कवि परिचय : सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म वसंत पंचमी रविवार 21 फरवरी 1896 के दिन हुआ था, अपना जन्मदिन वसंत पंचमी को ही मानते थे। उनकी एक कहानी संग्रह ‘लिली’ 21 फरवरी 1899 जन्म तिथि पर ही प्रकाशित हुई थी। रविवार को इनका जन्म हुआ था इसलिए वह सूर्ज कुमार के नाम से जाने जाते थे। उनके पिताजी का नाम पंडित राम सहाय था, वह सिपाही की नौकरी करते थे। उनकी माता का नाम रूक्मणी था। जब निराला जी 3 साल के थे तब उनकी माता की मृत्यु हो गई थी, उसके बाद उनके पिता ने उनकी देखभाल की। निराला का व्यक्तित्व घनघोर सिद्धांतवादी और साहसी था। वह सतत संघर्ष- पथ के पथिक थे। यह रास्ता उन्हें विक्षिप्तता तक भी ले गया। उन्होंने जीवन और रचना को अनेक स्तरों पर जिया, इसका ही निष्कर्ष है कि उनका रचना-संसार इतनी विविधता और समृद्धता लिए हुए है। निराला की रचनाओं में अनेक प्रकार के भाव पाए जाते हैं। यद्यपि वे खड़ी बोली के कवि थे, पर ब्रजभाषा व अवधी भाषा में भी कविताएँ गढ़ लेते थे। उनकी रचनाओं में कहीं प्रेम की सघनता है, कहीं आध्यात्मिकता तो कहीं विपन्नों के प्रति सहानुभूति व सम्वेदना, कहीं देश- प्रेम का जज्बा तो कहीं सामाजिक रूढ़ियों का विरोध व कहीं प्रकृति के प्रति झलकता अनुराग। 1920 ई. के आसपास उन्होंने अपना लेखन कार्य शुरू किया था। उनकी सबसे पहली रचना ‘एक गीत’ जन्म भूमि पर लिखी गई थी। 1916 ई में उनके द्वारा लिखी गई ‘जूही की कली’ बहुत ही लंबे समय तक के लिए प्रसिद्ध रही थी और वह 1922 ई में प्रकाशित हुई थी।
सूर्यकांत त्रिपाठी के काव्य संग्रह – अनामिका (1923), परिमल (1930), गीतिका (1936), अनामिका (द्वितीय) (1939), तुलसी दास (1939), कुकुरमुत्ता (1942) अणिमा (1943), बेला (1946), नये पत्ते (1946), अर्चना (1950) आराधान (1953), गीतकुंज (1954), सांध्य का कली, अपरा। उपन्यास- (1931) अप्सरा (1933), अलका (1936), प्रभावती (1936), निरूपमा (1936), कुल्लीभाट (1938-39) आदि। कहानी संग्रह लिलि (1934) सखी (1935) सुकुल की बीबी (1938-39 )। 15 अक्टूबर, 1961 को अपनी यादें छोड़कर निराला इस लोक को अलविदा कह गये पर मिथक और यथार्थ के बीच अन्तर्विरोधों के बावजूद अपनी रचनात्मकता को यथार्थ की भावभूमि पर टिकाये रखने वाले निराला आज भी हमारे बीच जीवन्त हैं। इनकी मृत्यु प्रयाग में हुई थी।
राजे ने अपनी रखवाली की
राजे ने अपनी रखवाली की;
किला बनाकर रहा;
बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं।
चापलूस कितने सामन्त आए।
मतलब की लकड़ी पकड़े हुए।
कितने ब्राह्मण आए
पोथियों में जनता को बाँधे हुए।
कवियों ने उसकी बहादुरी के गीत गाए,
लेखकों ने लेख लिखे,
ऐतिहासिकों ने इतिहास के पन्ने भरे,
नाट्य कलाकारों ने कितने नाटक रचे
रंगमंच पर खेले।
जनता पर जादू चला राजे के समाज का।
लोक-नारियों के लिए रानियाँ आदर्श हुई।
धर्म का बढ़ावा रहा धोखे से भरा हुआ।
लोहा बजा धर्म पर, सभ्यता के नाम पर।
खून की नदी बही।
आँख कान मूँदकर जनता ने डुबकियाँ लीं।
आँख खुली- राजे ने अपनी रखवाली की।
शब्द – अर्थ
क्रम | शब्द | हिंदी में अर्थ | बंगला में अर्थ | English Meaning |
1 | रखवाली | सुरक्षा, निगरानी | পাহারা, রক্ষা | Protection, guarding |
2 | किला | दुर्ग, मजबूत इमारत | দুর্গ | Fort |
3 | फ़ौजें | सेनाएँ, सैनिक समूह | সেনাবাহিনী | Armies |
4 | चापलूस | खुशामद करने वाला व्यक्ति | চাটুকার | Flatterer |
5 | सामन्त | राजा के अधीन जागीरदार | সামন্ত, জমিদার | Feudatory, landlord |
6 | मतलब की लकड़ी | स्वार्थ की छड़ी (रूपक में उपयोग) | স্বার্থের লাঠি (রূপক রূপে) | Stick of selfishness (metaphor) |
7 | पोथियाँ | धार्मिक या पुरानी किताबें | ধর্মীয় বই, পুরাতন পুঁথি | Religious texts, scriptures |
8 | बाँधे हुए | जकड़े हुए, सीमित किए हुए | বাঁধা, আবদ্ধ | Bound, tied |
9 | बहादुरी | वीरता, साहस | বীরত্ব | Bravery, courage |
10 | इतिहास | बीते समय की घटनाओं का लेखा-जोखा | ইতিহাস | History |
11 | नाट्य कलाकार | रंगमंच पर अभिनय करने वाले लोग | নাট্যশিল্পী | Theatre artists |
12 | रंगमंच | नाटक मंच, स्टेज | মঞ্চ | Stage, theatre |
13 | जादू | मायाजाल, मोह | জাদু, মোহ | Magic, enchantment |
14 | लोक-नारियाँ | सामान्य महिलाएँ | সাধারণ নারীরা | Common women |
15 | आदर्श | अनुकरणीय उदाहरण | আদর্শ | Ideal |
16 | धोखा | छल, झूठ | প্রতারণা | Deceit, fraud |
17 | सभ्यता | संस्कृति, संस्कार | সভ্যতা | Civilization |
18 | खून की नदी बही | अत्यधिक हिंसा का रूपक | রক্তের নদী বইলো (অত্যাচারের প্রতীক) | A river of blood flowed (metaphor) |
19 | डुबकियाँ लीं | पूरी तरह से डूब जाना | ডুব দেওয়া | Took dips, immersed |
20 | आँख खुली | सच्चाई का पता चलना | চোখ খোলা (সত্য উদ্ঘাটন) | Realisation, awakening |
कविता का
कविता का परिचय
कविता ‘राजे ने अपनी रखवाली की’ का मुख्य उद्देश्य पाठकों को यह बताना है कि जहाँ और जब सत्ता का केंद्रीकरण होना शुरू होता है तब वहाँ के मुखिया के आगे-पीछे चाटुकारों का जमावड़ा लग जाता है। ये चाटुकार केवल अपना हित हेतु ही सोचते हैं। और यहीं से शुरू होता है भावनात्मक और शारीरिक स्तर पर आम जनता है शोषण। विस्मय की बात यह है कि आम जनता का एक बड़ा हिस्सा इनके द्वारा फैलाए गए धार्मिक धंधे, सत्ता के मुखिया के प्रति निष्ठा भावना और प्रश्न न करके केवल भरोसा करने के जाल में फँसते चले जाते हैं। यह कविता सत्ता के केंद्रीकरण, उसके दमनकारी स्वरूप और जनता पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का एक तीखा व्यंग्य है। कवि सूर्यकांत त्रिपाठी जी बताते हैं कि कैसे शासक वर्ग (राजे) अपनी शक्ति और विशेषाधिकारों को बनाए रखने के लिए विभिन्न हथकंडों का इस्तेमाल करते हैं और आम जनता को इसमें फँसाते रहते है।
कविता ‘राजे ने अपनी रखवाली की’ का मुख्य उद्देश्य पाठकों को यह बताना है कि जहाँ और जब सत्ता का केंद्रीकरण होना शुरू होता है तब वहाँ के मुखिया के आगे-पीछे चाटुकारों का जमावड़ा लग जाता है। ये चाटुकार केवल अपना हित हेतु ही सोचते हैं। और यहीं से शुरू होता है भावनात्मक और शारीरिक स्तर पर आम जनता है शोषण। विस्मय की बात यह है कि आम जनता का एक बड़ा हिस्सा इनके द्वारा फैलाए गए धार्मिक धंधे, सत्ता के मुखिया के प्रति निष्ठा भावना और प्रश्न न करके केवल भरोसा करने के जाल में फँसते चले जाते हैं। यह कविता सत्ता के केंद्रीकरण, उसके दमनकारी स्वरूप और जनता पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का एक तीखा व्यंग्य है। कवि सूर्यकांत त्रिपाठी जी बताते हैं कि कैसे शासक वर्ग (राजे) अपनी शक्ति और विशेषाधिकारों को बनाए रखने के लिए विभिन्न हथकंडों का इस्तेमाल करते हैं और आम जनता को इसमें फँसाते रहते है।
‘राजे ने अपनी रखवाली की’ कविता का विस्तृत विश्लेषण
राजे ने अपनी रखवाली की;
किला बनाकर रहा;
बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं।
कविता की शुरुआत ही शासक अर्थात् राजा के आत्म-संरक्षण के प्रयासों से होती है। ‘अपनी रखवाली’ करना यानी अपनी सत्ता, अपना पद और अपने स्वार्थों की रक्षा करना। इसके लिए वह भौतिक सुरक्षा का सहारा लेता है – किला बनाना (अपनी शक्ति का प्रतीक और सुरक्षा का साधन) और बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखना (जनता को नियंत्रित करने और विरोध को कुचलने का माध्यम)। यह सैन्य शक्ति और भौतिक सीमाओं के माध्यम से सत्ता के दमनकारी चरित्र को उजागर करता है।
चापलूस कितने सामन्त आए।
मतलब की लकड़ी पकड़े हुए।
कविता की इन पंक्तियों में राजे की शक्ति के इर्द-गिर्द चाटुकारों का जमावड़ा लगा रहता है। सामन्त, जागीरदार या दरबारी वे लोग होते हैं जो अपनी निष्ठा राजा के प्रति दिखाते हैं, लेकिन उनका असली मकसद राजा से लाभ उठाना होता है। ‘मतलब की लकड़ी पकड़े हुए’ मुहावरा उनके स्वार्थी स्वभाव को दर्शाता है। वे सिर्फ अपने फायदे के लिए राजा की चापलूसी करते हैं और उसके अनुसार ढल जाते हैं।
कितने ब्राह्मण आए
पोथियों में जनता को बाँधे हुए।
यह पंक्ति धर्म के दुरुपयोग पर गहरा प्रहार करती है। ब्राह्मण जो तत्कालीन समाज में धार्मिक और बौद्धिक सत्ता के प्रतीक थे, यहाँ धर्म ग्रंथों (पोथियों) का इस्तेमाल जनता को नियंत्रित करने के लिए करते हैं। वे धर्म और परंपरा के नाम पर ऐसी व्याख्याएँ प्रस्तुत करते हैं, जो राजा की सत्ता को वैधता प्रदान करती हैं और जनता को उसके अधीन बनाए रखती हैं। ‘पोथियों में जनता को बाँधे हुए’ का अर्थ है कि धार्मिक शिक्षाओं और रीति-रिवाजों के जाल में फँसाकर जनता को मानसिक रूप से गुलाम बनाया जाता है, ताकि वे राजा के खिलाफ विद्रोह न कर सकें।
“कवियों ने उसकी बहादुरी के गीत गाए,
लेखकों ने लेख लिखे,
ऐतिहासिकों ने इतिहास के पन्ने भरे,
नाट्य कलाकारों ने कितने नाटक रचे
रंगमंच पर खेले।”
कविता का यह खंड दिखाता है कि कैसे कला और साहित्य का राजनीतिकरण हुआ। कला, साहित्य और इतिहास जैसे रचनात्मक माध्यमों का इस्तेमाल भी राजा अपनी महिमामंडन के लिए करता है। कवि, लेखक, इतिहासकार और नाट्य कलाकार सभी राजा की ‘बहादुरी के गीत’ गाते हैं, उसके पक्ष में लेख लिखते हैं, उसके अनुसार इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं और उसके गुणगान वाले नाटक प्रस्तुत करते हैं। ये सब इसलिए किया जाता है ताकि जनता के मन में राजा की एक महान और शक्तिशाली छवि स्थापित हो सके, और वे उसकी सत्ता को स्वीकार कर लें। यह दिखाता है कि कैसे बौद्धिक और कलात्मक स्वतंत्रता को कुचला जाता है या उसे सत्ता के प्रचार तंत्र में बदल दिया जाता है।
जनता पर जादू चला राजे के समाज का।
लोक-नारियों के लिए रानियाँ आदर्श हुई।
कविता की ये पंक्तियाँ राजा और उसके सत्ता तंत्र द्वारा रचे गए इस मायाजाल का जनता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ‘राजे के समाज का जादू’ का अर्थ है कि राजा द्वारा स्थापित मूल्य, रीति-रिवाज और जीवनशैली जनता के लिए आदर्श बन जाती है। विशेष रूप से, रानियों को ‘लोक-नारियों’ अर्थात् आम महिलाओं के लिए आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसका अर्थ है कि राजसी जीवनशैली और महिलाओं के लिए निर्धारित भूमिकाओं को समाज में स्थापित कर दिया जाता है, जिससे महिलाएँ भी अपनी पारंपरिक सीमाओं में बंधी रहें और राजशाही का विरोध न कर सकें। यह सामाजिक नियंत्रण का एक सूक्ष्म तरीका है।
धर्म का बढ़ावा रहा धोखे से भरा हुआ।
लोहा बजा धर्म पर, सभ्यता के नाम पर।
खून की नदी बही।
यह खंड कविता का सबसे मार्मिक और कटु सत्य उजागर करने वाला भाग है। कवि स्पष्ट करते हैं कि जिस धर्म को बढ़ावा दिया जा रहा था, वह ‘धोखे से भरा हुआ’ था। यानी धर्म का इस्तेमाल लोगों को बरगलाने और सत्ता के हितों को साधने के लिए किया गया। ‘लोहा बजा धर्म पर, सभ्यता के नाम पर’ का अर्थ है कि धर्म और सभ्यता के नाम पर युद्ध, संघर्ष और हिंसा हुई। ‘खून की नदी बही’ यह दर्शाता है कि इन धार्मिक और सभ्यतागत दावों के पीछे बड़े पैमाने पर मारकाट और दमन था।
आँख कान मूँदकर जनता ने डुबकियाँ लीं।
यह पंक्ति जनता की अज्ञानता, निष्क्रियता और मजबूरी को दर्शाती है। ‘आँख कान मूँदकर’ यानी बिना सोचे-समझे, बिना प्रश्न किए, जनता ने इस दमन और शोषण को स्वीकार कर लिया। ‘डुबकियाँ लीं’ का प्रतीकात्मक अर्थ है कि जनता इस खून की नदी में लिप्त हुई या उसने इस व्यवस्था को चुपचाप सह लिया, जैसे किसी धार्मिक स्नान में डुबकी लगाते हैं। यह उनकी बेबसी और आत्मसमर्पण को दिखाता है।
आँख खुली- राजे ने अपनी रखवाली की।
अंतिम पंक्ति कविता की पहली पंक्ति की पुनरावृत्ति है, लेकिन इसका अर्थ अब बदल गया है। ‘आँख खुली’ का अर्थ है कि जनता को अंततः सच्चाई का बोध हुआ। उन्हें समझ आया कि ये सारे आडंबर, धर्म के नाम पर खून-खराबा, साहित्य और कला का दुरुपयोग – ये सब कुछ सिर्फ और सिर्फ राजा के अपनी सत्ता, अपने स्वार्थों और अपने विशेषाधिकारों की ‘रखवाली’ के लिए था। यह पंक्ति इस कड़वी सच्चाई को उजागर करती है कि सत्ताधारी वर्ग हमेशा अपने हितों को सर्वोपरि रखता है और इसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है, भले ही इसके लिए धर्म, कला या जनता की भावनाओं का दुरुपयोग करना पड़े।
‘राजे ने अपनी रखवाली की’ कविता पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न
1. प्रश्न – राजे अपनी रखवाली के लिए सबसे पहले क्या करता है?
a) गीत गवाता है
b) किला बनाता है
c) नाटक रचवाता है
d) ब्राह्मणों को बुलाता है
उत्तर – b) किला बनाता है
2. प्रश्न – “मतलब की लकड़ी पकड़े हुए” सामन्त किस प्रवृत्ति को दर्शाते हैं?
a) ईमानदारी
b) निस्वार्थ सेवा
c) चापलूसी और स्वार्थपरता
d) बहादुरी
उत्तर – c) चापलूसी और स्वार्थपरता
3. प्रश्न – ब्राह्मण जनता को किस चीज़ में बाँधते थे?
a) जंजीरों में
b) पोथियों में
c) रिश्तों में
d) नियमों में
उत्तर – b) पोथियों में
4. प्रश्न – कवियों, लेखकों और इतिहासकारों का मुख्य कार्य क्या था?
a) सत्य का अन्वेषण करना
b) राजे की बहादुरी का गुणगान करना
c) जनता को जागरूक करना
d) समाज सुधार के लेख लिखना
उत्तर – b) राजे की बहादुरी का गुणगान करना
5. प्रश्न – रंगमंच पर नाटक रचने और खेलने का उद्देश्य क्या था?
a) मनोरंजन प्रदान करना
b) राजे के समाज का जादू जनता पर चलाना
c) सामाजिक बुराइयों को उजागर करना
d) कलाकारों को प्रोत्साहन देना
उत्तर – b) राजे के समाज का जादू जनता पर चलाना
6. प्रश्न – लोक-नारियों के लिए कौन आदर्श बनाई गईं?
a) वीरांगनाएँ
b) दासियाँ
c) रानियाँ
d) सन्त नारियाँ
उत्तर – c) रानियाँ
7. प्रश्न – कविता के अनुसार, धर्म का बढ़ावा कैसा था?
a) पवित्र और सच्चा
b) ज्ञानवर्धक
c) धोखे से भरा हुआ
d) परोपकारी
उत्तर – c) धोखे से भरा हुआ
8. प्रश्न – “लोहा बजा धर्म पर, सभ्यता के नाम पर” पंक्ति में ‘लोहा बजना’ क्या दर्शाता है?
a) कृषि कार्य
b) युद्ध और हिंसा
c) धातु कला
d) निर्माण कार्य
उत्तर – b) युद्ध और हिंसा
9. प्रश्न – “आँख कान मूँदकर जनता ने डुबकियाँ लीं” से जनता की कैसी स्थिति का पता चलता है?
a) उत्साहपूर्ण सहभागिता
b) अज्ञानता और निष्क्रिय स्वीकृति
c) सक्रिय विरोध
d) गहरी आस्था
उत्तर – b) अज्ञानता और निष्क्रिय स्वीकृति
10. प्रश्न – कविता के अंत में ‘आँख खुली’ का क्या अर्थ है?
a) सुबह हो गई
b) जनता को सच्चाई का बोध हुआ
c) राजा ने महल के दरवाजे खोल दिए
d) कोई नया शासक आया
उत्तर – b) जनता को सच्चाई का बोध हुआ
‘राजे ने अपनी रखवाली की’ कविता पर आधारित अतिलघूत्तरीय प्रश्न – उत्तर
- प्रश्न – राजा ने अपनी सत्ता की रक्षा के लिए क्या किया?
उत्तर – राजा ने किला बनाया और बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं। - प्रश्न – कविता में सामंतों को किस तरह वर्णित किया गया है?
उत्तर – सामंतों को चापलूस और “मतलब की लकड़ी” पकड़े हुए बताया गया है। - प्रश्न – ब्राह्मण कविता में क्या लेकर आए थे?
उत्तर – ब्राह्मण पोथियों में जनता को बाँधे हुए आए थे। - प्रश्न – कवियों ने राजा के लिए क्या किया?
उत्तर – कवियों ने राजा की बहादुरी के गीत गाए। - प्रश्न – इतिहासकारों की कविता में क्या भूमिका थी?
उत्तर – इतिहासकारों ने राजा की प्रशंसा में इतिहास के पन्ने भरे। - प्रश्न – रानियों को कविता में किस रूप में प्रस्तुत किया गया?
उत्तर – रानियों को लोक-नारियों के लिए आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया गया। - प्रश्न – कविता में धर्म के बारे में क्या कहा गया है?
उत्तर – धर्म को धोखे से भरा हुआ और सभ्यता के नाम पर हिंसा से जुड़ा बताया गया है। - प्रश्न – कविता में हिंसा का प्रतीक क्या है?
उत्तर – हिंसा का प्रतीक “खून की नदी” है। - प्रश्न – जनता ने सत्ता के प्रचार में क्या किया?
उत्तर – जनता ने आँख-कान मूँदकर सत्ता के प्रचार में डुबकियाँ लीं। - प्रश्न – कविता का अंतिम संदेश क्या है?
उत्तर – जनता की आँख खुलने पर उसे पता चला कि राजा ने केवल अपनी सत्ता की रखवाली की।
‘राजे ने अपनी रखवाली की’ कविता पर आधारित लघूत्तरीय प्रश्न – उत्तर
- प्रश्न – राजे अपनी रखवाली के लिए मुख्य रूप से क्या करता है?
उत्तर – राजे अपनी सत्ता और स्वार्थों की सुरक्षा के लिए किला बनाता है और बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखता है। ये भौतिक और सैन्य साधन उसकी दमनकारी शक्ति को दर्शाते हैं।
- प्रश्न – “मतलब की लकड़ी पकड़े हुए” सामन्त किसे दर्शाते हैं?
उत्तर – “मतलब की लकड़ी पकड़े हुए” सामन्त स्वार्थी चाटुकारों को दर्शाते हैं। वे राजे की प्रशंसा और चापलूसी केवल अपने व्यक्तिगत लाभ और हितों को साधने के लिए करते हैं, न कि सच्ची निष्ठा से।
- प्रश्न – ब्राह्मणों का जनता को “पोथियों में बाँधने” का क्या अर्थ है?
उत्तर – इसका अर्थ है कि ब्राह्मण धर्म ग्रंथों और धार्मिक शिक्षाओं का उपयोग करके जनता को मानसिक रूप से नियंत्रित करते हैं। वे ऐसी व्याख्याएँ प्रस्तुत करते हैं जो राजे की सत्ता को वैध बनाती हैं और जनता को उसके अधीन रखती हैं।
- प्रश्न – कवि, लेखक और इतिहासकारों की भूमिका क्या थी?
उत्तर – कवि, लेखक और इतिहासकार राजे का महिमामंडन करते थे। वे राजे की बहादुरी के गीत गाते, उसके पक्ष में लेख लिखते, और इतिहास को उसके हितों के अनुसार गढ़ते थे, ताकि जनता में उसकी महान छवि बने।
- प्रश्न – नाट्य कलाकारों का रंगमंच पर नाटक खेलने का उद्देश्य क्या था?
उत्तर – नाट्य कलाकारों का उद्देश्य राजा के गुणों और उसकी शक्ति का प्रचार करना था। वे राजा के पक्ष में नाटक रचकर रंगमंच पर खेलते थे, जिससे जनता पर राजा के समाज का ‘जादू’ चल सके और वे उसकी सत्ता को स्वीकार कर सकें।
- प्रश्न – “जनता पर जादू चला राजे के समाज का” से कवि क्या बताना चाहता है?
उत्तर – कवि यह बताना चाहता है कि राजा द्वारा स्थापित मूल्य, रीति-रिवाज और जीवनशैली आम जनता के लिए आदर्श बन गए थे। जनता ने बिना प्रश्न किए राजशाही के वर्चस्व को स्वीकार कर लिया था।
- प्रश्न – लोक-नारियों के लिए रानियाँ क्यों आदर्श बनीं?
उत्तर – रानियों को लोक-नारियों के लिए आदर्श इसलिए बनाया गया ताकि राजसी जीवनशैली और महिलाओं के लिए निर्धारित पारंपरिक भूमिकाओं को समाज में स्थापित किया जा सके। यह राजशाही के सामाजिक नियंत्रण का एक सूक्ष्म परंतु सटीक तरीका था।
- प्रश्न – “लोहा बजा धर्म पर, सभ्यता के नाम पर” का क्या आशय है?
उत्तर – इसका आशय है कि धर्म और सभ्यता जैसे पवित्र माने जाने वाले आवरणों का उपयोग युद्ध, हिंसा और दमन के लिए किया गया। इन उच्च आदर्शों के नाम पर बड़े पैमाने पर खून-खराबा हुआ।
- प्रश्न – “आँख कान मूँदकर जनता ने डुबकियाँ लीं” से क्या संकेत मिलता है?
उत्तर – यह संकेत देता है कि जनता ने अज्ञानता, निष्क्रियता या मजबूरी में बिना सोचे-समझे राजे के दमन और शोषण को स्वीकार कर लिया। वे चुपचाप उस खून-खराबे वाली व्यवस्था का हिस्सा बन गए।
- प्रश्न – कविता के अंत में “आँख खुली- राजे ने अपनी रखवाली की” का क्या महत्व है?
उत्तर – यह पंक्ति जनता की सत्य के प्रति जागृति को दर्शाती है। उन्हें अंततः समझ आया कि सारे आडंबर और हिंसा केवल राजे के अपने स्वार्थों और सत्ता की रक्षा के लिए थे, यह कड़वी सच्चाई का बोध था।
‘राजे ने अपनी रखवाली की’ कविता पर आधारित दीर्घ उत्तरीय प्रश्न – उत्तर
- प्रश्न – कविता में राजा ने अपनी सत्ता की रक्षा के लिए क्या उपाय किए?
उत्तर – राजा ने अपनी सत्ता की रक्षा के लिए किला बनाया और बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं, जो उसकी शक्ति और प्रभुत्व का प्रतीक थीं। यह दिखाता है कि वह अपनी सुरक्षा और नियंत्रण को सर्वोपरि मानता था। चापलूस सामंतों और धार्मिक प्रचार के जरिए भी उसने जनता को प्रभावित कर अपनी सत्ता को मजबूत किया। - प्रश्न – कविता में चापलूस सामंतों की क्या भूमिका थी?
उत्तर – कविता में चापलूस सामंत “मतलब की लकड़ी” पकड़े हुए राजा की प्रशंसा करते हैं, जो उनके स्वार्थी और अवसरवादी स्वभाव को दर्शाता है। वे केवल अपने निजी लाभ के लिए राजा के दरबार में आते हैं। यह सत्ता के आसपास के लोगों की चाटुकारिता और सत्य से दूरी को उजागर करता है, जो जनता को भ्रमित करने में सहायक होता है। - प्रश्न – कविता में धर्म का उपयोग कैसे दर्शाया गया है?
उत्तर – कविता में धर्म को धोखे से भरा हुआ और सभ्यता के नाम पर हिंसा से जुड़ा बताया गया है। ब्राह्मण पोथियों के जरिए जनता को अंधविश्वास में बाँधते हैं, और “लोहा बजा धर्म पर” पंक्ति हिंसा और धर्म के गठजोड़ को दर्शाती है। यह सत्ता द्वारा धार्मिक शोषण को उजागर करता है, जो जनता को नियंत्रित करने का साधन बनता है। - प्रश्न – कविता में जनता की अंधभक्ति को कैसे चित्रित किया गया है?
उत्तर – जनता को कविता में आँख-कान मूँदकर सत्ता के प्रचार में डुबकियाँ लेते हुए दिखाया गया है। वह धर्म, रानियों के आदर्श, और सांस्कृतिक प्रचार के जाल में फंसकर सत्ता के कृत्यों को स्वीकार करती है। यह उसकी भोली आस्था और जागरूकता की कमी को दर्शाता है, जो सत्ता के शोषण को आसान बनाती है, जब तक उसकी आँखें नहीं खुलतीं। - प्रश्न – कविता का अंतिम संदेश जनता के लिए क्या है?
उत्तर – कविता का अंतिम संदेश यह है कि जब जनता की आँख खुलती है, तो उसे सत्य पता चलता है कि राजा ने केवल अपनी सत्ता की रखवाली की। यह जागरूकता जनता को सत्ता के भ्रामक तंत्र—चापलूसी, धर्म, और प्रचार—से मुक्त करती है। कविता जनता को सवाल उठाने और सत्ता के खिलाफ सचेत रहने की प्रेरणा देती है।