माखनलाल चतुर्वेदी – लेखक परिचय
माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म होशंगाबाद जिले (मध्यप्रदेश) के बावई नामक गाँव में हुआ था। चतुर्वेदी कवि ही नहीं सफल पत्रकार, गद्यकार, और नाटककार भी थे।
आपके काव्य-संग्रहों में माता, युग-चरण, समर्पण, मरण- ज्वर आदि बहुप्रशंसित हैं। कवि की सभी रचनाएँ खड़ी बोली हिंदी में हैं। आपका काव्य – साहित्य, देश भक्ति, मानव-प्रेम और आध्यात्मिकता का त्रिवेणी संगम है।
व्यक्तित्व
शासन की विधि पूरी करने एक बात है, शासन की कला का ज्ञान होना और बात। कला के ज्ञाता में व्यक्ति (पर्सनैलिटी) होती है, विधि को पूरा करनेवाला इसकी ओर बहुत कम लक्ष्य देता है। कला कुछ व्यक्तियों का ही नहीं, कुछ जातियों तक का स्वभाव हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति में जीवन के कम-से-कम दो हिस्से रहते हैं – एक तो उसका कार्य, जिसकी ज़िम्मेदारी वह कुली की तरह निबाहने के लिए बाध्य है और दूसरे उसका अपना व्यक्तित्व, जो उसके एक या अनेक कार्यों में चमक चढ़ाता है। दूसरे रूप में मनुष्य दो स्वरूपों में विश्व के सामने खड़ा है, एक तो उसका व्यक्तित्व, उसके कार्यों और उसकी जिम्मेदारियों को वह अपना कहकर विश्व के सम्मुख अपने को खुला- उघाड़ा, बे-पर्द छोड़ने को बाध्य होता है और दूसरे वह व्यक्ति खुद जो केले के भीतरी स्तंभ की तरह व्यक्तित्व के एक या अनेक पर्दों की तह में उज्जवल या निरूज्ज्वल बनकर छिपा रहता है। व्यक्तित्व कहते हैं उस वस्तु को जो मनुष्य के बाहरी और भीतरी जीवन में संबंध स्थापित रखती और उन दोनों विभाजित जीवन के हिस्सों को एक-दूसरे का जीवन-रस पान कराने का अवसर देती है। व्यक्तित्व बाहर अपने आप प्रकट होता है और भीतर संपूर्ण जीवन को संगठित किया करता है व्यक्तित्व के योग दर्शन उस व्यक्ति के पास हो सकेंगे जो अपने अंतरतम से बहुत दूरी पर खड़ा नहीं होता, न जो अपने अंतरतम की उपेक्षा करता है। न जो अपने अंतरतम का अपनी क्रूरता पूरी करने के लिए सौदा करता है व्यक्तित्व बहुत शीघ्र पकड़ा जा सकता है अकड़ और आडंबर का नाम व्यक्तित्व नहीं है व्यक्तित्व की आंखें हमें न्योता देकर बुलाती हैं उसमें हमें बेबस प्यार प्रेम और विश्वास भी होने लगता है जिसमें व्यक्तित्व का प्रभाव होगा उसकी ओर हमारी तवज्जो ही नहीं होगी, और अपनी ओर हमारा ध्यान खींचने के लिए प्रचार या षड्यंत्र किसी ने किया हो तो हमारा विश्वास उसमें ना होगा व्यक्तित्व को और खेल कम आता है वह प्राणों का खेल-खेलकर ही जिंदा रहता है व्यक्तित्व के अभाव में व्यक्ति अपने आप को जगत का महा प्रमुख बनाए रखने के लिए कितने ही उद्योग करता है उसमें शील के नाम पर तकल्लुफ होता है उसको चर्चा में और अपने से छोटा बताने का प्रत्यक्ष प्रचार होता है और लोगों का जी दुखाने के पीछे ताने होते हैं। वह दलालों के दलाल की हैसियत से विश्व के बाजार में बड़ा आदमी बन कर रहना चाहता है परंतु भक्ति के अभाव में जिस तरह भगवान को खींचने में समर्थ नहीं हो सकते उसी तरह बाहरी समय साधक आभूषणों और उपकरणों के बल पर व्यक्तित्व का नारा ही बुलंद किया जा सकता है।
व्यक्तित्व के अभाव में हम हृदय के रूखेपन और कोमल संबंधों में उद्दण्डता के रूप में परिचित होते हैं, ऐसे व्यक्तियों के भावों में अतिरेकमय चंचलता होती है, ऐसे व्यक्ति के मन का यद्यपि पता नहीं लग पाता, परंतु यह जानकर कि हृदय की जागीर उसके पास थोड़ी है, हम प्रारंभ से ही उसके मनोभावों से बचने और उसके तकल्लुफ, व्यवहारिकता और प्रचार के सकरे जाल से मुक्त रहने की सावधानी लेते हैं। ये सब कठिनाइयाँ, ये स्वभाव की खराबियाँ हममें तभी जन्म लेती या फूलती-फलती हैं जब हम बाहरी जीवन को भी भीतरी जीवन के प्रति उत्तरदायी न मानकर अपनी दुनिया बनाने बैठते हैं। परिणाम यह होता है विश्व में कोई भी अपना हमारा नहीं होता। और हम जिस-जिस क्षेत्र से गुजरे होते हैं यद्यपि तकल्लुफ और व्यवहारिकता के नाम से उन सब स्थानों की निंदा न करने और व्यक्तित्व तोड़ने का तौल संभालते रहते हैं, किंतु हम पर कोई विश्वास नहीं करता और प्रायः व्यक्ति टूट जाते हैं, क्योंकि एक तो मीठे शब्दों और अपनी महानता साबित करने के लिए सिवा कभी कुछ हमारे पास नहीं होता, दूसरे से कोमल से कोमल भावों का सौदा करने लगते हैं और तीसरे हम आत्म-निवेदन (कन्फैशन) पर विश्वास न करके
अपने हृदय का समस्त मल छिपाए रहते हैं, जो हमें भीतर ही भीतर विश्व की सेवा और उपयोगिता से रहित करता जाता है। हमारे जीवन की कोमलता, सेवा और दोषों सहित खुलेपन का अभाव ही हमारे व्यक्तित्व का अभाव ही है। व्यक्ति वह नहीं जिसका लोगों पर आतंक छाए, व्यक्तित्व वह है जिसकी तस्वीर जमाना अपने आप में खोदता चला जाए।
इसी व्यक्तित्व की जरूरत हमें जीवन के शासन आदि अनेक क्षेत्रों में होती है। उस समय व्यक्तित्व की रक्षा के लिए हमें अपनी लहरों, अपने मनोवेगों, अपनी तौल संभालने के नाम पर तौल बिगाड़ने वाली भीतरी आदतों पर पहरा देने की जरूरत होती है, इसलिए जिससे भीतरी और बाहरी विश्व के बीच हम बे-मेल न हो बैठें। ये दोष भी हृदय की स्वच्छता में झरने की तरह अपने आप बहने वाले शब्द व्यक्तित्व को बर्बाद न कर सकेंगे। हाँ इसमें जीवन के झरने की गति को हम कुछ दिनों गदला और सड़ा हुआ अवश्य कर देंगे। और समय के साथ आने वाली नई धराएँ इस गंदगी को अवश्य धो बहाएँगी। यदि हम स्वयं उस गंदगी को अधिक दिनों रोके रहने का यत्न करें, तो भी खुले हृदय में हम उसी तरह नुकसान उठाने के लिए बे-काबू हैं। हम सन्निकट स्वार्थ की पूर्ति के लिए ही हृदय का दिवाला काढ़ते हैं और इस प्रयत्न में हम अपनी और अपने सन्निकट स्वार्थ की कब्र बनाते हैं।
शासन में हम ‘जानकार मन’ का मूल्य कूतकर, उसको बलवान मानकर, उसी को व्यक्तित्व मानकर गर्व करने लगते हैं। परंतु विश्व में व्यक्तित्व ही जानकारों के कुंभीपाक बने हुए हैं। शासन में व्यक्तित्व, शब्द व्यक्तित्व ही सफल होता है। श्रम, सेवा, स्नेह और आकर्षण विश्वजीतने की ये गुण खुले हृदय के व्यक्तित्व में यह सब होते हैं, सूचनाओं की संग्रहित पिटारी में नहीं। व्यक्तित्व है तो यह सब संग्रह खजाना है, व्यक्तित्व के प्रभाव में यह सारा मिट्टी पत्थरों का ढेर है। सूचनाएँ पैसे से खरीदी जा सकती हैं किंतु हृदय यानी व्यक्तित्व पैसे से नहीं खरीदा जा सकता। हाँ व्यक्तित्व भी व्यक्तित्वके हृदयों के संघर्षण से बढ़ता है। अच्छी आदतों से व्यक्ति बनता है ये ठीक है, किंतु उन्हीं अच्छी आदतों से बाहरी और भीतरी जीवन के मेल-मिलाए रहें, यही मेल मनुष्य के जीवन में आकर्षण, प्रकाश और विश्वास पैदा करता है।हृदय की सरसता अपने संचित ज्ञान और श्रम को लेकर जब विश्व बनाने बैठती है, तब वह व्यक्तित्व का निर्माण करती जाती है और व्यक्तित्व पर मरकर अमर हो जानेवाली दुनिया का भी।
सारांश
लेख में व्यक्तित्व की अवधारणा को गहराई से समझाया गया है। व्यक्तित्व वह गुण है जो व्यक्ति के बाहरी और भीतरी जीवन को जोड़ता है, उसे संगठित करता है, और विश्वास, प्रेम, और आकर्षण पैदा करता है। यह केवल कार्यों की जिम्मेदारी निभाने तक सीमित नहीं, बल्कि व्यक्ति के आंतरिक स्वभाव और हृदय की कोमलता से प्रकट होता है। व्यक्तित्व अकड़ या प्रचार नहीं, बल्कि हृदय की स्वच्छता, सेवा, और खुलेपन से बनता है। यह शासन और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण है, जो व्यक्ति को विश्व के सामने प्रभावशाली बनाता है। व्यक्तित्व के अभाव में रूखापन, चंचलता, और अविश्वास पैदा होता है। यह अच्छी आदतों और बाहरी-भीतरी जीवन के मेल से विकसित होता है, जो जीवन में आकर्षण और विश्वास लाता है।
शब्दार्थ —
बाध्य- मजबूर, विवश
उघाड़ा – खोला हुआ
अन्तरतम – अन्तःकरण
सौदा करना – क्रय-विक्रय करना
न्योता – निमंत्रण
बे-इख्तियार – अधिकार रहित
तवज्जोह – ध्यान, ख्याल
षड्यंत्र – कुचक्र, साज़िश
तकल्लुफ़ – दिखावटी नम्रता
दलाल – मध्यस्थ
षोडशोपचार – पूजा के सोलह पूर्ण अंग
उपकरण – समान, सामग्री
रुखापन – नीरसता
अतिरेक – अतिशय, ज्यादती
जागीर – राज्य की ओर से प्राप्त भूमि
सन्निकट – समीप
कूतना – अनुमान लगाना
शब्दार्थ (Word Meanings)
हिंदी शब्द | हिंदी अर्थ | तमिल अर्थ | English Meaning |
व्यक्तित्व | व्यक्ति का आंतरिक और बाह्य गुणों का मेल | ஆளுமை | Personality |
शासन | प्रशासन, नियंत्रण | ஆட்சி | Governance |
कला | रचनात्मक कौशल | கலை | Art |
ज़िम्मेदारी | कर्तव्य, दायित्व | பொறுப்பு | Responsibility |
आडंबर | दिखावा, ढोंग | பகட்டு | Pretense |
तकल्लुफ | औपचारिकता, बनावटी व्यवहार | மரியாதை மிகைப்படுத்தல் | Formality |
उज्जवल | चमकदार, तेजस्वी | ஒளிரும் | Radiant |
निरूज्ज्वल | मंद, बिना चमक | ஒளியற்ற | Dull |
प्रचार | विज्ञापन, प्रसार | விளம்பரம் | Publicity |
षड्यंत्र | छल, साजिश | சதி | Conspiracy |
हृदय | दिल, मन | இதயம் | Heart |
कोमलता | नरमी, संवेदनशीलता | மென்மை | Tenderness |
आत्म-निवेदन | स्वीकारोक्ति, आत्म-प्रकटीकरण | சுய ஒப்புதல் | Self-confession |
स्वच्छता | शुद्धता, निर्मलता | தூய்மை | Purity |
मनोवेग | भावनात्मक आवेग | உணர்ச்சி வேகம் | Emotional impulse |
संनिकट | निकटवर्ती, तात्कालिक | அருகிலுள்ள | Immediate |
स्वार्थ | निजी लाभ | சுயநலம் | Selfishness |
कुंभीपाक | नरक, दुखद स्थिति | நரகம் | Hellish condition |
सरसता | रसपूर्णता, आकर्षण | இனிமை | Charm |
विश्वजीत | विश्व को जीतने वाला | உலகை வெல்பவர் | World conqueror |
I) पाँच वाक्यों में उत्तर दीजिए।
- माखनलाल चतुर्वेदी व्यक्तित्व किस वस्तु को कहते हैं?
उत्तर – लेखक के अनुसार, व्यक्तित्व वह वस्तु है जो मनुष्य के बाहरी और भीतरी जीवन के बीच संबंध स्थापित करती है। यह जीवन के इन दोनों विभाजित हिस्सों को एक-दूसरे का जीवन-रस पाने का अवसर देती है। व्यक्तित्व बाहर स्वयं प्रकट होता है और भीतर संपूर्ण जीवन को संगठित करता है। यह मनुष्य के कार्यों में चमक चढ़ाता है। यह अकड़ या आडंबर नहीं, बल्कि एक सहज आकर्षण है जो प्रेम और विश्वास जगाता है।
- व्यक्तित्व के अभाव में व्यक्ति का क्या हाल होता है?
उत्तर – व्यक्तित्व के अभाव में व्यक्ति खुद को महत्त्वपूर्ण साबित करने के लिए तकल्लुफ, प्रचार और षड्यंत्र का सहारा लेता है। उसके हृदय में रूखापन और कोमल संबंधों में उद्दंडता आ जाती है। वह अपने हृदय का मल छिपाए रखता है और कोमल भावों का सौदा करने लगता है। दुनिया में कोई भी उसका अपना नहीं बन पाता और न ही कोई उस पर विश्वास करता है। ऐसे व्यक्ति के पास मीठे शब्दों और अपनी महानता साबित करने के सिवा कुछ नहीं होता।
- व्यक्तित्व की ज़रूरत जीवन के किन-किन क्षेत्रों में होती है?
उत्तर – गद्यांश के अनुसार, व्यक्तित्व की ज़रूरत जीवन के अनेक क्षेत्रों में होती है, विशेषकर शासन के क्षेत्र में। लेखक कहते हैं कि शासन की विधि पूरी करना एक बात है, पर शासन की कला का ज्ञान होने के लिए व्यक्तित्व आवश्यक है। यह कला कुछ व्यक्तियों और जातियों का स्वभाव बन जाती है। व्यक्तित्व ही व्यक्ति के कार्यों में एक विशेष चमक चढ़ाता है। इसलिए, जीवन के हर उस क्षेत्र में जहाँ केवल विधि-विधान नहीं बल्कि कला, प्रभाव और विश्वास की आवश्यकता होती है, वहाँ व्यक्तित्व की ज़रूरत है।
- अच्छी आदतों से बाहरी और भीतरी जीवन का मेल मनुष्य के जीवन में कैसा असर डालता है?
उत्तर – गद्यांश के अनुसार, अच्छी आदतों से व्यक्ति का निर्माण होता है। जब इन अच्छी आदतों के कारण व्यक्ति के बाहरी और भीतरी जीवन में मेल-मिलाप यानी सामंजस्य स्थापित होता है, तब इसका बहुत सकारात्मक असर पड़ता है। यह मेल ही मनुष्य के जीवन में आकर्षण पैदा करता है। यही सामंजस्य उसके जीवन में प्रकाश लाता है। इन्हीं के परिणामस्वरूप मनुष्य के प्रति दूसरों के मन में विश्वास उत्पन्न होता है।
II) टिप्पणी लिखिए
व्यक्तित्व की रक्षा
उत्तर – गद्यांश के अनुसार, ‘व्यक्तित्व की रक्षा’ का अर्थ है अपने भीतरी और बाहरी जीवन के बीच सामंजस्य को बनाए रखना। इसके लिए व्यक्ति को अपनी ‘लहरों’ यानी मन की चंचलता और अपने ‘मनोवेगों’ यानी आवेगों पर नियंत्रण रखना होता है। उसे अपनी उन भीतरी आदतों पर पहरा देना पड़ता है जो संतुलन बिगाड़ती हैं। व्यक्तित्व की रक्षा के लिए हृदय की स्वच्छता और खुलेपन को बनाए रखना ज़रूरी है, ताकि स्वार्थ के लिए हम अपने हृदय का दिवाला न निकाल दें और भीतरी-बाहरी जीवन ‘बे-मेल’ न हो जाए।
II) टिप्पणी लिखिए
व्यक्तित्व की रक्षा
उत्तर – गद्यांश के अनुसार, ‘व्यक्तित्व की रक्षा’ का अर्थ है अपने भीतरी और बाहरी जीवन के बीच सामंजस्य को बनाए रखना। इसके लिए व्यक्ति को अपनी ‘लहरों’ यानी मन की चंचलता और अपने ‘मनोवेगों’ यानी आवेगों पर नियंत्रण रखना होता है। उसे अपनी उन भीतरी आदतों पर पहरा देना पड़ता है जो संतुलन बिगाड़ती हैं। व्यक्तित्व की रक्षा के लिए हृदय की स्वच्छता और खुलेपन को बनाए रखना ज़रूरी है, ताकि स्वार्थ के लिए हम अपने हृदय का दिवाला न निकाल दें और भीतरी-बाहरी जीवन ‘बे-मेल’ न हो जाए।
III) व्यक्तित्व पाठ का सारांश लिखिए।
उत्तर – इस गद्यांश में लेखक ने ‘व्यक्तित्व’ के वास्तविक अर्थ और महत्त्व को समझाया है। व्यक्तित्व केवल शासन की विधि या कार्य पूरा करना नहीं, बल्कि ‘शासन की कला’ है, जो व्यक्ति के बाहरी और भीतरी जीवन में संबंध स्थापित करता है। यह अकड़ या आडंबर नहीं, बल्कि एक सहज आकर्षण है जो विश्वास और प्रेम पैदा करता है। व्यक्तित्व के अभाव में, व्यक्ति तकल्लुफ, प्रचार और हृदय के रूखेपन का शिकार हो जाता है, जिससे कोई उस पर विश्वास नहीं करता। यह स्थिति तब पैदा होती है जब मनुष्य अपने बाहरी जीवन को भीतरी जीवन के प्रति उत्तरदायी नहीं मानता। व्यक्तित्व की रक्षा के लिए अपने मनोवेगों पर पहरा देना और भीतरी-बाहरी जीवन में मेल रखना आवश्यक है। लेखक स्पष्ट करते हैं कि ‘जानकार मन’ या सूचनाओं का संग्रह व्यक्तित्व नहीं है; सच्चा व्यक्तित्व ‘खुले हृदय’ में होता है, जिसमें श्रम, सेवा, स्नेह और आकर्षण जैसे गुण होते हैं। सूचनाएँ खरीदी जा सकती हैं, पर हृदय यानी व्यक्तित्व नहीं।
IV) सही या गलत चुनकर लिखिए
- माखनलाल चतुर्वेदी जी की सभी रचनाएँ खड़ी बोली हिंदी में हैं।
उत्तर – उत्तर – गलत (स्पष्टीकरण – यह जानकारी गद्यांश में नहीं है, लेकिन सामान्य ज्ञान के आधार पर, जबकि उन्होंने प्रमुख रूप से खड़ी बोली में लिखा, “सभी” रचनाएँ केवल खड़ी बोली में थीं, यह कहना सटीक नहीं है।)
- व्यक्तित्व बाहर अपने आप प्रकट होता है और भीतर संपूर्ण जीवन को संगठित किया करता है
उत्तर – सही
- अकड़ और आडंबर का नाम व्यक्तित्व नहीं है
उत्तर – सही
- आभूषणों और उपकरणों के बल पर व्यक्तित्व का नारा ही बुलंद किया जा सकता है।
उत्तर – सही
- अच्छी आदतों से व्यक्ति बनता है
उत्तर – सही
V) खाली जगह भरिए
1 व्यक्तित्व भीतर संपूर्ण जीवन को __________ किया करता है।
उत्तर – संगठित
2 __________वह है जिसकी तस्वीर जमाना अपने आप में खोदता चला जाए
उत्तर – व्यक्तित्व
3 विष्व में व्यक्तित्व ही जानकारों के __________ बने हुए है।
उत्तर – कुंभीपाक
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
- लेख के अनुसार व्यक्तित्व का क्या अर्थ है?
a) केवल बाहरी दिखावा
b) बाहरी और भीतरी जीवन का मेल
c) केवल कार्य की जिम्मेदारी
d) आडंबर और प्रचार
उत्तर – b) बाहरी और भीतरी जीवन का मेल - लेख में व्यक्तित्व को किसके अभाव से जोड़ा गया है?
a) हृदय की कोमलता
b) प्रचार और षड्यंत्र
c) रूखापन और उद्दण्डता
d) कार्य की जिम्मेदारी
उत्तर – c) रूखापन और उद्दण्डता - लेख के अनुसार व्यक्तित्व किसके द्वारा प्रकट होता है?
a) बाहरी आभूषणों से
b) हृदय की स्वच्छता और खुलेपन से
c) सूचनाओं के संग्रह से
d) औपचारिक व्यवहार से
उत्तर – b) हृदय की स्वच्छता और खुलेपन से - लेख में व्यक्तित्व की तुलना किससे की गई है?
a) केले के बाहरी छिलके से
b) केले के भीतरी स्तंभ से
c) पेड़ की जड़ से
d) फूल की पंखुड़ियों से
उत्तर – b) केले के भीतरी स्तंभ से - लेख के अनुसार व्यक्तित्व का प्रभाव क्या पैदा करता है?
a) भय और आतंक
b) प्रेम, विश्वास और आकर्षण
c) अविश्वास और रूखापन
d) औपचारिकता और तकल्लुफ
उत्तर – b) प्रेम, विश्वास और आकर्षण - लेख में व्यक्तित्व के अभाव में क्या होता है?
a) व्यक्ति विश्वास जीत लेता है
b) हृदय का रूखापन और चंचलता बढ़ती है
c) व्यक्ति कार्य में सफल होता है
d) बाहरी जीवन संगठित हो जाता है
उत्तर – b) हृदय का रूखापन और चंचलता बढ़ती है - लेख के अनुसार व्यक्तित्व को जीवित रखने का आधार क्या है?
a) प्रचार और विज्ञापन
b) प्राणों का खेल
c) सूचनाओं का संग्रह
d) औपचारिक व्यवहार
उत्तर – b) प्राणों का खेल - लेख में शासन की कला का क्या अर्थ है?
a) नियमों का पालन करना
b) व्यक्तित्व का उपयोग करना
c) केवल जिम्मेदारी निभाना
d) प्रचार करना
उत्तर – b) व्यक्तित्व का उपयोग करना - लेख के अनुसार व्यक्तित्व की आंखें क्या करती हैं?
a) भय पैदा करती हैं
b) न्योता देकर बुलाती हैं
c) अविश्वास पैदा करती हैं
d) औपचारिकता दिखाती हैं
उत्तर – b) न्योता देकर बुलाती हैं - लेख में व्यक्तित्व के अभाव में व्यक्ति क्या करता है?
a) विश्वास और प्रेम फैलाता है
b) तकल्लुफ और व्यवहारिकता का प्रदर्शन करता है
c) हृदय की स्वच्छता बढ़ाता है
d) आत्म-निवेदन करता है
उत्तर – b) तकल्लुफ और व्यवहारिकता का प्रदर्शन करता है - लेख के अनुसार व्यक्तित्व का निर्माण कैसे होता है?
a) बाहरी आभूषणों से
b) अच्छी आदतों और जीवन के मेल से
c) सूचनाओं के संग्रह से
d) प्रचार और षड्यंत्र से
उत्तर – b) अच्छी आदतों और जीवन के मेल से - लेख में व्यक्तित्व को किसके साथ जोड़ा गया है?
a) आतंक और भय
b) हृदय की सरसता और आकर्षण
c) औपचारिक व्यवहार
d) सूचनाओं का ढेर
उत्तर – b) हृदय की सरसता और आकर्षण - लेख के अनुसार व्यक्तित्व का अभाव किसके कारण होता है?
a) हृदय की कोमलता के कारण
b) बाहरी और भीतरी जीवन के असंतुलन के कारण
c) कार्य की जिम्मेदारी के कारण
d) प्रचार के कारण
उत्तर – b) बाहरी और भीतरी जीवन के असंतुलन के कारण - लेख में व्यक्तित्व की तुलना किसके खजाने से की गई है?
a) सूचनाओं का खजाना
b) हृदय का खजाना
c) धन का खजाना
d) आभूषणों का खजाना
उत्तर – b) हृदय का खजाना - लेख के अनुसार व्यक्तित्व को पैसे से क्या नहीं किया जा सकता?
a) खरीदा जा सकता है
b) बढ़ाया जा सकता है
c) नष्ट किया जा सकता है
d) बनाया जा सकता है
उत्तर – a) खरीदा जा सकता है - लेख में व्यक्तित्व के लिए क्या आवश्यक है?
a) बाहरी दिखावा
b) हृदय की स्वच्छता और खुलेपन
c) तकल्लुफ और व्यवहारिकता
d) प्रचार और विज्ञापन
उत्तर – b) हृदय की स्वच्छता और खुलेपन - लेख के अनुसार व्यक्तित्व का प्रभाव किसके बिना अधूरा है?
a) सूचनाओं के बिना
b) हृदय की सरसता के बिना
c) औपचारिकता के बिना
d) प्रचार के बिना
उत्तर – b) हृदय की सरसता के बिना - लेख में व्यक्तित्व को किसके द्वारा जीवित रखा जाता है?
a) प्रचार और षड्यंत्र
b) प्राणों का खेल
c) औपचारिक व्यवहार
d) सूचनाओं का संग्रह
उत्तर – b) प्राणों का खेल - लेख के अनुसार व्यक्तित्व के अभाव में व्यक्ति का व्यवहार कैसा होता है?
a) कोमल और विश्वासपूर्ण
b) रूखा और चंचल
c) संगठित और प्रभावी
d) शांत और संतुलित
उत्तर – b) रूखा और चंचल - लेख में व्यक्तित्व को विश्व के सामने कैसे प्रस्तुत किया जाता है?
a) छिपाकर और प्रचार द्वारा
b) खुलेपन और विश्वास द्वारा
c) औपचारिकता और तकल्लुफ द्वारा
d) सूचनाओं और ज्ञान द्वारा
उत्तर – b) खुलेपन और विश्वास द्वारा
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- प्रश्न – व्यक्तित्व किसे कहते हैं?
उत्तर – व्यक्तित्व वह तत्व है जो मनुष्य के बाहरी और भीतरी जीवन के बीच संबंध स्थापित करता है। - प्रश्न – शासन की विधि और शासन की कला में क्या अंतर है?
उत्तर – शासन की विधि पूरी करना एक औपचारिक प्रक्रिया है, जबकि शासन की कला का ज्ञान एक रचनात्मक और मानवीय गुण है। - प्रश्न – कला का ज्ञाता किस प्रकार का व्यक्ति होता है?
उत्तर – कला का ज्ञाता वह व्यक्ति होता है जिसमें व्यक्तित्व होता है और जो अपने कार्य में जीवन का रस भर देता है। - प्रश्न – प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कितने हिस्से होते हैं?
उत्तर – प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में दो हिस्से होते हैं—एक उसका कार्य और दूसरा उसका व्यक्तित्व। - प्रश्न – व्यक्तित्व का कार्य क्या होता है?
उत्तर – व्यक्तित्व का कार्य बाहरी और भीतरी जीवन को जोड़ना और दोनों में जीवन का रस प्रवाहित करना है। - प्रश्न – अकड़ और आडंबर को व्यक्तित्व क्यों नहीं माना गया है?
उत्तर – क्योंकि अकड़ और आडंबर बनावटी होते हैं, जबकि व्यक्तित्व स्वाभाविक और जीवंत होता है। - प्रश्न – व्यक्तित्व की आँखें हमें किस प्रकार बुलाती हैं?
उत्तर – व्यक्तित्व की आँखें हमें न्योता देकर बुलाती हैं और उनमें प्यार, प्रेम और विश्वास झलकता है। - प्रश्न – व्यक्तित्व के अभाव में व्यक्ति कैसा बन जाता है?
उत्तर – व्यक्तित्व के अभाव में व्यक्ति रूखा, उद्दंड और प्रचारप्रिय बन जाता है। - प्रश्न – व्यक्ति जब अपने भीतरी जीवन से कट जाता है तो क्या परिणाम होता है?
उत्तर – जब व्यक्ति अपने भीतरी जीवन से कट जाता है, तो वह दुनिया से अलग और अविश्वसनीय बन जाता है। - प्रश्न – लेखक के अनुसार व्यक्ति क्यों टूट जाते हैं?
उत्तर – व्यक्ति इसलिए टूट जाते हैं क्योंकि वे अपने हृदय के मल को छिपाते हैं और आत्म-निवेदन से डरते हैं। - प्रश्न – व्यक्तित्व का प्रभाव किस पर निर्भर करता है?
उत्तर – व्यक्तित्व का प्रभाव व्यक्ति के हृदय की स्वच्छता और खुलेपन पर निर्भर करता है। - प्रश्न – व्यक्तित्व का असली मूल्य किससे तय होता है?
उत्तर – व्यक्तित्व का असली मूल्य व्यक्ति की सेवा, स्नेह और श्रम से तय होता है, न कि उसके ज्ञान से। - प्रश्न – व्यक्तित्व के बिना व्यक्ति अपने को बड़ा कैसे दिखाता है?
उत्तर – व्यक्तित्व के बिना व्यक्ति तकल्लुफ और प्रचार के माध्यम से अपने को बड़ा दिखाने का प्रयत्न करता है। - प्रश्न – व्यक्तित्व की रक्षा के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर – व्यक्तित्व की रक्षा के लिए अपने भीतरी दोषों और आदतों पर नियंत्रण आवश्यक है। - प्रश्न – व्यक्तित्व के अभाव में व्यक्ति का व्यवहार कैसा होता है?
उत्तर – व्यक्तित्व के अभाव में व्यक्ति का व्यवहार कृत्रिम, चंचल और स्वार्थी हो जाता है। - प्रश्न – व्यक्तित्व किससे बढ़ता है?
उत्तर – व्यक्तित्व दूसरे व्यक्तित्वों के हृदयों के संघर्षण से बढ़ता है। - प्रश्न – व्यक्तित्व और ज्ञान में क्या अंतर है?
उत्तर – ज्ञान सूचना का संग्रह है, जबकि व्यक्तित्व हृदय की गहराई और मानवीय गुणों का प्रतीक है। - प्रश्न – हृदय की सरसता का संबंध किससे है?
उत्तर – हृदय की सरसता का संबंध व्यक्ति के ज्ञान, श्रम और सृजनशीलता से है। - प्रश्न – व्यक्तित्व का अमरत्व कैसे प्राप्त होता है?
उत्तर – जब व्यक्ति अपने व्यक्तित्व पर मर मिटता है, तब वह अमर हो जाता है। - प्रश्न – व्यक्तित्व के बिना व्यक्ति दूसरों को क्यों दुखी करता है?
उत्तर – क्योंकि उसके अंदर कोमलता और संवेदना का अभाव होता है। - प्रश्न – लेखक ने व्यक्तित्व को किससे तुलना की है?
उत्तर – लेखक ने व्यक्तित्व को केले के भीतरी स्तंभ से तुलना की है जो अंदर छिपा रहता है। - प्रश्न – शासन में कौन सफल होता है?
उत्तर – शासन में वही व्यक्ति सफल होता है जिसके पास सच्चा व्यक्तित्व होता है। - प्रश्न – व्यक्तित्व के अभाव में व्यक्ति किससे डरता है?
उत्तर – व्यक्तित्व के अभाव में व्यक्ति आत्म-निवेदन और सच्चाई से डरता है। - प्रश्न – व्यक्तित्व का निर्माण किससे होता है?
उत्तर – व्यक्तित्व का निर्माण हृदय की स्वच्छता, श्रम और स्नेह से होता है। - प्रश्न – बाहरी जीवन को भीतरी जीवन के प्रति उत्तरदायी क्यों होना चाहिए?
उत्तर – ताकि मनुष्य का जीवन समरस, सच्चा और विश्वासयोग्य बन सके। - प्रश्न – प्रचार और षड्यंत्र से व्यक्ति क्या खो देता है?
उत्तर – प्रचार और षड्यंत्र से व्यक्ति लोगों का विश्वास और अपनी सच्ची पहचान खो देता है। - प्रश्न – लेखक ने व्यक्तित्व के ह्रास का क्या कारण बताया है?
उत्तर – लेखक ने व्यक्तित्व के ह्रास का कारण स्वार्थ, तकल्लुफ और हृदय की अस्वच्छता बताया है। - प्रश्न – सच्चा व्यक्तित्व किन गुणों से पहचाना जाता है?
उत्तर – सच्चा व्यक्तित्व स्नेह, आकर्षण, सेवा और खुलेपन से पहचाना जाता है। - प्रश्न – व्यक्तित्व पैसे से क्यों नहीं खरीदा जा सकता?
उत्तर – क्योंकि व्यक्तित्व हृदय की गहराई से उत्पन्न होता है, न कि बाहरी साधनों से। - प्रश्न – जीवन में व्यक्तित्व की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर – जीवन में व्यक्तित्व की आवश्यकता इसलिए है ताकि व्यक्ति के भीतर और बाहर का मेल बना रहे और समाज में विश्वास, प्रेम और आकर्षण कायम रहे।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- लेख के अनुसार व्यक्तित्व की परिभाषा क्या है?
उत्तर – व्यक्तित्व वह गुण है जो व्यक्ति के बाहरी और भीतरी जीवन को जोड़ता है, उसे संगठित करता है, और प्रेम, विश्वास, और आकर्षण पैदा करता है। यह हृदय की स्वच्छता, कोमलता, और खुलेपन से प्रकट होता है, न कि दिखावे या प्रचार से। - लेख में व्यक्तित्व और शासन की कला का क्या संबंध बताया गया है?
उत्तर – लेख में बताया गया है कि शासन की कला व्यक्तित्व के उपयोग से जुड़ी है। व्यक्तित्व वाला व्यक्ति शासन में प्रभावी होता है, क्योंकि वह हृदय की सरसता और विश्वास के साथ कार्य करता है, न कि केवल नियमों का पालन करके। - लेख के अनुसार व्यक्तित्व के अभाव में व्यक्ति का व्यवहार कैसा होता है?
उत्तर – व्यक्तित्व के अभाव में व्यक्ति का व्यवहार रूखा, चंचल, और उद्दण्ड होता है। वह तकल्लुफ और व्यवहारिकता का प्रदर्शन करता है, जिससे अविश्वास पैदा होता है और लोग उसके मनोभावों से बचने की कोशिश करते हैं। - लेख में व्यक्तित्व की तुलना केले के भीतरी स्तंभ से क्यों की गई है?
उत्तर – लेख में व्यक्तित्व की तुलना केले के भीतरी स्तंभ से की गई है, क्योंकि यह व्यक्ति के आंतरिक स्वभाव को दर्शाता है, जो बाहरी आवरण के नीचे छिपा रहता है और जीवन को उज्ज्वल या निरूज्ज्वल बनाता है। - लेख के अनुसार व्यक्तित्व को जीवित रखने का आधार क्या है?
उत्तर – लेख के अनुसार व्यक्तित्व को जीवित रखने का आधार प्राणों का खेल है। यह हृदय की कोमलता, सेवा, और खुलेपन से पनपता है, न कि प्रचार, दिखावे, या बाहरी आभूषणों के बल पर। - लेख में व्यक्तित्व के प्रभाव को कैसे वर्णित किया गया है?
उत्तर – व्यक्तित्व का प्रभाव प्रेम, विश्वास, और आकर्षण पैदा करता है। यह लोगों को न्योता देकर बुलाता है और उनकी तवज्जो खींचता है। व्यक्तित्व वाला व्यक्ति विश्व में अपनी छाप छोड़ता है, बिना प्रचार या षड्यंत्र के। - लेख के अनुसार व्यक्तित्व का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर – व्यक्तित्व का निर्माण अच्छी आदतों और बाहरी-भीतरी जीवन के मेल से होता है। हृदय की सरसता, सेवा, और स्वच्छता इसे बढ़ाती है, जबकि रूखापन और तकल्लुफ इसे नष्ट करते हैं। - लेख में आत्म-निवेदन की क्या भूमिका बताई गई है?
उत्तर – आत्म-निवेदन व्यक्तित्व को मजबूत करता है, क्योंकि यह व्यक्ति को अपने दोषों को स्वीकार करने और हृदय की स्वच्छता बनाए रखने में मदद करता है। इसके अभाव में व्यक्ति विश्व की सेवा से वंचित रहता है। - लेख में हृदय की स्वच्छता का व्यक्तित्व से क्या संबंध है?
उत्तर – हृदय की स्वच्छता व्यक्तित्व का आधार है। यह व्यक्ति को कोमल, विश्वासपूर्ण, और आकर्षक बनाती है। स्वच्छ हृदय बाहरी और भीतरी जीवन को जोड़ता है, जिससे व्यक्तित्व प्रभावशाली बनता है। - लेख के अनुसार व्यक्तित्व के बिना व्यक्ति विश्व में कैसे देखा जाता है?
उत्तर – व्यक्तित्व के बिना व्यक्ति रूखा, चंचल, और अविश्वसनीय माना जाता है। वह तकल्लुफ और व्यवहारिकता का प्रदर्शन करता है, जिससे लोग उससे दूरी बनाए रखते हैं और उस पर विश्वास नहीं करते।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- लेख के अनुसार व्यक्तित्व और शासन की कला के बीच संबंध को विस्तार से समझाइए।
उत्तर – लेख में शासन की कला को व्यक्तित्व के उपयोग से जोड़ा गया है। व्यक्तित्व वाला व्यक्ति शासन में प्रभावी होता है, क्योंकि वह हृदय की सरसता, सेवा, और विश्वास के साथ कार्य करता है। यह केवल नियमों का पालन करने से अलग है, क्योंकि व्यक्तित्व व्यक्ति को आकर्षक और विश्वसनीय बनाता है, जो शासन को प्रेरणादायक और प्रभावशाली बनाता है। बिना व्यक्तित्व के शासन रूखा और औपचारिक रह जाता है। - लेख में व्यक्तित्व के अभाव के परिणामों का वर्णन कैसे किया गया है?
उत्तर – लेख के अनुसार, व्यक्तित्व के अभाव में व्यक्ति का व्यवहार रूखा, चंचल, और उद्दण्ड हो जाता है। वह तकल्लुफ और व्यवहारिकता का प्रदर्शन करता है, जिससे अविश्वास पैदा होता है। लोग उसके मनोभावों से बचते हैं, और वह विश्व में अकेला रह जाता है। उसकी बातों में मिठास और विश्वास की कमी होती है, जिससे वह प्रभावहीन और असंगठित बन जाता है। - लेख में व्यक्तित्व को जीवित रखने के लिए किन गुणों को आवश्यक बताया गया है?
उत्तर – लेख में व्यक्तित्व को जीवित रखने के लिए हृदय की स्वच्छता, कोमलता, सेवा, और आत्म-निवेदन को आवश्यक बताया गया है। यह प्राणों का खेल है, जो प्रचार या दिखावे से नहीं, बल्कि अच्छी आदतों और बाहरी-भीतरी जीवन के मेल से पनपता है। व्यक्तित्व तभी प्रभावी होता है, जब व्यक्ति अपने अंतरतम से जुड़ा रहे और क्रूरता या स्वार्थ का सौदा न करे। - लेख में व्यक्तित्व की तुलना केले के भीतरी स्तंभ से क्यों और कैसे की गई है?
उत्तर – लेख में व्यक्तित्व की तुलना केले के भीतरी स्तंभ से की गई है, क्योंकि यह व्यक्ति के आंतरिक स्वभाव को दर्शाता है, जो बाहरी आवरण (कार्यों और जिम्मेदारियों) के नीचे छिपा रहता है। यह स्तंभ व्यक्ति को उज्ज्वल या निरूज्ज्वल बनाता है। व्यक्तित्व हृदय की स्वच्छता और कोमलता से चमकता है, जो बाहरी और भीतरी जीवन को जोड़ता है। - लेख के अनुसार व्यक्तित्व का निर्माण और विकास कैसे होता है?
उत्तर – व्यक्तित्व का निर्माण अच्छी आदतों, हृदय की सरसता, और बाहरी-भीतरी जीवन के मेल से होता है। यह हृदय की स्वच्छता, सेवा, और आत्म-निवेदन से विकसित होता है। व्यक्ति को अपने अंतरतम से जुड़े रहना चाहिए, न कि स्वार्थ या क्रूरता का सौदा करना चाहिए। व्यक्तित्व प्रेम, विश्वास, और आकर्षण पैदा करता है, जो विश्व में उसकी अमर छाप छोड़ता है।

