लेखक परिचय : हरिशंकर परसाई
हिंदी साहित्य में हास्य-व्यंग्य विधा को नया रूप और नया आयाम देने वाले हरिशंकर परसाई जी का जन्म 22 अगस्त 1924 ई. को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी गाँव में हुआ था। गाँव से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे नागपुर चले आये थे। मात्र अठारह वर्ष की उम्र में हरिशंकर परसाई ने ‘जंगल विभाग’ में नौकरी की। पिता की बीमारी के कारण परिवार की आजीविका के लिए इन्हें नौकरी करनी पड़ी। नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम. ए. करने के बाद उन्होंने अनेक स्थानों पर अध्यापन कार्य किया। बाद में इन्होंने नौकरी छोड़कर स्वतंत्र लेखन को अपना लिया। जबलपुर में रहते हुए ‘वसुधा’ नामक साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन एवं सम्पादन शुरु किया। आर्थिक हानि उठाने के कारण उन्हें ‘वसुधा’ का प्रकाशन बंद करना पड़ा।
परसाई जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, उनके कहानी संग्रह हैं। रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज उनके उपन्यास हैं। तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेइमानी की परत, पगडंडियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, निठल्ले की डायरी उनके निबंध संग्रह हैं। वैष्णव को फिसलन, तिरछी रेखाएँ, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, विकलांग श्रद्धा का दौर, प्रेमचंद के फटे जूते, माटी कहे कुम्हार से, आवारा भीड़ के खतरे, सदाचार का ताबीज, तुलसीदास चंदन घिसें आदि उनके व्यंग्य लेख हैं।
विकलांग श्रद्धा का दौर के लिए उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सहज एवं सरल भाषा में समाज की विसंगतियों और कुरीतियों पर हास्य व्यंग्य के माध्यम से चुटीला प्रहार परसाई जी की अन्यतम विशेषता है। वे खण्डवा में छ: माह तक बतौर अध्यापक भी नियुक्त हुए थे। तत्पश्चात् स्वतंत्र लेखन प्रारंभ किया। इसी क्रम में उन्होंने जबलपुर से साहित्यिक पत्रिका वसुधा का प्रकाशन भी प्रारंभ किया था। हरिशंकर परसाई की गणना हिंदी के श्रेष्ठ व्यंग्य रचना कारों में होती है। अवसरवादिता, चुनाव व्यवस्था, राजनीतिक दांवपेज, स्वार्थ, भ्रष्टाचार, धर्म, शिक्षा, सबसे आगे निकलने की होड़, भाई-भतीजावाद आदि उनके प्रमुख विषय रहे है। हरिशंकर परसाई जी की पहली रचना “स्वर्ग से नरक जहाँ तक” है, जो कि मई, 1948 में प्रहरी में प्रकाशित हुई थी। विकलांग श्रद्धा का दौर, दो नाक वाले लोग, आध्यात्मिक पागलों का मिशन, क्रांतिकारी की कथा, पवित्रता का दौरा। ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 10 अगस्त 1995 को जबलपुर में परसाई जी की मृत्यु हो गई।
भेड़ें और भेड़िये
एक बार एक वन के पशुओं को ऐसा लगा कि वे सभ्यता के उस स्तर पर पहुँच गए हैं, जहाँ उन्हें एक अच्छी शासन व्यवस्था अपनानी चाहिए। और, एक मत से यह तय हो गया कि वन-प्रदेश में प्रजातंत्र की स्थापना हो। पशु-समाज में इस ‘क्रांतिकारी’ परिवर्तन से हर्ष की लहर दौड़ गई कि सुख-समृद्धि और सुरक्षा का स्वर्ण युग अब आया और वह आया।
जिन वन- प्रदेश में हमारी कहानी ने चरण धरे हैं, उसमें भेंड़ें बहुत थीं-निहायत नेक, ईमानदार, कोमल, विनयी, दयालु, निर्दोष पशु जो घास तक को फूँक-फूँककर खाता है।
भेड़ों ने सोचा कि अब हमारा भय दूर हो जाएगा। हम अपने प्रतिनिधियों से कानून बनवाएँगे कि जीवधारी किसी को न सताए, न मारे। सब जिएँ और जीने दें। शांति, स्नेह, बन्धुत्व और सहयोग पर समाज आधारित हो।
इधर, भेड़ियों ने सोचा कि हमारा अब संकटकाल आया। भेड़ों की संख्या इतनी अधिक है कि पंचायत में उनका ही बहुमत होगा और अगर उन्होंने कानून बना दिया कि कोई पशु किसी को न मारे, तो हम खाएँगे क्या? क्या हमें घास चरना सीखना पड़ेगा?
ज्यों-ज्यों चुनाव समीप आता, भेड़ों का उल्लास बढ़ता जाता।
ज्यों-ज्यों चुनाव समीप आता, भेड़ियों का दिल बैठता जाता।
एक दिन बूढ़े सियार ने भेड़िये से कहा, “मालिक, आजकाल आप बड़े उदास रहते हैं।”
हर भेड़िये के आसपास दो-चार सियार रहते ही हैं। जब भेड़िया अपना शिकार खा लेता है, तब ये सियार हड्डियों में लगे माँस को कुतरकर खाते हैं, और हड्डियाँ चूसते रहते हैं। ये भेड़िये के आसपास दुम हिलाते चलते हैं, उसकी सेवा करते हैं और मौके-बेमौके “हुआँ-हुआँ” चिल्लाकर उसकी जय बोलते हैं।
तो बूढ़े सियार ने बड़ी गंभीरता से पूछा, “महाराज, आपके मुखचन्द्र पर चिन्ता के मेघ क्यों छाए हैं?” वह सियार कुछ कविता भी करना जानता होगा या शायद दूसरे की उक्ति को अपना बनाकर कहता हो।
खैर, भेड़िये ने कहा, “तुझे क्या मालूम नहीं है कि वन- प्रदेश में नई सरकार बनने वाली है? हमारा राज तो अब गया।”
सियार ने दाँत निपोर कर कहा, “हम क्या जानें महाराज! हमारे तो आप ही ‘माई-बाप’ है। हम तो कोई और सरकार नहीं जानते। आपका दिया खाते हैं, आपके गुन गाते हैं।”
भेड़िये ने कहा, “मगर अब समय ऐसा आ रहा है कि सूखी हड्डियाँ भी चबाने को नहीं मिलेंगी।” सियार सब जानता था, मगर जानकर भी न जानने का नाटक करना न आता, तो सियार शेर न हो गया होता !
आखिर भेड़िये ने वन- प्रदेश की पंचायत के चुनाव की बात बूढ़े सियार को समझाई और बड़े गिरे मन से कहा, “चुनाव अब पास आता जा रहा है। अब यहाँ से भागने के सिवा कोई चारा नहीं। पर जाएँ भी कहाँ?”
सियार ने कहा, “मालिक, सरकार में भरती हो जाइए।”
भेड़िये ने कहा, “अरे, वहाँ भी शेर और रीछ को तो ले लेते हैं, पर हम इतने बदनाम हैं कि हमें वहाँ भी कोई नहीं पूछता।”
“तो”, सियार ने खूब सोचकर कहा, “अजायबघकर में चले जाइए।”
भेड़िये ने कहा, “अरे, वहाँ भी जगह नहीं है, सुना है। वहाँ तो आदमी रखे जाने लगे है।”
बूढ़ा सियार अब ध्यानमग्न हो गया। उसने एक आँख बंद की, नीचे के होंठ को ऊपर के दाँत से दबाया और एकटक आकाश की तरफ देखने लगा जैसे विश्वात्मा से कनेक्शन जोड़ रहा हो। फिर बोला, बस सब समझ में आ गया। मालिक, अगर पँचायत में आप भेड़िया जाति का बहुमत हो जाए तो?”
भेड़िया चिढ़कर बोला, “कहाँ की आसमानी बातें करता है?” अरे हमारी जाति कुल दस फ़ीसदी है और भेड़ें तथा अन्य छोटे पशु नब्बे फ़ीसदी। भला वे हमें कोई को चुनेंगे। अरे, कहीं जिन्दगी अपने को मौत के हाथ सौंप सकती है? मगर हाँ, ऐसा हो सकता तो क्या बात थी।”
बूढ़ा सियार बोला, “आप खिन्न मत होइए सरकार ! एक दिन का समय दीजिए। कल तक कोई योजना बन ही जाएगी। मगर एक बात है। आपको मेरे कहे अनुसार कार्य करना पड़ेगा।”
मुसीबत में फँसे भेड़िये ने आखिर सियार को अपना गुरु माना और आज्ञापालन की शपथ ली। दूसरे दिन बूढ़ा सियार अपने तीन सियारों को लेकर आया। उनमें से उसने एक को पीले रंग में रँग दिया था, दूसरे को नीले में और तीसर को हरे में।
भेड़िये ने देखा और पूछा, “अरे ये कौन हैं?”
बूढ़ा सियार बोला, “ये भी सियार हैं सरकार, मगर रंगे सियार हैं। आपकी सेवा करेंगे। आपके चुनाव का प्रचार करेंगे।”
भेड़िये ने शंका की, “मगर इनकी बात मानेगा कौन? ये तो वैसे ही छल-कपट के लिए बदनाम है।”
सियार ने भेड़िये का हाथ चूमकर कहा, “बड़े भोले हैं आप सरकार ! अरे मालिक, रूप-रंग बदल देने से तो सुना है आदमी तक बदल जाते हैं। फिर ये तो सियार हैं। “
और तब, बूढ़े सियार ने भेड़िये का भी रूप बदला। मस्तक पर तिलक लगाया, गले में कंठी पहनाई और मुँह में घास के तिनके खोंस दिए। बोला, “अब आप पूरे संत हो गए। अब भेड़ों की सभा में चलेंगे। मगर तीन बातों का ख्याल रखना अपनी हिंसक आँखों को ऊपर मत उठाना, हमेशा ज़मीन की ओर देखना और कुछ बोलना मत, नहीं तो सब पोल खुल जाएगी और वहाँ बहुत-सी भेड़ें आएँगी, सुंदर-सुंदर, मुलायम मुलायम, तो कहीं किसी को तोड़ मत खाना। “
भेड़िये ने पूछा “लेकिन ये रँगे सियार क्या करेंगे? ये किस काम आएँगे?”
बूढ़ा सियार बोला, “ये बड़े काम के हैं। आपका सारा प्रचार तो ये ही करेंगे। इन्हीं के बल पर आप चुनाव लड़ेंगे। यह पीला वाला सियार बड़ा विद्वान है, विचारक है, कवि भी है, लेखक भी। यह नीला सियार नेता और पत्रकार है और यह हरा धर्मगुरु। बस, अब चलिए।”
“ज़रा ठहरो, “भेड़िये ने बूढ़े सियार को रोका, “कवि, लेखक, नेता, विचारक- ये तो सुना है बड़े अच्छे लोग होते हैं। और ये तीनों…”
बात काटकर सियार बोला, “ये तीनों सच्चे नहीं हैं, रंगे हुए हैं महाराज! अब चलिए, देर मत करिए।”
और वे चल दिये। आगे बूढ़ा सियार था, उसके पीछे रँगे सियारों के बीच भेड़िया चल रहा था- मस्तक पर तिलक, गले मे कंठी, मुख में घास के तिनके। धीरे-धीरे चल रहा था, अत्यंत गंभीरतापूर्वक, सिर झुकाए विनय की मूर्ति !
उधर एक स्थान पर सहस्रों भेड़ें इकट्ठी हो गई थी, उस संत के दर्शन के लिए, जिसकी चर्चा बूढ़े सियार ने फैला रखी थी।
चारों सियार भेड़िये की जय बोलते हुए भेड़ों के झुंड के पास आए।
बूढ़े सियार ने एक बार जोर से संत भेड़िये की जय बोली ! भेड़ों में पहले से ही यहाँ-वहाँ बैठे सियारों ने भी जयध्वनि की।
भेड़ों ने देखा तो वे बोलीं, “अरे भागो, यह तो भेड़िया है।’
तुरंत बूढ़े सियार ने उन्हें रोककर कहा, “भाइयों और बहनो! अब भय मत करो। भेड़िया राजा संत हो गए हैं। उन्होंने हिंसा बिलकुल छोड़ दी है।
उनका ‘हृदय परिवर्तन’ हो गया है। वे आज सात दिनों से घास खा रहे हैं। रात-दिन भगवान् के भजन और परोपकार में लगे रहते हैं। उन्होंने अपना जीवन जीव मात्र की सेवा में अर्पित कर दिया है। अब वे किसी का दिल नहीं दुखाते, किसी का रोम तक नहीं छूते। भेड़ों से उन्हें विशेष प्रेम है। इस जाति ने जो कष्ट सहे है, उनकी याद करके कभी-कभी भेड़िया संत की आँखों में आँसू आ जाते है। उनकी अपनी भेड़िया जाति ने जो अत्याचार आप पर किए हैं उनके कारण भेड़िया संत का माथा लज्जा से जो झुका है, सो झुका ही हुआ है। परंतु अब वे शेष जीवन आपकी सेवा में लगाकर तमाम पापों का प्रायश्चित् करेंगे। आज सवेरे की ही बात है कि एक मासूम भेड़ के बच्चे के पाँव में काँटा लग गया, तो भेड़िया संत ने उसे दाँतों से निकाला, दाँतों से ! पर जब वह बेचारा कष्ट से चल बसा, तो भेड़िया संत ने सम्मानपूर्वक उसकी अंत्येष्टि-क्रिया की।
उनके घर के पास जो हड्डियों का ढेर लगा है, उसके दान की घोषणा उन्होंने आज ही सवेरे की। अब तो वे सर्वस्व त्याग चुके हैं। अब आप उनसे भय मत करें। उन्हें अपना भाई समझें। बोलो सब मिलकर, संत भेड़िया जी की जय!”
भेड़िया जी अभी तक उसी तरह गरदन डाले विनय की मूर्ति बने बैठे थे। बीच में कभी-कभी सामने की ओर इकट्टी भेड़ों को देख लेते और टपकती हुई लार को गुटक जाते।
बूढ़ा सियार फिर बोला, “भाइयों और बहनों, मैं भेड़िया संत से अपने मुखारविन्द से आपको प्रेम और दया का संदेश देने की प्रार्थना करता पर प्रेमवश उनका हृदय भर आया है, वे गद्गद् हो गए हैं और भावातिरेक से उनका कंठ अवरूद्ध हो गया है। वे बोल नहीं सकते। अब आप इन तीनों रंगीन प्राणियों को देखिए। आप इन्हें न पहचान पाए होंगे। पहचानें भी कैसे? ये इस लोक के जीव तो हैं नहीं। ये तो स्वर्ग के देवता हैं जो हमें सदुपदेश देने के लिए पृथ्वी पर उतरे हैं। ये पीले विचारक हैं, कवि हैं, लेखक हैं। नीले नेता हैं और स्वर्ग के पत्रकार हैं और हरे वाले धर्मगुरू हैं। अब कविराज आप को स्वर्ग-संगीत सुनाएँगे। हाँ कवि जी”
पीले सियार को ‘हुआँ-हुआँ’ के सिवा कुछ और तो आता ही नहीं था। ‘हुआँ हुआँ’ चिल्ला दिया। शेष सियार भी ‘हुआँ-हुआँ’ बोल पड़े। बूढ़े सियार ने आँख के इशारे से शेष सियारों को मना किया और चतुराई से बात को यों कहकर संभाला, “भई कवि जी तो कोरस में गीत गाते हैं। पर कुछ समझे आप लोग? कैसे समझ सकते हैं? अरे, कवि की बात सबकी समझ में आ जाए तो वह कवि काहे का? उनकी कविता में से शाश्वत के स्वर फूट रहे हैं। वे कह रहे हैं कि जैसे स्वर्ग में परमात्मा वैसे ही पृथ्वी पर भेड़िया। हे भेड़िया जी, महान् ! आप सर्वत्र व्याप्त हैं, सर्वशक्तिमान हैं। प्रातः आपके मस्तक पर तिलक करती है, साँझ को उषा आपका मुख चूमती है, पवन आप पर पंखा करता है और रात्रि को आपकी ही ज्योति लक्ष-लक्ष खंड होकर आकाश में तारे बनकर चमकती है। हे विराट् ! आपके चरणों में इस क्षुद्र का प्रणाम है।”
फिर नीले रंग के सियार ने कहा, “निर्बलों को रक्षा बलवान् ही कर सकते हैं। भेड़ें कोमल हैं, निर्बल हैं, अपनी रक्षा नहीं कर सकतीं। भेड़िये बलवान् हैं, इसलिए उनके हाथ में अपने हितों को छोड़ निश्चिन्त हो जाओ, वे भी तुम्हारे भाई हैं। आप एक ही जाति के हो। तुम भेड़, वह भेड़िया। कितना कम अंतर है! और बेचारा भेड़िया व्यर्थ ही बदनाम कर दिया गया है कि वह भेड़ों को खाता है। अरे खाते और हैं, हड्डियाँ उनके द्वार पर फेंक जाते हैं। ये व्यर्थ बदनाम होते हैं। तुम लोग तो पंचायत में बोल भी नहीं पाओगे। भेड़िये बलवान् होते हैं। यदि तुम पर कोई अन्याय होगा, तो डटकर लड़ेंगे। इसलिए अपने हित की रक्षा के लिए भेड़ियों को चुनकर पंचायत में भेजो। बोलो संत भेड़िया की जय!”
फिर हरे रंग के धर्मगुरु ने उपदेश दिया, “जो यहाँ त्याग करेगा, वह उस लोक में पाएगा। जो यहाँ दुख भोगेगा, वह वहाँ सुख पाएगा। जो यहाँ राजा बनाएगा, वह वहाँ राजा बनेगा। जो यहाँ वोट देगा, वह वहाँ वोट पाएगा। इसलिए सब मिलकर भेड़िये को वोट दो। वे दानी हैं, परोपकारी हैं, संत है। मैं उनको प्रणाम करता हूँ।’
यह एक भेड़िये की कथा नहीं है, यह सब भेड़ियों की कथा है। सब जगह इस प्रकार प्रचार हो गया और भेड़ों को विश्वास हो गया कि भेड़िये से बड़ा उनका कोई हित-चिन्तक और हित रक्षक नहीं है। और, जब पंचायत का चुनाव हुआ तो भेड़ों ने अपनी हित रक्षा के लिए भेड़ियों की चुना। और, पंचायत में भेड़ों के हितों की रक्षा के लिए भेड़िये प्रतिनिधि बनकर गए। और पंचायत में भेड़ियों ने भेड़ों की भलाई के लिए पहला कानून यह बनाया- हर भेड़िये को सवेरे नाश्ते के लिए भेड़ का एक मुलायम बच्चा दिया जाए, दोपहर के भोजन में एक पूरी भेड़ तथा शाम के स्वास्थ्य के ख्याल से कम खाना चाहिए, इसलिए आधी भेड़ दी जाए।
शब्दार्थ –
हिंदी शब्द | हिंदी अर्थ | बांग्ला अर्थ | अंग्रेजी अर्थ |
सभ्यता | सुसंस्कृत होने की अवस्था, शिष्टता | সভ্যতা (Sobhyota) | Civilization |
प्रजातंत्र | जनता का शासन, लोकतंत्र | গণতন্ত্র (Gônôtôntro) | Democracy |
क्रांतिकारी | क्रांति से संबंधित, आमूलचूल परिवर्तन लाने वाला | বিপ্লবী (Biplobi) | Revolutionary |
उल्लास | प्रसन्नता, खुशी, हर्ष | উল্লাস (Ullash) | Joy, Exultation |
संकटकाल | विपत्ति का समय, बुरा समय | সংকটকাল (Shonkotkal) | Crisis period, Time of trouble |
दाँत निपोरना | व्यंग्य से हँसना, उपहास करना (प्रायः सियार या जानवर के संदर्भ में) | দাঁত বের করা (Daat Ber Kora) | To bare teeth (often in a sarcastic or mocking way, like a jackal) |
माई-बाप | पालन-पोषण करने वाला, संरक्षक (आदरसूचक) | মাই-বাপ (Mai-Bap) | Protector, Patron (respectful term) |
गिरे मन से | निराश होकर, दुखी होकर | হতাশ মনে (Hotash Mone) | With a heavy heart, Disheartened |
अजायबघर | संग्रहालय | জাদুঘর (Jadughar) | Museum |
ध्यानमग्न | ध्यान में लीन, तल्लीन | ধ্যানমগ্ন (Dhyanmogno) | Absorbed in meditation |
विश्वात्मा | सर्वव्यापी आत्मा, परमात्मा | বিশ্বাত্মা (Bishwatma) | Universal soul, Cosmic spirit |
खिन्न | दुखी, उदास, अप्रसन्न | বিরক্ত (Birokto) | Upset, Annoyed, Displeased |
कंठिका | गले में पहनने का माला जैसा आभूषण | কন্টি (Konti) | Necklace, Rosary beads |
विनय | नम्रता, शिष्टता | বিনয় (Binoy) | Humility, Modesty |
मुखावरविन्द | कमल जैसा सुंदर मुख (आदरसूचक) | মুখারবিন্দ (Mukharobindo) | Lotus-like face (eulogistic) |
गद्गद् | प्रेम या भावुकता के कारण बोलने में असमर्थ होना | গদগদ (Godgod) | Choked with emotion, Faltering voice |
भावातिरेक | भावों की अधिकता, अत्यधिक भावुकता | ভাবাতিরেক (Bhabatirek) | Excess of emotion, Overwhelm of feelings |
कंठ अवरूद्ध होना | गला रुंध जाना, बोल न पाना | কন্ঠরোধ হওয়া (Konthorodh Howa) | To have a choked voice, Unable to speak |
शाश्वत | जो सदा रहने वाला हो, नित्य, अनन्त | শাশ্বত (Shashwato) | Eternal, Perennial |
परोपकार | दूसरों का भला करना, परोपकारिता | পরোপকার (Poropokar) | Philanthropy, Beneficence |
प्रायश्चित् | पापों के लिए पश्चाताप करना, पछतावा | প্রায়শ্চিত্ত (Prayoshchitto) | Atonement, Penance |
अंत्येष्टि क्रिया | मृतक का अंतिम संस्कार | অন্ত্যেষ্টি ক্রিয়া (Ontyeshti Kriya) | Funeral rites |
हित-चिन्तक | भला चाहने वाला, शुभचिंतक | হিতাকাঙ্ক্ষী (Hitakangkhi) | Well-wisher |
हित-रक्षक | भला करने वाला, रक्षा करने वाला | রক্ষক (Rokkhok) | Protector |
भेड़ें और भेड़िये – एक विस्तृत विश्लेषण
यह कहानी प्रतीकात्मक रूप से समाज के दो प्रमुख वर्गों का प्रतिनिधित्व करती है:
भेड़ें – सीधी-सादी, मासूम, ईमानदार, मेहनतकश और आसानी से भ्रमित होने वाली आम जनता। वे न्याय, शांति और सद्भाव में विश्वास करती हैं।
भेड़िये – धूर्त, चालाक, हिंसक, स्वार्थी और सत्ता लोलुप राजनेता या प्रभावशाली वर्ग। ये भेड़ियों की तरह ही जनता को अपना शिकार बनाने की फिराक में रहते हैं।
सियार – ये चाटुकार, प्रचारक और बुद्धिजीवी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो सत्ताधारी वर्ग के तलवे चाटते हैं और अपने फायदे के लिए गलत को भी सही ठहराने में लगे रहते हैं।
कहानी का सार
कहानी की शुरुआत एक वन प्रदेश से होती है, जहाँ पशुओं को लगता है कि अब उन्हें एक सभ्य शासन व्यवस्था अपनानी चाहिए। सब मिलकर प्रजातंत्र (लोकतंत्र) स्थापित करने का निर्णय लेते हैं। इस निर्णय से भेड़ों में खुशी की लहर दौड़ जाती है, क्योंकि वे सोचती हैं कि अब उनके डर का अंत होगा और वे ऐसे कानून बनाएँगी जहाँ कोई किसी को सताएगा नहीं।
दूसरी ओर, भेड़ियों में चिंता फैल जाती है। उन्हें पता है कि भेड़ों की संख्या इतनी ज़्यादा है कि चुनाव में उनका ही बहुमत होगा और अगर “कोई किसी को न मारे” का कानून बन गया, तो वे क्या खाएँगे?
जैसे-जैसे चुनाव पास आता है, भेड़ों का उत्साह बढ़ता है और भेड़ियों का दिल बैठता जाता है। ऐसे में एक बूढ़ा सियार भेड़ियों के सरदार को इस मुसीबत से निकालने का रास्ता सुझाता है। वह भेड़िये को सलाह देता है कि उसे अपना रूप बदलना होगा।
सियार, भेड़िये को संत का वेश पहनाता है – माथे पर तिलक, गले में कंठी और मुँह में घास के तिनके। इसके साथ ही, वह अपने तीन चापलूस सियारों को अलग-अलग रंगों में रंग देता है – पीला (विद्वान, विचारक, कवि), नीला (नेता, पत्रकार) और हरा (धर्मगुरु)। ये रंगे सियार ही भेड़िये के प्रचार तंत्र का काम करते हैं।
भेड़ों की सभा में, बूढ़ा सियार भेड़िये को ‘संत भेड़िया’ के रूप में प्रस्तुत करता है। वह कहता है कि भेड़िया बदल गया है, उसका हृदय परिवर्तन हो गया है, वह अब हिंसा छोड़ चुका है और घास खाता है। वह भेड़ों के प्रति विशेष प्रेम दिखाता है और उनके पिछले कष्टों के लिए आँसू बहाता है। वह यह भी कहता है कि भेड़िया अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहता है और भेड़ों की सेवा में जीवन बिताना चाहता है। वह एक मासूम भेड़ के बच्चे का उदाहरण भी देता है, जिसके पैर से कांटे निकालने के बाद वह मर गया, तो संत भेड़िये ने उसका अंतिम संस्कार किया।
तीनों रंगे सियार भी अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं –
पीला सियार (कवि, विचारक) – बेमतलब की “हुआँ-हुआँ” करता है, जिसे बूढ़ा सियार “स्वर्ग-संगीत” और “शाश्वत स्वर” बताकर व्याख्या करता है। वह कहता है कि भेड़िया ही इस धरती का परमात्मा है।
नीला सियार (नेता, पत्रकार) – भेड़ों को समझाता है कि वे कमज़ोर हैं और केवल बलवान ही उनकी रक्षा कर सकते हैं। वह कहता है कि भेड़िये और भेड़ें एक ही जाति के हैं, बस थोड़ा सा अंतर है। वह भेड़िये पर लगे आरोपों को झूठा बताता है और कहता है कि भेड़िये ही उनके हितों की रक्षा करेंगे।
हरा सियार (धर्मगुरु) – त्याग, पुण्य और परलोक का उपदेश देता है। वह कहता है कि जो यहाँ वोट देगा, वह वहाँ (परलोक में) पाएगा। इसलिए भेड़ियों को वोट देना ही सबसे बड़ा पुण्य है।
इस झूठे प्रचार, धोखे और भावनात्मक शोषण से भेड़ों को यकीन हो जाता है कि भेड़ियों से बड़ा उनका कोई हितैषी और रक्षक नहीं है। परिणामस्वरूप, जब चुनाव होता है, तो भेड़ें अपनी सुरक्षा के लिए भेड़ियों को ही चुनती हैं।
पंचायत में पहुँचकर, भेड़ियों के प्रतिनिधि भेड़ों की भलाई के लिए पहला कानून यह बनाते हैं कि –
- हर भेड़िये को सुबह नाश्ते के लिए एक भेड़ का मुलायम बच्चा दिया जाए।
- दोपहर के भोजन में एक पूरी भेड़ दी जाए।
- शाम को स्वास्थ्य के लिए कम खाने के ख्याल से आधी भेड़ दी जाए।
भेड़ें और भेड़िये – कहानी का संदेश और गहरा अर्थ
‘भेड़ें और भेड़िये’ सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि हमारे समाज का कड़वा यथार्थ है। यह कहानी कई महत्त्वपूर्ण संदेश देती है –
- लोकतंत्र का दुरुपयोग – परसाई जी बताते हैं कि कैसे लोकतंत्र का इस्तेमाल आम जनता को मूर्ख बनाने और सत्ता हथियाने के लिए किया जा सकता है। जनता की सादगी और भोलेपन का फायदा उठाकर चालाक लोग सत्ता पर काबिज़ हो जाते हैं।
- प्रचार और मीडिया का प्रभाव – रंगे सियार झूठे प्रचार, मीडिया और बुद्धिजीवियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो सत्ता के लिए सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं। वे जनता के सामने ऐसे दावे करते हैं, जो पूरी तरह झूठ होते हैं, लेकिन प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किए जाने पर जनता उन पर विश्वास कर लेती है।
- धर्म और भावनाओं का इस्तेमाल – धर्मगुरु के माध्यम से परसाई जी दिखाते हैं कि कैसे धर्म और आस्था का उपयोग भी राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। लोगों को मोक्ष, पुण्य और परलोक का भय या लालच दिखाकर उन्हें गलत निर्णय लेने के लिए उकसाया जाता है।
- आम जनता की नासमझी – भेड़ें आम जनता का प्रतीक हैं, जो अपनी भोलेपन और कमज़ोरी के कारण आसानी से ठगी जाती हैं। वे अपने वास्तविक शत्रुओं को पहचान नहीं पातीं और उनकी मीठी बातों में आकर खुद को उनके हवाले कर देती हैं।
- सत्ताधारी वर्ग का स्वार्थ – भेड़िये सत्ताधारी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनका एकमात्र लक्ष्य अपने स्वार्थों की पूर्ति करना है, भले ही इसके लिए दूसरों का शोषण करना पड़े। चुनाव जीतने के बाद, वे जनता के हितों की रक्षा करने के बजाय, अपने फायदे के लिए ही कानून बनाते हैं।
- परिवेश में छल-कपट – कहानी दर्शाती है कि कैसे समाज में छल-कपट और धोखा इतना गहरा है कि लोग अपने स्वाभाविक प्रवृत्ति के विपरीत भी व्यवहार करते हैं (जैसे भेड़िया संत बनना), ताकि दूसरों को बेवकूफ बनाया जा सके।
- व्यंग्य की शक्ति – परसाई जी ने इस कहानी के माध्यम से समाज की इस कड़वी सच्चाई को हास्य और व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत किया है। व्यंग्य के माध्यम से वे पाठकों को हँसने पर मजबूर करते हैं, लेकिन साथ ही सोचने पर भी विवश करते हैं कि यह कितना दुखद यथार्थ है।
वर्तमान प्रासंगिकता
यह कहानी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी तब थी जब यह लिखी गई थी। आधुनिक लोकतंत्रों में भी हम देखते हैं कि –
- राजनीतिक दल अपने प्रचार तंत्र के माध्यम से जनता को गुमराह करते हैं।
- भावनात्मक मुद्दे और धार्मिक भावनाएँ अक्सर तार्किक सोच पर हावी हो जाती हैं।
- मीडिया का एक वर्ग अक्सर सत्ता के इशारों पर काम करता है और सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर पेश करता है।
- आम जनता अक्सर झूठे आश्वासनों और लुभावने नारों के जाल में फंस जाती है।
- चुनाव जीतने के बाद, नेता अक्सर अपने हितों को प्राथमिकता देते हैं और जनता के कल्याण की अनदेखी करते हैं।
संक्षेप में, ‘भेड़ें और भेड़िये’ एक सतर्कतापूर्ण चेतावनी है कि जनता को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना चाहिए और नेताओं के वादों और इरादों को परखना चाहिए, ताकि वे भेड़िये रूपी नेताओं के जाल में फँसकर अपना ही अहित न कर बैठें।
‘भेड़ें और भेड़िये’ पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न
- वन-प्रदेश में पशुओं ने किस प्रकार की शासन व्यवस्था अपनाने का निर्णय लिया?
अ) राजतंत्र
ब) प्रजातंत्र
स) तानाशाही
द) साम्यवाद
उत्तर – ब) प्रजातंत्र - भेड़ों ने प्रजातंत्र की स्थापना के बाद क्या उम्मीद की?
अ) युद्ध और हिंसा का अंत
ब) शांति, स्नेह और सहयोग पर आधारित समाज
स) भेड़ियों का शासन
द) सियारों की सत्ता
उत्तर – ब) शांति, स्नेह और सहयोग पर आधारित समाज - भेड़ियों को प्रजातंत्र की स्थापना से क्या चिंता थी?
अ) उनकी सत्ता बढ़ जाएगी
ब) भेड़ों का बहुमत होने से उनका भोजन छिन जाएगा
स) सियार उनकी मदद नहीं करेंगे
द) शेर और रीछ उनसे आगे निकल जाएँगे
उत्तर – ब) भेड़ों का बहुमत होने से उनका भोजन छिन जाएगा - बूढ़े सियार ने भेड़िये को क्या सलाह दी?
अ) जंगल छोड़कर भाग जाएँ
ब) सरकार में नौकरी करें
स) पंचायत में बहुमत हासिल करें
द) चिड़ियाघर में चले जाएँ
उत्तर – स) पंचायत में बहुमत हासिल करें - बूढ़े सियार ने भेड़िये का रूप कैसे बदला?
अ) उसे शेर का रूप दिया
ब) उसे संत का रूप दिया, तिलक और कंठी पहनाई
स) उसे भेड़ का रूप दिया
द) उसे सियार का रूप दिया
उत्तर – ब) उसे संत का रूप दिया, तिलक और कंठी पहनाई - रंगे सियारों में पीला सियार किस रूप में प्रस्तुत किया गया?
अ) नेता और पत्रकार
ब) धर्मगुरु
स) विद्वान, कवि और लेखक
द) सैनिक
उत्तर – स) विद्वान, कवि और लेखक - नीला सियार किसके रूप में था?
अ) धर्मगुरु
ब) नेता और पत्रकार
स) कवि और लेखक
द) संत
उत्तर – ब) नेता और पत्रकार - हरे रंग का सियार क्या था?
अ) विद्वान
ब) धर्मगुरु
स) पत्रकार
द) सैनिक
उत्तर – ब) धर्मगुरु - बूढ़े सियार ने भेड़ों को भेड़िया-संत के बारे में क्या बताया?
अ) वह अभी भी हिंसक है
ब) उसने हिंसा छोड़ दी और घास खाता है
स) वह जंगल छोड़कर जा रहा है
द) वह शेरों का मित्र है
उत्तर – ब) उसने हिंसा छोड़ दी और घास खाता है - पीले सियार ने भेड़िया-संत की तुलना किससे की?
अ) सूर्य से
ब) परमात्मा से
स) राजा से
द) सियार से
उत्तर – ब) परमात्मा से - नीले सियार ने भेड़ों को भेड़ियों के बारे में क्या विश्वास दिलाया?
अ) भेड़िये उनके शत्रु हैं
ब) भेड़िये उनकी रक्षा करेंगे
स) भेड़िये घास खाते हैं
द) भेड़िये कमजोर हैं
उत्तर – ब) भेड़िये उनकी रक्षा करेंगे - हरे सियार ने भेड़ों को क्या उपदेश दिया?
अ) भेड़ियों को वोट न दें
ब) भेड़ियों को वोट देकर स्वर्ग में सुख पाएँ
स) जंगल छोड़ दें
द) शेरों को चुनें
उत्तर – ब) भेड़ियों को वोट देकर स्वर्ग में सुख पाएँ - पंचायत में भेड़ियों ने पहला कानून क्या बनाया?
अ) सभी पशु घास खाएँ
ब) प्रत्येक भेड़िये को प्रतिदिन भेड़ का मांस मिले
स) हिंसा पर प्रतिबंध लगे
द) सियारों को सत्ता दी जाए
उत्तर – ब) प्रत्येक भेड़िये को प्रतिदिन भेड़ का मांस मिले - कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
अ) प्रजातंत्र हमेशा सफल होता है
ब) चालाक लोग भोले लोगों का शोषण करते हैं
स) भेड़ें और भेड़िये मित्र हो सकते हैं
द) सियार सबसे बुद्धिमान होते हैं
उत्तर – ब) चालाक लोग भोले लोगों का शोषण करते हैं - कहानी में सियारों की क्या भूमिका थी?
अ) भेड़ों की मदद करना
ब) भेड़ियों के चाटुकार और प्रचारक के रूप में कार्य करना
स) पंचायत में कानून बनाना
द) जंगल छोड़कर भागना
उत्तर – ब) भेड़ियों के चाटुकार और प्रचारक के रूप में कार्य करना
‘भेड़ें और भेड़िये’ कहानी पर आधारित एक-वाक्य वाले प्रश्न और उत्तर –
- प्रश्न – वन के पशुओं ने किस शासन व्यवस्था को अपनाने का निर्णय लिया?
उत्तर – उन्होंने प्रजातंत्र को अपनाने का निर्णय लिया। - प्रश्न – भेड़ों की सोच प्रजातंत्र को लेकर क्या थी?
उत्तर – भेड़ों को लगा कि अब शांति, प्रेम और सहयोग से समाज चलेगा। - प्रश्न – भेड़ियों को चुनाव के बारे में क्या डर था?
उत्तर – उन्हें डर था कि भेड़ें कानून बना देंगी जिससे वे शिकार नहीं कर पाएँगे। - प्रश्न – सियारों का भेड़ियों से क्या संबंध था?
उत्तर – सियार भेड़ियों के अनुचर थे और उनके शिकार के अवशेष खाते थे। - प्रश्न – बूढ़े सियार ने भेड़िये को चुनाव जीतने के लिए क्या उपाय बताया?
उत्तर – उसने भेड़िये को संत का रूप देकर प्रचार करवाने की योजना बनाई। - प्रश्न – बूढ़े सियार ने भेड़िये को कैसा रूप दिया?
उत्तर – उसने उसे तिलक, कंठी और घास के तिनकों से संत का रूप दिया। - प्रश्न – रंगे हुए सियारों के क्या-क्या रूप थे?
उत्तर – पीला सियार कवि, नीला सियार नेता और हरा सियार धर्मगुरु बना। - प्रश्न – भेड़ों ने भेड़िये को संत क्यों मान लिया?
उत्तर – क्योंकि सियारों ने प्रचार किया कि उसका हृदय-परिवर्तन हो चुका है। - प्रश्न – भेड़िया सभा में कैसे व्यवहार कर रहा था?
उत्तर – वह सिर झुकाकर विनय की मूर्ति बना बैठा था और लार गुटक रहा था। - प्रश्न – सियारों ने भेड़ियों के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
उत्तर – उन्होंने कहा कि भेड़िये बलवान, दानी और रक्षक हैं। - प्रश्न – कवि सियार ने क्या संदेश दिया?
उत्तर – उसने भेड़िये को विराट, सर्वशक्तिमान और परमात्मा बताया। - प्रश्न – नेता सियार ने भेड़ों को क्या सलाह दी?
उत्तर – उसने कहा कि अपनी रक्षा के लिए भेड़ियों को पंचायत में चुनो। - प्रश्न – धर्मगुरु सियार ने वोट देने को किससे जोड़ा?
उत्तर – उसने वोट देने को परलोक के सुख से जोड़ा। - प्रश्न – भेड़ों ने आखिर में किसे चुना?
उत्तर – उन्होंने भेड़ियों को ही पंचायत में चुना। - प्रश्न – पंचायत में भेड़ियों ने भेड़ों के लिए पहला कानून क्या बनाया?
उत्तर – हर भेड़िये को दिन में एक से अधिक भेड़ खाने का अधिकार दिया गया।
‘भेड़ें और भेड़िये’ कहानी पर आधारित प्रश्न और उत्तर (30-40 शब्दों में)
- प्रश्न – पशु समाज में प्रजातंत्र स्थापित करने का क्या उद्देश्य था?
उत्तर – वन के पशुओं को लगा कि वे सभ्यता के ऐसे स्तर पर पहुँच गए हैं जहाँ उन्हें अच्छी शासन व्यवस्था चाहिए। उनका उद्देश्य सुख-समृद्धि और सुरक्षा वाला स्वर्ण युग लाना था, जहाँ सब शांति से रहें।
- प्रश्न – भेड़ों ने नए कानून के बारे में क्या सोचा था?
उत्तर – भेड़ों ने सोचा था कि अब उनका भय दूर हो जाएगा। वे ऐसे कानून बनवाएँगे कि कोई जीवधारी किसी को न सताए, न मारे। उनका मानना था कि समाज शांति, स्नेह और सहयोग पर आधारित हो।
- प्रश्न – चुनाव को लेकर भेड़ियों की मुख्य चिंता क्या थी?
उत्तर – भेड़ियों की चिंता थी कि भेड़ों की संख्या अधिक होने के कारण पंचायत में उनका बहुमत होगा। यदि वे “कोई किसी को न मारे” का कानून बना दें, तो भेड़िये क्या खाएँगे? उन्हें घास चरना पड़ सकता था।
- प्रश्न – बूढ़े सियार ने भेड़िये को किस मुसीबत से निकालने की योजना बनाई?
उत्तर – बूढ़े सियार ने भेड़िये को चुनाव में हारने की मुसीबत से निकालने की योजना बनाई। उसने भेड़िये को “संत” का वेश धारण करवाकर भेड़ों का विश्वास जीतने की तरकीब सोची, जिससे वे ही भेड़िये को वोट दें।
- प्रश्न – भेड़िये को संत बनाने के लिए बूढ़े सियार ने क्या-क्या किया?
उत्तर – बूढ़े सियार ने भेड़िये के मस्तक पर तिलक लगाया, गले में कंठी पहनाई और मुँह में घास के तिनके खोंस दिए। उसे हिंसक आँखें झुकाकर और बिना कुछ बोले विनय की मूर्ति बने रहने को कहा।
- प्रश्न – रंगे हुए सियारों ने भेड़िये के प्रचार में क्या भूमिका निभाई?
उत्तर – पीले सियार ने विचारक और कवि बनकर, नीले सियार ने नेता और पत्रकार बनकर, और हरे सियार ने धर्मगुरु बनकर भेड़ियों का प्रचार किया। उन्होंने भेड़िये को परोपकारी संत और भेड़ों का हितरक्षक बताया।
- प्रश्न – बूढ़े सियार ने भेड़ों को कैसे विश्वास दिलाया कि भेड़िया बदल गया है?
उत्तर – बूढ़े सियार ने कहा कि भेड़िया राजा संत हो गए हैं, हिंसा छोड़ दी है, और हृदय परिवर्तन हो गया है। उसने बताया कि भेड़िया घास खा रहा है और भेड़ों से विशेष प्रेम करता है, अपने पापों का प्रायश्चित कर रहा है।
- प्रश्न – चुनाव जीतने के बाद पंचायत में भेड़ियों ने पहला कानून क्या बनाया?
उत्तर – चुनाव जीतने के बाद भेड़ियों ने भेड़ों की भलाई के लिए पहला कानून बनाया कि हर भेड़िये को नाश्ते के लिए एक मुलायम बच्चा, दोपहर के भोजन में पूरी भेड़ और शाम को आधी भेड़ दी जाए।
- प्रश्न – यह कहानी समाज के किस वर्ग पर व्यंग्य करती है?
उत्तर – यह कहानी मुख्य रूप से उन स्वार्थी और चालाक राजनेताओं तथा उनके चापलूस प्रचार तंत्र पर व्यंग्य करती है, जो आम जनता की सादगी का फायदा उठाकर उन्हें गुमराह करते हैं और सत्ता हथियाकर उनका शोषण करते हैं।
- प्रश्न – कहानी “भेड़ें और भेड़िये” का केंद्रीय संदेश क्या है?
उत्तर – कहानी का केंद्रीय संदेश यह है कि आम जनता को नेताओं के झूठे वादों और लुभावने प्रचार से सावधान रहना चाहिए। उन्हें अपने वास्तविक हितैषियों को पहचानना चाहिए, अन्यथा वे अपने ही शोषण का मार्ग प्रशस्त कर देंगे।
‘भेड़ें और भेड़िये’ – दीर्घ उत्तरीय प्रश्न और उत्तर (70-80 शब्दों में)
- प्रश्न – वन-प्रदेश में प्रजातंत्र की स्थापना के निर्णय ने भेड़ों और भेड़ियों को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर – वन-प्रदेश में प्रजातंत्र की स्थापना से भेड़ें उत्साहित थीं, क्योंकि वे हिंसा-मुक्त, शांतिपूर्ण समाज की उम्मीद कर रही थीं, जहाँ कानून उनके भय को दूर करेंगे। वे अपने प्रतिनिधियों से जीव-हिंसा पर रोक लगवाना चाहती थीं। दूसरी ओर, भेड़िये चिंतित थे, क्योंकि भेड़ों की अधिक संख्या के कारण उनका बहुमत होने की संभावना थी, जिससे हिंसा-विरोधी कानून बनने पर उनका भोजन (भेड़ें) छिन सकता था। इस तरह, दोनों के विचार परस्पर विरोधी थे। - प्रश्न – बूढ़े सियार ने भेड़ियों की चिंता को दूर करने के लिए क्या योजना बनाई?
उत्तर – बूढ़े सियार ने भेड़ियों की चिंता को दूर करने के लिए चतुर योजना बनाई। उसने भेड़िये को संत का रूप दिया—तिलक, कंठी और घास के तिनके देकर। साथ ही, तीन सियारों को पीले, नीले और हरे रंग में रंगकर विद्वान, नेता-पत्रकार और धर्मगुरु के रूप में प्रस्तुत किया। ये रंगे सियार भेड़ों के बीच भेड़िया-संत का प्रचार कर उनका विश्वास जीतने और पंचायत में बहुमत हासिल करने के लिए तैयार किए गए। - प्रश्न – बूढ़े सियार ने भेड़िया-संत का रूप धारण करवाने के लिए क्या-क्या निर्देश दिए?
उत्तर – बूढ़े सियार ने भेड़िये को संत का रूप देने के लिए मस्तक पर तिलक लगाया, गले में कंठी पहनाई और मुँह में घास के तिनके खोंस दिए। उसने निर्देश दिया कि भेड़िया अपनी हिंसक आँखें ऊपर न उठाए, हमेशा जमीन की ओर देखे और कुछ बोले नहीं, ताकि उसकी असलियत न खुले। साथ ही, भेड़ों की सभा में सुंदर भेड़ों को देखकर उन्हें खाने की कोशिश न करे। - प्रश्न – रंगे सियारों की भूमिका क्या थी और उन्होंने भेड़ों को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर – रंगे सियारों—पीला (विद्वान-कवि), नीला (नेता-पत्रकार), और हरा (धर्मगुरु)—का काम भेड़िया-संत का प्रचार करना था। पीले सियार ने काव्यात्मक ढंग से भेड़िया-संत को परमात्मा-तुल्य बताया, नीले ने भेड़ियों को भेड़ों का रक्षक सिद्ध किया, और हरे ने धार्मिक उपदेश देकर वोट माँगे। उनकी चतुर बातों और झूठे प्रचार ने भेड़ों का विश्वास जीत लिया, जिससे वे भेड़ियों को चुनने के लिए राजी हो गईं। - प्रश्न – बूढ़े सियार ने भेड़ों की सभा में भेड़िया-संत की महिमा का प्रचार कैसे किया?
उत्तर – बूढ़े सियार ने भेड़ों की सभा में भेड़िया-संत को हिंसा-मुक्त, घास खाने वाला, और भेड़ों का हितैषी बताया। उसने झूठे किस्से सुनाए, जैसे भेड़िया-संत ने भेड़ के बच्चे का काँटा निकाला और उसकी अंत्येष्टि की। उसने दावा किया कि भेड़िया भेड़ों के कष्टों पर आँसू बहाता है और उनके पापों का प्रायश्चित करना चाहता है। इस प्रचार ने भेड़ों को भेड़िया-संत पर विश्वास करने के लिए प्रेरित किया। - प्रश्न – पीले सियार ने अपने काव्यात्मक भाषण में भेड़िया-संत की तुलना किससे की और क्यों?
उत्तर – पीले सियार ने भेड़िया-संत की तुलना परमात्मा से की, कहकर कि जैसे स्वर्ग में परमात्मा, वैसे पृथ्वी पर भेड़िया है। उसने काव्यात्मक ढंग से कहा कि प्रभात में उषा भेड़िया-संत का तिलक करती है, पवन उनका पंखा करता है, और रात में उनकी ज्योति तारों में चमकती है। यह अतिशयोक्तिपूर्ण प्रचार भेड़ों को प्रभावित करने और भेड़िया-संत को महान दिखाने के लिए था। - प्रश्न – नीले सियार ने भेड़ों को भेड़ियों के पक्ष में वोट देने के लिए कैसे मनाया?
उत्तर – नीले सियार ने भेड़ों को बताया कि भेड़ें कोमल और निर्बल हैं, जो अपनी रक्षा नहीं कर सकतीं, जबकि भेड़िये बलवान हैं और उनकी रक्षा करेंगे। उसने भेड़ियों को भेड़ों का भाई सिद्ध किया और उनके बदनाम होने को झूठा बताया, दावा करते हुए कि अन्य लोग भेड़ों को खाकर हड्डियाँ भेड़ियों के द्वार पर फेंकते हैं। इस तरह, उसने भेड़ों को भेड़ियों को चुनने के लिए प्रेरित किया। - प्रश्न – हरे सियार ने अपने धार्मिक उपदेश में भेड़ों को क्या संदेश दिया?
उत्तर – हरे सियार ने धार्मिक उपदेश देते हुए भेड़ों को कहा कि जो यहाँ त्याग करेगा, वह स्वर्ग में सुख पाएगा, और जो यहाँ भेड़ियों को वोट देगा, वह वहाँ लाभ पाएगा। उसने भेड़िया-संत को दानी, परोपकारी और संत बताया, जिसे प्रणाम करने योग्य कहा। इस उपदेश ने भेड़ों को भेड़ियों के प्रति आस्था जगाने और उन्हें वोट देने के लिए प्रेरित किया। - प्रश्न – पंचायत में भेड़ियों के चुने जाने के बाद उन्होंने क्या कानून बनाया और इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर – पंचायत में चुने जाने के बाद भेड़ियों ने कानून बनाया कि प्रत्येक भेड़िये को प्रतिदिन भेड़ का मांस मिले—नाश्ते में एक बच्चा, दोपहर में एक पूरी भेड़, और शाम को आधी भेड़। इस कानून ने भेड़ों की भलाई के बजाय भेड़ियों के स्वार्थ को पूरा किया, जिससे भेड़ों का शोषण हुआ। यह दर्शाता है कि भेड़ियों ने भेड़ों के विश्वास का दुरुपयोग कर सत्ता हासिल की और उनका अहित किया। - प्रश्न – कहानी ‘भेड़ें और भेड़िये’ का मुख्य नैतिक संदेश क्या है?
उत्तर – कहानी का मुख्य नैतिक संदेश यह है कि चालाक और स्वार्थी लोग (भेड़िये और सियार) भोले-भाले लोगों (भेड़ों) का विश्वास झूठे प्रचार और छल से जीतकर सत्ता हासिल करते हैं, फिर उनका शोषण करते हैं। यह प्रजातंत्र में प्रचार, धोखे और विश्वास के दुरुपयोग पर व्यंग्य है, जो यह सिखाता है कि सजगता और विवेक के बिना भोले लोग शोषण के शिकार हो सकते हैं।