West Bengal, Hindi Course A, Class XI, Bheeshm Sahani – Bhagya Rekha,

लेखक परिचय  – भीष्म साहनी

आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त 1915 में रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘श्री हरवंशलाल साहनी’ व माता का नाम ‘श्रीमती लक्ष्मी देवी’ था। बता दें कि मशहूर अभिनेता रहे ‘बलराज साहनी’ उनके बड़े भाई थे। बड़े भाई के साथ अभिनेता और निर्देशक के रूप में उन्होंने काम किया। इनकी तमस रचना पर गोविन्द निहलानी ने टेलीफिल्म भी बनाई जो काफी चर्चित रही। मध्यवर्गीय परिवार में जन्में भीष्म साहनी का आरंभिक बचपन रावलपिंडी में ही बीता। इसके पश्चात् सन् 1958 में पंजाब विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। भीष्म साहनी की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हिंदी व संस्कृत में हुई। उन्होंने स्कूल में उर्दू व अंग्रेजी की

शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1937 में ‘गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया। भीष्म साहनी ने 1965 से 1967 तक “नई कहानियाँ” का सम्पादन किया। साथ ही वे प्रगतिशील लेखक संघ तथा एफ्रो एशियाई लेखक संघ से सम्बद्ध रहे, उनकी पत्रिका लोटस से भी ये जुड़े रहे। ये ‘सहमत’ नामक नाट्यसंस्थापक और अध्यक्ष थे, जो अंतर सांस्कृतिक संगठन को बढ़ावा देने वाला संगठन है, जिसकी स्थापना थियेटर कलाकार सफदर हाशमी की याद में की गई। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं,

झरोखे, तमस, बसन्ती, मायादास की माडी, कुन्तो, नीलू निलिमा निलोफर

मेरी प्रिय कहानियाँ, भाग्यरेखा, वांगचू, निशाचर,

हनूश, माधवी, कबीरा खड़ा बजार में, मुआवज़े;

बलराज माय ब्रदर;

गुलेल का खेल।

भीष्म साहनी की मृत्यु 11 जुलाई 2003 को दिल्ली में हुई थी।

 

भाग्य रेखा

कनाट सरकस के बाग में जहाँ नई दिल्ली की सब सड़कें मिलती हैं, जहाँ शाम को रसिक और दोपहर को बेरोज़गार आ बैठते हैं, तीन आदमी, खड़ी धूप से बचने के लिए, छाँह में बैठे, बीड़ियाँ सुलगाए बातें कर रहे हैं और उनसे ज़रा हटकर, दाईं ओर, एक आदमी खाकी से कपड़े पहने, अपने जूतों का सिरहाना बनाए, घास पर लेटा हुआ मुतवातर खाँस रहा है। पहली बार जब वह खाँसा तो मुझे बुरा लगा। चालीस पैंतालीस वर्ष का कुरूप-सा आदमी, सफ़ेद छोटे-छोटे बाल, काला, झाइयों भरा चेहरा, लम्बे-लम्बे दाँत और कन्धे आगे को झुके हुए, खाँसता जाता और पास ही घास पर थूकता जाता। मुझसे न रहा गया।

मैंने कहा, ‘सुना है, विलायत में सरकार ने जगह-जगह पीकदान लगा रखे हैं, ताकि लोगों को घास- पौधों पर न थूकना पड़े’।

उसने मेरी ओर निगाह उठाई, पल-भर घूरा, फिर बोला, ‘तो साहब, वहाँ लोगों को ऐसी खाँसी भी न आती होगी’।

फिर खाँसा, और मुस्कराता हुआ बोला, ‘बड़ी नामुराद बीमारी है, इसमें आदमी घुलता रहता है, मरता नहीं’। मैंने सुनी-अनसुनी करके, जेब में से अख़बार निकाला और देखने लगा। पर कुछ देर बाद कनखियों से देखा, तो वह मुझ पर टकटकी बाँधे मुस्करा रहा था।

मैंने अखबार छोड़ दिया, ‘क्या धन्धा करते हो?

‘जब धन्धा करते थे तो खाँसी भी यूँ तंग न किया करती थी’।

क्या करते थे?’

उस आदमी ने अपने दोनों हाथों की हथेलियाँ मेरे सामने खोल दीं। मैंने देखा, उसके दाएँ हाथ के बीच की तीन उँगलियाँ कटी थीं। वह बोला, ‘मशीन से कट गई। अब मैं नई उँगलियाँ कहाँ से लाऊँ? जहाँ जाओ, मालिक पूरी दस उँगलियाँ माँगता है, ‘

कहकर हँसने लगा। ‘पहले कहाँ काम करते थे?’

‘कालका वर्कशॉप में।’

हम दोनों फिर चुप हो गए। उसकी रामकहानी सुनने को मेरा जी नहीं चाहता था, बहुत-सी रामकहानियाँ सुन चुका था। थोड़ी देर तक वह मेरी तरफ़ देखता रहा, फिर छाती पर हाथ रखे लेट गया। मैं भी लेटकर अख़बार देखने लगा, मगर थका हुआ था, इसलिए मैं जल्दी ही सो गया। जब मेरी नींद टूटी तो मेरे नज़दीक धीमा-धीमा वार्तालाप चल रहा था, ‘यहाँ पर भी तिकोन बनती है, जहाँ आयु की रेखा और दिल की रेखा मिलती हैं, देखा? तुम्हें कहीं से धन मिलनेवाला है।’

मैंने आँखें खोलीं। वही दमे का रोगी घास पर बैठा, उँगलियाँ कटे हाथ की हथेली एक ज्योतिषी के सामने फैलाए अपनी क़िस्मत पूछ रहा था।

‘लाग-लपेटवाली बात नहीं करो, जो हाथ में लिखा है, वही पढ़ो।’

‘इधर अँगूठे के नीचे भी तिकोन बनती है। तेरा माथा बहुत साफ़ है, धन जरूर मिलेगा।’

‘कब?’

‘जल्दी ही।’

देखते-ही-देखते उसने ज्योतिषी के गाल पर एक थप्पड़ दे मारा। ज्योतिषी बिलबिला गया।

‘कब धन मिलेगा? धन मिलेगा ! तीन साल से भाई के टुकड़ों पर पड़ा हूँ, कहता है, धन मिलेगा !’

ज्योतिषी अपना पोथी – पत्रा उठाकर जाने लगा, मगर यजमान ने कलाई खींचकर बिठा लिया, ‘मीठी-मीठी बातें तो बता दीं, अब जो लिखा है, वह बता, मैं कुछ नहीं कहूँगा।’

ज्योतिषी कोई बीस-बाईस वर्ष का युवक था। काला चेहरा, सफ़ेद कुर्ता और पाजामा जो जगह-जगह से सिला हुआ था। बातचीत के ढंग से बंगाली जान पड़ता था। पहले तो घबराया फिर हथेली पर यजमान का हाथ लेकर रेखाओं की मूकभाषा पढ़ता रहा। फिर धीरे से बोला, ‘तेरे भाग्य रेखा नहीं हैं।’

यजमान सुनकर हँस पड़ा, ‘ऐसा कह न साले, छिपाता क्यों है? भाग्य रेखा कहाँ होती है?’

‘इधर, यहाँ से उस उँगली तक जाती है।’

भाग्य रेखा नहीं है तो धन कहाँ से मिलेगा?’

धन ज़रूर मिलेगा। तेरी नहीं तो तेरी घरवाली की रेखा अच्छी होगी। उसका भाग्य तुझे मिलेगा। ऐसे भी होता है’।

‘ठीक है, उसी के भाग्य पर तो अब तक जी रहा हूँ। वही तो चार बच्चे छोड़कर अपनी राह चली गई है।’

ज्योतिषी चुप हो गया। दोनों एक-दूसरे के मुँह की ओर देखने लगे। फिर यजमान ने अपना हाथ खींच लिया, और ज्योतिषी को बोला, ‘तू अपना हाथ दिखा।’

ज्योतिषी सकुचाया, मगर उससे छुटकारा पाने का कोई साधन न देखकर, अपनी हथेली उसके सामने खोल दी, ‘यह तेरी भाग्य रेखा है?’

‘हाँ।’

‘तेरा भाग्य तो बहुत अच्छा है। कितने बंगले हैं तेरे?’

ज्योतिषी ने अपनी हथेली बन्द कर ली और फिर पोथी – पत्रा सहेजने लगा। दमे के रोगी ने पूछा, ‘बैठ जा इधर। कब से यह धन्धा करने लगा है?

ज्योतिषी चुप।

दमे के रोगी ने पूछा, ‘कहाँ से आया है?’

‘पूर्वी बंगाल से।’

‘शरणार्थी है?’

‘हाँ’।

‘पहले भी यही धन्धा या?’

ज्योतिषी फिर चुप। तनाव कुछ ढीला पड़ने लगा।

यजमान धीरे से बोला, ‘हमसे क्या मिलेगा ! जा, किसी मोटरवाले का हाथ देख।’

ज्योतिषी ने सिर हिलाया, ‘वह कहाँ दिखाते हैं! जो दो पैसे मिलते हैं, तुम्हीं जैसों से’।

सूर्य सामने पेड़ के पीछे ढल गया था। इतने में पाँच-सात चपरासी सामने से आए और पेड़ के नीचे बैठ गए, ‘जा, उनका हाथ देख। उनकी जेबें खाली न होंगी।’

मगर ज्योतिषी सहमा-सा बैठा रहा। एकाएक बाग़ की आबादी बढ़ने लगी। नीले कुर्ते-पाजामे पहने, लोगों की कई टोलियाँ, एक-एक करके आईं, और पास के फुटपाथ पर बैठने लगीं। फिर एक नीली-सी लारी झपटती हुई आई, और बाग़ के ऐन सामने रुक गई। उसमें से पन्द्रह-बीस लट्ठधारी पुलिसवाले उतरे और सड़क के पार एक कतार में खड़े हो गए। बाग़ की हवा में तनाव आने लगा। राहगीर पुलिस को देखकर रुकने लगे। पेड़ों के तले भी कुछ मज़दूर आ जुटे।

‘लोग किसलिए जमा हो रहे हैं?’ ज्योतिषी ने यजमान से पूछा।

‘तुम नहीं जानते? आज मई दिवस है, मज़दूरों का दिन है।’

फिर यजमान गम्भीर हो गया, ‘आज के दिन मज़दूरों पर गोली चली थी।’

मज़दूरों की तादाद बढ़ती ही गई और मज़दूरों के साथ खोमचेवाले, मलाई, बरफ, मूँगफली, चाट, चबेनेवाले भी आन पहुँचे, और घूम-घूमकर सौदा बेचने लगे। इतने में शहर की ओर से शोर सुनाई दिया। बाग़ से लोग दौड़-दौड़कर फुटपाथ पर जा खड़े हुए। सड़क के पार सिपाही लाठियाँ संभाले तनकर खड़े हो गए। जुलुस आ रहा था। नारे गूँज रहे थे। हवा में तनाव बढ़ रहा था। फुटपाथ पर खड़े लोग भी नारे लगाने लगे।

पुलिस की एक और लारी आ लगी, और लट्ठधारी सिपाही कूद कूदकर उतरे। ‘आज लाठी चलेगी।’ यजमान ने कहा। पर किसी ने कोई उत्तर न दिया।

सड़क के दोनों ओर भीड़ जम गई। सवारियों का आना-जाना रुक गया। शहरवाली सड़क पर से एक जुलूस बाग़ की तरफ़ बढ़ता हुआ नजर आया। फुटपाथ वाले भी उसमें जा-जाकर मिलने लगे। इतने में दो और जुलूस अलग-अलग दिशा से बाग़ की तरफ़ आने लगे। भीड़ जोश में आने लगी। मज़दूर बाग के सामने आठ-आठ की लाइन बनाकर खड़े होने लगे। नारे आसमान तक गूँजने लगे, और लोगों की तादाद हज़ारों तक जा लगी। सारे शहर की धड़कन मानो इसी भीड़ में पुंजीभूत हो गई हो! कई जुलूस मिलकर एक हो गए। मज़दूरों ने झंडे उठाए और आगे बढ़ने लगे। पुलिसवालों ने लाठियाँ उठा लीं और साथ-साथ जाने लगे।

फिर वह भीमाकार जुलूस धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। कनाट सरकस की मालदार, धुली-पुती दीवारों के सामने वह अनोखा लग रहा था, जैसे नीले आकाश में सहमा अँधियारे बादल करवटें लेने लगें! धीरे-धीरे चलता हुआ जुलूस उस ओर घूम गया जिस तरफ़ से पुलिस की लारियाँ आई थीं। ज्योतिषी अपनी उत्सकुता में बेंच के ऊपर आ खड़ा हुआ था। दमे का रोगी, अब भी अपनी जगह पर बैठा, एकटक जुलूस को देख रहा था।

दूर होकर नारों की गूँज मंदतर पड़ने लगी। दर्शकों की भीड़ बिखर गई। जो लोग जुलूस के संग नहीं गए, वे अपने घरों की ओर रवाना हुए। बाग़ पर धीरे-धीरे दुपहर जैसी ही निस्तब्धता छाने लगी। इतने में एक आदमी, जो बाग़ के आर-पार तेज़ी से भागता हुआ जुलूस की ओर आ रहा था, सामने से गुज़रा। दुबला-सा आदमी, मैली गंजी और जांघिया पहने हुए। यजमान ने उसे रोक लिया, ‘क्यों दोस्त, ज़रा इधर तो आओ’।

‘क्या है?’

‘यह जुलूस कहाँ जाएगा?’

‘पता नहीं सुनते हैं, अजमेरी गेट, दिल्ली दरवाज़ा होता हुआ लाल क़िले जाएगा, वहाँ जलसा होगा’।

‘वहाँ तक पहुँचेगा भी? यह लट्ठधारी जो साथ जा रहे हैं, जो रास्ते में गड़बड़ हो गई तो?’

‘अरे, गड़बड़ तो होती ही रहती है, तो जुलूस रुकेगा थोड़े ही’, कहता हुआ वह आगे बढ़ गया।

दमे का रोगी जुलूस के ओझल हो जाने तक, टकटकी बाँधे उसे देखता रहा। फिर ज्योतिषी के कन्धे को थपथपाता हुआ, उसकी आँखों में आँखें डालकर मुस्कराने लगा। ज्योतिषी फिर कुछ सकुचाया, घबराया।

यजमान बोला, ‘देखा साले?’

‘हाँ, देखा है’।

अब भी यजमान की आँखें जुलूस की दिशा में अटकी हुई थीं। फिर मुस्कराते हुए, अपनी उँगलियाँ- कटी हथेली ज्योतिषी के सामने खोल दी, ‘फिर देख हथेली, साले, तू कैसे कहता है कि भाग्य रेखा कमज़ोर है?’

और फिर बाएँ हाथ से छाती को थामे ज़ोर-ज़ोर से खाँसने लगा।

 

शब्दार्थ

Word

Hindi Meaning

Bengali Meaning

English Meaning

रसिक

आनंद लेनेवाला, शौकीन

রসিক, মজাদার

Connoisseur, appreciative person

मुतवातर

लगातार, निरंतर

ক্রমাগত, লাগাতার

Continuously, incessantly

कुरूप

बदसूरत, भद्दा

কুরুপ, দেখতে খারাপ

Ugly, disfigured

झाइयों भरा चेहरा

दाग-धब्बों वाला चेहरा

দাগ-ছোপ ভরা মুখ

Freckled/blemished face

पीकदान

थूकने का पात्र

পিকদানি

Spittoon

नामुराद

अभागा, हतभागा, दुष्ट

অভাগা, হতভাগ্য, দুষ্ট

Unfortunate, wretched, perverse

कनखियों से देखना

तिरछी निगाह से देखना

আড়চোখে দেখা

To look askance, to glance sideways

हथेलियाँ

हाथ की भीतरी सतह

হাতের তালু

Palms

रामकहानी

लंबी-चौड़ी व्यथा कथा, दुखभरी कहानी

রামকাহিনী, দুঃখের গল্প

Long and sorrowful tale, woes

जी नहीं चाहता था

मन नहीं कर रहा था

মন চাইছিল না

Did not feel like, did not want to

तिकोन

त्रिभुज

ত্রিভুজ

Triangle

लाग-लपेटवाली बात नहीं

घुमा-फिराकर बात नहीं, सीधी बात

সরাসরি কথা, কোনো আড়াল না

No prevarication, direct talk

पोथी-पत्रा

ज्योतिष की किताबें और सामग्री

পুঁথি-পত্র, জ্যোতিষীর সরঞ্জাম

Astrological books and paraphernalia

यजमान

ग्राहक, वह व्यक्ति जिसके लिए कोई धार्मिक कार्य किया जाए (यहाँ ग्राहक के अर्थ में)

যজমান, গ্রাহক

Client (especially for a priest/astrologer)

बिलबिला गया

घबरा गया, बेचैन हो गया

বিচলিত হয়ে গেল, অস্থির হল

Was flustered, became agitated

सकुचाया

शरमाया, संकोच किया

লজ্জাবোধ করল, সংকুচিত হল

Hesitated, felt shy/embarrassed

मूकभाषा

बिना बोले समझ में आने वाली भाषा

নীরব ভাষা, অঙ্গভঙ্গির ভাষা

Mute language, unspoken language

शरणार्थी

पनाह लेने वाला, जो अपना देश छोड़कर दूसरे देश में रहता है

শরণার্থী

Refugee

तनाव कुछ ढीला पड़ने लगा

तनाव कम होने लगा

উত্তেজনা কমে এল

Tension began to ease

खमचेवाले

छोटे-मोटे खाने की चीज़ें बेचने वाले

ফেরিওয়ালা

Street vendors (selling snacks)

चाट-चबेनेवाले

चाट और सूखे नाश्ते बेचने वाले

চাট ও শুকনো খাবার বিক্রেতা

Vendors selling chaat and dry snacks

अजमेरी गेट, दिल्ली दरवाज़ा

दिल्ली में ऐतिहासिक द्वार

আজমেরী গেট, দিল্লি গেট

Ajmeri Gate, Delhi Gate (historic gates in Delhi)

गड़बड़

दिक्कत, परेशानी

গোলমাল, সমস্যা

Trouble, disturbance

ओझल हो जाने तक

अदृश्य हो जाने तक

অদৃশ্য না হওয়া পর্যন্ত

Until it disappeared from sight

अटकी हुई थीं

टिकी हुई थीं, स्थिर थीं

আটকে ছিল, স্থির ছিল

Were fixed, were glued to

पुंजीभूत

केंद्रित, इकट्ठा

পুঞ্জীভূত, কেন্দ্রীভূত

Concentrated, accumulated

धीमा-धीमा वार्तालाप

धीमी बातचीत

মৃদু কথোপকথন

Slow/quiet conversation

निस्तब्धता

खामोशी, शांति

নীরবতা, নিস্তব্ধতা

Silence, stillness

भीमाकार

विशालकाय, बहुत बड़ा

বিশাল, ভীমকায়

Enormous, colossal

मालदार

धनी, संपन्न (यहाँ दीवारों के संदर्भ में साफ-सुथरा और भव्य)

সমৃদ্ধ, বিত্তশালী (এখানে দেয়ালের প্রসঙ্গে পরিচ্ছন্ন ও জমকালো)

Rich, affluent (here referring to clean and grand walls)

उत्सुकता

जिज्ञासा, जानने की इच्छा

কৌতূহল

Curiosity

धियारे बादल करवटें लेने लगें

अँधेरे बादल बदलने लगें (यहाँ जुलूस की गति और प्रभाव को दर्शाने के लिए लाक्षणिक प्रयोग)

অন্ধকার মেঘ দিক পরিবর্তন করতে লাগল (এখানে মিছিলের গতি ও প্রভাব বোঝাতে রূপক ব্যবহার)

Dark clouds starting to shift (metaphorical, indicating the movement and impact of the procession)

कहानी ‘भाग्य रेखा’ का परिचय

कहानी ‘भाग्य रेखा’ एक गहरी और सामाजिक संदेश से भरी कहानी है, जो नई दिल्ली के कनॉट सरकस के बाग में घटित होती है। यहाँ विभिन्न पृष्ठभूमि के लोग, विशेष रूप से मेहनतकश और हाशिए पर रहने वाले, अपनी जिंदगी की जद्दोजहद और आकांक्षाओं को लेकर बातचीत करते हैं। कहानी का केंद्रीय पात्र एक चालीस-पैंतालीस वर्षीय व्यक्ति है, जो खाँसी की बीमारी से ग्रस्त है और जिसके दाएँ हाथ की तीन उँगलियाँ मशीन में कट गई हैं। यह कहानी सामाजिक असमानता, गरीबी, और भाग्य के प्रति लोगों के विश्वास और निराशा को उजागर करती है।

कहानी ‘भाग्य रेखा’ का मुख्य विषय नियति बनाम कर्म और सामूहिक शक्ति में विश्वास है। यह कहानी दिखाती है कि कैसे लोग अपनी किस्मत को जानने और बदलने की कोशिश करते हैं, लेकिन जीवन की कठोर सच्चाइयाँ और सामाजिक परिस्थितियाँ अक्सर उनके व्यक्तिगत भाग्य से अधिक शक्तिशाली होती हैं।

कहानी में, दमे का रोगी अपने हाथ की कटी हुई उँगलियों के बावजूद, एक ऐसे ज्योतिषी से अपनी भाग्य रेखा जानने की कोशिश करता है जो स्वयं एक शरणार्थी है और उसके पास कोई खास ज्ञान नहीं है। यह निराशा और अंधविश्वास के बीच व्यक्ति की आशा की तलाश को दर्शाता है।

हालाँकि, कहानी का अंत इस व्यक्तिगत संघर्ष से हटकर सामूहिक शक्ति और श्रमिकों के एकजुट होने की ओर बढ़ता है। मई दिवस के अवसर पर इकट्ठा हुए श्रमिकों का जुलूस दमे के रोगी को यह एहसास कराता है कि असली शक्ति और शायद असली भाग्य हाथ की रेखाओं में नहीं, बल्कि संघर्ष, एकजुटता और सामाजिक परिवर्तन की आकांक्षा में निहित है। उसकी कटी हुई उँगली वाली हथेली का फिर से ज्योतिषी के सामने खोलना, यह दर्शाता है कि अब वह भाग्य को अपनी व्यक्तिगत अक्षमताओं में नहीं, बल्कि सामूहिक प्रतिरोध और भविष्य की संभावनाओं में देखता है।

कहानी ‘भाग्य रेखा’ का विस्तृत सारांश –

कहानी की शुरुआत कनॉट सरकस के बाग में होती है, जहाँ दोपहर के समय बेरोज़गार और शाम को रसिक लोग इकट्ठा होते हैं। धूप से बचने के लिए तीन लोग छाँह में बैठकर बीड़ी पीते हुए बातें कर रहे हैं। पास ही एक खाकी कपड़े पहने, बीमार-सा दिखने वाला व्यक्ति घास पर लेटा है, जो बार-बार खाँस रहा है और पास ही थूकता है। उसका कुरूप चेहरा, छोटे सफेद बाल, और झुके हुए कंधे उसकी कठिन जिंदगी की कहानी बयान करते हैं।

नायक, जो कहानी का वर्णनकर्ता है, इस व्यक्ति की खाँसी और थूकने की आदत से असहज हो जाता है। वह टिप्पणी करता है कि विदेशों में सरकार ने पीकदान लगा रखे हैं ताकि लोग सार्वजनिक स्थानों पर न थूकें। इस पर बीमार व्यक्ति तीखा जवाब देता है कि विदेशों में शायद ऐसी खाँसी भी नहीं होती होगी। वह अपनी बीमारी को ‘नामुराद’ बताते हुए कहता है कि यह उसे धीरे-धीरे घुला रही है, पर मरने नहीं देती।

नायक उससे उसका पेशा पूछता है, तो वह अपने कटे हुए उँगलियों वाले हाथ दिखाता है और बताता है कि वह कालका वर्कशॉप में काम करता था, जहाँ मशीन ने उसकी उँगलियाँ काट दीं। अब कोई मालिक उसे काम नहीं देता, क्योंकि वे “दस पूरी उँगलियाँ” माँगते हैं। यह सुनकर नायक उसकी कहानी से ऊब जाता है, क्योंकि उसने ऐसी कई कहानियाँ सुन रखी हैं। वह अखबार पढ़ने लगता है और थकान के कारण सो जाता है।

जब नायक की नींद टूटती है, वह देखता है कि वही बीमार व्यक्ति एक ज्योतिषी से अपनी हथेली दिखाकर भाग्य पूछ रहा है। ज्योतिषी, जो बीस-बाईस वर्ष का एक बंगाली युवक है, उसकी हथेली में तिकोण देखकर धन प्राप्ति की भविष्यवाणी करता है। लेकिन बीमार व्यक्ति गुस्से में आकर ज्योतिषी को थप्पड़ मार देता है, क्योंकि वह पिछले तीन साल से अपने भाई के टुकड़ों पर जी रहा है और उसे ऐसी भविष्यवाणी पर यकीन नहीं है। वह ज्योतिषी को अपनी हथेली की सच्चाई बताने को कहता है।

ज्योतिषी, घबराते हुए, कहता है कि उसकी हथेली में भाग्य रेखा नहीं है। यह सुनकर बीमार व्यक्ति हँसता है और पूछता है कि अगर भाग्य रेखा नहीं है, तो धन कहाँ से आएगा। ज्योतिषी जवाब देता है कि शायद उसकी पत्नी की भाग्य रेखा अच्छी होगी, जिसका लाभ उसे मिलेगा। इस पर बीमार व्यक्ति बताता है कि उसकी पत्नी चार बच्चों को छोड़कर चली गई है, और वह उसी के भाग्य पर जी रहा है।

फिर वह ज्योतिषी से उसकी हथेली दिखाने को कहता है। ज्योतिषी अनिच्छा से अपनी हथेली दिखाता है, और बीमार व्यक्ति उसकी मजबूत भाग्य रेखा देखकर तंज कसता है कि उसका भाग्य तो बहुत अच्छा है। ज्योतिषी बताता है कि वह पूर्वी बंगाल से शरणार्थी है और यह धंधा करता है। वह कहता है कि अमीर लोग अपनी हथेली नहीं दिखाते, और उसे दो पैसे गरीबों से ही मिलते हैं।

इसी बीच, बाग में माहौल बदलने लगता है। मई दिवस के अवसर पर मजदूरों का जुलूस निकल रहा है। पुलिस की लारियाँ आती हैं, और लाठीधारी सिपाही तैनात हो जाते हैं। बाग में भीड़ बढ़ने लगती है, और नारे गूँजने लगते हैं। बीमार व्यक्ति बताता है कि आज मजदूरों का दिन है, और पहले भी इस दिन मजदूरों पर गोली चली थी। जुलूस धीरे-धीरे आगे बढ़ता है, और भीड़ में जोश बढ़ता जाता है।

जुलूस के जाने के बाद बाग फिर शांत हो जाता है। एक दुबला-पतला व्यक्ति भागता हुआ आता है, जिससे बीमार व्यक्ति पूछता है कि जुलूस कहाँ जाएगा? वह बताता है कि जुलूस लाल किले की ओर जा रहा है, और अगर रास्ते में गड़बड़ हुई, तो भी जुलूस नहीं रुकेगा।

अंत में, बीमार व्यक्ति ज्योतिषी को अपनी कटी उँगलियों वाली हथेली फिर से दिखाता है और तंज भरे लहजे में पूछता है कि वह कैसे कह सकता है कि उसकी भाग्य रेखा कमजोर है। वह जोर-जोर से खाँसने लगता है, और उसकी हँसी और खाँसी में उसकी जिंदगी की विडंबना झलकती है।

कहानी का मुख्य विषय और संदेश –

सामाजिक असमानता और मेहनतकश वर्ग की पीड़ा – कहानी मजदूरों और गरीबों की कठिन जिंदगी को दर्शाती है। बीमार व्यक्ति की कटी उँगलियाँ और बेरोजगारी उसकी मेहनत और समाज द्वारा उपेक्षा को उजागर करती हैं।

भाग्य और विश्वास – ज्योतिषी और बीमार व्यक्ति का संवाद भाग्य के प्रति विश्वास और निराशा के बीच की खाई को दिखाता है। जहाँ ज्योतिषी आशा की बातें करता है, वहीं बीमार व्यक्ति अपनी कठोर वास्तविकता से वाकिफ है।

मजदूर आंदोलन और सामाजिक बदलाव – मई दिवस का जुलूस मजदूरों के संघर्ष और उनके अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक है, जो कहानी को एक सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ देता है।

मानवीय संवेदनशीलता और विडंबना – बीमार व्यक्ति की हँसी और खाँसी में उसकी जिंदगी की विडंबना और समाज के प्रति उसका तंज स्पष्ट है। वह अपनी तकलीफ को हँसी में छिपाता है, जो कहानी को गहराई देता है।

निष्कर्ष –

‘भाग्य रेखा’ एक ऐसी कहानी है जो सामान्य लोगों की जिंदगी की सच्चाई को उजागर करती है। यह गरीबी, बेरोजगारी और सामाजिक अन्याय के बीच आशा और निराशा के द्वंद्व को दर्शाती है। बीमार व्यक्ति और ज्योतिषी का संवाद, साथ ही मई दिवस का जुलूस, कहानी को एक गहरे सामाजिक संदेश के साथ जोड़ता है, जो पाठक को सोचने पर मजबूर करता है।

‘भाग्य रेखा’ कहानी पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न

  1. कहानी ‘भाग्य रेखा’ का मुख्य स्थान कहाँ है?
    अ) लाल किला
    ब) कनॉट सरकस का बाग
    स) अजमेरी गेट
    द) दिल्ली दरवाज़ा
    उत्तर – ब) कनॉट सरकस का बाग
  2. कहानी में बीमार व्यक्ति की मुख्य शिकायत क्या थी?
    अ) बुखार
    ब) खाँसी
    स) सिरदर्द
    द) पेट दर्द
    उत्तर – ब) खाँसी
  3. बीमार व्यक्ति के दाएँ हाथ की कितनी उँगलियाँ कटी थीं?
    अ) दो
    ब) तीन
    स) चार
    द) पाँच
    उत्तर – ब) तीन
  4. बीमार व्यक्ति पहले कहाँ काम करता था?
    अ) दिल्ली वर्कशॉप
    ब) कालका वर्कशॉप
    स) मुंबई वर्कशॉप
    द) कोलकाता वर्कशॉप
    उत्तर – ब) कालका वर्कशॉप
  5. नायक ने बीमार व्यक्ति के थूकने पर क्या टिप्पणी की?
    अ) विलायत में पीकदान लगे हैं
    ब) भारत में पीकदान लगे हैं
    स) थूकना गलत है
    द) बीमारी का इलाज करवाओ
    उत्तर – अ) विलायत में पीकदान लगे हैं
  6. बीमार व्यक्ति ने अपनी बीमारी को क्या कहा?
    अ) मामूली बीमारी
    ब) नामुराद बीमारी
    स) पुरानी बीमारी
    द) खतरनाक बीमारी
    उत्तर – ब) नामुराद बीमारी
  7. ज्योतिषी ने बीमार व्यक्ति की हथेली में क्या देखा?
    अ) भाग्य रेखा
    ब) तिकोण
    स) आयु रेखा
    द) दिल की रेखा
    उत्तर – ब) तिकोण
  8. ज्योतिषी ने बीमार व्यक्ति को क्या भविष्यवाणी की?
    अ) लंबी आयु
    ब) धन प्राप्ति
    स) नौकरी मिलना
    द) स्वास्थ्य लाभ
    उत्तर – ब) धन प्राप्ति
  9. बीमार व्यक्ति ने ज्योतिषी को क्यों थप्पड़ मारा?
    अ) उसने गलत भविष्यवाणी की
    ब) उसने धन प्राप्ति की बात कही
    स) उसने बीमारी का ज़िक्र किया
    द) उसने भाग्य रेखा नहीं देखी
    उत्तर – ब) उसने धन प्राप्ति की बात कही
  10. ज्योतिषी ने बीमार व्यक्ति की हथेली के बारे में क्या कहा?
    अ) भाग्य रेखा बहुत मजबूत है
    ब) भाग्य रेखा नहीं है
    स) आयु रेखा छोटी है
    द) दिल की रेखा टूटी है
    उत्तर – ब) भाग्य रेखा नहीं है
  11. बीमार व्यक्ति ने बताया कि वह किसके टुकड़ों पर जी रहा है?
    अ) अपने पिता के
    ब) अपने भाई के
    स) अपने दोस्त के
    द) अपनी पत्नी के
    उत्तर – ब) अपने भाई के
  12. ज्योतिषी कहाँ से आया था?
    अ) पश्चिमी बंगाल
    ब) पूर्वी बंगाल
    स) बिहार
    द) उत्तर प्रदेश
    उत्तर – ब) पूर्वी बंगाल
  13. ज्योतिषी की उम्र कितनी थी?
    अ) 18-20 वर्ष
    ब) 20-22 वर्ष
    स) 25-30 वर्ष
    द) 30-35 वर्ष
    उत्तर – ब) 20-22 वर्ष
  14. कहानी में किस दिन का जुलूस निकला था?
    अ) स्वतंत्रता दिवस
    ब) मई दिवस
    स) गणतंत्र दिवस
    द) मजदूर दिवस
    उत्तर – ब) मई दिवस
  15. जुलूस के दौरान बाग में क्या माहौल था?
    अ) शांत
    ब) तनावपूर्ण
    स) उत्सवपूर्ण
    द) उदास
    उत्तर – ब) तनावपूर्ण
  16. पुलिस की लारियों में कौन थे?
    अ) मजदूर
    ब) चपरासी
    स) लट्ठधारी सिपाही
    द) पत्रकार
    उत्तर – स) लट्ठधारी सिपाही
  17. जुलूस कहाँ की ओर जा रहा था?
    अ) कनॉट प्लेस
    ब) लाल किला
    स) इंडिया गेट
    द) संसद भवन
    उत्तर – ब) लाल किला
  18. बीमार व्यक्ति ने ज्योतिषी को अंत में क्या दिखाया?
    अ) अपनी बीमारी का प्रमाण
    ब) अपनी कटी उँगलियों वाली हथेली
    स) अपनी पत्नी की तस्वीर
    द) अपना पुराना पत्र
    उत्तर – ब) अपनी कटी उँगलियों वाली हथेली
  19. कहानी का अंत किस भाव के साथ होता है?
    अ) आशा
    ब) विडंबना
    स) खुशी
    द) निराशा
    उत्तर – ब) विडंबना
  20. कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
    अ) भाग्य पर विश्वास करना चाहिए
    ब) मेहनतकश वर्ग की कठिनाइयाँ और सामाजिक असमानता
    स) ज्योतिष पर भरोसा न करना
    द) बीमारी से बचाव करना
    उत्तर – ब) मेहनतकश वर्ग की कठिनाइयाँ और सामाजिक असमानता

भाग्य रेखा’ पाठ पर आधारित एक-वाक्य वाले प्रश्न और उत्तर –

  1. प्रश्न – दमे का रोगी कहाँ लेटा हुआ था?
    उत्तर – वह बाग़ की घास पर लेटा हुआ था।
  2. प्रश्न – लेखक को रोगी की कौन सी आदत बुरी लगी?
    उत्तर – लेखक को उसका बार-बार खाँसकर घास पर थूकना बुरा लगा।
  3. प्रश्न – रोगी की तीन उँगलियाँ क्यों कटी थीं?
    उत्तर – उसकी उँगलियाँ मशीन में कट गई थीं।
  4. प्रश्न – वह आदमी पहले कहाँ काम करता था?
    उत्तर – वह कालका वर्कशॉप में काम करता था।
  5. प्रश्न – ज्योतिषी ने किसकी हथेली देखकर भाग्य बताना शुरू किया?
    उत्तर – उसने दमे के रोगी की हथेली देखनी शुरू की।
  6. प्रश्न – ज्योतिषी ने रोगी से क्या कहा कि उसके भाग्य में धन कहाँ से आएगा?
    उत्तर – उसने कहा कि उसकी पत्नी की रेखा अच्छी है, उसी से उसे धन मिलेगा।
  7. प्रश्न – दमे का रोगी किसकी मृत्यु का ज़िक्र करता है?
    उत्तर – वह अपनी पत्नी के मरने की बात करता है।
  8. प्रश्न – ज्योतिषी कहाँ का निवासी था?
    उत्तर – वह पूर्वी बंगाल से आया था।
  9. प्रश्न – ज्योतिषी को देखकर लेखक ने उसे किस भाषा का जानकार समझा?
    उत्तर – लेखक ने उसे बंगाली समझा।
  10. प्रश्न – बाग़ में कौन-सा दिवस मनाया जा रहा था?
    उत्तर – वहाँ मई दिवस मनाया जा रहा था।
  11. प्रश्न – जुलूस किस दिशा की ओर बढ़ रहा था?
    उत्तर – जुलूस दिल्ली दरवाज़ा और लाल क़िले की ओर बढ़ रहा था।
  12. प्रश्न – पुलिसवालों के पास कौन-सा हथियार था?
    उत्तर – उनके पास लाठियाँ थीं।
  13. प्रश्न – भीड़ किन-किन लोगों से बन रही थी?
    उत्तर – भीड़ मज़दूरों, चाटवालों, खोमचेवालों और आम लोगों से बनी थी।
  14. प्रश्न – ज्योतिषी ने अपनी हथेली क्यों छिपा ली?
    उत्तर – जब रोगी ने उसकी भाग्य रेखा के बारे में ताना मारा, तो उसने शर्म से हथेली छिपा ली।
  15. प्रश्न – कहानी का शीर्षक ‘भाग्य रेखा’ किस प्रतीक पर आधारित है?
    उत्तर – यह शीर्षक इंसान की हथेली की भाग्य रेखा और जीवन की वास्तविकता के टकराव का प्रतीक है।

प्रश्न और उत्तर

  1. कनाट सर्कस के बाग में कौन-कौन लोग आते हैं और क्यों?

उत्तर – कनाट सर्कस के बाग में शाम को रसिक लोग आते हैं, जबकि दोपहर को बेरोज़गार लोग समय बिताने और शायद कुछ तलाशने के लिए बैठते हैं। यह स्थान नई दिल्ली की कई सड़कों के मिलन बिंदु पर स्थित है, जो इसे एक सार्वजनिक विश्राम स्थल बनाता है।

  1. कहानी का मुख्य पात्र (दमे का रोगी) पहली बार लेखक को कैसे प्रतिक्रिया देता है?

उत्तर – जब लेखक खाँसने वाले व्यक्ति को पीकदान की बात कहता है, तो वह आदमी पलटकर घूरता है और व्यंग्य से कहता है कि “वहाँ लोगों को ऐसी खाँसी भी न आती होगी”। यह उसकी बीमारी और कटु अनुभवों को दर्शाता है।

  1. दमे के रोगी की शारीरिक विशेषताएँ क्या थीं?

उत्तर – वह लगभग चालीस-पैंतालीस वर्ष का, कुरूप-सा, सफ़ेद छोटे बालों वाला व्यक्ति था। उसका चेहरा काला और झाइयों भरा था, दाँत लंबे और कंधे आगे को झुके हुए थे। वह लगातार खाँसता रहता था।

  1. दमे के रोगी की उँगलियाँ कैसे कट गईं और इसका उसके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर – उसकी दाएँ हाथ की बीच की तीन उँगलियाँ मशीन से कट गई थीं। इस दुर्घटना के कारण वह कोई काम नहीं कर पाता था, क्योंकि मालिक पूरी दस उँगलियाँ माँगते थे, जिससे वह बेरोज़गार हो गया।

  1. ज्योतिषी और दमे के रोगी के बीच पहला संवाद क्यों तनावपूर्ण हो जाता है?

उत्तर – ज्योतिषी ने दमे के रोगी को जल्द ही धन मिलने की भविष्यवाणी की, जिस पर रोगी ने क्रोधित होकर उसे थप्पड़ मार दिया। वह तीन साल से अपने भाई के टुकड़ों पर जी रहा था, इसलिए वह झूठी आशा से चिढ़ गया।

  1. ज्योतिषी दमे के रोगी के हाथ में भाग्य रेखा क्यों नहीं देख पाता है?

उत्तर – ज्योतिषी ने अंततः दमे के रोगी से कहा कि उसके हाथ में भाग्य रेखा नहीं है, क्योंकि उसकी कटी हुई उँगलियों के कारण भाग्य रेखा का मार्ग बाधित था या वह दिखाई नहीं दे रही थी।

  1. ज्योतिषी दमे के रोगी को धन प्राप्ति का क्या वैकल्पिक उपाय बताता है?

उत्तर – ज्योतिषी ने बताया कि यदि उसकी अपनी भाग्य रेखा नहीं है, तो उसकी घरवाली की भाग्य रेखा अच्छी होगी और उसका भाग्य उसे मिलेगा। यह दर्शाता है कि वह अभी भी भविष्य की आशा पर टिका हुआ था।

  1. दमे का रोगी अपनी पत्नी के बारे में क्या खुलासा करता है जब ज्योतिषी उसके भाग्य की बात करता है?

उत्तर – दमे का रोगी बताता है कि वह अपनी पत्नी के भाग्य पर ही अब तक जी रहा है, क्योंकि वह चार बच्चे छोड़कर अपनी राह चली गई है। इससे उसकी दयनीय और अकेली स्थिति का पता चलता है।

  1. दमे के रोगी ने ज्योतिषी से अपना हाथ दिखाने को क्यों कहा?

उत्तर – दमे के रोगी ने ज्योतिषी से कहा कि वह अपना हाथ दिखाए ताकि वह खुद ज्योतिषी के भाग्य का आकलन कर सके। यह उसकी कुंठा और शायद ज्योतिषी की विश्वसनीयता परखने की उसकी इच्छा को दर्शाता है।

  1. ज्योतिषी कहाँ से आया था और उसकी पहचान क्या थी?

उत्तर – ज्योतिषी पूर्वी बंगाल से आया एक युवा शरणार्थी था। उसका काला चेहरा और फटा हुआ कुर्ता-पाजामा उसकी गरीबी और विस्थापन की स्थिति को दर्शाता था, जिससे उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न उठता था।

  1. बाग में अचानक भीड़ क्यों बढ़ने लगी और पुलिस क्यों तैनात हो गई?

उत्तर – बाग में अचानक भीड़ बढ़ने लगी क्योंकि वह मई दिवस था, मज़दूरों का दिन। मज़दूर इकट्ठा हो रहे थे और पुलिस संभावित गड़बड़ी को रोकने के लिए लाठियों के साथ तैनात की गई थी, जिससे तनाव बढ़ गया।

  1. मई दिवस का दमे के रोगी के लिए क्या ऐतिहासिक महत्त्व था?

उत्तर – दमे के रोगी ने ज्योतिषी को बताया कि मई दिवस मज़दूरों का दिन है और इसी दिन मज़दूरों पर गोली चली थी। यह घटना मज़दूर आंदोलन के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण और दुखद अध्याय है।

  1. जुलूस के लाल किले तक जाने की जानकारी किसने दी और उसका जुलूस पर क्या विचार था?

उत्तर – एक दुबले-पतले आदमी ने बताया कि जुलूस अजमेरी गेट और दिल्ली दरवाज़े से होता हुआ लाल किले जाएगा, जहाँ जलसा होगा। उसका मानना था कि गड़बड़ चाहे जितनी हो, जुलूस रुकेगा नहीं।

  1. कहानी के अंत में दमे का रोगी ज्योतिषी से क्या कहता है?

उत्तर – जुलूस देखने के बाद दमे का रोगी ज्योतिषी से पूछता है, “देखा साले? तू कैसे कहता है कि भाग्य रेखा कमज़ोर है?” यह दर्शाता है कि उसे अपनी कटी हुई हथेली में भी आशा की किरण दिख रही थी।

  1. कहानी ‘भाग्य रेखा’ का क्या संदेश है?

उत्तर – कहानी दिखाती है कि भाग्य केवल हाथ की रेखाओं में नहीं होता, बल्कि जीवन के कठोर संघर्षों, सामूहिक शक्ति और आशा में भी निहित होता है। एक कटी हुई हथेली वाला व्यक्ति भी संघर्ष में अपना भाग्य देखता है, भले ही वह बीमार और गरीब हो।

‘भाग्य रेखा’ कहानी पर आधारित लंबे प्रश्न और उत्तर

  1. प्रश्न – कहानी ‘भाग्य रेखा’ का मुख्य स्थान क्या है और यहाँ की गतिविधियाँ क्या दर्शाती हैं?
    उत्तर – कहानी का मुख्य स्थान कनॉट सरकस का बाग है, जहाँ दोपहर को बेरोज़गार और शाम को रसिक लोग इकट्ठा होते हैं। यह स्थान सामाजिक असमानता और मेहनतकश वर्ग की जिंदगी की जद्दोजहद को दर्शाता है, जहाँ लोग अपनी पीड़ा और आकांक्षाएँ साझा करते हैं।
  2. प्रश्न – बीमार व्यक्ति की शारीरिक स्थिति और उसकी बीमारी का कहानी में क्या महत्त्व है?
    उत्तर – बीमार व्यक्ति चालीस-पैंतालीस वर्ष का, कुरूप, सफेद बालों वाला, और खाँसी से ग्रस्त है। उसकी “नामुराद” खाँसी उसकी कठिन जिंदगी और सामाजिक उपेक्षा का प्रतीक है, जो कहानी में मेहनतकश वर्ग की पीड़ा और हताशा को उजागर करता है।
  3. प्रश्न – बीमार व्यक्ति की उँगलियाँ कटने की घटना ने उसके जीवन को कैसे प्रभावित किया?
    उत्तर – बीमार व्यक्ति की दाएँ हाथ की तीन उँगलियाँ कालका वर्कशॉप में मशीन से कट गईं। इस घटना ने उसे बेरोज़गार बना दिया, क्योंकि मालिक “पूरी दस उँगलियाँ” माँगते हैं। यह उसकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति की बदहाली को दर्शाता है।
  4. प्रश्न – नायक और बीमार व्यक्ति के बीच थूकने को लेकर संवाद का क्या महत्त्व है?
    उत्तर – नायक ने बीमार व्यक्ति के थूकने पर टिप्पणी की कि विलायत में पीकदान लगे हैं। बीमार व्यक्ति का जवाब, “वहाँ ऐसी खाँसी नहीं होती होगी,” सामाजिक और आर्थिक असमानता को उजागर करता है, जो उनकी परिस्थितियों के बीच की खाई को दर्शाता है।
  5. प्रश्न – ज्योतिषी और बीमार व्यक्ति के बीच संवाद कहानी में क्या दर्शाता है?
    उत्तर – ज्योतिषी और बीमार व्यक्ति का संवाद भाग्य के प्रति विश्वास और निराशा के द्वंद्व को दर्शाता है। ज्योतिषी की धन प्राप्ति की भविष्यवाणी और बीमार व्यक्ति का उस पर थप्पड़ मारना उनकी कठोर वास्तविकता और आशा की कमी को उजागर करता है।
  6. प्रश्न – ज्योतिषी ने बीमार व्यक्ति की हथेली में भाग्य रेखा के बारे में क्या कहा और इसका क्या प्रभाव पड़ा?
    उत्तर – ज्योतिषी ने कहा कि बीमार व्यक्ति की हथेली में भाग्य रेखा नहीं है। यह सुनकर वह हँस पड़ा और तंज कसा, क्योंकि वह पहले से ही अपनी बदहाल जिंदगी से वाकिफ था। यह संवाद कहानी की विडंबना को गहरा करता है।
  7. प्रश्न – बीमार व्यक्ति ने अपनी पत्नी और बच्चों के बारे में क्या बताया और यह क्या दर्शाता है?
    उत्तर – बीमार व्यक्ति ने बताया कि उसकी पत्नी चार बच्चों को छोड़कर चली गई, और वह उसी के भाग्य पर जी रहा है। यह उसके पारिवारिक विघटन और आर्थिक निर्भरता को दर्शाता है, जो मेहनतकश वर्ग की कठिनाइयों को उजागर करता है।
  8. प्रश्न – मई दिवस के जुलूस का कहानी में क्या महत्त्व है और यह किसका प्रतीक है?
    उत्तर – मई दिवस का जुलूस मजदूरों के संघर्ष और उनके अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक है। यह कहानी में सामाजिक आंदोलन और असमानता के खिलाफ एकजुटता को दर्शाता है, जो बीमार व्यक्ति की स्थिति से जुड़ा है।
  9. प्रश्न – कहानी के अंत में बीमार व्यक्ति का हँसना और खाँसना किस भाव को दर्शाता है?
    उत्तर – कहानी के अंत में बीमार व्यक्ति अपनी कटी हथेली दिखाकर हँसता और खाँसता है, जो विडंबना और हताशा को दर्शाता है। उसकी हँसी उसकी कठिन जिंदगी और भाग्य के प्रति तंज को उजागर करती है।
  10. प्रश्न – ‘भाग्य रेखा’ कहानी का मुख्य संदेश क्या है और यह समाज को कैसे दर्शाती है?
    उत्तर – कहानी मेहनतकश वर्ग की कठिनाइयों, सामाजिक असमानता, और भाग्य के प्रति विश्वास व निराशा के द्वंद्व को दर्शाती है। यह समाज में मजदूरों की उपेक्षा और उनके संघर्ष को उजागर कर, सामाजिक बदलाव की आवश्यकता पर जोर देती है।

 

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