कौन-कौन से देश इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग करते हैं?
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) ने भारत में पुरानी मतपत्र (चुनावी प्रक्रिया) प्रणाली की जगह ले ली है। ईवीएम का इस्तेमाल वैसे तो दुनिया के कई देशों में होता है, लेकिन – इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका ने ईवीएम के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है।
चीन दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है लेकिन यह एक लोकतांत्रिक देश नहीं है इस कारण से भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश माना जाता है।
भारत में आम चुनाव 5 साल की अवधि के बाद होते हैं, लेकिन अगर सरकार 5 साल से पहले गिर जाती है तो चुनाव निर्धारित समय से पहले भी कराए जा सकते हैं।
भारत में कई वर्षों से मतपत्रों की सहायता से चुनाव कराए जाते रहे हैं, लेकिन यह प्रक्रिया बहुत महँगी, धीमी, अपारदर्शी और पर्यावरण के अनुकूल नहीं थी। इसलिए भारत के चुनाव आयोग ने ईवीएम पर स्विच करने का फैसला किया।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का पहला प्रयोग
1982 में केरल के ‘पारुर विधानसभा’ चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का पहली बार इस्तेमाल किया गया था।
इस चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की तकनीकी सफलता के बाद, भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का उपयोग 1999 के लोकसभा चुनावों में सीमित निर्वाचन क्षेत्रों में किया गया था, जबकि लोकसभा चुनाव-2004 के बाद ईवीएम का उपयोग लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों में व्यापक रूप से किया जाता है।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के बारे में;
भारत में उपयोग की जाने वाली ईवीएम में अधिकतम 2,000 वोट दर्ज किए जा सकते हैं। इन ईवीएम को चुनाव आयोग की तकनीकी विशेषज्ञ समिति (टीईसी) ने दो सार्वजनिक उपक्रमों, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), बैंगलोर और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECOL), हैदराबाद के सहयोग से डिजाइन किया है।
इन ईवीएम की एक अच्छी विशेषता यह है कि इनके संचालन में बिजली की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि इनमें पहले से ही बैटरी बैकअप सिस्टम होता है। इसलिए इन मशीनों की मदद से उन इलाकों में चुनाव कराया जा सकता है जहाँ बिजली नहीं है।
एम2 ईवीएम उपरोक्त में से कोई नहीं None of the Above (NOTA) सहित अधिकतम 64 उम्मीदवारों की जरूरतों को पूरा कर सकती हैं।
एक बैलेटिंग यूनिट में 16 उम्मीदवारों के लिए प्रावधान है। यदि उम्मीदवारों की कुल संख्या 16 से अधिक है, तो 4 बैलेटिंग यूनिटों को जोड़कर अधिकतम 64 उम्मीदवारों तक अधिक बैलेटिंग यूनिटें जोड़ी जा सकती हैं।
(एम2 ईवीएम की कीमत 8670 रुपए/ईवीएम थी जबकि एम3 ईवीएम की कीमत अस्थायी रूप से लगभग 17,000 रुपए प्रति यूनिट तय की गई है।)
दुनिया भर में ईवीएम
यह बात बेहद दिलचस्प है कि दुनिया के अलग-अलग इलाकों में ईवीएम के इस्तेमाल को लेकर अलग-अलग रुझान देखने को मिलते हैं। एक तरफ यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कुछ देश ईवीएम प्रणाली से दूर हो रहे हैं तो वहीं दक्षिण अमेरिका और एशिया के कुछ देश ईवीएम में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
आँकड़ों के अनुसार; 31 देशों ने ईवीएम का इस्तेमाल किया या उसका अध्ययन किया, जिसमें केवल 4 देश ने इसका इस्तेमाल किया, 11 देशों ने कुछ हिस्सों या छोटे चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल किया। 5 देशों इसे पायलट आधार (प्रायोगिक आधार पर) पर इस्तेमाल कर रहे हैं, 3 देशों ने इसे बंद कर दिया है और 11 देश जिन्होंने इसे पायलट आधार पर इस्तेमाल किया था, उन्होंने इसका इस्तेमाल बंद करने का फैसला किया है।
भारत ने जॉर्डन, मालदीव, नामीबिया, मिस्र, भूटान और नेपाल को ईवीएम से संबंधित तकनीकी सहायता दी है। इन देशों में भूटान, नेपाल और नामीबिया भारत में बनी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग कर रहे हैं।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग ब्राजील, भारत और फिलीपींस सहित दुनिया के कुछ सबसे बड़े लोकतंत्रों देशों में किया जाता है। कुछ अन्य देश हैं;
1. बेल्जियम
2. एस्तोनिया
3. वेनेज़ुएला
4. संयुक्त अरब अमीरात
5. जॉर्डन
6. मालदीव
7. नामिबिया
8. मिस्र
9. भूटान
10. नेपाल
किन प्रमुख देशों में ईवीएम का इस्तेमाल नहीं होता है?
इलेक्ट्रॉनिक मशीनों के माध्यम से चुनावों की सुरक्षा, सटीकता, विश्वसनीयता और सत्यापन के बारे में दुनिया भर में गंभीर संदेह उठाए जाते हैं। यह आश्चर्य की बात है कि दुनिया के कुछ प्रमुख विकसित देश भी ईवीएम की तकनीक पर भरोसा नहीं करते हैं।
इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों ने ईवीएम के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में ई-वोटिंग का एकमात्र रूप ईमेल या फैक्स के माध्यम से है। तकनीकी रूप से, मतदाता को एक मतपत्र भेजा जाता है, वे इसे भरते हैं, इसे ईमेल द्वारा लौटाते हैं, या अपनी पसंद के निशान के साथ मतपत्र की एक डिजिटल फोटो फैक्स करते हैं।
अक्टूबर 2006 में, नीदरलैंड ने ईवीएम के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया। वर्ष 2009 में, आयरलैंड गणराज्य ने इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसके बाद उसी वर्ष इटली ने इसका पालन किया।
मार्च 2009 में, जर्मनी के सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि ईवीएम के माध्यम से मतदान असंवैधानिक था। कोर्ट का मानना था कि चुनावों में पारदर्शिता लोगों का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन ‘दक्षता’ संवैधानिक रूप से संरक्षित मूल्य नहीं है।
यह पहली बार नहीं है जब देश में ईवीएम को लेकर बहस छिड़ी हो। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने ये मुद्दा 2009 में उठाया था हालाँकि उस समय वह भाजपा के साथ नहीं थे और केंद्र में कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी। हालाँकि अब स्वामीजी इस मुद्दे पर शांत हैं जबकि अन्य राजनीतिक दल ईवीएम पर प्रतिबंध लगाने की माँग कर रहे हैं।
दरअसल, यह कहना सही होगा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि चुनाव किस माध्यम से कराया जाए, लेकिन हर हाल में लोकतंत्र की जीत होनी चाहिए।