न – गोदावरी के जल का रंग कैसा था?
उत्तर -धूलि-धूसरित और मटमैला।
प्रश्न – गोदावरी के किनारे क्या दर्शाते हैं?
उत्तर -मनुष्य की कृतज्ञता और अखंड उत्सव।
प्रश्न – नदी किनारे के मंदिरों से क्या प्रतीत होता है?
उत्तर -अखंड उपासना और संस्कृति की गूँज।
भारतवासी गंगाजल और गोदावरी जल का क्या करते हैं?
उत्तर -गंगाजल गोदावरी में उँडेलते हैं और गोदावरी का जल कलश में भरते हैं।
गोदावरी का अखंड प्रवाह लेखक को क्या प्रतीत होता है?
उत्तर -राष्ट्र की समृद्धि और गौरव का प्रतीक।
प्रश्न – गोदावरी के किनारे कौन-कौन से लोग जन्मे हैं?
उत्तर -शूरवीर, तत्व-ज्ञानी, साधु-संत, धुरंधर राजनीतिज्ञ और ईश्वर भक्त।
प्रश्न – बादलों के कारण गोदावरी के जल का रंग कैसा प्रतीत हो रहा था?
उत्तर -और भी गहरा और धूसर।
प्रश्न – लेखक के अनुसार गोदावरी के किनारे क्या दर्शाते हैं?
उत्तर -मनुष्य की कृतज्ञता और संस्कृति का उत्सव।
प्रश्न – लेखक ने पहाड़ों पर उतरे हुए बादलों को किससे तुलना की?
उत्तर -ऋषि-मुनियों से।
प्रश्न – लेखक के अनुसार गोदावरी के भँवर किस तरह के होते हैं?
उत्तर -चंचल और अचानक रूप बदलने वाले।
प्रश्न – नदी किनारे के मंदिरों में बजने वाले घंटों की आवाज़ कहाँ तक पहुँचती है?
उत्तर -इस पार से उस पार तक।
प्रश्न – लेखक ने किन नदियों के प्रवाह की तुलना गोदावरी से की?
उत्तर -गंगा, सिंधु, शोणभद्र, ऐरावती और कृष्णा।
प्रश्न – गोदावरी के किनारे किस प्रकार के भवन स्थित हैं?
उत्तर -सफेद महल और मंदिर।
प्रश्न – लेखक ने गोदावरी के प्रवाह की तुलना राष्ट्र के किस पहलू से की?
उत्तर -राष्ट्र के वैभव और समृद्धि से।
निम्नलिखित प्रश्नों के दो से तीन पंक्तियों में दीजिए –
प्रश्न – लेखक को गोदावरी के प्रवाह से राष्ट्र की समृद्धि की तुलना करने की प्रेरणा कैसे मिली?
उत्तर -लेखक को लगा कि जिस तरह एक राष्ट्र विपत्तियों से पार पाकर समृद्धि की नई छटाएँ दिखाता है, उसी तरह गोदावरी पहाड़ों से निकलकर अपना गौरव बिखेरती है।
प्रश्न – गोदावरी में मौजूद भँवरों को लेखक ने किससे तुलना की और क्यों?
उत्तर -लेखक ने भँवरों को बच्चों से तुलना की क्योंकि वे थोड़ी देर दिखते हैं, फिर अचानक तूफान का स्वांग रचते हैं और खिलखिलाकर हँस पड़ते हैं।
प्रश्न – लेखक ने गोदावरी को माता क्यों कहा और इसके किन-किन महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों से संबंध बताए?
उत्तर -लेखक ने गोदावरी को माता इसलिए कहा क्योंकि उसने राम, लक्ष्मण, सीता, बूढ़े जटायु, शूरवीरों, तत्व-ज्ञानियों, साधु-संतों, धुरंधर राजनीतिज्ञों और ईश्वर भक्तों को आश्रय दिया है।
प्रश्न – नदी के किनारे बने सफेद महल और मंदिर क्या दर्शाते हैं?
उत्तर -ये मनुष्य की कृतज्ञता और भक्ति का प्रतीक हैं, जो अखंड उपासना को दर्शाते हैं।
प्रश्न – लेखक गोदावरी के जल की शक्ति को अमोघ क्यों मानते हैं?
उत्तर -वे मानते हैं कि गोदावरी के जल की एक बूँद भी व्यर्थ नहीं जाती और उसमें आध्यात्मिक और शारीरिक शक्ति देने की क्षमता है।
प्रश्न – लेखक ने नदी के छोटे-बड़े जहाज़ों की तुलना किससे की और क्यों?
उत्तर -लेखक ने जहाज़ों को नदी के बच्चों की तरह माना क्योंकि वे माँ की गोद में नाचते, खेलते और उछलते हैं।
प्रश्न – लेखक को गोदावरी का दृश्य वैदिक प्रभाव से युक्त क्यों लगा?
उत्तर -क्योंकि बादलों की झाँई, जल की धूसरता और शांत वातावरण वैदिक युग की शीतल और स्निग्ध सुंदरता की याद दिला रहे थे।
प्रश्न – लेखक के अनुसार नदी के भँवरों का व्यवहार कैसा था?
उत्तर -भँवर कुछ देर दिखाई देते, फिर भयंकर तूफ़ान जैसा रूप लेकर अचानक शांत हो जाते, मानो खिलखिला कर हँस पड़े हों।
प्रश्न – गोदावरी के तट पर लोग क्या धार्मिक अनुष्ठान करते हैं?
उत्तर -लोग गंगाजल का अर्पण करते हैं और गोदावरी का जल कलश में भरकर ले जाते हैं।
प्रश्न – लेखक गोदावरी को अपनी पूर्वजों की अधिष्ठात्री देवी क्यों मानते हैं?
उत्तर -क्योंकि गोदावरी ने ऐतिहासिक रूप से ऋषि-मुनियों, वीरों, संतों और भक्तों को पोषित किया है।