आज हम अत्यन्त शोक के साथ आपको विदा देने के लिए यहाँ एकत्रित हुए हैं। आपने _______________ विद्यालय की जो सेवाएँ की हैं और हम विद्यार्थियों के साथ जैसा प्रशंसनीय व्यवहार किया है, उसके वर्णन के लिए हमारे पास शब्द नहीं हैं। हम में से अधिकांश छात्र आपके चरण कमलों में बैठकर पढ़े हैं और जानते हैं कि आपमें कैसी अद्वितीय लगन, कैसी योग्यता, कैसी विचार-मौलिकता और कैसी कार्य-कुशलता है। ________ विद्यालय, जाजपुर के इस विख्यात एवं प्राचीन विद्या मन्दिर में सहायक के पद पर कार्य करते हुए आपने सद्बुद्धि, शिष्टता, न्याय और प्रबन्ध कुशलता से क्या विद्यार्थी, क्या अध्यापक, क्या अधिकारी, क्या नागरिक सभी के हृदय पर अधिकार जमा लिया है। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि आप वर्तमान युग के मानव रत्न है।
नि:सन्देह आप हिंदू धर्म के सर्वोत्कृष्ट गुणों की साक्षात् मूर्ति हैं। प्रत्येक मनुष्य जिसे आपके सम्पर्क में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, आपकी प्रकृति की भूरि-भूरि सराहना करता है। आपका मुसकराता हुआ मुख, मधुर वाणी, स्नेह, कोमलता, दयालुता और सहानुभूति आपकी सर्वप्रियता के कारण हैं। आप सदाचार को अत्यन्त महत्त्व देते हैं। और आपका सम्पर्क आत्म-संस्कार का अच्छा साधन है। आपकी-सी सहिष्णुता अन्यत्र कम देखी जाती है। कठिन से कठिन परिस्थिति में आपने शान्ति के साथ विद्यालय के छात्रों की प्रतिष्ठा रखी है। आज तक कभी आपके मुख पर क्रोध की झलक नहीं देखी गई हैं। हमारे साथ आपका वैसा ही व्यवहार रहा है जैसा किसी का अपनी संतान के प्रति होता है। आपके इन्हीं सद्गुणों के कारण मेरी वाणी आपका यशोगान करने को बाध्य हो गई। यदि हम आपके चरणों की धूल बराबर भी बन सके तो अपने कृत-कृत समझेंगे।
सेवानिवृत्ति के बाद भी आप अनेक लोगों के लिए प्रोत्साहन का कारण बने रहें इसी आशा के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ।