West Bengal, Hindi Course A, Class XI, Kedarnath Agrawal – Vasanti Hawa,

कवि परिचय : केदारनाथ अग्रवाल

हिंदी साहित्य में प्रगतिशील काव्य-धारा के एक प्रमुख कवि केदारनाथ अग्रवाल है। केदारनाथ अग्रवाल का जन्म 1 अप्रैल, 1911 को उत्तर प्रदेश के बाँदा नगर के कमासिन गाँव में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। इनके पिताजी हनुमान प्रसाद अग्रवाल और माताजी घसिट्टो देवी थी। केदार जी के पिताजी स्वयं कवि थे और उनका एक काव्य संकलन ‘मधुरिम’ के नाम से प्रकाशित भी हुआ था। केदार जी का आरंभिक जीवन कमासिन के ग्रामीण माहौल में बीता और शिक्षा दीक्षा की शुरूआत भी वहीं हुई। तदनंतर अपने चाचा मुकुंदलाल अग्रवाल के संरक्षण में उन्होंने शिक्षा पाई। केदार जी की काव्य-यात्रा का आरंभ लगभग 1930 से माना जा सकता है।

मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित केदारनाथ जी जनसाधारण के जीवन की गहरी व व्यापक संवेदना को अपने काव्य में सजाते दिखाई पड़ते हैं। साथ ही कवि की लेखनी कभी-कभी गाँव के उन्मुक्त वातावरण में भी रम-सी जाती है। उनके काव्य का एक पहलू मिट्टी की सोंधी खुशबू से भी जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि इनकी कविताओं में भारत की धरती की सुगंध और आस्था का स्वर भी सुनाई पड़ता है।

प्रमुख कृतियाँ – युग की गंगा, फूल नहीं रंग बोलते हैं, पंख और पतवार, गुलमेहंदी, जमुन जल तुम, अपूर्वा, आग का आइना, जो शिलाएँ तोड़तें हैं, नींद के बादल। ‘अपूर्वा’ के लिए 1986 का साहित्य अकादमी पुरस्कार इन्हें मिला। कविता संग्रह ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’ सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित हुआ।

इनकी मृत्यु 22 जून 2000

बसंती हवा

हवा हूँ, हवा मैं

बसंती हवा हूँ।

सुनो बात मेरी-

अनोखी हवा हूँ।

बड़ी बावली हूँ,

बड़ी मस्तमौला।

नहीं कुछ फिकर है,

बड़ी ही निडर हूँ।

जिधर चाहती हूँ,

उधर घूमती हूँ,

मुसाफिर अजब हूँ।

न घर-बार मेरा,

न उद्देश्य मेरा,

न इच्छा किसी की,

न आशा किसी की,

न प्रेमी न दुश्मन,

जिधर चाहती हूँ

उधर घूमती हूँ।

हवा हूँ, हवा मैं

बसंती हवा हूँ।

जहाँ से चली मैं

जहाँ को गई मैं

शहर, गाँव, बस्ती,

नदी, रेत, निर्जन,

हरे खेत, पोखर,

झुलाती चली मैं।

झुमाती चली मैं !

हवा हूँ, हवा मैं

बसंती हवा हूँ।

चढ़ी पेड़ महुआ,

थपाथप मचाया;

गिरी धम्म से फिर,

चढ़ी आम ऊपर,

उसे भी झकोरा,

किया कान में ‘कू’,

उतरकर भगी मैं,

हरे खेत पहुँची

वहाँ, गेंहुँओं में

लहर खूब मारी।

 

पहर दो पहर क्या,

अनेकों पहर तक

इसी में रही मैं !

खड़ी देख अलसी

लिए शीश कलसी,

मुझे खूब सूझी –

हिलाया-झुलाया

गिरी पर न कलसी !

 

इसी हार को पा,

हिलाई न सरसों,

झुलाई न सरसों,

हवा हूँ, हवा मैं

बसंती हवा हूँ !

 

मुझे देखते ही

अरहरी लजाई,

मनाया बनाया,

न मानी, न मानी;

उसे भी न छोड़ा –

पथिक आ रहा था,

उसी पर ढकेला;

हँसी ज़ोर से मैं,

हँसी सब दिशाएँ,

हँसे लहलहाते

हरे खेत सारे,

हँसी चमचमाती

भरी धूप प्यारी;

बसंती हवा में

हँसी सृष्टि सारी !

हवा हूँ, हवा मैं

बसंती हवा हूँ !

शब्दार्थ

 

शब्द

हिंदी अर्थ (Hindi)

बांग्ला अर्थ (Bengali)

अंग्रेजी अर्थ (English)

बसंती

बसंत ऋतु से संबंधित

বসন্তকালীন (Basantokalin)

Of spring, spring-like

हवा

वायु, पवन

বাতাস (Batash)

Wind, air

अनोखी

अद्भुत, निराली, विलक्षण

অসাধারণ (Oshadharon), অভিনব (Obhinob)

Unique, extraordinary, unusual

बावली

पगली, नादान, बावली (भाववाचक)

পাগল (Pagol), বোকা (Boka), খামখেয়ালি (Khamkheyali)

Crazy, foolish, whimsical, madcap

मस्तमौला

अपनी धुन में रहने वाला, बेपरवाह

নিজের খেয়ালে থাকা (Nijer kheyale thaka), উদাসীন (Udashin)

Carefree, jovial, easygoing, bohemian

फिकर

चिंता, परवाह

চিন্তা (Chinta), পরোয়া (Porowa)

Worry, concern

निडर

बिना डर के, साहसी, निर्भीक

নির্ভীক (Nirbhik), সাহসী (Sahoshi)

Fearless, brave, intrepid

जिधर

जिस तरफ, जिस दिशा में

যেদিকে (Jedike)

Whichever direction, wherever

मुसाफिर

यात्री, पथिक

পথিক (Pothik), পর্যটক (Porjyotok)

Traveler, passenger

अजब

अनोखा, विचित्र

অদ্ভুত (Adbhut), বিচিত্র (Bichitro)

Strange, peculiar, wonderful

उद्देश्य

लक्ष्य, प्रयोजन

উদ্দেশ্য (Uddeshya), লক্ষ্য (Lokkhyo)

Purpose, aim, objective

इच्छा

चाह, कामना

ইচ্ছা (Ichha), আকাঙ্ক্ষা (Akankkha)

Wish, desire, longing

आशा

उम्मीद, भरोसा

আশা (Asha), ভরসা (Bhorsa)

Hope, expectation

प्रेमी

प्यार करने वाला

প্রেমিক (Premik)

Lover, admirer

दुश्मन

शत्रु, विरोधी

শত্রু (Shatru)

Enemy, foe

निर्जन

जहाँ कोई न हो, सुनसान जगह, वीरान

নির্জন (Nirjon), জনশূন্য (Jonoshunyo)

Deserted, solitary, uninhabited

पोखर

छोटा तालाब, तलैया

পুকুর (Pukur), জলাশয় (Jolashoy)

Pond, small lake

झुलाती

झूलाना (क्रिया), हिलाना

দোলানো (Dolano), কাঁপানো (Kampano)

Swings, sways, rocks

झुमाती

झुमाना (क्रिया), मस्ती में हिलाना

নাচানো (Nachano), ঝোঁকানো (Jhonkano)

Makes dance, sways joyfully

महुआ

एक पेड़ जिसका फूल मीठा होता है।

মহুয়া গাছ (Mohua gachh)

Mahua tree (a tree with sweet-smelling flowers)

थपाथप

हिलाने से होने वाली आवाज़, थपथपाना

থপথপ (Thopthop), আঘাতের শব্দ (Aghater shobdo)

Thumping sound, patting sound

धम्म

भारी चीज़ के गिरने की आवाज़

ধপাস (Dhapas), জোরে পতনের শব্দ (Jore potoner shobdo)

Thud, sound of something heavy falling

झकोरा

तेज़ हवा का झोंका, हिलाना

ঝাকানো (Jhakano), দোলা (Dola)

Gust of wind, violent shake, strong sway

कू

कोयल की आवाज़

কু (Ku), কোকিলের ডাক (Kokiler dak)

Cuckoo’s call

गेंहुँओं

गेहूँ के खेत

গমের ক্ষেত (Gomer khet)

Wheat fields

लहर

तरंग, हिलना

ঢেউ (Dheu), তরঙ্গ (Torongo)

Wave, ripple

पहर

समय की एक इकाई (तीन घंटे के लगभग)

প্রহর (Prohor)

Period of time (approx. 3 hours), watch

अलसी

एक पौधा जिसका बीज तिल जैसा होता है।

তিসি (Tishi)

Linseed plant, flax

शीश

सिर

মাথা (Matha)

Head

कलसी

छोटे घड़े जैसा फल, या पानी रखने का छोटा घड़ा

কলসি (Kolshi), ছোট কলস (Chhoto kolos)

Small pitcher, a small pot-like fruit/vessel

सूझी

विचार आना, ध्यान में आना

মনে পড়া (Mone pora), ধারণা হওয়া (Dharona howa)

Occurred to (an idea), came to mind

सरसों

एक पौधा जिसके बीज से तेल निकलता है।

সরিষা (Shorisha)

Mustard plant

अरहरी

अरहर (एक प्रकार की दाल का पौधा)

অড়হর (Orhor)

Arhar (pigeon pea plant)

लजाई

शर्मिंदा हुई, शरमा गई

লজ্জা পেল (Lajja pelo), লজ্জিত হল (Lajjito holo)

Felt shy, became bashful

मनाया

राजी किया, समझाया

বোঝানো (Bhojano), রাজি করানো (Raji korano)

Persuaded, convinced, appeased

पथिक

राहगीर, यात्री

পথিক (Pothik)

Traveler, wayfarer

ढकेला

धक्का दिया

ধাক্কা দিল (Dhakka dilo)

Pushed, shoved

सृष्टि

संसार, दुनिया

সৃষ্টি (Srishti), বিশ্ব (Bishwo)

Creation, world, universe

चमचमाती

चमकती हुई, जगमगाती हुई

ঝকঝকে (Jhakjhake), ঝলমলে (Jholmule)

Glittering, sparkling, shining brightly

कविताबसंती हवा’ का परिचय

कविता ‘बसंती हवा’ एक सुंदर और जीवंत रचना है, जो हवा की स्वच्छंद, निश्चल और उन्मुक्त प्रकृति को चित्रित करती है। यह कविता हवा को एक मुक्त आत्मा के रूप में प्रस्तुत करती है, जो बिना किसी बंधन, उद्देश्य या गंतव्य के अपनी इच्छा से इधर-उधर घूमती-फिरती है। कविता में हवा को ‘बसंती’ कहा गया है, जो वसंत ऋतु की ताजगी, उल्लास और विविध रंगों का प्रतीक है। कविता की भाषा सरल, प्रवाहमयी और चित्रात्मक है, जो पाठक के मन में एक जीवंत दृश्य उकेरती है। इससे पाठक में भी जीवन में स्वच्छंद और उन्मुक्त रहने की इच्छा जाग्रत होती है।

कविता बसंती हवा’ का विश्लेषण

प्रथम खंड: हवा की स्वतंत्रता

 

हवा हूँ, हवा मैं

बसंती हवा हूँ।

सुनो बात मेरी-

अनोखी हवा हूँ।

बड़ी बावली हूँ,

बड़ी मस्तमौला।

नहीं कुछ फिकर है,

बड़ी ही निडर हूँ।

विश्लेषण: कविता की शुरुआत में हवा स्वयं को प्रस्तुत करती है। वह खुद को ‘बसंती हवा’ कहती है, जो वसंत की ताजगी और उल्लास का प्रतीक है। ‘अनोखी हवा’ कहकर वह अपनी विशेषता को रेखांकित करती है। बड़ी बावली हूँ, बड़ी मस्तमौला के माध्यम से यहाँ हवा की चंचल और बेपरवाह प्रकृति को दर्शाया गया है। “बावली” शब्द उसकी उन्मुक्तता और “मस्तमौला” उसकी लापरवाह, आनंदमयी प्रवृत्ति को दर्शाता है। हवा बिना किसी चिंता या डर के अपनी मर्जी से चलती है। यह पंक्तियाँ हवा की स्वतंत्रता और निश्चिंतता को उजागर करती हैं।

 

 

दूसरा खंड: हवा का स्वच्छंद भ्रमण

जिधर चाहती हूँ,

उधर घूमती हूँ,

मुसाफिर अजब हूँ।

न घर-बार मेरा,

न उद्देश्य मेरा,

न इच्छा किसी की,

न आशा किसी की,

न प्रेमी न दुश्मन,

जिधर चाहती हूँ

उधर घूमती हूँ।

विश्लेषण: यहाँ हवा अपनी स्वतंत्रता को और गहराई से व्यक्त करती है। वह एक “मुसाफिर अजब” है, जिसका कोई निश्चित गंतव्य नहीं है। हवा के पास कोई स्थायी ठिकाना या लक्ष्य नहीं है। वह किसी की इच्छा, आशा या भावनाओं से बँधी नहीं है। यह पंक्तियाँ हवा की पूर्ण स्वतंत्रता को दर्शाती हैं। हवा न तो किसी से प्रेम करती है और न ही किसी से शत्रुता रखती है। यह उसकी निष्पक्ष और निष्कलंक प्रकृति को दर्शाता है। अर्थात् हम मनुष्यों को भी हवा से बहुत कुछ सीखना चाहिए।

 

तीसरा खंड: हवा का प्रकृति के साथ संनाद

जहाँ से चली मैं

जहाँ को गई मैं

शहर, गाँव, बस्ती,

नदी, रेत, निर्जन,

हरे खेत, पोखर,

झुलाती चली मैं।

झुमाती चली मैं !

विश्लेषण: इस खंड में हवा अपने भ्रमण का वर्णन करती है। वह शहर, गाँव, नदी, रेत, निर्जन स्थानों, हरे खेतों और पोखरों तक जाती है। हवा जहाँ भी जाती है, वहाँ के दृश्यों को झुलाती और नचाती है। यह वसंत की ताजगी और उल्लास को दर्शाता है, जो प्रकृति को जीवंत बनाता है। वास्तव में हवा वसंत ऋतु की सुंदरता को द्विगुणित कर देती है।

चौथा खंड: हवा की चंचलता

चढ़ी पेड़ महुआ,

थपाथप मचाया;

गिरी धम्म से फिर,

चढ़ी आम ऊपर,

उसे भी झकोरा,

किया कान में ‘कू’,

उतरकर भगी मैं,

हरे खेत पहुँची

वहाँ, गेंहुँओं में

लहर खूब मारी।

विश्लेषण: यहाँ हवा की चंचलता और शरारत को जीवंत रूप में दर्शाया गया है। वह महुआ के पेड़ पर चढ़ती है, शोर मचाती है, फिर आम के पेड़ को झकझोरती है और “कान में ‘कू'” करके शरारत करती है। हवा खेतों में पहुँचकर गेहूँ की बालियों को लहराती है, जो प्रकृति के साथ उसकी अंतरंगता को दर्शाता है। यह दृश्य वसंत की हरियाली और जीवंतता को उजागर करता है। अतः, जीवन में हास्यपूर्ण शरारत भी बहुत आवश्यक है ताकि हम नियमों और बंधनों के तले दबते न जाएँ।

पाँचवाँ खंड: हवा की शरारत और हार

पहर दो पहर क्या,

अनेकों पहर तक

इसी में रही मैं !

खड़ी देख अलसी

लिए शीश कलसी,

मुझे खूब सूझी –

हिलाया-झुलाया

गिरी पर न कलसी !

इसी हार को पा,

हिलाई न सरसों,

झुलाई न सरसों,

विश्लेषण: हवा की चंचलता यहाँ और स्पष्ट होती है। वह कई पहर तक अपनी शरारतों में मग्न रहती है। हवा एक अलसी (लड़की) को देखती है, जो सिर पर कलसी (घड़ा) लिए खड़ी है। हवा उसे हिलाने-झुलाने की कोशिश करती है, लेकिन कलसी नहीं गिरती। अपनी इस ‘हार’ से हवा थोड़ा रुक जाती है और सरसों के खेतों को हिलाने-झुलाने से बचती है। यह हवा की शरारती, लेकिन निश्छल प्रकृति को दर्शाता है। इससे हमें यह भी पता चलता है कि शरारत की भी सीमा होनी चाहिए।

छठा खंड: हवा का उल्लास और सृष्टि की हँसी

मुझे देखते ही

अरहरी लजाई,

मनाया बनाया,

न मानी, न मानी;

उसे भी न छोड़ा –

पथिक आ रहा था,

उसी पर ढकेला;

हँसी ज़ोर से मैं,

हँसी सब दिशाएँ,

हँसे लहलहाते

हरे खेत सारे,

हँसी चमचमाती

भरी धूप प्यारी;

बसंती हवा में

हँसी सृष्टि सारी !

विश्लेषण: इस खंड में हवा की शरारत चरम पर है। वह अरहरी जो एक बालिका के समान प्रतीत हो रही है उसे लजाने की कोशिश करती है, लेकिन वह नहीं लजाती और न ही हवा की बात मानती है। फिर हवा एक पथिक को ढकेलती है, जिससे वह हँस पड़ती है। हवा की इस शरारत से पूरी प्रकृति हँस पड़ती है। हरे खेत, चमकती धूप और सारी सृष्टि इस उल्लास में शामिल हो जाती है। यहाँ वसंत की जीवंतता और आनंद को पूरी सृष्टि के साथ जोड़ा गया है।

अंतिम पंक्तियाँ: हवा का गीत

हवा हूँ, हवा मैं

बसंती हवा हूँ !

विश्लेषण: कविता का अंत हवा के गीत के साथ होता है, जो उसकी स्वतंत्रता और उल्लास को फिर से दोहराता है। ‘बसंती हवा’ का बार-बार उल्लेख कविता को एक लयबद्ध और उत्सवपूर्ण समापन देता है।

कविता की भाषा और शैली

भाषा – कविता की भाषा सरल, बोलचाल और चित्रात्मक है। शब्द जैसे “बावली”, “मस्तमौला”, “थपाथप”, “झकझोरा”, और “कान में ‘कू'” कविता को जीवंत और लोकप्रिय बनाते हैं।

अलंकार – कविता में अनुप्रास (जैसे “हवा हूँ, हवा मैं”), रूपक (हवा को मुसाफिर के रूप में चित्रित करना), और मानवीकरण (हवा को बोलते, हँसते, शरारत करते दिखाना) जैसे अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है।

लय – कविता की लय तीव्र और प्रवाहमयी है, जो हवा की गति और चंचलता को दर्शाती है।

 

प्रतीकात्मक अर्थ

हवा – हवा स्वतंत्रता, निश्चलता और जीवन के आनंद का प्रतीक है। यह जीवन की उस भावना को दर्शाती है, जो बिना किसी बंधन या चिंता के हर पल का आनंद लेती है।

वसंत – ‘बसंती’ शब्द वसंत की ताजगी, नवीनता और उल्लास का प्रतीक है। यह प्रकृति और जीवन की नई शुरुआत को दर्शाता है।

प्रकृति का उल्लास – हरे खेत, चमकती धूप, और हँसती सृष्टि प्रकृति के आनंद और जीवन की सकारात्मकता को दर्शाते हैं।

शरारत – हवा की शरारतें मासूमियत और निश्छलता का प्रतीक हैं, जो जीवन में छोटे-छोटे आनंद को दर्शाती हैं।

 

कविता का सांस्कृतिक संदर्भ

कविता भारतीय ग्रामीण परिवेश और वसंत ऋतु की सुंदरता को दर्शाती है। महुआ, आम, गेंहूँ, अलसी, सरसों और अरहरी जैसे शब्द भारतीय खेतों और गाँवों की जीवंत तस्वीर उकेरते हैं। यह कविता प्रकृति और मानव जीवन के बीच एक गहरा रिश्ता स्थापित करती है, जो भारतीय संस्कृति में प्रकृति-पूजा और उल्लास की भावना को दर्शाता है।

 

निष्कर्ष

‘बसंती हवा’ एक ऐसी कविता है, जो हवा के माध्यम से मनुष्यों को स्वतंत्रता, उल्लास और प्रकृति की सुंदरता का आस्वादन करने का संदेश देती है। यह कविता पाठक को वसंत की ताजगी, ग्रामीण जीवन की सादगी और जीवन के छोटे-छोटे आनंदों की ओर ले जाती है। हवा का चंचल स्वभाव और उसकी शरारतें पाठक के चेहरे पर मुस्कान लाती हैं, जबकि प्रकृति का जीवंत चित्रण मन को तरोताजा करता है। यह कविता न केवल साहित्यिक दृष्टि से सुंदर है, बल्कि यह जीवन की निश्चलता और स्वतंत्रता का एक गहरा संदेश भी देती है।

बसंती हवा कविता पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. कविता ‘बसंती हवा’ में हवा स्वयं को कैसा मुसाफिर कहती है?
a) साधारण मुसाफिर
b) अजब मुसाफिर
c) थका हुआ मुसाफिर
d) लक्ष्यहीन मुसाफिर
उत्तर – b) अजब मुसाफिर
स्पष्टीकरण: कविता में हवा कहती है, “मुसाफिर अजब हूँ,” जो उसकी अनोखी और स्वच्छंद प्रकृति को दर्शाता है।

प्रश्न 2. हवा अपनी प्रकृति को कविता में किस प्रकार वर्णित करती है?
a) गंभीर और शांत
b) बावली और मस्तमौला
c) डरपोक और चिंतित
d) उदास और थकी हुई
उत्तर – b) बावली और मस्तमौला
स्पष्टीकरण: कविता में हवा स्वयं को “बड़ी बावली हूँ, बड़ी मस्तमौला” कहती है, जो उसकी चंचल और बेपरवाह प्रकृति को दर्शाता है।

प्रश्न 3. हवा के अनुसार, उसके पास क्या नहीं है?
a) घर-बार और उद्देश्य
b) दोस्त और परिवार
c) धन और संपत्ति
d) समय और गति
उत्तर – a) घर-बार और उद्देश्य
स्पष्टीकरण: हवा कहती है, “न घर-बार मेरा, न उद्देश्य मेरा,” जो उसकी स्वतंत्र और बंधनमुक्त प्रकृति को दर्शाता है।

प्रश्न 4. कविता में हवा ने किन स्थानों का भ्रमण किया है?
a) केवल शहर और गाँव
b) शहर, गाँव, नदी, रेत, हरे खेत, पोखर
c) केवल हरे खेत और पोखर
d) केवल नदी और रेत
उत्तर – b) शहर, गाँव, नदी, रेत, हरे खेत, पोखर
स्पष्टीकरण: कविता में हवा कहती है कि वह शहर, गाँव, बस्ती, नदी, रेत, निर्जन, हरे खेत और पोखरों तक जाती है और वहाँ झुलाती-झुमाती है।

प्रश्न 5. हवा ने महुआ के पेड़ पर क्या किया?
a) फल तोड़े
b) थपाथप मचाया
c) पत्ते झाड़े
d) फूल बिखेरे
उत्तर – b) थपाथप मचाया
स्पष्टीकरण: कविता में वर्णित है कि हवा महुआ के पेड़ पर चढ़ी और “थपाथप मचाया,” जो उसकी शरारत को दर्शाता है।

प्रश्न 6. हवा ने गेंहुँओं में क्या किया?
a) उन्हें उखाड़ दिया
b) लहर खूब मारी
c) उन्हें सूखा दिया
d) उन्हें काट दिया
उत्तर – b) लहर खूब मारी
स्पष्टीकरण: हवा हरे खेतों में पहुँचकर गेंहुँओं में “लहर खूब मारी,” जो प्रकृति की जीवंतता को दर्शाता है।

प्रश्न 7. हवा ने अलसी को देखकर क्या करने की कोशिश की?
a) उसकी कलसी गिराने की कोशिश की
b) उसे गाना सुनाया
c) उसे फूल दिए
d) उसे डराया
उत्तर – a) उसकी कलसी गिराने की कोशिश की
स्पष्टीकरण: हवा ने अलसी को सिर पर कलसी लिए देखा और उसे हिलाया-झुलाया, लेकिन कलसी नहीं गिरी।

प्रश्न 8. कविता में हवा की शरारत से क्या हँसा?
a) केवल पथिक
b) सारी सृष्टि
c) केवल खेत
d) केवल धूप
उत्तर – b) सारी सृष्टि
स्पष्टीकरण: हवा की शरारत से हँसी ज़ोर से, सब दिशाएँ हँसीं, हरे खेत, चमकती धूप और सारी सृष्टि हँसी।

प्रश्न 9. कविता में ‘बसंती हवा’ का बार-बार उल्लेख किसका प्रतीक है?
a) सर्दी की ठंडक
b) वसंत की ताजगी और उल्लास
c) गर्मी की तपिश
d) बारिश की नमी
उत्तर – b) वसंत की ताजगी और उल्लास
स्पष्टीकरण: ‘बसंती हवा’ वसंत ऋतु की ताजगी, जीवंतता और उल्लास का प्रतीक है, जो कविता में बार-बार दोहराया गया है।

प्रश्न 10. हवा ने अरहरी के साथ क्या किया?
a) उसे मनाने की कोशिश की और पथिक पर ढकेला
b) उसे फूलों से सजाया
c) उसे गीत सुनाया
d) उसे शांत किया
उत्तर – a) उसे मनाने की कोशिश की और पथिक पर ढकेला
स्पष्टीकरण: हवा ने अरहरी को मनाने की कोशिश की, लेकिन जब वह नहीं मानी, तो हवा ने उसे पथिक पर ढकेल दिया, जिससे हँसी छा गई।

 ‘बसंती हवा’ पर आधारित एक-वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

  1. प्रश्न – बसंती हवा खुद को कैसी बताती है?
    उत्तर – वह खुद को मस्तमौला, निडर और बावली बताती है।
  2. प्रश्न – बसंती हवा का कोई उद्देश्य या ठिकाना है क्या?
    उत्तर – नहीं, बसंती हवा का कोई उद्देश्य या ठिकाना नहीं है।
  3. प्रश्न – बसंती हवा कहाँ-कहाँ घूमी?
    उत्तर – वह शहर, गाँव, बस्ती, नदी, रेत, निर्जन, खेत और पोखर में घूमी।
  4. प्रश्न – बसंती हवा ने महुआ और आम के पेड़ों के साथ क्या किया?
    उत्तर – उसने महुआ पर चढ़कर थपथपाया और आम को झकोरा।
  5. प्रश्न – गेंहूँ के खेतों में बसंती हवा ने क्या किया?
    उत्तर – उसने गेंहूँ के खेतों में लहरें मारकर उन्हें झुमाया।
  6. प्रश्न – अलसी को देखकर बसंती हवा ने क्या कोशिश की?
    उत्तर – उसने अलसी को हिलाया-झुलाया लेकिन कलसी नहीं गिरी।
  7. प्रश्न – सरसों के साथ बसंती हवा ने क्या किया?
    उत्तर – उसने सरसों को न हिलाया, न झुलाया।
  8. प्रश्न – अरहर को देखकर बसंती हवा ने क्या किया?
    उत्तर – उसने अरहर को मनाया लेकिन वह नहीं मानी।
  9. प्रश्न – बसंती हवा ने पथिक के साथ क्या किया?
    उत्तर – उसने पथिक को ढकेल दिया और जोर से हँसी।
  10. प्रश्न – अंत में बसंती हवा की हँसी का प्रभाव क्या था?
    उत्तर – उसकी हँसी से सारी दिशाएँ, खेत और धूप हँसने लगे, पूरी सृष्टि हँसी।

‘बसंती हवा’ प्रश्न और उत्तर (35-40)

  1. प्रश्न – कवि ने बसंती हवा को कैसी हवा बताया है?

उत्तर – कवि ने बसंती हवा को अनोखी, बावली और मस्तमौला बताया है। वह किसी बात की फिक्र नहीं करती और बहुत निडर है, अपनी मर्जी से घूमती है।

  1. प्रश्न – बसंती हवा खुद को किस प्रकार का मुसाफिर कहती है?

उत्तर – बसंती हवा खुद को अजब मुसाफिर कहती है। उसका कोई घर-बार नहीं, न कोई उद्देश्य, न किसी की इच्छा या आशा, न कोई प्रेमी या दुश्मन है।

  1. प्रश्न – बसंती हवा कहाँ-कहाँ घूमती है?

उत्तर – बसंती हवा शहर, गाँव, बस्ती, नदी, रेत, निर्जन स्थान, हरे खेत और पोखर में घूमती है। वह सबको झुलाती और झुमाती चलती है।

  1. प्रश्न – महुआ के पेड़ पर चढ़कर हवा ने क्या किया?

उत्तर – महुआ के पेड़ पर चढ़कर हवा ने थपाथप मचाया और फिर धम्म से नीचे गिरी। यह उसकी शरारती और चंचल प्रकृति को दर्शाता है।

  1. प्रश्न – आम के पेड़ के साथ बसंती हवा ने क्या शरारत की?

उत्तर – आम के पेड़ पर चढ़कर बसंती हवा ने उसे झकोरा और उसके कान में ‘कू’ की आवाज़ की, फिर भाग निकली।

  1. प्रश्न – हरे खेतों में पहुँचकर बसंती हवा ने क्या मस्ती की?

उत्तर – हरे खेतों में पहुँचकर बसंती हवा ने गेंहुँओं में खूब लहर मारी। वह कई पहरों तक उसी मस्ती में रही, खेतों को झुलाती रही।

  1. प्रश्न – अलसी को देखकर बसंती हवा को क्या सूझा और क्या हुआ?

उत्तर – अलसी अर्थात् लड़की के शीश पर कलसी देखकर हवा को उसे हिलाने की शरारत सूझी। उसने खूब हिलाया-झुलाया, पर कलसी नहीं गिरी।

  1. प्रश्न – अलसी से हारने के बाद हवा ने सरसों के साथ क्या किया?

उत्तर – अलसी से अपनी हार मानकर बसंती हवा ने सरसों को न हिलाया, न झुलाया। यह दिखाता है कि वह हर बार शरारत नहीं करती।

  1. प्रश्न – अरहरी को देखकर बसंती हवा ने कैसी प्रतिक्रिया दी?

उत्तर – अरहरी को देखते ही वह लजाई। हवा ने उसे मनाया पर वह नहीं मानी। हवा ने उसे भी नहीं छोड़ा और एक पथिक पर धकेल दिया।

  1. प्रश्न – कविता के अंत में कौन-कौन हँसते हैं?

उत्तर – कविता के अंत में बसंती हवा स्वयं, सभी दिशाएँ, लहलहाते हरे खेत और चमचमाती प्यारी धूप हँसते हैं। पूरी सृष्टि बसंती हवा में हँसती है।

कविता ‘बसंती हवा’ पर आधारित प्रश्न और उत्तर (60-70)

  1. प्रश्न – कविता ‘बसंती हवा’ में हवा स्वयं को क्या कहती है?
    उत्तर – हवा स्वयं को ‘बसंती हवा’ और “अजब मुसाफिर” कहती है। वह अपनी चंचल, बेपरवाह और स्वतंत्र प्रकृति को दर्शाती है, जो बिना किसी बंधन या उद्देश्य के कहीं भी घूमती है। ‘बसंती’ शब्द वसंत की ताजगी और उल्लास को व्यक्त करता है।
  2. प्रश्न – हवा अपनी प्रकृति को कविता में कैसे वर्णित करती है?
    उत्तर – हवा अपनी प्रकृति को ‘बावली’ और ‘मस्तमौला’ बताती है। वह निडर और बिना फिक्र की है, जिसे न घर-बार चाहिए, न उद्देश्य। वह अपनी मर्जी से कहीं भी घूमती है, बिना किसी की इच्छा या आशा की परवाह किए। यह उसकी स्वच्छंदता को दर्शाता है।
  3. प्रश्न – हवा ने किन स्थानों का भ्रमण किया है?
    उत्तर – हवा ने शहर, गाँव, बस्ती, नदी, रेत, निर्जन स्थानों, हरे खेत और पोखरों का भ्रमण किया। वह इन स्थानों पर झुलाती और झुमाती चली, जिससे प्रकृति में ताजगी और जीवंतता फैलती है। यह वसंत की उल्लासमयी भावना को दर्शाता है।
  4. प्रश्न – हवा ने महुआ के पेड़ के साथ क्या किया?
    उत्तर – हवा महुआ के पेड़ पर चढ़ी और ‘थपाथप मचाया’, जिससे उसकी चंचल और शरारती प्रकृति झलकती है। वह पेड़ को झकझोरकर शोर मचाती है, जो वसंत की उन्मुक्तता और प्रकृति के साथ उसके खेल को दर्शाता है। यह दृश्य कविता में जीवंतता लाता है।
  5. प्रश्न – हवा ने गेंहुँओं में क्या किया?
    उत्तर – हवा हरे खेतों में पहुँची और गेंहुँओं में “लहर खूब मारी।” यह दृश्य गेहूँ की बालियों को हिलाने और प्रकृति में लयबद्ध गति पैदा करने को दर्शाता है। हवा की यह शरारत वसंत की जीवंतता और खेतों की हरियाली को उजागर करती है।
  6. प्रश्न – हवा ने अलसी के साथ क्या करने की कोशिश की?
    उत्तर – हवा ने अलसी (लड़की) को सिर पर कलसी लिए देखा और उसे हिलाने-झुलाने की कोशिश की, ताकि कलसी गिर जाए। लेकिन कलसी नहीं गिरी, जिसे हवा ने अपनी ‘हार’ माना। यह उसकी शरारती, मगर निश्छल प्रकृति को दर्शाता है।
  7. प्रश्न – हवा की शरारत से कविता में क्या हँसा?
    उत्तर – हवा की शरारत से सारी सृष्टि हँसी। हरे खेत, चमकती धूप, सभी दिशाएँ और प्रकृति के तत्व हँसे। यह दृश्य हवा की चंचलता और वसंत की उल्लासमयी भावना को दर्शाता है, जो सारी सृष्टि में आनंद फैलाती है।
  8. प्रश्न – ‘बसंती हवा’ का बार-बार उल्लेख किसका प्रतीक है?
    उत्तर – ‘बसंती हवा’ वसंत ऋतु की ताजगी, जीवंतता और उल्लास का प्रतीक है। यह प्रकृति की नवीनता और जीवन के आनंद को दर्शाता है। कविता में यह बार-बार दोहराया गया, जो हवा की स्वच्छंदता और वसंत की सुंदरता को रेखांकित करता है।
  9. प्रश्न – हवा ने अरहरी और पथिक के साथ क्या किया?
    उत्तर – हवा ने अरहरी को मनाने की कोशिश की, पर वह नहीं मानी। फिर हवा ने उसे पथिक पर ढकेल दिया, जिससे हँसी छा गई। यह शरारत प्रकृति और मानव के बीच हल्के-फुल्के रिश्ते को दर्शाती है, जो कविता में आनंद लाती है।
  10. प्रश्न – कविता में हवा की स्वतंत्रता कैसे व्यक्त हुई है?
    उत्तर – हवा की स्वतंत्रता “न घर-बार मेरा, न उद्देश्य मेरा” और “जिधर चाहती हूँ, उधर घूमती हूँ” जैसी पंक्तियों से व्यक्त हुई है। वह बिना किसी बंधन, इच्छा या शत्रुता के स्वच्छंद रूप से भटकती है, जो उसकी निश्चल और उन्मुक्त प्रकृति को दर्शाता है।

 

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