शांति की राह में…
यदि हमारे पास दुनिया का सारा वैभव और सुख साधन उपलब्ध है लेकिन शांति नहीं है तो वैसे सुख साधन व्यर्थ हैं। संसार में मानव द्वारा जितने भी कार्य किए जा रहे हैं सबका एक ही उद्देश्य है- ‘शांति’।
सबसे पहले तो हमें यह जान लेना चाहिए कि शांति क्या है? शांति का केवल यह अर्थ नहीं कि मुख से चुप रहें। वास्तव में मन को नियंत्रित कर उसे बुराई के रास्ते पर चलने से रोकना ही ‘शांति’ है। इसीलिए जहाँ शांति है, वहाँ सुख है, जहाँ सुख है वहाँ स्वर्ग है, जहाँ स्वर्ग है वही दुनिया का श्रेष्ठ स्थान है। युद्ध, दुख, लालच और सभी पीड़ाओं को मिटाने का उत्तम मार्ग ‘शांति’ है।
धन-दौलत से भौतिक संपदा खरीद सकते हैं, किंतु शांति नहीं। यही कारण है कि दुनिया भर के कई धनी देश ‘शांति’ बनाए रखने के लिए प्रयास कर रहे हैं। इन प्रयासों में कही युद्ध और कहीं चर्चाएँ हो रही हैं। वास्तव में युद्ध से कभी शांति स्थापित नहीं हो सकती। सभी देशों के बीच सहयोग स्थापित करने के द्वारा शांति की स्थापना की जा सकती है। इसी उद्देश्य से 24 अक्तूबर, 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई। इसका मूल उद्देश्य विश्व में सभी देशों के बीच शांति की स्थापना करना है।
विश्व शांति के इन प्रयासों में ही शांति के लिए उत्कृष्ट कार्य करने वालों को हर वर्ष नोबेल पुरस्कार भी दिया जाता है। शांति की स्थापना में अपना जीवन समर्पित करने वाले कई महान व्यक्ति हुए हैं। यहाँ उन्हीं में से दो महान शांतिदूतों के बारे में दिया जा रहा है जिन्होंने अपना सारा जीवन शांति और सेवा के मार्ग पर समर्पित कर दिया है।
मंडेला के नाम से विश्वभर में प्रख्यात शांतिदूत का पूरा नाम नेल्सन रोलिहलला मंडेला था। उनका जन्म 18 जुलाई, 1918 को दक्षिण अफ्रीका में हुआ। वे दक्षिण अफ्रिका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति थे। राष्ट्रपति बनने से पूर्व वे दक्षिण अफ्रीका में सदियों से चल रहे रंगभेद का विरोध करने वाले ‘अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस’ और ‘उमखोतों वे सिजवे’ गुट के अध्यक्ष रहे।
रंगभेद विरोधी संघर्ष के कारण उन्होंने 27 वर्ष रॉबेन द्वीप के कारागार में बिताए। उन्हें कोयला खनिक का काम करना पड़ा था। सन् 1990 में श्वेत सरकार से हुए एक समझौते के बाद उन्होंने नए दक्षिण अफ्रीका का निर्माण किया। वे दक्षिण अफ्रीका एवं समूचे विश्व में रंगभेद का विरोध करने के प्रतीक बन गए।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने उनके जन्मदिन को ‘नेल्सन मंडेला अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया। दक्षिण अफ्रीका के लोग मंडेला को व्यापक रूप से ‘राष्ट्रपिता’ मानते हैं। उन्हें दक्षिण अफ्रीका के लोकतंत्र के प्रथम संस्थापक और उद्धारकर्ता के रूप में देखा जाता था। दक्षिण अफ्रीका में प्रायः उन्हें ‘मदीबा’ कह कर बुलाया जाता है। यह शब्द बुज़ुर्गों के लिए सम्मान सूचक है। उन्हें अब तक 250 से भी अधिक राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। सन् 1993 में नोबेल शांति पुरस्कार, भारत रत्न पुरस्कार और सन् 2008 में गाँधी शांति पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
उनका स्वर्गवास 5 दिसंबर, 2013 को हुआ। ऐसे महान शांतिदूत के निधन पर सारे विश्व ने अपूर्व श्रद्धांजलि समर्पित की। इनका संघर्षमय जीवन हमें शांति की राह में चलने के लिए पथ प्रदर्शित करता है।
सेंट मदर तेरेसा एक ऐसा नाम है, जो शांति, करुणा, प्रेम व वात्सल्य का पर्याय कहलाता है। ऐसी महान माता का पूरा नाम आग्नेस गोंकशे बोजशियु तेरेसा था। उन्हें मदर तेरेसा के नाम से भी जाना जाता है। उन्हें 2016 में सेंट की उपाधि दी गई। उनका जन्म 26 अगस्त, 1910 और स्वर्गवास 5 सितंबर, 1997 में हुआ था। वैसे तो वे युगोस्लाविया मूल की थीं, आगे चलकर सेवा की भावना में रत होकर उन्होंने भारत की नागरिकता स्वीकार ली। प्रारंभ में उन्होंने अध्यापिका के रूप में काम किया। किंतु उनका सपना कुछ और ही था। वे अनाथों, ग़रीबों और रोगियों की सेवा करना चाहती थीं। इसीलिए उन्होंने सन् 1950 में कोलकाता में ‘मिशनरीज़ ऑफ चारिटी’ की स्थापना की। उनके द्वारा स्थापित संस्था को ही ‘निर्मल हृदय’ कहते हैं। उन्होंने अपना सारा जीवन ग़रीब, अनाथ और बीमार लोगों की सेवा में लगा दिया। सन् 1970 तक वे ग़रीबों और असहायों के लिए अपने मानवीय कार्यों के लिए प्रसिद्ध हो गई।
सन् 1979 में उन्हें नोबेल पुरस्कार, सन् 1980 में भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने कथनी से कहीं करनी को अधिक महत्त्व दिया। इसीलिए वे हमेशा कहा करती थीं- “प्रार्थना करनेवाले होंठों से सहायता करने वाले हाथ कहीं अच्छे हैं।” मातृमूर्ति, करुणामयी सेंट मदर तेरेसा ने अपने जीवन में यह साबित कर दिखाया है कि ‘मानव सेवा ही माधव सेवा है।’ परोपकार के पथ पर चलने वालों को ही वास्तविक जीवन मिलता है। आज वे हमारे बीच नहीं रहीं, किंतु उनके महान विचार, उत्कृष्ट कार्य और श्रेष्ठ परोपकारी गुण आज भी एक दिव्यज्योति के रूप में हमें वास्तविक जीवन बिताने की राह दिखाते हैं।
हिंदी शब्द | अर्थ (हिंदी) | अर्थ (तेलुगु) | अर्थ (अंग्रेज़ी) |
वैभव | संपत्ति, ऐश्वर्य | వైభవం | Prosperity, Wealth |
साधन | उपाय, संसाधन | సాధనం | Means, Resource |
व्यर्थ | बेकार, निष्फल | వ్యర్థం | Useless, Worthless |
उद्देश्य | मकसद, लक्ष्य | ఉద్దేశం | Purpose, Goal |
नियंत्रित | काबू करना | నియంత్రణ | Control |
बुराई | खराबी, दोष | చెడు | Evil, Badness |
युद्ध | लड़ाई, संग्राम | యుద్ధం | War, Battle |
पीड़ा | दर्द, कष्ट | బాధ | Pain, Suffering |
सहयोग | मदद, समर्थन | సహకారం | Cooperation, Support |
स्थापना | शुरुआत, निर्माण | స్థాపన | Establishment, Foundation |
समर्पित | अर्पित, अ捑पन | అంకితం | Dedicated, Devoted |
संघर्ष | प्रयत्न, जद्दोजहद | పోరాటం | Struggle, Fight |
विरोध | असहमति, प्रतिरोध | వ్యతిరేకత | Opposition, Protest |
प्रतीक | चिह्न, निशानी | ప్రతీక | Symbol, Emblem |
लोकतंत्र | जनतंत्र, प्रजातंत्र | ప్రజాస్వామ్యం | Democracy |
सम्मान | इज़्ज़त, प्रतिष्ठा | గౌరవం | Respect, Honor |
श्रद्धांजलि | श्रद्धा-सुमन अ捑पन | శ్రద్ధాంజలి | Tribute |
करुणा | दया, रहम | కరుణ | Compassion, Mercy |
वात्सल्य | माँ का प्रेम, स्नेह | మాతృస్నేహం | Motherly Love, Affection |
अध्यापिका | शिक्षिका, गुरु | ఉపాధ్యాయురాలు | Teacher |
ग़रीब | निर्धन, अभावग्रस्त | పేద | Poor, Needy |
अनाथ | जिसका कोई सहारा न हो | అనాథ | Orphan |
रोगी | बीमार व्यक्ति | రోగి | Patient, Sick Person |
संस्था | संगठन, समूह | సంస్థ | Organization, Institution |
असहाय | लाचार, कमजोर | సహాయహీనుడు | Helpless |
प्रसिद्ध | विख्यात, मशहूर | ప్రసిద్ధ | Famous, Well-Known |
कथनी | कहने की बात | వాక్యము | Saying, Speech |
करनी | करने की बात | కార్యము | Action, Deed |
मानव सेवा | इंसान की मदद करना | మానవ సేవ | Human Service |
परोपकार | दूसरों की भलाई | పరోపకారం | Philanthropy, Charity |
दिव्यज्योति | पवित्र प्रकाश | దివ్యజ్యోతి | Divine Light |
पाठ का सार
इस लेख में बताया गया है कि यदि हमारे पास दुनिया के सारे सुख-साधन भी हों लेकिन शांति न हो, तो वे सभी व्यर्थ हैं। संसार में किए जाने वाले सभी कार्यों का मुख्य उद्देश्य शांति प्राप्त करना ही होता है। शांति केवल मौन रहने को नहीं कहते, बल्कि मन को नियंत्रित कर उसे बुराई के मार्ग से हटाने को ही वास्तविक शांति माना जाता है। जहाँ शांति होती है, वहीं सुख और स्वर्ग की अनुभूति होती है। दुनिया में कई अमीर देश शांति बनाए रखने के लिए युद्ध और चर्चाओं का सहारा लेते हैं, लेकिन युद्ध से कभी शांति स्थापित नहीं हो सकती। देशों के बीच सहयोग और समझौते से ही शांति स्थापित हो सकती है। इसी उद्देश्य से 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की स्थापना हुई, जिसका मुख्य लक्ष्य विश्व में शांति बनाए रखना है। इसी उद्देश्य से हर वर्ष शांति के लिए कार्य करने वाले लोगों को नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाता है।
लेख में दो महान व्यक्तियों नेल्सन मंडेला और मदर टेरेसा के योगदान का वर्णन किया गया है।
नेल्सन मंडेला – दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति थे, जिन्होंने अपने देश में रंगभेद (जातीय भेदभाव) के खिलाफ संघर्ष किया। उन्हें 27 वर्षों तक जेल में रहना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 1993 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला। उन्हें दक्षिण अफ्रीका में ‘राष्ट्रपिता’ और ‘मदीबा’ के नाम से भी जाना जाता है।
मदर टेरेसा – वे सेवा, करुणा और प्रेम की प्रतीक थीं। उन्होंने गरीबों, अनाथों और रोगियों की सेवा के लिए मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी नामक संस्था की स्थापना की। उन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरों की मदद करने में समर्पित कर दिया। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
इन महान हस्तियों का जीवन हमें यह सिखाता है कि शांति, सेवा और परोपकार से ही दुनिया में सच्ची खुशी प्राप्त की जा सकती है।
प्रश्न –
- शांति की परिभाषा क्या हो सकती है? अपने शब्दों में बताइए।
उत्तर – शांति का अर्थ केवल मौन रहना नहीं है, बल्कि मन, वचन और कर्म से संतुलित एवं संयमित रहना ही सच्ची शांति है। जब मनुष्य अपने विचारों, इच्छाओं और भावनाओं को नियंत्रित कर लेता है और बुरे कार्यों से बचता है, तब उसे शांति प्राप्त होती है। जहाँ शांति होती है, वहीं सुख और समृद्धि होती है। शांति से ही प्रेम, सहानुभूति और सद्भावना का विकास होता है, जिससे व्यक्ति और समाज दोनों उन्नति की ओर बढ़ते हैं।
- नेल्सन मंडेला के जीवन से हमें क्या संदेश मिलता है?
उत्तर – नेल्सन मंडेला के जीवन से हमें साहस, धैर्य, संघर्ष और मानवता का संदेश मिलता है। उन्होंने रंगभेद के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपने जीवन के 27 वर्ष जेल में बिताए, लेकिन कभी अन्याय के सामने झुके नहीं। उन्होंने अहिंसा और समानता के मार्ग पर चलते हुए दक्षिण अफ्रीका में लोकतंत्र की स्थापना की। उनका जीवन हमें सिखाता है कि कठिनाइयों के बावजूद सच्चाई और न्याय के लिए डटे रहना चाहिए और सबके साथ समानता व शांति से व्यवहार करना चाहिए।
- सेंट मदर तेरेसा ने अपने जीवन में क्या सिद्ध कर दिखाया है?
उत्तर – सेंट मदर तेरेसा ने अपने जीवन में सिद्ध किया कि सच्ची सेवा ही मानवता का सबसे बड़ा धर्म है। उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों, अनाथों और रोगियों की सेवा में समर्पित कर दिया। ‘मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी’ की स्थापना कर उन्होंने असहायों के लिए सहायता और प्रेम का वातावरण बनाया। उनका जीवन दर्शाता है कि परोपकार, करुणा और नि:स्वार्थ सेवा से दुनिया को बदला जा सकता है। उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि “मानव सेवा ही माधव सेवा” है।
- “प्रार्थना करने वाले होठों से कहीं अच्छे सहायता करने वाले हाथ हैं।”- पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। आप किसकी सहायता करना चाहते हैं? आपकी कौन-कौन सहायता करता है?
उत्तर – इस पंक्ति का अर्थ है कि केवल प्रार्थना करने से समस्याएँ हल नहीं होतीं हैं बल्कि हमें दूसरों की सहायता के लिए आगे आना चाहिए। ईश्वर की भक्ति और प्रार्थना महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन उससे भी अधिक जरूरी है कि हम ज़रूरतमंदों की सेवा करें। यदि हम किसी की मदद कर सकते हैं, तो हमें उसकी मदद करनी ही चाहिए। ऐसा करने से हम अपने जीवन के साथ-साथ दूसरों के जीवन में बदलाव ला सकते हैं।
मैं जरूरतमंद लोगों, गरीब बच्चों और वृद्धजनों की सहायता करना चाहता हूँ। मैं उनकी शिक्षा, भोजन और स्वास्थ्य के लिए योगदान देना चाहता हूँ। मेरी सहायता मेरे माता-पिता, शिक्षक, मित्र और परिवारजन करते हैं। वे हमेशा मुझे सही मार्ग दिखाते हैं और कठिन समय में मेरा समर्थन करते हैं।