मनोहर श्याम जोशी
(सन् 1924 – 1992)
जन्म सन् 1935, कुमाऊँ में। हिंदी के प्रसिद्ध पत्रकार और टेलीविज़न धारावाहिक लेखक। लखनऊ विश्वविघालय से विज्ञान स्नातक। दिनमान पत्रिका में सहायक संपादक और साप्ताहिक हिंदुस्तान में संपादक के रूप में कार्य। सन् 84 में भारतीय दूरदर्शन के प्रथम धारावाहिक हम लोग के लिए कथा—पटकथा लेखन शुरू करने के बाद से मृत्युपर्यंत स्वतंत्र लेखन। प्रमुख रचनाएँ : कुरु कुरु स्वाहा, कसप, हरिया हरक्यूलीज़ की हैरानी, हमज़ाद, क्याप (कहानी संग्रह); एक दुर्लभ व्यक्तित्व, कैसे किस्सागो, मंदिर घाट की पौड़ियाँ, ट—टा प्रोफ़ेसर षष्ठी वल्लभ पंत, नेताजी कहिन, इस देश का यारों क्या कहना (व्यंग्य—संग्रह); बातों—बातों में, इक्कीसवीं सदी (साक्षात्कार—लेख—संग्रह); लखनऊ मेरा लखनऊ, पश्चिमी जर्मनी पर एक उड़ती नज़र (संस्मरण—संग्रह); हम लोग, बुनियाद, मुंगेरी लाल के हसीन सपने (टेलीविज़न धारावाहिक)। क्याप के लिए 2005 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित। निधन सन् 2006, दिल्ली में।
‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ का प्रतिपाद्य
सिल्वर वेडिंग कहानी पीढ़ियों के अंतराल का मार्मिक चित्रण करती हुई कहानी है। आधुनिकता के दौर में यह समस्या आजकल प्रत्येक परिवार में पैदा हो गई है कि पूर्व पीढ़ी के लोग अपने बच्चों को अपने अनुसार ढालना चाहते हैं। किंतु युवा पीढ़ी अपनी पूर्व पीढ़ी के पारिवारिकों को दरकिनार करती हुई अपने ही आनंद में आधुनिक तौर-तरीकों के अनुसार जीवन जीना चाहती है और ऐसे में संबंधों में परस्पर तनाव तथा द्वेष का वातावरण पैदा हो जाता है। यहाँ दोनों ही पीढ़ियों को एक दूसरे का मनोविज्ञान समझने की आवश्यकता है और एक समन्वय की स्थिति अपनाने की आवश्यकता है, ताकि संस्कार भी बने रहें, आधुनिकता भी बनी रहे और परिवार भी बने रहें।
‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ का सारांश
यह लंबी कहानी लेखक की अन्य रचनाओं से कुछ अलग दिखाई देती है। आधुनिकता की ओर बढ़ता हमारा समाज एक ओर कई नई उपलब्धियों को समेटे हुए है तो दूसरी ओर मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने वाले मूल्य कहीं घिसते चले गए हैं। ‘जो हुआ होगा’ और ‘समहाउ इंप्रापर’ ये दो जुमले इस कहानी के बीज वाक्य हैं। ‘जो हुआ होगा में’ यथास्थितिवाद यानी ज्यों-का-त्यों स्वीकार लेने का भाव है तो ‘समहाउ इंप्रापर’ में एक अनिर्णय की स्थिति भी है। ये दोनों ही भाव इस कहानी के मुख्य चरित्र यशोधर बाबू के भीतर के द्वंद्व हैं। वे इन स्थितियों का जिम्मेदार भी किसी व्यक्ति को नहीं ठहराते। वे अनिर्णय की स्थिति में हैं।
दफ़्तर में सेक्शन अफ़सर यशोधर पंत ने जब आखिरी फ़ाइल का काम पूरा किया तो दफ़्तर की घड़ी में पाँच बजकर पच्चीस मिनट हुए थे। वे अपनी घड़ी सुबह-शाम रेडियो समाचारों से मिलाते हैं, इसलिए वे दफ़्तर की घड़ी को सुस्त बताते हैं। इनके कारण ही अधीनस्थ कर्मचारियों को भी पाँच बजे के बाद भी रुकना पड़ता है। वापसी के समय वे किशन दा की उस परंपरा का निर्वाह करते हैं जिसमें जूनियरों से हल्का मजाक किया जाता है। दफ़्तर में नए असिस्टेंट चड्ढा की चौड़ी मोहरी वाली पतलून और ऊँची एड़ी वाले जूते पंत जी को ‘समहाउ इंप्रापर’ मालूम होते हैं। उस चड्ढा ने थोड़ी बदतमीजीपूर्ण व्यवहार करते हुए पंत जी की चूनेदानी अर्थात् हाथ घड़ी का हाल पूछा। पंत जी ने उसे जवाब दिया। फिर चड्ढा ने पंत जी की कलाई थाम ली और कहा कि यह पुरानी है। अब तो डिजिटल जापानी घड़ी ले लो। सस्ती मिल जाती है। पंत जी उसे बताते हैं कि यह घड़ी उन्हें शादी में मिली है। यह घड़ी भी उनकी तरह ही पुरानी हो गई है। अभी तक यह सही समय बता रही है। इस तरह जवाब देने के बाद एक हाथ बढ़ाने की परंपरा पंत जी ने अल्मोड़ा के रेम्जे स्कूल में सीखी थी। वे ऐसा करके कुछ ख्यालों में खो गए। ऐसी परंपरा किशन दा के क्वार्टर में भी थी जहाँ यशोधर को शरण मिली थी। किशन दा कुँआरे थे और पहाड़ी लड़कों को आश्रय देते थे। पंत जी जब दिल्ली आए थे तो उनकी उम्र सरकारी नौकरी के लिए कम थी। तब किशन दा ने उन्हें मैस का रसोइया बनाकर रख लिया। उन्होंने यशोधर को कपड़े बनवाने व घर पैसा भेजने के लिए पचास रुपये दिए। इस तरह वे स्मृतियों में खोए हुए थे कि तभी चड्ढा की आवाज से वे जाग्रत हुए और मेनन द्वारा शादी के संबंध में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए कहने लगे नाव लेट मी सी, आई वॉज़ मैरिड ऑन सिक्स्थ फरवरी नाइंटीन फोर्टी सेवन।’
मेनन ने उन्हें ‘सिल्वर वैडिंग की बधाई दी। यशोधर खुश होते हुए झेंपे और झेंपते हुए खुश हुए। फिर भी वे इन सब बातों को अंग्रेजों के चोंचले बताते हैं, किंतु चड्ढा उनसे चाय-मट्ठी व लड्डू की माँग करता है। यशोधर जी दस रुपये का नोट चाय के लिए देते हैं, परंतु उन्हें यह ‘समहाउ इंप्रॉपर फाइंड’ लगता है। अतः सारे सेक्शन के आग्रह पर भी वे चाय पार्टी में शरीक नहीं होते है। चडढ़ा के जोर देने पर वे बीस रुपये और दे देते हैं, किंतु आयोजन में सम्मिलित नहीं होते। उनके साथ बैठकर चाय-पानी और गप्प-गप्पाष्टक में वक्त बरबाद करना उनकी परंपरा के विरुद्ध है।
यशोधर बाबू ने इधर रोज बिड़ला मंदिर जाने और उसके उद्यान में बैठकर प्रवचन सुनने या स्वयं ही प्रभु का ध्यान लगाने की नई रीति अपनाई है। यह बात उनकी पत्नी व बच्चों को अखरती थी। क्योंकि वे बुजुर्ग नहीं थे। बिड़ला मंदिर से उठकर वे पहाड़गंज जाते और घर के लिए साग-सब्जी लाते। इसी समय वे मिलने वालों से मिलते थे। घर पर वे आठ बजे से पहले नहीं पहुँचते थे।
आज यशोधर जब बिड़ला मंदिर जा रहे थे तो उनकी नजर किशन दा के तीन बेडरूम वाले क्वार्टर पर पड़ी। अब वहाँ छह-मंजिला मकान बन रहा है। उन्हें बहुमंजिली इमारतें अच्छी नहीं लग रही थीं। यही कारण है कि उन्हें उनके पद के अनुकूल एंड्रयूजगंज, लक्ष्मीबाई नगर पर डी-2 टाइप, अच्छे क्वार्टर मिलने का ऑफ़र भी स्वीकार्य नहीं है और वे यहीं बसे रहना चाहते हैं। यही कारण था कि जब उनका क्वार्टर टूटने लगा तब उन्होंने शेष क्वार्टरों में से एक अपने नाम एलॉट करवा लिया। वे किशन दा की स्मृति के लिए यहीं रहना चाहते थे।
पिछले कई वर्षों से यशोधर बाबू का अपनी पत्नी व बच्चों से हर छोटी-बड़ी बात पर मतभेद होने लगा है। इसी वजह से उन्हें घर जल्दी लौटना अच्छा नहीं लगता था। उनका बड़ा लड़का एक प्रमुख विज्ञापन संस्था में नौकरी पर लग गया था। यशोधर बाबू को यह भी ‘समहाउ इंप्रोपर’ लगता था क्योंकि यह कंपनी शुरू में ही डेढ़ हजार रुपये प्रतिमाह वेतन देती थी। उन्हें कुछ गड़बड़ी लगती थी। उनका दूसरा बेटा आईएएस की तैयारी कर रहा था। उसका एलाइड सर्विसेज में न जाना भी उनको समझ में नहीं आता। उनका तीसरा बेटा स्कॉलरशिप लेकर अमेरिका चला गया है। उनकी एकमात्र बेटी शादी से इनकार करती है। साथ ही वह डॉक्टरी की उच्चतम शिक्षा के लिए अमेरिका जाने की धमकी भी देती है। वे अपने बच्चों की तरक्की से खुश हैं, परंतु उनके साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाते।
यशोधर की पत्नी संस्कारों से आधुनिक नहीं है, परंतु बच्चों के दबाव से वह मॉडर्न बन गई है। शादी के समय भी उसे संयुक्त परिवार का दबाव झेलना पड़ा था। यशोधर ने उसे आचार-व्यवहार के बंधनों में रखा था। अब वह बच्चों का पक्ष लेती है तथा खुद भी अपनी सहूलियत के हिसाब से यशोधर की बातें मानने की बात कहती है। यशोधर उसे ‘शानयल बुढ़िया’, ‘चटाई का लहँगा’ या ‘बूढ़ी मुँह मुँहासे, लोग करें तमासे’ कहकर उसके विद्रोह का मजाक उड़ाते हैं, परंतु वे खुद ही तमाशा बनकर रह गए हैं। किशन दा के क्वार्टर के सामने खड़े होकर वे सोचते हैं कि वे शादी न करके पूरा जीवन समाज को समर्पित कर देते तो अच्छा होता।
यशोधर ने सोचा कि किशन दा का बुढ़ापा कभी सुखी नहीं रहा। उनके तमाम साथियों ने मकान ले लिए। रिटायरमेंट के बाद किसी ने भी उन्हें अपने पास रहने की पेशकश नहीं की। स्वयं यशोधर भी यह पेशकश नहीं कर पाए क्योंकि वे शादीशुदा थे। किशन दा कुछ समय किराये के मकान में रहे और फिर अपने गाँव लौट गए। सालभर बाद उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें कोई बीमारी भी नहीं हुई थी। यशोधर को इसका कारण भी पता नहीं। वे किशन दा की यह बात याद रखते थे कि जिम्मेदारी पड़ने पर हर व्यक्ति समझदार हो जाता है।
वे मन-ही-मन यह स्वीकार करते थे कि दुनियादारी में उनके बीवी-बच्चे अधिक सुलझे हुए हैं, परंतु वे अपने सिद्धांत नहीं छोड़ सकते। वे मकान भी नहीं लेंगे। किशन दा कहते थे कि मूरख लोग मकान बनाते हैं, सयाने उनमें रहते हैं। रिटायरमेंट होने पर गाँव के पुश्तैनी घर चले जाओ। वे इस बात को आज भी सही मानते हैं। उन्हें पता है कि गाँव का पुश्तैनी घर टूट-फूट चुका है तथा उस पर अनेक लोगों का हक है। उन्हें लगता है कि रिटायरमेंट से पहले कोई लड़का सरकारी नौकरी में आ जाएगा और क्वार्टर उनके पास रहेगा। ऐसा न होने पर क्या होगा, इसका जवाब उनके पास नहीं होता।
बिड़ला मंदिर के प्रवचनों में उनका मन नहीं लगा। उम्र ढलने के साथ किशन दा की तरह रोज मंदिर जाने, संध्या-पूजा करने और गीता – प्रेस गोरखपुर की किताबें पढ़ने का यत्न करने लगे। मन के विरोध को भी वे अपने तकों से खत्म कर देते हैं। गीता के पाठ में ‘जनार्दन’ शब्द सुनने से उन्हें अपने जीजा जनार्दन जोशी की याद आई। उनकी चिट्ठी से पता चला कि वे बीमार है। यशोधर बाबू अहमदाबाद जाना चाहते हैं, परंतु पत्नी व बच्चे उनका विरोध करते हैं। यशोधर खुशी-गम के हर मौके पर रिश्तेदारों के यहाँ जाना जरूरी समझते हैं तथा बच्चों को भी वैसा बनाने की इच्छा रखते हैं। किंतु उस दिन हद हो गई जिस दिन कमाऊ बेटे ने यह कह दिया कि “आपको बुआ को भेजने के लिए पैसे मैं तो नहीं दूँगा।”
यशोधर की पत्नी का कहना है कि उन्होंने बचपन में कुछ नहीं देखा। माँ के मरने के बाद विधवा बुआ ने यशोधर का पालन-पोषण किया। मैट्रिक पास करके दिल्ली में किशन दा के पास रहे। वे भी कुँवारे थे तथा उन्हें भी कुछ नहीं पता था। अत: वे नए परिवर्तनों से वाकिफ़ नहीं थे। उन्हें धार्मिक प्रवचन सुनते हुए भी पारिवारिक चिंतन में डूबा रहना अच्छा नहीं लगा। ध्यान लगाने का कार्य रिटायरमेंट के बाद ठीक रहता है। इस तरह की तमाम बातें यशोधर बाबू के मस्तिष्क में घूमती रहती हैं।
जब तक किशन दा दिल्ली में रहे, तब तक यशोधर बाबू ने उनके पट्टशिष्य और उत्साही कार्यकर्ता की भूमिका पूरी निष्ठा से निभाई। उनके जाने के बाद घर में होली गवाना, रामलीला के अभ्यास के लिए क्वार्टर का एक कमरा देना, ‘जन्यो पुन्यू’ के दिन सब कुमाऊँनियों को जनेऊ बदलने के लिए घर बुलाना आदि कार्य वे पत्नी व बच्चों के विरोध के बावजूद करते हैं। वे यह भी चाहते हैं कि बच्चे उनसे सलाह लें, परंतु बच्चे उन्हें सदैव उपेक्षित करते हैं। प्रवचन सुनने के बाद यशोधर बाबू सब्जी मंडी गए। वे चाहते थे कि उनके लड़के घर का सामान खुद लाएँ, परंतु उनकी आपस की लड़ाई से उन्होंने इस विषय को उठाना ही बंद कर दिया। बच्चे चाहते थे कि वे इन कामों के लिए नौकर रख लें। यशोधर को यह भी ‘समहाउ इंप्रॉपर’ मालूम होता है कि उनका बेटा अपना वेतन उन्हें दे। क्या वह ज्वाइंट एकाउंट नहीं खोल सकता था? उनके ऊपर, वह हर काम अपने पैसे से करने की धौंस देता है। घर में वह तमाम परिवर्तन अपने पैसों से कर रहा है। वह हर चीज पर अपना हक समझता है। सब्जी लेकर वे अपने क्वार्टर पहुँचे। वहाँ एक तख्ती पर लिखा था – वाई.डी. पंत | उन्हें पहले गलत जगह आने का धोखा हुआ। घर के बाहर एक कार थी। कुछ स्कूटर, मोटर-साइकिलें थीं तथा लोग विदा ले-दे रहे थे। बाहर बरामदे में रंगीन कागजों की झालरें व गुब्बारे लटक रहे थे। उन्होंने अपने बेटे को कार में बैठे किसी साहब से हाथ मिलाते देखा। उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उन्होंने अपनी पत्नी व बेटी को बरामदे में खड़ा देखा जो कुछ मेमसाबों को विदा कर रही थीं। लड़की जींस व बगैर बाँह का टॉप पहने हुए थी। पत्नी ने होंठों पर लाली व बालों में खिजाब लगाया हुआ था। यशोधर को यह सब ‘समहाउ इंप्रापर’ लगता था।
यशोधर चुपचाप घर पहुँचे तो बड़े बेटे ने देर से आने का उलाहना दिया। यशोधर ने शर्मीली-सी हँसी हँसते हुए पूछा कि हम लोगों के यहाँ सिल्वर वैडिंग कब से होने लगी है? यशोधर के दूर के भांजे ने कहा, “जबसे तुम्हारा बेटा डेढ़ हजार महीने कमाने लगा है, तब से।” यशोधर को अपनी सिल्वर वैडिंग की यह पार्टी भी अच्छी नहीं लगी। उन्हें यह मलाल था कि सुबह ऑफ़िस जाते समय तक किसी ने उनसे इस आयोजन की चर्चा नहीं की थी। उनके पुत्र भूषण ने जब अपने मित्रों-सहयोगियों से यशोधर बाबू का परिचय करवाया तो उस समय उन्होंने प्रयास किया कि भले ही वे संस्कारी कुमाऊँनी हैं तथापि विलायती रीति-रिवाज भी अच्छी तरह परिचित होने का एहसास कराएँ। बच्चों के आग्रह पर यशोधर बाबू अपनी शादी की सालगिरह पर केक काटने के स्थान पर जाकर खड़े हो गए। फिर बेटी के कहने पर उन्होंने केक भी काटा, जबकि उन्होंने कहा – ‘समहाउ आई डोंट लाइक आल दिस।” परंतु उन्होंने केक नहीं खाया क्योंकि इसमें अंडा होता है। अधिक आग्रह पर उन्होंने यह कहा कि मैंने अभी तक संध्या न नहीं ड़ी है और वे पूजा में चले गए। आज उन्होंने पूजा में देर लगाई ताकि अधिकतर मेहमान चले जाएँ। यहाँ भी उन्हें किशन दा दिखाई दिए। उन्होंने पूछा कि ‘जो हुआ होगा’ से आप कैसे मर गए? किशन दा कह रहे थे कि भाऊ सभी जन इसी ‘जो हुआ होगा’ से मरते हैं चाहे वह गृहस्थ हो या ब्रहमचारी, अमीर हो या गरीब शुरू और आखिर में सब अकेले ही होते हैं।
यशोधर बाबू को लगता है कि किशन दा आज भी उनका मार्गदर्शन करने में सक्षम हैं और यह बताने में भी कि मेरे बीवी-बच्चे जो कुछ भी कर रहे हैं, उनके विषय में मेरा रवैया क्या होना चाहिए? किशन दा अकेलेपन का राग अलाप रहे थे। उनका मानना था कि यह सब माया है। जो भूषण आज इतना उछल रहा है, वह भी किसी दिन इतना ही अकेला और असहाय अनुभव करेगा, जितना कि आज तू कर रहा है। इस बीच यशोधर की पत्नी ने वहाँ आकर झिड़कते हुए पूछा कि आज पूजा में ही बैठे रहोगे। मेहमानों के जाने की बात सुनकर वे लाल गमछे में ही बैठक में चले गए। बच्चे इस परंपरा के सख्त खिलाफ़ थे। उनकी बेटी इस बात पर बहुत झल्लाई। टेबल पर रखे प्रेजेंट खोलने की बात कही। भूषण उनको खोलता है कि यह ऊनी ड्रेसिंग गाउन है। सुबह दूध लाने के समय आप फटा हुआ पुलोवर पहनकर चले जाते हैं, वह बुरा लगता है। बेटी पिता का पाजामा – कुर्ता उठा लाई कि इसे पहनकर गाउन पहनें। बच्चों के आग्रह पर वे गाउन पहन लेते हैं। उनकी आँखों की कोर में जरा-सी नमी चमक गई। यह कहना कठिन है कि उनको भूषण की यह बात चुभ गई कि आप इसे पहनकर दूध लेने जाया करें। वह स्वयं दूध लाने की बात नहीं कर रहा।
सिल्वर वैडिंग
जब सेक्शन आफ़िसर वाई.डी. (यशोधर) पंत ने आखिरी फ़ाइल का लाल फीता बाँधकर निगाह मेज़ से उठाई तब दफ़् तर की पुरानी दीवार घड़ी पाँच बजकर पच्चीस मिनट बजा रही थी। उनकी अपनी कलाई घड़ी में साढ़े पाँच बज रहे थे। पंतजी अपनी घड़ी रोज़ाना सुबह-शाम रेडियो समाचारों से मिलाते हैं इसलिए उन्होंने दफ़् तर की घड़ी को ही सुस्त ठहराया। फ़ाइल आउट ट्रे में डालकर उन्होंने एक निगाह अपने मातहतों पर डाली जो उनके ही कारण पाँच बजे के बाद भी दफ़् तर में बैठने को मजबूर होते हैं। चलते-चलते जूनियरों से कोई मनोरंजक बात कर दिन भर के शुष्क व्यवहार का निराकरण कर जाने की कृष्णानंद (किशनदा) पांडे से मिली हुई परंपरा का पालन करते हुए उन्होंने कहा, “आप लोगों की देखादेखी सेक्शन की घड़ी भी सुस्त हो गई है!”
सीधे ‘असिस्टेंट ग्रेड’ में आए नए छोकरे चड्ढा ने, जिसकी चौड़ी मोहरीवाली पतलून और ऊँची एड़ी वाले जूते पंतजी को, ‘सम हाउ इंप्रापर’ मालूम होते हैं, थोड़ी बदतमीज़ी-सी की। ‘ऐज यूजुअल’ बोला, “बड़े बाऊ, आपकी अपनी चूनेदानी का क्या हाल है? वक्त सही देती है?”
पंतजी ने चड्ढा की धृष्टता को अनदेखा किया और कहा, “मिनिट-टू-मिनिट करेक्ट चलती है।”
चड्ढा ने कुछ और धृष्ट होकर पंतजी की कलाई थाम ली। इस तरह की धृष्टता का प्रकट विरोध करना यशोधर बाबू ने छोड़ दिया है। मन-ही-मन वह उस ज़माने की याद ज़रूर करते हैं जब दफ़्तर में वह किशनदा को भाई नहीं ‘साहब’ कहते और समझते थे। घड़ी की ओर देखकर वह बोला, “बाबा आदम के ज़माने की है बड़े बाऊ यह तो! अब तो डिजिटल ले लो एक जापानी। सस्ती मिल जाती है।”
“यह घड़ी मुझे शादी में मिली थी। हम पुरानी चाल के, हमारी घड़ी पुरानी चाल की। अरे यही बहुत है कि अब तक ‘राईट टाईम’ चल रही है – क्यों कैसी रही?”
इस तरह का नहले पर दहला जवाब देते हुए एक हाथ आगे बढ़ा देने की परंपरा थी, रेम्जे स्कूल, अल्मोड़ा में जहाँ से कभी यशोधर बाबू ने मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। इस तरह के आगे बढ़े हुए हाथ पर सुनने वाला बतौर दाद अपना हाथ मारा करता था और वक्ता-श्रोता दोनों ठठाकर हाथ मिलाया करते थे। ऐसी ही परंपरा किशनदा के क्वार्टर में भी थी जहाँ रोज़ी-रोटी की तलाश में आए यशोधर पंत नामक एक मैट्रिक पास बालक को शरण मिली थी कभी। किशनदा कुँआरे थे और पहाड़ से आए हुए कितने ही लड़के ठीक-ठिकाना होने से पहले उनके यहाँ रह जाते थे। मैस जैसी थी। मिलकर लाओ, पकाओ, खाओ। यशोधर बाबू जिस समय दिल्ली आए थे उनकी उम्र सरकारी नौकरी के लिए कम थी। कोशिश करने पर भी ‘बॉय सर्विस’ में वह नहीं लगाए जा सके। तब किशनदा ने उन्हें मैस का रसोइया बनाकर रख लिया। यही नहीं, उन्होंने यशोधर को पचास रुपये उधार भी दिए कि वह अपने लिए कपड़े बनवा सके और गाँव पैसा भेज सके। बाद में इन्हीं किशनदा ने अपने ही नीचे नौकरी दिलवाई और दफ़्तरी जीवन में मार्ग-दर्शन किया।
चड्ढा ने ज़ोर से कहा, “बड़े बाऊ, आप किन खयालों में खो गए? मेनन पूछ रहा है कि आपकी शादी हुई कब थी?”
यशोधर बाबू ने सकपकाकर अपना बढ़ा हुआ हाथ वापस खींचा और मेनन से मुखातिब होकर बोले, “नाव लैट मी सी, आई वॉज़ मैरिड ऑन सिक्स्थ फ़रवरी नाइंटिन फ़ोर्टी सेवन।” मेनन ने फ़ौरन हिसाब लगाया और चहककर बोला, “मैनी हैप्पी रिटर्न्स आफ़ द डे सर! आज तो आपका ‘सिल्वर वैडिंग’ है। शादी को पूरा पच्चीस साल हो गया।”
यशोधर जी खुश होते हुए झेंपे और झेंपते हुए खुश हुए। यह अदा उन्होंने किशनदा से सीखी थी।
चड्ढा ने घंटी बजाकर चपरासी को बुलाया और कहा, “सुन भई भगवानदास, बड़े बाऊ से बड़ा नोट ले और सारे सेक्शन के लिए चा-पानी का इंतज़ाम कर फटाफट।”
यशोधर जी बोले, “अरे ये ‘वैडिंग एनिवर्सरी’ वगैरह सब गोरे साहबों के चोंचले हैं – हमारे यहाँ थोड़ी मानते हैं।”
चड्ढा बोले, “मिक्चर मत पिलाइए गुरुदेव। चाय-मट्ठी -लड्डू बस इतना ही तो सौदा है। इनमें कौन आपकी बड़ी माया निकली जानी है।”
यशोधर बाबू ने जेब से बटुआ और बटुए में से दस का नोट निकाला और कहा, “आप लोग चाय पीजिए, ‘दैट’ तो ‘आई डू नाट माइंड’, लेकिन जो हमारे लोगों में ‘कस्टम’ नहीं है, उस पर ‘इनसिस्ट’ करना, ‘दैट’ मैं ‘समहाउ इंप्रॉपर फ़ाइंड’ करता हूँ।”
चड्ढा ने दस का नोट चपरासी को दिया और पुनः बड़े बाऊ के आगे हाथ फैला दिया कि एक नोट से सेक्शन का क्या बनता है? रुपये तीस हों तो चुग्गे भर का जुगाड़ करा सकें। सारा सेक्शन जानता है कि यशोधर बाबू अपने बटुए में सौ-डेढ़ सौ रुपये हमेशा रखते हैं भले ही उनका दैनिक खर्च नगण्य है। और तो और, बस-टिकट का खर्च भी नहीं। गोल मार्केट से ‘सेक्रेट्रिएट’ तक पहले साइकिल में आते-जाते थे, इधर पैदल आने-जाने लगे हैं क्योंकि उनके बच्चे आधुनिक युवा हो चले हैं और उन्हें अपने पिता का साइकिल-सवार होना सख्त नागवार गुज़रता है। बच्चों के अनुसार साइकिल तो चपरासी चलाते हैं। बच्चे चाहते हैं कि पिताजी स्कूटर ले लें। लेकिन पिताजी को ‘समहाउ’ स्कूटर निहायत बेहूदा सवारी मालूम होती है और कार जब ‘अफ़ोर्ड’ की नहीं जा सकती तब उसकी बात सोचना ही क्यों?
चड्ढा के ज़ोर देने पर बड़े बाऊ ने दस-दस के नोट दो और दे दिए लेकिन सारे सेक्शन के इसरार करने पर भी वह अपनी ‘सिल्वर वैडिंग’ की इस दावत के लिए रुके नहीं। मातहत लोगों से चलते-चलाते थोड़ा हँसी-मज़ाक कर लेना किशनदा की परंपरा में है। उनके साथ बैठकर चाय-पानी और गप्प-गप्पाष्टक में वक्त बरबाद करना उस परंपरा के विरुद्ध है।
इधर यशोधर बाबू ने दफ़् तर से लौटते हुए रोज़ बिड़ला मंदिर जाने और उसके उघान में बैठकर कोई प्रवचन सुनने अथवा स्वयं ही प्रभु का ध्यान लगाने की नयी रीत अपनाई है।
यह बात उनके पत्नी-बच्चों को बहुत अखरती है। बब्बा, आप कोई बुइे थोड़ी हैं जो रोज़-रोज़ मंदिर जाएँ, इतने ज़्यादा व्रत करें – ऐसा कहते हैं वे। यशोधर बाबू इस आलोचना को अनसुना कर देते हैं। सिद्धांत के धनी की, किशनदा के अनुसार, यही निशानी है!
बिड़ला मंदिर से उठकर यशोधर बाबू पहाड़गंज जाते हैं और घर के लिए साग-सब्ज़ी खरीद लाते हैं। किसी से मिलना-मिलाना हो तो वह भी इसी समय कर लेते हैं। तो भले ही दफ़् तर पाँच बजे छूटता हो वह घर आठ बजे से पहले नहीं पहुँचते।
आज बिड़ला मंदिर जाते हुए यशोधर बाबू की निगाह उस अहाते पर पड़ी जिसमें कभी किशनदा का तीन बैडरूम वाला क्वार्टर हुआ करता था और जिस पर इन दिनों एक छह मंज़िला इमारत बनाई जा रही है। इधर से गुज़रते हुए कभी के ‘डी.आई.जैड.’ एरिया की बदलती शक्ल देखकर यशोधर बाबू को बुरा-सा लगता है। ये लोग सारा गोल मार्केट क्षेत्र तोड़कर यहाँ एक मंज़िला क्वार्टरों की जगह ऊँची इमारतें बना रहे हैं। यशोधर बाबू को पता नहीं कि वे लोग ठीक कर रहे हैं कि गलत कर रहे हैं। उन्हें यह ज़रूर पता है कि उनकी यादों के गोल मार्केट के ढहाए जाने का गम मनाने के लिए उनका इस क्षेत्र में डटे रहना निहायत ज़रूरी है। उन्हें एंड्रयूज़गंज, लक्ष्मीबाई नगर, पंडारा रोड आदि नयी बस्तियों में पद की गरिमा के अनुरूप डी-2 टाइप क्वार्टर मिलने की अच्छी खबर कई बार आई है मगर हर बार उन्होंने गोल मार्केट छोड़ने से इंकार कर दिया है। जब उनका क्वार्टर टूटने का नंबर आया तब भी उन्होंने इसी क्षेत्र की इन बस्तियों में बचे हुए क्वार्टरों में एक अपने नाम अलाट करा लिया। पत्नी के यह पूछने पर कि जब यह भी टूट जाएगा तब क्या करोगे? उन्होंने कहा – तब की तब देखी जाएगी। कहा और उसी तरह मुसकुराए जिस तरह किशनदा यही फ़िकरा कह कर मुसकुराते थे।
सच तो यह है कि पिछले कई वर्षों से यशोधर बाबू का अपनी पत्नी और बच्चों से हर छोटी-बड़ी बात में मतभेद होने लगा है और इसी वजह से वह घर जल्दी लौटना पसंद नहीं करते। जब तक बच्चे छोटे थे तब तक वह उनकी पढ़ाई-लिखाई में मदद कर सकते थे। अब बड़ा लड़का एक प्रमुख विज्ञापन संस्था में नौकरी पा गया है। यघपि ‘समहाउ’ यशोधर बाबू को अपने साधारण पुत्र को असाधारण वेतन देने वाली यह नौकरी कुछ समझ में आती नहीं।
वह कहते हैं कि डेढ़ हज़ार रुपया तो हमें अब रिटायरमेंट के पास पहुँच कर मिला है, शुरू में ही डेढ़ हज़ार रुपया देने वाली इस नौकरी में ज़रूर कुछ पेंच होगा। यशोधर जी का दूसरा बेटा दूसरी बार आई.ए.एस. देने की तैयारी कर रहा है और यशोधर बाबू के लिए यह समझ सकना असंभव है कि जब यह पिछले साल ‘एलाइड सर्विसेज़’ की सूची में, माना काफ़ी नीचे आ गया था, तब इसने ‘ज्वाइन’ करने से इंकार क्यों कर दिया? उनका तीसरा बेटा स्कालरशिप लेकर अमरीका चला गया है और उनकी एकमात्र बेटी न केवल तमाम प्रस्तावित वर अस्वीकार करती चली जा रही है बल्कि डाक्टरी की उच्चतम शिक्षा के लिए स्वयं भी अमरीका चले जाने की धमकी दे रही है। यशोधर बाबू जहाँ बच्चों की इस तरक्की से खुश होते हैं वहाँ ‘समहाउ’ यह भी अनुभव करते हैं कि वह खुशहाली भी कैसी जो अपनों में परायापन पैदा करे। अपने बच्चों द्वारा गरीब रिश्तेदारों की उपेक्षा उन्हें ‘समहाउ’ जँचती नहीं। ‘एनीवे – जेनरेशनों में गैप तो होता ही है सुना’ – ऐसा कहकर स्वयं को दिलासा देता है पिता।
यद्यपि यशोधर बाबू की पत्नी अपने मूल संस्कारों से किसी भी तरह आधुनिक नहीं है तथापि बच्चों की तरफ़दारी करने की मातृसुलभ मजबूरी ने उन्हें भी मॉड बना डाला है। कुछ यह भी है कि जिस समय उनकी शादी हुई थी यशोधर बाबू के साथ गाँव से आए ताऊजी और उनके दो विवाहित बेटे भी रहा करते थे। इस संयुक्त परिवार में पीछे ही पीछे बहुओं में गज़ब के तनाव थे लेकिन ताऊजी के डर से कोई कुछ कह नहीं पाता था। यशोधर बाबू की पत्नी को शिकायत है कि संयुक्त परिवार वाले उस दौर में पति ने हमारा पक्ष कभी नहीं लिया, बस जिठानियों की चलने दी। उनका यह भी कहना है कि मुझे आचार-व्यवहार के ऐसे बंधनों में रखा गया मानो मैं जवान औरत नहीं, बुढ़िया थी। जितने भी नियम इनकी बुढ़िया ताई के लिए थे, वे सब मुझ पर भी लागू करवाए – ऐसा कहती है घरवाली बच्चों से। बच्चे उससे सहानुभूति व्यक्त करते हैं। फिर वह यशोधर जी से उन्मुख होकर कहती है – तुम्हारी ये बाबा आदम के ज़माने की बातें मेरे बच्चे नहीं मानते तो इसमें उनका कोई कसूर नहीं। मैं भी इन बातों को उसी हद तक मानूँगी जिस हद तक सुभीता हो। अब मेरे कहने से वह सब ढोंग-ढकोसला हो नहीं सकता – साफ़ बात।
धर्म-कर्म, कुल-परंपरा सबको ढोंग-ढकोसला कहकर घरवाली आधुनिकाओं-सा आचरण करती है तो यशोधर बाबू ‘शानयल बुढ़िया’, ‘चटाई का लँहगा’ या ‘बूढ़ी मुँह मुँहासे, लोग करें तमासे’ कहकर उसके विद्रोह को मज़ाक में उड़ा देना चाहते हैं, अनदेखा कर देना चाहते हैं लेकिन यह स्वीकार करने को बाध्य भी हो जाते हैं कि तमाशा स्वयं उनका बन रहा है।
जिस जगह किशनदा का क्वार्टर था उसके सामने खड़े होकर एक गहरा निःश्वास छोड़ते हुए यशोधर जी ने अपने से पूछा कि क्या यह ‘बैटर’ नहीं रहता कि किशनदा की तरह, घर-गृहस्थी का बवाल ही न पाला होता और ‘लाइफ़’ कम्यूनिटी के लिए ‘डेडीकेट’ कर दी होती।
फिर उनका ध्यान इस ओर गया कि बाल-जती किशनदा का बुढ़ापा सुखी नहीं रहा। उसके तमाम साथियों ने हौज़खास, ग्रीनपार्क , कैलाश कहीं-न-कहीं ज़मीन ली, मकान बनवाया, लेकिन उसने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। रिटायर होने के छह महीने बाद जब उसे क्वार्टर खाली करना पड़ा तब, हद हो गई, उसके द्वारा उपकृत इतने सारे लोगों में से एक ने भी उसे अपने यहाँ रखने की पेशकश नहीं की। स्वयं यशोधर बाबू उसके सामने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं रख पाए क्योंकि उस समय तक उनकी शादी हो चुकी थी और उनके दो कमरों के क्वार्टर में तीन परिवार रहा करते थे। किशनदा कुछ साल राजेंद्र नगर में किराए का क्वार्टर लेकर रहा और फिर अपने गाँव लौट गया जहाँ साल भर बाद उसकी मृत्यु हो गई। ज़्यादा पेंशन खा नहीं सका बेचारा! विचित्र बात यह है कि उसे कोई भी बीमारी नहीं हुई। बस रिटायर होने के बाद मुरझाता-सूखता ही चला गया। जब उसके एक बिरादर से मृत्यु का कारण पूछा तब उसने यशोधर बाबू को यही जवाब दिया, “जो हुआ होगा।” यानी ‘पता नहीं, क्या हुआ।’
जिन लोगों के बाल-बच्चे नहीं होते, घर परिवार नहीं होता उनकी रिटायर होने के बाद ‘जो हुआ होगा’ से भी मौत हो जाती है – यह जानते हैं यशोधर जी! बच्चों का होना भी ज़रूरी है। यह सही है कि यशोधर जी के बच्चे मनमानी कर रहे हैं और ऐसा संकेत दे रहे हैं कि उनके कारण यशोधर जी को बुढ़ापे में कोई विशेष सुख प्राप्त नहीं होगा लेकिन यशोधर जी अपने मर्यादा पुरुष किशनदा से सुनी हुई यह बात नहीं भूले हैं कि गधा-पचीसी में कोई क्या करता है इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि बाद में हर आदमी समझदार हो जाता है। यघपि युवा यशोधर को विश्वास नहीं होता तथापि किशनदा बताते हैं कि किस तरह मैंने जवानी में पचासों किस्म की खुराफ़ात की है। ककड़ी चुराना, गर्दन मोड़ के मुर्गी मार देना, पीछे की खिड़की से कूद कर सेकेंड शो सिनेमा देख आना – कौन करम ऐसा है जो तुम्हारे इस किशनदा ने नहीं कर रखा।
ज़िम्मेदारी सर पर पड़ेगी तब सब अपने ही आप ठीक हो जाएँगे, यह भी किशनदा से विरासत में मिला हुआ एक फ़िकरा है जिसे यशोधर बाबू अकसर अपने बच्चों के प्रसंग में दोहराते हैं। उन्हें कभी-कभी लगता है कि अगर मेरे पिता तब नहीं गुज़र गए होते जब मैं मैट्रिक में था तो शायद मैं भी गधा-पचीसी के लंबे दौर से गुज़रता। ज़िम्मेदारी सर पर जल्दी पड़ गई तो जल्दी ही ज़िम्मेदार आदमी भी बन गया। जब तक बाप है तब तक मौज कर ले। यह बात यशोधर जी कभी-कभी तंज़िया1 कहते हैं। लेकिन कहते हुए उनके चेहरे पर जो मुसकान खेल जाती है वह बच्चों पर यह प्रकट करती है कि बाप को उनका सनाथ होना, गैर-ज़िम्मेदार होना, कुल मिलाकर अच्छा लगता है।
यशोधर बाबू कभी-कभी मन ही मन स्वीकार करते हैं कि दुनियादारी में बीवी-बच्चे उनके अधिक सुलझे हुए हो सकते हैं लेकिन दो के चार करने वाली दुनिया ही उन्हें कहाँ मंज़ूर है जो उसकी रीत मंज़ूर करें। दुनियादारी के हिसाब से बच्चों का यह कहना सही हो सकता है कि बब्बा ने डी.डी.ए. फ़् लैट के लिए पैसा न भर के भयंकर भूल की है किंतु ‘समहाउ’ यशोधर बाबू को किशनदा की यह उक्ति अब भी जँचती है – मूरख लोग मकान बनाते हैं, सयाने उनमें रहते हैं। जब तक सरकारी नौकरी तब तक सरकारी क्वार्टर। रिटायर होने पर गाँव का पुश्तैनी घर। बस!
गाँव का पुश्तैनी घर टूट-फूट चुका है और उस पर इतने लोगों का हक है कि वहाँ जाकर बसना, मरम्मत की ज़िम्मेदारी ओढ़ना और बेकार के झगड़े मोल लेना होगा – इस बात को यशोधर जी अच्छी तरह समझते हैं। बच्चे बहस में जब यह तर्क दोहराते हैं तब उनसे कोई जवाब देते नहीं बनता। उन्होंने हमेशा यही कल्पना की थी और आज भी करते हैं, कि उनका कोई लड़का रिटायर होने से पहले सरकारी नौकरी में आ जाएगा और क्वार्टर उनके परिवार के पास बना रह सकेगा। अब भी पत्नी द्वारा भविष्य का प्रश्न उठाए जाने पर यशोधर बाबू इस संभावना को रेखांकित कर देते हैं। जब पत्नी कहती है, ‘अगर ऐसा नहीं हुआ तो? आदमी को तो हर तरह से सोचना चाहिए।’ तब यशोधर बाबू टिप्पणी करते हैं कि सब तरह से सोचने वाले हमारी बिरादरी में नहीं होते हैं। उसमें तो एक की तरह से सोचने वाले होते हैं। कहते हैं और कहकर लगभग नकली-सी हँसी हँसते हैं।
जितना ही इस लोक की ज़िंदगी यशोधर बाबू को यह नकली हँसी हँसने के लिए बाध्य कर रही है उतना ही वह परलोक के बारे में उत्साही होने का यत्न कर रहे हैं। तो उन्होंने बिड़ला मंदिर की ओर तेज़ कदम बढ़ाए, लक्ष्मी-नारायण के आगे हाथ जोड़े, असीक का फूल चुटिया में खोंसा और पीछे से उस प्रांगण में जा पहुँचे जहाँ एक महात्मा जी गीता पर प्रवचन कर रहे थे।
अफ़सोस, आज प्रवचन सुनने में यशोधर जी का मन खास लगा नहीं। सच तो यह है कि वह भीतर से बहुत ज़्यादा धार्मिक अथवा कर्मकांडी हैं नहीं। हाँ इस संबंध में अपने मर्यादा पुरुष किशनदा द्वारा स्थापित मानक हमेशा उनके सामने रहे हैं। जैसे-जैसे उम्र ढल रही है वैसे-वैसे वह भी किशनदा की तरह रोज़ मंदिर जाने, संध्या-पूजा करने और गीता प्रेस गोरखपुर की किताबें पढ़ने का यत्न करने लगे हैं। अगर कभी उनका मन शिकायत करता कि इस सब में लग नहीं पा रहा हूँ तब उससे कहते कि भाई लगना चाहिए। अब तो माया-मोह के साथ-साथ भगवत्-भजन को भी कुछ स्थान देना होगा कि नहीं? नयी पीढ़ी को देकर राजपाट तुम लग जाओ बाट वन-प्रदेश की। जो करते हैं, जैसा करते हैं, करें। हमें तो अब इस ‘व-रल्ड’ की नहीं उसकी, इस ‘लाइफ़’ की नहीं, उसकी चिंता करनी है वैसे अगर बच्चे सलाह माँगे अनुभव का आदर करें तो अच्छा लगता है। अब नहीं माँगते तो न माँगें।
यशोधर बाबू ने फिर अपने को झिड़का कि यह भी क्या हुआ कि मन को समझाने में फिर भटक गए। गीता महिमा सुनो।
सुनने लगे मगर व्याख्या में जनार्दन शब्द जो सुनाई पड़ा तो उन्हें अपने जीजा जनार्दन जोशी की याद हो आई। परसों ही कार्ड आया है कि उनकी तबीयत खराब है। यशोधर बाबू सोचने लगे कि जीजाजी का हाल पूछने अहमदाबाद जाना ही होगा। ऐसा सोचते ही उन्हें यह भी खयाल आया कि यह प्रस्ताव उनकी पत्नी और बच्चों को पसंद नहीं आएगा, सारा संयुक्त परिवार बिखर गया है। पत्नी और बच्चों की धारणा है कि इस बिखरे परिवार के प्रति यशोधर जी का एकतरफ़ा लगाव आर्थिक दृष्टि से सर्वथा मूर्खतापूर्ण है। यशोधर जी खुशी-गम के हर मौके पर रिश्तेदारों के यहाँ जाना ज़रूरी समझते हैं। वह चाहते हैं कि बच्चे भी पारिवारिकता के प्रति उत्साही हों। बच्चे क्रुद्ध ही होते हैं। अभी उस दिन हद हो गई। कमाऊ बेटे ने यह कह दिया कि आपको बुआ को भेजने के लिए पैसे मैं तो नहीं दूँगा। यशोधर बाबू को कहना पड़ा कि अभी तुम्हारे बब्बा की इतनी साख है कि सौ रुपये उधार ले सकें।
यशोधर जी का नारा, ‘हमारा तो सैप ही ऐसा देखा ठहरा’ – हमें तो यही परंपरा विरासत में मिली है। इस नारे से उनकी पत्नी बहुत चिढ़ती है। पत्नी का कहना है, और सही कहना है कि यशोधर जी का स्वयं का देखा हुआ कुछ नहीं है। माँ के मर जाने के बाद छोटी-सी उम्र में वह गाँव छोड़कर अपनी विधवा बुआ के पास अल्मोड़ा आ गए थे। बुआ का कोई ऐसा लंबा-चौड़ा परिवार तो था नहीं जहाँ कि यशोधर जी कुछ देखते और परंपरा के रंग में रंगते। मैट्रिक पास करते ही वह दिल्ली आ गए और यहाँ रहे कुँवारे कृष्णानंद जी के साथ। कुँवारे की गिरस्ती में देखने को होता क्या है? पत्नी आग्रहपूर्वक कहती है कि कुछ नहीं तुम अपने उन किशनदा के मुँह से सुनी-सुनाई बातों को अपनी आँखों देखी यादें बना डालते हो किशनदा को जो भी मालूम था। वह उनका पुराने गँवई लोगों से सीखा हुआ ठहरा। दिल्ली आकर उन्होंने घर-परिवार तो बसाया नहीं जो जान पाते कि कौन से रिवाज निभ सकते हैं, कौन से नहीं। पत्नी का कहना है कि किशनदा तो थे ही जनम के बूढ़े, तुम्हें क्या सुर लगा जो उनका बुढ़ापा खुद ओढ़ने लगे हो? तुम शुरू में तो ऐसे नहीं थे, शादी के बाद मैंने तुम्हें देख जो क्या नहीं रखा हैं हफ़्ते में दो-दो सिनेमा देखते थे, गज़ल गाते थे गज़ल! गज़ल हुई और सहगल के गाने।
यशोधर बाबू स्वीकार करते हैं कि उनमें कुछ परिवर्तन हुआ है लेकिन वह समझते हैं कि उम्र के साथ-साथ बुज़ुर्गियत आना ठीक ही है। पत्नी से वह कहते हैं कि जिस तरह तुमने बुढ़याकाल यह बगैर बाँह का ब्लाउज पहनना, यह रसोई से बाहर दाल-भात खा लेना, यह ऊँची हील वाली सैंडल पहनना, और ऐसे ही पचासों काम अपनी बेटी की सलाह पर शुरू कर दिए हैं, मुझे तो वे ‘समहाउ इंप्रॉपर’ ही मालूम होते हैं। एनीवे मैं तुम्हें ऐसा करने से रोक नहीं रहा। देयरफोर तुम लोगों को भी मेरे जीने के ढंग पर कोई एतराज़ होना नहीं चाहिए। यशोधर बाबू को धार्मिक प्रवचन सुनते हुए भी अपना पारिवारिक चिंतन में ध्यान डूबा रहना अच्छा नहीं लगा। सुबह-शाम संध्या करने के बाद जब वह थोड़ा ध्यान लगाने की कोशिश करते हैं तब भी मन किसी परम सत्ता में नहीं, इसी परिवार में लीन होता है। यशोधर जी चाहते हैं कि ध्यान लगाने की सही विधि सीखें तथा साथ ही वह अपने से भी कहते हैं कि परहैप्स ऐसी चीज़ के लिए रिटायर होने के बाद का समय ही प्रॉपर ठहरा। वानप्रस्थ के लिए प्रैसक्राइब्ड ठहरी ये चीज़ें। वानप्रस्थ के लिए यशोधर बाबू का अपने पुश्तैनी गाँव जाने का इरादा है रिटायर होकर। फार प्रथम द मैडिंग क्राउड – समझे!
इस तरह की तमाम बातें यशोधर बाबू पैदाइशी बुज़ुर्गवार किशनदा के शब्दों में और उनके ही लहजे में कहा करते हैं और कह कर उनकी तरह की वह झेंपी-सी लगभग नकली-सी हँसी हँस देते हैं। जब तक किशनदा दिल्ली में रहे यशोधर बाबू नित्य नियम से हर दूसरी शाम उनके दरबार में हाज़िरी लगाने पहुँचते रहे।
स्वयं किशनदा हर सुबह सैर से लौटते हुए अपने इस मानस पुत्र के क्वार्टर में झाँकना और ‘हैल्दी-वैल्दी एंड वाइज़’ बन रहा है न भाऊ – ऐसा कहना कभी नहीं भूलते। जब यशोधर बाबू दिल्ली आए थे तब उनकी सुबह थोड़ी देर से उठने की आदत थी। किशनदा ने उन्हें रोज़ सुबह झकझोर कर उठाना और साथ सैर में ले जाना शुरू किया और यह मंत्र दिया कि ‘अरली टू बैड एंड अरली टू राइज मेक्स ए मैन हैल्दी एंड वाइज़!’ जब यशोधर बाबू अलग क्वार्टर में रहने लगे और अपनी गृहस्थी में डूब गए तब भी किशनदा ने यह देखते रहना ज़रूरी समझा कि भाऊ यानी बच्चा सवेरे जल्दी उठता है कि नहीं? यशोधर बाबू को यह अच्छा लगता था कि कोई उन्हें भाऊ कहता है। हर सवेरे वह किशनदा से अनुरोध करते किशनदा को घर और दफ़्तर में विभिन्न रूपों में देखा है लेकिन किशनदा की जो छवि उनके मन में बसी हुई है वह सुबह की सैर को निकले किशनदा की ही है, कुर्ते-पजामे के ऊपर ऊनी गाउन पहने, सिर पर गोल विलायती टोपी और पाँवों में देशी खड़ाऊँ धारण किए हुए और हाथ में (कुत्तों को भगाने के लिए) एक छड़ी लिए हुए।
जब तक किशनदा दिल्ली में रहे तब तक यशोधर बाबू ने उनके प ‘शिष्य और उत्साही कार्यकर्ता की भूमिका पूरी निष्ठा से निभाई। किशनदा के चले जाने के बाद उन्होंने ही उनकी कई परंपराओं को जीवित रखने की कोशिश की और इस कोशिश में पत्नी और बच्चों को नाराज़ किया। घर में होली गवाना, ‘जन्यो पुन्यूं’ के दिन सब कुमाउँनियों को जनेऊ बदलने के लिए अपने घर आमंत्रित करना, रामलीला की तालीम के लिए क्वार्टर का एक कमरा दे देना – ये और ऐसे ही कई और काम यशोधर बाबू ने किशनदा से विरासत में लिए थे। उनकी पत्नी और बच्चों को इन आयोजनों पर होने वाला खर्च और इन आयोजनों में होने वाला शोर, दोनों ही सख्त नापसंद थे। बदतर यही कि इन आयोजनों के लिए समाज में भी कोई खास उत्साह रह नहीं गया है।
यशोधर जी चाहते हैं कि उन्हें समाज का सम्मानित बुज़ुर्ग माना जाए लेकिन जब समाज ही न हो तो यह पद उन्हें क्योंकर मिले? यशोधर जी कहते हैं कि बच्चे मेरा आदर करें और उसी तरह हर बात में मुझसे सलाह लें जिस तरह मैं किशनदा से लिया करता था। यशोधर बाबू डेमोक्रेट बाबू हैं और हरगिज़ यह दुराग्रह नहीं करना चाहते कि बच्चे उनके कहे को पत्थर की लकीर समझें। लेकिन यह भी क्या हुआ कि पूछा न ताछा, जिसके मन में जैसा आया करता रहा। ग्रांटेड तुम्हारी नॉलेज ज़्यादा होगी लेकिन एक्सपीरिएंस का कोई सबस्टीट्यूट ठहरा नहीं बेटा। मानो न मानो, झूठे मुँह से सही, एक बार पूछ तो लिया करो – ऐसा कहते हैं यशोधर बाबू और बच्चे यही उत्तर देते हैं, “बब्बा, आप तो हद करते हैं, जो बात आप जानते ही नहीं आपसे क्यों पूछें?”
प्रवचन सुनने के बाद यशोधर बाबू सब्ज़ीमंडी गए। यशोधर बाबू को अच्छा लगता अगर उनके बेटे बड़े होने पर अपनी तरफ़ से यह प्रस्ताव करते कि दूध लाना, राशन लाना, सीजी. एच. एस. डिस्पेंसरी से दवा लाना, सदर बाज़ार जाकर दालें लाना, पहाड़गंज से सब्ज़ी लाना, डिपो से कोयला लाना ये सब काम आप छोड़ दें, अब हम कर दिया करेंगे, एकाध बार बेटों से खुद उन्होंने ही कहा तब वे एक-दूसरे से कहने लगे कि तू किया कर, तू क्यों नहीं करता? इतना कुहराम मचा और लड़कों ने एक-दूसरे को इतना ज़्यादा बुरा-भला कहा कि यशोधर बाबू ने इस विषय को उठाना भी बंद कर दिया। जब से बेटा विज्ञापन कंपनी में बड़ी नौकरी पर गया है तब से बच्चों का इस प्रसंग में एक ही वक्तव्य है-“बब्बा, हमारी समझ में नहीं आता कि इन कामों के लिए आप एक नौकर क्यों नहीं रख लेते? ईजा को भी आराम हो जाएगा।” कमाऊ बेटा नमक छिड़कते हुए यह भी कहता है कि नौकर की तनख्वाह मैं दे दूँगा।
यशोधर बाबू को यही ‘समहाउ इंप्रापर’ मालूम होता है कि उनका बेटा अपना वेतन उनके हाथ में नहीं रखे। यह सही है कि वेतन स्वयं बेटे के अपने हाथ में नहीं आता, एकाउंट ट्रांसफर द्वारा बैंक में जाता है। लेकिन क्या बेटा बाप के साथ ज्वाइंट एकाउंट नहीं खोल सकता था? झूठे मुँह से ही सही, एक बार ऐसा कहता तो! तिस पर बेटे का अपने वेतन को अपना समझते हुए बार-बार कहना कि यह काम मैं अपने पैसे से करने को कह रहा हूँ, आपके से नहीं जो आप नुक्ताचीनी करें। इस क्रम में बेटे ने पिता का यह क्वार्टर तक अपना बना लिया है। अपना वेतन अपने ढंग से वह इस घर पर खर्च कर रहा है। कभी कारपेट बिछवा रहा है, कभी पर्दे लगवा रहा है। कभी सोफ़ा आ रहा है कभी डनलपवाला डबल बैड और सिंगार मेज़। कभी टी. वी., कभी फ्रिज क्या हुआ यह? और ऐसा भी नहीं कहता कि लीजिए पिता जी मैं आपके लिए यह टी. वी. ले आया। कहता यही है कि मेरा टी. वी. है समझे, इसे कोई न छुआ करे! क्वार्टर ही उसका हो गया! यह अच्छी रही। अब इनका एक नौकर भी रखो घर में। इनका नौकर होगा तो इनके लिए ही होगा। हमारे लिए तो क्या होगा – ऐसा समझाते हैं यशोधर बाबू घरवाली को। काम सब अपने हाथ से ठीक ही होते हैं। नौकरों को सौंपा कारोबार चौपट हुआ। कहते हैं यशोधर बाबू, पत्नी सुनती है मगर नहीं सुनती। पर सुनकर अब चिढ़ती भी नहीं।
सब्ज़ी का झोला लेकर यशोधर बाबू खुदी हुई सड़कों और टूटे हुए क्वार्टरों के मलबे से पटे हुए लानों को पार करके स्क्वायर के उस कोने में पहुँचे जिसमें तीन क्वार्टर अब भी साबुत खड़े हुए थे। उन तीन में से कुल एक को अब तक एक सिलसिला आबाद किए हुए है। बाहर बदरंग तख्ती में उसका नाम लिखा है – वाई.डी. पंत। इस क्वार्टर के पास पहुँचकर आज वाई.डी. पंत को पहले धोखा हुआ कि किसी गलत जगह आ गए हैं। क्वार्टर के बाहर एक कार थी, कुछ स्कूटर-मोटर साइकिल, बहुत से लोग विदा ले-दे रहे थे। बाहर बरामदे में रंगीन कागज़ की झालरें और गुब्बारे लटके हुए थे और रंग-बिरंगी रोशनियाँ जली हुई थीं।
फिर उन्हें अपना बड़ा बेटा भूषण पहचान में आया जिससे कार में बैठा हुआ कोई साहब हाथ मिला रहा था और कह रहा था, “गिव माई वार्म रिगार्ड्स टू योर फ़ादर।”
यशोधर बाबू ठिठक गए। उन्होंने अपने से पूछा – क्यों, आज मेरे क्वार्टर में यह क्या हो रहा होगा? उसका जवाब भी उन्होंने अपने को दिया – जो करते होंगे यह लौंडे-मौंडे, इनकी माया यही जानें।
अब यशोधर बाबू का ध्यान इस ओर गया कि उनकी पत्नी और उनकी बेटी भी कुछ मेमसाबों को विदा करते हुए बरामदे में खड़ी हैं, लड़की जीन और बगैर बाँह का टाप पहने है। यशोधर बाबू उससे कई मर्तबा कह चुके हैं कि तुम्हारी यह पतलून और सैंडो बनने वाली ड्रैस मुझे तो समहाउ इंप्रापर मालूम होती है। लेकिन वह भी ज़िद्दी ऐसी है कि इसे ही पहनती है और पत्नी भी उसी की तरफ़दारी करती है, कहती है – वह सिर पर पल्लू-वल्लू मैंने कर लिया बहुत तुम्हारे कहने पर समझे, मेरी बेटी वही करेगी जो दुनिया कर रही है। पुत्री का पक्ष लेने वाली यह पत्नी इस समय ओठों पर लाली और बालों पर खिज़ाब लगाए हुए थी जबकि ये दोनों ही चीज़ें आप कुछ भी कहिए, यशोधर बाबू को ‘समहाउ इंप्रापर’ ही मालूम होती हैं।
आधुनिक किस्म के अजनबी लोगों की भीड़ देखकर यशोधर बाबू अँधेरे में ही दुबके रहे। उनके बच्चों को इसलिए शिकायत है कि बब्बा तो एल.डी.सी. टाइपों से ही मिक्स करते हैं।
जब कार वाले लोग चले गए तब यशोधर बाबू ने अपने क्वार्टर में कदम रखने का साहस जुटाया। भीतर अब भी पार्टी चल रही थी।
उनके पुत्र-पुत्रियों के कई मित्र तथा उनके कुछ रिश्तेदार जमे हुए थे। उनके बड़े बेटे ने झिड़की-सी सुनाई, “बब्बा, आप भी हद करते हैं। सिल्वर वैडिंग के दिन साढ़े आठ बजे घर पहुँचे हैं। अभी तक मेरे बॉस आपकी राह देख रहे थे।”
“हम लोगों के यहाँ सिल्वर वैडिंग कब से होने लगी है।” यशोधर बाबू ने शर्मीली हँसी हँस दी।
“जब से तुम्हारा बेटा डेढ़ हज़ार माहवार कमाने लगा, तब से।” यह टिप्पणी थी चंद्रदत्त तिवारी की जो इसी साल एस.ए.एस. पास हुआ है और दूर के रिश्ते से यशोधर बाबू का भांजा लगता है।
यशोधर बाबू को अपने बेटों से तमाम तरह की शिकायतें हैं लेकिन कुल मिलाकर उन्हें यह अच्छा लगता है कि लोग – बाग उन्हें ईर्ष्या का पात्र समझते हैं। भले ही उन्हें भूषण का गैर-सरकारी नौकरी करना समझ में न आता हो तथापि वह यह बखूबी समझते हैं कि इतनी छोटी उम्र में डेढ़ हज़ार माहवार प्लस कनवेएंस एलाउंस एंड तुम्हारा अदर पर्क्स पा जाना कोई मामूली बात नहीं है। इसी तरह भले ही यशोधर बाबू ने बेटों की खरीदी हुई हर नयी चीज़ के संदर्भ में यही टिप्पणी की हो कि ये क्या हुई, समहाउ मेरी तो समझ में आता नहीं, इसकी क्या ज़रूरत थी, तथापि उन्हें कहीं इस बात से थोड़ी खुशी भी होती है कि इस चीज़ के आ जाने से उन्हें नए दौर के, निश्चय ही गलत, मानकों के अनुसार बड़ा आदमी मान लिया जा रहा है। मिसाल के लिए जब बेटों ने गैस का चूल्हा जुटाया तब यशोधर बाबू ने उसका विरोध किया और आज भी वह यही कहते हैं कि इस पर बनी रोटी मुझे तो समहाउ रोटी जैसी लगती नहीं, तथापि वह जानते हैं, गैस न होने पर वह इस नगर में चपरासी श्रेणी के मान लिए जाते। इसी तरह फ्रिज के संदर्भ में आज भी यशोधर बाबू यही कहते हैं कि मेरी समझ में आज तक यह नहीं आया कि इसका फ़ायदा क्या है? बासी खाना खाना अच्छी आदत नहीं ठहरी। और यह ठहरा इसी काम का कि सुबह बना के रख दिया और शाम को खाया। इस में रखा हुआ पानी भी मेरे मन तो आता नहीं, गला पकड़ लेता है। कहते हैं मगर इस बात से संतुष्ट होते हैं कि घर आए साधारण हैसियत वाले मेहमान इस फ्रिज का पानी पीकर अपने को धन्य अनुभव करते हैं। अपनी सिल्वर वैडिंग की यह भव्य पार्टी भी यशोधर बाबू को समहाउ इंप्रापर ही लगी तथापि उन्हें इस बात से संतोष हुआ कि जिस अनाथ यशोधर के जन्मदिन पर कभी लड्डू नहीं आए, जिसने अपना विवाह भी कोऑपरेटिव से दो-चार हज़ार कर्ज़ा निकालकर किया बगैर किसी खास धूमधाम के, उसके विवाह की पच्चीसवीं वर्षगाँठ पर केक, चार तरह की मिठाई, चार तरह की नमकीन, फल, कोल्डड्रिंक्स, चाय सब कुछ मौजूद है।
गिरीश बोला, मुझे आज सुबह बैठे-बैठे याद आया कि आपकी शादी छह फ़रवरी सन् सैंतालीस को हुई थी और इस हिसाब से आज उसे पच्चीस साल पूरे हो गए हैं। मैंने आपके दफ़्तर फ़ोन किया लेकिन शायद आपका फ़ोन खराब था। तब मैंने भूषण को फ़ोन किया। भूषण ने कहा, शाम को आ जाइए पार्टी करते हैं। मैं अपने बॉस को भी बुला लूँगा इसी बहाने।” गिरीश यशोधर बाबू की पत्नी का चचेरा भाई है। बड़ी कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर है और इसकी सहायता से ही यशोधर बाबू के बेटे को अपना यह संपन्न साला समहाउ भयंकर ओछाट यानी ओछेपन का धनी मालूम होता है। उन्हें लगता है कि इसी ने भूषण को बिगाड़ दिया है। कभी कहते हैं ऐसा तो पत्नी बरस पड़ती है – ज़िंदगी बना दी तुम्हारे सेकेंड क्लास बी.ए. बेटे की, कहते हो बिगाड़ दिया।
भूषण ने अपने मित्रों-सहयोगियों का यशोधर बाबू से परिचय कराना शुरू किया। उनकी “मैनी हैप्पी रिटर्न्स ऑफ़ द डे” का “थैंक्यू” कहकर जवाब देते हुए, जिन लोगों का नाम पहले बता दिया गया हो उनकी ओर “वाई.डी. पंत, होम मिनिस्टरी, भूषण्स फ़ादर” कहकर स्वयं हाथ बढ़ाते हुए यशोधर बाबू ने हरचंद यह जताने की कोशिश की कि भले ही वह संस्कारी कुमाऊँनी है तथापि विलायती रीति-रिवाज से भी भली भाँति परिचित हैं। किशनदा कहा करते थे कि आना सब कुछ चाहिए, सीखना हर एक की बात ठहरी, लेकिन अपनी छोड़नी नहीं हुई। टाई-सूट पहनना आना चाहिए लेकिन धोती-कुर्ता अपनी पोशाक है यह नहीं भूलना चाहिए।
अब बच्चों ने एक और विलायती परंपरा के लिए आग्रह किया – यशोधर बाबू अपनी पत्नी के साथ केक काटें। घरवाली पहले थोड़ा शरमाई लेकिन जब बेटी ने हाथ खींचा तब उसे केक के पीछे जा खड़ी होने में कोई हिचक नहीं हुई, वहीं से उसने पति को भी पुकारा।
यशोधर बाबू को केक काटना बचकानी बात मालूम हुई। बेटी उन्हें लगभग खींचकर ले गई। यशोधर बाबू ने कहा, “समहाउ आई डोंट लाइक आल दिस।” लेकिन एनीवे उन्होंने केक काट ही दिया। गिरीश ने उनकी यह अनमनी किंतु संतुष्ट छवि कैमरे में कैद कर ली। अब पति-पत्नी से कहा गया कि वे केक से मुँह मीठा करें एक-दूसरे का। पत्नी ने खा लिया मगर यशोधर बाबू ने इंकार कर दिया। उनका कहना था कि मैं केक खाता नहीं, इसमें अंडा पड़ा होता है। उन्हें याद दिलाया गया कि अभी कुछ वर्षों पहले तक आप मांसाहारी थे, एक टुकड़ा केक खा लेने में क्या हो जाएगा? लेकिन वह नहीं माने। तब उनसे अनुरोध किया गया कि लड्डू ही खा लें। भूषण के एक मित्र ने लड्डू उठाकर उनके मुँह में ठूँसने का यत्न किया लेकिन यशोधर बाबू इसके लिए भी राज़ी नहीं हुए। उनका कहना था कि मैंने अब तक संध्या नहीं की है। इस पर भूषण ने झुँझलाकर कहा, “तो बब्बा, पहले जाकर संध्या कीजिए, आपकी वजह से हम लोग कब तक रुके रहेंगे।”
“नहीं, नहीं, आप सब लोग खाइए,” यशोधर बाबू ने बच्चों के दोस्तों से कहा, “प्लीज़ गो अहेड। नो फ़ारमैल्टी।”
यशोधर बाबू ने आज पूजा में कुछ ज़्यादा ही देर लगाई। इतनी देर कि ज़्यादातर मेहमान उठ कर चले जाएँ।
उनकी पत्नी, उनके बच्चे, बारी-बारी से आकर झाँकते रहे और कहते रहे, जल्दी कीजिए मेहमान लोग जा रहे हैं।
शाम की पंद्रह मिनट की पूजा को लगभग पच्चीस मिनट तक खींच लेने के बाद भी जब बैठक से मेहमानों की आवाज़ें आती सुनाई दी तब यशोधर बाबू पद्मासन साधकर ध्यान लगाने बैठ गए, वह चाहते थे कि उन्हें प्रकाश का एक नीला बिंदु दिखाई दे, मगर उन्हें किशनदा दिखाई दे रहे थे।
यशोधर बाबू किशनदा से पूछ रहे थे कि ‘जो हुआ होगा’ से आप कैसे मर गए? किशनदा कह रहे थे कि भाऊ सभी जन इसी ‘जो हुआ होगा’ से मरते हैं, गृहस्थ हों, ब्रह्मचारी हों, अमीर हों, गरीब हों, मरते ‘जो हुआ होगा’ से ही हैं। हाँ-हाँ, शुरू में और आखिर में, सब अकेले ही होते हैं। अपना कोई नहीं ठहरा दुनिया में, बस अपना नियम अपना हुआ।
यशोधर बाबू ने पाजामा-कुर्ते पर ऊनी ड्रेसिंग गाउन पहने, सिर पर गोल विलायती टोपी, पाँवों में देशी खड़ाऊँ और हाथ में डंडा धारण किए इस किशनदा से अकेलेपन के विषय में बहस करनी चाही। उनका विरोध करने के लिए नहीं बल्कि बात कुछ और अच्छी तरह समझने के लिए।
हर रविवार किशनदा शाम को ठीक चार बजे यशोधर बाबू के घर आया करते थे। उनके लिए गरमा-गरम चाय बनवाई जाती थी। उनका कहना था कि जिसे फूँक मारकर न पीना पड़े वह चाय कैसी। चाय सुड़कते हुए किशनदा प्रवचन करते थे और यशोधर बाबू बीच-बीच में शंकाएँ उठाते थे।
यशोधर बाबू को लगता है कि किशनदा आज भी मेरा मार्ग-दर्शन कर सकेंगे और बता सकेंगे कि मेरे बीवी-बच्चे जो कुछ भी कर रहे हैं उसके विषय में मेरा रवैया क्या होना चाहिए?
लेकिन किशनदा तो वही अकेलेपन का खटराग अलापने पर आमादा से मालूम होते हैं। कैसी बीवी, कहाँ के बच्चे, यह सब माया ठहरी और यह जो भूषण आज इतना उछल रहा है वह भी किसी दिन इतना ही अकेला और असहाय अनुभव करेगा, जितना कि आज तू कर रहा है।
यशोधर बाबू बात आगे बढ़ाते लेकिन उनकी घरवाली उन्हें झिड़कते हुए आ पहुँची कि क्या आज पूजा में ही बैठे रहोगे। यशोधर बाबू आसन से उठे और उन्होंने दबे स्वर में पूछा, “मेहमान गए?” पत्नी ने बताया, “कुछ गए हैं, कुछ हैं। उन्होंने जानना चाहा कि कौन-कौन हैं? आश्वस्त होने पर कि सभी रिश्तेदार ही हैं वह उसी लाल गमछे में बैठक में चले गए जिसे पहनकर वह संध्या करने बैठे थे। यह गमछा पहनने की आदत भी उन्हें किशनदा से विरासत में मिली है और उनके बच्चे इसके सख्त खिलाफ़ हैं।
“एवरीबडी गॉन, पार्टी ओवर?” यशोधर बाबू ने मुसकुराकर अपनी बेटी से पूछा, “अब गोया गमछा पहने रखा जा सकता है?”
उनकी बेटी झल्लाई, “लोग चले गए, इसका मतलब यह थोड़ी है कि आप गमछा पहनकर बैठक में आ जाएँ। बब्बा, यू आर द लिमिट।”
“बेटी, हमें जिसमें सज आएगी वही करेंगे ना, तुम्हारी तरह जीन पहनकर हमें तो सज आती – नहीं।”
यशोधर बाबू की दृष्टि मेज़ पर रखे कुछ पैकेटों पर पड़ी। बोले, “ये कौन भूले जा रहा है?”
भूषण बोला, “आपके लिए प्रेज़ेंट हैं, खोलिए ना।”
“अह, इस उम्र में क्या हो रहा है प्रेज़ेंट-वरजैंट! तुम खोलो, तुम्हीं इस्तेमाल करो।” कहकर शर्मीली हँसी हँसे।
भूषण सबसे बड़ा पैकेट उठाकर उसे खोलते हुए बोला, “इसे तो ले लीजिए। यह मैं आपके लिए लाया हूँ। ऊनी ड्रेसिंग गाउन है। आप सवेरे जब दूध लेने जाते हैं बब्बा, फटा पुलोवर पहन के चले जाते हैं जो बहुत ही बुरा लगता है। आप इसे पहन के जाया कीजिए।”
बेटी पिता का पाजामा-कुर्ता उठा लाई कि इसे पहनकर गाउन पहनें। थोड़ा-सा ना-नुच करने के बाद यशोधर जी ने इस आग्रह की रक्षा की।
गाउन का सैश कसते हुए उन्होंने कहा, “अच्छा तो यह ठहरा डे्रसिंग गाउन।”
उन्होंने कहा और उनकी आँखों की कोर में ज़रा-सी नमी चमक गई।
यह कहना मुश्किल है कि इस घड़ी उन्हें यह बात चुभ गई कि उनका जो बेटा यह कह रहा है कि आप सवेरे ड्रेसिंग गाउन पहनकर दूध लाने जाया करें, वह यह नहीं कह रहा कि दूध मैं ला दिया करूँगा या कि इस गाउन को पहनकर उनके अंगो में वह किशनदा उतर आया है जिसकी मौत ‘जो हुआ होगा’ से हुई।
शब्दार्थ
1. सिल्वर वैडिंग – शादी के 25 साल
2. सुस्त – धीमी
3. मातहत – अधीन
4. शुष्क – रूखा
5. निराकरण – समाधान
6. परंपरा – प्रथा
7. पतलून – पैंट
8. चूनेदानी – चूने को रखने का पात्र
9. धृष्टता -अशिष्टता
10. दाद – प्रशंसा
11. चोंचले – व्यवहार की बनावटी स्थिति
12. माया – धन-दौलत
13. चुग्गेभर – पेट भर
14. प्रवचन – धार्मिक व्याख्यान
15. जुगाड़ – व्यवस्था
16. नगण्य – जो गिनने योग्य न हो
17. सख्त -अत्यधिक
18. नागवार – अनुचित
19. निहायत – एकदम
20. बेहूदा -अनुचित
21. इसरार – आग्रह
22. रीत – प्रणाली
23. पेंच – कारण
24. फ़िकरा -उलाहना
25. उपेक्षा – तिरस्कार का भाव
26. दिलासा -सांत्वना
27. ताई – पिता के बड़े भाई की पत्नी
28. उपकृत – जिस पर उपकार किया गया हो
29. बिरादर – जाति-भाई
30. खुराफ़ात -ऊल-जलूल काम
31. पुश्तैनी – पैतृक
32. बाट – पगडंडी
33. रिवाज़ – परंपरा
34. लहजा – ढंग
35. भाऊ – बच्चा
36. गँवई – गाँव का
37. जन्यो पुण्यूं -जनेऊ बदलने वाली पूर्णिमा
38. कुहराम – दुख प्रकट करने के लिए किया जाने वाला
39. नुक्ताचीनी -आलोचना
40. कई मर्तबा – कितनी बार
41. खिज़ाब – बालों को काला करने वाला द्रव्य
42. माहवार – महीना
43. मिसाल – उदहारण
44. हरचंद – बहुत अधिक
45. अनमनी – उदासी भरी
46. रवैया – व्यवहार
47. आमादा – प्रस्तुत होना
पाठ ‘सिल्वर वेडिंग’ के स्मरणीय बिंदु
1. सिल्वर वेडिंग पाठ के लेखक का नाम क्या है – मनोहर श्याम जोशी
2. सिल्वर वेडिंग कहानी की मूल संवेदना क्या है – पीढ़ियों का अंतराल
3. सिल्वर वेल्डिंग पाठ किस विधा में रचित है – कहानी विधा
4. कहानी के अनुसार नई पीढ़ी किसे अधिक महत्त्व देती है – भौतिकता को
5. सिल्वर वेडिंग, शादी की कौन-सी सालगिरह होती हैं – 25वीं
6. यशोधर बाबू के विवाह की कौन सी वर्षगाँठ मनाई जा रही थी – 25वीं
7. यशोधर बाबू का विवाह कब हुआ था – 6 फरवरी 1947 को
8. यशोधर बाबू कैसे व्यक्ति थे – शांतिप्रिय , मर्यादित व संस्कारित
9. सिल्वर वेडिंग कहानी के मुख्य पात्र कौन है – यशोधर बाबू
10. यशोधर बाबू का पूरा नाम क्या है – वाई . डी .पंत
11. यशोधर बाबू किसे अपना आदर्श मानते थे – किशन दा
12. किशन दा का पूरा नाम क्या था – कृष्णानंद पांडे
13. किशनदा, यशोधर बाबू को अपना कौन सा पुत्र मानते थे – मानस पुत्र
14. किशनदा, यशोधर बाबू को क्या कहकर बुलाते थे – भाऊ (बेटा)
15. दिल्ली आकर यशोधर बाबू किसकी छत्रच्छाया में रहने लगे थे – किशन दा
16. कहानी सिल्वर वेडिंग में किशन दा की मृत्यु के संदर्भ में “जो हुआ होगा” से कहानीकार का क्या मतलब हैं – लेखक को किशन दा की मृत्यु का कारण नहीं पता था।
17. पाठ में “जो हुआ होगा” वाक्य का संबंध किसकी मृत्यु से है – किशन दा
18. “मूर्ख लोग घर बनाते हैं और सयाने लोग उसमें रहते हैं”। यह कथन किसका है – किशन दा का
19. किशन दा कैसे हृदय के व्यक्ति थे – सरल हृदय
20. यशोधर बाबू अपने परिवार को किसके संस्कारों में ढालना चाहते थे – किशन दा
21. यशोधर बाबू कैसी जिंदगी जीना चाहते थे – सादगी भरी
22. यशोधर बाबू कहाँ के रहने वाले थे – उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल के अल्मोड़ा जिले के
23. यशोधर बाबू की कितनी संतानें थी – चार (तीन बेटे और एक बेटी)
24. यशोधर बाबू सर्वप्रथम किस पद पर नियुक्त हुए – बॉय सर्विस
25. यशोधर बाबू कौन से पद पर नियुक्त थे – सेक्शन ऑफिसर
26. यशोधर बाबू को कौन-सी सवारी निहायती बेहूदा लगती है – स्कूटर
27. यशोधर बाबू अपने ऑफिस कैसे जाते थे – पैदल
28. यशोधर पंत रोजाना सुबह-शाम अपनी घड़ी किससे मिलाते थे – दीवार घड़ी से
29. दफ्तर की घड़ी में कितना समय होने पर यशोधर पंत कर्मचारियों की सुस्ती पर कटाक्ष करते हैं – 5:25
30. यशोधर बाबू अपनी पत्नी व बच्चों से क्या उम्मीद रखते थे – सम्मान की
31. अपनी पत्नी के मॉडर्न बनने पर यशोधर बाबू क्या कह कर उसका मजाक बनाते थे – चटाई का लहंगा , शायनल बुढ़िया और बूढ़ी मुँह मुहाँसे लोग करें तमाशे।
32. यशोधर बाबू की पत्नी किसका साथ देती थी – अपने बच्चों का
33. यशोधर बाबू को चड्डा की कौन सी बात “इमप्रॉपर” महसूस होती है – मोहरी वाली पतलून और ऊँची एड़ी के जूते
34. यशोधर बाबू के बड़े लड़के का क्या नाम है – भूषण
35. यशोधर बाबू का बड़ा लड़का (भूषण) क्या करता है – विज्ञापन कंपनी में नौकरी
36. यशोधर बाबू का बड़ा लड़का कितने रूपये प्रतिमाह कमाता है – 1500/-
37. यशोधर बाबू का दूसरा बेटा क्या करता है – आईएएस की तैयारी
38. यशोधर बाबू का तीसरा बेटा स्कॉलरशिप लेकर कहाँ चला गया – अमेरिका
39. यशोधर बाबू की बेटी क्या करना चाहती थी – डॉक्टरी की पढाई के लिए अमेरिका जाना चाहती थी
40. अपनी सिल्वर वेडिंग की पार्टी के लिए यशोधर बाबू ने अपने ऑफिस वालों को कितने रुपए दिए थे – 30 रूपये
41. ऑफिस से छुट्टी होने पर यशोधर बाबू कहाँ जाते थे – बिड़ला मंदिर
42. यशोधर बाबू की किससे तकरार होती रहती थी – पत्नी और बच्चों से
43. यशोधर बाबू की बेटी क्या पहनती थी – जींस
44. यशोधर पंत की पत्नी कैसे सैंडल पहनती थी – ऊँची हील वाले
45. अपने बच्चों के साथ यशोधर पंत का व्यवहार कैसा था – अलगाव भरा
46. माँ की मृत्यु के पश्चात् यशोधर पंत किसके पास रहे – अपनी बुआ के पास
47. यशोधर पंत की सिल्वर वेडिंग का प्रबंध किसने किया – भूषण ने
48. बच्चों ने सिल्वर वेडिंग के अवसर पर यशोधर बाबू को क्या उपहार दिया – ऊनी ड्रेसिंग गाउन
49. सिल्वर वेडिंग में ऊनी ड्रेसिंग गाउन उपहार लेते समय यशोधर बाबू को बेटे की कौन-सी बात चुभ गई थी – ऊनी ड्रेसिंग गाउन को पहनकर दूध लाने की बात
50. यशोधर बाबू कौन सी पीढ़ी का प्रतिनिधत्व करते हैं – पुरानी पीढ़ी का
51. यशोधर बाबू की बेटी शादी क्यों नहीं करना चाहती थी – क्योंकि वह डाक्टरी की पढाई के लिए अमेरिका जाना चाहती थी।
52. यशोधर बाबू किन वाक्यों को बार-बार दोहराते हैं – “समहाऊ इम्प्रोपर” और “जो हुआ होगा”।
53. यशोधर बाबू अपने जीजाजी का हाल- चाल पूछने के लिए कहाँ जाना चाहते थे – अहमदाबाद
54. “सिल्वर वैडिंग” की कहानी किस बारे में बताती हैं – दो पीढ़ियों (पुरानी पीढ़ी व नई पीढ़ी) के बीच के अंतराल (Generation Gap) व वैचारिक मतभेदों को दर्शाती है।
55. तंज़िया का क्या अर्थ है – व्यंगात्मक
56. यशोधर बाबू का परिवार किस संस्कृति में ढलने में सफल रहा – पाश्चात्य संस्कृति
57. गिरीश कौन था – यशोधर की पत्नी का चचेरा भाई
58. यशोधर बाबू के अनुसार कैसी विचारधारा, संस्कारों और मर्यादाओं को समाप्त कर देती है – पाश्चात्य विचारधारा
59. “हम लोगों के यहाँ सिल्वर वेडिंग कब से होने लगी”। यह कथन किसके द्वारा कहा गया है – यशोधर बाबू के द्वारा
60. सिल्वर वैडिंग पार्टी में यशोधर बाबू का व्यवहार कैसा था – विचित्र
61. यशोधर बाबू के जीवन में कौन सी तीन बातें महत्त्वपूर्ण थी- माता पिता के संस्कार, गुरुजनों की शिक्षा और साहित्य से जुड़ाव
62. “तुम्हारी यह बाबा आदम के जमाने की बातें मेरे बच्चे नहीं मानते हैं तो, इसमें उनका कोई कसूर नहीं”। यह कथन किसका हैं। – यशोधर बाबू की पत्नी का
63. पत्नी और बच्चों के द्वारा अपने घर में किए जाने वाले आयोजनों पर कौन सी चीज़ यशोधर बाबू को सख्त नापसंद थी – तरह – तरह के लोगों का घर पर आना
64. यशोधर बाबू किन लोगों को देखकर “समहाऊ ईमप्रॉपर” कहकर अपनी भावनाएँ व्यक्त करते थे – ज्यादा आधुनिक विचार वाले लोगों को
65. किशन दा की तरह यशोधर बाबू अपने घर में क्या-क्या मनाते थे – होली का उत्सव , जनेऊ पूजन व रामलीला
अभ्यास
1. यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों?
उत्तर – यशोधर बाबू बचपन से ही ज़िम्मेदारियों के बोझ से लद गए थे। बचपन में ही इनके माता-पिता का देहांत हो गया था। इनका पालन-पोषण इनकी विधवा बुआ ने किया। वे सदा पुराने लोगों के बीच पले-बढ़े। अत: वे उन मान्यताओं और परंपराओं को कभी छोड़ नहीं सके। यशोधर बाबू अपने आदर्श किशन दा से अधिक प्रभावित हैं और आधुनिक परिवेश में बदलते हुए जीवन-मूल्यों और संस्कारों के विरूद्ध हैं। दूसरी ओर, उनकी पत्नी पुराने संस्कारों की थी। वह एक संयुक्त परिवार में आई थीं, जहाँ उन्हें सुखद अनुभव नहीं हुआ। उनकी इच्छाएँ अतृप्त रहीं थीं। वे मातृ सुलभ प्रेम के कारण अपनी संतानों का पक्ष लेती हैं और बेटी के कहे अनुसार नए कपड़े पहनती हैं। वे बेटों के किसी मामले में दखल नहीं देतीं। इस प्रकार वे स्वयं को शीघ्र ही बदल लेती हैं।
2. पाठ में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य की आप कितनी अर्थ छवियाँ खोज सकते / सकती हैं?
उत्तर – ‘जो हुआ होगा’ वाक्य पाठ में पहली बार तब आता है, जब यशोधर बाबू किशनदा के जाति भाई से उनकी मृत्यु का कारण पूछते हैं। उत्तर में उन्होंने कहा ‘जो हुआ होगा’ यानी पता नहीं। फिर यशोधर बाबू यही विचार करते हैं कि जिनके बाल-बच्चे ही नहीं होते, वे व्यक्ति अकेलेपन के कारण स्वस्थ दिखने के बाद भी बीमार-से हो जाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है। यह भी कारण हो सकता है कि उनकी बिरादरी से उन्हें घोर उपेक्षा मिली हो, इस कारण वे दुखी रहने लगे और मर गए। किशनदा भी यशोधर से यही कहा करते थे कि सभी यही ‘जो हुआ होगा’ से ही मरते हैं।
3. ‘समहाउ इंप्रापर’ वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रांरभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं। इस वाक्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या संबंध बनता है?
उत्तर – यशोधर बाबू ‘समहाऊ इंप्रापर’ वाक्यांश का प्रयोग तकिया कलाम की तरह करते हैं। उन्हें जो अनुचित लगता है, तब वे यह वाक्य कहते हैं। वे पुरानी पीढ़ी के हैं तथा नए परिवेश में उन्हें कई कमियाँ नज़र आती हैं। वे नए के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते। यह वाक्य उनके असंतुलन एवं असहज व्यक्तित्व को अर्थ प्रदान करता है।
पाठ में इस वाक्यांश का प्रयोग निम्नलिखित संदर्भो में हुआ है –
1. दफ़्तर में सिल्वर वैडिंग की बात पर
2. स्कूटर की सवारी पर
3. साधारण पुत्र को असाधारण वेतन मिलने पर
4. अपनों से परायेपन का व्यवहार मिलने पर
5. डीडीए (दिल्ली डेवलेपमेंट अथॉरिटी) फ्लैट का पैसा न भरने पर
6. पुत्र द्वारा वेतन पिता को न देने पर
7. खुशहाली में रिश्तेदारों की अपेक्षा करने पर
8. पत्नी के आधुनिक बनने पर
9. शादी के संबंध में बेटी के निर्णय पर
10. घर में सिल्वर वैडिंग पार्टी पर
11. केक काटने की विदेशी परंपरा पर आदि।
4. यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा और कैसे?
उत्तर – किशनदा यशोधर बाबू के आदर्श थे। उनकी संपूर्ण शैली किशनदा से अधिक प्रभावित है। वे किशनदा से इतने अधिक प्रभावित हैं कि अपने परिवार से भी सामंजस्य नहीं बिठा पा रहे हैं। घर में छोटी-छोटी बातों को लेकर तनाव की स्थिति उत्पन्न होना कहीं-न-कहीं आपसी विचारों में सामंजस्य की कमी को दर्शाता है। कहानी के अंत में यह तथ्य भी उजागर होता है कि यशोधर बाबू संस्कारों और मर्यादाओं से जुड़े हैं। उनका मन भारतीय परिवेश के अनुकूल सोचता है, परंतु यह भी सत्य है कि वे कहीं-न-कहीं इस बात से भी खुश हैं कि उनके बच्चे उनसे अधिक सुलझे हुए हैं। मेरे जीवन पर एपीजे का बड़ा प्रभाव है। वे बड़े शिक्षाविद् थे। उन्हें जीवन की अनुभूतियों का गहन ज्ञान था। उन्हें देखकर मुझे भी आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। उनके विचार व कार्यशैली ने मुझे बहुत प्रभावित किया। उनकी किताबें सही मार्गदर्शन करने में भी सहायता प्रदान करती हैं।
5. वर्तमान समय में परिवार की संरचना, स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामंजस्य बिठा पाते हैं?
उत्तर – वर्तमान समय औद्योगिक, सूचना और तकनीकी क्रांति का युग है। मशीनीकरण और सूचना तकनीक ने संपूर्ण परिवेश को प्रभावित किया है। प्रत्येक मनुष्य की संवेदनाओं और भावनाओं में परिवर्तन आया है। पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव भारतीय पारिवारिक संरचना और स्वरूप को प्रभावित कर रहा है। पुराने समय में संयुक्त परिवार का चलन अधिक था। बच्चों का उन रिश्तों के प्रति संवेदनशील होना स्वाभाविक था। एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होना अनिवार्य था। एक-दूसरे की भावनाओं को समझना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य था, परंतु आधुनिक परिवेश में व्यक्ति केवल अपने बारे में सोचता है। आधुनिकता के दौर में, यशोधर बाबू परंपरागत मूल्यों को हर हाल में जीवित रखना चाहते हैं। उनका उसूलपसंद होना दफ़्तर एवं घर के लोगों के लिए सरदर्द बन गया था। यशोधर संस्कारों से जुड़ना चाहते हैं और संयुक्त परिवार की संवेदनाओं को अनुभव करते हैं जबकि उनके बच्चे अपने आप में जीना चाहते हैं। इसलिए ऐसा कहा जाना तर्कसंगत होगा कि अगर ताल-मेल के साथ चलना है तो पुरानी और आधुनिक के बीच सामंजस्य स्थापित करना होगा।
6. निम्नलिखित में से किसे आप कहानी की मूल संवेदना कहेंगे / कहेंगी और क्यों?
(क) हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य
(ख) पीढ़ी का अंतराल
(ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
उत्तर – मेरे उत्तर में ‘क’ और ‘ख’ दोनों ही बिंदु समाहित होंगे क्योंकि इस कहानी में अपने आदर्श किशनदा के संस्कारों और जीवन-मूल्यों से जुड़े यशोधर बाबू और उनके आधुनिक परिवेश में बड़े हो रहे बच्चों की नई सोच में अंतर को चित्रित किया गया है। यह एक तरफ तो पीढ़ी अंतराल को दर्शाती है दूसरी तरफ दुनिया को आधुनिकता की ओर बढ़ते हुए भी। ऐसे में जहाँ सभी एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगे हुए हैं वहाँ मानवीय मूल्यों के लिए शायद ही कोई स्थान शेष रह जाता हो।
7. अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रहे उन बदलावों के बारे में लिखें जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुज़ुर्गों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण होंगे?
उत्तर – आधुनिक युग तकनीकों से भरा हुआ है। ये सुविधा के साथ-साथ दुविधा की स्थिति भी उत्पन्न करता है। यही बदलाव मेरे मतानुसार बुज़ुर्गों को अच्छे नहीं लगते हैं। बुज़ुर्गों का मानना है कि प्रकृति धीमी गति से चलती है पर मनुष्य तीव्रगामी होने की चाह में मानवता और समाज से कटता जा रहा है। बुज़ुर्गों यह सोचते हैं कि ऐसी भी क्या तकनीकी तरक्की जिससे आदमी दूर बैठे व्यक्ति से फोन पर बातें तो कर ले पर सामने वाले उपस्थित आदमी का नाम भी न जाने।
8. यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार पर उसके लिए तर्क दीजिए –
(क) यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति के पात्र नहीं हैं।
(ख) यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की ज़रूरत है।
(ग) यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व है और नयी पीढ़ी द्वारा उनके विचारों का अपनाना ही उचित है।
उत्तर – इस कहानी में यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की ज़रूरत है। यशोधर बाबू जैसे लोग साधारणतया किसी न किसी से प्रभावित होते हैं, जैसे यशोधर बाबू किशन दा से। वे पुरानी सोच के व्यक्ति हैं। वे अपने मूल्यों के हिसाब से समाज को चलाना चाहते हैं। उन्हें अपने बच्चों की तरक्की से खुशी होती है। वे परंपरागत ढर्रे पर चलना पसंद करते हैं तथा बदलाव पसंद नहीं करते। वह स्वयं को पिछड़ा मानते हैं। फिर भी वे पुराने को छोड़ नहीं पाते। ऐसे व्यक्तियों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार ज़रुरी है।
‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ से जुड़े बहुविकल्पीय प्रश्न
1. नई पीढ़ी का रवैया पाठ में कैसा है?
(क) असंवेदनशील
(ख) संवेदनशील
(ग) सहानुभूतिपूर्ण
(घ) सहयोगात्मक
उत्तर – (क) असंवेदनशील
2. कहानी ‘सिल्वर वैडिंग’ में किशन दा की मृत्यु के संदर्भ में ‘जो हुआ होगा’ से कहानीकार का क्या तात्पर्य रहा है?
(क) लेखक मृत्यु से बहुत दुखी है।
(ख) लेखक को मृत्यु का कारण पता है।
(ग) लेखक मृत्यु के कारण से अपरिचित है।
(घ) लेखक को मृत्यु से कोई अन्तर नहीं पड़ता है।
उत्तर – (ग) लेखक मृत्यु के कारण से अपरिचित है।
3. किशन दा के रिटायर होने पर यशोधर बाबू उनकी सहायता क्यों नहीं कर पाए थे?
(क) यशोधर बाबू की पत्नी किशन दा से नाराज थी।
(ख) यशोधर बाबू के घर में किशन दा के लिए स्थान का अभाव था।
(ग) यशोधर बाबू का अपना परिवार था जिसे वे नाराज नहीं करना चाहते थे।
(घ) किशन दा को यशोधर बाबू ने अपने घर में स्थान देना चाहा था जिससे किशन दा ने स्वीकार नहीं किया।
उत्तर – (ख) यशोधर बाबू के घर में किशन दा के लिए स्थान का अभाव था।
4. कहानी ‘सिल्वर वैडिंग’ के अनुसार “यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती हैं लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं।” यशोधर बाबू की असफलता का क्या कारण था?
(क) किशन दा उन्हें भड़काते थे।
(ख) पत्नी बच्चों से अधिक प्रेम करती थी।
(ग) पीढ़ी के अन्तराल के कारण।
(घ) वे परिवर्तन को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते थे।
उत्तर – (घ) वे परिवर्तन को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते थे।
5. मकान के विषय में किशनदा की कौन-सी उक्ति यशोधर बाबू को जँचती थी?
(क) अपना मकान होना ही चाहिए।
(ख मूरख लोग मकान बनाते हैं, सयाने उनमें रहते हैं।
(ग) सरकारी क्वार्टर सरकारी ही होता है।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर – (ख मूरख लोग मकान बनाते हैं, सयाने उनमें रहते हैं।
6. यशोधर बाबू ने किस स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी?
(क) सरस्वती विद्यालय
(ख) रेम्जे स्कूल, अल्मोड़ा
(ग) शिष्यगण विद्यालय
(घ) डीएवी पब्लिक स्कूल, अल्मोड़ा
उत्तर – (ख) रेम्जे स्कूल, अल्मोड़ा
7. यशोधर पंत जब दिल्ली आए थे तब उन्हें नौकरी किसने दिलवाई?
(क) किशनदा ने
(ख) गिरीश ने
(ग) जनार्दन ने
(घ) चंद्रदत्त तिवारी ने
उत्तर – (क) किशनदा ने
8. यशोधर बाबू का विवाह कब हुआ था?
(क) 6 फरवरी, 1947
(ख) 6 फरवरी, 1946
(ग) 5 फरवरी, 1947
(घ) 6 फरवरी, 1945
उत्तर – (क) 6 फरवरी, 1947
9. किशन दा ने अपना जीवन किसके नाम कर दिया था?
(क) परिवार के नाम
(ख) समाज के नाम
(ग) दोस्तों के नाम
(घ) अन्य
उत्तर – (ख) समाज के नाम
10. यशोधर बाबू किस मंत्रालय में काम करते थे?
(क) वित्त मंत्रालय
(ख) गृह मंत्रालय
(ग) रक्षा मंत्रालय
(घ) खेल मंत्रालय
उत्तर – (ख) गृह मंत्रालय
11. यशोधर बाबू के कितने बेटे थे?
(क) दो बेटे
(ख) तीन बेटे
(ग) चार बेटे
(घ) पाँच बेटे
उत्तर – (ख) तीन बेटे
12. यशोधर बाबू के बड़े बेटे का नाम क्या था?
(क) जनार्दन
(ख) गिरीश
(ग) भूषण
(घ) इनमें से कोई भी नहीं
उत्तर – (ग) भूषण
13. किशन दा का पूरा नाम क्या था?
(क) कृष्ण पांडे
(ख) कृष्णानंद पांडे
(ग) किशन पांडे
(घ) किशुन पांडे
उत्तर – (ख) कृष्णानंद पांडे
14. यशोधर बाबू की बेटी क्या करना चाहती थी?
(क) अमेरिका जाकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई
(ख) अमेरिका जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई
(ग) इंग्लैंड जाकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई
(घ) इंग्लैंड जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई
उत्तर – (ख) अमेरिका जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई
15. यशोधर बाबू के विवाह के पश्चात् उनके क्वार्टर में उनके साथ और कौन रहता था?
(क) यशोधर बाबू के ताऊ जी
(ख) यशोधर बाबू के पिताजी
(ग) यशोधर बाबू के चाचा जी
(घ) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर – (क) यशोधर बाबू के ताऊ जी
16. यशोधर बाबू का व्यक्तित्व किससे प्रभावित था?
(क) किशनदा से
(ख) अपने ताऊ जी से
(ग) अपने पिताजी से
(घ) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर – (क) किशनदा से
17. यशोधर बाबू की पत्नी उनसे नाराज क्यों रहती थी?
(क) विवाह के पश्चात् संयुक्त परिवार में रहने के कारण
(ख) विवाह के पश्चात् बंदिशों के कारण
(ग) नवविवाहिता पर पुराने नियम लागू होने के कारण
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (घ) उपर्युक्त सभी
18. आप ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी की मूल संवेदना किसे कहेंगे?
(क) हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य
(ख) पीढ़ी का अन्तराल
(ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
(घ) क और ख दोनों विकल्प सही हैं।
उत्तर – (घ) क और ख दोनों विकल्प सही हैं।
19. यशोधर बाबू के बेटे भूषण ने उन्हें उनकी शादी की 25वीं वर्षगाँठ पर क्या उपहार दिया?
(क) कुर्ता पजामा
(ख) ऊनी ड्रेसिंग गाउन
(ग) आधुनिक घड़ी
(घ) इनमें से कुछ भी नहीं
उत्तर – (ख) ऊनी ड्रेसिंग गाउन
20. यशोधर बाबू कहाँ के रहने वाले हैं?
(क) कुमाऊँ प्रदेश
(ख) गढ़वाल प्रदेश
(ग) पंजाब
(घ) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर – (क) कुमाऊँ प्रदेश
21. यशोधर बाबू स्वयं को डेमोक्रेटिक कैसे समझते हैं?
(क) वे अपने नियम परिवार में लागू नहीं करते।
(ख) सभी को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की है।
(ग) बेटा बेटी सभी को समान मानते हैं
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (घ) उपर्युक्त सभी
22. कहानी में “जो हुआ होगा” और “समहाउ इम्प्रापर” इन जुमले में कौन सा भाव निहित है?
(क) यथास्थितिवाद यानि ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेने का भाव
(ख) अनिर्णय की स्थिति
(ग) द्वंद्व का भाव
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (घ) उपर्युक्त सभी
23. कहानी में “जो हुआ होगा” और “समहाउ इम्प्रापर” ये दो जुमले, जो कहानी के बीजवाक्य हैं, कहानी के किस पात्र में बदलाव को असंभव बना देते हैं?
(क) यशोधर
(ख) किशनदा
(ग) यशोधर की पत्नी
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (क) यशोधर
24. यशोधर बाबू की पत्नी मूल संस्कारों से आधुनिक न होते हुए भी आधुनिकता में कैसे ढल गई?
(क) बच्चों की तरफदारी करने की मातृसुलभ मजबूरी के कारण
(ख) वक़्त को देखते हुए
(ग) मन की इच्छा से
(घ) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर – (क) बच्चों की तरफदारी करने की मातृसुलभ मजबूरी के कारण
25. ‘सिल्वर वेडिंग’ कहानी में शादी की वर्षगाँठ थी?
(क) 20वीं
(ख) 25वीं
(ग) 35वीं
(घ) 50वीं
उत्तर – (ख) 25वीं
26. यशोधर पंत का तीसरा बेटा कहाँ रहता था?
(क) अमेरिका
(ख) रूस
(ग) फ्रांस
(घ) चीन
उत्तर – (क) अमेरिका
27. जनार्दन जोशी कौन थे?
(क) यशोधर पंत के अधीनस्थ कर्मचारी
(ख) यशोधर पंत के पड़ोसी
(ग) यशोधर पंत के मित्र
(घ) यशोधर पंत के बहनोई
उत्तर – (घ) यशोधर पंत के बहनोई
28. यशोधर को जीवन जीने की कला किसने सिखाई?
(क) किशन दा
(ख) श्री टी एन शर्मा
(ग) भूषण
(घ) वाई. डी. पंत
उत्तर – (क) किशन दा
29. किशन दा की किस परंपरा को यशोधर ने जीवंत रखा?
(क) घर में होली गवाना
(ख) जन्मदिन मनाना
(ग) शादी की वर्षगाँठ बनाना
(घ) भोज का आयोजन करना
उत्तर – (क) घर में होली गवाना
30. यशोधर बाबू ऑफिस कैसे जाते थे?
(क) कार से
(ख) स्कूटर से
(ग) साइकिल से
(घ) पैदल
उत्तर – (घ) पैदल
31. इनमें सिल्वर वेडिंग कहानी के पात्र नहीं हैं?
(क) गिरीश
(ख) भूषण
(ग) किशन दा
(घ) रवि दा
उत्तर – (घ) रवि दा
32. यशोधर बाबू से बदतमीजी किसने की?
(क) चड्ढा ने
(ख) भूषण ने
(ग) गिरीश ने
(घ) जनार्दन जोशी ने
उत्तर – (क) चड्ढा ने
33. घर में दूध लाने की जिम्मेदारी किस पर थी?
(क) भूषण पर
(ख) यशोधर पंत की बेटी पर
(ग) यशोधर पंत की पत्नी पर
(घ) यशोधर पंत पर
उत्तर – (घ) यशोधर पंत पर
34. यशोधर पंत को भाऊ कौन कहता था?
(क) किशन दा
(ख) जनार्दन जोशी
(ग) भूषण
(घ) वाई. डी. पंत
उत्तर – (क) किशन दा
35. भगवानदास कौन था?
(क) ऑफिस का चपरासी
(ख) ऑफिस का कर्मचारी
(ग) ऑफिस का बड़ा बाबू
(घ) ऑफिस का अर्दली
उत्तर – (क) ऑफिस का चपरासी
36. किशन दा के मानस पुत्र कौन हैं?
(क) जनार्दन जोशी
(ख) भगवान दास
(ग) यशोधर पंत
(घ) चंद्रदत्त पंत
उत्तर – (ग) यशोधर पंत
37. ‘जनार्दन’ शब्द सुनकर यशोधर पंत को किसकी याद आई?
(क) किशन दा की
(ख) भूषण की
(ग) अपने बहनोई जनार्दन जोशी की
(घ) चड्ढा की
उत्तर – (ग) अपने बहनोई जनार्दन जोशी की
38. यशोधर पंत ऑफिस के बाद प्रतिदिन कौन से मंदिर जाते थे?
(क) बिड़ला मंदिर
(ख) योग माया मंदिर
(ग) गौरी शंकर मंदिर
(घ) अक्षरधाम मंदिर
उत्तर – (क) बिड़ला मंदिर
39. दिल्ली में यशोधर पंत को किसने आश्रय दिया?
(क) किशन दा
(ख) मेनन
(ग) वाई. डी. पंत
(घ) चड्ढा
उत्तर – (क) किशन दा
40. यशोधर पंत की बेटी पढ़ाई कर रही है?
(क) डॉक्टरी की
(ख) इंजीनियरिंग की
(ग) बैंक की
(घ) एम.बी.ए. की
उत्तर – (क) डॉक्टरी की
41. भूषण काम करता था?
(क) विज्ञापन एजेंसी में
(ख) पेपर के दफ्तर में
(ग) टेलीफोन के दफ्तर में
(घ) शिक्षा कार्यालय में
उत्तर – (क) विज्ञापन एजेंसी में
42. माँ की मृत्यु के पश्चात् यशोधर पंत किसके पास रहे?
(क) चाची
(ख) बुआ
(ग) भाभी
(घ) दादी
उत्तर – (ख) बुआ
43. चंद्र दत्त तिवारी कौन थे?
(क) यशोधर पंत का भांजा
(ख) यशोधर पंत का मित्र
(ग) यशोधर पंत का ममेरा भाई
(घ) यशोधर पंत का अधीनस्थ कर्मचारी
उत्तर – (क) यशोधर पंत का भांजा
44. किशनदा की परंपराओं को जीवित रखने की कोशिश में यशोधर बाबू ने किसको नाराज़ किया?
(क) गिरीश को
(ख) अपनी पत्नी को
(ग) अपने बच्चों को
(घ) पत्नी और बच्चों दोनों को
उत्तर – (घ) पत्नी और बच्चों दोनों को
45. यशोधर बाबू बार-बार कहा करते थे?
(क) ओके
(ख) गुड बाय
(ग) समहाउ इमप्रॉपर
(घ) यू कैन गो
उत्तर – (ग) समहाउ इमप्रॉपर
46. चूनेदानी कहकर किसका मजाक उड़ाया जाता है?
(क) घड़ी का
(ख) साइकिल का
(ग) पोशाक का
(घ) चश्मे का
उत्तर – (क) घड़ी का
47. यशोधर बाबू की पत्नी और बच्चों को उनके घर में किए जाने वाले आयोजनों पर कौन-सी चीजें सख्त नापसंद थीं?
(क) वक्त की बर्बादी
(ख) खर्च और होने वाला शोर
(ग) विभिन्न लोगों का घर में आना
(घ) अन्य
उत्तर – (ख) खर्च और होने वाला शोर
48. बिड़ला मंदिर से यशोधर बाबू कहाँ जाते थे?
(क) घर
(ख) गोल मार्केट
(ग) पहाड़गंज
(घ) अन्य
उत्तर – (ग) पहाड़गंज
49. यशोधर बाबू कितने बजे घर पहुँचते थे?
(क) आठ बजे
(ख) सात बजे
(ग) दस बजे
(घ) अन्य
उत्तर – (क) आठ बजे
50. यशोधर बाबू के कितने बच्चे थे?
(क) पाँच
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) दो
उत्तर – (ग) चार
51. दफ्तर में यशोधर बाबू के मातहतों को शाम पाँच के बाद भी बैठना पड़ता था क्योंकि
(क) यशोधर बाबू किसी को जाने की अनुमति नहीं देते थे।
(ख) दफ्तर में छुट्टी 6: बजे होती थी।
(ग) यशोधर बाबू देर तक रुकते थे।
(घ) दफ्तर में काम अधिक रहता था।
उत्तर – (ग) यशोधर बाबू देर तक रुकते थे।
52. दफ्तर से चलते-चलते यशोधर बाबू जूनियरों से कोई मनोरंजक बात कर लेते थे
(क) यशोधर बाबू बहुत मजाकिया आदमी थे।
(ख) दफ्तर के लोग बहुत मजाकिए थे।
(ग) कृष्णानंद पांडे से यशोधर बाबू ने यह आदत सीखी थी।
(घ) किशनदा ने यशोधर बाबू को ऐसा करने के लिए बाध्य किया था।
उत्तर – (ग) कृष्णानंद पांडे से यशोधर बाबू ने यह आदत सीखी थी।
53. किसने कहा, “आप लोगों की देखादेखी सेक्शन की घड़ी भी सुस्त हो गई है।”
(क) किशनदा ने।
(ख) यशोधर बाबू ने।
(ग) पाटिल ने।
(घ) चड्डा ने।
उत्तर – (ख) यशोधर बाबू ने।
54. “के ज़माने की है बड़े बाऊ यह तो। बाबा आदम?” यहाँ ‘यह’ से क्या संकेत किया गया है?
(क) साइकिल
(ख) पेन
(ग) घड़ी
(घ) दफ्तर।
उत्तर – (ग) घड़ी
55. दफ्तर में चड्डा किस ओहदे पर काम करता था?
(क) क्लर्क
(ख) असिस्टेंट ग्रेड
(ग) सेक्शन ऑफिसर
(घ) चपरासी
उत्तर – (ख) असिस्टेंट ग्रेड
56. “हम पुरानी चाल के, हमारी घड़ी पुरानी चाल की इस पंक्ति से यशोधर बाबू क्या कहना चाहते हैं?
(क) यशोधर बाबू को पुरानी चीजें पसंद है।
(ख) यशोधर बाबू को नई चीजें बिल्कुल पसंद नहीं हैं।
(ग) यशोधर बाबू पुराने खयालात के हैं।
(घ) यशोधर बाबू को पुरानी घड़ी पसंद है।
उत्तर – (ग) यशोधर बाबू पुराने खयालात के हैं।
57. यशोधर बाबू को दिल्ली आते ही सरकारी दफ्तर में किसी भी काम पर नहीं लगाया जा सका क्योंकि
(क) यशोधर बाबू की शैक्षणिक योग्यता पर्याप्त नहीं थी।
(ख) यशोधर बाबू की उम्र कम थी।
(ग) यशोधर बाबू दिल्ली पढ़ने के लिए आए थे।
(घ) यशोधर बाबू अधिक तनख्वाह चाह रहे थे।
उत्तर – (ख) यशोधर बाबू की उम्र कम थी।
58. किशन दा की मृत्यु का कारण पूछने पर उनके रिश्तेदार ने यशोधर बाबू से कहा ‘जो हुआ होगा। इसका अर्थ है
(क) कुछ तो हुआ है।
(ख) पता नही, क्या हुआ।
(ग) कुछ हुआ होगा।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर – (ख) पता नही, क्या हुआ।
59. गधा पचीसी में कोई क्या करता है इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि बाद में हर आदमी समझदार हो जाता है। इस पंक्ति का आशय है
(क) हर आदमी गधा होता है।
(ख) 25 साल तक आदमी गधा होता है।
(ग) जिम्मेदारी आने पर हर आदमी समझदार हो जाता है।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर – (ग) जिम्मेदारी आने पर हर आदमी समझदार हो जाता है।
60. किसका कथन है“मूर्ख लोग मकान बनाते हैं, सयाने उनमें रहते हैं।”
(क) यशोधर बाबू
(ख) यशोधर बाबू की पत्नी
(ग) यशोधर बाबू का बड़ा लड़का
(घ) किशन दा
उत्तर – (घ) किशन दा
61 सिल्वर वैडिंग पाठ के लेखक हैं-
(क) कुँवर नारायण
(ख) जैनेन्द्र कुमार
(ग) मनोहर श्याम जोशी
(घ) आनंद यादव
उत्तर – (ग) मनोहर श्याम जोशी
62. सिल्वर वैडिंग पाठ में यशोधर पंत के आदर्श पुरुष हैं-
(क) किशन दा
(ख) चन्द्रदत्त तिवारी
(ग) भूषण
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (क) किशन दा
63. यशोधर बाबू घर से ऑफिस किस साधन से आया-जाया करते थे?
(क) साइकिल से
(ख) कार से
(ग) स्कूटर से
(घ) पैदल ही
उत्तर – (घ) पैदल ही
64. यशोधर बाबू की शादी किस वर्ष हुई थी?
(क) 1947 ई. में
(ख) 1974 ई. में
(ग) 1946 ई. में
(घ) 1973 ई. में
उत्तर- (क) 1947 ई. में
65. ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ में आये ‘गधा पच्चीसी’ का क्या मतलब है?
(क) बचपन
(ख) बुढ़ापा
(ग) जवानी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (ग) जवानी
66. यशोधर बाबू की पत्नी किसका पक्ष लेती है?
(क) वाई डी पंत का
(ख) किशन दा का
(ग) अपने बच्चों का
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (ग) अपने बच्चों का
67. किशन दा की मौत किस कारण से हुई ?
(क) बुढ़ापे के कारण
(ख) जो हुआ होगा से
(ग) अजनबीपन से
(घ) बेगानेपन से
उत्तर – (ख) जो हुआ होगा से
68. सिल्वर वैडिंग पाठ में चूनेदानी किसे कहा गया है?
(क) ऑफिस की घड़ी को
(ख) गैस चूल्हे को
(ग) कलाई घड़ी को
(घ) किनारीदार साड़ी को
उत्तर – (ग) कलाई घड़ी को
69. संध्या की पूजा में बैठे यशोधर बाबू को कौन दिखाई दे रहा था?
(क) किशन दा
(ख) बड़ा बेटा भूषण
(ग) उनकी बुआ
(घ) उनकी पत्नी
उत्तर – (क) किशन दा
70. यशोधर बाबू को भूषण ने गिफ्ट में क्या दिया था?
(क) ऊनी स्वेटर
(ख) रेशमी टोपी
(ग) सूती तौलिया
(घ) ऊनी गाउन
उत्तर – (घ) ऊनी गाउन