West Bengal, Hindi Course A, Class XI, Bhartendu Harishchandra – Mukariyan,

कवि परिचय : भारतेंदु हरिश्चंद्र

भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म सन् 1850 ई. में काशी के एक वैश्य परिवार में हुआ। इनके पिता गोपालचंद्र बड़े काव्य रसिक व्यक्ति थे। बचपन में ही माता-पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण उन्होंने घर पर ही हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी तथा बांग्ला का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। भारतेंदु के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। उन्होंने देश के विभिन्न भागों की यात्रा की और वहाँ समाज की स्थिति और रीति-नीतियों को गहराई से देखा। भारतीय नवजागरण की मशाल थामने वाले भारतेंदु ने अपनी रचनाओं के जरिए गरीबी, गुलामी और शोषण के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद की। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। सिर्फ़ पैंतीस वर्ष की उम्र पाने वाले भारतेंदु की अनेक विधाओं पर पकड़ थी। वे एक गद्यकार, कवि, नाटककार, व्यंग्यकार और पत्रकार थे। उन्होंने ‘बाला बोधिनी’ पत्रिका, ‘हरिश्चंद्र पत्रिका’ और ‘कविवचन सुधा’ पत्रिकाओं का संपादन किया। भारतेन्दु ने सिर्फ 18 वर्ष की उम्र में ‘कविवचनसुधा’ पत्रिका निकाली, जिसमें उस वक्त के बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाएँ प्रकाशित होती थीं। हिंदी में नाटकों की शुरूआत भारतेन्दु हरिश्चंद्र से मानी जाती है। नाटक भारतेन्दु के समय से पहले भी लिखे जाते थे, लेकिन बाकायदा तौर पर खड़ी बोली में नाटक लिखकर भारतेन्दु ने हिंदी नाटकों को नया आयाम दिया।

भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी साहित्य के एक पूरे युग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे साहित्य में ‘भारतेंदु युग’ के नाम से जाना जाता है। भारतेंदु जी की ‘मुकरियाँ’ लोक जीवन में खूब प्रचलित हुई।

मुकरी एक बहुविकल्पी शब्द है, जिसका लक्ष्य मनोरंजन के साथ-साथ बौद्धिक कुशलता की परीक्षा भी होती है। भारतेंदु हरिश्चंद्र अपनी मुकरियों में मनोरंजन तो करते ही थे, अपने समय में अंग्रेजों की नस्लीय सोच पर प्रहार भी करते थे। शरीर के अस्वस्थ होने एवं दुश्चिंताओं के कारण मात्र 35 वर्ष की अल्पायु में 6 जनवरी 1885 को भारतेंदु हरिश्चंद्र का निधन हो गया।

भारतेंदु हरिश्चंद्र की मुकरिया

सब गुरूजन को बुरो बतावै

अपनी खिचड़ी अलग पकावै

भीतर तत्व न झूठी तेजी

क्यों सखि सज्जन नहिं अँगरेजी ।1।

व्याख्या:

इस मुकरि में कवि ने अंग्रेजी भाषा बोलने वाले व्यक्ति की मानसिकता पर कटाक्ष किया है-

“सब गुरूजन को बुरो बतावै” — वह व्यक्ति सब अध्यापकों/बड़ों की निंदा करता है।

“अपनी खिचड़ी अलग पकावै” — वह हमेशा अलग विचार रखता है, समाज में घुलने की बजाय अलग दिखना चाहता है।

“भीतर तत्त्व न झूठी तेजी” — उसमें कोई सच्चा ज्ञान नहीं, केवल दिखावा और बनावटी तेज है।

“क्यों सखि सज्जन नहिं अँगरेजी” — यह मुकरी का उत्तर है। पहली तीन पंक्तियों में एक पहेली पूछी गई है, और अंतिम पंक्ति में उसका उत्तर छिपा है। अंत में मुकरते हुए व्यंग्यात्मक ढंग में कहा गया है कि “अरे सखी, यह सज्जन कैसे नहीं होंगे? यह तो अंग्रेजी जानते हैं!”

भावार्थ –

यह व्यंग्य है उन लोगों पर जो अंग्रेजी भाषा के घमंड में अपने देश, भाषा, संस्कृति और बड़ों को तुच्छ समझते हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र यह दिखाना चाहते हैं कि केवल अंग्रेजी जानना किसी के सज्जन या विद्वान होने का प्रमाण नहीं है अपितु वास्तविक ज्ञान और विनम्रता का मूल्य कहीं अधिक है।

धन लेकर कछु काम न आव

ऊँची नीची राह दिखाव

समय पड़े पर सीधै गूंगी

क्यों सखि सज्जन नहिं सखि चुंगी ।2।

इस मुकरी में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने चुंगी यानी टोल टैक्स या चुंगी कर पर व्यंग्य किया है।

व्याख्या –

“धन लेकर कछु काम न आव”: इसका अर्थ है कि चुंगी पैसे तो लेती है, लेकिन बदले में कोई सीधा काम नहीं आती या कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं देती। लोग चुंगी देने के बाद भी अपने गंतव्य तक स्वयं ही पहुँचते हैं, चुंगी कोई सुविधा नहीं देती।

“ऊँची नीची राह दिखाव”: यह पंक्ति चुंगी के कारण होने वाली असुविधा और रुकावटों की ओर इशारा करती है। चुंगी नाकों पर अक्सर वाहनों को रुकना पड़ता है, जिससे यातायात धीमा हो जाता है, और कभी-कभी रास्ते में भीड़ या बाधाएँ भी आती हैं। यह एक तरह से “ऊँची-नीची राह” दिखाने जैसा है, जहाँ रास्ता सीधा होने के बजाय बाधाओं भरा हो जाता है।

“समय पड़े पर सीधै गूंगी”: इस पंक्ति का अर्थ है कि जब ज़रूरत पड़ती है या कोई समस्या आती है (जैसे यात्रा में कोई कठिनाई), तो चुंगी बिल्कुल ‘गूंगी’ हो जाती है, यानी कोई सहायता नहीं करती या कोई जवाब नहीं देती। यह चुंगी की निष्क्रियता और लोगों की समस्या के प्रति उसकी उदासीनता को दर्शाता है।

“क्यों सखि सज्जन नहिं सखि चुंगी”: यह मुकरी का उत्तर है। पहली तीन पंक्तियों में एक पहेली पूछी गई है, और अंतिम पंक्ति में उसका उत्तर छिपा है। यहाँ सखी से पूछा जा रहा है कि ऐसा क्या है जो धन लेकर भी काम नहीं आता, ऊँची-नीची राह दिखाता है, और समय पड़ने पर गूंगा हो जाता है। इसका उत्तर है चुंगी।

भावार्थ:

यह मुकरी तत्कालीन शासकीय व्यवस्थाओं पर व्यंग्य है जो जनता से शुल्क तो लेती हैं लेकिन समय पर काम नहीं आतीं। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने इस शैली के माध्यम से सामाजिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार और उदासीनता की ओर संकेत किया है।

सतएँ अठएँ मों घर आवै

तरह तरह की बात सुनावै

घर बैठा ही जोड़े तार

क्यों सखि सज्जन नहिं अखबार ।3।

इस मुकरी में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अखबार या समाचार पत्र के बारे में बताया है।

व्याख्या

“सतएँ अठएँ मों घर आवै”: इसका अर्थ है कि यह अखबार कभी-कभार या नियमित रूप से या सातवें-आठवें दिन, यानी लगभग हर दिन या तय अंतराल पर घर आता है।

“तरह तरह की बात सुनावै”: इस पंक्ति का अर्थ है कि यह हमें विभिन्न प्रकार की खबरें और बातें बताता है। अखबार में देश-विदेश, राजनीति, समाज, खेल आदि अनेक विषयों की जानकारी होती है।

“घर बैठा ही जोड़े तार”: इसका मतलब है कि यह घर बैठे-बैठे ही (दुनिया भर से) संबंध जोड़ देता है या खबरें ले आता है। “तार जोड़ना” का अर्थ है संवाद स्थापित करना या जानकारी प्राप्त करना। अखबार के माध्यम से हमें दूर-दराज की घटनाओं की जानकारी घर बैठे मिल जाती है।

“क्यों सखि सज्जन नहिं अखबार”: यह मुकरी का उत्तर है। पहली तीन पंक्तियों में एक पहेली पूछी गई है, और अंतिम पंक्ति में उसका उत्तर छिपा है। यहाँ सखी से पूछा जा रहा है कि ऐसा क्या है जो घर आता है, तरह-तरह की बातें सुनाता है और घर बैठे ही तार जोड़ता है। इसका उत्तर है अखबार।

भावार्थ

यह मुकरी अखबार की उपयोगिता और उसकी अद्भुत सूचना शक्ति को दर्शाती है। भारतेंदु जी ने सरल और चुटीली भाषा में यह बताया कि अखबार बिना बाहर जाए, हमें दुनिया की सारी खबरें घर बैठे ही दे देता है। इसलिए वह सज्जनों में आता है।

भीतर भीतर सब रस चूसै

हँसि हँस के तन मन धन मूसै

जाहिर बातन मैं अति तेज

क्यों सखि सज्जन नहिं अँगरेज ।4।

इस मुकरी में अंग्रेजी शासन के शोषणकारी रवैये पर चुटीला प्रहार किया है

व्याख्या

“भीतर भीतर सब रस चूसै” :  अंग्रेज लोग भीतर-भीतर भारत का सारा रस, मतलब धन, संसाधन, ताकत आदि चूस लेते हैं।

“हँसि हँस के तन मन धन मूसै” : वे इतनी चालाकी से ये सब करते हैं कि हँसते हुए, मिठास भरी बातों के साथ, हमारे तन, मन और धन तक को लूट लेते हैं।

“जाहिर बातन मैं अति तेज” : वे अपने बाहरी व्यवहार में तेज और चतुर प्रतीत होते हैं — मतलब बहुत समझदार और सभ्य दिखते हैं, पर असलियत कुछ और होती है।

“क्यों सखि सज्जन नहिं अँगरेज” : इसलिए भारतेंदु कहते हैं — “क्यों सखि, क्या ये सज्जन  नहीं हैं? ये तो अंग्रेज हैं!” यहाँ ‘सज्जन’ शब्द का प्रयोग व्यंग्य के रूप में हुआ है।

भावार्थ

इस मुकरी में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अंग्रेजी शासन के शोषणकारी रवैये पर चुटीला प्रहार किया है। उन्होंने दिखाया है कि अंग्रेज अपने मिठास भरे व्यवहार और सभ्यता के आवरण में भारत को अंदर से खोखला कर रहे हैं। वे केवल लाभ लेना जानते हैं, चाहे वह भारतीयों का मन हो, धन हो या संसाधन। यह मुकरी ब्रिटिश सत्ता की वास्तविकता को उजागर करती है — बाहर से नम्र, भीतर से अत्याचारी।

रूप दिखावत सरबस लूटै

फंदे मैं जो पड़ै न छूटैं

कपट कटारी जिय मैं हुलिस

क्यों सखि सज्जन नहिं सखि पुलिस ।5।

इस मुकरी में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने पुलिस पर व्यंग्य किया है।

व्याख्या –

“रूप दिखावत सरबस लूटै”: इसका अर्थ है कि पुलिस अपना रौब या वर्दी का असर लोगों का सब कुछ (धन-संपत्ति, चैन, शांति) लूट लेती है।

“फंदे मैं जो पड़ै न छूटैं”: इस पंक्ति का अर्थ है कि जो एक बार पुलिस के चंगुल में फँस जाता है, वह आसानी से छूट नहीं पाता।

“कपट कटारी जिय मैं हुलिस”: इसका मतलब है कि पुलिस का व्यवहार कपटपूर्ण होता है और उनकी बातें या कार्रवाई दिल में छुरी की तरह चुभती हैं।

“क्यों सखि सज्जन नहिं सखि पुलिस”: यह मुकरी का उत्तर है। पहली तीन पंक्तियों में एक पहेली पूछी गई है, और अंतिम पंक्ति में उसका उत्तर छिपा है। यहाँ सखी से पूछा जा रहा है कि ऐसा क्या है जो रूप दिखाकर सब कुछ लूट लेता है, जिसके फंदे में पड़ने पर छूटना मुश्किल है, और जिसकी कपट कटारी दिल में चुभती है। इसका उत्तर है पुलिस।

भावार्थ –

यह मुकरी उस समय की पुलिस व्यवस्था पर एक तीखा व्यंग्य है, जो लोगों के लिए रक्षक से अधिक भक्षक के रूप में प्रतीत होती थी। इसमें पुलिस के भ्रष्ट आचरण, उसके चंगुल से निकलने की कठिनाई और उसके कठोर व्यवहार को उजागर किया गया है।

मुँह जब लागे तब नहिं छूटै

जाति मान धन सब कुछ लूटै।

पागल करि मोहिं करे खराब

क्यों सखि सज्जन नहिं सराब।6।

इस मुकरी में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने शराब अर्थात् मदिरा पर कटाक्ष किया है।

व्याख्या –

“मुँह जब लागे तब नहिं छूटै”: इसका अर्थ है कि एक बार जब शराब पीने की लत लग जाती है, तो उसे छोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है। यह शराब की लत की भयावहता और उससे मुक्ति पाने की कठिनाई को दर्शाता है।

“जाति मान धन सब कुछ लूटै”: इस पंक्ति का अर्थ है कि शराब व्यक्ति की जाति अर्थात् समाज में स्थान, मान-सम्मान और धन-संपत्ति सब कुछ बर्बाद कर देती है। शराब के कारण लोग सामाजिक प्रतिष्ठा खो देते हैं, परिवार में कलह होती है और आर्थिक रूप से कंगाल हो जाते हैं।

“पागल करि मोहिं करे खराब”: इसका मतलब है कि शराब व्यक्ति को मानसिक रूप से अस्थिर कर देती है, उसे ‘पागल’ जैसा बना देती है, और उसका जीवन पूरी तरह से बर्बाद कर देती है। शराब का अत्यधिक सेवन व्यक्ति के विवेक और मानसिक संतुलन को नष्ट कर देता है।

“क्यों सखि सज्जन नहिं सराब”: यह मुकरी का उत्तर है। पहली तीन पंक्तियों में एक पहेली पूछी गई है, और अंतिम पंक्ति में उसका उत्तर छिपा है। यहाँ सखी से पूछा जा रहा है कि ऐसी क्या चीज़ है जो एक बार मुँह लग जाए तो छूटती नहीं, सब कुछ लूट लेती है, और पागल करके खराब कर देती है। इसका उत्तर है शराब। यह एक नशा-विरोधी सामाजिक संदेश है जिसे उन्होंने सरल व व्यंग्यपूर्ण शैली में प्रस्तुत किया है।

रूप दिखावत सरबस लूटै

फंदे मेँ जो पड़ै न छूटै।।

कपट कटारी जिय मैं हुलिस

क्यों सखि सज्जन नहिं सखि पुलिस ।7।

इस मुकरी में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने पुलिस पर व्यंग्य किया है।

व्याख्या –

“रूप दिखावत सरबस लूटै”: इसका अर्थ है कि पुलिस अपना रौब या वर्दी का असर लोगों का सब कुछ (धन-संपत्ति, चैन, शांति) लूट लेती है।

“फंदे मैं जो पड़ै न छूटैं”: इस पंक्ति का अर्थ है कि जो एक बार पुलिस के चंगुल में फँस जाता है, वह आसानी से छूट नहीं पाता।

“कपट कटारी जिय मैं हुलिस”: इसका मतलब है कि पुलिस का व्यवहार कपटपूर्ण होता है और उनकी बातें या कार्रवाई दिल में छुरी की तरह चुभती हैं।

“क्यों सखि सज्जन नहिं सखि पुलिस”: यह मुकरी का उत्तर है। पहली तीन पंक्तियों में एक पहेली पूछी गई है, और अंतिम पंक्ति में उसका उत्तर छिपा है। यहाँ सखी से पूछा जा रहा है कि ऐसा क्या है जो रूप दिखाकर सब कुछ लूट लेता है, जिसके फंदे में पड़ने पर छूटना मुश्किल है, और जिसकी कपट कटारी दिल में चुभती है। इसका उत्तर है पुलिस।

भावार्थ –

यह मुकरी उस समय की पुलिस व्यवस्था पर एक तीखा व्यंग्य है, जो लोगों के लिए रक्षक से अधिक भक्षक के रूप में प्रतीत होती थी। इसमें पुलिस के भ्रष्ट आचरण, उसके चंगुल से निकलने की कठिनाई और उसके कठोर व्यवहार को उजागर किया गया है।

 

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