लेखक परिचय : सत्यजीत राय
सत्यजीत राय जी का जन्म 2 मई 1921 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था। सत्यजीत राय जी अपनी माता-पिता की इकलौती संतान थे। सत्यजीत राय जी सिर्फ 3 वर्ष के थे, जब उनके पिताजी श्री सुकुमार राय जी का निधन हो गया। इस घटना के बाद उनकी माता सुप्रभा राय जी ने उनका बड़ी मुश्किल से पालन पोषण किया था। उनकी माँ रवींद्र संगीत की मंजी हुई गायिका थी। उनके दादाजी ‘उपेन्द्रकिशोर रे’ एक लेखक एवं चित्रकार थे और इनके पिताजी भी बांग्ला में बच्चों को लिए रोचक कविताएँ लिखते थे। सत्यजीत राय ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अर्थ-शास्त्र में बी. ए., करने के उपरांत शांतिनिकेतन के विश्व भारती विश्वविद्यालय के ललित कला विभाग में उच्च शिक्षा के लिए दाखिला लिया। जहाँ चित्रकार नंदलाल बोस तथा विनोद बिहारी मुखर्जी का उनपर काफी प्रभाव पड़ा। हाँलाकि सन् 1942 में उन्होंने पाठ्यक्रम छोड़ दिया तथापि उनके ऊपर वहाँ बिताए दिनों का काफी प्रभाव पड़ा। बांग्ला कथा साहित्य पर भी ‘रे का काफी प्रभाव पड़ा। बाल कथा साहित्य के साथ अपनी फिल्मी जीवन के अनुभवों पर उन्होंने जो रचनाएँ प्रस्तुत की, उससे उनके विविधमुखी व्यक्तित्व का पता चलता है।
प्रमुख रचनाएँ – फेलुदा, एकेर पिठे दुइ, जखन छोटो छिलाम, विषय चलचित्र, एकेई बोले शूटिंग, आवर फिल्म्स, देयर फिल्मस आदि।
पुरस्कार – ऑक्सफोर्ड विश्व विद्यालय से मानद डॉक्टरेट, दादा साहब फालके पुरस्कार, भारत रत्न।
मृत्यु – 23 अप्रैल 1992 ई.
सहपाठी
अभी सुबह के सवा नौ बजे हैं।
मोहित सरकार ने गले में टाई का फंदा डाला ही था कि उसकी पत्नी अरुणा कमरे में आई और बोली, ‘तुम्हारा फोन।’
अब अभी कौन फोन कर सकता है भला !’
मोहित का ठीक साढ़े नौ बजे दफ़्तर जाने का नियम रहा है। अब घर से दफ़्तर को निकलते वक्त ‘तुम्हारा फोन’ सुन कर स्वभावतः मोहित की त्यौरियाँ चढ़ गईं।
अरुणा ने बताया, ‘वह कभी तुम्हारे साथ स्कूल में पढ़ता था।’
‘स्कूल में अच्छा, नाम बताया?’
‘उसने कहा कि जय नाम बताने पर ही वह समझ जाएगा।’
मोहित सरकार ने कोई तीस साल पहले स्कूल छोड़ा होगा। उसकी क्लास में चालीस लड़के रहे होंगे। अगर वह बड़े ध्यान से सोचे भी तो ज्यादा-से-ज्यादा बीस साथियों के नाम याद कर सकता है और इसके साथ उनका चेहरा भी। सौभाग्य से जय या जयदेव के नाम और चेहरे की याद अब भी उसे है, लेकिन वह क्लास के सबसे अच्छे लड़कों में एक था। गोरा सुंदर-सा चेहरा, पढ़ने-लिखने मे होशियार, खेल-कूद में भी आगे, हाई जंप में अव्वल। कभी-कभी वह ताश के खेल भी दिखाया करता और हाँ, कैसेबियाँका की आवृत्ति में उसने कोई पदक भी जीता था। स्कूल से निकलने के बाद मोहित ने उसके बारे में कभी कोई खोज-खबर नहीं ली।
लेकिन आज इतने सालों के बाद अपनी दोस्ती के बावजूद और कभी अपने सहपाठी रहे इस आदमी के बारे में कोई खास लगाव महसूस नहीं कर रहा था।
खैर, मोहित ने फोन का रिसीवर पकड़ा।
‘हैलो…’
‘कौन मोहित ! मुझे पहचान रहे हो भाई, मैं वही तुम्हारा जय… जयदेव बोस। बालीगंज स्कूल का सहपाठी।’
‘भई अब आवाज से तो पहचान नहीं रहा हूँ चेहरा ज़रूर याद है, बात क्या है?’
‘तुम तो अब बड़े अफसर हो गए हो भई। मेरा नाम तुम्हें अब तक याद रहा, यही बहुत है।’
‘अरे यह सब छोड़ो, बताओ बात क्या है?’
‘बस यों ही थोड़ी ज़रूरत थी। एक बार मिलना चाहता हूँ तुम से।’
‘कब?’
‘तुम जब कहो। लेकिन थोड़ी जल्दी हो तो अच्छा…’
‘तो फिर आज ही मिलो। मैं शाम को छह बजे घर आ जाता हूँ, तुम सात बजे आ सकोगे?’
‘क्यों नहीं ज़रूर आऊँगा, अच्छा तो धन्यवाद। तभी सारी बातें होंगी।’
अभी हाल ही में खरीदी गई आसमानी रंग की कार में दफ्तर जाते हुए मोहित सरकार ने स्कूल में घटी कुछ घटनाओं को याद करने की कोशिश की। हेड मास्टर गिरींद्र सुर की पैनी नजर और बेहद गंभीर स्वभाव के बाबजूद स्कूली दिन भी सचमुच कैसी-कैसी खुशियों से भरे दिन थे। मोहित खुद भी एक अच्छा विद्यार्थी था। शंकर, मोहित और जयदेव – इन तीनों में ही प्रतिद्वंद्विता चलती रहती थी। पहले, दूसरे और तीसरे नंबर पर इन्हीं तीनों का बारी-बारी कब्जा रहता। छठी से ले कर मोहित सरकार और जयदेव बोस एक साथ ही पढ़ते रहते थे। कई बार एक ही बेंच पर बैठ कर पढ़ाई की थी। फुटबॉल में भी दोनों का बराबरी का स्थान था। मोहित राइट इन खिलाड़ी था तो जयदेव राइट आउट। तब मोहित को जान पड़ता कि यह दोस्ती आज की नहीं, युगों की हैं। लेकिन स्कूल छोड़ने के बाद दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए। मोहित के पिता एक रईस आदमी थे, कलकत्ता के नामी वकील। स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद, मोहित का दाखिला अच्छे से कॉलेज में हो गया था और यहाँ की पढ़ाई समाप्त हो जाने के दो साल बाद ही उसकी नियुक्ति एक बड़ी कारोबारी कंपनी के अफसर के रूप में हो गयी। जयदेव किसी दूसरे शहर में किसी कॉलेज में भर्ती हो गया था। दरअसल उसके पिताजी की नौकरी बदली वाली थी। सबसे हैरानी की बात यह थी कि कॉलेज में जाने के बाद मोहित ने जयदेव की कमी को कभी महसूस नहीं किया। उसकी जगह कॉलेज के एक दूसरे दोस्त ने ले ली। बाद में यह दोस्त भी बदल गया, जब कॉलेज जीवन भी पूरा हो जाने के बाद मोहित की नौकरी वाली जिन्दगी शुरु हो गई। मोहित अपनी दफ्तरी दुनिया में चार बड़े अफसरों में से एक है और उसके सबसे अच्छे दोस्तों में उसका ही एक सहकर्मी है। स्कूल के साथियों में एक प्रज्ञान सेनगुप्त है। लेकिन स्कूल की यादों में प्रज्ञान की कोई जगह नहीं हैं। लेकिन जयदेव- जिसके साथ पिछले तीस सालों से मुलाकात तक नहीं हुई हैं… उसकी यादों ने अपनी काफी जगह बना रखी हैं। मोहित ने उन पुरानी बातों को याद करते हुए इस बात की सच्चाई को बड़ी गहराई से महसूस किया।
मोहित का दफ्तर सेंट्रल एवेन्यू में हैं। चौरंगी और सुरेन्द्र बनर्जी रोड के मोड़ पर पहुँचते ही गाड़ियों की भीड़, बसों के हॉर्न और धुएँ से मोहित सरकार की यादों की दुनिया ढह गई और वह सामने खड़ी दुनिया के सामने था। अपनी कलाई घड़ी पर नजर दौड़ाते हुए ही वह समझ गया कि वह आज तीन मिनट देर से दफ्तर पहुँच रहा है।
दफ्तर का काम निपटा कर, मोहित जब ली रोड स्थित अपने घर पहुँचा तो बालीगंज गवर्नमेंट स्कूल के बारे में उसके मन में रत्ती भर याद नहीं बची थी। यहाँ तक कि वह सुबह टेलीफोन पर हुई बातों के बारे में भी भूल चुका था। उसे इस बात की याद तब आई, जब उसका नौकर विपिन ड्राइंग रूम में आया और उसने उसके हाथों में एक पुर्जा थमाया। यह किसी लेखन पुस्तिका में से फाड़ा गया पन्ना था… मोड़ा हुआ। इस पर अँग्रेजी में लिखा था- ‘जयदेव बोस एज पर अपाइटमेंट।’
रेडियो पर बी.बी.सी. से आ रही खबरों को सुनना बंद कर मोहित ने विपिन को कहा, ‘उसे अन्दर आने को कहो।’
लेकिन उसने दूसरे ही पल यह महसूस किया कि जय इतने दिनों बाद मुझसे मिलने आ रहा है, उसके नाश्ते के लिए कुछ मँगा लेना चाहिए था। दफ्तर से लौटते हुए पार्क स्ट्रीट से वह बड़े आराम से केक या पेस्ट्री वगैरह कुछ भी ला ही सकता था, लेकिन उसे जय के आने की बात याद ही नहीं रही। पता नहीं, उसकी घरवाली ने इस बारे में कोई इंतजाम कर रखा है या नहीं।
‘पहचान रहे हो?’
इस सवाल को सुन कर और इसके बोलने वाले की ओर देख कर मोहित सरकार की मनोदशा कुछ ऐसी हो गई कि बैठक वाले कमरे की सीढ़ी पार करने के बाद भी उसने नीचे की ओर एक कदम और बढ़ा दिया था जब कि वहाँ कोई सीढ़ी नहीं थी।
कमरे की चौखट पार करने के बाद, जो सज्जन अंदर दाखिल हुए थे, उन्होंने एक ढीली-ढाली सूती पतलून पहन रखी थी। इसके ऊपर एक घटिया छापे वाली सूती कमीज। दोनों पर कभी इस्तरी की गई हो, ऐसा नहीं जान पड़ा। कमीज की कॉलर से जो सूरत झाँक रही थी, उसे देख कर मोहित अपनी याद में बसे जयदेव से उसका कोई तालमेल नहीं बिठा सका। आने वाले का चेहरा सूखा, गाल पिचके, आँखे धँसी, देह का रंग धूप में तप-तप कर काला पड़ गया था। इस चेहरे पर तीन-चार दिनों की कच्ची-पक्की मूँछे उगीं थी। माथे के ऊपर एक मस्सा और कनपटियों पर बेतरतीब ढंग से फैले ढेर सारे पके हुए बाल।
उस आदमी ने यह सवाल झूठी हँसी के साथ पूछा था- उसकी दाँतों की कतार भी मोहित को दिख पड़ी। पान खा खा कर सड़ गए ऐसे दाँतों के साथ हँसने वाले को सबसे पहले अपना मुँह हथेली से ढाँप लेना चाहिए।
‘काफी बदल गया हूँ न?’
‘बैठो।’
मोहित अब तक खड़ा था। सामने वाले सोफे पर उसके बैठ जाने के बाद मोहित भी अपनी जगह पर बैठ गया। मोहित के विद्यार्थी जीवन की तस्वीर उसके एलबम में पड़ी है। उस तस्वीर में चौदह साल के मोहित के साथ आज के मोहित को पहचान पाना बहुत मुश्किल नहीं है। तो फिर सामने बैठे जय को पहचान पाना इतना कठिन क्यों हो रहा है? सिर्फ तीस सालों में क्या चेहरे में इतना बदलाव आ जाता हैं?
‘तुम्हें पहचान पाने में कोई मुश्किल नहीं हो रही है। रास्ते पर भी देख लेता तो पहचान जाता।’ भला आदमी आते ही शुरू हो गया था, ‘दरअसल मुझ पर मुसीबतों का पहाड़-सा टूट पड़ा है। कॉलेज में ही था कि पिताजी गुजर गए। मैं पढ़ना-लिखना छोड़ कर नौकरी की तलाश में भटकता रहा और बाकी तुम्हें पता है ही। अच्छी किस्मत और सिफारिश न हो तो आज के जमाने में हम जैसे लोगों के लिए… ‘
‘चाय तो पियोगे?’
‘चाय, हाँ, लेकिन।’
मोहित ने विपिन को बुला कर चाय लाने को कहा। इसके साथ उसे यह सोच कर राहत मिली कि केक या मिठाई न भी हो तो कोई खास बात नहीं। इसके लिए बिस्कुट ही काफी होगा।
‘ओह!’ उस भले आदमी ने कहा, ‘आज दिन भर न जाने कितनी पुरानी बातें याद करता रहा। तुम्हें क्या बताऊँ…
मोहित का भी कुछ समय ऐसे ही बीता है। लेकिन उसने ऐसा कुछ कहा नहीं।
‘एल.सी.एम. और जी. सी. एम. की बातें याद हैं?’
मोहित को इस बारे में पता न था लेकिन प्रसंग आते ही उसे याद आ गया, एल. सी.एम. यानी पी.टी. मास्टर लालचांद मुखर्जी और जी. सी. एम. यानी गणित के टीचर गोपेन्द्र चंद्र मितिर।
‘स्कूल में ही पानी की टंकी के पीछे हम दोनों को जबरदस्ती आसपास खड़ा कर बॉक्स कैमरे से किसी ने हमारी तस्वीर खींची थी, याद है?’
अपने होठों के कोने पर एक मीठी मुस्कान चिपका कर मोहित ने यह जता दिया कि उसे अच्छी तरह याद है। आश्चर्य, ये सब तो सच्ची बातें हैं और अब भी अगर यह जयदेव न हो तो इतनी बातों के बारे में इसे पता कैसे चला?
‘स्कूली जीवन के वे पाँचों साल, मेरे जीवन के सबसे अच्छे साल थे।’ आने वाले ने बताया और फिर अफसोस जताया, ‘वैसे दिन अब दोबारा कभी नहीं आएँगे भाई !’
‘लेकिन तुम तो लगभग मेरी उम्र के हो।’ मोहित इस बात को कहे बिना रह नहीं पाया।
‘मैं तुमसे कोई तीन-चार महीने छोटा ही हूँ।’
‘तो फिर तुम्हारी यह हालत कैसे हुई? तुम तो गंजे हो गए?”
‘परेशानी और तनाव के सिवा और क्या वजह होगी?’ आगंतुक ने बताया, ‘हालाँकि गंजापन तो हमारे परिवार में पहले से ही रहा है। मेरे बाप और दादा दोनों गंजे हो गए थे सिर्फ पैंतीस साल की उम्र में मेरे गाल धँस गए हैं- हाड़-तोड़ मेहनत की वजह से और ढंग का खाना कहाँ नसीब होता है? और तुम लोगों की तरह मेज-कुर्सी पर बैठ कर तो हम लोग काम नहीं करते। पिछले सात साल से एक कारखाने में काम कर रहा हूँ, इसके बाद मेडिकल सेल्समैन के नाते इधर-उधर की भाग-दौड़, बीमे की दलाली, इसकी दलाली, उसकी दलाली। किसी एक काम में ठीक से जुटे रहना अपने नसीब में कहाँ! अपने ही जाल में फँसी मकड़ी की तरह इधर-उधर घूमता रहता हूँ। कहते हैं न देह धरे का दंड। देखना है यह देह भी कहाँ तक साथ देती है। तुम तो मेरी हालत देख ही रहे हो!’
विपिन चाय ले आया था। चाय के साथ संदेश और समोसा भी। गनीमत है, पत्नी ने इस बात का ख्याल रखा था। लेकिन अपने सहपाठी की इस टूटी-फूटी तस्वीर देख कर वह क्या सोच रही होगी…. इसका अंदाज उसे नहीं हो पाया।
‘तुम नहीं लोगे?’ आगंतुक ने पूछा।
मोहित ने सिर हिला कर कहा, ‘नहीं, अभी-अभी पी है।’
‘संदेश तो ले लो।’
‘नहीं तुम शुरू तो करो।’
भले आदमी ने समोसा उठा कर मुँह में रखा और इसका एक टुकड़ा चबाते चबाते बोला, ‘बेटे का इम्तिहान सिर पर है और मेरी परेशानी यह है मोहित भाई कि मैं उसके लिए फीस के रूपये कहाँ से जुटाऊँ? कुछ समझ में नहीं आता’ अब आगे कुछ कहने की जरूरत नहीं थी। मोहित समझ गया। इसके आने के पहले ही उसे समझ लेना चाहिए था कि क्या माजरा है? आर्थिक सहायता और इसके लिए प्रार्थना। आखिर यह कितनी रकम की मदद माँगेगा? अगर बीस-पच्चीस रूपये दे देने पर भी पिंड छूट सके तो वह खुशकिस्मती ही होगी और अगर यह मदद नहीं दी गई तो यह बला टल पाएगी ऐसा नहीं कहा जा सकता।
‘पता है, मेरा बेटा बड़ा होशियार है। अगर उसे अभी यह मदद नहीं मिली तो उसकी पढ़ाई बीच में ही रूक जाएगी। मैं जब-जब इस बारे में सोचता हूँ तो मेरी रातों की नींद हराम हो जाती है। ‘
प्लेट से दूसरा समोसा उड़ चुका था। मोहित ने मौका पाकर किशोर जयदेव के चेहरे से इस आगंतुक के चेहरे को मिलाकर देखा और अब उसे पूरा यकीन हो गया कि उस बालक के साथ इस अधेड़ आदमी का कहीं कोई मेल नहीं।
‘इसलिए कह रहा था कि’ चाय की चुस्की भरते आगंतुक ने आगे कहा, ‘अगर तुम सौ डेढ़ सौ रूपये अपने इस पुराने दोस्त को दे सको तो…
‘वेरी सॉरी।’
‘क्या?’
मोहित ने मन-ही-मन यह सोच रखा था कि अगर बात रूपये-पैसे पर आई तो वह एकदम ‘ना’ कर देगा। लेकिन अब जा कर उसे लगा कि इतनी रूखाई से मना करने की जरूरत नहीं थी। इसलिए अपनी गलती की मरम्मत करते हुए उसने बड़ी नरमी से कहा, ‘सॉरी भाई। अभी मेरे पास कैश रूपये नहीं हैं।
‘मैं कल आ सकता हूँ।’
‘मैं कलकत्ता के बाहर रहूँगा। तीन दिनों के बाद लौटूँगा। तुम रविवार को आ जाओ।’
‘रविवार को?’
आगंतुक थोड़ी देर तक चुप रहा। मोहित ने भी मन-ही-मन में कुछ ठान लिया था। यह वही जयदेव है, इसका कोई प्रमाण नहीं है। कलकत्ता के लोग एक-दूसरे को ठगने के ही हजार तरीके जान गए हैं। किसी के पास से तीस साल पहले के बालीगंज स्कूल की कुछ घटनाओं के बारे में जान लेना कोई मुश्किल काम नहीं था। वही सही।
‘मैं रविवार को कितने बजे आ जाऊँ?’
‘सबेरे-सबेरे ही ठीक रहेगा।’
शुक्रवार को ईद की छुट्टी है। मोहित ने पहले से ही तय कर रखा है कि यह अपनी पत्नी के साथ बारूईपुर के एक मित्र के यहाँ उनके बागान बाड़ी में जा कर सप्ताहांत मनाएगा। वहाँ दो-तीन दिन तक रूक कर रविवार की रात को ही घर लौट पाएगा। इसलिए वह भला आदमी जब रविवार की सुबह घर पर आयेगा तो मुझसे मिल नहीं पायेगा। इस बहाने की जरूरत नहीं पड़ती, अगर मोहित ने दो टूक शब्द में उससे ‘ना’ कह दिया होता। लेकिन ऐसे भी लोग होते हैं जो एकदम ऐसा नहीं कह सकते। मोहित ऐसे ही स्वभाव का आदमी है। रविवार को उससे मुलाकात न होने के बाबजूद वह कोई दूसरा तरीका ढूँढ निकाले तो मोहित उससे भी बचने की कोशिश करेगा। शायद इसके बाद किसी दूसरी परेशानी का सामना करने की नौबत नहीं आएगी।
आगंतुक ने आखिरी बार चाय की चुस्की ली और कप को नीचे रखा था कि कमरे में एक और सज्जन आ गए। ये मोहित के अंतरंग मित्र थे- वाणीकांत सेन। दो अन्य सज्जनों के भी आने की बात है, इसके बाद यहीं ताश का अड्डा जमेगा। उसने भले आगंतुक की तरफ शक की नजरों से देखा। मोहित इसे भाँप गया। आगंतुक के साथ अपने दोस्त का परिचय कराने की बात मोहित बुरी तरह टाल गया।
अच्छा तो फिर मिलेंगे, अभी चलता हूँ।’ कह कर अजनबी आगंतुक उठ खड़ा हुआ, ‘तू मुझ पर यह उपकार कर दे, मैं सचमुच तेरा ऋणी रहूँगा।’
उस भले आदमी के चले जाने के बाद वाणीकांत ने मोहित की ओर हैरानी से देखा और पूछा, ‘यह आदमी तुमसे ‘तू’ कह कर बातें कर रहा था बात क्या है?’
‘इतनी देर तक तो तुम ही कहता रहा था। बाद में तुम्हें सुनाने के लिए ही अचानक तू कह गया।’
‘कौन है यह आदमी?’
मोहित कोई जवाब दिए बिना बुक शेल्फ की ओर बढ़ गया और उस पर से एक पुराना फोटो एलबम बाहर निकाल लाया। फिर इसका एक पन्ना उलट कर वाणीकांत को सामने बढ़ा दिया।
‘यह तुम्हारे स्कूल का ग्रुप है शायद?’
‘हाँ, बोटोनिक्स में हम सब पिकनिक के लिए गए थे।’ मोहित ने बताया।
‘ये पाँचों कौन-कौन हैं?’
‘मुझे नहीं पहचान रहे?’
‘रूको, जरा देखने तो दो।’
एलबम को अपनी आँखों के थोड़ा नजदीक ले जाते ही बड़ी आसानी से वाणीकांत ने अपने मित्र को पहचान लिया।
‘अच्छा, अब मेरी बाई ओर खड़े इस लड़के को अच्छी तरह देखी।’
तस्वीर को अपनी आँखों के कुछ और नजदीक लाकर वाणीकांत ने कहा, ‘हाँ, देख लिया।’
‘अरे, यही तो है वह भला आदमी, जो अभी-अभी यहाँ से उठ कर गया।’ मोहित ने बताया।
‘स्कूल से ही तो जुआ खेलने की लत नहीं लगी है इसे?’ एलबम को तेजी से बंद कर इसे सोफे पर फेंकते हुए वाणीकांत ने फिर कहा, ‘मैंने इस आदमी को कम-से-कम तीस-बत्तीस बार रेस के मैदान में देखा है। ‘
‘तुम ठीक कह रहे हो,’ मोहित सरकार ने हामी भरी और इसके बाद आगंतुक के साथ क्या-क्या बातें हुई, इस बारे में बताया।
‘अरे, थाने में खबर कर दो।’ वाणीकांत ने उसे सलाह दी, ‘कलकत्ता अब ऐसे ही चोरों, लुटेरों और उचक्कों का डिपो हो गया है। इस तस्वीर वाले लड़के का ऐसा पक्का जुआड़ी बन जाना नामुमकिन है असंभव।’
मोहित हौले से मुस्कुराया और फिर बोला, ‘रविवार को जब मैं उसे घर पर नहीं मिलूँगा तो पता चलेगा। मुझे लगता है इसके बाद यह इस तरह की हरकतों से बाज आएगा। ‘
अपने बारूईपुर वाले मित्र के यहाँ पोखर की मच्छी, पॉल्टरी के ताजे अंडे और पेड़ों में लगे आम, अमरूद, जामुन, डाब और सीने से तकिया लगा ताश खेलकर, तन-मन की सारी थकान और जकड़न दूर कर मोहित सरकार रविवार की रात ग्यारह बजे जब अपने घर लौटा तो अपने नौकर विपिन से उसे खबर मिली कि उस दिन शाम को जो सज्जन आए थे वे आज सुबह भी घर आए थे।
‘कुछ कह कर गए हैं?’
‘जी नहीं। विपिन ने बताया।’
चलो जान बची। एक छोटी-सी जुगत से बड़ी बला टली। अब वह नहीं आएगा। पिंड छूटा।
लेकिन नहीं। आफत रात भर के लिए ही टली थी। दूसरे दिन सुबह यही कोई आठ बजे, मोहित जब अपनी बैठक में अखबार पढ़ रहा था तो विपिन ने उसके सामने एक और तहाया हुआ पुर्जा लाकर रख दिया। मोहित ने उसे खोल कर देखा। वह तीन लाइनों वाली चिट्ठी थी- ‘भाई मोहित, मेरे दाएँ पैर में मोच आ गई है, इसलिए बेटे को भेज रहा हूँ। सहायता के तौर पर जो थोड़ा-बहुत बन सके, इसके हाथ में दे देना, बड़ी कृपा होगी। निराश नहीं करोगे, इस आशा के साथ, इति।’ तुम्हारा जय
मोहित समझ गया अब कोई चारा नहीं हैं। जैसे भी हो, थोड़ा-बहुत देकर जान छुड़ानी है यह तय कर उसने नौकर को बुलाया और कहा, ‘ठीक है, छोकरे को बुलाओ।’
थोड़ी देर बाद ही, एक तेरह चौदह साल का लड़का दरवाजे से अंदर दाखिल हुआ। मोहित के पास आ कर उसने उसे प्रणाम किया और फिर कुछ कदम पीछे हट कर चुपचाप खड़ा हो गया।
मोहित उसकी तरफ कुछ देर तक बड़े गौर से देखता रहा। इसके बाद कहा, ‘बैठ जाओ।’
लड़का थोड़ी देर तक किसी उधेड़बुन में पड़ा रहा, फिर सोफे के एक किनारे अपने दोनों हाथों को गोद में रख कर बैठ गया।
‘मैं अभी आया।’
मोहित ने दूसरे तल्ले पर जा कर अपनी घरवाली के आँचल से चाबियों का गुच्छा खोला। इसके बाद अलमारी खोल कर पचास रूपये के चार नोट बाहर निकालें, इन्हें एक लिफाफे में भरा और अलमारी बंद कर नीचे बैठकखाने में वापस आया।
‘क्या नाम है तुम्हारा?’
‘जी, संजय कुमार बोस।” इसमें रूपये हैं। बड़ी सावधानी से ले जाना होगा।’
लड़के ने सिर हिला कर हामी भरी।
‘कहाँ रखोगे?’
‘इधर, ऊपर वाली जेब में।’
‘ट्राम से जाओगे या बस से?’
‘जी, पैदल।’
‘पैदल? तुम्हारा घर कहाँ है?’
‘मिर्जापुर स्ट्रीट में।’
भला इतनी दूर पैदल जाओगे?’
‘पिताजी ने पैदल ही आने को कहा है।’
‘अच्छा, तो फिर एक काम करो। तुम एक घंटा यहीं बैठो, ठीक है। नाश्ता कर लो। यहाँ ढेर सारी किताबें हैं, इन्हें देखो। मैं नौ बजे दफ्तर निकलूँगा। मुझे दफ्तर छोड़ने के बाद मेरी गाड़ी तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देगी। तुम ड्राइवर को अपना रास्ता बता सकोगे न?’ मोहित ने पूछा।
लड़के ने सिर हिला कर कहा, ‘जी हाँ।’
मोहित ने विपिन को बुलाया और इस लड़के संजय बोस के लिए चाय वगैरह लाने का आदेश दिया। फिर दफ्तर के लिए तैयार होने ऊपर अपने कमरे में चला आया।
आज वह अपने को बहुत ही हल्का महसूस कर रहा था और साथ ही बहुत ही खुश।
जय को देख कर पहचान न पाने के बावजूद, उसके बेटे संजय में उसने अपना तीस साल पुराना सहपाठी पा लिया था।
शब्द – अर्थ
हिंदी शब्द | हिंदी अर्थ (व्याख्या) | बांग्ला अर्थ | अंग्रेजी अर्थ |
सहपाठी | साथ पढ़ने वाला छात्र या विद्यार्थी | সহপাঠী (Sohopathi) | Classmate, Schoolmate |
फंदा | वह गोलाकार या कुंडलित वस्तु जो किसी चीज को कसकर पकड़ने या बाँधने के लिए प्रयोग की जाती है; बंधन | ফাঁসি, ফাঁস (Fansi, Fans) | Noose, Snare, Loop |
त्यौरियाँ चढ़ गईं | क्रोध या झुंझलाहट के कारण माथे पर बल पड़ना | ভ্রূকুটি করা (Bhrukuti kora) | Frowning, Knitting brows (due to anger or annoyance) |
होशियार | चतुर, बुद्धिमान, चालाक | চালাক, বুদ্ধিমান (Chalok, Buddhiman) | Intelligent, Smart, Clever |
अव्वल | प्रथम, सर्वश्रेष्ठ | প্রথম, সেরা (Prothom, Shera) | First, Top, Excellent |
कैसीबियाँका की आवृत्ति | एक कविता का नाम (केसीबियांका), जिसमें आवृत्ति का अर्थ है पाठ या गायन प्रतियोगिता। यह शब्द विशेष रूप से किसी पाठ या बोलने की प्रतियोगिता को संदर्भित करता है। | কেসিবিয়াঙ্কা আবৃত্তি (Kesibiyanka Abritti) | Recitation of “Casabianca” (a poem) |
खोज-खबर | जानकारी, समाचार, पूछताछ | খোঁজ-খবর (Khoj-Khabar) | Enquiries, Information, News |
लगाव | स्नेह, जुड़ाव, प्रेम | টান, আকর্ষণ (Tan, Akorshon) | Affection, Attachment, Fondness |
रईस | धनी, अमीर व्यक्ति | ধনী, সম্পন্ন (Dhoni, Somponno) | Rich, Wealthy |
नियुक्ति | किसी पद पर चयन या कार्य पर लगाना | নিয়োগ (Niyog) | Appointment, Posting |
प्रतिद्वंद्विता | होड़, मुकाबला, स्पर्धा | প্রতিদ্বন্দ্বিতা, প্রতিযোগিতা (Protidondita, Protijogita) | Rivalry, Competition |
रत्ती भर | थोड़ा भी नहीं, जरा सा भी नहीं | এতটুকুও না, বিন্দু মাত্র (Etotuku o na, Bindu matro) | Not even a bit, Not at all, Very little |
पुर्जा | छोटा कागज का टुकड़ा, चिट्ठी | টুকরো কাগজ, চিরকুট (Tukro kagoj, Chirkut) | Slip of paper, Note |
मनोदशा | मन की अवस्था, मानसिक स्थिति | মানসিক অবস্থা, মনের ভাব (Manosik obostha, Moner bhab) | State of mind, Mood |
चौखट | दरवाजे या खिड़की का फ्रेम | চৌকাঠ (Choukat) | Door frame, Threshold |
घटिया | निम्न कोटि का, खराब गुणवत्ता वाला | নিম্নমানের, খারাপ (Nimmomaner, Kharap) | Inferior, Shoddy, Low quality |
इस्तरी | कपड़ों पर प्रेस करना | ইস্ত্রি (Istri) | Ironing (clothes) |
कच्ची-पक्की मूँछें | अधूरी या अविकसित मूँछें, जो पूरी तरह से न बढ़ी हों | কাঁচা-পাকা গোঁফ (Kancho-paka gonf) | Sparse or patchy moustache |
मस्सा | त्वचा पर उभरा हुआ छोटा दाना, wart | আঁচিল (Anchil) | Mole, Wart |
कनपटियों पर | कान के पास सिर के किनारे का भाग | কানের কাছে মাথার পাশ (Kaner kache mathar pash) | On the temples (sides of the head near the ears) |
हथेली | हाथ का भीतरी भाग | হাতের তালু (Hater talu) | Palm of the hand |
मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ना | बहुत अधिक परेशानियाँ या विपत्तियाँ आना | বিপদের পাহাড় ভেঙে পড়া (Bipoder pahar bhenge pora) | A mountain of troubles falling, Facing immense difficulties |
गुजर गए | मृत्यु हो गई, देहांत हो गया | মারা গেছেন (Mara gesen) | Passed away, Died |
सिफारिश | किसी के पक्ष में कुछ कहने या करने का अनुरोध | সুপারিশ (Suparish) | Recommendation, Reference |
प्रसंग | विषय, संदर्भ, मौका | প্রসঙ্গ (Prosongo) | Context, Occasion, Subject |
अविकसित | ठीक से विकसित न होना, अपूर्ण | অপরিপুষ্ট, অপূর্ণ (Oporipusto, Oporno) | Underdeveloped, Immature |
हाड़-तोड़ मेहनत | बहुत कठिन परिश्रम, कमरतोड़ मेहनत | হাড়ভাঙা খাটুনি (Harbhanga khatuni) | Backbreaking labor, Strenuous work |
दलाली | कमीशन लेकर कोई सौदा कराना | দালালি (Dalali) | Brokerage, Commission agent’s work |
नसीब | भाग्य, किस्मत | ভাগ্য, কপাল (Bhaggo, Kopal) | Fate, Destiny |
देह धरे का दंड | जीवित होने का कष्ट, शरीर धारण करने का परिणाम | দেহ ধারণের শাস্তি (Deho dharoner shasti) | Punishment of embodying (being in a body), Hardship of life |
गनीमत है | अच्छा हुआ, शुक्र है | ভাগ্যিস, ভালই হল (Bhaggis, Bhalo i holo) | Thankfully, It’s good that |
टूटी-फूटी तस्वीर | बुरी हालत, बिगड़ी हुई दशा | ভাঙাচোরা ছবি (Bhangachora chobi) | Broken/shattered image, Poor state |
अंदाज | अनुमान, अंदाजा | অনুমান, আন্দাজ (Onuman, Ondaj) | Guess, Estimate |
पिंड छूट सके | पीछा छूटना, मुक्ति मिलना | মুক্তি পাওয়া, রেহাই পাওয়া (Mukti paoa, Rehai paoa) | To get rid of, To be freed from |
बला टल पाएगी | मुसीबत दूर होगी | বিপদ কেটে যাবে (Bipod kete jabe) | Trouble will be averted |
हराम हो जाती है | बहुत मुश्किल हो जाती है, नींद न आना | হারাম হয়ে যায়, কষ্টকর হয়ে ওঠে (Haram hoye jay, Kostokor hoye othe) | Becomes impossible/difficult, Lose (sleep) |
मेल | समानता, सामंजस्य | মিল, সাদৃশ্য (Mil, Sadrisyo) | Match, Similarity, Harmony |
रूखाई से | कठोरता से, बेरुखी से | রূঢ় ভাবে, কাঠিন্য সহকারে (Rurho bhābe, Kathinnyo sohokare) | Roughly, Harshly |
मरम्मत करते हुए | सुधार करते हुए, ठीक करते हुए | মেরামত করতে করতে (Meramot korte korte) | Repairing, Correcting |
नरमी से | विनम्रता से, कोमलता से | নরম ভাবে, বিনয়ের সাথে (Norom bhābe, Binoyer sathe) | Softly, Gently |
ठान लिया था | निश्चय कर लिया था, तय कर लिया था | মনস্থির করে নিয়েছিল (Monosthir kore niyecchilo) | Had decided, Resolved |
ठगने के | धोखा देने के | ঠকানোর (Thokanor) | Cheating, Deceiving |
जुगत | उपाय, तरकीब | ফন্দি, কৌশল (Fondi, Koushol) | Trick, Device, Strategy |
टली | दूर हो गई, हट गई | সরে গেল, কাটল (Sore gelo, Katlo) | Averted, Moved away |
आफत | मुसीबत, विपत्ति | বিপদ, সমস্যা (Bipod, Somossa) | Calamity, Trouble |
उचक्का | जेबकतरा, छोटा-मोटा चोर | পকেটমার, ছিনতাইকারী (Poketmar, Chintai kari) | Pickpocket, Petty thief |
हामी भरी | सहमति दी, हाँ कहा | সম্মতি জানাল (Sommoti janalo) | Agreed, Assented |
भाँप गया | समझ गया, पहचान गया | বুঝতে পারল, আঁচ করতে পারল (Bujhte parlo, Anch korte parlo) | Understood, Guessed |
अंतरंग मित्र | घनिष्ठ मित्र, बहुत करीबी दोस्त | অন্তরঙ্গ বন্ধু (Ontorongo Bondhu) | Intimate friend, Close friend |
जुआ खेलने की लत | जुआ खेलने की बुरी आदत | জুয়া খেলার নেশা (Jua khelar nesha) | Gambling addiction |
बाज आना | छोड़ देना, रुक जाना | বিরত থাকা, ছেড়ে দেওয়া (Birato thaka, Chere deoa) | To desist, To refrain from |
पोखर | छोटा तालाब, सरोवर | পুকুর (Pukur) | Pond |
ढाब | कच्चा नारियल जिसमें पानी अधिक होता है | ডাব (Dab) | Green coconut |
जान बची | खतरा टला, राहत मिली | প্রাণ বাঁচল (Pran banchlo) | Saved life, Escaped danger |
जुगत | तरकीब, तरीका | ফন্দি, কৌশল (Fondi, Koushol) | Trick, Scheme |
पिंड छूटा | छुटकारा मिला, पीछा छूटा | রেহাই পাওয়া গেল, মুক্তি মিলল (Rehai paoa gelo, Mukti millo) | Got rid of, Escaped |
मोच आ गई है | नस खिंच गई है, चोट लग गई है | মচকে গেছে (Mochke geche) | Sprained |
सहायता के तौर पर | मदद के रूप में | সাহায্য হিসাবে (Sahajjo hisabe) | As a form of help |
बन सके | जितना संभव हो सके | সম্ভব হয় (Somobho hoy) | As much as possible |
कृपा होगी | मेहरबानी होगी | দয়া হবে (Doya hobe) | Will be a kindness |
निराश नहीं करोगे | मना नहीं करोगे, उम्मीद नहीं तोड़ोगे | নিরাশ করবে না (Nirash korbe na) | Will not disappoint |
इति | समाप्त, इतिश्री | ইতি (Iti) | End |
चारा नहीं | कोई उपाय नहीं, कोई रास्ता नहीं | আর কোনো উপায় নেই (Ar kono upay nei) | No other option |
जान छुड़ानी है | पीछा छुड़ाना है, मुक्ति पानी है | রেহাই পেতে হবে (Rehai pete hobe) | Have to get rid of, Have to escape |
उधेड़बुन | दुविधा, असमंजस | দ্বিধা, সংশয় (Dwidha, Somsay) | Dilemma, Hesitation |
चाबियों का गुच्छा | चाबियों का समूह | চাবির গোছা (Chabir gocha) | Bunch of keys |
हल्का महसूस कर रहा था | आरामदायक महसूस कर रहा था, तनाव मुक्त | হালকা অনুভব করছিল (Halka onubhob korchilo) | Feeling light, Relieved |
कहानी ‘सहपाठी’ का विस्तृत सारांश:
कहानी ‘सहपाठी’ एक पुराने स्कूल मित्र जयदेव बोस और मोहित सरकार के बीच की मुलाकात और उनके अतीत की यादों के इर्द-गिर्द घूमती है। यह कहानी न केवल दोस्ती और समय के बदलाव को दर्शाती है, बल्कि मानवीय संवेदनाओं, संदेह और उदारता को भी उजागर करती है।
कहानी का सार –
मोहित सरकार, एक सफल और बड़ा अफसर, अपनी दिनचर्या के अनुसार सुबह सवा नौ बजे दफ्तर जाने की तैयारी कर रहे हैं। तभी उनकी पत्नी अरुणा बताती हैं कि उनके पुराने स्कूल मित्र जयदेव बोस का फोन आया है। मोहित को आश्चर्य होता है, क्योंकि तीस साल पहले स्कूल छोड़ने के बाद उन्होंने जयदेव से कोई संपर्क नहीं रखा था। जयदेव स्कूल में एक होनहार, सुंदर और खेल-कूद में अव्वल छात्र था, जिसकी यादें मोहित के मन में अब भी ताज़ा हैं। हालाँकि, इतने वर्षों बाद वह जयदेव के प्रति कोई खास लगाव महसूस नहीं करते।
जयदेव फोन पर मोहित से मिलने की इच्छा जताता है और जल्दी मुलाकात की बात करता है। मोहित उसे उसी दिन शाम सात बजे अपने घर आने को कहते हैं। दफ्तर जाते समय मोहित स्कूल के दिनों को याद करते हैं, जब वह, जयदेव और शंकर के बीच पढ़ाई और खेल में प्रतिस्पर्धा होती थी। मोहित और जयदेव की दोस्ती गहरी थी, लेकिन स्कूल के बाद उनके रास्ते अलग हो गए। मोहित एक अच्छे कॉलेज में पढ़े और एक बड़ी कंपनी में अफसर बन गए, जबकि जयदेव किसी अन्य शहर में चले गए थे।
जयदेव की मुलाकात –
शाम को जब जयदेव मोहित के घर आता है, मोहित उसे देखकर चौंक जाते हैं। जयदेव की हालत दयनीय है—सूखा चेहरा, धंसी आँखें, काला पड़ गया रंग और पुराने, मैले कपड़े। मोहित को उसका चेहरा अपने पुराने दोस्त से मिलाने में कठिनाई होती है। जयदेव अपनी मुश्किलों का ज़िक्र करता है—पिता की मृत्यु, पढ़ाई छूटना, नौकरी की तलाश और अब कारखाने व बीमा दलाली जैसे कामों में भटकना। वह बताता है कि उसका बेटा पढ़ाई में होशियार है, लेकिन फीस के लिए पैसे की जरूरत है। वह मोहित से 100-150 रुपये की आर्थिक मदद माँगता है।
मोहित को संदेह होता है कि यह व्यक्ति वास्तव में जयदेव है या कोई ठग। वह सीधे मना करने के बजाय बहाना बनाता है कि उसके पास अभी नकद नहीं है और रविवार को आने को कहता है, यह जानते हुए कि वह उस दिन शहर से बाहर होगा। जयदेव चला जाता है और मोहित अपने दोस्त वाणीकांत को पुराना स्कूल फोटो दिखाता है, जिसमें जयदेव को पहचानने की कोशिश करता है। वाणीकांत बताता है कि उसने जयदेव जैसे दिखने वाले व्यक्ति को रेसकोर्स में जुआ खेलते देखा है, जिससे मोहित का संदेह और बढ़ जाता है।
संजय की मुलाकात –
रविवार को मोहित बारूईपुर में अपने दोस्त के बागान में समय बिताकर रात को लौटता है। उसे पता चलता है कि जयदेव सुबह आया था, लेकिन वह नहीं मिला। अगले दिन सुबह, जयदेव का बेटा संजय मोहित के घर आता है, क्योंकि जयदेव को पैर में मोच आ गई है। संजय एक शांत, शालीन और 13-14 साल का लड़का है। मोहित उसे देखकर प्रभावित होता है और उसमें अपने पुराने दोस्त जयदेव की झलक पाता है। वह संजय को 200 रुपये देता है और उसे नाश्ता करवाने के बाद अपनी गाड़ी से घर छोड़ने की व्यवस्था करता है।
कहानी का अंत –
संजय को देखकर मोहित का मन हल्का हो जाता है। भले ही वह जयदेव को पूरी तरह पहचान न पाया हो, संजय में उसे अपने पुराने सहपाठी की छवि दिखती है। वह खुशी और संतुष्टि महसूस करता है कि उसने एक जरूरतमंद की मदद की, चाहे वह उसका पुराना दोस्त हो या न हो।
कहानी ‘सहपाठी’ का मार्मिक पक्ष
कहानी ‘सहपाठी’ का मार्मिक पक्ष मानवीय संवेदनाओं, पुरानी यादों, समय के बदलाव और सामाजिक वास्तविकताओं के बीच गहरे भावनात्मक तारों को छूता है। यहाँ कहानी के मार्मिक पक्ष को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
- पुरानी दोस्ती और समय का प्रभाव-
कहानी में मोहित और जयदेव की स्कूल के दिनों की गहरी दोस्ती का चित्रण मार्मिक है। स्कूल में दोनों के बीच पढ़ाई, खेल और साझा अनुभवों की मधुर यादें हैं, जो मोहित के मन में ताज़ा हैं। लेकिन तीस साल बाद जयदेव की बदहाल स्थिति और मोहित की उदासीनता यह दर्शाती है कि समय और परिस्थितियाँ दोस्ती को कितना बदल सकती हैं। यह विडंबना पाठक के मन में एक गहरी उदासी पैदा करती है। - जयदेव की दयनीय स्थिति-
जयदेव का बदला हुआ रूप—सूखा चेहरा, धंसी आँखें, पुराने कपड़े और आर्थिक तंगी—एक होनहार, सुंदर और प्रतिभाशाली युवक के पतन की मार्मिक कहानी कहता है। उसकी परेशानियों, जैसे पिता की मृत्यु, पढ़ाई छूटना और मेहनत भरी जिंदगी, का वर्णन पाठक के मन में करुणा जगाता है। यह दर्शाता है कि जीवन की कठिनाइयाँ किसी को भी तोड़ सकती हैं। - मोहित का संदेह और अंतर्द्वंद्व-
मोहित का जयदेव के प्रति संदेह, कि वह वास्तव में उसका पुराना दोस्त है या कोई ठग, मानवीय स्वभाव का एक मार्मिक पहलू है। वह मदद करना चाहता है, लेकिन ठगी के डर और पुरानी दोस्ती के प्रति उदासीनता के बीच फंस जाता है। यह अंतर्द्वंद्व पाठक को मानवीय कमजोरियों और विश्वास की कमी के बारे में सोचने पर मजबूर करता है। - संजय में जयदेव की झलक-
कहानी का सबसे मार्मिक क्षण तब आता है जब मोहित, संजय में अपने पुराने दोस्त जयदेव की छवि देखता है। संजय की शालीनता, सादगी और उसका अपने पिता के लिए चिंता करना मोहित के दिल को छू जाता है। यह दर्शाता है कि भले ही जयदेव की हालत खराब हो, उसकी नई पीढ़ी में वही पुरानी चमक और आशा बरकरार है, जो मोहित को भावुक और संतुष्ट करता है। - उदारता और करुणा का भाव:
मोहित का अंत में संजय को 200 रुपये देना और उसे गाड़ी से घर छोड़ने की व्यवस्था करना उसकी करुणा और उदारता को दर्शाता है। यह क्षण मार्मिक है, क्योंकि यह दिखाता है कि संदेह और उदासीनता के बावजूद, मोहित का मानवीय पक्ष जीत जाता है। यह पाठक के लिए एक आशावादी संदेश छोड़ता है कि अच्छाई और मदद का भाव हमेशा जीवित रहता है। - सामाजिक वास्तविकता और ठगी का डर –
कहानी में कलकत्ता की सामाजिक पृष्ठभूमि, जहाँ ठगी और धोखाधड़ी आम है, एक मार्मिक यथार्थ प्रस्तुत करती है। मोहित का जयदेव पर शक करना और वाणीकांत का उसे जुआरी बताना उस सामाजिक अविश्वास को दर्शाता है, जो आधुनिक समाज में रिश्तों को प्रभावित करता है। यह पाठक को उस कटु सत्य से रूबरू कराता है कि आर्थिक तंगी और सामाजिक परिस्थितियाँ रिश्तों को कितना जटिल बना सकती हैं। - खोए हुए बचपन की उदासी –
स्कूल के दिनों की यादें, जैसे पानी की टंकी के पीछे खींची गई तस्वीर, एल.सी.एम. और जी.सी.एम. जैसे शिक्षकों के नाम और हेडमास्टर की गंभीरता, बचपन की मासूमियत और खुशियों को जीवंत करती हैं। लेकिन जयदेव का यह कहना कि “वैसे दिन अब दोबारा कभी नहीं आएँगे” एक गहरी उदासी पैदा करता है, जो हर उस व्यक्ति को छूता है जो अपने बचपन को याद करता है।
निष्कर्ष –
‘सहपाठी’ का मार्मिक पक्ष इस बात में निहित है कि यह पुरानी दोस्ती, समय के साथ आए बदलाव, मानवीय कमजोरियों और करुणा के बीच एक संतुलन बनाता है। जयदेव की बदहाल जिंदगी और संजय में दिखने वाली आशा का मिश्रण पाठक के मन में एक साथ उदासी और आशा पैदा करता है। यह कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि जीवन की कठिनाइयों के बावजूद, मानवता और पुरानी यादें हमें जोड़ने और प्रेरित करने की ताकत रखती हैं।
पाठ ‘सहपाठी’ से जुड़े बहुविकल्पीय प्रश्न
1. मोहित किस समय दफ्तर जाता है?
A. 9 बजे
B. 9:15 बजे
C. 9:30 बजे
D. 9:45 बजे
उत्तर – C. 9:30 बजे
2. मोहित को जयदेव की याद किस बात से आई?
A. एक पुरानी तस्वीर देखकर
B. टेलीफोन आने पर
C. चाय पीते समय
D. ऑफिस जाते समय
उत्तर – B. टेलीफोन आने पर
3. जयदेव और मोहित स्कूल में क्या थे?
A. प्रतिद्वंदी
B. सहपाठी और मित्र
C. शिक्षक-विद्यार्थी
D. पड़ोसी
उत्तर – B. सहपाठी और मित्र
4. मोहित का ऑफिस कहाँ स्थित है?
A. बालीगंज
B. सेंट्रल एवेन्यू
C. पार्क स्ट्रीट
D. सुरेन्द्र रोड
उत्तर – B. सेंट्रल एवेन्यू
5. जयदेव स्कूल में किस खेल में अव्वल था?
A. क्रिकेट
B. हॉकी
C. हाई जंप
D. लॉन्ग जंप
उत्तर – C. हाई जंप
6. मोहित को जयदेव की कौन-सी बात सबसे पहले याद आई?
A. उसका गुस्सा
B. खेल-कूद में उसकी प्रतिभा
C. उसकी गरीबी
D. उसकी तस्वीर
उत्तर – B. खेल-कूद में उसकी प्रतिभा
7. मोहित ने जयदेव को अपने घर किस समय बुलाया था?
A. सुबह 10 बजे
B. दोपहर 3 बजे
C. शाम 7 बजे
D. रात 9 बजे
उत्तर – C. शाम 7 बजे
8. मोहित की पत्नी का क्या नाम है?
A. अरुणा
B. संजना
C. कविता
D. मीना
उत्तर – A. अरुणा
9. मोहित का स्कूल का नाम क्या था?
A. सिटी स्कूल
B. बालीगंज गवर्नमेंट स्कूल
C. कलकत्ता पब्लिक स्कूल
D. चौरंगी स्कूल
उत्तर – B. बालीगंज गवर्नमेंट स्कूल
10. मोहित किस खिलाड़ी के रूप में खेलता था?
A. राइट आउट
B. गोलकीपर
C. राइट इन
D. सेंटर
उत्तर – C. राइट इन
11. जयदेव का बेटा कौन था?
A. विपिन
B. संजय कुमार बोस
C. वाणीकांत
D. शंकर
उत्तर – B. संजय कुमार बोस
12. जयदेव ने मोहित से क्या माँगा?
A. नौकरी
B. कपड़े
C. आर्थिक सहायता
D. घर में रहने की अनुमति
उत्तर – C. आर्थिक सहायता
13. जयदेव की सूरत को देखकर मोहित को जयदेव ________ .
A. को पहचान लिया
B. पर शक हुआ
C. खुश हुआ
D. डर गया
उत्तर – B. पर शक हुआ
14. मोहित ने जयदेव को कितने रूपये देने का निर्णय लिया?
A. 25 रूपये
B. 100 रूपये
C. 50 रूपये
D. 50×4 = 200 रूपये
उत्तर – D. 50×4 = 200 रूपये
15. मोहित ने बेटे को घर छोड़ने की जिम्मेदारी किसे दी?
A. पत्नी को
B. खुद को
C. ड्राइवर को
D. संजय को अकेले भेजा
उत्तर – C. ड्राइवर को
16. जयदेव का निवास कहाँ बताया गया है?
A. पार्क स्ट्रीट
B. मिर्जापुर स्ट्रीट
C. कोलकाता रेलवे कॉलोनी
D. एल्गिन रोड
उत्तर – B. मिर्जापुर स्ट्रीट
17. मोहित के सबसे अच्छे वर्तमान मित्र कौन हैं?
A. शंकर
B. जयदेव
C. वाणीकांत सेन
D. संजय
उत्तर – C. वाणीकांत सेन
18. वाणीकांत ने जयदेव को कहाँ देखा था?
A. कॉलेज में
B. रेलवे स्टेशन पर
C. ताश क्लब में
D. रेस के मैदान में
उत्तर – D. रेस के मैदान में
19. जयदेव को मोहित की पत्नी ने क्या नाश्ता दिया?
A. मिठाई और समोसा
B. सिर्फ चाय
C. बिस्कुट
D. ब्रेड
उत्तर – A. मिठाई और समोसा
20. मोहित ने आखिर में कैसा महसूस किया?
A. दुखी
B. गुस्से में
C. हल्का और प्रसन्न
D. भ्रमित
उत्तर – C. हल्का और प्रसन्न
पाठ ‘सहपाठी’ से जुड़े अतिलघूत्तरीय प्रश्न – उत्तर
- प्रश्न – मोहित सरकार सुबह किस समय दफ्तर जाने की तैयारी कर रहे थे?
उत्तर – मोहित सरकार सुबह सवा नौ बजे दफ्तर जाने की तैयारी कर रहे थे। - प्रश्न – मोहित की पत्नी का नाम क्या था?
उत्तर – मोहित की पत्नी का नाम अरुणा था। - प्रश्न – फोन पर मोहित से बात करने वाला व्यक्ति कौन था?
उत्तर – फोन पर मोहित से बात करने वाला व्यक्ति जयदेव बोस था। - प्रश्न – जयदेव ने मोहित को अपने परिचय में क्या बताया?
उत्तर – जयदेव ने बताया कि वह मोहित का बालीगंज स्कूल का सहपाठी है। - प्रश्न – मोहित ने स्कूल कब छोड़ा था?
उत्तर – मोहित ने लगभग तीस साल पहले स्कूल छोड़ा था। - प्रश्न – मोहित को जयदेव के स्कूल के समय की कौन-सी खासियत याद थी?
उत्तर – मोहित को जयदेव का गोरा-सुंदर चेहरा, पढ़ाई और खेल-कूद में अव्वल होना और हाई जंप में जीत याद थी। - प्रश्न – जयदेव ने स्कूल में कैसेबियाँका की आवृत्ति में क्या हासिल किया था?
उत्तर – जयदेव ने कैसेबियाँका की आवृत्ति में पदक जीता था। - प्रश्न – मोहित और जयदेव के बीच स्कूल में किस तरह की प्रतिस्पर्धा थी?
उत्तर – मोहित और जयदेव के बीच पढ़ाई और फुटबॉल में प्रतिस्पर्धा थी। - प्रश्न – मोहित का दफ्तर कहाँ स्थित था?
उत्तर – मोहित का दफ्तर सेंट्रल एवेन्यू में स्थित था। - प्रश्न – जयदेव ने मोहित से मिलने के लिए कौन-सा समय तय किया?
उत्तर – जयदेव ने मोहित से मिलने के लिए शाम सात बजे का समय तय किया। - प्रश्न – मोहित की कार का रंग क्या था?
उत्तर – मोहित की कार का रंग आसमानी था। - प्रश्न – स्कूल में मोहित और जयदेव के अलावा तीसरा प्रतिस्पर्धी कौन था?
उत्तर – स्कूल में मोहित और जयदेव के अलावा तीसरा प्रतिस्पर्धी शंकर था। - प्रश्न – मोहित के पिता का पेशा क्या था?
उत्तर – मोहित के पिता कलकत्ता के नामी वकील थे। - प्रश्न – जयदेव के पिता की नौकरी कैसी थी?
उत्तर – जयदेव के पिता की नौकरी बदली वाली थी। - प्रश्न – मोहित ने कॉलेज के बाद किस तरह की नौकरी पाई?
उत्तर – मोहित को एक बड़ी कारोबारी कंपनी में अफसर की नौकरी मिली। - प्रश्न – जयदेव के आने पर मोहित ने क्या भूल की थी?
उत्तर – मोहित भूल गए थे कि जयदेव के लिए कुछ नाश्ते का इंतजाम करना चाहिए था। - प्रश्न – जयदेव ने मुलाकात के समय क्या कपड़े पहने थे?
उत्तर – जयदेव ने ढीली-ढाली सूती पतलून और घटिया छापे वाली सूती कमीज पहनी थी। - प्रश्न – जयदेव की शारीरिक स्थिति कैसी थी?
उत्तर – जयदेव का चेहरा सूखा, गाल पिचके, आँखें धंसी और रंग काला पड़ गया था। - प्रश्न – जयदेव ने अपनी परेशानियों का क्या कारण बताया?
उत्तर – जयदेव ने बताया कि पिता की मृत्यु, पढ़ाई छूटने और मेहनत भरी जिंदगी ने उसे परेशान किया। - प्रश्न – जयदेव ने मोहित से कितनी राशि की मदद मांगी?
उत्तर – जयदेव ने मोहित से 100-150 रुपये की मदद मांगी। - प्रश्न – मोहित ने जयदेव की मदद के लिए क्या बहाना बनाया?
उत्तर – मोहित ने कहा कि उसके पास अभी नकद रुपये नहीं हैं और रविवार को आने को कहा। - प्रश्न – मोहित ने रविवार को कहाँ जाने की योजना बनाई थी?
उत्तर – मोहित ने रविवार को बारूईपुर में अपने£ अपने मित्र के बागान में जाने की योजना बनाई थी। - प्रश्न – मोहित का अंतरंग मित्र कौन था?
उत्तर – मोहित का अंतरंग मित्र वाणीकांत सेन था। - प्रश्न – वाणीकांत ने जयदेव के बारे में क्या बताया?
उत्तर – वाणीकांत ने कहा कि उसने जयदेव जैसे दिखने वाले व्यक्ति को रेसकोर्स में जुआ खेलते देखा था। - प्रश्न – जयदेव के बेटे का नाम क्या था?
उत्तर – जयदेव के बेटे का नाम संजय कुमार बोस था। - प्रश्न – संजय की उम्र कितनी थी?
उत्तर – संजय की उम्र 13-14 साल थी। - प्रश्न – जयदेव ने संजय को क्यों भेजा था?
उत्तर – जयदेव ने पैर में मोच आने के कारण संजय को भेजा था। - प्रश्न – मोहित ने संजय को कितने रुपये दिए?
उत्तर – मोहित ने संजय को 200 रुपये दिए। - प्रश्न – मोहित ने संजय को घर कैसे भेजने की व्यवस्था की?
उत्तर – मोहित ने अपनी गाड़ी से संजय को घर छोड़ने की व्यवस्था की। - प्रश्न – संजय को देखकर मोहित को कैसा लगा?
उत्तर – संजय को देखकर मोहित को अपने पुराने सहपाठी जयदेव की झलक दिखी और वह बहुत खुश और हल्का महसूस करने लगा।
पाठ ‘सहपाठी’ से जुड़े लघूत्तरीय प्रश्न – उत्तर
- प्रश्न – मोहित को जयदेव की बातों पर विश्वास क्यों नहीं हुआ?
उत्तर – मोहित को विश्वास नहीं हुआ क्योंकि सामने वाला व्यक्ति बिल्कुल बदला हुआ था। उसकी स्थिति, पहनावा और चेहरे की बदहाली देखकर मोहित को लगा कि वह असली जयदेव नहीं हो सकता। - प्रश्न – मोहित ने जयदेव को सीधे पैसे देने से इनकार क्यों किया?
उत्तर – मोहित को शक था कि जयदेव उसे धोखा दे रहा है। इसलिए उसने तुरंत पैसे देने से इनकार किया और यह बहाना बनाया कि उसके पास उस समय नकद पैसे नहीं हैं। - प्रश्न – वाणीकांत ने जयदेव के बारे में क्या जानकारी दी?
उत्तर – वाणीकांत ने बताया कि उसने जयदेव को कई बार रेस के मैदान में जुआ खेलते देखा है। इससे मोहित को यकीन हो गया कि सामने वाला व्यक्ति झूठ बोल रहा है। - प्रश्न – मोहित ने रविवार को जयदेव से मिलने से क्यों बचने की योजना बनाई?
उत्तर – मोहित को लगा कि जयदेव धोखेबाज़ है, इसलिए उसने बारुईपुर जाकर सप्ताहांत बिताने की योजना बनाई ताकि रविवार को जयदेव से न मिलना पड़े। - प्रश्न – मोहित को पुराने स्कूल की कौन-कौन सी यादें ताज़ा हुईं?
उत्तर – मोहित को अपने पुराने शिक्षक, दोस्तों, खेल प्रतियोगिताएँ और स्कूल के पिकनिक की यादें ताज़ा हुईं। वह जयदेव के साथ बिताए पलों को याद करते हुए भावुक भी हुआ। - प्रश्न – मोहित ने संजय को गाड़ी से क्यों भेजने का निर्णय लिया?
उत्तर – मोहित ने संजय की मासूमियत और शिष्टाचार देखकर उससे सहानुभूति महसूस की। उसने उसे पैदल भेजने के बजाय गाड़ी से भेजना बेहतर समझा ताकि वह आराम से घर पहुँच सके। - प्रश्न – मोहित को जयदेव के बदले रूप में सबसे ज़्यादा क्या अजीब लगा?
उत्तर – मोहित को जयदेव की बदली हुई शक्ल-सूरत, अस्त-व्यस्त पहनावा, गंजापन और पीले दाँत देखकर हैरानी हुई। उसे यकीन ही नहीं हुआ कि यह उसका पुराना दोस्त हो सकता है। - प्रश्न – जयदेव ने मोहित को अपनी कठिनाइयों के बारे में क्या बताया?
उत्तर – जयदेव ने बताया कि उसके पिता की मृत्यु के बाद पढ़ाई छूट गई। उसे कई छोटे-मोटे काम करने पड़े और अब बेटे की फीस भरने के लिए भी पैसे नहीं हैं। - प्रश्न – मोहित ने जयदेव के बेटे में क्या विशेष बात महसूस की?
उत्तर – संजय की सरलता, शालीनता और ईमानदारी ने मोहित को प्रभावित किया। उसने संजय में अपने पुराने सहपाठी की सच्ची झलक देखी और उससे आत्मीयता महसूस की। - प्रश्न – कहानी “सहपाठी” का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर – यह कहानी हमें पुराने संबंधों की भावुकता, पहचान की जटिलता और इंसानी स्वभाव की सहजता व शक की प्रवृत्ति के बीच संतुलन बिठाने का संदेश देती है।
पाठ ‘सहपाठी’ से जुड़े दीर्घ उत्तरीय प्रश्न – उत्तर
- प्रश्न – मोहित सरकार की सुबह की दिनचर्या क्या थी और फोन आने पर उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर – मोहित सरकार ठीक 9:30 बजे दफ्तर जाते थे। सुबह 9:15 बजे जब वे टाई पहन रहे थे, तभी फोन आया। दफ्तर निकलने से पहले फोन सुनकर उन्हें स्वभावतः गुस्सा आया, क्योंकि यह उनकी दिनचर्या में बाधा डाल रहा था।
- प्रश्न – मोहित को जयदेव के बारे में क्या-क्या यादें थीं?
उत्तर – मोहित को याद था कि जयदेव गोरा, सुंदर, पढ़ने-लिखने और खेल-कूद में होशियार था, हाई जंप में अव्वल आता था और ताश के खेल भी दिखाता था। उसने ‘केसीबियांका की आवृत्ति’ में पदक भी जीता था।
- प्रश्न – स्कूल के बाद मोहित और जयदेव के रास्ते क्यों अलग हो गए?
उत्तर – मोहित के पिता धनी वकील थे और मोहित ने अच्छी पढ़ाई के बाद एक बड़ी कंपनी में अफसर की नौकरी पाई। जयदेव के पिता की नौकरी बदली वाली थी, इसलिए जयदेव किसी दूसरे शहर में कॉलेज चला गया और उनके रास्ते अलग हो गए।
- प्रश्न – मोहित ने जयदेव की आर्थिक मदद मांगने पर सीधे मना क्यों नहीं किया?
उत्तर – मोहित स्वभाव से ऐसे व्यक्ति थे जो सीधे ‘ना’ नहीं कह पाते। उन्होंने रूखाई से मना करने के बजाय यह बहाना बनाया कि उनके पास अभी कैश नहीं है और उसे कुछ दिनों बाद रविवार को आने को कहा, ताकि वह उससे बच सकें।
- प्रश्न – वाणीकांत सेन ने जयदेव को देखकर मोहित को क्या सलाह दी और क्यों?
उत्तर – वाणीकांत सेन ने मोहित को थाने में खबर करने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि उन्होंने जयदेव को कम से कम तीस-बत्तीस बार रेस के मैदान में देखा है और वह एक पक्का जुआड़ी है, इसलिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
- प्रश्न – रविवार को जयदेव के न आने पर मोहित को क्या लगा और बाद में क्या हुआ?
उत्तर – मोहित को लगा कि उसकी जुगत काम कर गई है और अब जयदेव नहीं आएगा, जिससे वह मुसीबत से बच गया है। लेकिन उसकी यह राहत सिर्फ रात भर के लिए थी, क्योंकि अगले दिन सुबह जयदेव ने अपने बेटे को पैसे लेने भेज दिया।
- प्रश्न – जयदेव ने मोहित को पत्र में क्या लिखा था?
उत्तर – जयदेव ने पत्र में लिखा था कि उसके दाहिने पैर में मोच आ गई है, इसलिए वह अपने बेटे संजय को भेज रहा है। उसने मोहित से सहायता के तौर पर जो थोड़ा-बहुत बन सके, बेटे के हाथ में देने का अनुरोध किया और आशा व्यक्त की कि वह निराश नहीं करेगा।
- प्रश्न – मोहित ने जयदेव के बेटे संजय के प्रति कैसा व्यवहार किया?
उत्तर – मोहित ने संजय को बैठने को कहा, उसे नाश्ता करने और किताबें देखने के लिए रोका। उसने संजय से घर का रास्ता पूछा और उसे अपने दफ्तर छोड़ने के बाद अपनी गाड़ी से घर छोड़ने का इंतजाम किया, जो उसकी उदारता दर्शाता है।
- प्रश्न – अंत में मोहित खुद को हल्का और खुश क्यों महसूस कर रहा था?
उत्तर – मोहित जयदेव को पहचान न पाने और उसकी आर्थिक स्थिति देखकर निराश था। लेकिन उसके बेटे संजय में उसे अपने तीस साल पुराने सहपाठी जयदेव की छवि दिखाई दी, जिससे उसे एक तरह की खुशी और राहत महसूस हुई।
- प्रश्न – कहानी में “देह धरे का दंड” से क्या आशय है?
उत्तर – “देह धरे का दंड” का आशय है कि शरीर धारण करने से जो कष्ट और कठिनाइयाँ आती हैं, उन्हें सहन करना पड़ता है। जयदेव अपने जीवन की परेशानियों, शारीरिक गिरावट और लगातार संघर्ष को इसी दंड के रूप में देखता है।