Telangana, Class X, Sugandha -02, Hindi Text Book, Yah Rasta Kahan Jaata Hai? The Best Solutions, यह रास्ता कहाँ जाता है? (पठन हेतु नाटक)

यह रास्ता कहाँ जाता है?

पहला दृश्य

मोना : नानी, नानी। एक कहानी सुनाओ न !

गोलू : (नानी को मनाने के स्वर में) हाँ, नानी, कहो न !

नानी : तो तुम दोनों नहीं मानोगे। अच्छा सुनाती हूँ, सुनो। (एक क्षण ठहरकर नानी कहती है।) बहुत पुरानी बात है। उज्जैन नामक एक नगर था।

मोना : वह तो आज भी है।

नानी : कहाँ है, बतला तो?

मोना : मध्य प्रदेश में।

गोलू : हाँ, नानी, उज्जैन नाम का एक नगर था, फिर?

नानी : राजा भोज वहाँ का राजा था।

मोना : मेरी किताब में लिखा है, नानी, कि वह बहुत बड़ा विद्वान था। उसके दरबार में एक कवि रहता था, नाम था उसका माघ।

गोलू : नानी को कहने दो न ! किताब की बात बाद में पढ़ लेना। नानी आगे।

नानी : राजा भोज प्रजा का सुख-दुःख जानने के लिए भेष बदलकर रात में घूमा करता था।

गोलू : भेष बदलकर काहे, नानी?

नानी : ताकि कोई पहचान न ले। उसके साथ कवि माघ भी रहता था। एक रात प्रजा का सुख-दुःख जानने के लिए दोनों महल से निकले।

दूसरा दृश्य

माघ : महाराज ! लगता है हम रास्ता भूल गए हैं। इस जंगल में हम भटक गए हैं।

भोज : तुम ठीक कहते हो कवि ! हम मुसीबत में फँस गए हैं।

माघ : इस प्रकार हम कब तक भटकते रहेंगे?

भोज : जब तक सवेरा नहीं हो जाता।

माघ : लेकिन यह रात तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही है।

भोक : संकट की घड़ी लंबी प्रतीत होती है। बता सकते हो, रात और कितनी बाकी है?

माघ : बस सवेरा होने ही वाला है, महाराज! वह देखिए, भृगुतारा बहुत ऊपर आ गया है। वन्य पशु-पक्षी भी जाग चुके हैं।

भोज : तो हम रात भर कवि?

माघ : अब चिंता छोड़ें, यहाँ देखिए, पूरब दिशा पसर रही है, सूर्योदय हो रहा है। प्रकाश फैल रहा है।

भोज : वह तो है, लेकिन यहाँ तो कोई दिखाई भी नहीं देता, जिससे उज्जैन जाने का मार्ग पूछा जाए।

माघ : भला इतने सवेरे इस जंगल में।

भोज : वहाँ देखो, कोई छाया।

माघ : हाँ, महाराज, कोई लकड़हारिन है। लकड़ी चुनने जंगल में आई है।

भोज : हम उससे ही पूछें।

माघ : ठीक है, महाराज, हमें उसके पास चलना चाहिए।

भोज : हाँ, तो चलो। चलकर उसी से पूछें।

माघ : यह रास्ता कहाँ जाता है, बतला सकती हो?

भोज : (लकड़हारिन को चुपचाप खड़ा देख कर) तुम्हीं से पूछ रहे हैं।

लकड़हारिन : वह तो मैं समझ रही हूँ।

माघ : फिर चुप क्यों हो? बोलती क्यों नहीं?

लकड़हारिन : क्या जवाब दूँ? यही सोच रही हूँ।

भोज : इसमें सोचने की कौन-सी बात है?

लकड़हारिन : है, तभी तो चुप हूँ।

माघ : फिर कहो, हम भी तो सुनें।

लकड़हारिन : यह रास्ता कहीं आता-जाता नहीं है। वह तो यहीं पड़ा रहता है। लोग इस पर आते-जाते रहते हैं। आप दोनों कौन हैं और कहाँ जाना चाहते हैं?

भोज : हम दोनों मुसाफ़िर हैं और उज्जैन जाना चाहते हैं।

लकड़हारिन : मुसाफ़िर तो इस दुनिया में दो ही हैं- एक सूर्य, जो उधर निकल रहा है और एक चाँद, जो उधर मिट रहा है। तुम दोनों न सूर्य हो और न चाँद, फिर मुसाफ़िर कैसे हो?

माघ : ठीक कहती हो। हम दोनों न सूरज हैं और न चाँद। मेहमान अवश्य हैं।

लकड़हारिन : आप लोग मेहमान भी नहीं हो सकते क्योंकि मेहमान भी दो ही होते हैं – एक धन और दूसरा यौवन। समझे।

भोज : मैं राजा हूँ।

लकड़हारिन : क्योंकि राजा भी दो ही हैं – एक इंद्र और दूसरा यमराज। कहो, तुम इन दो में से कौन हो?

माघ : (चिढ़कर) तुम हमें नहीं जानती हो? हम दो ऐसे पुरुष हैं, जो किसी को भी कोई  कसूर करने पर माफ़ कर सकते हैं।

लकड़हारिन : इतना गुमान नहीं करो तो बेहतर। माफ़ भी दो ही कर सकती हैं – एक धरती और दूसरी नारी। तुम दोनों न धरती हो और न नारी, फिर माफ़ करने की बात क्यों करते हो?

भोज : सुन रहे हो कवि? यह तो हमारी एक भी नहीं चलने दे रही है। अब क्या करें? (राजा भोज तथा कवि माघ हारे हुए पुरुषों की तरह चुपचाप खड़े रहते हैं। सोचते हैं।)

भोज : समझो, हम दो हारे हुए व्यक्ति हैं। अब तो रास्ता बतला दो।

लकड़हारिन : रास्ता तो मैंने कभी का बतला दिया होता, किंतु तुम दोनों सच बोलो तब न! तुम दोनों हारे हुए भी नहीं हो सकते, क्योंकि इस संसार में हारा हुआ एक लोभी और दूसरा स्वार्थी, समझे !

भोज : अब क्या कहते हो, कवि?

माघ : समझ में नहीं आ रहा है, महाराज, क्या कहें, क्या न कहें। हम सब तरह से हार चुके हैं।

भोज : हम सब तरह से हार चुके हैं। हमें नहीं मालूम, हम कौन हैं। तुम्हीं कहो, हम कौन हैं? (दोनों लकड़हारिन के सामने झुकते हैं।)

लकड़हारिन : ऐसा कर मुझे लज्जित न करें महाराज! मैं आपकी प्रजा हूँ।

माघ व भोज : (आश्चर्य से) तो, तुम हमें जानती हो?

लकड़हारिन : अवश्य जानती हूँ। तुम राजा भोज हो और यह तुम्हारा कवि माघ है। है न?

भोज : सच है, लेकिन किसी से कहना मत। तुम जैसी बुद्धिमान प्रजा मेरे राज्य में बसती है, यह जानकर मैं अति प्रसन्न हूँ। हमें उज्जैन का रास्ता बतला दो और क्षमा कर दो।

लकड़हारिन : प्रजा के सुख-दुःख की तुम्हारी यह चिंता तुम्हारे यश का कारण बने। जाओ, महाराज, वह है तुम्हारा रास्ता। (राजा भोज तथा कवि माघ उस ओर जाते हैं।) (मंच की रोशनी गुल होती है। आँगन में पहले की तरह नानी, नाती, नतिनी दिखाई देते हैं।)

गोलू : नानी, वह लकड़हारिन ज़रूर तुम्हारी आयु की रही होगी। क्यों, नानी?

मोना : तभी तो वह उतनी होशियार निकली जितनी हमारी नानी हैं। है न, नानी?

नानी : यह सब जाने दो। यह बताओ कि मेरी इस कहानी से तुम दोनों ने क्या सीखा? कुछ सीखा कि नहीं?

गोलू : दीदी, हमने क्या सीखा है, बतलाओ नानी को।

मोना : हमने सीखा है, हमें अहंकार नहीं करना चाहिए। क्यों नानी?

नानी : बिलकुल ठीक समझा है। अहंकार बुरी बात है। हमें उससे बचना चाहिए।

(परदा गिरता है।)

शब्द

अर्थ

तेलुगु

अंग्रेजी

रास्ता

मार्ग, पथ

దారి

Path, Way

नगर

शहर, कस्बा

నగరం

City, Town

राजा

नरेश, सम्राट

రాజు

King

विद्वान

ज्ञानी, बुद्धिमान

పండితుడు

Scholar, Wise

दरबार

सभा, राजसभा

సభ

Court, Assembly

प्रजा

जनता, लोग

ప్రజలు

Citizens, People

भेष

रूप, वेशभूषा

వేషం

Disguise, Appearance

संकट

परेशानी, मुसीबत

సంక్షోభం

Trouble, Crisis

सवेरा

प्रभात, सुबह

ఉదయం

Morning, Dawn

सूर्य

सूरज, दिनकर

సూర్యుడు

Sun

चंद्रमा

चाँद, निशाकर

చంద్రుడు

Moon

मेहमान

अतिथि, आगंतुक

అతిథి

Guest

अहंकार

घमंड, अभिमान

గర్వం

Ego, Pride

बुद्धिमान

चतुर, विवेकशील

తెలివైన

Intelligent, Wise

क्षमा

माफी, दया

క్షమ

Forgiveness, Pardon

यश

प्रसिद्धि, कीर्ति

కీర్తి

Fame, Glory

उज्जैन

एक प्राचीन नगर

ఉజ్జయిని

Ujjain (a city in India)

महल

राजभवन, किला

మహల్

Palace

जंगल

वन, अरण्य

అడవి

Forest, Jungle

दिशा

ओर, कोण

దిశ

Direction

प्रश्न

सवाल, पूछताछ

ప్రశ్న

Question

उत्तर

जवाब, समाधान

సమాధానం

Answer, Response

मार्ग

रास्ता, गली

మార్గం

Route, Path

लकड़हारिन

लकड़ी बीनने वाली स्त्री

కలప తీయు ఆడపిల్ల

Woman woodcutter

मुसाफ़िर

यात्री, पथिक

ప్రయాణీకుడు

Traveler, Passenger

भटकना

रास्ता भूलना

తికమకపడటం

Wander, Roam

लोभी

लालची, स्वार्थी

దురాశపడ్డవాడు

Greedy, Selfish

स्वार्थी

खुदगर्ज़, केवल अपने बारे में सोचने वाला

స్వార్థపరుడు

Selfish

धरती

भूमि, पृथ्वी

భూమి

Earth, Land

स्त्री

महिला, नारी

స్త్రీ

Woman, Female

पाठ का सार

यह नाटक राजा भोज और उनके दरबारी कवि माघ की बुद्धिमानी, जिज्ञासा और विनम्रता की कहानी है। राजा भोज अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए भेष बदलकर रात में घूमते थे। एक रात, वे जंगल में भटक जाते हैं और रास्ता खोजने के लिए एक लकड़हारिन से पूछते हैं।

लकड़हारिन उनकी पहचान न जानने का नाटक करती है और बड़ी ही चतुराई से उनकी हर बात का उत्तर देती है। वह कहती है कि सच्चे मुसाफ़िर सूर्य और चंद्रमा हैं, सच्चे मेहमान धन और यौवन हैं, और सच्चे राजा इंद्र और यमराज हैं। इससे राजा भोज और माघ निरुत्तर हो जाते हैं। अंततः जब वे स्वयं को हारा हुआ मान लेते हैं, तब लकड़हारिन उन्हें उज्जैन का रास्ता बताती है और कहती है कि वह राजा भोज को पहचानती है।

पाठ से सीख –

अहंकार करना उचित नहीं है।

बुद्धिमानी और विवेक से किसी भी स्थिति को संभाला जा सकता है।

सच्चा राजा वही है जो प्रजा के सुख-दुख को समझे और उसका भला करे।

प्रश्नोत्तर –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए-

प्रश्न – उज्जैन कहाँ स्थित है?

उत्तर – उज्जैन मध्य प्रदेश में स्थित है।

प्रश्न – राजा भोज कौन थे?

उत्तर – राजा भोज उज्जैन के एक विद्वान और न्यायप्रिय राजा थे।

प्रश्न – कवि माघ कौन थे?

उत्तर – कवि माघ राजा भोज के दरबार के प्रसिद्ध कवि थे।

प्रश्न – राजा भोज किसलिए भेष बदलकर घूमते थे?

उत्तर – राजा भोज अपनी प्रजा का सुख-दुःख जानने के लिए भेष बदलकर घूमते थे।

प्रश्न – लकड़हारिन ने राजा भोज को क्यों नहीं पहचाना?

उत्तर – लकड़हारिन ने राजा भोज को पहचाना, लेकिन वह तुरंत इसका ज़िक्र नहीं करना चाहती थी।

प्रश्न – अहंकार क्यों बुरा होता है?

उत्तर – अहंकार व्यक्ति के विवेक और निर्णय शक्ति को प्रभावित करता है।

प्रश्न – लकड़हारिन ने राजा भोज को क्या सिखाया?

उत्तर – लकड़हारिन ने राजा भोज को सच्चाई और विनम्रता का महत्व सिखाया।

प्रश्न – संकट की घड़ी कैसी प्रतीत होती है?

उत्तर – संकट की घड़ी लंबी प्रतीत होती है।

प्रश्न – राजा भोज और माघ जंगल में क्यों भटक गए?

उत्तर – राजा भोज और माघ रात में प्रजा का हाल जानने निकले थे और रास्ता भटक गए।

प्रश्न – लकड़हारिन ने राजा भोज को पहचानने के बाद क्या किया?

उत्तर – लकड़हारिन ने राजा भोज को उज्जैन का रास्ता बताया और आशीर्वाद दिया।

 

दो-तीन वाक्यों में प्रश्न और उत्तर –

प्रश्न – राजा भोज अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए क्या उपाय करते थे?

उत्तर – राजा भोज भेष बदलकर अपनी प्रजा के बीच जाते थे ताकि वे बिना किसी डर के अपनी समस्याएँ बता सकें। वे रात में घूमकर यह समझने की कोशिश करते थे कि प्रजा किन कठिनाइयों का सामना कर रही है।

प्रश्न – लकड़हारिन ने राजा भोज और माघ से सीधे रास्ता क्यों नहीं बताया?

उत्तर – लकड़हारिन बुद्धिमान थी और वह चाहती थी कि राजा भोज और माघ अपनी पहचान और सच्चाई को स्वीकार करें। उसने उन्हें तर्कपूर्ण सवालों के माध्यम से अहंकार छोड़ने और विनम्रता अपनाने का पाठ पढ़ाया।

प्रश्न – राजा भोज ने जंगल में रास्ता भटक जाने के बाद क्या किया?

उत्तर – जब राजा भोज और माघ जंगल में रास्ता भूल गए, तो उन्होंने एक लकड़हारिन से रास्ता पूछा। लेकिन लकड़हारिन ने सीधे उत्तर न देकर तर्कपूर्ण उत्तरों से उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया।

प्रश्न – इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?

उत्तर – इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि हमें अहंकार से बचना चाहिए और विनम्रता को अपनाना चाहिए। साथ ही, बुद्धिमानी से सोच-विचार करके निर्णय लेने की क्षमता भी महत्वपूर्ण होती है।

प्रश्न – राजा भोज ने लकड़हारिन की बुद्धिमानी पर क्या प्रतिक्रिया दी?

उत्तर – राजा भोज लकड़हारिन की बुद्धिमानी से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने स्वीकार किया कि उनकी प्रजा में भी बहुत ज्ञान और समझ है। उन्होंने लकड़हारिन को धन्यवाद दिया और उज्जैन का रास्ता पूछकर वापस लौट गए।

You cannot copy content of this page